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गुरुवार, 25 नवंबर 2021

पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?



#पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
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हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाता है। अब सवाल कई उठते हैं। पहला यह कि ये योनियां क्या होती हैं? दूसरा यह कि जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि 84 लाख की धारणा महज एक मिथक-भर है? तीसरा सवाल यह कि क्या सचमुच ही एक आत्मा या जीवात्मा को 84 लाख योनियों में भटकने के बाद ही मनुष्य जन्म मिलता है? आओ इनके उत्तर जानें...

क्या हैं योनियां 
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जैसा कि सभी को पता है कि मादा के जिस अंग से जीवात्मा का जन्म होता है, उसे हम योनि कहते हैं। इस तरह पशु योनि, पक्षी योनि, कीट योनि, सर्प योनि, मनुष्य योनि आदि। उक्त योनियों में कई प्रकार के उप-प्रकार भी होते हैं। योनियां जरूरी नहीं कि 84 लाख ही हों। वक्त से साथ अन्य तरह के जीव-जंतु भी उत्पन्न हुए हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियां मानी गई हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एम मे के अनुसार दुनिया में 87 लाख प्रजातियां हैं। उनका अनुमान है कि कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, पौधा-पादप, जलचर-थलचर सब मिलाकर जीव की 87 लाख प्रजातियां हैं। गिनती का थोड़ा-बहुत अंतर है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों ने बगैर किसी साधन और आधुनिक तकनीक के यह जान लिया था कि योनियां 84 लाख के लगभग हैं।

क्रम विकास का सिद्धांत : 
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गर्भविज्ञान के अनुसार क्रम विकास को देखने पर मनुष्य जीव सबसे पहले एक बिंदु रूप होता है, जैसे कि समुद्र के एककोशीय जीव। वही एकको‍शीय जीव बाद में बहुकोशीय जीवों में परिवर्तित होकर क्रम विकास के तहत मनुष्य शरीर धारण करते हैं। स्त्री के गर्भावस्था का अध्ययन करने वालों के अनुसार जंतुरूप जीव ही स्वेदज, जरायुज, अंडज और उद्भीज जीवों में परिवर्तित होकर मनुष्य रूप धारण करते हैं। मनुष्य योनि में सामान्यत: जीव 9 माह और 9 दिनों के विकास के बाद जन्म लेने वाला बालक गर्भावस्था में उन सभी शरीर के आकार को धारण करता है, जो इस सृष्टि में पाए जाते हैं।

गर्भ में बालक बिंदु रूप से शुरू होकर अंत में मनुष्य का बालक बन जाता है अर्थात वह 83 प्रकार से खुद को बदलता है। बच्चा जब जन्म लेता है, तो पहले वह पीठ के बल पड़ा रहता है अर्थात किसी पृष्ठवंशीय जंतु की तरह। बाद में वह छाती के बल सोता है, फिर वह अपनी गर्दन वैसे ही ऊपर उठाता है, जैसे कोई सर्प या सरीसृप जीव उठाता है। तब वह धीरे-धीरे रेंगना शुरू करता है, फिर चौपायों की तरह घुटने के बल चलने लगता है। अंत में वह संतुलन बनाते हुए मनुष्य की तरह चलता है। भय, आक्रामकता, चिल्लाना, अपने नाखूनों से खरोंचना, ईर्ष्या, क्रोध, रोना, चीखना आदि क्रियाएं सभी पशुओं की हैं, जो मनुष्य में स्वत: ही विद्यमान रहती हैं। यह सब उसे क्रम विकास में प्राप्त होता है। 
 
हिन्दू धर्मानुसार सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार..
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
 
अर्थात विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई और इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ, परंतु उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई अत: मनुष्य का निर्माण हुआ, जो उस मूल तत्व ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकता था।
 
योग के 84 आसन : योग के 84 आसन भी इसी क्रम विकास से ही प्रेरित हैं। एक बच्चा वह सभी आसन करता रहता है, जो कि योग में बताए जाते हैं। उक्त आसन करने रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। वृक्षासन से लेकर वृश्चिक आसन तक कई पशुवत आसन हैं। मत्स्यासन, सर्पासन, बकासन, कुर्मासन, वृश्चिक, वृक्षासन, ताड़ासन आदि अधिकतर पशुवत आसन ही है।
 
जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? 

प्रश्न : मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है?
उत्तर : क्रम विकास के हिन्दू और वैज्ञानिक सिद्धांत से हमें बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन हिन्दू धर्मानुसार जीवन एक चक्र है। इस चक्र से निकलने को ही 'मोक्ष' कहते हैं। माना जाता है कि जो ऊपर उठता है, एक दिन उसे नीचे भी गिरना है, लेकिन यह तय करना है उक्त आत्मा की योग्यता और उसके जीवट संघर्ष पर।

यदि यह मान लिया जाए कि कोई पशु आत्मा पशु ही बनती है और मनुष्य आत्मा मनुष्य तो फिर तो कोई पशु आत्मा कभी मनुष्य बन ही नहीं सकती। किसी कीड़े की आत्मा कभी पशु बन ही नहीं सकती। ऐसा मानने से बुद्ध की जातक कथाएं अर्थात उनके पिछले जन्म की कहानियों को फिर झूठ मान लिया जाएगा। इसी तरह ऐसे कई ऋषि-मुनि हुए हैं जिन्होंने अपने कई जन्मों पूर्व हाथी-घोड़े या हंस के होने का वृत्तांत सुनाया। ...तो यदि यह कोई कहता है कि मनुष्यात्माएं मनुष्य और पशु-पक्षी की आत्माएं पशु या पक्षी ही बनती हैं, वे सैद्धांतिक रूप से गलत हैं। हो सकता है कि उन्हें धर्म की ज्यादा जानकारी न हो।
 
दरअसल, उक्त प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें कर्म-भाव, सुख-दुख और विचारों पर आधारित गतियों को समझना होगा। सामान्य तौर पर 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। प्रत्येक जीव की ये 3 तरह की गतियां होती हैं। यदि कोई मनुष्यात्मा मरकर उर्ध्व गति को प्राप्त होती है तो वह देवलोक को गमन करती है। स्थिर गति का अर्थ है कि वह फिर से मनुष्य बनकर वह सब कार्य फिर से करेगा, जो कि वह कर चुका है। अधोगति का अर्थ है कि अब वह संभवत: मनुष्य योनि से नीचे गिरकर किसी पशु योनि में जाएगा या यदि उसकी गिरावट और भी अधिक है तो वह उससे भी नीचे की योनि में जा सकता है अर्थात नीचे गिरने के बाद कहां जाकर वह अटकेगा, कुछ कह नहीं सकते। 'आसमान से गिरे और लटके खजूर पर आकर' ऐसा भी उसके साथ हो सकता है। ...इसीलिए कहते हैं कि मनुष्य योनि बड़ी दुर्लभ है और इसे जरा संभालकर ही रखें। कम से कम स्थिर गति में रहें।

84 लाख योनियों के प्रकार जानिए...
 
