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रविवार, 3 अक्टूबर 2021

बालाजी आयुर्वेदिक स्टोर मधुवन द्वारा स्वदेशी आयुर्वेदिक रोग जांच शिविर संपन्न


 कोरोना से पहले भी भारत मे बीमारी के लिए आयुर्वेद प्रचलित था पर इस महामारी ने दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों की पोल खोल दी और बीमारियों से निपटने के लिए लोगो को प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की महत्ता समझ मे आई









बीमारी से निपटने के लिए जोधपुर के बालाजी आयुर्वेदिक स्टोर, मधुबन हाउसिंग बोर्ड के संचालक  अभिषेक शर्मा द्वारा दिनांक 03  अक्टुंबर २०२१ को श्री मंछापूर्ण जगदम्बा माताजी के मंदिर, मधुबन हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर के परिसर में स्वदेशी भारतीय कंपनी आईएमसी का आयुर्वेदिक रोग जाँच शिविर का आयोजन किया जिसमे आयोजक अभिषेक शर्मा, श्रीमती वंदना शर्मा के नेतृत्व में शिविर का  शुभारम्भ प्रातः १० बजे से किया गया और शिविर में जोधपुर के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए रोगी जिनको गैस, पथरी, स्त्री रोग, पाईल्स, पायरिया, किडनी रोग, मूत्र सम्बंधित बीमारियां, कोलेस्ट्रॉल, शुगर, गठिया, खांसी, जोड़ो का दर्द, श्वांस सम्बन्धी रोग, अस्थमा, दमा, कमजोरी, थकान, ह्रदय रोग, एसिडिटी, एलर्जी, सिरदर्द, पेट दर्द, बुखार, वायरल, आँखों की कमजोरी, जलन, मोटापा, डेंगू बुखार, ब्लड प्रेशर आदि से सम्बंधित जाँच के लिए पाली से स्पेशली पधारे हुए आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. एस. एस. शर्मा (BAMS, NIA ) AMO  और उनकी टीम द्वारा जाँच एवं परामर्श दिया गया,  डॉ. दिनेश जी पाराशर, डॉ. योगेंद्र कुमार दवे आदि ने अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान की 




शिविर के  जोधपुर के कंपनी के स्टार एंबेसेडर विशाल संखवाया ने  बताया की इंटरनेशनल मार्केटिंग कंपनी समय समय पर द्वारा स्वदेशी एवं आयुर्वेदिक शिविर आयोजित किये जाते है  इस शिविर को सफल बनाने एवं रोगियों की जांच में अभिषेक जी शर्मा की टीम के मुख्य कार्यकर्ताओं जिसमे श्रीमती वंदना शर्मा, कैलाशचंद्र लढा (सांवरिया), मनीष जोशी, दलवीर सिसोदिया, लक्ष्मण राम भाटी , विशाल शंखवाया, श्रीमती सुमित्रा शर्मा, श्री श्यामलाल  शर्मा, गौरव लखारा, श्रीमती  विमला शर्मा, श्रीमती लखारा, आदि ने अपना योगदान दिया और १५० से ज्यादा रोगियों ने अपनी जाँच की. अब तक कंपनी द्वारा राजस्थान मे भी कई आयुर्वेदिक शिविरों का आयोजन सफलतापूर्वक किया जा चुका है





वार्ड नंबर 43 के मधुबन हाउसिंग बोर्ड दक्षिण पार्षद श्रीमती बसंती मेवाड़ा और श्री विजय मेवाड़ा ने इस शिविर के सभी आयोजकों का आभार व्यक्त किया  और भविष्य में ऐसे शिविरों में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया

रविवार, 26 सितंबर 2021

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं


एक ऐसी कहानी जो बार बार पठन पाठन के योग्य है। मन तो, तर्क देगा ही, कि पहले से ही सुना हुआ है, पर यह बार बार पढ़ने लायक है। 
     यह एक कथा,अगर ठीक से,हमारे जीवन में उतर जाय,तो जीवन का रंग ही बदल जाएगा।
        एक बात और,किसी के प्रति,कभी भी,धन्यवाद, अहोभाव से निकले, तो ही, वास्तव में उसका महत्व है। अन्यथा,वह एक शब्द,बनकर रह जाता है।
🌹🌹🌹
अब कहानी----
टालस्टाय ने एक छोटी सी कहानी लिखी है। मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।

तुम अगर अपने को बीच में लाना बंद कर दो, तो तुम्हें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दो उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। तुम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दो। वह जो भी हो, तुम्हारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता तुम मत करना।

*हरिद्वार की गूंज*
(राष्ट्रीय समाचार पत्र)

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है।


किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं?


कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।

तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।

आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ? भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें।

उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में।

अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है   बड़े शहर में पढ़ने भेजने का

 हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं।

4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से

अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु

माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं ।  दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं

अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद

अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं।

हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?

खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में

कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है।हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं।
 वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?

