रामजी ने इस खास कारण से किया था एक स्त्री का वध
रामायण में अब तक आपने पढ़ा.....सोते समय असावधानी की अवस्था में भी राक्षस तुम पर आक्रमण नहीं कर पाएंगे। बला और अतिबला का अभ्यास करने से तीनों लोकों में तुम्हारे समानता करने वाला कोई न होगा। किसी के प्रश्र का उत्तर देने में भी कोई तुम्हारी तुलना नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं के प्राप्त हो जाने पर कोई तुम्हारी समानता नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं का अध्ययन कर लेने पर इस भूतल पर तुम्हारे यश का विस्तार होगा। ये दोनों विद्याएं ब्रह्माजी की तेजस्वी पुत्रियां है। मैंने इन दोनों को तुम्हे देने का विचार किया अब आगे.....
उसके बाद जब विश्वामित्र आगे बढ़े तो उन्होंने ताटका नामक राक्षसी के बारे में बताया तब श्रीराम ने कहा कि मुनि में तो एक क्षत्रिय हूं तो स्त्री का वध कै से कर सकता हूं।यह बात सुनकर विश्वामित्र मुस्कुराए और उन्होंने श्रीराम को विरोचन की पुत्री मंथरा की कथा सुनाई। उनकी कथा सुनकर रामजी ने कहा अयोध्या मेरे पिता महामना महाराज दशरथ ने अन्य गुरुजनों के बीच मुझे यह उपदेश दिया था कि बेटा:
तुम पिता के कहने से पिता के वचनों का गौरव रखने के लिए कुशिकनंदन विश्वामित्र की आज्ञा का निशक्त होकर पालन करना। कभी भी उनकी बात की अवहेलना न करना। इसलिए मैं पिताजी के उपदेश को सुनकर आप ब्रह्मावादी महात्मा की आज्ञा से ताटकावध संबंधी कार्य को उत्तम मानकर करूंगा- इसमें संदेह नहीं। गौ, ब्राह्मण तथा समूचे देश का हित करने के लिए मैं आप जैसे अनुपम प्रभावशाली महात्मा के आदेश का पालन करने को सब प्रकार से तैयार हूं।
रामायण में अब तक आपने पढ़ा.....सोते समय असावधानी की अवस्था में भी राक्षस तुम पर आक्रमण नहीं कर पाएंगे। बला और अतिबला का अभ्यास करने से तीनों लोकों में तुम्हारे समानता करने वाला कोई न होगा। किसी के प्रश्र का उत्तर देने में भी कोई तुम्हारी तुलना नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं के प्राप्त हो जाने पर कोई तुम्हारी समानता नहीं कर सकेगा। इन दोनों विद्याओं का अध्ययन कर लेने पर इस भूतल पर तुम्हारे यश का विस्तार होगा। ये दोनों विद्याएं ब्रह्माजी की तेजस्वी पुत्रियां है। मैंने इन दोनों को तुम्हे देने का विचार किया अब आगे.....
उसके बाद जब विश्वामित्र आगे बढ़े तो उन्होंने ताटका नामक राक्षसी के बारे में बताया तब श्रीराम ने कहा कि मुनि में तो एक क्षत्रिय हूं तो स्त्री का वध कै से कर सकता हूं।यह बात सुनकर विश्वामित्र मुस्कुराए और उन्होंने श्रीराम को विरोचन की पुत्री मंथरा की कथा सुनाई। उनकी कथा सुनकर रामजी ने कहा अयोध्या मेरे पिता महामना महाराज दशरथ ने अन्य गुरुजनों के बीच मुझे यह उपदेश दिया था कि बेटा:
तुम पिता के कहने से पिता के वचनों का गौरव रखने के लिए कुशिकनंदन विश्वामित्र की आज्ञा का निशक्त होकर पालन करना। कभी भी उनकी बात की अवहेलना न करना। इसलिए मैं पिताजी के उपदेश को सुनकर आप ब्रह्मावादी महात्मा की आज्ञा से ताटकावध संबंधी कार्य को उत्तम मानकर करूंगा- इसमें संदेह नहीं। गौ, ब्राह्मण तथा समूचे देश का हित करने के लिए मैं आप जैसे अनुपम प्रभावशाली महात्मा के आदेश का पालन करने को सब प्रकार से तैयार हूं।