84 लाख योनियां अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग बताई गई हैं, लेकिन हैं सभी एक ही। अनेक आचार्यों ने इन 84 लाख योनियों को 2 भागों में बांटा है। पहला योनिज तथा दूसरा आयोनिज अर्थात 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया। इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा गया है-
 
1. जलचर : जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर : पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर : आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।
 
उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।

1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।
पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार...
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। -(78:5 पद्मपुराण)
अर्थात जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के। कुल 84 लाख।
 
आप इसे इस तरह समझें
* पानी के जीव-जंतु- 9 लाख
* पेड़-पौधे- 20 लाख
* कीड़े-मकौड़े- 11 लाख
* पक्षी- 10 लाख
* पशु- 30 लाख
* देवता-मनुष्य आदि- 4 लाख
कुल योनियां- 84 लाख। 
 
'प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प' ग्रंथ में शरीर रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके अनुसार 1. एक शफ (एक खुर वाले पशु)- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि। 2. द्विशफ (दो खुर वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि। 3. पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि। 

प्रश्न : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
उत्तर : ऊपर हमने एक प्रश्न कि मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है? का उत्तर दिया था। उसके उत्तर में ही उपरोक्त प्रश्न का आधा जवाब मिल ही गया होगा। इससे पूर्व क्रम विकास में भी इसका जवाब छिपा है। दरअसल, पहले गतियों को अच्छे से समझें फिर समझ में आएगा कि हमारे कर्म, भाव और विचार को क्यों उत्तम और सकारात्मक रखना चाहिए।

क्रम विकास 2 तरह का होता है- एक चेतना (आत्मा) का विकास, दूसरा भौतिक जीव का विकास। दूसरे को पहले समझें। यह जगत आकार-प्रकार का है। अमीबा से विकसित होकर मनुष्य तक का सफर ही भौतिक जीव विकास है। इस भौतिक शरीर में जो आत्मा निवास करती है। 
 
प्रत्येक जीव की मरने के बाद कुछ गतियां होती हैं, जो कि उसके घटना, कर्म, भाव और विचार पर आधारित होती हैं। मरने के बाद आत्मा की 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है। वेदों, उपनिषदों और गीता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की 8 तरह की गतियां मानी गई हैं। ये गतियां ही आत्मा की दशा या दिशा तय करती हैं। इन 8 तरह की गतियों को मूलत: 2 भागों में बांटा गया है- 1. अगति, 2. गति। अधो गति में गिरना अर्थात फिर से कोई पशु या पक्षी की योनि में चला जाना, जो कि एक चक्र में फंसने जैसा है।
 
1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है और उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।
2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है।
* अगति के प्रकार : अगति के 4 प्रकार हैं- 1. क्षिणोदर्क, 2. भूमोदर्क, 3. अगति और 4. दुर्गति।
 
1. क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्युलोक में आता है और संतों-सा जीवन जीता है।
2. भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
3. अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
4. दुर्गति : गति में वह कीट-कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
 
* गति के प्रकार : गति के अंतर्गत 4 लोक दिए गए हैं: 1. ब्रह्मलोक, 2. देवलोक, 3. पितृलोक और 4. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।
 
पुराणों के अनुसार आत्मा 3 मार्गों के द्वारा उर्ध्व या अधोलोक की यात्रा करती है। ये 3 मार्ग हैं- 1. अर्चि मार्ग, 2. धूम मार्ग और 3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग।
 
1. अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक : अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है।

2. धूममार्ग पितृलोक : धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है। सूर्य की किरणों में एक 'अमा' नाम की किरण होती है जिसके माध्यम से पितृगण पितृ पक्ष में आते-जाते हैं।

3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग : उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। यह यात्रा बुरे सपनों की तरह होती है।
 
जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्यागकर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे उपरोक्त 3 मार्ग मिलते हैं। उसके कर्मों के अनुसार उसे कोई एक मार्ग यात्रा के लिए प्राप्त हो जाता है।
 
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुन:।। -गीता
 
भावार्थ : क्योंकि जगत के ये 2 प्रकार के शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।) जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परम गति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी) फिर वापस आता है अर्थात‌ जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।।26।।
 
कठोपनिषद अध्याय 2 वल्ली 2 के 7वें मंत्र में यमराजजी कहते हैं कि अपने-अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार शास्त्र, गुरु, संग, शिक्षा, व्यवसाय आदि के द्वारा सुने हुए भावों के अनुसार मरने के पश्चात कितने ही जीवात्मा दूसरा शरीर धारण करने के लिए वीर्य के साथ माता की योनि में प्रवेश कर जाते हैं। जिनके पुण्य-पाप समान होते हैं, वे मनुष्य का और जिनके पुण्य कम तथा पाप अधिक होते हैं, वे पशु-पक्षी का शरीर धारण कर उत्पन्न होते हैं और कितने ही जिनके पाप अत्यधिक होते हैं, स्थावर भाव को प्राप्त होते हैं अर्थात वृक्ष, लता, तृण आदि जड़ शरीर में उत्पन्न होते हैं। 
 
अंतिम इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित जीन्स जिस जीव के जीन्स से मिल जाते हैं, उसी ओर ये आकर्षित होकर वही योनि धारण कर लेते हैं। 84 लाख योनियों में भटकने के बाद वह फिर मनुष्य शरीर में आता है।
 
'पूर्व योनि तहस्त्राणि दृष्ट्वा चैव ततो मया।
आहारा विविधा मुक्ता: पीता नानाविधा:। स्तना...।
स्मरति जन्म मरणानि न च कर्म शुभाशुभं विन्दति।।' -गर्भोपनिषद्
 
