सुख-दुःख का सम्बन्ध सन्तान से नहीं
एक बुजुर्ग आदमी स्टेशन पर गाड़ी में चाय बेचता है।गाड़ी में चाय बेच कर वह अपनी झोपड़ी में चला गया। झोपड़ी में जा कर अपनी बुजुर्ग पत्नी से कहा कि दूसरी ट्रेन आने से पहले एक और केतली चाय की बना दो।दोनों बहुत बुजुर्ग हैं। आदमी बोला कि काश हमारी कोई औलाद होती, तो वह हमें इस बुढ़ापे में कमा कर खिलाती, औलाद न होने के कारण हमें इस बुढ़ापे में भी काम करना पड़ रहा है। उसकी पत्नी की आँखों में आँसू आ गए।उसने चाय की केतली भर कर अपने पति को दे दी।
बुजुर्ग आदमी चाय की केतली ले कर वापिस स्टेशन पर गया। उसने वहाँ प्लेटफॉर्म पर एक बुजुर्ग दम्पती को सुबह से लेकर शाम तक बेंच पर बैठे देखा। वे दोनों किसी भी गाड़ी में चढ़ नहीं रहे थे। तब वह चाय वाला बुजुर्ग उन दोनों के पास गया और उन से पूछने लगा कि आप ने कौन सी गाड़ी से जाना है? मैं आप को बता दूँगा कि आप की गाड़ी कब और कहाँ आएगी?
तब वह बुजुर्ग दम्पती बोले कि हमें कहीं नहीं जाना है।हमें हमारे छोटे बेटे ने यहाँ एक चिट्ठी दे कर भेजा है और कहा है कि हमारा बड़ा बेटा हमें लेने स्टेशन आएगा और अगर बड़ा बेटा ना पहुँचे तो इस चिट्ठी में जो पता है, वहाँ आप पहुँच जाना।हमें तो पढ़ना लिखना आता नहीं है, आप हमें बस यह चिट्ठी पढ़ कर यह बता दो कि यह पता कहाँ का है, ताकि हम लोग अपने बड़े बेटे के पास पहुँच जायें।
चाय वाले ने जब वह चिट्ठी पढ़ी वह वही जमीन पर गिर पड़ा। उस चिट्ठी में लिखा था कि ये मेरे माता पिता हैं, जो इस चिट्ठी को पढ़े वह इनको पास के किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आये।
चाय वाले ने सोचा था कि मैं बेऔलाद हूँ, इसलिए बुढ़ापे में काम कर रहा हूँ, अगर औलाद होती तो काम न करना पड़ता।इस बुजुर्ग दम्पती के दो बेटे हैं, पर कोई भी बेटा इनको रखने को तैयार नहीं है।
बाबा नंद सिंह जी संगत को यह घटना सुनाते थे और संगत से पूछते थे कि बताओ औलाद होनी चाहिए या नहीं। सुख-दुःख तो अपने कर्मों के अनुसार मिलता है, न कोई औलाद सुख देती है न कोई औलाद दुःख देती है। सुख और दुःख का औलाद से कोई कनेक्शन नहीं है।ये हमारी ग़लतफ़हमी है।
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 21 अगस्त 2021
सुख-दुःख का सम्बन्ध सन्तान से नहीं
शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
किसी के लोन गारंटर बनने जा रहे हैं तो पहले आपको कुछ जरूरी बातों का पता होना चाहिए.
श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार - वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि
यह सिर्फ भाई बहन का ही त्योहार नही जो बल्कि जो जिससे रक्षा अपेक्षा या याचना अपेक्षा रखता उसे रक्षा सूत्र बांध सकता है। अपने आराध्य को भी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है ।
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। अनन्तर भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने के पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
इसी तरह कथा में विष्णु को सुतल से लाने लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध वर में भगवान विष्णु को पुनः प्राप्त किया ।
प्राचीन काल में रक्षा बंधन भाई बहन का त्योहार था ही नही शास्त्रो में इसका कोई मन्त्र कथा नही है । मुगल काल मे जेहादी तालिबान से अपनी बहनों की रक्षा लिए यह प्रथा प्राम्भ हुई ।
रक्षा सूत्र बांधने का जो प्रचलित मंत्र है उसमें भी इसी घटना का उल्लेख है। आइए जानते हैं क्या है रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र…
प्राचीन समय में पुरोहित अपने यजमान के कल्याण हेतु उसके दाहिने हाथ में एक पवित्र धागा (सूत्र) बांधते थे जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता था। युद्ध से पूर्व रक्षासूत्र रूप में एक राजा अन्य राजा को भी रक्षा सूत्र और पाती भेजते थे जो कि हाथ मे बांध युद्ध में साथ देने लिए आते। यह एक दुसरे की रक्षा भाव की समृद्ध परंपरा आज भी उसी रूप में चली आ रही है। पुरोहित और यजमान भी एक दूजे को रक्षा सूत्र बांध सकते है ।
गुरु-शिष्य और मित्र के द्वारा भी अपने शिष्य व मित्र को रक्षा सूत्र बाँधने की परंपरा है। संघ की शाखाओ में स्मययं सेवक परम् गुरु स्वरूप ध्वज को और सहसंघी स्वयं सेवक स्वयं सेवको को रक्षा सूत्र बांधते है। इसी तरह
