यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 7 सितंबर 2024

पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्व

पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️
अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         

(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 
                                         
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर।  पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

 (4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री।  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 

(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस में ही झगड़ने लगते हे। 

(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
                           
(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 
                       
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
                           
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    

(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि

श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि
〰️〰️🌼〰️〰️🌼🌼〰️〰️🌼〰️〰️
पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर।

विधि👉 गणेश जी की मूर्ती लकड़ी की चौकी पर लाल या हरा रंग का कपड़ा बिछाकर स्वयं पूर्वाभिमुख बैठकर चौकी को आने सामने रखकर उसके उर गणेश जी को आसान दें और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करे अथवा मिट्टी के गणेश बनाये और आवाहन करें।

आवाहन मंत्र
〰️〰️〰️〰️
गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।

अब नीचे दिया मंत्र पढ़कर प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मंत्र👉 अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।

निम्न मंत्र से गणेश भगवान को आसान दें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम।
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।

पाद्य (पैर धुलना) निम्न मंत्र से पैर धुलाये।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम।।

आर्घ्य(हाथ धुलना) निम्न मंत्र से हाथ धुलाये
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै:।
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते।।

अब निम्न मंत्र से आचमन कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं।
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः।।

स्नान का मंत्र
〰️〰️〰️〰️〰️
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे।।

दूध् से स्नान कराये
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं।।

दही से स्नान कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं।
ध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां।।

घी से स्नान कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।।

शहद से स्नान कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शर्करा (गुड़ वाली चीनी) से स्नान
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

पंचामृत से स्नान कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान कराए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र पहनाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां।।

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा ) अर्पण करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव:।
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो।।

अब यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क (दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) अर्पण करें।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां।।

गन्ध (चंदन अबीर गुलाल) चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां।।

रक्त(लाल )चन्दन चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम।
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम।।

रोली लगाए
〰️〰️〰️〰️
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम ।
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्:।।

सिन्दूर चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां।।

अक्षत चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः।
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः।।

पुष्प चढ़ाये
〰️〰️〰️〰️
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै:।
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां।।

पुष्प माला चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर:।।

बेल का पत्र चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर :।।

दूर्वा चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️
त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि।
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव।।

दूर्वाकर (दूर्वा हरि दूब) चढ़ाए।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम।
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:।।

शमीपत्र अर्पण करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका।
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।

अबीर गुलाल चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च।
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे।।

आभूषण चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान।
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर:।।

सुगंध तेल चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि:।
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां।।

धूप दिखाए 
〰️〰️〰️〰️
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम :।
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां।।

दीप दिखाए
〰️〰️〰️〰️
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम।।

धूप दीप दिखाने के बाद अपने हाथ धो लें।

नैवेद्य (मिठाई) अर्पण करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम।
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां।।

मध्येपानीय (आचमन के लिये जल दिखाए)
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या।
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि।।

ऋतुफल (फल)
〰️〰️〰️〰️〰️
नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम।
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां।।

आचमन (भगवान को जल दिखाकर किसी पात्र में डाले)
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन।
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम।।

अखंड ऋतुफल (सूखे मेवे) चढ़ाए।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।

ताम्बूल पूंगीफलं (पान, सुपारी लौंग, इलायची) चढ़ाए
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम।
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां।।

दक्षिणा (दान) अर्पण करें 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे।।

आरती करें
〰️〰️〰️〰️
चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च।
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम।।

पुष्पांजलि करें
〰️〰️〰️〰️〰️
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च ।
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर:।।

प्रार्थना करें
〰️〰️〰️〰️
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात।।

।।अनया पूजया श्री गणपति: देवता प्रीयतां न मम।। ऐसा बोलकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️                                                          

श्री गणेश पूजन (सरलतम विधि)
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
जो साधकगण समयाभाव के चलते विस्तृत पूजा नही कर सकते उनके लिए समय पूजन विधि बताई जा रही है।

पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
शुद्ध जल,गंगाजल, सिन्दूर,रोली,रक्षा, कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है)।

विधि👉 गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें।

ध्यान श्लोक👉 शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..

लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है।सुखी व सफल जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिएबुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल (11 या 21 दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं )।

अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रोंका मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :-

ॐ चतुराय नम:।
ॐ गजाननाय नम:।
ॐ विघ्नराजाय नम:।
ॐ प्रसन्नात्मने नम:।

सामान्य पूजन विधि
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
षोडशोपचार पूजन -  
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ध्यायामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आवाहयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आसनं। समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पाद्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः। 
आचमनीयं समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्र युग्मं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं धारयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आभरणानि (आभूषण) समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः गंधं धारयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अक्षतान् समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पुष्पैः पूजयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः प्रतिष्ठापयामि और गणेश जी के इन नामों का जप करें।

ॐ गणपतये नमः॥ 
ॐ गणेश्वराय नमः॥ 
ॐ गणक्रीडाय नमः॥ ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ 
ॐ एकदंताय नमः॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ॐ गजवक्त्राय नमः॥ 
ॐमदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥ 
ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ 
ॐविकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ॐ सुमुखाय नमः॥ 
ॐ दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥ 
ॐविघ्नराजाय नमः॥ 
ॐ गजाननायनमः॥
ॐ भीमाय नमः॥ 
ॐ प्रमोदाय नमः ॥ 
ॐ आनन्दायनमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥ 
ॐमदोत्कटाय नमः॥ 
ॐहेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥ 
ॐ शम्भवे नमः ॥
ॐ लम्बकर्णायनमः ॥
ॐ महाबलाय नमः॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥
ॐ अलम्पटाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥
ॐ मेघनादायनमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥
ॐ विनायकाय नमः॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥
ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूरायनमः ॥
ॐ वरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥
ॐ बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥
ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥
ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥
ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥
ॐ सिद्ध्यैनमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥
ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥
ॐ सिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥
ॐराजपुत्राय नमः ॥
ॐशकलाय नमः ॥
ॐ सम्मिताय नमः॥
ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥
ॐ दुर्जयाय नमः ॥
ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥
ॐभूपतये नमः ॥
ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥
ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥
ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः॥
ॐ घृणये नमः ॥
ॐ कवये नमः ॥
ॐकवीनामृषभाय नमः॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥
ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥
ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥
ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥
ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥
ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥
ॐ कुण्डलिने नमः॥
ॐ हारिणे नमः ॥
ॐ वनमालिने नमः ॥
ॐ मनोमयायनमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥
ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिनेनमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥
ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥
ॐ पीताम्बराय नमः ॥
ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥
ॐ ध्वजिने नमः ॥
ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥
ॐनादाय नमः ॥
ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥
ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥
ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥
ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥
ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥
ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥
ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥
ॐ धर्माय नमः ॥
ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥
ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ 
ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥
ॐ तारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥
ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः ॥ॐ व्योमनाभाय नमः॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥
ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः।।

उत्तर पूजा👉 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः धूपं आघ्रापयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः दीपं दर्शयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः फलाष्टकं समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः कर्पूर नीराजनं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंगल आरतीं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलि समर्पयामि।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंत्र पुष्पं समर्पयामि।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

प्रार्थनां समर्पयामि।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं।
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम।

क्षमापनं समर्पयामि।

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च।।

 श्री गणेश जी की आरती
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️           
जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा।
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी।
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी।जय .......

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया। जय ......

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा। जय .......

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी। जय .......
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️

श्री गणेश की दाईं सूंड या बाईं सूंड

श्री गणेश की दाईं सूंड या बाईं सूंड

〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
 अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेश की कौन सी सूंड होनी... चाइये ?

 क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है।
भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की आेर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्त जब भी दक्षिण की आेर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है। 
प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाआें से दिखती है। जब सूंड दाईं आेर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। एेसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है।
वहीं बाईं आेर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एेसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।
सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एेसी मूर्त की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं आेर सूंड वाली मूर्त है इसीलिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
 
कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।
यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऎसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।

घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

श्रीगणेश पूजा के नियम और सावधानियां

श्रीगणेश पूजा के नियम और सावधानियां 

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
श्रीगणेश एक ऐसे देवता हैं जो सुख -समृद्धि -मंगल तो देते ही हैं सुरक्षा और शत्रु को पराजित भी करते हैं। भावना और श्रद्धा अपनी जगह है पर हर देवता की आकृति ,रूप ,गुण ,विशेषता और मन्त्र पूजन पद्धति की भिन्नता के पीछे गंभीर रहस्य होता है जो उस शक्ति के विशेष गुणों के कारण बनाया गया होता है इसलिए किसी भी देवता की पूजा -आराधना में उसके अनुकूल ही तरीके और नियम अपनाने चाहिए विपरीत गुणों और ऊर्जा प्रकृति से पूजा करने पर देवता की शक्ति अनियमित ,असंतुलित और विकृत हो सकती है जो गंभीर परेशानियां भी दे सकती है या फिर पूजा बिना किसी लाभ के हो सकती है भले आप मानते हों की देवता है भगवान् हैं सबकुछ देख रहे हैं सब माफ़ करते हैं पर वास्तव में ऐसा कम ही होता है अगर ऐसा होता तो हर देवता की पूजा पद्धति अलग नहीं होती, सबको चढ़ाए जाने वाले पदार्थ अलग नहीं होते, सबके मन्त्र अलग नहीं होते।

