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बुधवार, 26 मई 2021
advertisement में तो यही कहते है क्या आपके पेस्ट मे #नमक
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मंगलवार, 25 मई 2021
क्या सिर्फ किसी प्रोडक्ट मे ओर्गानिक लिख देने से वो आर्गेनिक हो जाता है ????
कपूर के फायदे | Camphor benefits
कपूर के फायदे |Camphor benefits:
कपूर एक बहोत हो गुणकारी और अत्यावश्यक समाग्री में से एक है। इसका इस्तेमाल हमारी हर रोग स्वस्थ्य और आध्यात्मिक कार्योमें किया जाता है। इस लेख हम जानने वाले है, की कैसे कपूर का उपयोग अपनी रोजमर्रा जिन्दगी मे आने वाले स्वास्थ्य और निरोगी रहने हेतु इस्तेमाल किया करते है।
कपूर | Camphor:
कपूर स्थान, बनावट और रंग के अनुसार अनेक प्रकार के होते हैं लेकिन यह भीमसेनी, चीनी और भारतीय कपूर के नाम से अधिका प्रचलित है। भीमसेन कपूर अच्छा होता है और इसका प्रयोग औषधि के रूप में प्राचीन काल से होता आ रहा है। यह चीनी कपूर से भारी होता है और पानी में डूब जाता है, जबकि चीनी कपूर पानी में नहीं डूबता। पिपरमेंट और अजवायन रस के साथ चीनी कपूर को मिलाने से यळ द्रव में बदल जाता है।
भारतीय कपूर(Indian Camphor) या भीमसेनी कपूर तुलसी के पौधे से प्राप्त की जाती है जो तुलसी कुल की ही एक जाति है। तुलसी की तरह ही इस पौधे की पत्तियों से तेज खुशबू आती है। इसकी पत्तियों से 61 से 80 प्रतिशत की मात्रा में कपूर मिलता है, जबकि बीजों से हल्के पीले रंग का तेल 12.5 प्रतिशत की मात्रा में निकलता है।
कपूर के पेड़ की ऊचाई 100 फुट और चौड़ाई 6 से 8 फुट तक हो सकती है। इसके तने की छाल ऊपर से खुरदरी व मटमैली होती है और अन्दर से चिकनी होती है। इसके पत्ते चिकने, एकान्तर, सुगंधित, हरे व हल्के पीले रंग के होते हैं।
इसके पत्ते 2 से 4 इंच लंबे होते हैं। इसके फूल गुच्छों में छोटे-छोटे सफेद पहले रंग के होते हैं। इसके फल पकने पर काले रंग के हो जाते हैं। बीज छोटे होते हैं।
पेड़ के सभी अंगों से कपूर की गंध आती रहती है। इसकी छाल को हल्का काटने से एक प्रकार का गोंद निकलता है जो सूखने के बाद कपूर कहलाता है।
आयुर्वेद के अनुसार: कपूर मीठा व तिखा, कडुवा, लघु, शीतल होता है और इसका रस कडुवा होता है। कपूर स्वाद में कडुवा होने के कारण त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला होता है। कपूर प्यास को शांत करने वाला, पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला, ज्वर दूर करने वाला, रुचि बढ़ाने वाला, हृदय उत्तेजक, पसीना लाने वाला, कफ निकालने वाला, दर्द को दूर करने वाला, वीर्य को बढ़ाने वाला, पेट के रोग को ठीक करने वाला एवं सूजन को मिटाने वाला होता है। यह कामोत्तेजना व गर्भाशय उत्तेजना को शांत करता है और पेट के कीड़े व कमर दर्द को दूर करता है।
फोडे़-फुंसी, नकसीर, कीड़े होना, क्षय (टी.बी.), पुराना बुखार, दस्त रोग, हैजा, दमा, गठिया, जोडों का दर्द, टेटेनस, कुकुर खांसी एवं फेफड़ों के रोग आदि में कपूर का प्रयोग करना लाभकारी होता है। दिल की धडकन बढ़ जाने पर इसके प्रयोग करने से धड़कन की गति सामान्य होती है।
वैज्ञानिक मतानुसार: कपूर एक प्रकार का जमा हुआ तेल है जो सफेद, पारदर्शक, स्फटिक, क्रिस्टल दाने एवं भुरभुरे टुकडों में प्राप्त होता है। इसमें एक प्रकार की सुगंध होती है। इसे मुंह में रखने से एक प्रकार का सुगंध अनुभव होता है जो बाद में ठंडक पहुंचाती है। यह जल में कम और अलकोहल व वनस्पतिक तेलों में अधिक घुलन शील होता है। कपूर अधिक ज्वलशील व उड़नशील होता है और आसानी से जल्दी जलता है। कपूर का रासायनिक सूत्र C10 H16O है।
