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बुधवार, 16 नवंबर 2011

प्राचीन काल में, राक्षस मदिरा-मांस ही खाते थे, पर उनकी पहचान अलग थी, वो सींघ लगा कर आते थे

एक कविता मेरी गाय माता को बचाने के लिए.......(((मैने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया की किस तरह जीव जन्तुओ की निर्मम हत्या की जा रही है....................पर मैंने जब से एक गाय माँ की बड़ी ही निर्दयता से हत्या करते हुए देखा है.......तब से मैं ठीक से खाना भी नहीं खा पाया हूँ.........रोना भी आता है.....पर रो भी नहीं पता....,.....मै सिर्फ कुछ लिख कर ही यहाँ आप सभी के सामने अपने दिल मै छुपा हुआ दर्द व्यक्त कर सकता हूँ.......मैं कमजोर हूँ...... की इस तरह से जिस जीव को मैं माँ कह कर पुकारता हूँ उसकी हत्या होते देखता रहा......मुझे अपने आप पर बहुत शर्म आती है की मैं एक हिन्दू हूँ......हे माँ मुझे इस लायक बना की मैं बेजुबानो पर होने वाले इस अन्याय को रोक तो सकूँ, ......जय हिंद....जय गाय माता की.....!!!

●▂● .. ●︿● .. ●ω● .. ●﹏● .. ●▽● .. ●△●

पत्थर दिल करके तुमने जो मारा किसी जीव को,
याद रखना मौत में तुम्हारे कसर होगी नहीं.....!!

रोजी रोटी के नाम पर जीव मारते तुम रोज अनेक,
आयगा एक दिन, जब दिए जाओगे नरक में तुम फैक,.....!!

निरापराध गायों को मारकर पाप जो तुमने किया,
मै समझता हूँ तुमने अपनी ही माँ का क़त्ल हे कर दिया,.....!!

कभी उनके उस दर्द और तकलीफ का अहसास तुम भी करो,
एक बार बस अपने बच्चों का सर काट कर जमीन पर तो धरो,.....!!

हे इन्सान जरा मुझे ये बताओ तुम इतने निर्दयी क्यों बने,
क्या हुआ वो कारण जो तुम्हारे हाथ जीवो-खून से सने,.....!!

हर किसी को जीने का हक़ उसने बराबर है दिया,
तुमने कब से बने खुदा जो तुमने पशु जीवन छीन लिया,.....!!

मत मारो इन पशुओं को जो एक शब्द बोल सकते नहीं,
मारना है तो अपनों को मारो जिनको तुम कुछ कर सकते नहीं,.....!!

मैने सुना हे प्राचीन काल में, राक्षस मदिरा-मांस ही खाते थे,
पर उनकी पहचान अलग थी, वो सींघ लगा कर आते थे......!!

पर तुम इन्सान क्यों राक्षसों का वो रूप धर लेते हो,.....!!
उस जीव को ही मार देते हो जिसको "माँ" तुम कहते हो...............!!
 
by Aditya Mandowara



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जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते।

जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है लेकिन इस धर्म-शाला (भारत) मे कब होगा ?????

क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा कि किसी मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या बड़ा नेता टोकियो की यात्रा पर गया हो ?
क्या आपने कभी किसी अखबार में यह भी पढ़ा कि ईरान अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो ?
कारण : जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाज़त नहीं दी जाती है।

· जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।
· जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाऐं नहीं पढ़ायी जातीं।
· जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
इस्लाम से दूरी· सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं।
और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।

· सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।
· जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।
· जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।
· आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।
· परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।

अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।
·जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।
·जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।
· जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।

मतांतरण पर रोक· जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।· किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।

· यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।
· यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।

वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके।

दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।

·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैं
जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है।
जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है।
टोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है।
उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है। स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 9/11 की घटना के पश्चात अनेक देशों की यात्रा की थी। वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी उनके यहां पर भी नहीं मार सकता !
-आर्यावर्त वीर


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मंगलवार, 15 नवंबर 2011

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