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि किस तरह के गणेश जी कहां स्थापित करने से वे प्रसन्न होते हैं हम आपको बताते हैं कि कहां किस तरह के गणेश स्थापित करना चाहिए और गणेश जी कैसे आपके घर का वास्तु सुधार सकते हैं, आपको सुखी कर सकते हैं कैसे आपको समृद्धि दे सकते हैं।

👉 सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों को सफेद रंग के विनायक की मूर्ति लाना चाहिए। साथ ही, घर में इनका एक स्थाई चित्र भी लगाना चाहिए।

👉 सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक शुभ होती है। यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है।

👉 घर में बैठे हुए और बाएं हाथ के गणेश जी विराजित करना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं और उनकी साधना-आराधना कठीन होती है। वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।

👉 कार्यस्थल पर गणेश जी की मूर्ति विराजित कर रहे हों तो खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं। इससे कार्यस्थल पर स्फूर्ति और काम करने की उमंग हमेशा बनी रहती है।

👉 कार्य स्थल पर किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा या चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋय कोण में नहीं होना चाहिए। 

👉 मंगल मूर्ति को मोदक और उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। इसलिए मूर्ति स्थापित करने से पहले ध्यान रखें कि मूर्ति या चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा जरूर होना चाहिए।

👉 गणेश जी की मूर्ति स्थापना भवन या वर्किंग प्लेस के ब्रह्म स्थान यानी केंद्र में करें। ईशान कोण और पूर्व दिशा में भी सुखकर्ता की मूर्ति या चित्र लगाना शुभ रहता है।

👉 यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।  

👉 यदि भवन में द्वारवेध हो यानी दरवाजे से जुड़ा किसी भी तरह का वास्तुदोष हो (भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है)। ऐसे में घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।

👉 भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।

👉 स्वस्तिक को गणेश जी का रूप माना जाता है। वास्तु शास्त्र भी दोष निवारण के लिए स्वस्तिक को उपयोगी मानता है। स्वस्तिक वास्तु दोष दूर करने का महामंत्र है। यह ग्रह शान्ति में लाभदायक है। इसलिए घर में किसी भी तरह का वास्तुदोष होने पर अष्टधातु से बना पिरामिड यंत्र पूर्व की तरफ वाली दीवार पर लगाना चाहिए।

👉 रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए। इसे सर्वार्थ सिद्धिकारक कहा गया है। इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना चाहिए और दूसरे दिन, रवि-पुष्य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए।

👉 श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा का मुख नैऋत्य में हो तो इष्टलाभ देती है। वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण, ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है।

👉 शत्रु बाधा ,विवाद विजय ,वाशिकरण आदि में नीम की जड़ से बने गणेश का भी प्रयोग होता है किन्तु यह पूजन तांत्रिक होती है और इसमें विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है।

👉 पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो। गणेश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणेश प्रतिमा नहीं रखें। एक साथ दो गणेश जी रखने पर रिद्धि और सिद्धि नाराज हो जाती हैं।

👉 गणेश को रोजाना दूर्वा दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाकर समृद्धि की कामना से ऊं गं गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है। वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं।

👉 गणपति की पूजा में यह ध्यान देना चाहिए की इनकी पूजा सुबह ही करें ,दोपहर अथवा रात्री में दैनिक पूजन से बचें ,अनुष्ठान और एक दिवसीय मंगल पूजन में शुभ मुहूर्त अनुसार कभी भी पूजन किया जा सकता है।

👉 गणेश गौरी की जब भी एक साथ पूजा करें तो ध्यान रखें की गौरी के बाएं तरफ गणेश हों अर्थात गणपति की दाहिनी ओर उनकी माँ गौरी हों।

