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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

विभिन्न रोगों में अतीस से उपचार :

अतीस
ACONITUM HETEROPHYLLUM

विभिन्न भाषाओं में नाम :-
अंग्रेजी इंडियन ऐटिस

संस्कृत अतिविशा, विश्वा, शुक्लकन्दा


हिंदी अतीस


गुजराती अतबखनी, कलीबखमो,


मराठी अतिविष


बंगाली आतईच


पंजाबी अतीस, चितीजड़ी,बतीस

फारसी बज्जीतुरकी

तेलगू अतिविषा, अतिबासा

सामान्य परिचय : अतीस के पेड़ भारत में हिमालय प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में 15 हजार फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके पेड़ों की जड़ अथवा कन्द को खोदकर निकाल लिया जाता है, उसी को अतीस कहते हैं। कन्द का रंग भूरा और स्वाद कुछ कषैला होता है। इसकी छाल कपड़े रंगने के काम में आती है। इसकी तीन जातियां है- काली, सफेद और पीली। औषधियों में सफेद रंग की अतीस का ही उपयोग होता है।

अतीस बहुत ही कड़वा होता है। बच्चों के बुखार पर यह एक उत्तम औषधि है। छोटे बालकों की दवाइयों में इसका उपयोग बहुत होता है। बालकों की घुटी (बालघुटी) में अतीस एक मुख्य औषधि है। इस बूटी की विशेषता यह है कि यह विष वत्सनाभ कुल की होने पर भी विषैली नहीं है। इसके ताजे पौधों का जहरीला अंश केवल अतिसूक्ष्म जीव जन्तुओं के लिए प्राणघातक है। इसका विषनाशक प्रभाव भी इसके सूख जाने पर अधिकांशत: उड़ जाता है। छोटे-छोटे बच्चों को भी यह निर्भयता से दी जा सकती है। परंतु इसमें एक दोष है कि इसमें दो महीने बाद ही घुन लग जाता है।

बाहरी स्वरूप : अतीस के पौधे 1-4 फुट ऊंचे, शाखाएं चपटी और एक पौधे में एक ही तना होता है, जिस पर अनेक पित्तयां लगी होती हैं। निचले भाग में पत्ते सवृन्त, तश्तरी नुमा, 2-4 इंच लम्बे गोल तथा 5 खंडों से युक्त होते हैं। इसके फूल चमकीले नीले या हरित नीले और देखने में फन के आकार की टोपी की तरह होते हैं। इन पर बैगनी रंग की शिरायें होती हैं। इसका मूल द्विवर्षायु जिनमें एक नया और एक पुराना दो कन्द होते हैं। औषधियों हेतु इन्ही कन्दाकार जड़ों का व्यवहार अतीस के नाम से होता है।

रंग : भूरा अंदर सफेद।

स्वाद : कडुवा।

प्रकृति : अतीस की तासीर गर्म होती है।

मात्रा : अतीस का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से एक ग्राम तक।

हानिकारक प्रभाव : अतीस का अधिक मात्रा में उपयोग आमाशय और आंतों के लिए हानिकारक होता है, अत: इसके हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने हेतु शीतल वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।

गुण : अतीस भोजन को पचाती है, धातु को बढ़ाती है, दस्तों को बंद करती है, कफ को नष्ट करती है वायु का नाश करके जलोदर और बवासीर में लाभ करती है। इसके साथ ही यह पित्तज्वर आमातिसार, खांसी, श्वास और विषनाशक है।

रासायनिक संघटन :अतीस में अतिसीन नामक एमारुस ऐल्केलाइड पाया जाता है जो स्वाद में अत्यंत तीखा होता है। इसके अलावा एकोनीटिक एसिड, टेनिक एसिड, पेक्टस तत्व, स्टार्च, वसा तथा शर्करा भी पायी जाती है।

विभिन्न रोगों में अतीस से उपचार:



1 बालकों के बुखार, श्वास, खांसी और वमन : - *अतीस का चूर्ण शहद में मिलाकर स्थिति के अनुसार बालकों को बुखार, दमा, खांसी और उल्टी होने पर देना चाहिए।

*अतीस और नागरमोथे के चूर्ण को शहद में मिलाकर बच्चों को सेवन कराने से बुखार और उल्टी में आराम मिलता है।"


2 पित्त के अतिसार पर : - अतीस, कुटकी की छाल और इन्द्रजव के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाना चाहिए। इससे पित्त के कारण उत्पन्न अतिसार ठीक हो जाता है।