पर कभी UPSC ,CIVIL SERVICES का रिजल्ट उठा कर देखियेगा, सबसे ज्यादा लोग ऐसे छोटे शहरों से ही मिलेंगे। बस मन का वहम है।

अब ये मॉल, ये बड़े स्कूल, ये बड़े टॉवर वाले मकान सिर्फ इनसे तो ज़िन्दगी नहीं चलती। एक वक्त बुढ़ापा ऐसा आता है जब आपको अपनों की ज़रूरत होती है

ये अपने आपको छोटे शहरों या गांवों में मिल सकते हैं, फ्लैटों की रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन में नहीं

कोलकाता, दिल्ली, मुंबई,पुणे,चंडीगढ़,नौएडा, गुड़गांव, बेंगलुरु में देखा है कि वहां शव यात्रा चार कंधों पर नहीं बल्कि एक खुली गाड़ी में पीछे शीशे की केबिन में जाती है, सीधे शमशान, एक दो रिश्तेदार बस और सब खत्म
भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं। आज गांव सूने हो चुके हैं।शहर कराह रहे हैं।

सूने घर आज भी राह देखते हैं.. बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता। सबको समझाइए, बसाइए लोगों को छोटे शहरों और जन्मस्थानों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं। क्या आप भी उनमेसे एक तो नहीं है......?

🙏🙏🙏

शनिवार, 25 सितंबर 2021

जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।


*शत्रु कौन है?* 
*ठन्डे दिमाग से विचार करें*

19 साल की अमृता (एमी) जिसका अभी अभी कॉलेज में एडमिशन हुआ है, उसने टीवी पर चल रहे वाद विवाद को देखते हुए अपने पापा से पूछा "व्हाट्स रॉन्ग विद दिस ऐड पापा? व्हाय ऑल द हिंदूस आर अगेंस्ट दिस ऐड? आलिया इज़ राइट, डॉटर्स आर नॉट वन्स पर्सनल ऐसेट्स, एनी वन कैन डोनेट देम। डॉटर्स आर लव सो कन्यादान इस रॉन्ग एंड कन्यामान इस राइट।

अपनी जिंदगी के लगभग पैंतालीस बसंत देख चुके बसंतराम जी ने गहरी सांस छोड़ी। टीवी का रिमोट उठाकर उसकी आवाज़ को म्यूट किया और अपनी बेटी की तरफ मुड़े। थोड़ी देर तक उसे अपने मोबाइल फोन में फेसबुक की पोस्ट्स पर आलिया को सपोर्ट करते हुए पोस्ट करते हुए देखते रहे फिर मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा। एमी ने उनकी तरफ देखा और कहा व्हाट हैपेंड डैड?

बसंतराम जी ने कहा "पिछले हफ्ते जब तेरी मां ने तेरे लिए साड़ी ली थी तो लगा तू कितनी बड़ी हो गई लेकिन आज तेरी बातें सुनकर पता चला तू तो अभी भी वैसी ही छोटी सी है जैसी बचपन में हुआ करती थी। तुझे पता है, तुझे मेले में जाना इतना पसंद था कि कोई अगर झूठ भी ये कह दे कि मैं मेला जा रहा हूं तो तू उसके साथ चल पड़ती थी चाहे तू उसे जानती हो या ना हो। रात में जलते रंग बिरंगे नाइटबल्ब को देखकर भी तू यही कहती थी कि मेला शुरु हो गया है।

एमी ने मुंह बनाते हुए कहा "व्हाट डैड!" बसंतराम जी ने मुस्कुराते हुए कहा "तू अब भी झूठी चकाचौंध देखकर आकर्षित हो जाती है।" एमी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अपने पिता की ओर देखा तो उन्होंने कहा "तुझे पता है 'अमृता', 'मान' किसे कहते हैं?" एमी ने तुरंत अपने फोन में गूगल खोलते हुए कहा "होल्ड ऑन डैड, आई विल टेल यू।

उसके पिताजी ने फोन की स्क्रीन पर हाथ रखते हुए कहा गूगल पर मतलब ढूंढेगी तो बताएंगे किसी वस्तु का नाप लेकिन इसका एक अर्थ और होता है। मान, मतलब आदर, इज्ज़त, सम्मान। कन्यामान, इस शब्द को तुम आज के बच्चे हैशटैग लगाकर जो प्रसिद्ध कर रहे हो, ये तुम्हारे लिए नया होगा। इसके पीछे के जिस भाव को तुम दर्शाना चाह रहे हो वो तुम लोगों के लिए नए हैं। हम और हमारी पहले की असंख्य पीढियां कन्या के मान और सम्मान के लिए हमेशा से प्रतिबद्ध रही हैं।

उन्होंने बोलना जारी रखा ,इतिहास के पन्ने पलटकर देखो जरा अमृता, कन्या का जो स्थान हमारे सनातन धर्म में है वो शायद ही किसी अन्य धर्म में होगा। हम कन्याओं को पूजते हैं, हमने उन्हें देवी का पद दिया है तो तुम्हें क्या लगता है कि हम उनका मान नहीं करेंगे? हम तो खुद उन्हीं के जने हुए हैं, हमारी क्या औकात की हम उन्हें कुछ दें, हमारा जीवन तो खुद हमें उन्हीं की दी हुई भेंट है और तुम्हें लगता है उन्हीं के दिए हुए जीवन में हम उन्हें मान दिए बिना ही जीवित हैं। 