कपूर का सेवन अधिक मात्रा में करने से शरीर पर विषैला प्रभाव पड़ता है जिसके कारण पेट दर्द, उल्टी, प्रलाप, भ्रम, पक्षाघात (लकवा), पेशाब में रुकावट, अंगों का सुन्न होना, पागलपन, बेहोशी, आंखों से कम दिखाई देना, शरीर का नीला होना, चेहरे का सूज जाना, दस्त रोग, नपुंसकता, तन्द्रा, दुर्बलता, खून की कमी आदि लक्षण उत्पन्न होता है।
कपूर को लगभग 1 ग्राम के चौथाई भाग की मात्रा में प्रयोग करना लाभकारी होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग:-
सांस रोग, चोट लगना व मोच आदि की शिकायत होने पर प्रतिदिन रात को थोड़ा सा कपूर मुंह में रखकर चूसना चाहिए। इससे सभी रोग दूर होता है।
4 या 5 पीस कपूर को पान में डालकर खाने से आधे घण्टे के अन्दर पर सेवन करने से पसीना आकर बुखार कम हो जाता है।
चीनी में थोड़े से कपूर को मिलाकर खाने से उल्टी बंद होता है।
कपूर को उसके 4 गुने तेल में मिलाकर चोट, मोच, ऐंठन आदि में मालिश करने से दर्द दूर होता है।
कपूर को नीम के तेल मे मिलाकर शीतपित्त के रोग से ग्रस्त रोगी के चकत्तों पर लगाना चाहिए। इससे रोग में जल्दी लाभ मिलता है।
कपूर, अजवायन रस व पिपरमिंट को बराबर मात्रा में मिला लें और इससे प्राप्त रस को 1-1 बूंद की मात्रा में बताशे में रखकर रोगी को दें। इससे हैजा रोग में बेहद लाभ होता है। (4) कपूर को महीन कपड़े में बांधकर पानी में डूबों देने से वह पानी कर्पूराम्बु कहलाता है। कर्पूराम्बु का सेवन बीच-बीच में करते रहने से स्थिति खराब नहीं हो पाती। 30 मिलीग्राम से 50 मिलीग्राम मात्रा में काफी है।
कपूर को चार गुने सरसों के तेल में मिलाकर शरीर पर मालिश करने से नाड़ी की गति सामान्य होती है।
यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है
🥵😡
बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था...
उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे..!
और एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था..!
एक ग्राहक ने पूछा
एक तीतर कितने का है..?
40 रूपये का..!
ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी।
तो वह बोला,
मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता..!लेकिन आप जिद करोगे,
तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी..!
ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,
"इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है..?"
दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है..!जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं फिर मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ..!
बाद में, मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है..!बस इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है..!
उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की सरे आम बाजार में गर्दन मरोड़ दी..!
किसी ने पूछा,
"अरे, ज़नाब आपने ऐसा क्यों किया..?
उसका जवाब था,
"ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं है जो अपने मुनाफे के लिए अपने ही समाज को फंसाने का काम करे और अपने लोगो को धोखा दे..!"
हमारी व्यवस्था में 500 रू की क़ीमत वाले बहुत से तीतर हैं..!
