. ।। 🕉 ।।
🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
««« *आज का पंचांग* »»»
कलियुगाब्द...................5120
विक्रम संवत्..................2075
शक संवत्.....................1940
मास..............................ज्येष्ठ
पक्ष..............................शुक्ल
तिथी..........................चतुर्दशी
प्रातः 08.12 पर्यंत पश्चात पूर्णिमा
रवि..........................उत्तरायण
सूर्योदय..............05.48.32 पर
सूर्यास्त...............07.11.21 पर
सूर्य राशि.......................मिथुन
चन्द्र राशि......................वृश्चिक
नक्षत्र.............................ज्येष्ठा
प्रातः 09.28 पर्यंत पश्चात मूल
योग..............................शुक्ल
रात्रि 01.27 पर्यंत पश्चात ब्रह्मा
करण..........................वणिज
प्रातः 08.13 पर्यंत पश्चात विष्टि
ऋतु.............................ग्रीष्म
दिन...........................बुधवार
🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
27 जून सन 2018 ईस्वी ।
☸ *तिथि विशेष :-*
*वट सावित्री व्रत -*
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का हमारी सनातनी संस्कृति में विशेष महत्त्व है ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत, जो की सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है मनाया जाता है । भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक है |
वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। सलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।
उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि 'राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।' सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।
कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।
👁🗨 *राहुकाल* :-
दोपहर 12.29 से 02.10 तक ।
🚦 *दिशाशूल* :-
उत्तरदिशा - यदि आवश्यक हो तो तिल का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।
☸ शुभ अंक...............9
🔯 शुभ रंग...............हरा
💮 चौघडिया :-
प्रात: 05.47 से 07.27 तक लाभ
प्रात: 07.27 से 09.08 तक अमृत
प्रात: 10.48 से 12.28 तक शुभ
अप. 03.49 से 05.30 तक चंचल
सायं 05.30 से 07.10 तक लाभ
रात्रि 08.30 से 09.49 तक शुभ
📿 *आज का मंत्र* :-
।।ॐ गजकर्णाय नम: ।।
🎙 *सुभाषितम्* :-
यावत् भ्रियेत जठरं तावत् सत्वं हि देहीनाम् ।
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥
अर्थात :-
अपने स्वयम के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है । यदि इससे अधिक पर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है ।
🍃 *आरोग्यं* :-
*मुँहासे हटाने के आयुर्वेदिक उपचार*
*3. नीम के पत्ते और गुलाब जल -*
नीम के पत्ते खाने से न केवल रक्त को शुद्ध किया जा सकता है बल्कि कील मुंहासे को भी यह दूर करता है। नीम जीवाणुरोधी है, और यह त्वचा के स्वस्थ पीएच संतुलन को बहाल करता है। यह त्वचा में तेल उत्पादन को नियंत्रित करता है और मुँहासे से प्रभावित क्षेत्रों की मरम्मत करता है। इसके लिए आप 2-3 मिनट के लिए पांच नीम के पत्ते को उबाल लीजिए। फिर इसे फूड प्रोसेसर में अच्छी तरह से पीस लीजिए और उसका मोटा पेस्ट बना लीजिए। फिर उसमें दो बड़े चम्मच गुलाब जल डालिए और उसे अपने चेहरे पर लगाइए। जब तक यह मास्क सुख न जाए तब तक इसे अपने चेहरे पर लगाएं रखें। आप सप्ताह में इसे 3-4 बार लगा सकते हैं।
*4. त्रिफला और गर्म पानी -*
त्रिफला पाउडर आपकी त्वचा की टोन में सुधार कर सकता है, मुँहासे का इलाज कर सकता है, बालों के विकास को बढ़ावा देता है। त्रिफला सेबम को सूखने में मदद करता है और छिद्रों को साफ़ करता है। यह आपके शरीर में वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करता है। इसके लिए आप एक छोटा चम्मच त्रिफला का पेस्ट लीजिए और उसमें एक गिलास पानी मिलाइए और इसे पीजिए। आप इसे सप्ताह में 3 बार पी सकते हैं।
*5. नींबू और पानी -*
नींबू विटामिन सी और साइट्रिक एसिड में समृद्ध हैं, इसलिए समय के साथ उपयोग किए जाने पर ये आपकी त्वचा को चमकाने और हल्का करने में मदद कर सकता है। नींबू में साइट्रिक एसिड बैक्टीरिया को मारता है और एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है। यह पिंपल्स के कारण लाली को कम करता है। इसके लिए आप कप में दो नींबू का जूस निकाल लें और दो बड़े चम्मच पानी इसमें मिलाइए। फिर कॉटन पैड की मदद से आप अपने चेहरे पर लगाइए। फिर इसे पूरी रात लगाकर छोड़ दीजिए। आप इसे रात में सोने से पहले लगा सकती हैं।
