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सोमवार, 2 मई 2022

भगवान परशुरामजी वैशाख शुक्ल तृतीया/ प्रकटोत्सव

************ *भगवान परशुरामजी* ************
           *(वैशाख शुक्ल तृतीया/ प्रकटोत्सव)*
                  भगवान परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे। जो भगवान विष्णु के छठा अवतार हैं। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। 
                   वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।
                   तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
                 वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त *शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र* भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है- *ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।* वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। 
                  उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। भगवान परशुराम जी को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्राप्त है।
                  परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। 
                  पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तिर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल ते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। 
                  उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
                  यह भी ज्ञात है कि परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीँ (वह शिक्षा जो 8 वर्ष से कम आयु वाले बालको को दी जाती है)। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।
                  उन्होंने सैन्यशिक्षा केवल ब्राह्मणों को ही दी। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं जैसे भीष्म, कर्ण *गुरु द्रोण*, कौरव-पाण्डवों के गुरु व अश्वत्थामा के पिता।
                  कर्ण को यह ज्ञात नहीं था कि वह जन्म से क्षत्रिय है। वह सदैव ही स्वयं को शुद्र समझता रहा लेकिन उसका सामर्थ्य छुपा न रह सका। उन्होंने परशु राम को यह बात नहीं बताई की वह शुद्र वर्ण के है। और भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त कर ली। 
                     किन्तु जब परशुराम को इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने कर्ण को यह श्राप दिया की उनका सिखाया हुआ सारा ज्ञान उसके किसी काम नहीं आएगा जब उसे उसकी सर्वाधिक आवश्यकता होगी। इसलिए जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने सामने होते है तब वह अर्जुन द्वारा मार दिया जाता है क्योंकि उस समय कर्ण को ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान ध्यान में ही नहीं रहा।

हैदराबाद में एक परिवार है जो पिछले 5 पीढ़ियों से अस्थमा का इलाज करता है

 

हैदराबाद में एक परिवार है जो पिछले 5 पीढ़ियों से अस्थमा का इलाज करता है

यह परिवार कुछ जड़ी बूटियों को पीसकर उसे जिंदा मछली के छोटे बच्चे के साथ या फिर शाकाहारी मरीज को केले के साथ रोगी को सीधे निगलना होता है और कहते हैं कि अस्थमा जड़ से ठीक हो जाता है

इसके ऊपर हिस्ट्री चैनल डिस्कवरी चैनल नेशनल ज्योग्राफिक चैनल ने पूरी दुनिया में डॉक्यूमेंट्री दिखाइ

इतना ही नहीं अमेरिका की एक मेडिकल संस्था ने अस्थमा से पीड़ित एक बच्चे को इनसे वही ट्रीटमेंट करवाया और उस संस्था ने यह देख कर चौक गया कि उस बच्चे की अस्थमा पूरी तरह से खत्म हो गयी

साल में एक ही दिन यह परिवार एक बड़े से मैदान में इसका ट्रीटमेंट करता है और एक रुपए चार्ज नहीं लिया जाता उस दिन भारत के कोने-कोने से स्पेशल ट्रेन चलाई जाती है और उस दिन हैदराबाद की जनसंख्या लगभग 25 लाख बढ़ जाती है इतना ही नहीं पाकिस्तान बांग्लादेश नेपाल भूटान से लेकर जर्मनी और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से लोग भी इलाज करवाने आते हैं

नेशनल जियोग्राफी की डॉक्यूमेंट्री में इस परिवार ने बताया कि लगभग 5 पीढ़ी पहले एक सन्त उधर से गुजर रहे थे काफी बारिश हो रही थी तब उनके परिवार के सदस्य ने उन्हें घर में आकर आराम से बैठने को कहा और खाना खिलाया जाते समय संत एक कागज पर लिखकर एक नुक्सा देकर गए और कहे कि तुम्हारे खानदान में पीढ़ी दर पीढ़ी एक ऐसा चमत्कार होगा इस नुक्से को मछली या फिर जो व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी है उसे केले के साथ खिलाने से उसकी अस्थमा पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।