'जिन्हें सेक्युलर, लिबरल, वामपंथी, कम्युनिस्ट, धर्मनिरपेक्ष, जातिवादी, परिवारवादी आदि के नाम से जानते हैं..!
सावधान रहें..!! 🥸🤔
58 फीट ऊंची गंगाधरेश्वरा की मूर्ति त्रिवेंद्रम
58 फीट ऊंची गंगाधरेश्वरा की मूर्ति त्रिवेंद्रम
के अज़ीमाला मंदिर केरल
शिव मंदिरों में 58 फीट ऊंची मूर्ति गंगाधरेश्वर की सबसे ऊंची मूर्ति है
पूर्व की ओर मुख करके शिव ने अपने बालों को हवा में लहराते हुए और गंगा देवी को सिर पर धारण करते हुए कल्पना की गई है
ॐ नमः शिवाय 🙏
भय का कोई इलाज नही है सिवाय मौत के।
गांवों में बहुत सारे हुक्के , बीडी पीने वाले बुड्ढे मिल जायेंगे, जिनको सांस की दिक्कत होती है,
पीले रंग का हल्दीमिश्रित जहर जो आज 90% भारत की रसोई में है
हल्दी:-
हजारों वर्षों से भारत की संस्कृति और परंपराओं की पहचान रसोई की पहचान और आयुर्वेद और घरेलू चिकित्सा पद्धतियों की जान रही है हमारे ॠषि वैज्ञानिक पूर्वजों ने प्रकृति के प्रत्येक महाऔषध को हमारी परंपराओ और पूजा पद्धतियों से जोड़ दिया ताकी पीढ़ी दर पीढ़ी ये विज्ञान और महाऔषध हमें मिलता रहे आसपास रहे
हल्दी बचपन से ही हमारे दैनिक आहार में शामिल रही है जब भी कोई बाहरी चोट लगती तो हल्दी का लेपन भारत में आदिकाल से किया जाता रहा है और अंदरूनी चोट में हल्दी मिलाकर दूध पिलाया जाता रहा है यही हमारे बुजुर्गों का सबसे बड़ा हीलिंग प्रॉडक्ट था इसने कभी उसे निराश नहीं किया
पाश्चात्य जगत को जैसे ही इस महाऔषध के गुणों का कुछ दशक पहले ही ज्ञान हुआ तो शुरू इसके खिलाफ षड्यंत्र
सबसे पहले हल्दी की देशी किस्मों को काबू किया गया और हमें ज्यादा उत्पादन का लालच देकर हाइब्रिड बीज थमा दिया गया और भोला किसान उसके लालच में आ गया और उत्पादन हुआ उस हल्दी का जिसे हमारा शारीरिक आंतरिक ज्ञानतंत्र पहचानता ही नहीं अतः औषधीय लाभ शून्य
तब भी मन नहीं भरा और भारत में उसका अंग्रेजी दवा कारोबार नहीं फलफूल रहा था तो आए फास्टफूड पैक्ड और ब्रैड डबलरोटी डॉक्टरों को सिखाया गया रोगी को हल्दी वाली खिचड़ी नहीं बतानी मैदा से सडाकर बना ब्रैड और डबलरोटी बताओ जो कभी ना पचे और रोगी का लीवर हमेशा के लिए कमजोर पड़ जाए ताकि दवाईयां बिकती रहें इसलिए हल्दी वाला खाना फास्टफूड और पैकेज्ड फूड से बदला गया
तब भी मन नहीं भरा तो उतार दिया उद्योग जगत ने पीले रंग का हल्दीमिश्रित जहर जो आज 90% भारत की रसोई में है और 90% भारत आज रोगग्रस्त है साध्य और असाध्य लीवर किडनी और आंत की भयावह बीमारी का कारण है ये पीला जहर हृदय रोगों की जड़ है
#अब खेल यहाँ शुरू होता है पाश्चात्य चिकित्सा जगत ने हल्दी पर लिया पेटेंट और नाम दिया कर्क्यूमिन का तथा कर्क्यूमिनोइड्स का और कैप्सूल उतारा बाजार में 3500/ का 60 कैप्सूल एंटीबायोटिक एंजीकैंसरस एंटी एजिंग एंटी इंफलामेटरी एंटी वायरस एंटी फंगल
एंटी एजिंग सेल एंड बोन प्रॉटेक्टर और भारतीय ग्रेजुएट फूल्स ने पलक पावड़े बिछाकर उनकी इस महान खोज का स्वागत किया जो हल्दी मिश्रित दूध के ही समान समकक्ष है
अनुसंधानकर्ताओं ने हल्दी में मौजूद करक्यूमिन की मदद से दवा डिलिवरी का एक नया सिस्टम विकसित किया है जिसके जरिए सफलापूर्वक बोन कैंसर सेल्स को फैलने और बढ़ने से रोका जा सकता है। साथ ही हेल्दी बोन सेल्स का विकास भी होता है। अप्लाइड मटीरियल्स ऐंड इंटरफेसेज नाम के जर्नल में इस स्टडी के नतीजों को प्रकशित किया गया है।ऐसा इसलिए ताकि सर्जरी के बाद रिकवर करने की कोशिश कर रहे मरीज जो बोन डैमेज की समस्या के साथ-साथ ट्यूमर को दबाने के लिए हार्ड-हार्ड दवाइयों का भी सेवन कर रहे हैं उन्हें कुछ राहत मिल सके। हल्दी में मौजूद करक्यूमिन में ऐंटिऑक्सिडेंट, ऐंटि-इंफ्लेमेट्री और हड्डियों को विकसित करने की क्षमता होती है। साथ ही हल्दी सभी तरह के कैंसर में समान रूप से प्रभावी है अगर शुद्ध और देसी हो
क्या आप जानते हैं कि हल्दी से टाइप-2 डायबिटीज़ तक ठीक की जा सकती है.
एक अध्ययन में पाया गया है कि हल्दी भूलने की बीमारी का सामने करने वाले मरीजों के मस्तिक की गतिविधि को बेहतर बनाने में भी मदद करती है.हल्दी में मौजूद एंटीबायोटिक्स और दूध में मौजूद कैल्शियम दोनों मिलकर हड्डियों को मज़बूत बनाते हैं. इसीलिए किसी भी तरह की बोन डैमेज या फ्रैक्चर होने पर इसे खास तौर पर पीने की सलाह दी जाती है.
हल्दी को आमतौर पर हमारे देश में एक मसाला माना जाता है, लेकिन हल्दी में प्रोटीन, विटामिन ए, कैल्शियम कार्बोहाईड्रेट और मिनरल्स की प्रचुर मात्रा के अलावा एंटी-ऑक्सीडेंट,एंटी-फंगल और एंटीसेप्टिक तत्वों वाले कई सारे ऐसे औषधिय गुण पाए जाते हैं। जिसकी वजह से हल्दी का उपयोग न सिर्फ हमें कैंसर,सर्दी -खांसी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाती है और सेहतमंद बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि हमारी खूबसूरती को बढ़ाने में भी बेहद कारगर साबित हल्दी से बड़ा डिटाक्सीफायर ना है कोई विश्व में
अगर सदा जवान मजबूत निरोग और बलिष्ठ रहना है तो एक गिलास दूध गौ दुग्ध सर्वश्रेष्ठ आधा चम्मच हल्दी एक चुटकी काली मिर्च का हर रोज सेवन करो हल्दी देशी और शुद्ध होनी चाहिए
लिखता रहूँगा गुण प्रयोग समाप्त नहीं होंगे थोड़ा लिखा ज्यादा समझिये
#damaulik पर 100% शुद्ध वैदिक नॉन जेनेटिकली मॉडीफाइड हल्दी उपलब्ध है हाँ एक जानकारी कूल डूडस के लिए भी इसमें "5%गैरेंटिड करक्यूमीन और अधिक्तम कर्क्यूमिनोइड्स " के साथ
श्रेस्ठ आर्गेनिक , हानिकारक केमिकल रहित #ग्रामवेद पर आधारित हल्दी हमारे पास मौजूद
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आखिर darjuv9 का प्रोडक्ट ही क्यो उपयोग करें ??