अर्थात उस समय गर्भस्थ प्राणी सोचता है कि अपने हजारों पहले जन्मों को देखा और उनमें विभिन्न प्रकार के भोजन किए, विभिन्न योनियों के स्तनपान किए तथा अब जब गर्भ से बाहर निकलूंगा, तब ईश्वर का आश्रय लूंगा। इस प्रकार विचार करता हुआ प्राणी बड़े कष्ट से जन्म लेता है, पर माया का स्पर्श होते ही वह गर्भज्ञान भूल जाता है। शुभ-अशुभ कर्म लोप हो जाते हैं। मनुष्य फिर मनमानी करने लगता है और इस सुरदुर्लभ शरीर के सौभाग्य को गंवा देता है।
 
विकासवाद के सिद्धांत के समर्थकों में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हीकल्स के सिद्धांत 'आंटोजेनी रिपीट्स फायलोजेनी' के अनुसार चेतना गर्भ में एक बीज कोष में आने से लेकर पूरा बालक बनने तक सृष्टि में या विकासवाद के अंतर्गत जितनी योनियां आती हैं, उन सबकी पुनरावृत्ति होती है। प्रति 3 सेकंड से कुछ कम के बाद भ्रूण की आकृति बदल जाती है। स्त्री के प्रजनन कोष में प्रविष्ट होने के बाद पुरुष का बीज कोष 1 से 2, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16, 16 से 32, 32 से 64 कोषों में विभाजित होकर शरीर बनता है।


मंगलवार, 23 नवंबर 2021

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घर में बना सकते हैं च्यवनप्राश

 घर में  बना सकते हैं  च्यवनप्राश

आज की तारीख़ मे वास्तविक शास्त्रोक्त च्यवनप्राश बनाना असंभव है। जो भी कंपनियांं बेच रही हैं, वह वास्तविक च्यवनप्राश है ही नही।

कारण आयुर्वेद मे वर्णित विधी के अनुसार उसमे डाली जाने वाली कम से कम तीन महत्वपूर्ण जडी बूटियों का अब कोई अतापता नही है। कंपनी वाले उनके स्थान पर सफे़द मूसली डाल कर काम चलाते हैं।

दूसरे, आयुर्वेद के अनुसार च्यवनप्राश का मुख्य पदार्थ होना चाहिए ताजा, हरा देशी आंवला। आज की तारीख मे हर कंपनी गांव देहात से दलालों द्वारा एकत्रित किए सूखे आंवले लेती है। उसे पीस कर पाउडर बना कर उससे ही च्यवनप्राश बनाते हैं।

मै विगत 5/6 वर्षों से सुबह शाम च्यवनप्राश का सेवन कर रहा हूं, व लगभग सभी ब्रांडेड व अनब्रांडेड कंपनियों का च्यवनप्राश आजमा चुका हूं।

मुझे केवल पतंजलि (बाबा रामदेव) का ही ठीक लगा, हालांकि वह भी पिसे सूखे आंवले से बनता है।

मै यहां घर पर बनाने योग्य च्यवनप्राश की रेसिपी दे रहा हूं।

आवश्यक सामग्री -

अच्छे पके, हल्के पीले आंवले - 2 / 2.5 किलो

जडी बूटियां आंवलों के साथ पकाने वाली सामग्री
बिदरीकन्द, सफेद चन्दन, वसाका, अकरकरा, शतावरी, ब्राह्मी , बिल्व, छोटी हर्र (हरीतकी), कमल केशर, जटामानसी , गोखरू, बेल , कचूर, नागरमोथा, लोंग, पुश्करमूल, काकडसिंघी, दशमूल, जीवन्ती, पुनर्नवा, अंजीर , असगंध (अश्वगंधा), गिलोय, तुलसी के पत्ते, मीठा नीम, संठ, मुनक्का व मुलेठी सभी 50–50 ग्राम, मोटा कूट लें।

गाय का घी 250 ग्राम, तिल का तेल - 250 ग्राम
मिश्री या चीनी - ढाई से तीन किलो, शहद - 250 ग्राम।

बारीक पीस कर च्यवनप्राश मे मिलाने वाली सामग्री -

पिप्पली - 100 ग्राम, बंशलोचन - 150 ग्राम, दालचीनी - 50 ग्राम, तेजपत्र - 20 ग्राम, नागकेशर - 20 ग्राम, छोटी इलायची - 20 ग्राम, केसर - 2 ग्राम।

विधि -
आवले को धो लीजिये. धुले आंवले को कपड़े की पोटली में बांध लीजिये।
किसी बड़े
स्टील के भगोने में 10-12 लीटर पानी लीजिए, प्रथम सामग्री की जड़ी बूटियां डालिये और बंधे हुये आंवले की पोटली डाल दीजिये। भगोने को तेज आग पर रखिये, उबाल आने के बाद आग धीमी कर दीजिये, आंवले और जड़ी बूटियों को धीमी आग पर एक से डेड़ घंटे तक उबलने दीजिये, जब आंवले बिलकुल नरम हो जायें तब आग बन्द कर दीजिये। आंवले और जड़ी बूटियों को उसी तरह भगोने में उसी पानी में रातभर या 10 -12 घंटे ढककर पड़े रहने दीजिये।

आप बर्तन की उपलब्धता के अनुसार इसे एक, दो या तीन भागों में बांटकर भी उबाल सकते हैं।

अब आंवले की पोटली निकाल कर जड़ी बूटियों से अलग कीजिये, आप देखेंगे कि आंवले काले हो गये हैं, आंवलों ने जड़ी बूटियों का रस अपने अन्दर तक सोख लिया है. सारे आंवले से गुठली निकाल कर अलग कर लीजिये।

जड़ी बूटियां का ठोस भाग छलनी से छान कर अलग कर दीजिये। जड़ी बूटियों का पानी अपने पास छान कर संभाल कर रख लीजिये यह च्यवनप्राश बनाने के काम आयेगा।

जड़ी बूटियों के साथ उबाले हुये आंवलों को, जड़ी बूटियों से निकला थोड़ा थोड़ा पानी मिलाकर मिक्सर से एकदम बारीक पीस लीजिये और बड़ी छ्लनी में डालकर, चमचे से दबा दबा कर छान लीजिये. सारे आंवले इसी तरह पीस कर छान लीजिये। आंवले के सारे रेशे छलनी के ऊपर रह जायेंगे उन्हे फैंक दें।

जड़ी बूटी से छाना हुआ पानी बचा हुआ है तो इसे भी इसी पल्प में मिला सकते हैं। जड़ी बूटियों के रस और आवंले के पल्प के मिश्रण को हम च्यवनप्राश बनाने के काम लेंगे।