👉 दैनिक पूजन और मंगल की कामना एक अलग बात है किन्तु जब भी उद्देश्य विशेष के लिए मंत्र जप करें तो किसी योग्य गुरु द्वारा मंत्र लेकर ही जप करें ,सीधे किताबों से मंत्र लेकर जप न करें।

👉 पूजन में पुष्प आदि चढ़ाए जाने वाले पदार्थो वनस्पतियों का भी बहुत महत्त्व होता है अतः उनके रंग ,गुण ,शुद्धता का भी उद्देश्य विशेष के अनुसार पूरा ध्यान दें।

पूरी सावधानी और पूर्ण जानकारी के बाद पूजन करें गणपति आपका उद्देश्य सफल करेंगे
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

वास्तु अनुसार गणपति स्थापन

वास्तु अनुसार गणपति स्थापन
〰️〰️🔸〰️🔸〰️🔸〰️〰️
गणपति को पुराणों में विघ्नकर्ता और हर्ता दोनों कहा गया है। ऐसे में गणेश जी की मूर्ति घर में है तो आपको कुछ बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए ताकि आपके लिए गणेश विघ्नकर्ता न बनें और शुभ फलों की प्राप्ति होती रहे। कहां किस तरह के गणेश स्थापित करना चाहिए और गणेश जी कैसे आपके घर का वास्तु सुधार सकते हैं जानिए।

👉 सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों को सफेद रंग के विनायक की मूर्ति लाना चाहिए।साथ ही, घर में इनका एक स्थाई चित्र भी लगाना चाहिए।

👉 सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। - घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक शुभ होती है। यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है।

👉 घर में बैठे हुए और बाएं हाथ के गणेश जी विराजित करना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं और उनकी साधना-आराधना कठीन होती है। वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।

👉 कार्यस्थल पर गणेश जी की मूर्ति विराजित कर रहे हों तो खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं। इससे कार्यस्थल पर स्फूर्ति और काम करने की उमंग हमेशा बनी रहती है।

👉 कार्य क्षेत्र पर किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा या चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋय कोण में नहीं होना चाहिए। 

👉 मंगल मूर्ति को मोदक और उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। इसलिए मूर्ति स्थापित करने से पहले ध्यान रखें कि मूर्ति या चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा जरूर होना चाहिए।

👉 गणेश जी की मूर्ति स्थापना भवन या वर्किंग प्लेस के ब्रह्म स्थान यानी केंद्र में करें। ईशान कोण और पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति या चित्र लगाना शुभ रहता है।

👉 यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।

👉 यदि भवन में द्वारवेध हो यानी दरवाजे से जुड़ा किसी भी तरह का वास्तुदोष हो(भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है)। ऐसे में घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।

👉 भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।

👉 स्वस्तिक को गणेश जी का रूप माना जाता है। वास्तु शास्त्र भी दोष निवारण के लिए स्वास्तिक को उपयोगी मानता है। स्वास्तिक वास्तु दोष दूर करने का महामंत्र है। यह ग्रह शान्ति में लाभदायक है। इसलिए घर में किसी भी तरह का वास्तुदोष होने पर अष्टधातु से बना पिरामिड यंत्र पूर्व की तरफ वाली दीवार पर लगाना चाहिए।

👉 रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए। इसे सर्वार्थ सिद्धिकारक कहा गया है। इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना चाहिए और दूसरे दिन, रवि-पुष्य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए।

👉 श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा का मुख नैऋत्य में हो तो इष्टलाभ देती है। वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण, ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है।

👉 पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो। गणेश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणेश प्रतिमा नहीं रखें। एक साथ दो गणेश जी रखने पर रिद्धि और सिद्धि नाराज हो जाती हैं।

👉 गणेश को रोजाना दूर्वा दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाकर समृद्धि की कामना से ऊं गं गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है। वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️

हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत-

हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत- 

यह पोस्ट किसी सज्जन की है पर बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक है अतः समयानुसार पढ़े। 
और आज मन्वन्तर तिथि होने से अक्षयफल भी है। 
अतः आज अधिक न बने तो बिल्वपत्र से गौरी के चरणों की सेवा अवश्य करें। ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः मंत्र का उच्चारण करके अर्पित करें। ( हर बिल्वपत्र पर ह्रीं लिखें ) अधिक जानकारी के लिए कभी हमारा ग्रंथ देवी रहस्य महाग्रंथ देखना पर आज किसी भक्त की पोस्ट से यह सब प्रेषित कर रहे है। और आज के हरतालिका के व्रत को हमने देवी रहस्य में हरकालिका नाम से *( एक संदर्भ ग्रंथ के अनुसार) बताया है उसमें भी अति संक्षिप्त रूप देखें। 
आज देवी को नवीन श्रृंगार अर्पित करके ब्राह्मण पत्नि व अपनी भांजी को भी नवीन वस्त्र अर्पित करें इससे स्त्री ऋण नष्ट हो जायेगा और आज अनंत गुना फल दायक तिथि है ही। 
सुनें -
हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। यह तीज का त्यौहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं। 

