अगस्ता से उपचार:
परिचय :अगस्ता का वृक्ष बड़ा होता है। बगीचों और खुदाई की हुई जगहों में यह उगता है। अगस्ता की दो जातियां होती हैं। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के पत्ते इमली के पत्तों के समान होते हैं। अगस्ता के वृक्ष पर लगभग एक हाथ लम्बी और बोड़ा की मोटी फलियों की तरह फलियां लगती है। इनका शाक बनाया जाता है। फूल भी साग-सब्जी बनाने के काम में आता है। पत्तों का भी शाक बनाया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में नाम :
संस्कृत अगस्त्य, मुनिद्रुम।
हिंदी अगस्तिया, अगस्त।
बंगला बक।
गुजराती अगिस्थ्यों।
मराठी अगस्ता, अगस्था,अगसे िडा।
कनाड़ी अगसेयमरनु चोगची।
पंजाबी हथिया
तामिल अक्कं, अर्गति, अगति।
तैलिंगी अविसि, अवीसे।
मलयमल अगठी।
अंग्रेजी सेसबंस
लैटिन ऑगटि ग्लांडिफलोरा
रंग : अगस्ता के फूलों का रंग गुलाबी व सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
स्वभाव : अगस्ता की प्रकृति सर्द व खुश्क प्रकृति की होती है।
हानिकारक : अगस्ता का अधिक मात्रा में सेवन से पेट में गैस बनती है।
गुण : यह शीतल, मधुर और त्रिदोष (वात्, वित्त और कफ) नाशक होता है। खांसी, फुन्सियां, पिशाच-बाधा तथा चौथिया बुखार का नाश करता है।
विभिन्न रोगों में अगस्ता से उपचार:
1 शीत, मस्तक-शूल और चतुर्थिक ज्वर :- अगस्त के पत्तों के रस की बूंदे नाक में डालने से शीत, मस्तक दर्द और चौथिया के बुखार में आराम होगा।
2 आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) :- इस रोग में जिस ओर सिर में दर्द होता हो, उसके दूसरी तरफ की नाक में अगस्त के फूलों अथवा पत्तों की 2-3 बूंदे रस को टपकाने से तुरंत लाभ होता है। इससे कफ निकलकर आधाशीशी का नाश होता है।
3 कफ विकार:- लाल अगस्त की जड़ अथवा छाल का रस निकालकर शक्ति के अनुसार 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा का सेवन करें। यह औषधि यदि बालकों को देनी हो, तो केवल इसके पत्ते का 5 बूंद रस निकालकर शहद के साथ पिलायें। यदि दवा का असर अधिक हो, तो मिश्री को पानी में घोलकर पिलायें।
4 सूजन:- लाल अगस्त और धतूरे की जड़ को साथ-साथ गरम पानी में घिसकर उसका लेप करना चाहिए। इससे तुरंत ही सभी प्रकार की सूजन का नाश होता है।
5 जुकाम से नाक रुंघन एवं सिर दर्द:- अगस्त के पत्तों का दो बूंद रस नाक में टपकाना चाहिए।
6 मिर्गी:- *अगस्त के पत्तों का चूर्ण और कालीमिर्च के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी सुंघाने से लाभ होता है।
*यदि बालक छोटा हो तो इसके 2 पत्तों का रस और उसमें आधी मात्रा में कालीमिर्च मिलाकर उसमें रूई का फोया तरकर उसे नासारंध्र के पास रखने से ही अपस्मार (मिर्गी) शांत हो जाता है। "
7 प्रतिश्याय (जुकाम):- जुकाम के वेग से सिर बहुत भारी तथा दर्द हो तो अगस्त के पत्तों के रस की 2-4 बूंदे नाक में टपकाने से तथा इसकी जड़ का रस 10 से 20 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से कष्ट दूर हो जाता है।
8 आंखों के विकार :- *अगस्त के फूलों का रस 2-2 बूंद आंखों में डालने से आखों का धुंधलापन मिटता है।
*अगस्त के फूलों की सब्जी या शाक बनाकर सुबह-शाम खाने से रतौधी मिटती है।
*अगस्त के 250 ग्राम पत्तों को पीसकर 1 किलोग्राम घी में पकाकर 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
*अगस्ता के फूलों का मधु आंखों में डालने से धुंध या जाला मिटता है। फूल को तोड़ने से भीतर से 2-3 बूंद शहद निकलता है।