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Food grade / Biodegradable
Recyclable packaging अपने उत्पादों मे ......
एक जिम्मेदारी जो सभी मिलकर उठाये तो समाधान हो सकता है , सभी ऐसा करे तो बेहतर होगा । जब भी कोई products खरीदे तो जरूर चेक करे कि packing क्या है ?। हम पेड़ कटने से न भी रोक सके तो कम से कम 2 पेड़ लगा तो सकते है । idea positive contribution का है । Negative impact को कम करने का एक ही तरीका है positive contribution towards environment किया जाए।
वो ही उत्पाद खरीदे ओर प्रमोट करे जिनकी पैकिंग Food grade / Biodegradable
Recyclable पैटर्न को फॉलो करें । शुरुवात खुद से ।
"..अंत से पहले सम्भलना होगा ..… मान लीजिये आज आपने 20 रुपये की पानी की बोतल खरीदी, और पीकर फेंक दिया। तो इस बोतल का 90 फीसदी हिस्सा 27-28 वीं सदी में नष्ट होगा। करीब 450 से 500 साल लगेंगे। यानि जिस बोतल में पानी पिया होगा वह आज भी मौजूद है। हर 60 मिनट में 6 करोड़ बोतल बेची जा रही है, अरबो खरबो का व्यापार है। हिन्द महासागर में करीब 28 पैच (प्लास्टिक पहाड़) का बन चुका है। जानवर मर रहे है, मछलियां, समुद्री जीव मर रहे हैं। अगला नम्बर आपका और मेरा है ।
फाइव स्टार और अन्य होटल में भारत मे रोज करीब 4 लाख पानी की बोतल का कूड़ा निकलता है। शादी विवाह में अब कुल्हड़ में पानी पीना, तांबे पीतल के जग से पानी पिलाना फैशन वाह्य है, बेल, कच्चे आम, पुदीना या लस्सी के शर्बत की जगह पेप्सी कोक की बोतल देना चाहिए नही तो लोग गंवार समझेंगे। विज्ञान के अनुसार सोडा प्यास बुझता नही, बढ़ाता है। फिर भी ठंडा मतलब ठंडा, प्यास लगे तो पेप्सी यह टीवी में दिखाता है।
यूरोप के बहुत देशों ने अपने प्रदूषण पर काबू पाया है, अब उनके नल का पानी पीने योग्य हो गया। लेकिन गंगा यमुना सहित सैकड़ों नदियों, लाखो कुंवे के देश मे पानी का व्यापार अरबो रुपये का है। लगातार भूजल नीचे जा रहा है, एनसीआर डार्क जोन बन गया है, देश के के महानगर में कूड़े और इससे रिसता लीकेज
कैंसर पैदा कर रहा है। तो क्या हुआ? जो होगा देखा जाएगा..
सोचना आपको है आने वाली पीढ़ी को क्या देके जाना चाहते है ।।???
Think
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जब बात आर्गेनिक की हो तो पैकेट मे लेबल जरूर देखें Organic Products in Jodhpur
और डुप्लीकेट मेडिसन बेचना भी एक किरदार है ,
रेमेडीसीवर इंजेक्शन बेचना किरदार है
डुप्लीकेट इंजेक्शन बेचना भी एक किरदार है ,
ब्रांड प्रोडक्ट बेचना किरदार है
ब्रांड का डुप्लीकेट बेचना भी एक किरदार है ,
ऑर्गेनिक बेचना किरदार है
डुप्लीकेट ऑर्गेनिक बेचना भी एक किरदार है
कमाते दोनों हैं दोनों के किरदार में "फर्क" होता है जनाब ..... मैं यह जो बता रहा हूं यह मैंने उस बात का उत्तर दिया था जो मुझे एक direct selling industry के व्यक्ति ने पूछा था ,
ऑर्गेनिक को लेकर के मुझे कई सारे कॉल आए थे और बहुत लोगों ने अपने प्रोडक्ट को स्टडी किया उन प्रोडक्ट्स को जिनके ऊपर ऑर्गेनिक लिखा था उसके उन्होंने पीछे लेवल चेक किए उसी में से एक व्यक्ति का कॉल आया कि ".....मेरे प्रोडक्ट में ऑर्गेनिक लिखा है लेकिन back side लेबल पे कोई सर्टिफिकेशन नहीं है तो मैंने अपने सीनियर से पूछा इस बारे में आपका क्या कहना है तो उन्होंने सीधा कोई रिप्लाई ना दे कर अपना कमीशन स्टेटमेंट भेज दिया और बोला नेगेटिव बात करने से या इधर-उधर की बात करने से बेहतर है काम पर ध्यान दो मैंने उनको बोला काम पर तो ध्यान दे ही रहा हूं लेकिन मैं जिन लोगों को प्रोडक्ट देता हूं मैं उन्हें "सही प्रोडक्ट" देना चाहता हूं इसलिए पूछ रहा हूं तो उन्होंने बोला पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है आपका मोटिवेशन डाउन है तो
मैंने उनसे बोला कि मुझे सिर्फ इस ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए पंख यानी कि सर्टिफिकेट आप बता दीजिए हौसला मेरे अंदर बहुत है फिर उन्होंने बोला कि चलो मैं तुम्हारी M D से बात करवाता हूं ,
एमडी साहब ने बोला यह प्रोडक्ट पर मेरी फोटो लगी है और कौन सा सर्टिफिकेट चाहिए मेरे से बड़ा सर्टिफिकेट क्या होगा , मैं समझ तो नहीं पाया लेकिन कुछ बोल भी नहीं पाया M D को बोलता भी क्या ?
परंतु मुझे यह समझ में आ गया कि जब तक पैसा है तो जो सामने है वह बेचो बाद में देखा जाएगा, कि policy पे काम हो रहा है लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि यह पैसा , गाड़ी जो भी चाहिए वो तो डुप्लीकेट की जगह ओरिजिनल ऑर्गेनिक प्रोडक्ट बेच कर भी आ सकता है तो फिर ऐसा क्यों तब मैंने सबसे पहले जो लिखा है वह जवाब उसको दिया था ओर यही कहा था जिस दिन एक भी ग्राहक जागा ओर उसने इनसे सवाल कर लिया तो ये पढ़े-लिखे लोग जवाब नही दे पाएंगे । ।
जागरूकता ही समाधान है
, जब बात आर्गेनिक की हो तो पैकेट मे लेबल जरूर देखें ..... know Your Products । ।
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सोमवार, 24 मई 2021
कुतुबुद्दीन की मौत और स्वामी भक्त घोड़ा "शुभ्रक"
कुतुबुद्दीन, क़ुतुबमीनार, कुतुबुद्दीन की मौत और स्वामी भक्त घोड़ा "शुभ्रक" ।। पुनः प्रसारित।।
किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों ढह का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि- वो अपने देश, अपनी संस्कृति् और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें. इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे-हिसाब जुल्म किये थे.
अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी क़ुतुबमीनार को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि- उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि- कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब क़ुतुबमीनार को बनबाया या कुतूबमीनार से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?
कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया.
अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि - तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा.
कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था.
कुतुबुद्दीन कुल चार साल ( 1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया.
जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर
विक्रमादित्य की बेधशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था. यहाँ पर 27 छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था.
दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड दिया. विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया. तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि- क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता.
अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की. इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है.
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा बिरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया.
एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि- बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना.
कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन बही पर मर गया.
इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा.
वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।
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