लोहे की कढ़ाई जिसमें पल्प आसानी से भूना जा सके। आग पर गरम करने के लिये रखिये। कढ़ाई में तिल का तेल डाल कर गरम कीजिये, गरम तेल में घी डाल कर घी पिघलने तक गरम कीजिये। जब तिल का तेल अच्छी तरह गरम हो जाय तब आंवले का छाना हुआ पल्प डालिये और पलटे से चलाते हुये पकाइये। मिश्रण में उबाल आने के बाद चीनी डालिये और लगातार चमचे से चलाते हुये मिश्रण को एकदमा गाड़ा होने तक पका लीजिये। आप बडी लोहे की कडाही की उपलब्धतानुसार इसे 1 या दो बार में पका सकते हैं। इसे लोहे की कडाही मे ही पकाना है।

जब मिश्रण एकदम गाढा हो जाय तो गैस से उतार इस मिश्रण को 5-6 घंटे तक लोहे की कढ़ाई में ही ढककर रहने दीजिये। पांच या 6 घंटे बाद इस मिश्रण को आप स्टील के बर्तन में निकाल कर रख सकते हैं।

दूसरी लिस्ट की सामग्री में से छोटी इलायची को छील लीजिये। इसके बाद छिली हुई छोटी इलायची के दानो में पिप्पली, बंशलोचन, दालचीनी, तेजपात, नागकेशर को मिक्सी में एकदम बारीक पीस लीजिये। पीसते समय या पीसने के बाद मिक्सी के ढक्कन को थोड़ा देर से खोलें ताकि पिप्पली और बंसलोचन की धस आपको न लगे

अब यह पिसी सामग्री, पिसी चीनी या मिश्री, शहद और केसर को आंवले के मिश्रण में अच्छी तरह से फेंट कर मिला दीजिये. आपका च्यवनप्राश तैयार है।

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प्लेटलेट ( Platelet) को बढ़ाने के घरेलू उपाय


डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों में प्लेटलेट्स की संख्या बड़ी तेजी से घटती है। ऐसे में अगर इनके कम होने को नियंत्रित न किया जाए तो स्थित गंभीर हो सकती है। प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में कुछ आहार हमारी मदद कर सकते हैं,जो कि प्राकृतिक रूप से प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में मददगार होते हैं।

उनमें से कुछ प्रमुख आहार है:—

गिलोय –

गिलोय का जूस प्‍लेटलेट्स को बढ़ाने मेंसर्वोत्तम है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। दो चुटकी गिलोय के सत्व को एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार लें या फिर गिलोय की डंडी को रात भर पानी में भिगो कर सुबह उसका छना हुआ पानी पी लें। ब्‍लड में प्‍लेटलेट्स बढ़ने लगेंगे।

चुकंदर –

चुकंदर प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और हेमोस्टैटिक गुणों से भरपूर होता है। अगर दो से तीन चम्मच चुकंदर के रस को एक गिलास गाजर के रस में मिलाकर पिया जाये तो ब्लड प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही साथ इसमें मौजूद एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाते हैं।

पपीता –

पपीते के फल और पत्तियां दोनों ही प्‍लेटलेट्स बढ़ाने में मददगार हैं। डेंगू बुखार में गिरने वाले प्‍लेटलेट्स को पपीता के पत्ते के रस के सेवन से तेजी से बढ़ाया जा सकता है। पपीते की पत्तियों को चाय की तरह भी पानी में उबालकर पी सकते हैं।

पालक –

दो कप पानी में 4 से 5 ताजा पालक के पत्तों को डालकर कुछ मिनट के लिए उबाल लें। इसे ठंडा होने के लिए रख दें। फिर इसमें आधा गिलास टमाटर मिला दें। इसे मिश्रण को दिन में तीन बार पिएं। इसके अलावा पालक का सेवन सूप, सलाद, स्‍मूदी या सब्‍जी के रूप में भी कर सकते हैं।

नारियल पानी –

नारियल पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा यह मिनिरल्स का भी अच्छा स्रोत है जो शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।

पपीते के पत्ते-

पपीते के पत्तों को पानी में उबालकर उसे ग्रीन टी के रूप में पीने से काफी लाभ होता है। साल 2009 में मलेशिया के शोधकर्ताओं ने ये दावा किया था कि प्लेटलेट्स बढ़ाने में पपीता ही नहीं, उसकी पत्तियां भी मददगार साबित होती हैं। ‘खासतौर पर डेंगू बुखार के कारण कम हुए प्लेटलेट्स को संतुलित करने में पपीता फायदेमंद होता है।

आंवला-

ये एक आयुर्वेदिक उपचार है। आंवले में मौजूद विटामिन-सी शरीर में प्लेटलेट्स का उत्पादन बढ़ाता है, इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है। इसका नियमित सेवन करना बेहद जरूरी है। इसके लिए हर दिन सुबह खाली पेट 3 से 4 आंवला खाएं। आप इसका सेवन चुकंदर के जूस में डालकर भी कर सकती हैं।

इसके अलावा ये चीजें भी हो सकती हैं मददगार :—

  1. प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए कीवी का सेवन करें।
  2. गाजर का नियमित सेवन करें।
  3. नारियल पानी का सेवन करें। इसमें मौजूद इलेक्ट्रोलाइट्स और मिनरल्स प्लेटलेट्स बढ़ाने में बेहद मददगार साबित होते हैं।
  4. बकरी का दूध भी प्लेटलेट्स बढ़ाने में बहुत लाभकारी होता है।

हिमालय की एक ऐसी जड़ी बूटी, जो 10 लाख रुपए किलो तक बिकती है

हिमालय की एक ऐसी जड़ी बूटी, जो 10 लाख रुपए किलो तक बिकती है

हिमालय में एक खास जड़ी बूटी होती है. जिसे हिमालयन वियाग्रा भी कहते हैं. ये ताकत की दवाओं समेत कई काम में इस्तेमाल होती है लेकिन ये दुर्लभ भी है और खासी महंगी भी

हिमालय वियाग्रा जड़ी बूटी का साइंटिफिक नाम 'कोर्डिसेप्स साइनेसिस' (Caterpillar fungus) है. इसे कीड़ा-जड़ी, यार्सागुम्बा या यारसागम्बू नाम से भी जानी जाती है. यह हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़ों पर पाई जाती है.

हिमालय वियाग्रा चीन में काफी मशहूर है. ये जड़ी बूटी यार्सागुम्बा और यारसागम्बू नाम से चीन में ही जानी जाती है. निर्वासित तिब्बती भी इसके कारोबार के साथ जुड़े हैं. तिब्बत और चीन दोनों जगहों पर इसका इस्तेमाल यौनोत्तेजक दवा की तरह किया जाता है.