*अगस्त के पत्तों को घी में भूनकर खाने से और घी का सेवन करने से धुंध या जाला कटता है।"
9 चित्तविभ्रम :- अगस्त के पत्तों के रस में सोंठ, पीपर और गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 या 2 बूंद नाक में डालने से लाभ होता है।
10 स्वर भंग (आवाज के बैठने पर):- अगस्त की पत्तियों के काढ़े से गरारे करने से सूखी खांसी, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रुधिर (खून) के निकलने आदि रोगों में लाभ होता है।
11 उदर शूल (पेट दर्द) :- अगस्त की छाल के 20 ग्राम काढ़े में सेंधानमक और भुनी हुई 20 लौंग मिलाकर सुबह-शाम पीने से 3 दिन में पुराने से पुराने उदर विकार और शूल नष्ट हो जाते हैं।
12 कब्ज:- अगस्त के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर, 100 मिलीलीटर शेष रहने पर 10-20 मिलीलीटर काढ़े को पिलाने से कब्ज मिटती है।
13 श्वेत प्रदर :- अगस्त की ताजी छाल को कूटकर इसके रस में कपड़े को भिगोकर योनि में रखने से श्वेत प्रदर और खुजली में लाभ होता है।
14 जोड़ों के दर्द :- धतूरे की जड़ और अगस्त की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस जैसा बनाकर दर्दयुक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है। सूजन उतर जाती है। कम वेदना में लाल अगस्त की जड़ को पीसकर लेप करें।
15 वातरक्त :- अगस्त के सूखे फूलों का 100 ग्राम महीन चूर्ण भैंस के 1 किलो दूध में डालकर दही जमा दें, दूसरे दिन मक्खन निकालकर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
16 बुद्धि (दिमाग) को बढ़ाने वाला :- अगस्त के बीजों का चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक गाय के ताजे 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम कुछ दिन तक खाने से स्मरण शक्ति तेज हो जाती है।
17 ज्वर (बुखार) होने पर :- *अगस्त के फूलों या पत्तों का रस सुंघाने से चातुर्थिक ज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) और बंधे हुए जुकाम में लाभ होता है
*अगस्त के पत्ते का रस 2 या 3 चम्मच में आधा चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से शीघ्र ही चातुर्थिक ज्वर का आना रुक जाता है। इसका प्रयोग बराबर 15 दिन तक करना चाहिए।
*फेफड़ों के शोथ एवं कफज कास श्वास के साथ यदि ज्वर हो तो इसकी जड़ की छाल अथवा पत्तों का या पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का 10 या 20 मिलीलीटर रस में बराबर शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है।
*10 से 20 ग्राम अगस्त की जड़ की छाल पान के साथ या उसके रस को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
*अगस्त की जड़ की छाल के 2 ग्राम महीन चूर्ण को पान के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से भी कफज कास श्वास के साथ ज्वर में लाभ होता है।"
18 मूर्च्छा :- केवल अगस्त के पत्ते के रस की 4 बूंदे नाक में टपका दने से ही मूर्च्छा दूर हो जाती है।
19 बच्चों के रोग में :- अगस्त के पत्तों के रस को लगभग 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से 2-4 दस्त होकर बच्चों के सब विकार शांत हो जाते हैं।
20 खून के बहने पर (रक्तस्राव) :- अगस्त के फूलों का शाक खाने से लाभ होता है।
21 कनीनिका की सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से
आंखों के रोगों में पूरा लाभ होता है।
