19.10.2012 को नवदुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता.......
स्कंदमाता : उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वह स्कंद की माता कहलाती है।
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
स्कंदमाता : उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वह स्कंद की माता कहलाती है।
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि
इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता
की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित
होता है l स्कंद माता रूप सौंदर्य अद्वितिय आभा लिए पूर्णतः शुभ्र वर्ण का
होता है, माँ कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं l स्कंदमाता
को पद्मासना देवी तथा विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है l
स्कंद
माता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक
तेज पाता है l यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन
करता है l एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से
मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है l
भगवान स्कन्द की माता
होने के कारण देवी स्कन्द माता के नाम से जानी जाती हैं l दुर्गा पूजा के
पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है l
कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से पुकारा
गया है l माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं l माता का
पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है, माता की चार भुजाएं हैं और ये कमल आसन
पर विराजमान हैं l माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक
भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये
बैठी हैं l मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है l जब
अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है, तब माता संत जनों की रक्षा के लिए
सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं l
देवी स्कन्द माता ही
हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना
जाता है l यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं l महादेव की
वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण
देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं l माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है,
अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है l
जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान
स्नेह लुटाती हैं l
कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम
महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं । पहाड़ों पर
रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता ।