जो लोग इस मूर्खतापूर्ण धारणा के शिकार हैं कि जाति ने हिंदुओं को गुलाम बनाया, उनके हास्यास्पद अज्ञान पर तरस ही की जा सकती है ।
कुछ बातें उनके ध्यान में लाना आवश्यक है :
एक : इस्लाम और ईसाइयत विश्व के विशाल क्षेत्र में फैले हैं जहां केवल हिंदू धर्म नहीं था. अतः यदि किसी इलाके में इस्लाम और ईसाइयत का फैलना उस इलाके की गुलामी हैं तो जाहिर है कि उसके पीछे जाति कारण सब जगह तो नहीं थी।
2. स्वयं अरब पहले सनातन धर्म का ही उपासक था तो वहां इस्लाम फैलने का क्या कारण था?
3. जिन लोगों ने भारत में इस्लाम को रोका, वह सब के सब जाति व्यवस्था के प्रति पूरी तरह श्रद्धा वान लोग थे।
4 इस्लाम में भयंकर जाति प्रथा है जिसके विषय में अनेक प्रामाणिक तथ्य हम क्रमशः देंगे। यह जाति प्रथा भारत के मुसलमानों में नहीं ,भारत से बाहर फैले हुए इस्लाम में है और हिंदू समाज से कई गुना अधिक है। अतः बिना जानकारी के चाहे जो बोलना बकवास है ।उसका समाज के लिए कोई उपयोग नहीं है।
5 समस्त यूरोप में फैमिली और हाउसेस यानी कुलों और कुल समूहों की प्रबल मान्यता आज भी है
6 सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को गुलाम कहना स्वयं में एक अपराध है क्योंकि भारत एक भी दिन गुलाम नहीं रहा।
7 गुलाम उसे कहते हैं जो किसी बाहर वाले शासक के अधीन हो। भारत के सभी मुसलमान हिंदू पूर्वजों की ही संततियां हैं। यहां बाहर से कभी किसी ने आक्रमण नहीं किया।
8 भारत में ऐसी एक भी लड़ाई नहीं हुई जिसमें एक और मुसलमान हो और दूसरी और हिंदू। हर लड़ाई में दोनों ओर से हिंदू और मुसलमान दोनों ही शामिल थे। तब यह दो समूहों की भिड़ंत थी ना कि हिंदू और मुसलमान की। इसलिए किसी एक की हार को दूसरे की गुलामी नहीं कहा जा सकता।
9 भारत का ऐसा एक भी मुसलमान राजा या जागीरदार नहीं हुआ जिसके दीवान हिंदू न हो और जिसके सेनापति हिंदू न हो। इस प्रकार जिसे मुस्लिम शासन कहा जाता है वह हिंदू मुस्लिम साझा शासन था।
10 मूर्खों ,झूठे लोगों ,लफंगों और चापलूसों ने जिन्हें हिंदुस्तान का बादशाह कहा, वह सब के सब दिल्ली से आगरा के बीच के जागीरदार थे।
उसी अवधि में विशाल भारतवर्ष में 20 से अधिक इन जागीरदारों से बड़े-बड़े इलाके के राजा हिंदू थे। इसलिए दिल्ली आगरा क्षेत्र के जागीरदार के मुसलमान होने पर और वहां भी राजपूतों की साझेदारी होते हुए भी समस्त भारतवर्ष को मुसलमानों की गुलामी में रहा बताना देशद्रोह है ।
यद्यपि यह देशद्रोह मूर्खता पूर्वक अधिक किया जाता है और उसके पीछे भयंकर अज्ञान है
11 अंग्रेजों का शासन भी वस्तुतः भारत के राजाओं और लोगों की पूर्णता सहमति और साझीदारी से ही चला था और अंग्रेजों का राज लगभग आधे भारत में ही था ।
शेष भारत में भारतीय राजा शासन कर रहे थे।
12 जैसा भव्य और गौरवशाली प्रतिरोध भारत में इस्लाम और ईसाइयत को मिला वैसा विश्व में कहीं भी नहीं मिला इसका कारण जाति व्यवस्था से संपन्न और समृद्ध हिंदू समाज ही है।
13 जो लोग भारत में जाति व्यवस्था की समाप्ति चाहते हैं ,वह विशाल हिंदू समाज के करोड़ों लोगों को किसी एक नए संगठन के अधीन लाने को इच्छुक हैं और इस प्रकार वह करोड़ों लोगों को कुछ 100 लोगों के नियंत्रण वाले किसी संगठन की गुलामी में ही लाना चाहते हैं ।
इस प्रकार जो लोग हिंदू समाज को गुलाम बनाना चाहते हैं केवल वही जाति व्यवस्था का विरोध करते हैं।
14 यह भी स्पष्ट है कि ब्राम्हण क्षत्रिय और उच्च कुलों वाले वैश्यों के अतिरिक्त शेष कोई भी लोग अपनी जाति छोड़ने को किसी भी प्रकार तैयार नहीं है ।
इस प्रकार जाति व्यवस्था की समाप्ति के नाम पर सारा आग्रह ब्राह्मणों का जाति संहार या जाति नाश ,जाति विलोप, क्षत्रियों का जाति संहार या जाति नाशऔर श्रेष्ठ वैश्यों का भी जातिविलोप ही है ।इस प्रकार जाति व्यवस्था के नाम पर बड़े हिस्सेकी , लोगों की विशाल जनसंख्या की पहचान छीन कर उन्हें पहचान विहीन बना देना और फिर शेष(आरक्षित) लोगों की जाति को गरिमा मंडित करना ही है।
जिन कमाल के लोगों को ऐसा लगता है कि ऊंची जाति के लोग तथाकथित ऊंची जाति के लोग तथाकथित निचली जाति में विवाह करने लगे या इसका उल्टा होने लगे तो उससे हिंदू समाज में जान आ जाएगी ,उनको केवल यह बता दूं कि यह काम लाखों वर्षों से हो रहा है।
अगर उन्हें अपने हिंदू समाज के आधारभूत तत्व भी पता नहीं हैं तो बेहतर है कि वह थोड़ा शांत रहें और कुछ पढ़ने लिखने की आदत डालें ।
ऐसी मूर्खतापूर्ण बकवास से वे केवल हंसी के पात्र बनते हैं।
ब्राह्मणों का निम्नतम जातियों से और निम्न जाति के लोगों का उच्च जाति के लोगों से विवाह लाखों वर्षों से हो रहा है और उसे दंडनीय अथवा अनुचित भी लाखों वर्षों से माना जा रहा है।
हिंदू समाज विश्व का एकमात्र समाज है जहां परस्पर विरोधी दिखने वाली सैकड़ों सैकड़ों परंपराएं साथ-साथ चल रही हैं। और इन महापुरुषों का सुझाव भी उनमें से एक धारा बन सकता है ।
कृपया ना तो स्वयं को अनोखा माने, ना ही हिंदू समाज को कोई उपदेश दें।
हो सके तो हिंदू समाज के विषय में कुछ पढ़ें और जानें।
17 वीं शताब्दी से 1947 ईस्वी के पहलेतक अनेक भ्रांतियां और विकृतियों के कारण कुछ अज्ञानी और अहंकारी लोगों के द्वारा कुछ इलाकों में कुछ अहंकारी लोगों के द्वारा निश्चय ही गलत व्यवहार हुआ। परंतु यह अनुचित व्यवहार भी राष्ट्रव्यापी नहीं था।
तब भी 1947 ईस्वी तक हिंदू समाज को कानूनन बहुत से अधिकार प्राप्त थेऔर जाति एक एक मान्य इकाई थी। इसलिए उस समय तक जातिगत भेदभाव के विरुद्ध बातें करना और आवाज उठाना एक पुण्य कार्य था।
15 अगस्त 1947 ईस्वी के बाद से 1 यूरो भारतीय पंथ ने समस्त भारतवर्ष में हिंदू समाज को पूरी तरह अधिकारहीन कर दिया और हिंदू समाज की परंपरागत इकाइयों के पास एक भी अधिकार कानून नहीं बचा। केवल मुंह से बातें करने की स्वतंत्रता तो सबको है।
इसके साथ ही समस्त समाज की सर्वानुमति से किसी भी प्रकार का ऊंच नीच का भेदभाव बरतना या मुंह से बोलना दंडनीय अपराध घोषित हो गया।
बाद में तो मूल संविधान की भावना के विपरीत कतिपय विशेष जातियों को इस संदर्भ में विशेष अधिकार दे दिया गया कि वह यदि झूठे आरोप भी लगा दें तो बिना छानबीन के गिरफ्तारी हो जाएगी और इस प्रकार यह संविधान की मूल भावना का पूर्ण उल्लंघन था।
डॉ भीमराव अंबेडकर कभी भी इतनी गलत और विषमता मूलक बात को स्वीकार कर ही नहीं सकते थे ।यह जिन लोगों ने किया ,वे संविधान विरोधी और हिंदू समाज के तोड़क लोग हैं। उनका स्वयंको समाज मे न्याय की चिंता करनेवाले बताना स्पष्ट झूठ है।
