अशोक -
यदि आपके मन मे उस अशोक वृक्ष की याद आ रही है जिसे आम तौर पर घरो मे लगाया जाता है तो आप गलत है। घरो मे सजावट के लिये जिस अशोक को लगाया जाता है उसका वैज्ञानिक नाम पालीएल्थिया लाँगीफोलिया है। यहाँ साराका इंडिका या सीता अशोक की बात कही जा रही है। वही सीता अशोक जिसका न केवल धार्मिक बल्कि औषधीय महत्व भी है। स्त्री रोगो की चिकित्सा मे इसके विभिन्न पौध भागो का प्रयोग होता है। आपने अशोकारिष्ट और हेमपुष्पा का नाम तो सुना होगा। हेमपुष्पा इसका संस्कृत नाम है।
- मधुमेह में आशोक के सूखे पुष्पों के एक चम्मच चूर्ण का सेवन करने से लाभ मिलता है।
- रक्त प्रदर में इसकी छाल का एक चम्मच चूर्ण, एक कप पानी और थोडी सी शक्कर को एक कप दूध में मिलाकर गर्म कर के पीने से लाभ मिलता है।
- अशोक की छाल, नीबू के रस व दूध के मिश्रण का लेप लगाने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
- सूजन व जलन में अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर लगाने से और पीने से लाभ मिलता है।
- गर्भाशय रोगों में सुबह शाम भोजन के बाद अशोकारिष्ट का सेवन करें।
- पेट दर्द में अशोक की पत्तियों के काढ़े में जीरा मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
- मूत्रघात के रोग में इसकी एक चम्मच बीजों का चूर्ण जल के साथ सेवन करने से मूत्र घात एंव पथरी का नाश होता है।
- ल्यूकोरिया की बीमारी में भी इसकी छाल के चूर्ण वा मिश्री को सामान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ सुबह शाम सेवन करना चाहिए। इसके अलावा आंवला, गिलोय के चूर्ण को अशोक की छाल के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में उबालकर उसमें जल मिलाएं और शहद के साथ सुबह शाम सेवन करें।
- अशोक की पत्तियो को अन्य प्रकार की पत्तियो के साथ मिलाकर सिरदर्द विशेषकर माइग्रेन की चिकित्सा मे लेप के रुप मे प्रयोग करते है।
अशोकारिष्ट -
अशोक वृक्ष की छाल का मुख्य रूप से उपयोग कर प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग 'अशोकारिष्ट' बनाया जाता है। देश के अनेक आयुर्वेदिक निर्माता संस्थान 'अशोकारिष्ट' बनाते हैं जो सर्वत्र दुकानों पर उपलब्ध रहता है। यह अशोकारिष्ट रक्त प्रदर, ज्वर, रक्तपित्त, रक्तार्श (खूनी बवासीर) मन्दाग्नि, अरुचि, प्रमेह, शोथ आदि रोगों को नष्ट करता है।
अशोकारिष्ट श्वेत प्रदर, अधिक मात्रा में रक्त स्राव होना, कष्टार्तव, गर्भाशय व योनि-भ्रंश, डिम्बकोष प्रदाह, हिस्टीरिया, बन्ध्यापन तथा अन्य रोग जैसे पाण्डु, ज्वर, रक्त पित्त, अर्श, मन्दाग्नि, शोथ (सूजन) और अरुचि आदि को नष्ट करता है तथा गर्भाशय को बलवान बनाता है।
इसके सेवन से बाल भी स्वस्थ और मजबूत रहते है।
सेवन विधि : भोजन के तुरन्त बाद पाव कप पानी में दो बड़े चम्मच (लगभग 20-25 मिली) भर अशोकारिष्ट डालकर दोनों वक्त पीना चाहिए। लाभ होने तक सेवन करना उचित है।
यदि आपके मन मे उस अशोक वृक्ष की याद आ रही है जिसे आम तौर पर घरो मे लगाया जाता है तो आप गलत है। घरो मे सजावट के लिये जिस अशोक को लगाया जाता है उसका वैज्ञानिक नाम पालीएल्थिया लाँगीफोलिया है। यहाँ साराका इंडिका या सीता अशोक की बात कही जा रही है। वही सीता अशोक जिसका न केवल धार्मिक बल्कि औषधीय महत्व भी है। स्त्री रोगो की चिकित्सा मे इसके विभिन्न पौध भागो का प्रयोग होता है। आपने अशोकारिष्ट और हेमपुष्पा का नाम तो सुना होगा। हेमपुष्पा इसका संस्कृत नाम है।
- मधुमेह में आशोक के सूखे पुष्पों के एक चम्मच चूर्ण का सेवन करने से लाभ मिलता है।
- रक्त प्रदर में इसकी छाल का एक चम्मच चूर्ण, एक कप पानी और थोडी सी शक्कर को एक कप दूध में मिलाकर गर्म कर के पीने से लाभ मिलता है।
- अशोक की छाल, नीबू के रस व दूध के मिश्रण का लेप लगाने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
- सूजन व जलन में अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर लगाने से और पीने से लाभ मिलता है।
- गर्भाशय रोगों में सुबह शाम भोजन के बाद अशोकारिष्ट का सेवन करें।
- पेट दर्द में अशोक की पत्तियों के काढ़े में जीरा मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
- मूत्रघात के रोग में इसकी एक चम्मच बीजों का चूर्ण जल के साथ सेवन करने से मूत्र घात एंव पथरी का नाश होता है।
- ल्यूकोरिया की बीमारी में भी इसकी छाल के चूर्ण वा मिश्री को सामान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ सुबह शाम सेवन करना चाहिए। इसके अलावा आंवला, गिलोय के चूर्ण को अशोक की छाल के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में उबालकर उसमें जल मिलाएं और शहद के साथ सुबह शाम सेवन करें।
- अशोक की पत्तियो को अन्य प्रकार की पत्तियो के साथ मिलाकर सिरदर्द विशेषकर माइग्रेन की चिकित्सा मे लेप के रुप मे प्रयोग करते है।
अशोकारिष्ट -
अशोक वृक्ष की छाल का मुख्य रूप से उपयोग कर प्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग 'अशोकारिष्ट' बनाया जाता है। देश के अनेक आयुर्वेदिक निर्माता संस्थान 'अशोकारिष्ट' बनाते हैं जो सर्वत्र दुकानों पर उपलब्ध रहता है। यह अशोकारिष्ट रक्त प्रदर, ज्वर, रक्तपित्त, रक्तार्श (खूनी बवासीर) मन्दाग्नि, अरुचि, प्रमेह, शोथ आदि रोगों को नष्ट करता है।
अशोकारिष्ट श्वेत प्रदर, अधिक मात्रा में रक्त स्राव होना, कष्टार्तव, गर्भाशय व योनि-भ्रंश, डिम्बकोष प्रदाह, हिस्टीरिया, बन्ध्यापन तथा अन्य रोग जैसे पाण्डु, ज्वर, रक्त पित्त, अर्श, मन्दाग्नि, शोथ (सूजन) और अरुचि आदि को नष्ट करता है तथा गर्भाशय को बलवान बनाता है।
इसके सेवन से बाल भी स्वस्थ और मजबूत रहते है।
सेवन विधि : भोजन के तुरन्त बाद पाव कप पानी में दो बड़े चम्मच (लगभग 20-25 मिली) भर अशोकारिष्ट डालकर दोनों वक्त पीना चाहिए। लाभ होने तक सेवन करना उचित है।