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बुधवार, 15 अगस्त 2012

भारत के नीच बिकाऊ मीडिया ने स्वामी रामदेव के आंदोलन को धूमिल करने और लोगो को गुमराह करने के लिए पूरा जोर लगा दिया ...


भारत के नीच बिकाऊ मीडिया ने स्वामी रामदेव के आंदोलन को धूमिल करने और लोगो को गुमराह करने के लिए पूरा जोर लगा दिया ...

तस्वीरे बाए से दाए ....
1. आज तक का यह एंकर स्वामी रामदेव के बारे में अनर्गल टिप्पणियाँ कर रहा था | राजबाला को तथाकथित शही

द बताने के साथ ही स्वामी रामदेव के आंदोलन को इस प्रकार से दिखा रहा था जैसे स्वामीजी ने कानून व्यवस्था खराब करने की कोशिश की हो |

2. आजतक के इसी एंकर द्वारा प्रस्तुत किये गये कार्यक्रम का नाम था "" रामदेव की रामलीला "" | इसे जनांदोलन की तरह न दिखाकर ऐसे दिखाया गया जैसे यह बाबा रामदेव का व्यक्तिगत कार्यक्रम है जो अब नाटकीय मोड ले चुका है |

3. कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी के अनुसार स्वामी रामदेव बेनकाब हो चुके है और उनका लक्ष्य सत्ता हासिल करना है | उनके अनुसार विदेशो से काले धन को लाने की आड में बाबा अपना काला धन छुपाने में लगे है |

4. सभी बिकाऊ चेनलो ने स्वामी रामदेव को कम से कम दिखाया तथा इधर उधर कि खबरे दिखाते रहे क्यूंकि स्वामीजी कांग्रेस के खिलाफ बोल रहे थे |स्वामीजी को "स्वामी रामदेव " या "बाबा रामदेव " के बजाय सिर्फ "रामदेव " बोला गया | भगवा रंग से सख्त नफरत होने के कारण ABP न्यूज ने अपनी समाचार पट्टिका को श्वेत श्याम कर दिया |

5. "रामदेव अब तक " !!!! आंदोलन को इस तरह दिखाया गया जैसे यह फ़िल्मी स्टाइल में किया गया कोई छोटा मोटा कार्यक्रम हो |

6. एनडीटीवी के पत्रकार भी लगातार दुष्प्रचार में लगे रहे | इनके अनुसार बाबा को उम्मीद लगभग 60,000 समर्थकों के रामलीला मैदान पहुँचने की उम्मीद थी लेकिन सिर्फ 10,000 समर्थक ही पहुँच पाए | इनके अनुसार पिछले साल की तुलना में आंदोलन फीका रहा |

7. RAMDEV'S POLITICAL YOGA हेडलाइंस टुडे जो कि आज तक का अंग्रेजी न्यूज चेनल है |.दोपहर से ही ""स्वामी रामदेव का राजनीतिक योग"" नामक कार्यक्रम प्रसारित कर रहा था |

8.ABP न्यूज के अनुसार यह जन आंदोलन न होकर " रास्ते पर रामदेव की रामलीला " है |

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मैं अब तक क्यों मौन हूँ?

मैं अब तक क्यों मौन हूँ?

अँधा वो नहीं,
जो चलने के लिये,
डंडे का सहारा ले,
अँधा तो वो है,
जो अत्याचार होते देखे,
और आँखें फिरा ले।

बहरा वो नहीं,
जिसको सुनाने के लिये,
ऊँचा बोलना पड़ता है,
बहरा वो है,
जो कानों में रूई ठूँस कर,
इंसाफ किया करता है।

गूँगा वो नहीं,
जिसके मुँह में ज़ुबान नहीं,
गूँगे वो हैं,
जो चुप रहते हैं जब तक,
रुपया उन पर मेहरबान नहीं।

यहाँ अँधे, गूँगे बहरों की,
फ़ौज दिखाई देती है,
यहाँ मासूम खून से तरबतर,
मौजें दिखाई देती हैं।

खूब सियासत होती है,
लोगों के जज़्बातों पर,
जश्न मनाया जाता है,
यहाँ ज़िंदा हज़ारों लाशों पर।

यहाँ धमाके होने चाहिये
ताकि खाना हजम हो सके,
मौत का तांडव न हो तो,
चेहरे पर रौनक कैसे आ सके।

यहाँ बगैर लाल रंग के,
हर दिन बेबुनियाद है,
लाशों को ४७, ८४, ०२ की,
काली तारीखें याद हैं।

कोई पूछे उन अँधों से,
कैसे देखा करते हो बलात्कार,
कोई पूछे उन बहरों से,
कैसे सुन लेते हो चीत्कार,
कोई पूछे उन गूँगों से,
क्यों मचाया है हाहाकार।

मुझसे मत पूछना,
इन सवालों को,
मुझे नहीं पता मैं अँधा हूँ,
बहरा हूँ, गूँगा हूँ या कौन हूँ?
हद है!
हर सवाल पर,
मैं अब तक क्यों मौन हूँ?

- तपन शर्मा

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