प्राचीन काल से ही धन के मोह और लोभ के कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं।
आज भी धन के प्रति लोगों का मोह काफी अधिक है। सभी पैसों को छिपाकर रखते
हैं, खर्च नहीं करते। धन का सही उपयोग नहीं करने पर वह नष्ट हो जाता है।
शास्त्रों में भी धन की महिमा बताई गई है। धन यानि महालक्ष्मी किन लोगों के
पास रहती है? इस संबंध में राजा भृर्तहरी ने बताया है कि-
दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुंक्ते तस्त तृतीया गतिर्भवति।।
इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि धन की केवल तीन ही अवस्थाएं हैं- पहली है
दान देना, दूसरी है धन का उपभोग करना और अंतिम अवस्था है धन का नष्ट होना।
राजा भृर्तहरी ने लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति धन का दान नहीं करता है और
धन का उपभोग नहीं करता है तो उससे महालक्ष्मी रुठ जाती हैं यानि उसका सारा
धन नष्ट हो जाता है। जो लोग धन को जान से अधिक सहेजकर कर रखते हैं, उसका
सदुपयोग नहीं करते हैं, दान-पुण्य नहीं करते, किसी गरीब की धन से मदद नहीं
करते, परिवार वालों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करते हैं, ऐसे लोगों का
धन व्यर्थ ही है। इनका धन बहुत ही जल्द नष्ट होने वाला है। महालक्ष्मी की
कृपा ऐसे लोगों पर नहीं होती जो धन को एकत्र करने में लगे रहते हैं और उसका
सही उपयोग नहीं करते हैं। धन को बचाने का सबसे अच्छा रास्ता है दान-पुण्य
किया जाए, गरीबों की मदद की जाए और पैसों का सही उपयोग किया।
कौन है राजा भृर्तहरी
भृर्तहरी मध्यप्रदेश के उज्जैन के प्राचीन राजा माने जाते हैं। ये सम्राट
विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। उस काल में उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से
जाना जाता था। भृर्तहरी उज्जैन के राजा तो थे साथ ही वे महान संस्कृत कवि
और नीतिकार भी थे। उन्होंने नीतिशतक, श्रंगारशतक, वैराग्यशतक की रचना की।
प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। राजा भृर्तहरी के नीतिशतक में जीवन
प्रबंधन की अचूक उपाय बताए गए हैं। जिन्हें अपनाने पर कोई भी व्यक्ति
श्रेष्ठ जीवन जी सकता है।
by Aditya Mandowara
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