अमृता ने कहा "बट डैड..." बसंतराम जी ने उसकी बात काटते हुए कहा "ये जो तुम आज मेरे सामने जींस पहनकर बैठी हो, हाथ में महंगा फोन और अनलिमिटेड इंटरनेट का लुत्फ उठा रही हो, अपनी मर्ज़ी के हिसाब से खा पी रही हो, पहन ओढ़ रही हो, घूमने जा रही हो, दोस्त बना रही हो, अपने विचार मेरे सामने, समाज के सामने रख रही हो, अच्छे खासे अमृता नाम को भूलकर एमी नाम रखकर घूम रही हो, ये सब मान ही है जो हम तुम्हें देते हैं क्योंकि तुम हमारी बेटी ही नहीं, एक कन्या भी हो। बचपन में नवरात्रि के दिनों में हमने तुम्हारी पूजा की है, तुम्हें साक्षात देवी मानकर, तुम्हारे पैर छुए हैं, पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ, और आज तुम और तुम्हारे जैसी नई पीढ़ी के बच्चे हमें सिखा रहे हैं कि हमें कन्या का मान करना चाहिए।

अब उनकी आवाज थोड़ी ऊंची हो गई "एक बार उन मजहब वालों के समाज में, उनके देशों में जाकर देखो, वहां कन्याओं की क्या स्थिति है? वहां अपनी मर्जी से घूमना फिरना, पहनना छोड़ो अपनी मर्जी से खा भी नहीं सकती वो कन्याएं जिन्हें वहां के लोग खा तून कहते हैं। इस शब्द का मतलब समझती हो, क्यों उन्हें वहां खा तून कहते हैं? खा तून मतलब खाओ और तुनक जाओ। वहां स्त्रियों को सिर्फ और सिर्फ भोगा जाता है और यहां स्त्रियों को भजा जाता है। और अगर तुम्हें ये सब आज के भारत में दिख रहा है तो ये जहर भी उन्हीं मजहबी लोगों का फैलाया हुआ है। एक बार तुम अगर अपनी आंखों से वो सब देख लोगी ना तो तुम्हें कन्यामान का सही अर्थ पता लग जायेगा और मैं तो हैरान हूं कि अफगानिस्तान की स्थिति देखने के बाद भी तुम कैसे ये कह सकती हो।

बसंतराम जी चुप हो गए। अमृता ने भी कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद वो बोले "बेटा कन्यादान का अर्थ ये नहीं कि हम अपनी बेटी किसी और को दे रहे हैं क्योंकि अब हम उसकी परवरिश नहीं कर सकते या उसके खर्चे नहीं उठा सकते। अरे जिस मां बाप ने कन्या को जन्म दिया वो जीवनभर उसका पालन पोषण कर सकते हैं लेकिन कन्यादान करने के पीछे समाज का एक बहुत बड़ा हित छुपा होता है। कन्यादान, अग्नि को साक्षी मानकर, सभी देवी देवताओं का आह्वान कर के, अपनी कन्या को एक योग्य वर के हाथों में सौंपने का प्रण होता है ताकि वो कन्या एक नए परिवार में जाकर एक नई पीढ़ी के निर्माण की सृजना बन सके। एक ऐसे समाज का निर्माण कर सके जहां प्रेम, वात्सल्य और सम्मान हो और वर भी उसका वरण पूरे मनोयोग से करता है और वचन देता है कि जो स्त्री अपनी जननी और जन्मभूमि को त्याग कर, बिना किसी स्वार्थ के, परमार्थ की इच्छा से केवल समाज के हित के लिए उसके पास आ रही है वो उसका आजीवन भरण, पोषण और रक्षा करेगा।

कन्यादान की ये व्याख्या सुनकर अमृता तो हैरान ही हो गई। उसने कहा "सॉरी डैड, मुझे तो ये सब पता ही नहीं था। अच्छा आप ये सब दुबारा एक्सप्लेन करोगे क्या, वो मेरा फ्रेंड है ना आरिफ़, उसे बताना है कि कन्यादान की ये वैल्यू होती है। वो अक्सर कहता है कि तुम हिंदुओं के रीति रिवाज बहुत...

 अरे वो होता कौन है हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाने वाला???" अमृता की बात पूरी सुने बिना ही बसंतराम जी गरज पड़े "किसने हक दिया उसे कि वो हमसे प्रश्न करे हमारे रीति रिवाजों को लेकर वो भी तब जब वो उत्तर सुनने के लायक भी नहीं!!! किसने अधिकार दिया उसे कि वो हमारे धर्म, हमारे धार्मिक स्थान, हमारे संस्कार, हमारे रीति रिवाजों के बारे में टिप्पणी करे? आखिर किसने??

अमृता के मुंह से टूटे फूटे से बोल निकले "वो मैं... बस....

"अमृता" बसंतराम जी बोले "जब वो आरिफ तुमसे तुम्हारे सनातन धर्म के बारे में सवाल करता है तो तुम चुप हो जाती हो, जब वो हमारे धार्मिक स्थानों के बारे में उल्टा सीधा कहता है तो तुम उसे जवाब नहीं देती, जब वो हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाता है तुम उसी का साथ देती हो। कभी तुमने उस से पलटकर उसके मजहब के बारे में सवाल किया है? कभी उस से पूछा है कि हलाला क्यों किया जाता है? कभी जानने की कोशिश की है कि वो तीन तलाक के फैसले का इतना विरोध क्यों कर रहे थे? अरे ये ऐसे लोग हैं अमृता कि अगर इनका अपना स्वार्थ ना हो ना तो ये स्त्रियों को पानी तक न पीने दें। ऐसे लोगों को क्या हक है कि हमारे धर्म, हमारे रीति रिवाजों, हमारे कन्यादान जैसे तप पर सवाल उठाएं।