3 बच्चों के आमतिसार (दस्त) पर : - सोंठ, नागरमोथा और अतीस का काढ़ा देना चाहिए।


4 बच्चों के सभी प्रकार के अतिसार पर : - अतीस का चूर्ण गुड़ अथवा शहद में मिलाकर देना चाहिए।


5 संग्रहणी (पेचिश) : - *अतीस, सोंठ और गिलोय का काढ़ा बनाकर सेवन करने से संग्रहणी ठीक हो जाती है।

*अतीस, नागरमोथा और काकड़ासिंघी का कपड़छन किया हुआ चूर्ण बराबर-बराबर लेकर दिन में तीन बार शहद में मिलाकर देना चाहिए। बच्चों की उम्र के अनुसार यह चूर्ण प्रत्येक बार लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक देना चाहिए। बच्चों के बुखार और खांसी के लिए भी यह उत्तम प्रयोग है।

*दस्त पतला, श्वेत, दुर्गन्धयुक्त हो तो अतीस और शुंठी 10-10 ग्राम दोनों को कूटकर 2 लीटर पानी में पकायें, जब आधा शेष रह जाये तब इसे लवण से छोंककर, फिर इसमें थोड़ा अनार का रस मिला दें। इसे दिन में थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3-4 बार पिलाने से संग्रहणी और आम अतिसार में लाभ होता है।"


6 पारी से आने वाले बुखार पर : - अतीस का कपड़छन किया हुआ चूर्ण एक-एक ग्राम दिन में चार बार पानी के साथ देना चाहिए।


7 मकड़ी, बिच्छू, मधुमक्खी का विष : - अतीस की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में चूना मिलाकर पानी में घिसकर लेप बनाएं और दंश पर लगायें। इससे मकड़ी, बिच्छू और मधुमक्खी के जहर, जलन और सूजन में तुरंत आराम मिलेगा।


8 मलेरिया : - अतीस का चूर्ण 1 ग्राम और 2 कालीमिर्च पीसकर इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार पानी से सेवन करायें।


9 बच्चों के पेट के कीड़े : - अतीस और बायबिडंग बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सोते समय कुछ दिन नियमित देते रहने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाएंगें।


10 सर्दी-जुकाम : - तुलसी के रस या शहद के साथ अतीस का चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार देने से सारे कष्ट दूर होंगें।


11 शरीर में सूजन : - *अतीस के बीजों को दूध में पीसकर शरीर पर लेप की तरह से लगाने से शरीर की सूजन दूर हो जाती है।

*अतीस, कूठ की जड़, शक्तु व किण्व और तिल को बराबर मात्रा में लेकर इसका चूर्ण बना लें, फिर इसे पानी के साथ गर्म करके शरीर पर लगायें। इससे शरीर की सूजन दूर हो जाती है।

*अतीस के तले हुए बीजों को और तिल को बराबर मात्रा या भाग में लेकर दूध में पीसकर बदन के सूजन वाले भाग में लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।"


12 मानसिक उन्माद (पागलपन) : - 1 ग्राम अतीस के चूर्ण को 3-4 गुड़हल के फूलों को पीसकर निकले रस के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ दिन सेवन कराने से पागलपन ठीक हो जाएगा।


13 खांसी : - अतीस का चूर्ण एक ग्राम और काकड़ासिंगी का चूर्ण आधा ग्राम मिलाकर शहद के साथ 2-3 बार चटाने से खांसी में लाभ होता है।


14 भूख न लगना : - अतीस का चूर्ण बराबर की मात्रा में सोंठ के साथ मिलाकर आधा चम्मच की मात्रा में भोजन से 1 घंटा पूर्व सेवन करने से लाभ होता है।


15 अतिसार (दस्त) : - *समान मात्रा में अतीस और बेल का चूर्ण मिलाकर आधा चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराएं। इससे दस्त में लाभ होगा।

*अतिसार और रक्तपित्त में अतीस के 3 ग्राम चूर्ण को, इन्द्रजौ की छाल के 3 ग्राम चूर्ण और 2 चम्मच शहद के साथ देने से अतिसार और रक्तपित्त में लाभ होता है।"