हिमालय वियाग्रा को जड़ी-बूटी के रूप में मध्य प्रदेश के भी कुछ इलाकों में इस्तेमाल किया जाता है. ये जड़ी बूटी शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में भी मददगार है. कहा जाता है कि सांस और गुर्दे (किडनी) की बीमारी में भी इसका इस्तेमाल दवा की तरह किया जाता है.

हिमालय वियाग्रा जड़ी बूटी का नाम यार्सागुम्बा एक कीड़े के आधार पर लिया जाता है. इस नाम का कीड़ा नेपाल में पाया जाता है. भूरे रंग का ये कीड़ा लगभग 2 इंच लंबा होता है. (Caterpillar fungus)

यार्सागुम्बा कीड़ा नेपाल में उगने वाले कुछ ख़ास पौधों पर, सर्दियों में पौधों से निकलने वाले रस के साथ पैदा होता है. इस कीड़े की ज़िंदगी लगभग छह महीने बताई जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

यार्सागुम्बा कीड़ा मई-जून में जीवन चक्र पूरा कर मर जाते हैं. मरने के बाद पहाड़ियों पर घास-पौधों के बीच बिखरते हैं. इन्हीं मृत यार्सागुम्बा कीड़ों का उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है. इस कीड़े का स्वाद मीठा बताया जाता है. (Caterpillar fungus)

हिमालय वियाग्रा जड़ी-बूटी भारत में प्रतिबंधित है. नेपाल में भी 2001 तक इस पर प्रतिबंध था. 2001 के बाद नेपाल सरकार ने इसपर से प्रतिबंध हटा लिया. अब वहां उत्पादक क्षेत्रों में यार्सागुम्बा सोसायटी है. ये सासायटी यार्सागुम्बा को बेचती है.

नेपाल में मई-जून में यार्सागुम्बा इकठ्ठा करने की होड़ मच जाती है. वहां के लोग इसे इकट्ठा करने के लिए पहाड़ों पर ही टेंट लगाकर रहते हैं. ये ज़डी बूटी सेक्स पॉवर बढ़ाने के गुण की वजह से इस ज़डी बूटी की चीन समेत विदेशों मांग रहती है. इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल हजारों सालों से किया जा रहा है.

हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबित, यार्सागुम्बा से बनी जड़ी बूटी को नई दिल्ली और नेपाल के व्यापारी 10 लाख रुपए प्रति किलो तक खरीदते हैं. जबकि उत्तराखंड फॉरेस्ट डेवलपमेंट कोर्पोरेशन इसे 50 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है. जिसमें से 5% अपनी रॉयल्टी के रूप में रखता है.

खांसी ,जुकाम ,उलटी ,व् पित्त को बंद करती है - मुलेठी


इसे मीठी लकड़ी के नाम से भी जाना जाता है मुलेठी एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम म किया जा सकता है मुलेठी का प्रयोग मधुमेह की औषधि बनाने मे किया जाता है मुलेठी खांसी ,जुकाम ,उलटी ,व् पित्त को बंद करती है मुलेठी आँखों के लिए लाभदायक , वीर्यवर्धक ,बालो को मुलायम ,आवाज़ को सुरीला बनाने वाली और सूजन मे लाभकारी है
मुलेठी  एक प्रसिद्ध और सर्वसुलभ जड़ी है। काण्ड और मूल मधुर होने से मुलेठी को यष्टिमधु कहा जाता है इस्के तनो में कई औषधीय गुण होते हैं इसका स्वाद मीठा होता है याह दांतों के मसूदों और गैलन के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है और बहुत सारी ओषधियो में मुलेठी का इस्तेमाल किया जाता है


मुलेठी को यष्टिमधु, मधुयष्‍टी, मधुयष्‍टी, जष्टिमधु, अतिमधुरम के नाम से भी जाना जाता है



मुलेठी के फ़ायदे 

मुलेठी  को पीसकर घी के साथ चूर्ण के रूप में हर तरह के घावों पर बांधने से शीघ्र लाभ होता है

2 ग्राम मुलेठी पाउडर , 2 ग्राम आवला पाउडर ,2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह शाम खाने से, खांसी मे लाभ होता है

10 ग्राम मुलेठी ,10 ग्राम विदारीकंद ,10 ग्राम लौंग , 10 ग्राम गोखरू , 10 ग्राम गिलोय , और 10 ग्राम मूसली को पीसकर चूर्ण बना ले इसमें से आधा चम्मच चूर्ण लगातार 40 दिनों तक सेवन करने से नपुंसकता का रोग दूर हो जाता है

125 ग्राम मुलेठी पाउडर ,3 चम्मच सोंठ पाउडर 2 चम्मच गुलाब पत्ती पाउडर को एक गिलास पानी मे उबाले जब यह ठंडा हो जाये तो इसे छानकर सोते समय रोज़ाना पीने से पेट मे जमा आव बाहर निकल आता है

1 चम्मच मुलहठी पाउडर 1 कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है

गठिया

अगर आपको गठिया की समस्या है तो आपको मुलेठी का प्रयोग करना चाहिए मुलेठी में एंटीबायोटिक गुण के  पाए जाते ही दर्द सुजान को कम करने में अधिक मदद करते हैं


आँखों की जलन

मुलेठी आँखों के लाल पन और आँखों की जलन को कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है मुलेठी चूरन को पानी में उबालकर फिर पानी को छान लीजिये अब हलके गर्म पानी से आँखो को धोइये ऐसा करने से आँखों में बहुत ज्यादा आराम मिलता है

खांसी 

सर्दी के मौसम में खांसी और दर्द की स्थिति अक्षर बहुत ज्यादा बढ़ जाती है ऐसे मौसम में हमन मुलेठी के छोटे छोटे टुकडे करने चाहिए और उनको जो चबाते रहना चाहिए यह खांसी और दर्द बहुत ज्यादा लभदयाक होता है 

  बालों के लिए

मुलेठी आपके झड़ते बालों के साथ आपकी तवाचा के लिए भी वह बहुत फायदे बैंड होती है मुलेठी और आंवला के पाउडर को पानी के साथ मिलाकर बालो को धोने से बालो का झड़ना काम हो जाता है 

पीरियड्स के दौरा

पीरियड्स के दौरान दर्द को आराम दिलने के लिए आपको मुलेठी का प्रयोग करना चाहिए मासिक धर्म के समय होने वाले अधिक रक्त स्ट्रैब मैं  आपको दो छम्मच मुलेठी का जोड़ 4 ग्राम लेने मिश्री पानी में मिलाकर लेने से आपको पीरियड में होने वाली दर्द से बहुत ज्यादा राहत मिलाती है