अपने ईष्ट को भी रक्षा सूत्र का महत्व है। कई जगह पुजारी व पुरुष भी दुर्गा देवी के रूप को रक्षा सूत्र बांधते है। मन्दिरो में अपने आराध्य को भी रक्षा सुत्र बंधने की परंपरा चली आ रही है।
रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र
रक्षा सूत्र बाँधते समय पुरोहित एक विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं जो इस प्रकार है-
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षा सूत्र के इस पवित्र मंत्र का अर्थ
दानवीर, महाबली राजा बलि जिस (रक्षा सूत्र) से बंध गए थे उसी से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ। फिर रक्षा सूत्र को संबोधित करते हुए- हे रक्षा! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।
अर्थात् जिस प्रकार भगवान वामन ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें भी इस रक्षासूत्र रूपी धर्म-बंधन में बाँधता हूँ। हे रक्षा! तुम स्थिर रहो।
सारत: इस मंत्र का भाव यही है कि जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है वह अपने धर्म में स्थिर रहे और दैवी शक्तियाँ उसकी रक्षा करें।
रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं। समान्यतः ऐसा माना जाता है कि भाई को रक्षासूत्र बांधकर बहनें अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।
यह बात तो निश्चय ही सत्य है किंतु इसके साथ हम रक्षासूत्र के इतिहास पर दृष्टि डालें तो रक्षाबंधन का एक उद्देश्य यह भी ज्ञात होता है कि बहन रक्षा सूत्र बाँधकर भाई को कर्त्तव्यपालन की याद दिलाती हैं तथा उसके सुख, शांति, दीर्घायु व कल्याण की कामना करती हैं।
गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी में भी रक्षाबंधन का प्रचलन अनेक स्थानों पर है। पत्नी अपने पति के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधकर उनके धर्मपथ पर चलने की कामना करती है और पति अपने गर्हस्थ के सम्यक् निर्वहन का वचन देता है।
पुराण शास्त्रो में
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था।
भागवत, देवी भावत, भविष्य पुराण आदि में इस सम्बंध में कथा है कि
12 वर्ष तक देव दानव युद्ध चलता रहा लेकिन देवता विजयी नही हो रहे थे । हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने। तब गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किरे और देव राज इंद्र को रक्षा सूत्र बांध दिए।
इंद्राणी शचि ने जिस दिन इंद्र की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन अपने पति की कलाई में रक्षासूत्र बांध सकती है।
इसीतरह वामन अवतार और राजा बलि की कथा है
भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया।
पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा?
तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उससे भाई बना कर भगवान विष्णु को वरदान में वापस ले लेवे। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने अपने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र से देवी लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।
रक्षासूत्र (कलावा) पुरुषों के दाहिने हाथ में, महिलाओं के बाएँ हाथ में तथा अविवाहित बालिकाओं के भी दाहिने हाथ में बांधने का विधान है। कहीं-कहीं इसे गले और कमर में बाँधने की परंपरा है।
रक्षा सूत्र लिए किसी विशेष राखी का भी प्रावधान नही है । एक सुत का धागा भी काफी है किंतु भाव पूर्ण हो । सूती धागे की बनी मोली भी उत्तम मानी गई है।
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत्।
स सर्वदोष रहित सुखी सम्वत्सरे भवेत्॥
अर्थात् जो लोग इस प्रकार विधिपूर्वक रक्षाबंधन का आयोजन करते हैं वे संवत्सर पर्यन्त सभी दोषों से रहित होकर सुखी होते हैं।
इस वर्ष 2021 का रक्षाबन्धन रविवार 22 अगस्त को है
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
कपालभाति के कई विशेष लाभ भी हैं
कुदरती खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ
बुधवार, 18 अगस्त 2021
अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान ?
मंगलवार, 17 अगस्त 2021
साईं शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी से है, जिसका अर्थ फ़कीर होता है।
सोमवार, 16 अगस्त 2021
मछ मणि किसे और कब धारण करनी चाहिए
मछ मणि किसे और कब धारण करनी चाहिए, और इसके क्या लाभ व नुकसान हो सकते हैं?