16 बिस्तर पर पेशाब करना : - अतीस का चूर्ण 1 ग्राम और बायविडंग का चूर्ण 2 ग्राम मिलाकर, इसकी एक मात्रा दिन में 3 बार बच्चों को सेवन कराने से बिस्तर पर पेशाब करने का रोग ठीक हो जाता है।


17 तृष्णा, प्यास की अधिकता : - *अतीस का 10 ग्राम चूर्ण एक लीटर पानी में इतना उबालें कि उसकी 800 मिलीलीटर के लगभग मात्रा बचे, फिर इसे ठंडा करके छान लें। बुखार की अवस्था में, गर्मी की अधिकता से दस्त लगने, हैजा के रोग में जब बार-बार प्यास लगे तो उपरोक्त बने पानी को पिलाने से कष्ट में राहत मिलेगी।

*अतीस और घुड़बच का काढ़ा देना चाहिए। इससे भी प्यास का अधिक लगना बंद हो जाता है।"


18 शक्तिवर्धक : - *अतीस, वंशलोचन और इलायची समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप शहद मिले दूध के साथ नियमित रूप से सेवन कराते रहने से शारीरिक बल बढ़ेगा।

*छोटी इलायची और वंशलोचन, इन दोनों के साथ अतीस के डेढ़ से ढाई ग्राम तक चूर्ण की फंकी मिश्री युक्त दूध के साथ लेने से बल बढ़ता है एवं यह पौष्टिकक व रोगनाशक है।

*गीली अतीस को दूध में मिलाकर पीने से शरीर ताकतवर बनता है और व्यक्ति की मर्दानगी भी बढ़ती है।"


19 मुंह के रोग : - अतीस 20 ग्राम और बायविडंग 15 ग्राम दोनों को कुचलकर आधा किलो पानी में पकावें, चौथाई शेष रहने पर उतारकर छान लें फिर मिश्री मिलाकर शरबत की चाशनी तैयार करें। इसके पश्चात् उसमें चौकिया सुहागा की खील पांच ग्राम पीसकर मिला लें। इसे एक वर्ष तक के बच्चे को गाय के दूध में मिलाकर पांच बूंद तक देने से और शरीर में महालाक्षादि तेल की मालिश करने से बच्चों के शरीर की पुष्टि और वृद्धि होती है तथा खांसी, श्वास, अपच आदि रोग दूर हो जाते हैं।


20 श्वास (खांसी) : - *अतीस के चूर्ण 5 ग्राम को 2 चम्मच शहद में मिलाकर चटाने से खांसी मिटती है।

*अतीस 2 ग्राम और पोखर की जड़ 1 ग्राम के चूर्ण को 2 चम्मच शहद में मिलाकर चटाने से श्वास कास रोग में लाभ होता है।"


21 वमन (उल्टी) : - नागकेशर 2 ग्राम और अतीस के 1 ग्राम चूर्ण की खुराक देने से वमन यानी उल्टी बंद होती है।


22 पाचनशक्ति : - 2 ग्राम अतीस के चूर्ण को 1 ग्राम सोंठ या 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के शहद मिलाकर चटाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।


23 पित्तोदर : - 20 मिलीलीटर गौमूत्र के साथ लगभग 2 ग्राम चूर्ण पिलाने से पित्तोदर में लाभ होता है।


24 खूनी बवासीर : - अतीस में राल और कपूर मिलाकर इसका धुआं देने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।


25 धातु को बढ़ाने वाला : - 5 ग्राम अतीस के चूर्ण को शक्कर और दूध के साथ देने से धातु में वृद्धि होती है।


26 बुखार के बाद आयी कमजोरी : - 3 ग्राम अतीस के चूर्ण को लौह भस्म लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग और शुंठी चूर्ण लगभग आधा ग्राम के साथ देने से बुखार के बाद होने वाली कमजोरी मिटती है।


27 फोड़े-फुंसी : - अतीस के 5 ग्राम चूर्ण को फांककर ऊपर से चिरायते का रस पीने से फोड़े-फुंसी मिटते हैं।


28 बुखार : - बुखार में अतीस का चूर्ण 1-1 ग्राम दिन में 4-5 बार गरम पानी के साथ देने से पसीना आकर बुखार उतर जाता है और मूत्र भी साफ होता है।


29 दांत निकलना : - *अतीस 10 ग्राम को बारीक पीसकर पॉउडर बना लें। 1 चुटकी पॉउडर को मॉ के दूध में मिलाकर बच्चों को रोजाना सुबह-शाम पिलायें। इससे बच्चों के दांत निकलते समय दर्द से आराम मिलता है।

