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रविवार, 16 सितंबर 2012

क़ुतुब मीनार का सच ........



1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में
गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था
1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई tab वह गद्दी पर बैठा
,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए I
1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी
अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने
क़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई I
अब कुछ प्रश्न .......
अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ?
क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने
के पहले भी वह लाहौर में था ?......शायद नहीं I
कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया
यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं
उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी I
यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी के नाम पर "गौरी मीनार "या ऐसा ही कुछ होता
न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार I
उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई ,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा
सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है ?
कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक आ भी सकती है ?
उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं lagta
सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है, मेहरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , और
खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन
के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था I
इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहींदिख जाती हैं I
कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं I
मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है ,अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता,
इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर " ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे
we भी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है
इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे ,
इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ,लिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है
,सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा .उसी महानसम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट,खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण
विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए
ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ वि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए
इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शाष्त्री वराहमिहिर को जाता है I
कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर
अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया.......................................................................

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

गाय की बहु-उपयोगिता-

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गाय की बहु-उपयोगिता-

"गावः पवित्रं परमं  गावो मांगल्यमुत्तमम् । गावः स्वर्गस्य सोपानं  गावो धन्याः सनातनाः।।"

'गायें परम पवित्र, परम मंगलमयी, स्वर्ग का सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।'
...

'गाय पशु नहीं बल्कि सुंदर अर्थतन्त्र है।'
गाय का देश की अर्थव्यवस्था में भी काफी महत्त्व है। गाय का दूध, घी, मक्खन, झरण (गौमूत्र), गोबर आदि सभी जीवनोपयोगी तथा लाभकारी चीजें हैं। इतना ही नहीं, गाय के रोएँ और निःश्वास भी मानव-जीवन के लिए आवश्यक हैं। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से की है।

गाय के शरीर से निकलने वाली सात्त्विक तरंगे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करती हैं तथा वातावरण में फैले रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। गाय के शरीर से गूगल की गंध निकलती है, जो प्रदूषण को नष्ट करती है।

गाय और उसके बछड़े के रँभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियाँ तथा रोग अपने-आप नष्ट हो जाते हैं। गाय की पीठ पर रोज सुबह-शाम 15-20 मिनट हाथ फेरने से ब्लडप्रेशर (रक्तचाप) नियंत्रित (संतुलित) हो जाता है। गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन छोड़ती है। डा. जूलिशस व डॉ. बुक (कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)। गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक पावर ग्रहण करती है।

एक थके माँदे व तनावग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ
ही मिनटों में दूर हो जाती है तथा व्यक्ति पहले से ज्यादा ताजा एवं स्फूर्तियुक्त हो जाता है। (वैज्ञानिक पावलिटा, चेक यूनिवर्सिटी)।

पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों में से अधिकांश ई.पी.वेव्स से ही आते हैं, जो प्राणियों के कत्ल के समय उत्पन्न दारूण वेदना एवं चीत्कार से निःसृत होती है। - डॉ. मदनमोहन बजाज व डॉ. विजय राज सिंह (भौतिकी व खगोल विभाग के रीडर, दिल्ली वि.वि.) गाय के ताजे गोबर से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं।

गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने की अदभुत क्षमता है। डॉ. किंग, मद्रास। अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी-भरी हो जाती है एवं सूखे तेल के कुओं में दोबारा तेल आ जाता है।

शहरों में निकलने वाले कचरे पर गोबर का घोल डालने से दुर्गंध पैदा नहीं होती एवं कचरा खाद में परिवर्तित हो जाता है। - डॉ. कांती सेन सर्राफ, मुम्बई।

♥ गौमांस खाने वाले सावधानः युनानी चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार गाय का गोश्त बड़ा कड़ा होता है, यह
जल्दी नहीं पचता। आदमी के पेट के माफिक नहीं है। इससे खून गाढ़ा होता है और उन्माद, पीलिया, घाव एवं कोढ़ आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।

गाय आय का साधन भी है, आरोग्यदात्री भी है। अतः गाय मारने योग्य नहीं है बल्कि हर प्रकार से गोवंश
की रक्षा व उसका संवर्धन अत्यन्त आवश्यक है।

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