यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

सुख, शान्ति व सफलता के लिये.- वास्तु दीप.


एक कांच या चीनी मिट्टी का लगभग 5" 6" इंच व्यास का एक सुन्दर कटोरा लें और उसे आधे से कुछ अधिक पानी से भरदें । अब इसमें कांच का एक गिलास उल्टा करके इस प्रकार से रख दें कि वह छोटे दीपक के लिये एक स्टेन्ड सा बन जावे और फिर उसके उपर एक छोटा कटोरा कांच का लेकर उसमें घी, तेल या मोम अपनी सामर्थ्य अनुसार भर कर उसमें रुई की सामान्य बत्ती बनाकर लगा दें । कांच की कुछ गोटियां (बच्चों के खेलने की) इस पानी में डाल दे .एक्वेरियम में डालने वाले कुछ रंगीन पत्थर इसमें डाल दें और अन्त में गुलाब फूल की कुछ पंखुडियां भी इस पानी में डालकर सूर्यास्त के बाद इस दीपक को प्रज्जवलित कर अपने घर के बैठक के कमरे में दक्षिण पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) में रख दें । यदि इस क्षेत्र में इसे रखने में कुछ असुविधा लग रही हो तो वैकल्पिक स्थान के रुप में आप इसे दक्षिण दिशा में भी रख सकते हैं । यदि घर में विवाह योग्य कन्या हो और उसके विवाह में किसी भी प्रकार की अडचन आ रही हो तो इस दीपक को आप उस कन्या के कमरे में इसी दिशा में रख सकते हैं । मान्यता यह भी है कि इस उपाय से कन्या के विवाह में आ रही बाधाएँ भी दूर हो जाती हैं ।

हमारा शरीर जिन पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, काष्ठ, धातु और अग्नि) से निर्मित है उन्हीं पंचत्तवों का सन्तुलन इस दीपक के द्वारा हमारे घर-परिवार में कायम रहता है और इसी सामंजस्य से जीवन में नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता बनी रहती है जो हमारे शान्तिपूर्ण, सुखी व समृद्ध जीवन में मददगार साबित होती है ।

प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद जलाये जाने वाले इस दीपक को आप सोने के पूर्व बन्द भी कर दें और कटोरा रात भर वहीं रखा रहने दें । सुबह इस पानी को घर के आठों कोण में मन ही मन इस भाव के साथ छिड़क दे की घर की सारी नकारात्मकता घर की सम्पूर्ण सरचना से बहर निकल रही है और उसके स्थान पर सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो रहा है ,इससे घर की सारे वास्तु दोष ठीक होते जा रहे हैं ,इस प्रक्रिया से घर का शुद्धिकरण आप स्वयम कर सकते है ,आज ही से कर के देखें और मुझे इसका परिणाम भी बताएं ,क्योंकि इसमें कोई खर्च नही है


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

एक बेटे ने अपनी आत्मकथा में अपनी माँ के बारे में लिखा

एक बेटे ने अपनी आत्मकथा में अपनी माँ के बारे में लिखा ;कि उसकी माँ की केवल एक आँख थी

इस कारण वह उस से नफ़रत करता था एक दिन उसके एक दोस्त ने उस से आ कर कहा कि अरे
तुम्हारी माँ कैसी दिखती है ना एक ही आँख में ? .......यह सुन कर वो शर्म से जैसे
ज़मीन में धंस गया .....दिल किया यहाँ से कही भाग जाए , छिप जाए और उस दिन उसने अपनी
माँ से कहा की ....यदि वो चाहती है की दुनिया में मेरी कोई हँसी ना उड़ाए तो वो यहाँ से चली जाए !
माँ ने कोई उतर नही दिया वह इतना गुस्से में था कि एक पल को भी नही सोचा की उसने माँ से क्या कह दिया है और यह सुन कर उस पर क्या गुज़री होगी ! .....