⚜ *आज का राशिफल :-*
🐏 *राशि फलादेश मेष* :-
कुसंगति से हानि होगी। राजकीय बाधा दूर होकर लाभ होगा। धनार्जन होगा। जीवनसाथी की चिंता रहेगी।
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
शत्रु हानि पहुंचा सकते हैं। चोट, चोरी व विवाद आदि से हानि संभव है। तनाव रहेगा। जोखिम न लें।
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। कानूनी अड़चन दूर होगी। आय बढ़ेगी।
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। विवाद न करें। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। रोजगार मिलेगा।
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। वस्तुएं संभालकर रखें।
👱🏻♀ *राशि फलादेश कन्या* :-
पुराना रोग उभर सकता है। घर-बाहर तनाव रहेगा। काम में मन नहीं लगेगा। दौड़धूप रहेगी।
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
प्रयास सफल रहेंगे। कार्य की प्रशंसा होगी। आय में वृद्धि होगी। प्रसन्नता रहेगी। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा।
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
मेहमानों का आवागमन होगा। व्यय होगा। शुभ समाचार मिलेंगे। प्रसन्नता रहेगी। जल्दबाजी न करें।
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी।
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
अचानक बड़ी समस्या आ सकती है। फालतू खर्च होगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। चोट व रोग से बचें।
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
व्यावसायिक यात्रा मनोनुकूल रहेगी। लेनदारी वसूल होगी। आय में वृद्धि होगी। क्रोध न करें।
🐋 *राशि फलादेश मीन* :-
योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। मान-सम्मान मिलेगा। नया कार्य प्रारंभ हो सकता है।
☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।
।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।
🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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बुधवार, 27 जून 2018
आज का पंचांग 27 june 2018
आज का पंचांग 27 june 2018
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कलियुगाब्द...................5120
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शक संवत्.....................1940
मास..............................ज्येष्ठ
पक्ष..............................शुक्ल
तिथी..........................चतुर्दशी
प्रातः 08.12 पर्यंत पश्चात पूर्णिमा
रवि..........................उत्तरायण
सूर्योदय..............05.48.32 पर
सूर्यास्त...............07.11.21 पर
सूर्य राशि.......................मिथुन
चन्द्र राशि......................वृश्चिक
नक्षत्र.............................ज्येष्ठा
प्रातः 09.28 पर्यंत पश्चात मूल
योग..............................शुक्ल
रात्रि 01.27 पर्यंत पश्चात ब्रह्मा
करण..........................वणिज
प्रातः 08.13 पर्यंत पश्चात विष्टि
ऋतु.............................ग्रीष्म
दिन...........................बुधवार
🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
27 जून सन 2018 ईस्वी ।
☸ *तिथि विशेष :-*
*वट सावित्री व्रत -*
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का हमारी सनातनी संस्कृति में विशेष महत्त्व है ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत, जो की सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है मनाया जाता है । भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक है |
वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। सलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।
उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि 'राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।' सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।
कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।
👁🗨 *राहुकाल* :-
दोपहर 12.29 से 02.10 तक ।
🚦 *दिशाशूल* :-
उत्तरदिशा - यदि आवश्यक हो तो तिल का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।
☸ शुभ अंक...............9
🔯 शुभ रंग...............हरा
💮 चौघडिया :-
