गब्बर की यही चीख भरी आवाज़ मेरे ज़हन में आई जब आज दोपहर आया एक एस एम एस पढ़ा मैंने, जो मेरे एक सहयोगी द्वारा भेजा गया था। SMS का संदेश था कि "Lays चिप्स के पैकेट में जो E631 लिखा है वह दर असल सूअर की चर्बी है। चाहो तो गूगल पर देख लो। " कमाल है ! शायद ही कोई भारतीय परिवार चिप्स आदि से बच पाया होगा!! मुझे तत्काल कुछ वर्षों पहले का वह समय या...द आने लगा जब MSG का पता चलने पर मैं हर स्टोर पर किसी खाद्य पदार्थ के पैकेट पर नज़रें गड़ा कर यह देखने लगा जाता था कि इसमे कहीं MSG तो नहीं। यह देख वहां का स्टाफ व्यंग्य भरी नज़रें लिए बताता था कि ये सस्ता है सर, ज़्यादा महंगा नहीं है! मै जब कहता कि कीमत नहीं देख रहा हूँ तो उनकी जिज्ञासा बढ़ती तब बताता कि यह क्या होता है। आजकल तो बड़े बड़े अक्षरों में खास तौर पर लिखा रहता है कि No MSG ऐसा ही कुछ वाकया ब्रुक बोंड की चाय-पत्ती के साथ हुआ था जिस पर पोस्ट लिखी थी मैंने कि किस तरह इतनी बड़ी कम्पनी लोगों को सरासर बेवकूफ बना रही है। बात हो रही E631 की। मैं दन्न से बाज़ार गया और Lays के पैकेट देखे कुछ नहीं दिखा। लेकिन मुझे याद आने लग पड़ा था कि इस तरह के कोड देखें हैं मैंने कुछ दिन पहले। शहर के दूसरे कोने वाल़े एक सुपर बाज़ार में भी कुछ नहीं दिखा तो स्टोर वालों से इस बारे में बात करने पर ज्ञात हुआ कि कुछ सप्ताह पहले आयातित चिप्स और बिस्किट लाए गए थे जो अब ख़त्म हो चुके। तब तक एक जिज्ञासु कर्मचारी कहीं से दो ऐसे पैकेट ले आया जिन्हें चूहों द्वारा कुतरे जाने पर अलग रख दिया गया था। उन में इस तरह के कोड थे जिस में वाकई 631 लिखा हुआ है अब मैंने गूगल की शरण ली तो पता चला कि कुछ अरसे पहले यह हंगामा पाकिस्तान में हुआ था जिस पर ढेरों आरोप और सफाइयां दस्तावेजों सहित मौजूद हैं । हैरत की बात यह दिखी कि इस पदार्थ को कई देशों में प्रतिबंधित किया गया है किन्तु अपने देश में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा। मूल तौर पर यह पदार्थ सूअर और मछली की चर्बी से प्राप्त होता है और ज्यादातर नूडल्स, चिप्स में स्वाद बढाने के लिए किया जाता है। रसायन शास्त्र में इसे Disodium Inosinate कहा जाता है जिसका सूत्र है C10H11N4Na2O8P1 होता यह है कि अधिकतर (ठंडे) पश्चिमी देशों में सूअर का मांस बहुत पसंद किया जाता है। वहाँ तो बाकायदा इसके लिए हजारों की तादाद में सूअर फार्म हैं। सूअर ही ऐसा प्राणी है जिसमे सभी जानवरों से अधिक चर्बी होती है। दिक्कत यह है कि चर्बी से बचते हैं लोग। तो फिर इस बेकार चर्बी का क्या किया जाए? पहले तो इसे जला दिया जाता था लेकिन फिर दिमाग दौड़ा कर इसका उपयोग साबुन वगैरह में किया गया और यह हिट रहा। फिर तो इसका व्यापारिक जाल बन गया और तरह तरह के उपयोग होने लगे। नाम दिया गया 'पिग फैट' 1857 का वर्ष तो याद होगा आपको? उस समयकाल में बंदूकों की गोलियां पश्चिमी देशों से भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री राह से भेजी जाती थीं और उस महीनों लम्बे सफ़र में समुद्री आबोहवा से गोलियां खराब हो जाती थीं। तब उन पर सूअर चर्बी की परत चढ़ा कर भेजा जाने लगा। लेकिन गोलियां भरने के पहले उस परत को दांतों से काट कर अलग किया जाना होता था। यह तथ्य सामने आते ही जो क्रोध फैला उसकी परिणिति 1857 की क्रांति में हुई बताई जाती है। इससे परेशान हो अब इसे नाम दिया गया 'ऐनिमल फैट' ! मुस्लिम देशों में इसे गाय या भेड़ की चर्बी कह प्रचारित किया गया लेकिन इसके हलाल न होने से असंतोष थमा नहीं और इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद उड़ गई। आखिर उनका 75 प्रतिशत कमाई मारी जा रही थी इन बातों से। हार कर एक राह निकाली गई। अब गुप्त संकेतो वाली भाषा का उपयोग करने की सोची गई जिसे केवल संबंधित विभाग ही जानें कि यह क्या है! आम उपभोक्ता अनजान रह सब हजम करता रहे। तब जनम हुआ E कोड का तब से यह E631 पदार्थ कई चीजों में उपयोग किया जाने लगा जिसमे मुख्य हैं टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंग गम, चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि। सूची में और भी नाम हो सकते हैं। हाँ, कुछ मल्टी- विटामिन की गोलियों में भी यह पदार्थ होता है। शिशुयों, किशोरों सहित अस्थमा और गठिया के रोगियों को इस E631 पदार्थ मिश्रित सामग्री को उपयोग नहीं करने की सलाह है लेकिन कम्पनियाँ कहती हैं कि इसकी कम मात्रा होने से कुछ नहीं होता। पिछले वर्ष खुशदीप सहगल जी ने एक पोस्ट में बताया था कि कुरकुरे में प्लास्टिक होने की खबर है चाहें तो एक दो टुकड़ों को जला कर देख लें। मैंने वैसा किया और पिघलते टपकते कुरकुरे को देख हैरान हो गया। अब लग रहा कि कहीं वह चर्बी का प्रभाव तो नहीं था!? अब बताया तो यही जा रहा है कि जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904 समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है। और कुछ जानना हो कि किस कोड वाल़े पदार्थ का उपयोग करने से किसे बचना चाहिए तो यह सूची देख लें ||
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011
शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
भाई-भाई का भाईचारा......