22 निमोनिया :- अगस्त की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने से या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकलने लगता है और पसीना निकलना शुरू हो जाता जिसके फलस्वरूप बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।
23 नखटन्ड:- 14 मिलीलीटर अगस्त के पत्तों का रस या इसका 12 से 24 ग्राम कल्क (लई) को 10 ग्राम घी में भूनकर दिन में 2 बार लेना चाहिए।
24 रोशनी से डरना :- अगस्त के पत्तों का रस और फूलों के रस को नाक मे डालने से रोशनी से डरने के रोग में आराम आता है।
25 सब्ज मोतियाबिंद :- आंखों की रोशनी कमजोर होने पर या आंखों से दिखाई न देने पर अगस्त के फूलों का रस रोजाना दो से तीन बार आंखों में डालने से काफी आराम आता है।
26 उपतारा सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों के रस को नाक में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।
27 मासिकधर्म बंद होना (नष्टार्तव) :- अगस्त के फूलों की सब्जी बनाकर खाने से रुकी हुई माहवारी पुन: शुरू हो जाती है।
28 अम्लपित्त होने पर :- अगस्त की छाल 60 ग्राम को एक लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। जब पानी 250 ग्राम बच जायें, तब इस काढ़े को छानकर 2 ग्राम की मात्रा में हींग मिलाकर 4 हिस्से करके दिन में 4 बार पिलाने से अम्लपित्त के होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।
29 दर्द व सूजन :- चोट, मोच की पीड़ा पर अगस्त के पत्तों का लेप करें। पूर्ण लाभ होगा।
30 नाक के रोग :- अगस्त के फूलों और पत्तों के रस को नाक में डालने से जुकाम में आराम आता है।
31 चेचक के लिए :- मसूरिका (चेचक) रोग में 40 ग्राम से 80 ग्राम तक अगस्त की छाल का फांट (घोल) रोगी को देने से लाभ होता है।
परिचय :अगस्ता का वृक्ष बड़ा होता है। बगीचों और खुदाई की हुई जगहों में यह उगता है। अगस्ता की दो जातियां होती हैं। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के पत्ते इमली के पत्तों के समान होते हैं। अगस्ता के वृक्ष पर लगभग एक हाथ लम्बी और बोड़ा की मोटी फलियों की तरह फलियां लगती है। इनका शाक बनाया जाता है। फूल भी साग-सब्जी बनाने के काम में आता है। पत्तों का भी शाक बनाया जाता है।
विभिन्न भाषाओ में नाम :
संस्कृत अगस्त्य, मुनिद्रुम।
हिंदी अगस्तिया, अगस्त।
बंगला बक।
गुजराती अगिस्थ्यों।
मराठी अगस्ता, अगस्था,अगसे िडा।
कनाड़ी अगसेयमरनु चोगची।
पंजाबी हथिया
तामिल अक्कं, अर्गति, अगति।
तैलिंगी अविसि, अवीसे।
मलयमल अगठी।
अंग्रेजी सेसबंस
लैटिन ऑगटि ग्लांडिफलोरा
रंग : अगस्ता के फूलों का रंग गुलाबी व सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
स्वभाव : अगस्ता की प्रकृति सर्द व खुश्क प्रकृति की होती है।
हानिकारक : अगस्ता का अधिक मात्रा में सेवन से पेट में गैस बनती है।
गुण : यह शीतल, मधुर और त्रिदोष (वात्, वित्त और कफ) नाशक होता है। खांसी, फुन्सियां, पिशाच-बाधा तथा चौथिया बुखार का नाश करता है।
विभिन्न रोगों में अगस्ता से उपचार:
1 शीत, मस्तक-शूल और चतुर्थिक ज्वर :- अगस्त के पत्तों के रस की बूंदे नाक में डालने से शीत, मस्तक दर्द और चौथिया के बुखार में आराम होगा।
2 आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) :- इस रोग में जिस ओर सिर में दर्द होता हो, उसके दूसरी तरफ की नाक में अगस्त के फूलों अथवा पत्तों की 2-3 बूंदे रस को टपकाने से तुरंत लाभ होता है। इससे कफ निकलकर आधाशीशी का नाश होता है।