प्रात: 05.47 से 07.27 तक लाभ
प्रात: 07.27 से 09.08 तक अमृत
प्रात: 10.48 से 12.28 तक शुभ
अप. 03.49 से 05.30 तक चंचल
सायं 05.30 से 07.10 तक लाभ
रात्रि 08.30 से 09.49 तक शुभ
📿 *आज का मंत्र* :-
।।ॐ गजकर्णाय नम: ।।
🎙 *सुभाषितम्* :-
यावत् भ्रियेत जठरं तावत् सत्वं हि देहीनाम् ।
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥
अर्थात :-
अपने स्वयम के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है । यदि इससे अधिक पर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है ।
🍃 *आरोग्यं* :-
*मुँहासे हटाने के आयुर्वेदिक उपचार*
*3. नीम के पत्ते और गुलाब जल -*
नीम के पत्ते खाने से न केवल रक्त को शुद्ध किया जा सकता है बल्कि कील मुंहासे को भी यह दूर करता है। नीम जीवाणुरोधी है, और यह त्वचा के स्वस्थ पीएच संतुलन को बहाल करता है। यह त्वचा में तेल उत्पादन को नियंत्रित करता है और मुँहासे से प्रभावित क्षेत्रों की मरम्मत करता है। इसके लिए आप 2-3 मिनट के लिए पांच नीम के पत्ते को उबाल लीजिए। फिर इसे फूड प्रोसेसर में अच्छी तरह से पीस लीजिए और उसका मोटा पेस्ट बना लीजिए। फिर उसमें दो बड़े चम्मच गुलाब जल डालिए और उसे अपने चेहरे पर लगाइए। जब तक यह मास्क सुख न जाए तब तक इसे अपने चेहरे पर लगाएं रखें। आप सप्ताह में इसे 3-4 बार लगा सकते हैं।
*4. त्रिफला और गर्म पानी -*
त्रिफला पाउडर आपकी त्वचा की टोन में सुधार कर सकता है, मुँहासे का इलाज कर सकता है, बालों के विकास को बढ़ावा देता है। त्रिफला सेबम को सूखने में मदद करता है और छिद्रों को साफ़ करता है। यह आपके शरीर में वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करता है। इसके लिए आप एक छोटा चम्मच त्रिफला का पेस्ट लीजिए और उसमें एक गिलास पानी मिलाइए और इसे पीजिए। आप इसे सप्ताह में 3 बार पी सकते हैं।
*5. नींबू और पानी -*
नींबू विटामिन सी और साइट्रिक एसिड में समृद्ध हैं, इसलिए समय के साथ उपयोग किए जाने पर ये आपकी त्वचा को चमकाने और हल्का करने में मदद कर सकता है। नींबू में साइट्रिक एसिड बैक्टीरिया को मारता है और एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है। यह पिंपल्स के कारण लाली को कम करता है। इसके लिए आप कप में दो नींबू का जूस निकाल लें और दो बड़े चम्मच पानी इसमें मिलाइए। फिर कॉटन पैड की मदद से आप अपने चेहरे पर लगाइए। फिर इसे पूरी रात लगाकर छोड़ दीजिए। आप इसे रात में सोने से पहले लगा सकती हैं।
⚜ *आज का राशिफल :-*
🐏 *राशि फलादेश मेष* :-
कुसंगति से हानि होगी। राजकीय बाधा दूर होकर लाभ होगा। धनार्जन होगा। जीवनसाथी की चिंता रहेगी।
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
शत्रु हानि पहुंचा सकते हैं। चोट, चोरी व विवाद आदि से हानि संभव है। तनाव रहेगा। जोखिम न लें।
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। कानूनी अड़चन दूर होगी। आय बढ़ेगी।
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। विवाद न करें। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। रोजगार मिलेगा।
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। वस्तुएं संभालकर रखें।
👱🏻♀ *राशि फलादेश कन्या* :-
पुराना रोग उभर सकता है। घर-बाहर तनाव रहेगा। काम में मन नहीं लगेगा। दौड़धूप रहेगी।
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
प्रयास सफल रहेंगे। कार्य की प्रशंसा होगी। आय में वृद्धि होगी। प्रसन्नता रहेगी। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा।
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
मेहमानों का आवागमन होगा। व्यय होगा। शुभ समाचार मिलेंगे। प्रसन्नता रहेगी। जल्दबाजी न करें।
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी।
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।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।
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मंगलवार, 26 जून 2018
वृंदावन में टटिया स्थान
" तटिया या टटिया स्थान "
स्थान - श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है.विशाल भूखंड पर फैला हुआ है
किन्तु कोई दीवार,पत्थरो की घेराबंदी नहीं है केवल बॉस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इसलिए तटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है. संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराज की तपोस्थली है.
यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है,संत कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है.
स्थापना - स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था.उनके शिष्य महंत श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था.
तभी चारो ओर बॉस की तटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधू ही चले आ रहे है.उनकी विशेष वेशभूषा भी है.
विग्रह - श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है.
मंदिर का अनोखा नियम...
ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधू सेवा में लगाया जाता है.
संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो माज के उलटे करके रख दिए जाते है,कभी भी यहाँ अन्न सामग्री कि कमी ना रहती थी.
एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भर कर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे.
श्री महंत जी बोले -वाह खूब समय पर आप भेट लाये है.महंत जी ने तुरंत उन्हें खरल में पिसवाया ओर पान बीडी में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया कल के लिए कुछ नहीं रखा.
असी संग्रह रहित विरक्त थे श्री महंत जी.
उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान व्यंजन पकवान भोग लगे स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते सब पदार्थ संत सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते.
मंदिर में विशेष प्रसाद -
इस स्थान के महंत पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय ओर आगुन्तक भक्तो कि विशाल भीड़ लगती है.
श्री स्वामी जी के कडुवा ओर दंड के उस दिन सबको दर्शन लाभ होते है.
उस दिन विशेष प्रकार कि स्वादिष्ट अरबी का भोग लगता है ओर बटता है.जो दही ओर घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है यहाँ का अरबी प्रसाद प्रसिद्ध है. इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है.
जब मजदूर का घड़ा अशर्फियों से भर गया
एक दिन श्रीस्वामी ललितमोहिनी देव जी संत-सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे,किन्तु उनका मन कुछ उद्विग्न सा था. वे बार-बार आश्रम के प्रवेश द्वार की तरफ देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते.
वहाँ रह रहे संत ने पूंछा - स्वामी जी ! किसको देख रहे है आपको किसका इन्तजार है?
स्वामी जी बोले - एक मुसलमान भक्त है श्री युगल किशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है उसका इन्तजार कर रहा हूँ.
इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही.श्री स्वामी जी के पूंछने पर उसने बताया,कि डींग के किले में भूमि कि खुदाई चल रही है
मै वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ. कल खुदाई करते में मुझे यह घड़ा दीखा तो मैंने इसे मुहरो से भरा जान कर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख ले.
रात को फिर मै इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख लाख शुक्र अदा करते हुए कि अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी घर आकर जब कलश में देखा तो इससे ये दो मूर्तियाँ निकली,एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी.
स्वामी जी - इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हे किसने कहा ?
मजदूर - जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओ ने आदेश दिया कि हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो इसलिए में इन्हें लेकर आया हूँ.
स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा भईया ! तुम बड़े भाग्यवान हो भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे .
वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा,रास्ते में सोच रहा था कि इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा - मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था.आज की मजदूरी भी मारी गई.घर पहुँचा एक कौने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया
पत्नी ने पूँछा - हो आये वृंदावन ?
क्या लाये फकीर से ?
भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से ?
क्या जवाव देता इस व्यंग का ?
उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली.
पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस तरफ देखती है कि घड़ा तो अशर्फियों से लबालव भरा है,
आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली मियाँ वाह ! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए ?
अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रु धारा बाह निकली.