"अमृता, मैंने तुम्हें बचपन से सिखाया है कि जब तक कोई काम तुम खुद अच्छे से करना ना सीख लो तब तक दूसरों को उसके बारे में ज्ञान न दो। जिस नैतिकता का पाठ ये लोग हमें पढ़ाने की कोशिश करते हैं, इनका खुद उस से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं इसलिए ऐसे लोगों के फालतू सवालों का या तो मुंह तोड़ जवाब दो या इनका मुंह ही तोड़ दो लेकिन अपने सनातन पर कभी किसी को उंगली मत उठाने दो। यही हमारा सच्चा धर्म है।

अमृता पिताजी की बातों से काफी प्रभावित हुई। उसने उन्हें वचन दिया कि आज के बाद वो खुद भी अपने धर्म के बारे में जानेगी और दूसरों को भी उसके बारे में बताएगी। तभी मां ने आवाज लगाई "आ जाओ, खाना खा लो सब।" बसंतराम जी ने कहा "चलें एमी?" अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा एमी नहीं, अमृता।

...यूट्यूब पे शत्रु बोध का ज्ञान पेलने वालों विचार करो शत्रु कौन है? बाहरी शत्रु से हम लड़ सकते है पर जो अंदर से सनातन को खोख्ला कर रहे है उनसे कौन लड़ेगा ?

*कड़वा  सच।*

_शत्रु बोध नहीं हमारा ज्ञान बोध ही हमारी सनातन संस्कृति की रक्षा करेगा।_

*_और जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।_*

इतनी गरीबी आ गयी कि अब बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाना पड़ रहा है ?


पिछले दिनों Gurgoan जाना हुआ । 
वहां एक मित्र  Navi Singh के घर रुका । उनकी छोटी बहन अमरीका में रहती हैं । छुट्टियों में घर आई हुई थीं ।
 बातों बातों में बताने लगी कि 
*अमरीका में बहुत गरीब मजदूर वर्ग McDonald , KFC और Pizza Hut का burger पिज़्ज़ा ,खाता है ।*
 

अमरीका और Europe के रईस धनाढ्य करोड़पति लोग *ताज़ी सब्जियों उबाल के खाते हैं ,*
ताज़े गुंधे आटे की गर्मा गर्म bread/रोटी खाना बहुत बड़ी luxury है ।
 
ताज़े फलों और सब्जियों का Salad वहां नसीब वालों को नसीब होता है ........ 
ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां अमीर लोग ही Afford कर पाते हैं । 

गरीब लोग Packaged food खाते हैं । 
हफ़्ते / महीने भर का Ration अपने तहखानों में रखे Freezer में रख लेते हैं और उसी को Micro Wave Oven में गर्म कर कर के खाते रहते हैं ।

आजकल भारतीय शहरों के नव धनाढ्य लोग 
*अपने बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाते हैं ।*
 उधर अमरीका में कोई ठीक ठाक सा मिडल किलास आदमी McDonalds में अपने बच्चे का हैप्पी बड्डे मनाने की सोच भी नही सकता ......... 
लोग क्या सोचेंगे ?
 इतने बुरे दिन आ गए ? *इतनी गरीबी आ गयी कि अब बच्चों का हैप्पी बड्डे मकडोनल में मनाना पड़ रहा है ?*

भारत का गरीब से गरीब आदमी भी ताजी सब्जी , ताजी उबली हुई दाल भात खाता है ......... 
ताजा खीरा ककड़ी खाता है।
 अब यहां गुलामी की मानसिकता हमारे दिल दिमाग़ पे किस कदर तारी है ये इस से समझ लीजिये कि
 *Europe अमरीका हमारी तरह ताज़ा भोजन खाने को तरस रहा है और हम हैं कि Fridge में रखा बासी packaged food खाने को तरस रहे हैं ।*

 अमरीकियों की Luxury जो हमें सहज उपलब्ध है हम उसे भूल *उनकी दरिद्रता अपनाने के लिए मरे जाते हैं ।*

ताज़े फल सब्जी खाने हो तो फसल चक्र के हिसाब से दाम घटते बढ़ते रहते है ।

इसके विपरीत डिब्बाबंद Packaged Food के दाम साल भर स्थिर रहते है बल्कि समय के साथ सस्ते होते जाते हैं । 
जस जस Expiry date नज़दीक आती जाती है , डिब्बाबंद भोजन सस्ता होता जाता है और एक दिन वो भी आ जाता है कि Store के बाहर रख दिया जाता है , 
*लो भाई ले जाओ , मुफ्त में।*
 हर रात 11 बजे Stores के बाहर सैकड़ों लोग इंतज़ार करते हैं ....... 
*Expiry date वाले भोजन का।*

125 करोड़ लोगों की विशाल जनसंख्या का हमारा देश आज तक किसी तरह ताज़ी फल सब्जी भोजन ही खाता आया है ।
*ताज़े भोजन की एक तमीज़ तहज़ीब होती है । ताज़े भोजन की उपलब्धता का एक चक्र होता है । ताज़ा भोजन समय के साथ महंगा सस्ता होता रहता है।*

