महाभारत में सूर्य वंश (hindu suryavanshi) की वंशावली मिलती है। वैवस्वत
मनु से सूर्य वंश की शुरुआत मानी गई है। महाभारत में पुलस्त्य ने भीष्म को
सूर्य वंश का विवरण बताते हुए कहा कि वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- 1.इल,
2.इक्ष्वाकु, 3.कुशनाम, 4.अरिष्ट, 5.धृष्ट, 6.नरिष्यन्त, 7.करुष, 8.महाबली,
9.शर्याति और 10.पृषध पुत्र थे।
इल की कथा : मनु ने ज्येष्ठ पुत्र इल को राज्य पर अभिष
िक्त
किया और स्वयं तप के लिए वन को चले गए। इल अर्थसिद्धि के लिए रथारूढ़ होकर
निकले। वह अनेक राजाओं को बाधित करता हुआ भगवान शिव के क्रीड़ा उपवन की ओर
जा निकले। उपवन से आकृष्ट होकर वह अपने अश्वारोहियों के साथ उसमें
प्रविष्ट हो गए।
पार्वती द्वारा विदित नियम के कारण इल और उसके
सैनिक तथा अश्वादि स्त्री रूप हो गए। यह स्थिति देखकर इल ने पुरुषत्व के
लिए भगवान शिव की स्तुति आराधना की। भगवान शिव शंकर प्रसन्न तो हुए परन्तु
उन्होंने इल को एक मास स्त्री और एक मास पुरुष होने का विधान किया।
स्त्री रूप में इस इल के बुध से पुरुरवा नाम वाले एक गुणी पुत्र का जन्म
हुआ। इसी इल राजा के नाम से ही यह प्रदेश ‘इलावृत्त’ कहलाया। इसी इल के
पुरुष रूप में तीन उत्कल गए और हरिताश्व-बलशाली पुत्र उत्पन्न हुए।
अन्य पुत्र के पुत्र : वैवस्वत मनु के अन्य पुत्रों में से नरिष्यन्त का
शुक्र, नाभाग (कुशनाम) का अम्बरीष, धृष्ट के धृष्टकेतु, स्वधर्मा और
रणधृष्ट, शर्याति का आनर्त पुत्र और सुकन्या नाम की पुत्री आदि उत्पन्न
हुए। आनर्त का रोचिमान् नामक बड़ा प्रतापी पुत्र हुआ। उसने अपने देश का नाम
अनर्त रखा और कुशस्थली नाम वाली पत्नी से रेव नामक पुत्र उत्पन्न किया। इस
रेव के पुत्र रैवत की पुत्री रेवती का बलराम से विवाह हुआ।
इक्ष्वाकु कुल : मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक
पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित,
वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और
भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र
की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था।