कमजोरी को दूर करने के लिए

अगर आप अपने आप को ज्यादा था थका महसूस करते हैं तो आप 2 ग्राम मुलेठी के साथ एक छम्मच शहद और गरम दूध में मिलाकर पी लेना चाहीयें आपकी थकावत को दूर करता है  

गला बैठने के इलाज 

कभी हमारे गले में संक्रामण की वजह से गला बैठा जाता है और ऐसे में आवाज भारी हो जाती है या आवाज नहीं निकल पाति हम बहुत ज्यादा कोशिश करते हैं ऐसे समय पर मुलेठी चबाने से गले के कई अन्य रोग में भी जल्दी फायदा हो जाता है

ऐसे बनाएं चाय

एक चुटकी मुलेठी के पाउडर को उबलते हुए पानी में डालें उसमे थोड़ी सी चायपत्ती डालें। 10 मिनट तक उबालें और छान लें। इसे सुबह गरमागरम ही पियें या इसके इस्तेमाल के लिए मुलेठी की जड़ का पाउडर बनाकर इसे उबलते पानी में डालें और फिर ठंड़ा होने पर छान लें। इस चाय को दिन में एक या दो बार पियें।



गुरुवार, 18 नवंबर 2021

7 दिनों में वजन 10 किलो कम करने के लिए शहद का उपयोग करें

 

7 दिनों में वजन 10 किलो कम करने के लिए शहद का उपयोग करें
मोटापा या वजन कम करने के लिए कई प्रकार के आहार लेने की सलाह दी जाती है। कम कैलोरी वाला हार वजन घटाने में सहायक होता है। आना हारों की तुलना में शहद का उपयोग करना आसान है।

वजन घटाने के लिए शहद का उपयोग कैसे करें

वजन को कंट्रोल में रखना हर किसी को पसंद होता
है। अधिक वजन कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण है जैसे हृदय रोग, मधुमेह, स्ट्रोक, रक्तचाप, मोटापा आदि । ऐसे में लोग डाइटिंग, व्यायाम, रुक-रुक कर उपवास, वजन कम करने के लिए दौड़ना जैसी कई अन्य चीजों को अपनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वजन घटाने के लिए शहद बहुत फायदेमंद होता है। वजन कम करने के लिए आप शहद का इस्तेमाल कई तरह से कर सकते हैं। शहद में मौजूद तत्व शरीर की चर्बी को जलाने में मदद करते हैं, साथ ही शरीर में चर्बी को जमा होने से भी रोकते हैं।
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शहद खाने के फायदे
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🐝 शहद को प्याज के साथ खाने से नपुंसकता व नाईट फॉल जैसी समस्या दूर होती हैं
🐝शहद को चुकंदर के साथ लेने से खून बढ़ता है
🐝नींबू पानी के साथ लेने से वजन घट आता है
🐝शहद खाने से याददाश्त बढ़ती हैं
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🐝 शहद को हल्दी के साथ खाने से शरीर निरोगी रहता है
🐝 शहद को अदरक के साथ खाने से खांसी दूर होती हैं
🐝 शहद से सांस और दमा को ठीक किया जा सकता है
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आइए जानते हैं कि आप शहद का इस्तेमाल किन तरीकों से कर सकते हैं।मोटापे से पीड़ित लोगों को नियमित रूप से शहद का सेवन करना चाहिए। हालांकि ऐसा माना जाता है कि कच्चे शहद का सेवन ज्यादा फायदेमंद होता है। वजन घटाने के लिए आप पेय या मीठे व्यंजनों के साथ शहद का उपयोग कर सकते हैं। हालांकि मोटापे के लक्षणों को कम करने के लिए शहद का सेवन करने का सबसे अच्छा तरीका है कि गर्म पानी के साथ शहद का सेवन करें।

शहद का सेवन गर्म या गुनगुने पानी के साथ किया जा सकता है जो आपके अतिरिक्त वजन को कम करने में सहायक होता है। गर्म पानी के साथ शहद का सेवन करने से आपके शरीर को पर्याप्त कैलोरी भी मिलती है, साथ ही यह शरीर में मौजूद विषाक्तता को भी दूर करता है। कुछ लोगों को यह गलतफहमी होती है कि शहद का इस्तेमाल वजन बढ़ाने के लिए किया जाता है, जो पूरी तरह गलत है।

शहद से वजन कैसे कम करें

शहद का नियमित सेवन वजन कम करने में सहायक होता है। लेकिन शहद वजन कैसे कम करता है। हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है। लेकिन शहद के नियमित सेवन से आपको प्राकृतिक रूप से फायदा हो सकता है।

शहद के सेवन से मीठे भोजन की भावना को संतुष्ट किया जा सकता है। चूंकि शहद में प्राकृतिक चीनी होती है, इसलिए यह शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता है। मधुमेह भी मोटापे का एक प्रमुख कारण है। लेकिन शहद के औषधीय गुण और पोषक तत्व न केवल मधुमेह के लक्षणों को नियंत्रित करते हैं बल्कि अतिरिक्त वजन को कम करने में भी मदद करते हैं।

शहद के सेवन से आप अतिरिक्त कैलोरी प्राप्त करने से बच सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि शहद का नियमित सेवन मोटापे से ग्रस्त लोगों में कैलोरी को 63 प्रतिशत तक कम करने में मदद करता है।

शहद और गर्म पानी का सेवन शरीर में भोजन के कणों को तोड़ने का काम करता है। खाली पेट पानी और शहद का सेवन, खासकर सुबह के समय।

शहद और गर्म पानी का मिश्रण आपके सिस्टम से अवांछित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी सहायक होता है। जो परोक्ष रूप से आपके वजन को कम करने में मदद करता है।

नियमित रूप से शहद और पानी का सेवन करने से आपको कैलोरी कम करने के साथ जरूरी एनर्जी भी मिलती है।
शहद से मोटापा कम करने के उपाय

आप शहद को अन्य औषधीय और खाद्य उत्पादों के साथ मिलाकर सेवन कर सकते हैं। जो आपके वजन को नियंत्रित करने में अतिरिक्त लाभ प्रदान कर सकता है। हालांकि शहद में वजन घटाने के गुण होते हैं, लेकिन शहद के इस्तेमाल का तरीका भी वजन प्रबंधन में अहम भूमिका निभाता है। आइए जानते हैं कि वजन कम करने के लिए शहद का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है।
रात में वजन घटाने के लिए शहद और गर्म पानी

