आजकल
हिन्दू धरम को भी लोगो ने मजाक बनालिया है या यु कहे के संता बंता की जगह
हम लोगो के भगवान को दे गयी है क्या ये सही है? इसाई और मुस्लिम के अलावा
किसी की भावना नहीं होती है हिन्दुओ की तो बिक्लुल नहीं जाहे कोई मंदिर की
जगह टॉयलेट कहे या फिर भगवान शिव को गणेश को माता को अपना मजाक का जरिया
बनाये | हम कर भी क्या सकते है क्योकि की लोगो को अपने अभिव्यक्ति कहने का
अधिकार है वो स्वतंत्र है| लेकिन अगर इसा
ई
या मुस्लिम के खिलाफ कुछ भी कहा तो ज़िमेदार खुद ही होगे| क्योकि की उनकी
अभिव्यक्ति में खलाल डालना पाप है| कोई भी एक पैसे की चीज ले लो उसके रापर
पर भी भगवान की फोटो होती है आखिर क्यों? कोई धुप ले लो कोई छोटी से कपूर
की टिकिया भी ले लो सब पर चाप दिया जाता है क्योकि सबको अपने विचार रखने का
अधिकार है| अभी नवरात्री सुरु होने वाले है जगह जगह मूर्तियों की बाद से
गयी है प्लास्टर के रूप में हमको मुर्तिया बेचीं जा रही है उन पर तरह तरह
के रासायनिक रंग डाले जाते है जिसको जब हम तलब या नदी में प्रवाहित करते है
तो वो उसमे मिलते नहीं बल्कि हजारो की संखिया में मझली और जीव मरे जाते है
आखिर क्यों? क्योकि हम लोगो की आस्था का विषय है अब उस पर भी नहीं बोल
सकते है मगर जो जीव मारंगे उन का पाप कोन लेगा भगवान या हम ? कोई अपने काछे
पर चपल पर फिर अपनी टी शर्ट पर शर्ट पर छापे क्योकि वो भी उसकी सवतन्त्रता
है नहीं है तो बस हिन्दुओ के लिए नहीं है सब दरवाजे बंद है आखिर क्यों? हम
लोगो की आस्था इतने कमजोर क्यों है? क्या हम लोग प्रक्रतिक रंगों के साथ
मट्टी की मूर्ति के लिए जोर नहीं दे सकते है जो जल में आसानी से घुल जाये
और जीवो को नुकशान भी न हो| क्या किसी भी रेपर पर छपने वाले के खिलाफ बोल
नहीं सकते है आखिर क्यों? उसके बाद उनको रस्ते में फाके दिया जाता है जो हम
लोगो के पैरो में पड़े रहते है| जिन कपड़ो पर उनको छापते है उनको लेकर हम
लोग गन्दी जगह लेट जाते है टॉयलेट में जाते है आखिर किसका अपमान करते है
अपना या भगवान का ?