यह आमतौर पर अगस्त-सितम्बर के महीने में ही आती है। इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है। भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं।

विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से जहाँ कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है।
 
हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं। यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं। शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं।

क्यों कहते हैं हरतालिका
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
यह दो शब्दों के मेल से बना माना जाता है हरत एवं आलिका। हरत का तात्पर्य हरण से लिया जाता है और आलिका सखियों को संबोंधित करता है। मान्यता है कि इस दिन सखियां माता पार्वती की सहेलियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं। जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिये कठोर तप किया था। तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है। हरतालिका तीज के पिछे एक मान्यता यह भी है कि जंगल में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव की कठोर आराधना कर रही थी तो उन्होंने रेत के शिवलिंग को स्थापित किया था। मान्यता है कि यह शिवलिंग माता पार्वती द्वारा हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था इसी कारण इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
 
क्यों किया गया था माता पार्वती का हरण
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
दरअसल माता पार्वती के कठोर तप से उनकी दशा बहुत खराब रहने लगी थी उनके पिता उनकी इस दशा से काफी परेशान थे। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर गिरीराज बहुत प्रसन्न हुए। उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि गिरीराज पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुई उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता गिरीराज की नज़रों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आयीं।

यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिये कठोर तप शुरु किया जिसके लिये उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वति को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर माता पार्वती के पिता अपनी भगवान विष्णु से पार्वती के विवाह का वचन दिये जाने के पश्चात पुत्री के अक्समात घर छोड़ देने से व्याकुल थे। पार्वती को तलाशते तलाशते वे उस स्थान तक आ पंहुचे इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया। तब पिता गिरीराज भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।

महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरितालिका तीज का व्रत
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है।इस दिन महिलायें बिना कुछ खायें -पिये व्रत रखती है।यह व्रत संकल्प शक्ती का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है।इस प्रकार संकल्प हमारी अन्तरीक शक्तियोंका सामोहिक निश्चय है।इसका अर्थ है-व्रत संकल्प से ही उत्पन्न होता है।व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन मे लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प लें ।संकल्प शक्ति के आगे असंम्भव दिखाई देता लक्ष्य संम्भव हो जाता है।माता पार्वती ने जगत को दिखाया की संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक जाता है।

अच्छे कर्मो का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विषेशतः महिलाओं के संदर्भ मे यह है कि आज समाज मे महिलायें बिते समय की तुलना मे अधिक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र है।महिलाओं की भूमिका मे भी बदलाव आये है ।घर से बाहर निकलकर पुरुषों की भाँति सभी कार्य क्षेत्रों मे सक्रिय है।ऎसी स्थिति मे परिवार व समाज इन महिलाओं की भावनाओ एवं इच्छाओं का सम्मान करें,उनका विश्वास बढाएं,ताकि स्त्री व समाज सशक्त बनें।

हरतालिका तीज व्रत विधि और नियम 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं।

विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओ को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम शुद्ध घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात सीधे (दाहिने) हाथ में अक्षत रोली बेलपत्र, मूंग, फूल और पानी लेकर इस मंत्र से संकल्प करें -

"उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रत महं करिष्ये"।

इसके बाद कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं।

उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है। 

इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमे सर्वप्रथम गणेश जी की पुनः शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता।

प्रातः अन्तिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।

भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए 👇

ऊं उमायै नम:
ऊं पार्वत्यै नम:
ऊं जगद्धात्र्यै नम:
ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:
ऊं शांतिरूपिण्यै नम:
ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए 👇

ऊं हराय नम:
ऊं महेश्वराय नम:
ऊं शम्भवे नम:
ऊं शूलपाणये नम:
ऊं पिनाकवृषे नम:
ऊं शिवाय नम:
ऊं पशुपतये नम:
ऊं महादेवाय नम:

निम्न नामो का उच्चारण कर बाद में पंचोपचार या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं द्वारा अपना व्रत तोडा जाता है और अन्न ग्रहण किया जाता है।

हरितालका तीज पूजा मुहूर्त
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हरितालिका पूजन प्रातःकाल ना करके प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना ही शास्त्रसम्मत है।

प्रदोषकाल निकालने के लिये आपके स्थानीय सूर्यास्त में आगे के 96 मिनट जोड़ दें तो यह एक घंटे 36 मिनट के लगभग का समय प्रदोष काल माना जाता है।

प्रातःकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त👉 प्रातः 05:57 से 08:28 तक।

प्रदोष काल मुहूर्त 👉 सायं 06:15 से 06:41 तक 

पारण अगले दिन 07 सितम्बर के सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद करना उत्तम रहेगा।

हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
1- फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता है।

2- गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत।

3- केले का पत्ता।

4- विविध प्रकार के फल एवं फूल पत्ते।

5- बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी मंजरी।

6- जनेऊ , नाडा, वस्त्र,।

7- माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामग्री, जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहँदी आदि एकत्र की जाती हैं। इसके अलावा बाजारों में सुहाग पूड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं।

8- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, नारियल, कलश।

9- पञ्चामृत - घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।

हरतालिका तीज व्रत कथा 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।

श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।

तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।

नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।

नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्‍गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा। 

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया - मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी। 

उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।

तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा - मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तब मैं 'तथास्तु' कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।

गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया। 

हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

हर‍तालिका व्रत के विशेष सरल उपाय
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
1👉 देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती का अभिषेक आम अथवा गन्ने के रस से किया जाए तो लक्ष्मी और सरस्वती ऐसे भक्त का घर छोड़कर कभी नहीं जातीं। वहां नित्य ही संपत्ति और विद्या का वास रहता है।

2👉 शिवपुराण के अनुसार लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3👉 माता पार्वती को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है।

4👉 माता पार्वती को शक्कर का भोग लगाकर उसका दान करने से भक्त को दीर्घायु प्राप्त होती है। दूध चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है। मालपूआ चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

5👉 हरतालिका व्रत के दिन शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को चमेली के फूल चढ़ाने से वाहन सुख मिलता है। अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

6👉 भगवान शिव की शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। बेला के फूल से पूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है। धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

7👉 भगवान शिव पर ईख (गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है। शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

8👉 देवी भागवत के अनुसार वेद पाठ के साथ यदि कर्पूर, अगरु (सुगंधित वनस्पति), केसर, कस्तूरी व कमल के जल से माता पार्वती का अभिषेक करने से सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है तथा साधक को थोड़े प्रयासों से ही सफलता मिलती है।

9👉 जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है। कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नवीन वस्त्रों की प्राप्ति होती है। हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

10👉 देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती को केले का भोग लगाकर दान करने से परिवार में सुख-शांति रहती है। शहद का भोग लगाकर दान करने से साधक को धन प्राप्ति के योग बनते हैं। गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाकर दान करने से दरिद्रता का नाश होता है।

11👉 भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

12👉 द्राक्षा (दाख) के रस से यदि माता पार्वती का अभिषेक किया जाए तो भक्तों पर देवी की कृपा बनी रहती है।

13👉 शिवपुराण के अनुसार जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है। भगवान शिव को गेंहू चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

14👉 देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती को नारियल का भोग लगाकर उसका दान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। माता को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाकर गरीबों को दान करने से लोक-परलोक में आनंद व वैभव मिलता है।

15👉 माता पार्वती का अभिषेक दूध से किया जाए तो व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-समृद्धि का स्वामी बनता है।

श्रीगणेश चतुर्थी एवं श्रीगणेश महोत्सव 07 से 17 सितंबर 2024 विशेष

श्रीगणेश चतुर्थी एवं श्रीगणेश महोत्सव 07 से 17 सितंबर 2024 विशेष
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते है।

हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।
लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था।
अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।

गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।

वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।

गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

‬पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         

(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 
                                         
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

 (4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 

(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे। 

(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
                           
(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 
                       
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
                           
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    

(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।

पूजन मुहूर्त
〰️〰️〰️〰️
गणपति स्वयं ही मुहूर्त है। सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिनभर कभी भी स्थापन कर सकते है। सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है।

मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है। गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यंतशुभ माना जाता है। 

गणेश चतुर्थी पूजन 
〰️〰️🌼🌼〰️〰️
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त👉 10:57 से दोपहर 01:32 तक।

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 👉 सितम्बर 06 को दोपहर 03:00 बजे से।

चतुर्थी तिथि समाप्त 👉 सितम्बर 07 को सायं 05:35 बजे तक।

एक दिन पूर्व, वर्जित चन्द्रदर्शन का समय 👉 06 सितम्बर - दोपहर 03:37 से रात्रि 08:11 तक

07 सितम्बर को वर्जित चन्द्र दर्शन का समय प्रातः 09:25 से रात्रि 08:37 तक।

पूजा की सामग्री
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
गणेश जी की पूजा करने के लिए चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली, मोली, लाल चन्दन, जनेऊ गंगाजल, सिन्दूर चांदी का वर्क लाल फूल या माला इत्र मोदक या लडडू धानी सुपारी लौंग, इलायची नारियल फल दूर्वा, दूब पंचमेवा घी का दीपक धूप, अगरबत्ती और कपूर की आवस्यकता होती है।

सामान्य पूजा विधि
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
सकाम पूजा के लिये स्थापना से पहले संकल्प भी अत्यंत जरूरी है। यहाँ हम संक्षिप्त विधि बता रहे है गणेश पूजन की विस्तृत विधि हमारी अगली पोस्ट ने देख सकते है।

संकल्प विधि
〰️〰️〰️〰️〰️
हाथ में पान के पत्ते पर पुष्प, चावल और सिक्का रखकर सभी भगवान को याद करें। अपना नाम, पिता का नाम, पता और गोत्र आदि बोलकर गणपति भगवान को घर पर पधारने का निवेदन करें और उनका सेवाभाव से स्वागत सत्कार करने का संकल्प लें।

भगवान गणेश की पूजा करने लिए सबसे पहले सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने। क्योकि गणेश जी को लाल रंग प्रिय है। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं। ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें। गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं। लाल चन्दन का टीका लगाएं। अक्षत (चावल) लगाएं। मौली और जनेऊ अर्पित करें। लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें। इत्र अर्पित करें। दूर्वा अर्पित करें। नारियल चढ़ाएं। पंचमेवा चढ़ाएं। फल अर्पित करें। मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं। लौंग इलायची अर्पित करें। दीपक, अगरबत्ती, धूप आदि जलाएं इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश आदि स्तोत्रों का पाठ करे।

यह मंत्र उच्चारित करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।

कपूर जलाकर आरती करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। जय गणेश जय गणेश…
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी। माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी।। जय गणेश जय गणेश…
अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।। जय गणेश जय गणेश…
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा।। जय गणेश जय गणेश…
दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी।। जय गणेश जय गणेश…

चतुर्थी,चंद्रदर्शन और कलंक पौराणिक मान्यता
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
18 तारीख को रात्रि मे चतुर्थी तिथि रहे गी एवं 19 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने के कारण भूलकर भी चंद्र दर्शन न करें वर्ना आपके उपर बड़ा कलंक लग सकता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा का दृष्टांत है।

एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।

भाद्रपद (भादव ) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चन्द्रमा के दर्शन हो जाने से कलंक लगता है। अर्थात् अपकीर्ति होती है। भगवान् श्रीकृष्ण को सत्राजित् ने स्यमन्तक मणि की चोरी लगायी थी।

स्वयं रुक्मिणीपति ने इसे “मिथ्याभिशाप”-भागवत-१०/५६/३१, कहकर मिथ्या कलंक का ही संकेत दिया है। और देवर्षि नारद भी कहते हैं कि –

आपने भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के चन्द्रमा का दर्शन किया था जिसके फलस्वरूप आपको व्यर्थ ही कलंक लगा –

त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम् । 
कृतं येनेह भगवन् वृथा शापमवाप्तवान् ।।
–भागवतकी श्रीधरी पर वंशीधरी टीका,स्कन्दपुराण का श्लोक ।

तात्पर्य यह कि भादंव मास की शुक्लचतुर्थी के चन्द्रदर्शन से लगे कलंक का सत्यता से सम्बन्ध हो ही –ऐसा कोई नियम नहीं । किन्तु इसका दर्शन त्याज्य है । तभी तो पूज्यपाद गोस्वामी जी लिखते हैं —

“तजउ चउथि के चंद नाई”-मानस. सुन्दरकाण्ड,३८/६,

स्कन्दमहापुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्लपक्ष के चन्द्र का दर्शन मैंने गोखुर के जल में किया जिसका परिणाम मुझे मणि की चोरी का कलंक लगा। 

मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्याम् चन्द्रदर्शनम्।
गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता ।।
यदि भादव के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो कलंक से कैसे छूटें ?

1👉 यदि उसके पहले द्वितीया का चंद्र्मा आपने देख लिया है तो चतुर्थी का चन्द्र आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।

2👉 या भागवत की स्यमन्तक मणि की कथा सुन लीजिए ।

3👉 अथवा निम्नलिखित मन्त्र का 21 बार जप करलें –

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

4👉 यदि आप इन उपायों में कोई भी नहीं कर सकते हैं तो एक सरल उपाय बता रहा हूँ उसे सब लोग कर सकते हैं । एक लड्डू किसी भी पड़ोसी के घर पर फेंक दे ।

चंद्र दर्शन से बचने का समय 👉
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक दिन पूर्व का समय 👉 06 सितम्बर - दोपहर 03:37 से रात्रि 08:11 तक

07 सितम्बर को वर्जित चन्द्र दर्शन का समय प्रातः 09:25 से रात्रि 08:37 तक।

राशि के अनुसार करें गणेश जी का पूजन
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
गणेशचतुर्थी के दिन सभी लोग को अपने सामर्थ्य एवं श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करते है। फिर भी राशि स्वामी के अनुसार यदि विशेष पूजन किया जाए तो विशेष लाभ भी प्राप्त होगा।

👉 यदि आपकी राशि मेष एवं बृश्चिक हो तो आप अपने राशि स्वामी का ध्यान करते हुए लड्डु का विशेष भोग लगावें आपके सामथ्र्य का विकास हो सकता है।

👉 आपकी राशि बृष एवं तुला है तो आप भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग विशेष रूप से लगावें आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है।

👉 मिथुन एवं कन्या राशि वालो को गणेश जी को पान अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे आपको विद्या एवं बुद्धि की प्राप्ति होगी।

👉 धनु एवं सिंह राशि वालों को फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सुख, सुविधा एवं आनन्द की प्राप्ति हो सके।

👉 यदि आपकी राशि मकर एवं कुंभ है तो आप सुखे मेवे का भोग लगाये। जिससे आप अपने कर्म के क्षेत्र में तरक्की कर सकें।

👉 सिंह राशि वालों को केले का विशेष भोग लगाना चाहिए जिससे जीवन में तीव्र गति से आगे बढ़ सकें।

👉यदि आपकी राशि कर्क है तो आप 
खील एवं धान के लावा और बताशे का भोग लगाए जिससे आपका जीवन सुख-शांति से भरपूर हो

गणेश महोत्सव की तिथियां
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
1👉 07 सितम्बर शनिवार👉 गणेश चतुर्थी (पत्थर चौथ) व्रत।

2👉 08 सितम्बर - रविवार👉 ऋषि पंचमी।

3👉 09 सितम्बर - सोमवार👉 मोरछठ-चम्पा सूर्य, बलदेव षष्ठी, महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, ।

4👉 10 सितम्बर - मंगलवार👉 मुक्ता भरण संतान सप्तमी, ज्येष्ठा गौरी पूजन।

5👉 11 सितम्बर - बुधवार👉 ऋषिदधीचि जन्म, राधाष्टमी, स्वामी हरिदास जयन्ती, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण। 

6👉 12 सितम्बर - गुरुवार👉 चंद्रनवमी (अदुख) नवमी, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण।

7👉 13 सितम्बर - शुक्रवार👉 दशावतार जयन्ती, तेजा दशमी, रामदेव जयंती।

8👉 14 सितम्बर - शनिवार👉 पद्मा, जलझूलनी एकादशी (सबकी)। 

9👉 15 सितम्बर - रविवार, श्रीवामन अवतार, भुवनेश्वरी जयन्ती।

10👉 16 सितम्बर - सोमवार👉 संक्रान्ति, विश्वकर्मा पूजा।

11👉 17 सितम्बर - मंगलवार अनन्त चतुर्दशी, श्रीसत्यनारायण व्रत, गणपति विसर्जन।

〰〰🌼〰 साभार 〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

function disabled

Old Post from Sanwariya