##सूचना:-तेलंगाना राज्य के हैदराबाद शहर में यह दवा वर्ष में केवल जून महीने की कुछ खास तिथि, नक्षत्र पर ही दिया जाता है,नामपल्ली स्टेशन के पास, ऑब्जिविशन ग्राउंड में बड़ा कैम्प लगता है।अधिक जानकारी के लिए तेलंगाना राज्य की पूछताछ विभाग से सम्पर्क करें।बत्तीनी गौड़ परिवार यह दवा देता है जोकि वर्तमान में चारमीनार के पास रहते है।

"हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर, वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"

 "हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर,
वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"।
महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नेता ने भाषण दिया नारी अस्मिता पर।
भ्रष्ट अधिकारियों ने शुचिता और पारदर्शिता पर उद्बोधन दिया।
विश्वविद्यालय मैं कभी ना पढ़ाने वाले प्रोफेसर कर्म योग पर व्याख्यान दे रहे हैं।
     असल मे दोष इनका नहीं है।
इस देश की प्रजा प्रधानमंत्री को
मंदिर में पूजा करते देखने की आदी नहीं है।


इस देश ने एडविना माउंटबेटन की कमर में हाथ डाल कर नाचते प्रधानमंत्री को देखा है।

इस देश ने
मजारों पर चादर चढ़ाते प्रधानमंत्री को देखा है।
यह जनता प्रधानमंत्री को
पार्टी अध्यक्ष के सामने नतमस्तक होते देखती आयी है। फिर मंदिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक प्रधानमंत्री को लोग कैसे सहन करें ?
     
बिहार के एक बिना अखबार के पत्रकार
मंदिर से निकल कर
सूर्य को प्रणाम करते प्रधानमंत्री का उपहास उड़ा रहे हैं।

एक महान लेखक
जिनका सबसे बड़ा प्रशंसक भी
उनकी चार किताबों का नाम नहीं जानता,
प्रधानमंत्री के भगवा चादर की आलोचना कर रहे हैं।

एक कवियित्री
जो अपनी कविता से अधिक मंच पर चढ़ने के पूर्व
सवा घण्टे तक मेकप करने के लिए जानी जाती हैं, प्रधानमंत्री के पहाड़ी परिधान की आलोचना कर रही हैं।

भारत के इतिहास में
आलोचना कभी इतनी निर्लज्ज नहीं रही,
ना ही बुद्धिजीविता इतनी लज्जाहीन हुई कि
गांधीवाद के स्वघोषित योद्धा भी
बंगाल की हिंसा के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करें।

क्या कोई व्यक्ति इतना हताश हो सकता है कि
किसी की पूजा की आलोचना करे ?
क्या इस देश का प्रधानमंत्री अपनी आस्था के अनुसार ईश्वर की आराधना भी नहीं कर सकता ?
क्या बनाना चाहते हैं देश को आप ?
सेक्युलरिज्म की यही परिभाषा गढ़ी है आपने ?

एक हिन्दू नेता का टोपी पहनना उतना ही बड़ा ढोंग है, जितना किसी ईसाई का तिलक लगाना।
लेकिन जो लोग इस ढोंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं, उनसे भी
प्रधानमंत्री की शिव आराधना बर्दाश्त नहीं हो रही।

संविधान की प्रस्तावना में वर्णित
"धर्म, आस्था और विश्वास की स्वतंत्रता" का
यही मूल्य है आपकी दृष्टि में ?
      