भाई-भाई का भाईचारा......
पहली पीढ़ी समृद्धि की नींव रखती है। दूसरी पीढ़ी समृद्धि का विस्तार करती है। तीसरी पीढ़ी उसके लिए आपस में झगड़ती है। यह पैसे की परंपरा है। लेकिन आजकल यह झगड़ा दूसरी पीढ़ी में ही शुरू होने लग गया है। हिंदुस्तान में पैसे की परंपरा तरक्की कर रही है। भाई-भाई की चर्चा शुरू होने पर हिंदुस्तान में लोग आज भी अक्सर राम-लक्ष्मण की बात करने लगते हैं। अरे भाई, युग बदल गया है। आजकल रामायण नहीं, अखबार पढ़ने का जमाना है। रोज अखबार पढ़ो तो पता चलेगा कि आजकल भाई कैसे होते हैं। राम-लक्ष्मण के ज़माने में भाई, भाई को सब कुछ देने को तैयार रहता था, आजकल एक भाई दूसरे को कुछ भी नहीं देना चाहता। बाप की जायदाद में से भी नहीं, जैसे कि बाप उसके अकेले का था। सवाल है कि झगड़ा भाई-भाई के बीच ही क्यों होता है? भाई और बहन के बीच क्यों नहीं? कारण शायद यह है कि बहनें केवल रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने और भाई दूज के दिन टीका करने के लिए होती हैं। यानी साल में सिर्फ दो दिन के लिए, जबकि भाई तीन सौ पैंसठ दिनों के लिए होते हैं। बहन के दो दिन प्यार का रिश्ता जोड़ने के लिए होते हैं, भाइयों के तीन सौ पैंसठ दिन लड़ने के लिए। ज्यादातर बहनें मानती हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता स्नेह और प्रेम का है। ज्यादातर भाई मानते हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता माल का है।
तो, बहनों का अक्सर भाइयों से झगड़ा नहीं होता। वजह कुछ भी समझ लीजिए- बहनों का स्वभाव, उनकी सामाजिक स्थिति या बहनों का यह मान कर चलना कि उन्हें झगड़ा करने का हक ही नहीं है। जहां तक पिता की संपत्ति का सवाल है, ज्यादातर बहनें तो उसके बारे में सोचती भी नहीं। बहनें यह मान कर चलती हैं कि पिता की संपत्ति में उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिलने वाला है। अगर मिलना होता तो भगवान ने उन्हें भी भाई बनाया होता। इसलिए पिता की संपत्ति के बारे में बेटियां प्राय: कुछ नहीं सोचतीं। हां, बेटे जरूर सोचते हैं। बेटा बड़ा है तो सोचता है कि जब मैं मौजूद था तो बाप ने यह दूसरा क्यों पैदा किया।
अब तो यह हालत हो गई है कि जिस घर में भाई होते हैं, उसके पड़ोस के लोग यह मान कर चलते हैं कि एक न एक दिन यहां भी झगड़ा शुरू हो जाएगा। इसलिए, जब झगड़ा शुरू हो जाता है तो पड़ोसियों को कोई ताज्जुब नहीं होता। पड़ोसियों को ताज्जुब तब होता है, जब वे इंतजार कर करके थक जाते हैं, पर भाइयों में झगड़ा नहीं होता। वे अचरज करते हैं कि ये कैसे भाई हैं जो लड़ते नहीं। पता नहीं ये सगे भाई हैं भी या नहीं। भाई से एक शब्द बना है भाईचारा। अगर आपको इस शब्द का अर्थ पता नहीं है तो डिक्शनरी में मत देखिएगा। वहां गलत अर्थ लिखा है।
मंगलवार, 6 सितंबर 2011
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