किसान आंदोलन का पूरा सच
क्यों हो रहा है विरोध, आखिर क्या है समस्या,
आखिर प्रदर्शन कर रहे किसानों की असली मांगें क्या हैं और उनके प्रदर्शन की सच्चाई क्या है और क्या ये वाकई में एक बड़ी समस्या है. 2020 का किसान प्रदर्शन एक मौजूदा विरोध प्रदर्शन है जो कि इस साल संसद में पारित हुए तीन कृषि बिल के विरोध में शुरू हुआ. ये प्रदर्शन 9 अगस्त 2020 से जारी है. अब ये बिल कानून बन चुके हैं और किसानों ने इनके विरोध में दिल्ली के कई इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कें बंद की हुई हैं.
ये हैं वो तीन कानून
-कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) एक्ट 2020
-मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध एक्ट 2020
-आवश्यक वस्तु संशोधन एक्ट
प्रदर्शनकारियों ने कई दिनों से सड़कें ब्लॉक की हुई हैं और वो राष्ट्रीय राजधानी के आस-पास कई जगहों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
आखिर समस्या क्या है?
सबसे पहले, ये बिल संसद में पारित हो चुके हैं और अब ये कानून बन गए हैं. इसके अलावा, प्रदर्शनकारी अब कई दिनों से लाखों यात्रियों और मेहनती नागरिकों को इन रास्तों से गुजरने से रोक रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने टोल और अन्य क्षेत्रों को भी बंद करने की चेतावनी दी है, जिसके चलते हजारों यात्रियों और कड़ी मेहनत करने वाले नागरिकों के आवागमन पर भी असर पड़ेगा.
प्रदर्शन की सच्चाई क्या है?
प्रदर्शनकारी ये मांग कर रहे हैं कि सरकार संसद का एक विशेष सत्र बुलाए और इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे. हालांकि जब तक ये कानून किसानों के लिए हानिकारक न हो, तब तक ये थोड़ा कठिन होगा. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि APMC को खत्म कर दिया जाएगा और इसके नतीजतन MSP भी खत्म हो जाएगी, लेकिन ये कानून मौजूदा APMC और MSP के स्ट्रक्चर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. क्योंकि ये कानून राज्यों की शक्तियों का अधिग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए ये स्ट्रक्चर भी अपनी जगह पर बने रहेंगे.
अब अंतर सिर्फ इतना है कि अगर किसान भ्रष्ट AMPC के भ्रष्ट बिचौलियों को फसल बेचने के लिए मजबूर है, तो अब वो APMC के बाहर जाकर भी अपनी उपज बेचने का विकल्प चुन सकता है. इसी के साथ प्रदर्शनकारी दावा कर रहे हैं कि किसानों को कॉर्पोरेट्स द्वारा परेशान किया जाएगा. किसानों और कॉरपोरेट्स के बीच समझौते के लिए एक और शब्द है- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और एक तथ्य यह भी है कि कई राज्यों में दशकों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चल रही है. भारत के कई हिस्सों में कॉफी, चाय, गन्ने और कपास के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग काफी समय से हो रही है. पश्चिम बंगाल और पंजाब में पेप्सिको और हरियाणा में SAB मिलर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने वाले कॉन्ट्रेक्टर्स के बड़े उदाहरण हैं. एक बात जो प्रदर्शनकारियों की असलियत को स्पष्ट करती है, वह यह है कि वे अनुचित मांगें कर रहे हैं.
क्या हैं किसानों की अनुचित मांगें
प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि कृषि उपयोग के लिए डीजल की कीमतों में 50 फीसदी तक की कटौती की जाए और पराली जलाने पर लगाए जाने वाले जुर्माने को हटाए. मालूम हो कि पराली जलाना, हर साल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक है. जो मामले किसानों से संबंधित नहीं हैं, उनसे संबंधित भी कई मांगें किसानों ने रखी हैं. उनमें से एक मांग ये भी है कि कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कवियों, बुद्धिजीवियों और लेखकों पर दर्ज मामले वापस लिए जाएं और उन्हें रिहा किया जाए.
हालंकि इन लोगों की जो लिस्ट है उसमें शामिल लोग मानवाधिकार कार्यकर्ता, कवि, बुद्धिजीवि और लेखकों की श्रेणी से दूर-दूर तक संबंधित नहीं हैं. उदाहरण के लिए लिस्ट में उमर खालिद का भी नाम है, जिस पर दिल्ली हिंसा के दौरान दिल्ली के नागरिकों के खिलाफ नागरिकों को उकसाने का आरोप है. अन्य 20 लोगों को भी दिल्ली दंगों और भीमा कोरेगांव हिंसा में उनकी भूमिकाओं के लिए UAPA एक्ट के तहत जेल में डाला गया है.
इन प्रदर्शनों में खालिस्तान समर्थक झंडे दिखना और अर्बन नक्सल की रिहाई की मांग किया जाना भी परेशान करने वाली बात है. खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन है जो सिखों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहा है. भारत में पूरी तरह से संप्रभु राज्य स्थापित करने के इरादे से चरमपंथियों द्वारा इस आंदोलन का समर्थन दिया जाता है.
प्रदर्शनकारियों की मांगों का एक हिस्सा अर्बन नक्सल की रिहाई की मांग कर रहा है. आपकी राय इन 20 व्यक्तियों के बारे में कुछ भी हो सकती है, लेकिन उनकी रिहाई का भारतीय किसान या उनके कल्याण से क्या संबंध हो सकता है? अब पॉइंट पर वापस आते हैं
किसी मामले पर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना सही है, लेकिन अब ये प्रदर्शन भारतीय किसानों के भले के लिए नहीं बचा है. अब इसने एक अतिवादी और सांप्रदायिक रुख ले लिया है जो अब कई दिनों से लाखों लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया है. यात्रियों को हर रोज भारी ट्रैफिक का सामना करना पड़ता है और मेहनती नागरिक इन प्रदर्शनों का असली खामियाजा भुगत रहे हैं. मालूम हो कि ये कोरोना महामारी के दौरान हो रहा है. हम यह भी नहीं जानते हैं कि विरोध के कारण एम्बुलेंस को भी देरी हो रही है या नहीं.
आखिर प्रदर्शन का असली कारण क्या है?
क्या कृषि सुधारों के विरोध में भारतीय नागरिकों के कल्याण और सशक्तीकरण के बारे में विरोध के आधार पर मेहनती नागरिकों के लिए इस तरह की असुविधा उचित है? एक तरफ प्रदर्शनकारी प्रदर्शनों और बंद को जारी रखे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ किसानों को इन कानूनों से फायदा भी होने लगा है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में चार जिलों की किसान उत्पादक कंपनियों ने APMC के बाहर व्यापार से लगभग 10 करोड़ रुपये कमाए हैं. यह बिल पास होने के लगभग तीन महीने बाद की बात है.
किसानों के विरोध प्रदर्शन को मीडिया में काफी बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन ये विरोध किसी एक मुद्दे को लेकर नहीं है. दिल्ली के दंगों और भीमा कोरेगांव के दौरान जिन लोगों पर हिंसा का आरोप लगाया गया है, उन्हें मुक्त कराने की कोशिश की जा रही है – ये दोनों ही घटनाएं आतंकवाद हैं… यहीं से साबित होता है कि यह प्रदर्शन भारतीय किसानों के लिए नहीं है. ये विरोध भारत के हित में नहीं है और न ही ये हमें किसी भी तरह से प्रगति करने में मदद करता है.
सोर्स TV9 भारतवर्ष