कुछ समय बाद उसकी पढ़ाई खत्म हो गयी ,अच्छी नौकरी लग गई और उसने ने शादी कर ली ,एक घर भी खरीद लिया फिर उस के बच्चे भी हुए !एक दिन माँ का दिल नही माना वो सब खबर तो रखती थी अपने बेटे के बारे में और वो उन से मिलने को चली गयी..... उस के पोता पोती उसको देख के पहले डर गए फिर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे....... बेटा यह देख के चिल्लाया की तुमने कैसे हिम्मत की यहाँ आने की मेरे बच्चो को डराने की और वहाँ से जाने को कहा |

माँ ने कहा की शायद मैं ग़लत पते पर आ गई हूँ मुझे अफ़सोस है और वो यह कह के वहाँ से चली गयी!

एक दिन पुराने स्कूल से पुनर्मिलान समरोह का एक पत्र आया बेटे ने सोचा की चलो सब से मिल के आते हैं !वो गया सबसे मिला ,यूँ ही जिज्ञासा हुई कि देखूं माँ है की नही अब भी पुराने घर में
वो वहाँ गया ..वहाँ जाने पर पता चला की अभी कुछ दिन पहले ही उसकी माँ का देहांत हो गया है
यह सुन के भी बेटे की आँख से एक भी आँसू नही टपका.....:(:(

तभी एक पड़ोसी ने कहा की वो एक पत्र दे गयी है तुम्हारे लिए .....पत्र में माँ ने लिखा था कि --

""मेरे प्यारे बेटे मैं हमेशा तुम्हारे बारे में ही सोचा करती थी और सदा तुम कैसे हो ? कहाँ हो ? यह पता लगाती रहती थी........ उस दिन मैं तुम्हारे घर में तुम्हारे बच्चो को डराने नही आई थी .....बस रोक नही पाई उन्हे देखने से .....इस लिए आ गयी थी, :( मुझे बहुत दुख है की मेरे कारण तुम्हे हमेशा ही एक हीन भावना रही पर इस के बारे में मैं तुम्हे एक बात बताना चाहती हूँ की जब तुम बहुत छोटे थे तो तुम्हारी एक आँख एक दुर्घटना में चली गयी .....अब मै माँ होने के नाते कैसे सहन करती कि मेरा बेटा अंधेरे में रहे इस लिए मैने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी और हमेशा यह सोच के गर्व महसूस करती रही की अब मैं अपने बेटे की आँख से दुनिया देखूँगी और मेरा बेटा अब पूरी दुनिया देख पाएगा उसके जीवन में अंधेरा नही रहेगा ...
..सस्नेह

तुम्हारी माँ"

नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

ए मेरे भगवन .बता दे , निर्धन क्या इन्सान नहीं .!!

धनवानों का मान है जग में, निर्धन का कोई मान नहीं.!
ए मेरे भगवन .बता दे , निर्धन क्या इन्सान नहीं .!!
पास किसी के हीरे मोती,पास किसी के लंगोटी है.!
दूध मलाई खाए कोई ,कोई सुखी रोटी है..!
मुझे पता क्या तेरे राज्य में ,निर्धन का सम्मान नहीं..!
धनवानों का मान है जग में, निर्धन का कोई मान नहीं.!!

एक को सुख साधन फिर क्यों एक को दुःख देते हो..
नंगे पाँव दौड़ लगाकर ,खबर किसी की लेते हो .
लोग कहे भगवन तुजे पर में कहता भगवन नहीं..!
धनवानों का मान है जग में, निर्धन का कोई मान नहीं.!!

भक्ति करे जो तेरी वो , बैतरनी को तर जाये
जो न सुमरे तुम्हे भंवर के जाल में वो फस जाये
पहले रिश्वत लिए तो तारे ,क्या इसमें अपमान नहीं..!!
धनवानों का मान है जग में, निर्धन का कोई मान नहीं.!!