 आजकल समाचार माध्यमों में टमाटर और हरी सब्जियों के बढ़ते दामों के लेकर जो चिहाड़ मची है 
*वो एक गुलाम कौम का विलाप है ........* 
जो अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत को भूल अपनी गुलामी का विलाप कर रही है ।

*भारत बहुत तेज़ी से ताजे भोजन की समृद्धि को त्याग डिब्बेबन्द भोजन की दरिद्रता की ओर अग्रसर है।*

मित्रों इस पोस्ट को हर हिंदुस्तानी के 
*मोबाइल और मन मष्तिष्क* में पहुँचा दो। जिससे हम अपने लोगों को अच्छी जानकारी देकर स्वस्थ रख पाए।।

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

सुखी जीवण रा टोटका


*सुखी जीवण रा टोटका*
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*झोड़ नहीं झिकाळ नहीं,* फालतू पंपाळ नहीं! 
झगड़ो नहीं टंटो नहीं,*झूठो छातीकुटो नहीं!* 

*नशो नहीं पतो नहीं,* अंटसंट खाणों नहीं! 
कोट कचेड़ी थाणों नहीं,*गलत रास्ते जाणों नहीं!* 

*मिले जका में संतोषी,* भेळो करणं री भूख नहीं! 
सुबह शाम सुमरण करे,*इणमें होवे चूक नहीं!* 

*गााय कुत्ता नें रोटी देवे,* पंछीयां ने चुग्गो देवे!
घर आया री करे खातरी,*हाजरी में ऊभो रेवे!*
 
*थारी नहीं म्हारी नहीं,* बहम री बीमारी नहीं! 
लाग नहीं लपेट नहीं,*लेणों नहीं देणों नहीं!*
 
*घर की बात घर में राखे,* पाड़ोसी नें केणों नहीं! 
फैशन नहीं शौक नहीं,*भटकणं री आदत नहीं!*
 
*माथे नहीं चोटी नहीं,* मांगणं री आदत नहीं! 
खुदरो काम खुद करे,*दूजा नें सताणों नहीं!*
 
*खुदकी नींद उड ज्यावे तो,* दूजां नें जगाणों नहीं! 
काम नहीं क्रोध नहीं,*कोई सुं विरोध नहीं!*
 
*चिंता नहीं सोच नहीं,* कोई की भी होड नहीं! 
झूठ नहीं कपट नहीं,*थोड़ो भी अभिमान नहीं!*
 
*झूठी थोथी शान नहीं,* अकड़ अर गुमान नहीं! 
सादगी रो जीवणों,*लोग दिखाऊ ठाठ नहीं!*
 
*आपस में विश्वास राखे,* मन में राखे गांठ नहीं! 
सुख शांति घर में रेवे,*रोज मचे घमसाणं नहीं!*
 
*राम री गिरस्थी सुखी,जठै खींचाताणं नहीं!*

*༺꧁ जय भवानी👏🏻🌺🔱🚩꧂༻*

साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल


साधारण जुकाम से लकवा तक में असरदार जायफल ₹500 किलो बिकता है!




प्रकृति के अनुपम उपहार हैं जायफल। इसे हम मसाले में प्रयोग करते हैं।
मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है

मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पर उपलब्ध हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का एक इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदार होता है। पकने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके कड़े खोल को तोड़ने पर भीतर से जायफल प्राप्त होता है। ।


जायफल घिसकर उस पानी का सेवन करें व नाभि पर लेप लगाने से दस्त आने बन्द हो जाते हैं। मुहांसे होने पर जायफल को दूध में घिसकर चेहरे पर लेप लगाने से मुहांसे समाप्त हो जाते हैं।

पाचन तंत्र
आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से गैस हटाता है।

सर्दी-खांसी
सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।

सर्दी से सुरक्षा
सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन को मुंह में रखकर चूसते रहिये। यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये। यह शरीर की स्वाभाविक गर्मी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।

बढ़ाए भूख
आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी, भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा।

दस्त और पेट दर्द
दस्त आ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये। एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये। सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं।

लकवा वाले अंगों में फूंकता है नई जान
लकवा का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिसकर रोज लेप करना चाहिए, दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की संभावना देखी गयी है।

प्रसव बाद कमर दर्द में फायदा
प्रसव के बाद अगर कमर दर्द खत्म नहीं हो रहा है तो जायफल पानी में घिसकर कमर पर सुबह-शाम लगाएं, एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा।

फटी एड़ियों पर लगाएं
फटी एडियों के लिए जायफल महीन पीसकर बिवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।

हृदय को बनाए मजबूत
जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है। पेट भी ठीक रहता है।

जी मिचलाए तो पिएं जायफल मिक्स पानी 
जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है।

मिटा देता है पुराने घावों के निशानों को
कई बार त्वचा पर कुछ चोट के निशान रह जाते हैं तो कई बार त्वचा पर नील और इसी तरह के घाव पड़ जाते हैं। जायफल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करें। जहां भी आपकी त्वचा पर पुराने निशान हैं रोजाना मालिश से कुछ ही समय में वे हल्के होने लगेंगे। जायफल से मालिश से रक्त का संचार भी होगा और शरीर में चुस्ती-फुर्ती भी बनी रहेगी।

बढ़ाता है आंखों की रौशनी
इसे थोडा सा घिसकर काजल की तरह आंख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है और आंख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है।