इसके बाद लोकतंत्र के स्वाभाविक परिवेश के कारण और भारतीय समाज की परंपरागत मान्यताओं के कारण उन तथाकथित तिरस्कृत जातियों के लोग राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति न्यायाधीश उच्चाधिकारी मुख्य मंत्री केंद्रीय मंत्री सहित लाखों पदों पर विराजमान हैं।
इसके बाद से हिंदू समाज के तथाकथित जाति व्यवस्था की तथाकथित बुराई का गाना गाना और इस बहाने हिंदू समाज का एक काल्पनिक और झूठा इतिहास रच कर उसे लांछित करना एक फैशन बन गया है जो किसी भी स्वस्थ और स्वाभाविक राष्ट्र में एक दंडनीय अपराध होना चाहिए।
85 करोड़ या 100 करोड़ की आबादी में यदि कुलों की, कुल समूहों की यानी जातियों की कोई पहचान नहीं रहेगी तो दो ही मार्ग है : या तो सब व्यक्तियों का कोई एक ID नंबर होगा और वे उस से ही पहचाने जाएं अथवा नयी नयी- जातियां बनाएं जिन्हें यूनियन संगठन ,पेशेवर संगठन कहते हैं और उनके आधार पर लोगों की पहचान बने ।जोकि जाति का ही एक नया रूप है और बदतर रूप है।
अंतरजातीय विवाह व्याकरणकी दृष्टिसे गलत शब्द है।जैसे अंतरराष्ट्रीय का अर्थहै राष्ट्रोंके मध्य,वैसेही अंतरजातीय का अर्थ है जातियोंके मध्य।जबकि विवाह व्यक्तियोंके मध्य होताहै।वह यातो अनुलोम होताहै याप्रतिलोम।अंतरजातीय विवाह शब्द हिन्दू धर्म से पूर्णतः अनभिज्ञ व्यक्तियोंके दिमागकी खुजली की उपजहै।
बनिया कंजूस होता है,
नाई चतुर होता है,
ब्राह्मण धर्म के नाम पे बेबकूफ बनाता है,
यादव की बुद्धि कमजोर होती है,
राजपूत अत्याचारी होते हैं,
चमार गंदे होते हैं,
जाट और गुर्ज्जर बेवजह लड़ने वाले होते हैं,
मारवाड़ी लालची होते हैं...
और ना जाने ऐसी कितनी परम ज्ञान की बातें सभी हिन्दुओं को आहिस्ते - आहिस्ते सिखाई गयी !
नतीजा हिन् भावना, एक दूसरे जाती पे शक, आपस में टकराव होना सुरु हुआ और अंतिम परिणाम हुआ की मजबूत, कर्मयोगी और सहिष्णु हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगा !
उनको उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ ! हजारों साल से आप साथ थे...आपसे लड़ना मुश्किल था..अब आपको मिटाना आसान है !
आपको पूछना चाहिए था की अत्याचारी राजपूतों ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना खून क्यों बहाया ?
आपको पूछना था की अगर चमार, दलित को ब्राह्मण इतना ही गन्दा समझते थे तो बाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखा उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं ?
अपने नहीं पूछा की आपको सोने का चिड़ियाँ बनाने में मारवाड़ियों और बनियों का क्या योगदान था ?
जिस डॉम को आपने नीच मान लिया, उसी के दिए अग्नि से आपको मुक्ति क्यों मिलती है ?
जाट और गुर्जर अगर लड़ाके नहीं होते तो आपके लिए अरबी राक्षसों से कौन लड़ता ?
जैसे ही कोई किसी जाती की कोई मामूली सी भी बुरी बात करे, टोकिये और ऐतराज़ कीजिये !
याद रहे, आप सिर्फ हिन्दू हैं !
एक रहे सशक्त रहे !
मिलजुल कर मजबूत भारत का निर्माण करें !
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रामेश्वर मिश्रा पंकज