3 कफ विकार:- लाल अगस्त की जड़ अथवा छाल का रस निकालकर शक्ति के अनुसार 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा का सेवन करें। यह औषधि यदि बालकों को देनी हो, तो केवल इसके पत्ते का 5 बूंद रस निकालकर शहद के साथ पिलायें। यदि दवा का असर अधिक हो, तो मिश्री को पानी में घोलकर पिलायें।
4 सूजन:- लाल अगस्त और धतूरे की जड़ को साथ-साथ गरम पानी में घिसकर उसका लेप करना चाहिए। इससे तुरंत ही सभी प्रकार की सूजन का नाश होता है।
5 जुकाम से नाक रुंघन एवं सिर दर्द:- अगस्त के पत्तों का दो बूंद रस नाक में टपकाना चाहिए।
6 मिर्गी:- *अगस्त के पत्तों का चूर्ण और कालीमिर्च के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी सुंघाने से लाभ होता है।
*यदि बालक छोटा हो तो इसके 2 पत्तों का रस और उसमें आधी मात्रा में कालीमिर्च मिलाकर उसमें रूई का फोया तरकर उसे नासारंध्र के पास रखने से ही अपस्मार (मिर्गी) शांत हो जाता है। "
7 प्रतिश्याय (जुकाम):- जुकाम के वेग से सिर बहुत भारी तथा दर्द हो तो अगस्त के पत्तों के रस की 2-4 बूंदे नाक में टपकाने से तथा इसकी जड़ का रस 10 से 20 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से कष्ट दूर हो जाता है।
8 आंखों के विकार :- *अगस्त के फूलों का रस 2-2 बूंद आंखों में डालने से आखों का धुंधलापन मिटता है।
*अगस्त के फूलों की सब्जी या शाक बनाकर सुबह-शाम खाने से रतौधी मिटती है।
*अगस्त के 250 ग्राम पत्तों को पीसकर 1 किलोग्राम घी में पकाकर 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
*अगस्ता के फूलों का मधु आंखों में डालने से धुंध या जाला मिटता है। फूल को तोड़ने से भीतर से 2-3 बूंद शहद निकलता है।
*अगस्त के पत्तों को घी में भूनकर खाने से और घी का सेवन करने से धुंध या जाला कटता है।"
9 चित्तविभ्रम :- अगस्त के पत्तों के रस में सोंठ, पीपर और गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 या 2 बूंद नाक में डालने से लाभ होता है।
10 स्वर भंग (आवाज के बैठने पर):- अगस्त की पत्तियों के काढ़े से गरारे करने से सूखी खांसी, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रुधिर (खून) के निकलने आदि रोगों में लाभ होता है।
11 उदर शूल (पेट दर्द) :- अगस्त की छाल के 20 ग्राम काढ़े में सेंधानमक और भुनी हुई 20 लौंग मिलाकर सुबह-शाम पीने से 3 दिन में पुराने से पुराने उदर विकार और शूल नष्ट हो जाते हैं।
12 कब्ज:- अगस्त के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर, 100 मिलीलीटर शेष रहने पर 10-20 मिलीलीटर काढ़े को पिलाने से कब्ज मिटती है।
13 श्वेत प्रदर :- अगस्त की ताजी छाल को कूटकर इसके रस में कपड़े को भिगोकर योनि में रखने से श्वेत प्रदर और खुजली में लाभ होता है।
14 जोड़ों के दर्द :- धतूरे की जड़ और अगस्त की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस जैसा बनाकर दर्दयुक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है। सूजन उतर जाती है। कम वेदना में लाल अगस्त की जड़ को पीसकर लेप करें।
15 वातरक्त :- अगस्त के सूखे फूलों का 100 ग्राम महीन चूर्ण भैंस के 1 किलो दूध में डालकर दही जमा दें, दूसरे दिन मक्खन निकालकर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
16 बुद्धि (दिमाग) को बढ़ाने वाला :- अगस्त के बीजों का चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक गाय के ताजे 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम कुछ दिन तक खाने से स्मरण शक्ति तेज हो जाती है।