*बुखार आने के पहले इसके दो-दो ग्राम की फंकी दो-दो घण्टे के अंतर से देने पर बुखार उतर जाता है।

*अतीस के दो ग्राम चूर्ण को हरड़ के मुरब्बे के साथ खिलाने से बुखार और आमतिसार मिटता है।

*अतीस के लगभग आधा ग्राम चूर्ण की फंकी देने से बुखार की गर्मी कम हो जाती है।

*विषमज्वर (टायफाइड) में अतीस के एक ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कुनैन मिलाकर, दिन में 2 से 3 बार खिलाने से विषम ज्वर दूर हो जाता है।

*साधारण ज्वर में अतीस चूर्ण 10 ग्राम तथा मिश्री 20 ग्राम खरलकर रखें। बड़ों को 1 ग्राम तक तथा छोटों को लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद या बनफ्सा के शर्बत के साथ सुबह-शाम देने से लाभ होता है।

*बुखार छुड़ाने के लिए अतीस के लगभग आधा ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हरा कसीस भस्म मिलाकर देना चाहिए।"


30 बादी का बुखार : - अतीस का एक ग्राम चूर्ण और आधा ग्राम कुनैन मिलाकर खाने से विषम-ज्वर ठीक हो जाता है।


31 दस्त : - *अतीस को आधा ग्राम से 2 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 दिन में 2 बार प्रयोग करने से दस्त के अधिक आने (संग्रहणी) में आराम मिलता है।

*5 ग्राम अतीस, नागरमोथा 5 ग्राम, काकड़ासिंगी को अच्छी तरह से बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर चाटने से बुखार में होने वाले दस्त ठीक हो जाते हैं।

*अतीस 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम, नागर मोथा 5 ग्राम और 5 ग्राम इन्द्रजौ को मोटा-मोटा कूटकर लगभग 300 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, जब पानी चौथाई बच जाये तब उतारकर ठंडा करके छानकर आधी चम्मच में 1 चम्मच पानी को मिलाकर सुबह पीने से लाभ मिलता है।

*अतीस और अगर को पीसकर चूर्ण बनाकर फंकी के रूप में सेवन करने से अतिसार में लाभ मिलता है।

*अतीस 2 ग्राम को शहद के साथ 1 दिन में सुबह और शाम चाटने से संग्रहणी और दस्त यानी अतिसार में लाभ मिलता है।"


32 खूनी पेचिश : - 1 ग्राम अतीस का चूर्ण, लगभग आधा ग्राम मुलहठी का चूर्ण, दिन में दो बार गर्म पानी के साथ सेवन करने से रोगी को लाभ होता है।


33 पेट के कीड़ों के लिए : - अतीस और बायविंडग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लें। इससे पेट के कीड़े मरकर बाहर निकल जाते हैं और पेट का दर्द भी ठीक हो जाता है।


34 बाला रोग (गंदा पानी को पीने) में : - 15-15 ग्राम अतीस, नागरमोथा, भारंगी, सौंठ, पीपल और बहेड़ा को पीसकर छान लें। इस चूर्ण को 10 ग्राम सुबह खाली पेट लेने से आराम मिलता है।


35 बालरोग : - *अतीस के कन्द को पीसकर चूर्ण कर शीशी में भरकर रख लें यह बालकों के तमाम रोगों में लाभकारी है। बालक की उम्र के अनुसार लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक शहद के साथ दिन में 2-3 बार चटाने से बालकों के सभी रोगों में लाभ होता है।

*अतिसार और आमातिसार (आंवदस्त) में 2 ग्राम अतीस के चूर्ण की फंकी देकर 8 घण्टे तक पानी में भिगोई हुई 2 ग्राम सोंठ को पीसकर पिलाने से लाभ होता है। जब तक अतिसार नहीं मिटे तब तक इसे प्रतिदिन देना चाहिए।

*10 ग्राम पिसा हुआ अतीस और 10 ग्राम चीनी में शहद मिलाकर आधा-आधा ग्राम बच्चे को सुबह और शाम चटायें।

*अतीस, नागरमोथा, काकड़ासिंगी को बराबर मात्रा में पीसकर शहद में मिलाकर चटनी बनाकर दिन में 2 से 3 बार रोगी को चटायें।

