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सोमवार, 7 दिसंबर 2020

हम अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के साथ प्रस्तुत करें


सनातन सरोकार ने समाज को तोड़ा नही जोडा है।*
विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े *दलित* को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें। इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया । *धोबी* के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा।
*कुम्हार*  द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोडा।
 *मुसहर जाति* जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पूजन सम्पन्न होंगे।
 *कहार* जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पुजन होगें।
 *बिश्वकर्मा* जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे।

*धारीकार* जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता।
 *डोम* जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि *मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा....

इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।
और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर विदा करते है 

*दोष सनातन में नहीं है बल्कि दोष उन लालची , सत्ता की लूटपाट में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने के जाति के नाम पर संगठन बना कर सनातनी हिन्दुओं का ढोंग कर रहे है

यहाँ *नाई* से पूछा जाता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है...?
 *नाई* के हाँ कहने के बाद ही * मंगल-पाठ प्रारम्भ होता हैं।

********मैं सनातन के ज़रिए फिर से जोड़ने की सशक्त क्रिया शुरू कर चुका हूँ 

*देश में फैले हुये *साधुओं* और *सनातन विरोधी* शक्तियों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेदो* कि निन्दा करते हुए पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।......

*याद रखो जो मंदिर ज्ञान के भण्डार थे उनको दुकान किसने बनाया, चढ़ावे को लेकर अदालतों में हज़ारों मुक़दमे एक दूसरे के ख़िलाफ़ किसने किए हैं!

हम सब का उद्देश्य यही होना चाहिए कि हम अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के साथ प्रस्तुत करें और हर 
जातिवादी नेता और राष्ट्रवाद की आड़ में जाति की स्वार्थ साधने में लगे हुए हैं!
इनको सरेआम बेनक़ाब करना होगा !


*पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ*

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