बोला मै किसका शुक्रिया करू,खुदा का ,या उस फकीर का जसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी.फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाड लाने से भी मुझे बारी रखा कैसी रहमत ?
वृंदावन में टटिया स्थान
" तटिया या टटिया स्थान "
स्थान - श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है.विशाल भूखंड पर फैला हुआ है
किन्तु कोई दीवार,पत्थरो की घेराबंदी नहीं है केवल बॉस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इसलिए तटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है. संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराज की तपोस्थली है.
यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है,संत कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है.
स्थापना - स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवे आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था.उनके शिष्य महंत श्री ललितमोहनदास जी ने सं १८२३ में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था.
तभी चारो ओर बॉस की तटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधू ही चले आ रहे है.उनकी विशेष वेशभूषा भी है.
विग्रह - श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है.
मंदिर का अनोखा नियम...
ऐसा सुना जाता है कि श्री ललितमोहिनिदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा-दाल-घी दूध भेट में आवे उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधू सेवा में लगाया जाता है.
संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो माज के उलटे करके रख दिए जाते है,कभी भी यहाँ अन्न सामग्री कि कमी ना रहती थी.
एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भर कर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे.
श्री महंत जी बोले -वाह खूब समय पर आप भेट लाये है.महंत जी ने तुरंत उन्हें खरल में पिसवाया ओर पान बीडी में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया कल के लिए कुछ नहीं रखा.
असी संग्रह रहित विरक्त थे श्री महंत जी.
उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान व्यंजन पकवान भोग लगे स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते सब पदार्थ संत सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते.
मंदिर में विशेष प्रसाद -
इस स्थान के महंत पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय ओर आगुन्तक भक्तो कि विशाल भीड़ लगती है.
श्री स्वामी जी के कडुवा ओर दंड के उस दिन सबको दर्शन लाभ होते है.
उस दिन विशेष प्रकार कि स्वादिष्ट अरबी का भोग लगता है ओर बटता है.जो दही ओर घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है यहाँ का अरबी प्रसाद प्रसिद्ध है. इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है.
जब मजदूर का घड़ा अशर्फियों से भर गया
एक दिन श्रीस्वामी ललितमोहिनी देव जी संत-सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे,किन्तु उनका मन कुछ उद्विग्न सा था. वे बार-बार आश्रम के प्रवेश द्वार की तरफ देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते.
वहाँ रह रहे संत ने पूंछा - स्वामी जी ! किसको देख रहे है आपको किसका इन्तजार है?
स्वामी जी बोले - एक मुसलमान भक्त है श्री युगल किशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है उसका इन्तजार कर रहा हूँ.
इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही.श्री स्वामी जी के पूंछने पर उसने बताया,कि डींग के किले में भूमि कि खुदाई चल रही है
मै वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ. कल खुदाई करते में मुझे यह घड़ा दीखा तो मैंने इसे मुहरो से भरा जान कर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख ले.
रात को फिर मै इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख लाख शुक्र अदा करते हुए कि अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी घर आकर जब कलश में देखा तो इससे ये दो मूर्तियाँ निकली,एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी.
स्वामी जी - इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हे किसने कहा ?
मजदूर - जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओ ने आदेश दिया कि हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो इसलिए में इन्हें लेकर आया हूँ.
स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा भईया ! तुम बड़े भाग्यवान हो भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे .
वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा,रास्ते में सोच रहा था कि इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा - मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था.आज की मजदूरी भी मारी गई.घर पहुँचा एक कौने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया
पत्नी ने पूँछा - हो आये वृंदावन ?
क्या लाये फकीर से ?
भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से ?
क्या जवाव देता इस व्यंग का ?
उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली.
पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस तरफ देखती है कि घड़ा तो अशर्फियों से लबालव भरा है,
आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली मियाँ वाह ! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए ?
अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रु धारा बाह निकली.
बोला मै किसका शुक्रिया करू,खुदा का ,या उस फकीर का जसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी.फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाड लाने से भी मुझे बारी रखा कैसी रहमत ?
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