*अतीस को कूटकर रात्रि में 10 गुने पानी में भिगों दें, सुबह-सुबह पकायें, जब शहद जैसा गाढ़ा हो जाये या गोलियां बनाने लायक हो जाये तो लगभग आधा ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। हैजे में 3-3 गोली 1-1 घंटे के अंतर से तथा प्लेग में 3-3 गोली दिन में बार-बार खिलायें।

*अतीस का चूर्ण रसौत के चूर्ण के साथ बच्चों को सेवन कराने से बच्चों का ज्वरातिसार (बुखार के साथ दस्त आना) रुक जाता है।

*अतीस का चूर्ण वायविडंग के चूर्ण के साथ शहद में मिलाकर बच्चे को चटाने से आंत्र-कृमि (आंतो के कीड़े) समाप्त होते हैं।

*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अतीस का चूर्ण मां के दूध में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार बच्चे को देने से बच्चे के कृमि (कीड़े) मिट जाते हैं।

*अतीस का चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 से 3 बार बच्चे को चटाने से चूहे का जहर भी दूर होता है। काटे हुए स्थान पर अतीस को घिसकर गाय के पेशाब के साथ लगा देना चाहिए।

*अतीस का चूर्ण दूध अथवा पानी के साथ मिलाकर बच्चे को पिलाने से हरे-पीले अथवा पतले दस्त बंद हो जाते है।

*यदि बच्चे के गले में छाले हो गये हो अथवा उसका काग गिर गया हो, तो भी अतीस का चूर्ण शहद में मिलाकर चटायें और रूई के फाये से छालों के काग पर लगायें।

*आंख में दर्द होने पर अतीस के गुनगुने काढ़े से आंखों की हल्की सिंकाई करें तथा गुलाबजल के साथ अतीस को पीसकर आंखों के बाहर चारों ओर 1-1 अंगुली छोड़कर लेप करें और सूखने पर छुड़ा दें। अतीस के काढ़े से आंखों को धोने से बहुत लाभ होता है।

*अतीस को पीसकर गोमूत्र (गाय के पेशाब) के मिलाकर थोडा गर्म करके गुनगुना होने पर ही लेप करने से सूजन की बीमारी दूर होती है।

*अतीस अकेला ही ज्वर (बुखार) मे बड़ा काम करता है। यह चढ़े हुए ज्वर (बुखार) में देने से भी हानि नहीं करता। अतीस को तुलसी के रस के साथ देने से मलेरिया का बुखार भी समाप्त हो जाता है। बालकों को मलेरिया का बुखार हो तो इसे जरूर देना चाहिए। तेज बुखार चले जाने पर जब हल्का बुखार या हरारत रह जाय, तो अतीस, नीम की छाल और गिलोय का काढ़ा उचित मात्रा मे पिलाने से बाकी बचा हुआ बुखार समाप्त हो जाता है, शरीर में ताकत आ जाती है तथा भूख लगती है। अतीस पुष्टिकारक भी है।

*गर्भवती स्त्रियों को जबकि बुखारनाशक अन्य दवाएं शरीर में गर्मी करती है, यह बुखार का नाश करता है तथा गर्भ को किसी तरह की हानि नहीं करता है।

अगस्ता से उपचार:

अगस्ता से उपचार:
परिचय :अगस्ता का वृक्ष बड़ा होता है। बगीचों और खुदाई की हुई जगहों में यह उगता है। अगस्ता की दो जातियां होती हैं। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के पत्ते इमली के पत्तों के समान होते हैं। अगस्ता के वृक्ष पर लगभग एक हाथ लम्बी और बोड़ा की मोटी फलियों की तरह फलियां लगती है। इनका शाक बनाया जाता है। फूल भी साग-सब्जी बनाने के काम में आता है। पत्तों का भी शाक बनाया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में नाम :
संस्कृत अगस्त्य, मुनिद्रुम।
हिंदी अगस्तिया, अगस्त।
बंगला बक।
गुजराती अगिस्थ्यों।
मराठी अगस्ता, अगस्था,अगसे िडा।
कनाड़ी अगसेयमरनु चोगची।
पंजाबी हथिया
तामिल अक्कं, अर्गति, अगति।
तैलिंगी अविसि, अवीसे।
मलयमल अगठी।
अंग्रेजी सेसबंस
लैटिन ऑगटि ग्लांडिफलोरा
रंग : अगस्ता के फूलों का रंग गुलाबी व सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
स्वभाव : अगस्ता की प्रकृति सर्द व खुश्क प्रकृति की होती है।
हानिकारक : अगस्ता का अधिक मात्रा में सेवन से पेट में गैस बनती है।
गुण : यह शीतल, मधुर और त्रिदोष (वात्, वित्त और कफ) नाशक होता है। खांसी, फुन्सियां, पिशाच-बाधा तथा चौथिया बुखार का नाश करता है।

विभिन्न रोगों में अगस्ता से उपचार:

1 शीत, मस्तक-शूल और चतुर्थिक ज्वर :- अगस्त के पत्तों के रस की बूंदे नाक में डालने से शीत, मस्तक दर्द और चौथिया के बुखार में आराम होगा।

2 आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) :- इस रोग में जिस ओर सिर में दर्द होता हो, उसके दूसरी तरफ की नाक में अगस्त के फूलों अथवा पत्तों की 2-3 बूंदे रस को टपकाने से तुरंत लाभ होता है। इससे कफ निकलकर आधाशीशी का नाश होता है।

3 कफ विकार:- लाल अगस्त की जड़ अथवा छाल का रस निकालकर शक्ति के अनुसार 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा का सेवन करें। यह औषधि यदि बालकों को देनी हो, तो केवल इसके पत्ते का 5 बूंद रस निकालकर शहद के साथ पिलायें। यदि दवा का असर अधिक हो, तो मिश्री को पानी में घोलकर पिलायें।

4 सूजन:- लाल अगस्त और धतूरे की जड़ को साथ-साथ गरम पानी में घिसकर उसका लेप करना चाहिए। इससे तुरंत ही सभी प्रकार की सूजन का नाश होता है।

5 जुकाम से नाक रुंघन एवं सिर दर्द:- अगस्त के पत्तों का दो बूंद रस नाक में टपकाना चाहिए।

6 मिर्गी:- *अगस्त के पत्तों का चूर्ण और कालीमिर्च के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी सुंघाने से लाभ होता है।
*यदि बालक छोटा हो तो इसके 2 पत्तों का रस और उसमें आधी मात्रा में कालीमिर्च मिलाकर उसमें रूई का फोया तरकर उसे नासारंध्र के पास रखने से ही अपस्मार (मिर्गी) शांत हो जाता है। "

7 प्रतिश्याय (जुकाम):- जुकाम के वेग से सिर बहुत भारी तथा दर्द हो तो अगस्त के पत्तों के रस की 2-4 बूंदे नाक में टपकाने से तथा इसकी जड़ का रस 10 से 20 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से कष्ट दूर हो जाता है।

8 आंखों के विकार :- *अगस्त के फूलों का रस 2-2 बूंद आंखों में डालने से आखों का धुंधलापन मिटता है।
*अगस्त के फूलों की सब्जी या शाक बनाकर सुबह-शाम खाने से रतौधी मिटती है।
*अगस्त के 250 ग्राम पत्तों को पीसकर 1 किलोग्राम घी में पकाकर 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
*अगस्ता के फूलों का मधु आंखों में डालने से धुंध या जाला मिटता है। फूल को तोड़ने से भीतर से 2-3 बूंद शहद निकलता है।
*अगस्त के पत्तों को घी में भूनकर खाने से और घी का सेवन करने से धुंध या जाला कटता है।"

9 चित्तविभ्रम :- अगस्त के पत्तों के रस में सोंठ, पीपर और गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 या 2 बूंद नाक में डालने से लाभ होता है।

10 स्वर भंग (आवाज के बैठने पर):- अगस्त की पत्तियों के काढ़े से गरारे करने से सूखी खांसी, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रुधिर (खून) के निकलने आदि रोगों में लाभ होता है।

11 उदर शूल (पेट दर्द) :- अगस्त की छाल के 20 ग्राम काढ़े में सेंधानमक और भुनी हुई 20 लौंग मिलाकर सुबह-शाम पीने से 3 दिन में पुराने से पुराने उदर विकार और शूल नष्ट हो जाते हैं।

12 कब्ज:- अगस्त के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर, 100 मिलीलीटर शेष रहने पर 10-20 मिलीलीटर काढ़े को पिलाने से कब्ज मिटती है।

13 श्वेत प्रदर :- अगस्त की ताजी छाल को कूटकर इसके रस में कपड़े को भिगोकर योनि में रखने से श्वेत प्रदर और खुजली में लाभ होता है।