व्यक्ति विरोध में अंधे हो चुके मूर्खों की यह टुकड़ी
चाह कर भी नहीं समझ पा रही कि
मोदी एक व्यक्ति भर हैं,
आज नहीं तो कल हार जाएगा
कल कोई और था,
कल कोई और आएगा।
देश न इंदिरा पर रुका था,
न मोदी पर रुकेगा।
       
समय को
इस बूढ़े से जो करवाना था वह करा चुका।
मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है।
मोदी ने ईसाई पति की पत्नी से
महाकाल मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया है.
मोदी ने मिश्रित DNA वाले इसाई को हिन्दू बाना धारण करने के लिए मजबूर कर दिया है।
मोदी ने ब्राम्हणिक वैदिक के विरोध मे राजनीतिक यात्रा शुरू करनेवाले से शिवार्चन करवाया है।
मोदी ने रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले के पुत्र से राममंदिर का चक्कर लगवाया है।
हिन्दुओं में हिन्दुत्व की चेतना जगानेवाले

मोदी के बाद
अब वही आएगा
जो मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।
       
"मोदी नाम केवलम" का
जाप करने वाले मूर्ख जन्मान्ध विरोधियों, अब मोदी आये न आये, तुम्हारे दिन कभी नहीं आएंगें।

अब ऐसी कोई सरकार नहीं आएगी जो घर बैठा कर मलीदा खिलाये!
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💐💐 भारत बदल चुका है। 💐💐

🚩सनातन की चेतना जाग चुकी है। 💫
🚩🚩🚩🚩🚩
 जय श्री राम



अक्षय तृतीया पर करें भगवान विष्णु जी और पितरों को प्रसन्न, घर में आएगी सुख एवं समृद्धि - 【ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री】

 अक्षय तृतीया पर करें भगवान विष्णु जी और पितरों को प्रसन्न, घर में आएगी सुख एवं समृद्धि
【ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री】
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✍🏻अक्षय तृतीया का पावन दिन हर वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को होता है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष 03 मई 2022 दिन मंगलवार को अक्षय तृतीया मनाई जाएगी, इस अवसर पर आप भगवान विष्णु जी और पितरों को प्रसन्न करके अपने घर में सुख एवं समृद्धि ला सकते हैं, अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है और पितरों को तृप्त करके अपनी उन्नति करने का शुभ अवसर है, अक्षया तृतीया या आखा तीज पर भगवान विष्णु जी की पूजा किस प्रकार से करें और पितरों को प्रसन्न कैसे करें, इसके बारे में जानते हैं पं. श्री नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी से.....

इस दिन अक्षय तृतीया पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: 05:39 बजे से लेकर दोपहर 12:55 बजे तक है, इस दिन पूजा अर्चना के लिए आपके पास पर्याप्त समय प्राप्त होगा, हालांकि इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है, इसलिए आप कोई भी शुभ कार्य किसी भी समय कर सकते हैं।
अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु जी की पूजा विधि

ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन प्रात: स्नान आदि के बाद साफ वस्त्र धारण करके पूजा स्थान की सफाई कर लें, उसके बाद श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद या पीले गुलाब या फिर सफेद कमल के फूल से करें, इस दिन दो कलश लें, एक कलश को जल से भर दें और उसमें पीले फूल, सफेद जौ, चंदन और पंचामृत डालें, उसे मिट्टी के ढक्कर से ढक दें और उस पर फल रखें।

इसके बाद दूसरे कलश में जल भरें और उसके अंदर काले तिल, चंदन और सफेद फूल डालें, पहला कलश भगवान विष्णु के लिए और दूसरा कलश पितरों के लिए होता है, दोनों कलश की विधिपूर्वक पूजा करें, उसके बाद दोनों कलश को दान कर दें, ऐसा करने से भगवान विष्णु जी और पितर दोनों ही प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है, दोनों के आशीर्वाद से परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है।

आप आज का चौघड़िया देखकर शुभ समय ज्ञात कर सकते हैं।

 

चौघड़िया हिंदू पंचांग का एक विशेष अंग है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए कोई शुभ मुहूर्त न मिले तो उस अवस्था में चौघड़िया का विधान है इसलिए किसी भी मांगलिक कार्य को प्रारंभ करने के लिए चौघड़िया का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक रूप से चौघड़िया को यात्रा मुहूर्त के लिए देखा जाता है परंतु इसकी सरलता के कारण इसे हर मुहूर्त के लिए उपयोग में लाया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में चार प्रकार की शुभ चौघड़िया होती हैं और तीन प्रकार की अशुभ चौघड़िया हैं। प्रत्येक चौघड़िया किसी न किसी कार्य के लिए निर्धारित है।