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि शहद और गर्म पानी में शरीर में जमा चर्बी को जुटाने की क्
षमता होती है। इस संचित वसा का उपयोग शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। इस दौरान शरीर में जमा चर्बी या चर्बी को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है।

10 मिलीलीटर शहद और एक गिलास पानी लें। सबसे पहले पानी को हल्का गर्म कर लें। फिर इसमें शहद डालकर अच्छी तरह मिला लें और इस पानी को पी लें। इसे सुबह उठने के बाद खाली पेट पीना अच्छा हो सकता है।

शहद और गर्म पानी का मिश्रण शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सकारात्मक रूप से बढ़ाने में सहायक होता है। शहद के नियमित सेवन, शारीरिक गतिविधियों, नियमित और संतुलित आहार के साथ यह हृदय के तनाव को कम करता है। इसका मतलब है कि शहद और गर्म पानी का सेवन आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सहायक होता है। इसके अलावा गर्म पानी के साथ शहद का सेवन वजन घटाने की प्रक्रिया को भी तेज करता है।

वजन घटाने के लिए शहद और दालचीनी का प्रयोग करें।

मोटापे से छुटकारा पाने का एक और लोकप्रिय तरीका है दालचीनी और शहद का उपयोग। अध्ययनों से पता चलता है कि दालचीनी वजन कम करने में कारगर है। अगर आप भी अपना वजन कम करना चाहते हैं तो आप दालचीनी और शहद के मिश्रण का सेवन कर सकते हैं।

इसे बनाने के लिए 10 मिलीलीटर शहद, 5 ग्राम दालचीनी पाउडर और एक गिलास पानी लें, इसे बनाने के लिए सबसे पहले पानी को गर्म करें। फिर इसमें दालचीनी पाउडर डालकर कुछ देर तक उबालें। अब इस पानी को छान कर एक कप में निकाल लें. इसके बाद इसमें शहद मिलाकर गर्मागर्म पिएं।

इस मिश्रण को नियमित रूप से सुबह खाली पेट पियें। दालचीनी के औषधीय गुण शरीर में ब्लड शुगर लेवल को कम करने और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मददगार होते हैं। शरीर में रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि से शरीर में वसा की मात्रा भी बढ़ जाती है।

इसलिए मोटापा कम करने के लिए दालचीनी और शहद के मिश्रण का इस्तेमाल एक कारगर उपाय माना जाता है। हालांकि, शोध अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि ये मिश्रण वजन कैसे कम करते हैं। लेकिन कई लोगों का मानना ​​है कि इसका नियमित सेवन करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं

नींबू और शहद वजन घटाने के लिए कितने दिन प्रयोग करना चाहिए

अगर आप अपना वजन प्राकृतिक रूप से कम करना चाहते हैं तो नियमित व्यायाम करें। लेकिन वजन घटाने में तेजी लाने के लिए आप शहद, गुनगुने पानी और ताजे नींबू के रस का इस्तेमाल कर सकते हैं।

10 मिलीलीटर शहद, 10 मिलीलीटर नींबू का रस और एक गिलास पानी लें। सबसे पहले पानी को हल्का गर्म कर लें। अब इसमें शहद और नींबू के रस को अच्छी तरह मिला लें। मिलाने के बाद इसका सेवन करें। गुनगुना होने पर ही इसका सेवन करें। इस मिश्रण को सुबह खाली पेट पीना बेहतर है।

बहुत से लोग जो अपना अतिरिक्त वजन कम करना चाहते हैं, अपने दिन की शुरुआत गर्म पानी में शहद और नींबू के साथ करते हैं। शहद में लगभग 26 प्रकार के अमीनो एसिड, अन्य विटामिन और खनिजों की उच्च मात्रा होती है। ये सभी घटक मेटाबॉलिक सिस्टम को मजबूत करते हैं। जिससे यह भोजन के उचित पाचन में मदद करता है और साथ ही शरीर में मौजूद अतिरिक्त चर्बी को ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार शहद और नींबू का रस समग्र स्वास्थ्य में सुधार करने में सहायक होते हैं।

इस मिश्रण में विटामिन सी के रूप में एस्कॉर्बिक एसिड मौजूद होता है, जो नींबू का एक प्रमुख घटक है। विटामिन सी लीवर को साफ करने और मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करने में मददगार होता है। इसके अलावा नींबू का रस ग्लूटाथियोन के कार्य को भी बढ़ाता है जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। शहद के चयापचय-उत्तेजक प्रभावों के साथ, नींबू का रस 15 दिनों में वजन कम करता है।
वजन घटाने के लिए शहद और हरी चाय

10 मिलीलीटर शहद, एक ग्रीन टी बैग और एक गिलास पानी लें। सबसे पहले पानी को गर्म कर लें। फिर इसे कप में निकाल लें और टी बैग को एक से दो मिनट के लिए भिगो दें। जब चाय गुनगुनी हो जाए तो इसमें शहद मिलाएं और इसका सेवन करें। इसे रोज सुबह और शाम चाय की जगह भी ले सकते हैं।

वजन घटाने के लिए शहद और दूध

10 मिली चम्मच शहद और एक गिलास दूध लें। सबसे पहले दूध को उबाल लें। फिर इसे गुनगुना होने दें। इसके बाद इसमें शहद डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब यह बनकर तैयार है, आप इसका सेवन कर सकते हैं.
सोने से पहले शहद का सेवन कर वजन कम करें

शहद रात को सोने से पहले लिए जाने वाले उत्पादों में से एक है जो आपके बढ़ते वजन को कम कर सकता है।

अगर आप भी वजन कम करना चाहते हैं तो रात को सोने से पहले 1 छोटा चम्मच शहद (लगभग 5 ग्राम) लें। यह आपके लीवर के कार्य को उत्तेजित करता है और आपके सिस्टम में मौजूद कई स्ट्रेस हार्मोन को नियंत्रित करता है। ऐसे में शहद का नियमित सेवन न केवल आपको मोटापे से बचाता है बल्कि आपको अन्य तरीकों से भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।

वजन घटाने के लिए फायदेमंद है शहद और लहसुन का मिश्रण

लहसुन में फाइबर, कैल्शियम, विटामिन बी6, विटामिन सी और मैंगनीज होता है। ये सभी पोषक तत्व वजन घटाने में मदद करते हैं। अगर आप स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली अपनाने के साथ-साथ नियमित रूप से लहसुन का सेवन करते हैं तो आप एक हफ्ते में वजन कम कर सकते हैं।
लहसुन में फैट बर्निंग कंपाउंड पाए जाते हैं। यह शरीर की अतिरिक्त चर्बी को कम करने में मदद करता है।

लहसुन शरीर से विषाक्त पदार्थों और हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालता है। यह पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है, जिससे तेजी से वजन कम होता है।

लहसुन में भूख कम करने के गुण होते हैं, जो ज्यादा खाने की इच्छा को रोकता है। इसके सेवन से पेट लंबे समय तक भरा रहता है।
लहसुन मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है, जिससे एनर्जी लेवल बढ़ता है। यह कैलोरी बर्न करता है और वजन घटाने में मदद करता है।

पेट की चर्बी कम करने के लिए ऐसे करें लहसुन के पानी का सेवन

रोजाना सुबह खाली पेट लहसुन पानी और शहद के मिश्रण का सेवन करने से वजन बहुत तेजी से कम होता है। यह नींबू पानी से ज्यादा फायदेमंद होता है। एक गिलास पानी में 2-3 कच्ची लहसुन की कलियां डाल दें। पानी लहसुन के पोषक तत्वों को रात भर सोख लेता है। सुबह खाली पेट 5 मिलीलीटर शहद और आधा पानी मिलाकर दिन में आधा पानी पिएं। 3 से 4 हफ्ते में आपका काफी वजन कम हो जाएगा।

पाचन के लिए शहद के फायदे

नियमित रूप से और पर्याप्त मात्रा में शहद का सेवन करने से आपका पाचन तंत्र बेहतर हो सकता है। उचित पाचन आपके वजन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर आप भी खुद को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो आप अपने दैनिक आहार में नियमित रूप से शहद का सेवन कर सकते हैं। स्वस्थ पाचन तंत्र के लिए रात के खाने के लगभग 45 से 60 मिनट बाद 1 चम्मच शहद का सेवन करें। खासकर तब जब आपने बहुत अधिक मात्रा में खाना खाया हो।

शहद और पानी का मिश्रण कैसे बनाये

वजन कम करने के लिए शहद और पानी का मिश्रण सबसे अच्छा तरीका है। इस मिश्रण को बनाना बहुत ही आसान है। आइए जानते हैं शहद और गर्म पानी का मिश्रण कैसे बनाएं। जिसका आप सुबह खाली पेट सेवन करके अपना वजन कम कर सकते हैं।

शहद और गर्म पानी मिलाने की विधि:

सबसे पहले आप 1 कप पानी लें और इसे अच्छे से उबाल लें। इसके बाद आप इस पानी को किसी छलनी या कपड़े की मदद से छान लें और एक गिलास में रख लें. ताकि इसकी अन्य अशुद्धियां साफ हो जाएं। इस पानी में अपने स्वाद के अनुसार 1 से 2 चम्मच शहद मिलाकर अच्छे से मिला लें।

आपका शहद और गर्म पानी का मिश्रण तैयार है। आप इस गर्म या गुनगुने शहद के पानी का नियमित रूप से सुबह सेवन कर सकते हैं।
गर्म पानी के साथ शहद कैसे पियें?

शहद और पानी का मिश्रण तेजी से मोटापा कम करने में मददगार होता है। आप इस मिश्रण के साथ जितना अधिक पानी पियेंगे, आपको उतना ही अधिक लाभ मिलेगा। क्योंकि इस मिश्रण में पानी की मात्रा आपकी किडनी में मौजूद टॉक्सिसिटी को दूर करने में मददगार होती है।

जो लोग अपना वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें भोजन से पहले या भोजन के दौरान 1 गिलास गुनगुने पानी में शहद मिलाकर पीना चाहिए। क्योंकि यह उन्हें लंबे समय तक भूख लगने से रोकता है। साथ ही यह आपको ज्यादा खाने से भी रोकता है, जिससे वजन बढ़ने की संभावना कम हो सकती है। ऐसे में सुबह खाली पेट शहद और गर्म पानी का सेवन करने से वजन घटाने में मदद मिलती है।

शहद और गर्म पानी के मिश्रण का सेवन करना आपके लिए फायदेमंद होता है। लेकिन अगर इस मिश्रण में नींबू का रस भी मिला दिया जाए तो यह आपको अतिरिक्त लाभ दे सकता है। नींबू के खट्टे स्वाद के साथ प्राकृतिक मिठास का मेल शरीर के लिए बहुत ही पौष्टिक होता है।

आप सुबह नाश्ते से पहले शहद वाली हर्बल चाय का सेवन भी कर सकते हैं। यह मिश्रण आपकी भूख बढ़ाने में मददगार है। साथ ही यह आपके शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है।

सादे पानी में शहद मिलाने की जगह आप इस मिश्रण में दालचीनी पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मिश्रण न केवल आपके वजन को नियंत्रित करेगा बल्कि यह आपके मौखिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देगा।
वजन कम करने के लिए शहद की दैनिक खुराक क्या होनी चाहिए?

वजन कम करने के लिए एक युवा व्यक्ति प्रतिदिन 70-95 ग्राम तक शहद का सेवन कर सकता है। यह मात्रा व्यक्ति की उम्र और शारीरिक स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए शहद की अलग-अलग मात्रा निर्धारित की जा सकती है। इसके लिए बेहतर होगा कि आप किसी डायटीशियन से सलाह लें।
वजन घटाने के लिए शहद के साइड इफेक्ट

गर्म पानी के साथ शहद का सेवन वजन घटाने में कारगर होता है। लेकिन फिर भी आपको इस मिश्रण का इस्तेमाल करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।

अगर आप मधुमेह रोगी हैं तो आपको अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने से बचना चाहिए। क्योंकि यह कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है जो ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा सकता है।

शहद फायदेमंद होने के साथ-साथ उन लोगों के लिए भी हानिकारक हो सकता है जो अपना वजन कम करना चाहते हैं। क्योंकि अधिक मात्रा में शहद का सेवन करने से हाई कैलोरी हो सकती है, जो आपके वजन को बढ़ाने का काम कर सकती है।

शहद और गर्म पानी का मिश्रण एक निश्चित अनुपात में ही बना लेना चाहिए। अन्यथा इसका प्रभाव कम हो सकता है।

निष्कर्ष

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जब वजन घटाने की बात आती है तो कोई त्वरित सुधार नहीं होता है।

स्वस्थ वजन तक पहुंचने और बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका पौष्टिक, संतुलित आहार खाना है।

इसमें फल और सब्जियों के अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन और साबुत अनाज शामिल होना चाहिए। रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करना भी फायदेमंद होता है।

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