मित्रों मच्छमनी अत्यंत दुर्लभ मणि है और यह बहुत कम मात्रा में लोगों द्वारा पाई जाती है लोगों का यह मानना है की यह श्री लंका के समुद्र में एकदम नीचे तल में रहने वाली मछलियों के पेट से पाई जाती है ।
पूर्णिमा के रात को यह मछली समुद्र के तट पर तैरती है, इस समय वहां के मछुआरे वहां की मछलियों को पकड़ लेते हैं और अपने जानकारी के अनुसार जिन मछली में उन्हें ऐसा लगता है की इनमें मछमनी मिल जाएगी उसे पकड़ कर उसके पेट को दबाते हैं पेट को दबाते ही मच्छमनी बाहर निकाल जाती है और उसके बाद मछुआरे उन मछलियों को समुद्र में वापस छोड़ देते हैं ।
ज्योतिषों की माने तो यदि आप राहु ग्रह से परेशान हैं तो आपको मच्छमनी धारण करना चाहिए इससे अच्छा दूसरा कोई उपाय उपलब्ध नहीं है।
मछमणि किसे और कब धारण करना चाहिए ?
राहु मकर राशि का स्वामी है इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि मच्छमणि मकर राशि वालों के लिए अत्यंत लाभदायक है इसके अलावा तुला, मिथुन, वृष या कुंभ राशि वालों के लिए भी मच्छमणि अत्यंत लाभकारी है। यदि राहु दूसरे, तीसरे, नौवें या ग्यारहवें भाव में हो तो मच्छमनी धारण करना जातक के लिए लाभकारी है इसके अलावा राहु यदि केंद्र में एक, चार, सात या दसवें भाव में हो तो मच्छमनी पहनना उसके लिए अत्यंत लाभकारी है। इस मणि को धारण करने से पूर्व ॐ रां राहवे नम: का 1 माला (108 बार) जाप करना चाहिए ।
मच्छमणि धारण करने के चमत्कारी फायदे ?
मित्रों मच्छमणि एक दुर्लभ व चमत्कारी रत्न है इसलिए इसे धारण करने के भी अत्यंत लाभकारी फायदे हैं —
यदि आप पर राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही है और आप उसकी पीड़ा से बचाव हेतु यदि कुछ धारण करना चाहते हैं तो आपको मच्छमनी ही धारण करना चाहिए इससे अच्छा दूसरा कोई विकल्प नहीं हैं ।
वे लोग जो राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं या ऐसे लोग जो सफल होना चाहते हैं उन लोगों के लिए मच्छमणि अत्यधिक लाभकारी है।
ऐसे लोग जो अपने जीवन को ऐश्वर्य के साथ जीना चाहते हैं जो ये सोचते हैं की उन्हें बिलकुल भी धन की कमी न हो लेकिन धन की कमी होने के कारण आपके सपने अधूरे रह जाते हैं तो ऐसी स्तिथि में आपको मच्छमणि अवस्य धारण करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति काल सर्प दोष से परेशान है जीवन में अनेकों परेशानियां हैं, मानसिक और आर्थिक परेशानियां लगातार सता रहीं है और यदि आप काल सर्प दोष के कष्टों का निवारण चाहते हैं तो आपको मच्छमनी अवश्य धारण करना चाहिए ।
मच्छमणि शत्रुओं से हमें बचाता है और हमारे मनोबल में वृद्धि करता है यदि किसी व्यक्ति को या बच्चे को अपने घर में या किसी कोने में अनजान छाया दिखाई दे तो उसे मच्छमणि धारण करना चाहिए ।
शरीर में थकावट, नजरदोष, ऊपरी बाधा, गुरु चांडाल दोष, व्यापार में बाधा आदि दूर करने हेतु मच्छमणि धारण अवश्य धारण करना चाहिए।
ओरिजनल लैब प्रमाणित मच्छमणि कहां से खरीदें ?
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हैमरहेड कीड़ा है सबसे क्रूर
यह हैमरहेड कीड़ा है, एक पतला, साँप के आकार का कीड़ा।
देखिये यह कीड़ा कैसे चलता है:
ये कीड़े एक आक्रामक प्रजाति हैं। वे केंचुआ खाते हैं। केंचुआ खाने के लिए वे अपने शरीर को केंचुए के ऊपर लपेट देते हैं। अंत में वे केंचुए के बेजान शरीर से सब कुछ चूस लेते हैं। अब यह कीड़े अमेरिका और यूरोप में बढ़ते जा रहे हैं।
हैमरहेड कीड़ा खुद को दो हिस्सों में काटकर प्रजनन करता है। कभी-कभी वे खुद के शरीर को भी खाते हैं। वैसे तो एशिया में यह नहीं है, फिर भी अगर आपको कभी यह कीड़ा दिखाई दे तो उसे मारने के लिए उस पर नमक डालें। ध्यान रहे, इसे काटें नहीं! क्योंकि इसे काटने का अर्थ है एक कीड़े से दो कीड़े बनाना!
भगवान शिव के गण नंदी का रहस्य
शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे। नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से उन ऋषियों की उन्होंने अच्छे से सेवा की। जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं।
तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने जानकर पूछा क्या बात है पिताजी। तब पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में ऋषि कह गए हैं इसीलिए मैं चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं।
इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेष भी है ।
जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है।
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