गजनी वह स्थान है, जहां से कभी राजपूत पूरे विश्व का नेतृत्व किया करते थे । गजनी खुरासान से ही ईरान से लेकर यूरोप तक का मार्ग प्रशस्त होता है । अतः चारो दिशाओ का नेतृत्व वहीं से किया जा सकता है ।
लगभग 3000 साल पहले कृष्ण के वंशज यदुवंशी राजपूतो ने यहां से लगभग पूरे विश्व को अपने नियंत्रण में ले लिया था । वहां से इनका शाशन यमुना उर्फ दिल्ली तक आता था ।
इसका उदारहण आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ, जडेजा राजपूत जो खुद को कृष्ण का वंशज मानते है । कृष्ण के श्यामल वर्ण के होने के कारण यह लोग खुद को सामपुत्र भी कहते है । इन्ही जडेजा लोगो का शाशन सीरिया तक था । सीरिया आज के जितना छोटा नही था । इसका क्षेत्रफल बहुत विशाल हुआ करता था । जिसके लगभग आधा अरब और यूरोप समा जाता है । सीरिया के पुराना नाम " साम " ही है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मुसलमानो की " गजवा- ऐ - साम " की हदीस है । गजवा भी हिन्दू नाम है, ओर साम तो सामपुत्रो का नाम ही है । अर्थात कृष्ण के पुत्रों के विरुद्ध जिहाद ।
इस क्षेत्र पर सबसे पहले शाशन यदुभान ने आकर स्थापित किया , जिसका विवरण पुराणों में भी मिलता है। उस समय असीरिया में ग्रहयुद्ध चल रहा था, जहां यदुभान नाम के साधारण से राजपूत ने अपनी समझ बुझ से शांति की स्थापना की ओर लोगो ने उन्हें वहां का राजा घोषित कर दिया ।
उसके बाद उनके पुत्र नाभ वहां गद्दी पर बेठे । जिसने मालवा के विजयसिंहः की पुत्री से विवाह किया था । उनके पुत्र बाहुबल हुए, जिनकी घोड़े से गिरने के कारण अकस्मात मृत्यु हो गयी । नाभ के बाद सुभाहु गद्दी पर बैठे । यहां तक शांति ही शांति थी । सुबाहु के बाद उनके पुत्र " रिज " गद्दी पर बैठे । #ध्यान_रहे - यह सारा शाशन अफगानिस्तान से अरब की ओर शाशन कर रहा है । आज भी मुसलमानो ने रिजवान नाम बड़ी श्रद्धा से रखा जाता है, रिज एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ सूर्य के समान महान उदय है । उसी रिज से अंग्रेजो का राइजिंग बना है, जिसका अर्थ भी उदय ही है । और जैसे हम हिन्दू गुणवान, धनवान आदि लगाते है, मुसलमान रिजवान लगाने लगे । अतः रिजवान नाम हिन्दुओ का ही है ।
रिज का विवाह मालवा की राजकुमारी सौभाग्य देवी से हुआ । सौभाग्य देवी जब गर्भवती थी, तो उन्हें स्वपन आया कि उन्होंने एक हांथी को जन्म दिया है । जब ज्योतिषी से इस स्वप्न का तातपर्य पूछा तो उन्होंने कहा, की तुम हाथी के समान एक अत्यंत बलशाली ओर प्रतापी पुत्र को जन्म देने वाली हो । इसी आधार पर उनका नाम "गज " रखा गया । उन्ही के नाम से गजनी नाम भी पड़ा ।
गज के शाशन काल मे ही मुसलमानो की मल्लेछ सेना ने गजनी पर आक्रमण की शुरुवात कर दी थी । चार लाख की सेना के साथ फरीदशाह ने गजनी पर आक्रमण किया । यह सब अरबी भेड़ें थी । भारत की जनता इस आक्रमण की खबर से घबराकर चारो ओर भाग रही थी । लेकिन महाराज गज ने अपनी सेना एकत्र कर सामने से जाकर मल्लेछो पर धावा बोला, मुसलमानो के 3 लाख सैनिक युद्ध मे मारे गए, ओर हिन्दू राजपूत की तरफ से मारे गए सैनिको की संख्या मात्र 4000 थी ।
इस युद्ध के बाद ही महाराज गज ने अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने के लिए एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया । जिसका नाम " गजनी " रखा गया । इस दुर्ग के निर्माण होते होते ही मल्लेछो ने एक बार फिर आक्रमण कर दिया । यह बड़ा भयंकर युद्ध था । तलवारों ओर घोड़े की तापो के अलावा कुछ सुनाई न पड़ता था । राजपूतो की तलवारों से पल भर में सैंकड़ो सिर भूमि पर गिर रहे थे । इस युद्ध मे सेनापति खुरासान सहित ढाई लाख मुसलमान मारे गए । सात हजार राजपूतो ने वीरगति प्राप्त की ।
राजा गज के बाद साहिलवान वहां की गद्दी पर बैठे । राजा गज जब अपने वर्णाश्रम में तपस्या में लीन थे, तो उनके कुलदेवी की आकाशवाणी हुई, की गजनी अब तुम लोगो के शाशन से बाहर होने वाला है, आने वाले हजारो वर्षो तक यहां मल्लेछो का शाषन रहेगा ।
किन्तु एक समय ऐसा आएगा ..... तुम्हारे ही वंशज यहां आकर फिर से अपना शाशन स्थापित करेंगे .... ओर पूरे विश्व का नेतृत्व करेंगे ।
गजनी वास्तव में राजपूतो के हाथ से निकल गया ..... लेकिन दूसरी भविष्यवाणी अभी पूरी होनी शेष है ......