भाई-भाई का भाईचारा......
पहली पीढ़ी समृद्धि की नींव रखती है। दूसरी पीढ़ी समृद्धि का विस्तार करती है। तीसरी पीढ़ी उसके लिए आपस में झगड़ती है। यह पैसे की परंपरा है। लेकिन आजकल यह झगड़ा दूसरी पीढ़ी में ही शुरू होने लग गया है। हिंदुस्तान में पैसे की परंपरा तरक्की कर रही है। भाई-भाई की चर्चा शुरू होने पर हिंदुस्तान में लोग आज भी अक्सर राम-लक्ष्मण की बात करने लगते हैं। अरे भाई, युग बदल गया है। आजकल रामायण नहीं, अखबार पढ़ने का जमाना है। रोज अखबार पढ़ो तो पता चलेगा कि आजकल भाई कैसे होते हैं। राम-लक्ष्मण के ज़माने में भाई, भाई को सब कुछ देने को तैयार रहता था, आजकल एक भाई दूसरे को कुछ भी नहीं देना चाहता। बाप की जायदाद में से भी नहीं, जैसे कि बाप उसके अकेले का था। सवाल है कि झगड़ा भाई-भाई के बीच ही क्यों होता है? भाई और बहन के बीच क्यों नहीं? कारण शायद यह है कि बहनें केवल रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने और भाई दूज के दिन टीका करने के लिए होती हैं। यानी साल में सिर्फ दो दिन के लिए, जबकि भाई तीन सौ पैंसठ दिनों के लिए होते हैं। बहन के दो दिन प्यार का रिश्ता जोड़ने के लिए होते हैं, भाइयों के तीन सौ पैंसठ दिन लड़ने के लिए। ज्यादातर बहनें मानती हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता स्नेह और प्रेम का है। ज्यादातर भाई मानते हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता माल का है।
तो, बहनों का अक्सर भाइयों से झगड़ा नहीं होता। वजह कुछ भी समझ लीजिए- बहनों का स्वभाव, उनकी सामाजिक स्थिति या बहनों का यह मान कर चलना कि उन्हें झगड़ा करने का हक ही नहीं है। जहां तक पिता की संपत्ति का सवाल है, ज्यादातर बहनें तो उसके बारे में सोचती भी नहीं। बहनें यह मान कर चलती हैं कि पिता की संपत्ति में उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिलने वाला है। अगर मिलना होता तो भगवान ने उन्हें भी भाई बनाया होता। इसलिए पिता की संपत्ति के बारे में बेटियां प्राय: कुछ नहीं सोचतीं। हां, बेटे जरूर सोचते हैं। बेटा बड़ा है तो सोचता है कि जब मैं मौजूद था तो बाप ने यह दूसरा क्यों पैदा किया।
अब तो यह हालत हो गई है कि जिस घर में भाई होते हैं, उसके पड़ोस के लोग यह मान कर चलते हैं कि एक न एक दिन यहां भी झगड़ा शुरू हो जाएगा। इसलिए, जब झगड़ा शुरू हो जाता है तो पड़ोसियों को कोई ताज्जुब नहीं होता। पड़ोसियों को ताज्जुब तब होता है, जब वे इंतजार कर करके थक जाते हैं, पर भाइयों में झगड़ा नहीं होता। वे अचरज करते हैं कि ये कैसे भाई हैं जो लड़ते नहीं। पता नहीं ये सगे भाई हैं भी या नहीं। भाई से एक शब्द बना है भाईचारा। अगर आपको इस शब्द का अर्थ पता नहीं है तो डिक्शनरी में मत देखिएगा। वहां गलत अर्थ लिखा है।
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