तेरी जगत की रित में है क्या हो जग के रखवाले
दे ना सको अगर सुख का साधन तो मुजको तू बुलवाले
अर्जी तेरे है बच्चो की, तू भी तो अनजान नहीं ..!!
धनवानों का मान है जग में, निर्धन का कोई मान नहीं.!
ए मेरे भगवन .बता दे , निर्धन क्या इन्सान नहीं .!!
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

such a emotionally or truth :

एक माँ ने सामाजिक दबाब में आकर कन्या भ्रूणहत्या के लिए दवा खा ली है अब कन्या भ्रूण के पास जो थोड़ा सा समय शेष है उसमें वह अपनी माँ से कुछ दिन की बात कहती है वो कया हैॽ
मैं आती तो घर के अंदर ... गुड़िया घर बनवाती माँ
मैं आती तो संग तेरे ... पूजा की थाल सजवाती माँ
चूड़ी कंगन पहन के मैं ...खन खन खन खनाती माँ
मैं आती तो पैरो मैं पायल ... छन छन छन छनकाती माँ
साड़ी तेरी तह करके ... आलमारी में रखवाती माँ
रंग बिरंगी रंगोली से ... घर आँगन सजवाती माँ
दीवाली में दियों में बाती ... तेरे संग लगवाती माँ
परेशानी में सहेली बनकर ... तुझको में समझती माँ
नाना-नानी कौन कहेगा ... मामा-मामी के संग रहेगा
जब कन्या भ्रूण मारी जायेगी ... तब रिश्ते भी मर जायेगे
ये शब्द अनसुने रह जायेंगे ... खैंर छोड़ इन बातों को
तूझे मैं ये बतलाती माँ... तेरे लिये सब से लड़ती
मेरे लिये कौन लड़ेगा ... माँ तेरा आँचल क्यूँ भीगा है
तूँ अब क्यूँ रोती है ... छोड़ स्वप्न की बातें
तेरी बिटिया अब ... चिर निद्रा में सोती है..… :'( :'( .. such a emotionally or truth :'(
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

हनुमानजी से सीखिए जीवन में ज्ञान, कर्म और उपासना

हनुमानजी से सीखिए जीवन में ज्ञान, कर्म और उपासना तीनों में से कोई भी मार्ग चुन लें, समस्याएं हर मार्ग पर आएंगी। लेकिन अच्छी बात यह है कि हर समस्या अपने साथ एक समाधान लेकर ही चलती है। समाधान ढूंढ़ने की भी एक नजर होती है। सामान्यत: हमारी दृष्टि समस्या पर पड़ती है, उसके साथ आए समाधान पर नहीं। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में जब हनुमानजी लंका की ओर उड़े तो सुरसा ने उन्हें खाने की बात कही। पहले तो हनुमानजी ने उनसे विनती की। इस विनम्रता का अर्थ है शांत चित्त से, बिना आवेश में आए समस्या को समझ लेना। जब सुरसा नहीं मानी और उसने अपना मुंह फैलाया। जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।। सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।। उसने योजनभर (चार कोस में) मुंह फैलाया। तब हनुमानजी ने अपने शरीर को उससे दोगुना बढ़ा लिया। उसने सोलह योजन का मुख किया, हनुमानजी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए। यह घटना बता रही है कि सुरसा बड़ी हुई तो हनुमानजी भी बड़े हुए। हनुमानजी ने सोचा कि ये बड़ी, मैं बड़ा, इस चक्कर में तो कोई बड़ा नहीं हो पाएगा। दुनिया में बड़ा होना है तो छोटा होना आना चाहिए। छोटा होने का अर्थ है विनम्रता। दुनिया जब भी जीती जाएगी, विनम्रता से जीती जाएगी। बड़ा होकर सिर्फ किसी को हराया ही जा सकता है। इसीलिए हनुमानजी ने छोटा रूप लिया और सुरसा के मुंह से बाहर आ गए।
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

function disabled

Old Post from Sanwariya