भारत में, लोग पूजा-पाठ, हवन आदि या फिर कोई भी शुभ कार्य करने से पहले मुहूर्त देखते हैं। किसी भी काम को शुभ मुहूर्त या समय पर शुरू किया जाए तो परिणाम इच्छा अनुसार आएगा इसकी संभावना ज्यादा होती है। अब आप यह सोच रहे होंगे की आज का शुभ समय क्या है इसकी जानकारी हमें कैसे होगी। तो आप आज का चौघड़िया देखकर शुभ समय ज्ञात कर सकते हैं।

अधिकांश तौर पर इसका प्रयोग भारत के पश्चिमी राज्यों में किया जाता है। चौघड़िया का उपयोग विशेष रूप से संपत्ति की खरीद और बिक्री में किया जाता है। चौघड़िया सूर्योदय पर निर्भर करता है, इसलिए आमतौर पर प्रत्येक शहर के लिए इसके समय में भिन्नता होती है। यह आपको हिंदू पंचांग में आसानी से मिल सकता है।

चौघड़िया क्या है?

चौघड़िया हिंदू कैलेंडर पर आधारित शुभ और अशुभ समय का पता लगाने की एक प्रणाली है। आज का चौघड़िया ज्योतिषीय गणना से तैयार किया जाता है, जो नक्षत्र और वैदिक ज्योतिष के आधार पर किसी भी दिन के पूरे 24 घंटों की स्थिति का प्रतिनिधित्व करती है। यदि आपको अचानक कोई नया काम शुरू करना है, तो उस अवधि के दौरान शुभ चौघड़िया मुहूर्त का इस्तेमाल करना आपके लिए अच्छा रहेगा। चौघड़िया में 24 घंटों को 16 भागों में विभाजित किया गया है। जिसमें आठ मुहूर्त का संबंध दिन से होता है और आठ मुहूर्त का संबंध रात से। हर मुहूर्त 1.30 घण्टे का होता है। दिन और रात मिलाकर हर हफ्ते में 112 मुहूर्त होते हैं। दिन और रात के समय पूजा-पाठ आदि करने के लिए मुहूर्त का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, जरुरी यात्रा या विशेष और शुभ कार्य के लिए चौघड़िया मुहूर्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह माना जाता है कि अगर किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को शुभ समय में किया जाता है, तो उस काम से व्यक्ति को बेहतर परिणाम मिलता है।

चौघड़िया का अर्थ क्या होता है ?

चौघड़िया का अर्थ – Choghadiya

चौघड़िया एक संस्कृत शब्द है जो "चौ" और "घड़िया" से मिल कर बना है। चौ का अर्थ होता है "चार" और "घड़िया " का अर्थ होता है "समय"। "घड़िया" को "घटी" के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन समय में समय देखने की प्रणाली आज के समय से काफी भिन्न थी। लोग "घंटों" के बजाय "घटी" देखा करते थे। यदि दोनों समय प्रारूपों की तुलना की जाये, तो हम पाएंगे कि "60 घटियाँ" और "24 घंटे" दोनों बराबर होते हैं। हालांकि, इसमें एक विषमता भी देखने को मिलती है, अर्थात दिन 12:00 बजे आधी रात से शुरू होता है और अगली मध्यरात्रि 12:00 बजे समाप्त होता है। अगर हम भारतीय समय प्रारूप की बात करें तो इसके अनुसार दिन सूर्योदय से शुरू होता है और अगले सूर्योदय पर ही समाप्त होता है। हर चौघड़िया में 3.75 घंटियाँ होती हैं, मतलब लगभग 4 घंटे इसलिए एक दिन में 16 चौघड़िया होती हैं।


