भगवान
सूर्य संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र के अधिपति हैं। सूर्य का मेष आदि 12
राशियों पर जब संक्रमण (संचार) होता है, तब संवत्सर बनता है जो एक वर्ष
कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष में दो बार जब सूर्य, गुरु की
राशि धनु व मीन में संक्रमण करता है उस समय को खर, मल व पुरुषोत्तम मास
कहते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
इस बार खर मास का
प्रारंभ 16 दिसंबर, 2012 रविवार से हो रहा है, जो 14 जनवरी, 2013 सोमवार
को समाप्त होगा। इस मास की मलमास की दृष्टि से जितनी निंदा है, पुरुषोत्तम
मास की दृष्टि से उससे कहीं श्रेष्ठ महिमा भी है।
भगवान
पुरुषोत्तम ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी
हो गया हूं और इसके नाम से सारा जगत पवित्र होगा तथा मेरी सादृश्यता को
प्राप्त करके यह मास अन्य सब मासों का अधिपति होगा। यह जगतपूज्य और जगत का
वंदनीय होगा और यह पूजा करने वाले सब लोगों के दारिद्रय का नाश करने वाला
होगा।
अहमेवास्य संजात: स्वामी च मधुसूदन:। एतन्नान्मा जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति।।
मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोयं तु भविष्यति।।
पूजकानां सर्वेषां दु:खदारिद्रयखण्डन:।।
धर्मग्रंथों के अनुसार मल मास को भगवान पुरुषोत्तम ने अपना नाम दिया है
इसलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस मास में भगवान की
आराधना करने का विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों के अनुसार इस मास में
प्रात:काल सूर्योदय पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि अपने-अपने अधिकार के
अनुसार नित्यकर्म करके भगवान का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मा स के
नियम ग्रहण करने चाहिए। पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत का पाठ करना महान
पुण्यदायक है। इस मास में तीर्थों, घरों व मंदिरों में जगह-जगह भगवान की
कथा होनी चाहिए। भगवान का विशेष रूप से पूजन होना चाहिए और भगवान की कृपा
से देश तथा विश्व का मंगल हो एवं गो-ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा हो, इसके
लिए व्रत-निमयादि का आचरण करते हुए दान, पुण्य और भगवान का पूजन करना
चाहिए। पुरुषोत्तम मास के संबंध में धर्मग्रंथों में वर्णित है -
येनाहमर्चितो भक्त्या मासेस्मिन् पुरुषोत्तमे।
धनपुत्रसुखं भुकत्वा पश्चाद् गोलोकवासभाक्।।
अर्थात- पुरुषोत्तम मास में नियम से रहकर भगवान की विधिपूर्वक पूजा करने
से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तिपूर्वक उन भगवान की पूजा करने
वाला यहां सब प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु के बाद भगवान के दिव्य गोलोक में
निवास करता है।
पूजकानां सर्वेषां दु:खदारिद्रयखण्डन:।।
धर्मग्रंथों के अनुसार मल मास को भगवान पुरुषोत्तम ने अपना नाम दिया है इसलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस मास में भगवान की आराधना करने का विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों के अनुसार इस मास में प्रात:काल सूर्योदय पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि अपने-अपने अधिकार के अनुसार नित्यकर्म करके भगवान का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मा स के नियम ग्रहण करने चाहिए। पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत का पाठ करना महान पुण्यदायक है। इस मास में तीर्थों, घरों व मंदिरों में जगह-जगह भगवान की कथा होनी चाहिए। भगवान का विशेष रूप से पूजन होना चाहिए और भगवान की कृपा से देश तथा विश्व का मंगल हो एवं गो-ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा हो, इसके लिए व्रत-निमयादि का आचरण करते हुए दान, पुण्य और भगवान का पूजन करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास के संबंध में धर्मग्रंथों में वर्णित है -
येनाहमर्चितो भक्त्या मासेस्मिन् पुरुषोत्तमे।
धनपुत्रसुखं भुकत्वा पश्चाद् गोलोकवासभाक्।।
अर्थात- पुरुषोत्तम मास में नियम से रहकर भगवान की विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तिपूर्वक उन भगवान की पूजा करने वाला यहां सब प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु के बाद भगवान के दिव्य गोलोक में निवास करता है।