17 ज्वर (बुखार) होने पर :- *अगस्त के फूलों या पत्तों का रस सुंघाने से चातुर्थिक ज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) और बंधे हुए जुकाम में लाभ होता है
*अगस्त के पत्ते का रस 2 या 3 चम्मच में आधा चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से शीघ्र ही चातुर्थिक ज्वर का आना रुक जाता है। इसका प्रयोग बराबर 15 दिन तक करना चाहिए।
*फेफड़ों के शोथ एवं कफज कास श्वास के साथ यदि ज्वर हो तो इसकी जड़ की छाल अथवा पत्तों का या पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का 10 या 20 मिलीलीटर रस में बराबर शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है।
*10 से 20 ग्राम अगस्त की जड़ की छाल पान के साथ या उसके रस को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
*अगस्त की जड़ की छाल के 2 ग्राम महीन चूर्ण को पान के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से भी कफज कास श्वास के साथ ज्वर में लाभ होता है।"
18 मूर्च्छा :- केवल अगस्त के पत्ते के रस की 4 बूंदे नाक में टपका दने से ही मूर्च्छा दूर हो जाती है।
19 बच्चों के रोग में :- अगस्त के पत्तों के रस को लगभग 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से 2-4 दस्त होकर बच्चों के सब विकार शांत हो जाते हैं।
20 खून के बहने पर (रक्तस्राव) :- अगस्त के फूलों का शाक खाने से लाभ होता है।
21 कनीनिका की सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से
आंखों के रोगों में पूरा लाभ होता है।
22 निमोनिया :- अगस्त की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने से या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकलने लगता है और पसीना निकलना शुरू हो जाता जिसके फलस्वरूप बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।
23 नखटन्ड:- 14 मिलीलीटर अगस्त के पत्तों का रस या इसका 12 से 24 ग्राम कल्क (लई) को 10 ग्राम घी में भूनकर दिन में 2 बार लेना चाहिए।
24 रोशनी से डरना :- अगस्त के पत्तों का रस और फूलों के रस को नाक मे डालने से रोशनी से डरने के रोग में आराम आता है।
25 सब्ज मोतियाबिंद :- आंखों की रोशनी कमजोर होने पर या आंखों से दिखाई न देने पर अगस्त के फूलों का रस रोजाना दो से तीन बार आंखों में डालने से काफी आराम आता है।
26 उपतारा सूजन :- अगस्त के फूल और पत्तों के रस को नाक में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।
27 मासिकधर्म बंद होना (नष्टार्तव) :- अगस्त के फूलों की सब्जी बनाकर खाने से रुकी हुई माहवारी पुन: शुरू हो जाती है।
28 अम्लपित्त होने पर :- अगस्त की छाल 60 ग्राम को एक लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। जब पानी 250 ग्राम बच जायें, तब इस काढ़े को छानकर 2 ग्राम की मात्रा में हींग मिलाकर 4 हिस्से करके दिन में 4 बार पिलाने से अम्लपित्त के होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।
29 दर्द व सूजन :- चोट, मोच की पीड़ा पर अगस्त के पत्तों का लेप करें। पूर्ण लाभ होगा।
30 नाक के रोग :- अगस्त के फूलों और पत्तों के रस को नाक में डालने से जुकाम में आराम आता है।
31 चेचक के लिए :- मसूरिका (चेचक) रोग में 40 ग्राम से 80 ग्राम तक अगस्त की छाल का फांट (घोल) रोगी को देने से लाभ होता है।
32 सिर का दर्द :- सिर में दर्द होने पर अगस्त के पत्तों और फूलों का रस सूंघने से सिर का दर्द खत्म होने के साथ ही साथ जुकाम भी ठीक हो जाता है
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