साधारणतया चौघड़िया(Choghadiya) की गणना सूर्योदय औऱ सूर्यास्त के आधार पर की जाती है। इसलिए चौघड़िया दो प्रकार का होता है।

  • दिन का चौघड़िया
  • रात का चौघड़िया


चौघड़िया के प्रकार

चौघड़िया (मुहूर्त) के 7 प्रकार होते हैं, उद्बेग, चाल, लाह, अमृत, काल, शुभ और रोग। हिंदू पंचांग के अनुसार 8 चौघड़िया(मुहूर्त) रात के दौरान और 8 चौघड़िया दिन के समय होते हैं। आईये जानते हैं चोगडिया के प्रकार के बारे में -

दिन का चौघड़िया- यह सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच का समय होता है। अमृत, शुभ, लाभ और चाल को शुभ चौघड़िया माना जाता है। अमृत ​​को सर्वश्रेष्ठ चौघड़िया में से एक माना जाता है वहीँ चाल को भी अच्छे चौघड़िया के तौर पर देखा जाता है। दूसरी ओर, उदेव, रोग और काल को अशुभ मुहूर्त माना जाता है। किसी भी अच्छे कार्य को करते समय अशुभ चौघड़िया से बचना चाहिए। नीचे हमने आपके लिए दिन के चौघड़ियों का एक चार्ट पेश किया है, जिससे आपको समझने में और आसानी होगी।

रात का चौघड़िया- यह सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच का समय होता है। रात में कुल 8 चौघड़िया होते हैं। रात और दिन दोनों के चौघडिया एक समान परिणाम देते हैं। नीचे हमने आपके लिए रात के चौघड़ियों चार्ट पेश किया है, जिससे आपको समझने में और आसानी होगी।

 

चौघड़िया की गणना कैसे करें?

चौघड़िया हर दिन के लिए अलग होता है। आज का चौघड़िया क्या है इसके लिए हम आपको इसकी गणना करना सिखाएंगे। दिन के लिए चौघड़िया, सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच का समय माना जाता है और फिर इसे 8 से विभाजित करता है, जो लगभग 90 मिनट देता है। जब हम सूर्योदय के समय को इस समय में जोड़ते हैं, तो यह पहले दिन का चौघड़िया देता है। उदाहरण के लिए, अगर सूर्योदय का समय 6:00 बजे लिया जाता है, फिर उसमें 90 मिनट जोड़ते हैं,तो 7:30 बजे आता है। इस प्रकार पहला चौघड़िया 6:00 पूर्वाह्न से शुरू होता है और 7:30 बजे समाप्त होता है। दोबारा, यदि हम पहले चौघड़िया का समय लेते हैं, अर्थात 7:30 बजे, उसमें 90 मिनट जोड़ते हैं, 9:00 बजे आते हैं, इसका मतलब दूसरी बार चौघड़िया 7:30 बजे से शुरू होता है और 9:00 बजे समाप्त होता है। इसी तरह, हम रात के लिए भी चौघड़िया की गणना कर सकते हैं। यदि हम सोमवार के दिन का चौघड़िया देखे तो पहला अमृत है और दूसरा काल है। इसका मतलब पहला अच्छा है और दूसरा बुरा है।

दिन रात चौघड़िया मुहूर्त कैसे देखें?

सूर्योदय अर्थात सूरज निकलने से लेकर सूर्यास्त अर्थात सूरज के छिपने के बीच के समय को दिन का चौघड़िया(Din ka Choghadiya) कहा जाता है। ठीक इसी प्रकार सूर्यास्त और अगले दिन तक सूर्योदय के बीच के समय को रात का चौघड़िया(Raat ka Choghadiya) कहा जाता है। इसी आधार पर चौघड़िया बनाया जाता है। इस चौघड़िया से ही शुभ या अशुभ समय की जानकारी मिलती है।