14 जोड़ों के दर्द :- धतूरे की जड़ और अगस्त की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस जैसा बनाकर दर्दयुक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है। सूजन उतर जाती है। कम वेदना में लाल अगस्त की जड़ को पीसकर लेप करें।

15 वातरक्त :- अगस्त के सूखे फूलों का 100 ग्राम महीन चूर्ण भैंस के 1 किलो दूध में डालकर दही जमा दें, दूसरे दिन मक्खन निकालकर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।

16 बुद्धि (दिमाग) को बढ़ाने वाला :- अगस्त के बीजों का चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक गाय के ताजे 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम कुछ दिन तक खाने से स्मरण शक्ति तेज हो जाती है।

17 ज्वर (बुखार) होने पर :- *अगस्त के फूलों या पत्तों का रस सुंघाने से चातुर्थिक ज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) और बंधे हुए जुकाम में लाभ होता है
*अगस्त के पत्ते का रस 2 या 3 चम्मच में आधा चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से शीघ्र ही चातुर्थिक ज्वर का आना रुक जाता है। इसका प्रयोग बराबर 15 दिन तक करना चाहिए।
*फेफड़ों के शोथ एवं कफज कास श्वास के साथ यदि ज्वर हो तो इसकी जड़ की छाल अथवा पत्तों का या पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का 10 या 20 मिलीलीटर रस में बराबर शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है।
*10 से 20 ग्राम अगस्त की जड़ की छाल पान के साथ या उसके रस को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
*अगस्त की जड़ की छाल के 2 ग्राम महीन चूर्ण को पान के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से भी कफज कास श्वास के साथ ज्वर में लाभ होता है।"

18 मूर्च्छा :- केवल अगस्त के पत्ते के रस की 4 बूंदे नाक में टपका दने से ही मूर्च्छा दूर हो जाती है।

19 बच्चों के रोग में :- अगस्त के पत्तों के रस को लगभग 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से 2-4 दस्त होकर बच्चों के सब विकार शांत हो जाते हैं।

20 खून के बहने पर (रक्तस्राव) :- अगस्त के फूलों का शाक खाने से लाभ होता है।

21 कनीनिका की सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से
आंखों के रोगों में पूरा लाभ होता है।

22 निमोनिया :- अगस्त की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने से या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकलने लगता है और पसीना निकलना शुरू हो जाता जिसके फलस्वरूप बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।

23 नखटन्ड:- 14 मिलीलीटर अगस्त के पत्तों का रस या इसका 12 से 24 ग्राम कल्क (लई) को 10 ग्राम घी में भूनकर दिन में 2 बार लेना चाहिए।

24 रोशनी से डरना :- अगस्त के पत्तों का रस और फूलों के रस को नाक मे डालने से रोशनी से डरने के रोग में आराम आता है।

25 सब्ज मोतियाबिंद :- आंखों की रोशनी कमजोर होने पर या आंखों से दिखाई न देने पर अगस्त के फूलों का रस रोजाना दो से तीन बार आंखों में डालने से काफी आराम आता है।

26 उपतारा सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों के रस को नाक में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।

27 मासिकधर्म बंद होना (नष्टार्तव) :- अगस्त के फूलों की सब्जी बनाकर खाने से रुकी हुई माहवारी पुन: शुरू हो जाती है।

28 अम्लपित्त होने पर :- अगस्त की छाल 60 ग्राम को एक लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। जब पानी 250 ग्राम बच जायें, तब इस काढ़े को छानकर 2 ग्राम की मात्रा में हींग मिलाकर 4 हिस्से करके दिन में 4 बार पिलाने से अम्लपित्त के होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।

29 दर्द व सूजन :- चोट, मोच की पीड़ा पर अगस्त के पत्तों का लेप करें। पूर्ण लाभ होगा।

30 नाक के रोग :- अगस्त के फूलों और पत्तों के रस को नाक में डालने से जुकाम में आराम आता है।

31 चेचक के लिए :- मसूरिका (चेचक) रोग में 40 ग्राम से 80 ग्राम तक अगस्त की छाल का फांट (घोल) रोगी को देने से लाभ होता है।
32 सिर का दर्द :- सिर में दर्द होने पर अगस्त के पत्तों और फूलों का रस सूंघने से सिर का दर्द खत्म होने के साथ ही साथ जुकाम भी ठीक हो जाता है

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