#दिन का #चौघड़िया – Din ka Choghadiya




#रात का #चौघड़िया – Raat ka Choghadiya


अब हम इसको थोडा ओर गहराई से समझतें है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक और सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय को 30-30 घटी में बांटा जाता है। इन 30 घटी को 8 भागों में विभाजित कर दिया जाता है। इस प्रकार दिन व रात में 8-8 चौघड़िया मुहूर्त होते है।


कौनसा चौघड़िया शुभ है? (Today Chogdiya)

किसी भी नए या शुभ कार्य को प्रारम्भ करने के लिए अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघड़िओं को अति उत्तम माना जाता है, और बाकी के तीन चौघड़िओं रोग, काल और उद्वेग, से दूर ही रहना चाहिए।
हर दिन का पहला मुहूर्त उस दिवस के ग्रह स्वामी द्वारा प्रभावित होता है।

चौघड़िया के प्रकार –

हिंदू धर्म में सात प्रकार के चौघड़िया माने जाते है।

  • चर चौघड़िया
  • उद्वेग चौघड़िया
  • लाभ चौघड़िया
  • शुभ चौघड़िया
  • रोग चौघड़िया
  • अमृत चौघड़िया
  • काल चौघड़िया

अब हम इनके बारे में विस्तार से जानतें है। इनके शुभ -अशुभ होने की दशा जानेंगे।

Venus in Hindiचर चौघड़िया – Char Choghadiya

चर चौघड़िया का स्वामी ग्रह शुक्र होता है। ज्योतिष विधा में शुक्र को अशुभ माना गया है। इस चौघड़िया को चंचलता के रूप में बताया गया है। चर चौघड़िया मुहूर्त को यात्रा के लिए अच्छा माना जाता है।

Sun in hindiउद्वेग चौघड़िया – Udveg Choghadiya

उद्वेग चौघड़िया का स्वामी ग्रह सूर्य होता है। इस चौघड़िया मुहूर्त में सरकारी कार्य किये जाते है। ज्योतिष में उद्वेग को अनिष्टकारी माना गया है, क्योंकि ज्योतिष में सूर्य के प्रभाव को अशुभ माना जाता है।

Mercury in Hindiलाभ चौघड़िया – Labh Choghadiya

लाभ चौघड़िया का स्वामी ग्रह बुध होता है। हिंदू धर्म के अनुसार यह शुभ व लाभकारी ग्रह माना जाता है। लाभ चौघड़िया मुहूर्त को किसी नए कार्य को सीखने के उद्देश्य के लिए अच्छा माना जाता है।

Jupiter in Hindiशुभ चौघड़िया – Shubh Choghadiya

इस चौघड़िया को शुभ माना गया है। इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति होता है। इसे शुभ व लाभकारी ग्रह माना जाता है। यह शादी वगैरह विशेष कार्यक्रमों के लिए अच्छा माना जाता है।

 

Mars in Hindiरोग चौघड़िया – Rog Choghadiya

दिलचस्प बात है कि इस चौघड़िया के नाम से ही पता लग रहा है कि यह एक अशुभ मुहूर्त होता है। इसलिए ही इस चौघड़िया को रोग के बुलावे के रूप माना गया है। इस रोग चौघड़िया का स्वामी ग्रह मंगल होता है। इसके क्रूर व अनिष्टकारी प्रभाव माने जाते है। इसलिए रोग चौघड़िया मुहूर्त के समय किसी शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

Copy of Untitledअमृत चौघड़िया – Amrit Choghadiya

इस चौघड़िया का स्वामी ग्रह चंद्रमा होता है। इसे शुभ व लाभकारी माना गया है। इस चौघड़िया को अमृत के रूप में माना गया है। इस समय में शुभ कार्य को करने में अच्छा फल मिलता है।

 

Saturn in Hindiकाल चौघड़िया – Kaal Choghadiya

इसका स्वामी ग्रह शनि होता है। इसे अशुभ माना जाता है। ज्योतिष विधा में शनि को अनिष्टकारी ग्रह माना जाता है। एक तरह से इस चौघड़िया को काल के रूप में माना गया है।

 

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