शक्ति के साथ बढ़ाए आवाज में सम्मोहन भी
यह शक्ति भी बढाता है। जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है।

मिटाए चेहरे की झाईयां
चेहरे पर या फिर त्वचा पर पड़ी झाईयों को हटाने के लिए आपको जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसना चाहिए। घिसने के बाद इसका लेप बना लें और इस लेप का झाईयों की जगह पर इस्तेमाल करें, इससे आपकी त्वचा में निखार भी आएगा और झाईयों से भी निजात मिलेगी।

झुर्रियों का है दुश्मन
चेहरे की झुर्रियां मिटाने के लिए आप जायफल को पीसकर उसका लेप बनाकर झुर्रियों पर एक महीने तक लगाएंगे तो आपको जल्द ही झुर्रियों से निजात मिलेगी। जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है, मुहांसे ख़त्म होते हैं।

बार-बार लघुशंका जाने से मिलेगा छुटकारा
किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली 2-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये, दिन में एक बार, खाली पेट, 10 दिन लगातार।

बच्चों की करे सुरक्षा
बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये, फिर 3 चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को सुबह शाम चटायें।

आंखों के नीचे से मिटाए काला घेरा
आंखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए रात को सोते समय रोजाना जायफल का लेप लगाएं और सूखने पर इसे धो लें। कुछ समय बाद काले घेरे हट जाएंगे।

दूर भगाए अनिद्रा को
अनिद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इसका त्वचा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। त्वचा को तरोताजा रखने के लिए भी जायफल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको रोजाना जायफल का लेप अपनी त्वचा पर लगाना होगा। इससे अनिद्रा की शिकायत भी दूर होगी और त्वचा भी तरोताजा रहेगी।

दांत दर्द को करे तुरंत ठीक
दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।

पेट दर्द में फायदा
पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।

मुंह के छालों को करे ठीक
जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी।

दूध पाचन
शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।



जायफल की खेती कैसे करें

जायफल के पौधों के विकास के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु काफी उपयुक्त मानी जाती है. जायफल का पौधा समुद्र तल से 1300 मीटर के आसपास की ऊंचाई तक आसानी से विकास कर सकता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती. इसकी खेती किसानों के लिए कम खर्च में अधिक लाभ देने वाली मानी जाती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
जायफल की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली गहरी उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन व्यापारिक रूप से पौधों के जल्द विकास करने के लिए इसके पौधों को बलुई दोमट मिट्टी या लाल लैटेराइट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के भूमि का पी. एच. मान सामान्य के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान
जायफल का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. इसके पौधे को विकास करने के लिए सर्दी और गर्मी दोनों मौसम की आवश्यकता होती है. लेकिन अधिक सर्दी और गर्मी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही मानी जाती. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए नुक्सानदायक माना जाता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है. इसके अलावा शुरुआत में पौधों के विकास के दौरान उन्हें हल्की छाया की जरूरत होती है.

इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरण के वक्त 20 से 22 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है. अंकुरण के बाद इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान (25 से 30) की जरूरत होती हैं. वैसे इसके पूर्ण रूप से तैयार पेड़ गर्मियों में अधिकतम 37 और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास के तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं.

पौध तैयार करना
जायफल की खेती के लिए इसकी पौध बीज और कलम दोनों के माध्यम से नर्सरी में तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने में सबसे बड़ी समस्या इसके नर और मादा पेड़ों के चयन में होती है. क्योंकि बिना फलों के लगे इसके पौधों में नर और मादा का चयन करना काफी कठिन होता है. इसलिए बीज से तैयार करने पर काफी बार ज्यादातर पौधे नर के रूप में प्राप्त हो जाते हैं. इस कारण इसकी पौध कलम रोपण के माध्यम से तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों को उचित मात्रा में उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी से भरी पॉलीथीन में लगा दें. और पॉलीथीन को छायादार जगह में रख दें. जब इसके पौधे अच्छे से अंकुरित हो जाए. तब उन्हें लगभग एक साल बाद खेत में लगा दें.

कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की सबसे अच्छी विधि कलम दाब और ग्राफ्टिंग होती है. लेकिन ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना काफी आसान होता है. ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए अच्छे से उत्पादन देने वाली किस्म के पौधों की शाखाओं से पेंसिल के सामान आकार वाली कलम तैयार कर लें. उसके बाद इन कलमों को जंगली पौधों के मुख्य शीर्ष को काटकर उनके साथ वी (<<) रूप में लगाकर पॉलीथीन से बांध दें. इनके अलावा कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की अन्य विधियों की अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं.

पौध रोपाई का तरीका और टाइम
जायफल के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है. लेकिन पौधों की रोपाई से पहले गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटे आकार का गड्डा बना लें. गड्डे को बनाने के बाद उसे गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए, ताकि पौधे को शुरूआती दौर में किसी तरह की बीमारियों का सामना ना करना पड़े.


गड्डों को उपचारित करने के बाद पौधे की पॉलीथीन को हटाकर उसमें लगा दें. उसके बाद पौधे के तने को दो सेंटीमीटर तक मिट्टी से दबा दें.

इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त समय बारिश का मौसम होता है. इस दौरान इसके पौधों की रोपाई जून के मध्य से अगस्त माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है. इसके अलावा किसान भाई इसके पौधों को मार्च के बाद भी उगा सकते हैं. इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है.

पौधों की सिंचाई
जायफल के पौधों को सिंचाई की जरूरत शुरुआत में अधिक होती है. शुरुआत में इसके पौधों की गर्मियों के मौसम में 15 से 17 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए. और सर्दियों के मौसम में 25 से 30 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों को पानी की आवश्यकता नही होती. लेकिन बारिश सही वक्त पर ना हो और पौधों को पानी की जरूरत हो तो पौधों को पानी आवश्यकता के अनुसार देना चाहिए. जब पौधा पूरी तरह बड़ा हो जाता है तब पौधे को साल में पांच से सात सिंचाई की ही जरूरत होती है, जो पौधों की गुड़ाई और फल लगने के दौरान की जानी चाहिए.

 

पौधों की देखभाल
किसी भी फसल या पौधों की देखभाल कर उसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है. उसी तरह जायफल की खेती में इसके पौधों की देखभाल कर जल्दी और अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसके पौधों को देखभाल की जरूरत शुरुआत से ही होती है. शुरुआत में इसके पौधों के विकास के दौरान उन पर एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई पर किसी भी तरह की कोई शाखा का निर्माण ना होने दें. इससे पौधे का तना मजबूत और पौधों का आकार अच्छा बनता है.

उसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए और फल देने लगे तब उसकी कटाई छटाई करते रहना चाहिए. इसके पौधों की कटाई छटाई फलों के तोड़ने के बाद करनी चाहिए. इस दौरान पौधे सुषुप्त अवस्था में होते है. पौधों की कटाई छटाई के वक्त पौधों पर दिखाई देने वाली रोगग्रस्त और सूखी हुई डालियों के साथ साथ अनावश्यक शाखाओं को भी निकाल देना चाहिए. इससे पौधे में नई शाखाएं बनती है. जिससे पेड़ो की उत्पादन क्षमता बढती है. और किसान भाइयों को अधिक उत्पादन मिलता हैं.

अतिरिक्त कमाई
जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई अपने खेत में मौजूद खाली जमीन पर कम समय की बागवानी, औषधीय, सब्जी और अन्य फसलों को उगाकर अच्छा उत्पादन ले सकता हैं. जिससे किसान भाई को उसकी भूमि से लगातार उचित उत्पादन भी मिलता रहता है और उसे किसी भी तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ता. वैसे इसकी खेती 15 से 20 साल पहले उगाये गए नारियल के खेतों में भी सहफसली के रूप में की जा सकती है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
जायफल के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित समय रहते देखभाल ना की जाए तो पौधों की पैदावार के साथ साथ उनके विकास को भी काफी हद तक प्रभावित करती है.

फलों की तुड़ाई और छटाई

जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. लेकिन पौधों से पूर्ण रूप से पैदावार लगभग 18 से 20 साल बाद मिलती है. इसके पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार होते हैं. इसके फल जून से लेकर अगस्त माह तक प्राप्त होते हैं. इसके फल पकाने के बाद पीले दिखाई देने लगते हैं. फलों के पकने के बाद उनके बाहर का आवरण फटने लगता है. तब इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. फलों की तुड़ाई के बाद जायफल को जावित्री से अलग कर लेते हैं. शुरुआत में जावित्री का रंग लाल दिखाई देता हैं. जो सूखने के बाद हल्के पीले रंग में बदल जाता है.

पैदावार और लाभ

जायफल की खेती में पैदावार और लाभ पौधे के विकास के साथ साथ बढ़ता जाता है. इसके पौधे को लगाने में अधिक खर्च शुरुआत में ही आता है. जायफल के पूर्ण रूप से तैयार एक पेड़ से सालाना 500 किलो के आसपास सूखे हुए जायफलों की पैदावार प्राप्त होती है. जिनका बाजार भाव 500 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई की एक बार में एक हेक्टेयर से दो से ढाई लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.

सोमवार, 20 सितंबर 2021

बोया और काटा का सिद्धान्त


भारतीय संस्कृति के संस्मरण सुमन


बोया और काटा का सिद्धान्त

 एक बार एक आदमी रेगिस्तान में कहीं भटक गया। उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था।

 वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है पर कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी ! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था पर बेचारे के पास यकीन करने के अलावा को चारा भी तो न था आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी।

 वह अपनी बची-खुची ताकत से झोंपडी की तरफ रेंगने लगा जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोंपड़ी थी ! पर ये क्या ? झोंपडी तो वीरान पड़ी थी ! मानो सालों से कोई वहां भटका न हो। फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोंपड़ी के अन्दर घुसा अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ…

 वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नयी ऊर्जा से भर गया पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिन हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था आदमी निराश हो गया उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा !

 तभी उसे झोंपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी ! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका ! वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से चिपका एक कागज़ दिखा उस पर लिखा था- इस पानी का प्रयोग हैण्ड पंप चलाने के लिए करो और वापस बोतल भर कर रखना नहीं भूलना।

 ये एक अजीब सी स्थिति थी, आदमी को समझ नहीं आ रहा था कि वो पानी पिए या उसे हैण्ड पंप में डालकर उसे चालू करे !

उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे अगर पानी डालने पर भी पंप नहीं चला अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई और क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे !
फिर कुछ सोचने के बाद उसने बोतल खोली और कांपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान् से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा एक-दो-तीन और हैण्ड पंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा !

 वो पानी किसी अमृत से कम नहीं था… आदमी ने जी भर के पानी पिया, उसकी जान में जान आ गयी, दिमाग काम करने लगा। उसने बोतल में फिर से पानी भर दिया और उसे छत से बांध दिया। जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और शीशे की बोतल दिखी। खोला तो उसमे एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था जिसमे रेगिस्तान से निकलने का रास्ता था।

आदमी ने रास्ता याद कर लिया और नक़्शे वाली बोतल को वापस वहीं रख दिया । इसके बाद वो अपनी बोतलों में पानी भर कर वहां से जाने लगा कुछ आगे बढ़ कर उसने एक बार पीछे मुड़ कर देखा फिर कुछ सोच कर वापस उस झोंपड़ी में गया और पानी से भरी बोतल पर चिपके कागज़ को उतार कर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा-
मेरा यकीन करिए ये काम करता है !

 दोस्तों, ये कहानी संपूर्ण जीवन के बारे में है। ये हमे सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी अपनी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस आदमी ने नल चलाने के लिए मौजूद पूरा पानी उसमे डाल दिया।

शनिवार, 18 सितंबर 2021

QR Code क्या है और कैसे काम करता है

QR Code क्या है कैसे बनाए ?

What is QR code in Hindi जाने


What is QR code in Hindi (QR Code क्या है और कैसे काम करता है ?)तो क्या आप भी उन्ही लोगों मे से है जिन्हे QR Code को स्कैन करके पेमेंट करना ज्यादा अच्छा लगता है।

पर क्या आप जानते है QR Code क्या है (What is QR code in Hindi) आज छोटे दुकान से लेके बड़े -बड़े कॉम्पनियों के अपने QR code होते है।जिसे हम स्कैन करके बड़े ही आसानी से उस कंपनी के URL या उस प्रोडक्ट की जानकारी पा लेते है।वैसे तो हर कोई QR code बना सकता है।

QR code कैसे बनाए हम इस आर्टिकल मे जानेंगे।QR code आज हर जगह देखने को मिलता हम जब भी किसी को UPI पेमेंट करते है तो दुकानदार हमे अपना QR code स्कैन करने को कहता है और इंटरनेट की मदद से पेमेंट पूरा जाता है। पलक झपकते ही

QR Code क्या है (What is QR code in Hindi)

Full form of QR code/QR code का पूरा नाम होता है Quick Response Code जो की दिखने मे एक सफेद पेज पर बने चौकोर ग्रिड मे व्यवस्थित काले वर्ग के होते है।

जिसे किसी भी कैमरा द्वारा स्कैन करके पड़ा जा सकता है।इसका स्तेमाल आज ज्यादा तर UPI पेमेंट करने के लिए कीया जाता है तथा किसी भी प्रोडक्ट मे इसे लगाया जाता है।

जिसमे उस प्रोडक्ट की सारी जानकारी होती है। QR code को कोई भी इस्तेमाल कर सकता है

चाहे वह पर्सनल यूज के लिए हो या प्रोफेसनल यूज के लिए इसे आप अपने विजिटिंग कार्ड मे भी प्रिन्ट कर सकते है जिसमे आप अपना ईमेल तथा वेबसाईट और पता स्टोर कर सकते है।

barcode cellphone close up coded

यह बार कोड UPC (universal product code) से तेज पड़ने तथा ज्यादा मेमोरी होने के वजह से महसूर है इसे स्कैन करने पर बहुत ही तेजी से आप इसके अंदर छिपे डेटा को पढ़ सकते है।

QR Code का इतिहास – History of QR Code in Hindi?

इसे सन 1994 में DENSO WAVE द्वारा जापान में announce किया गया है।जो की अपने तेज गति से डेटा को पड़ने के लिए महसूर है।

Smartphone से QR Code कैसे स्कैन करे

यदि आप अपने स्मार्ट फोन से QR Code को स्कैन करना चाहते है तो यह बड़ा ही आसान है।यह निर्भर करता है की आपको QR Code किस काम के लिए स्कैन करना है

जैसे किसी को online payment करना है या किसी भी प्रोडक्ट या विजिटिंग कार्ड की QR Code को स्कैन करना है

Online payment के लिए QR Code कैसे स्कैन करे जाने

यदि आप किसी को UPI payment करना चाहते है तो आप सबसे पहले अपने किसी भी UPI Payment एप को खोले

जैसे Google pay, Phone Pe जब आप इनमे से कोई आप खोलेंगे तो आपको Google pay मे ऊपर left साइड कोने मे और Phone Pe मे ऊपर के Right side मे आपको QR स्कैन का लोगों या फिर ऑप्शन दिखेगा आपको उसे खोलना है

और आपका स्कैनर खुल जाएगा आब किसी भी UPI QR Code के सामने रखे स्कैनर उसे पलक झपकते ही स्कैन कर लेगा।

  • किसी अन्य QR Code जैसे किसी विजिटिंग कार्ड के QR Code को कैसे स्कैन करे जाने

यदि आप इसी प्रोडक्ट या फिर विजिटिंग कार्ड पर बने QR Code को स्कैन अपने स्मार्ट फोन से करना चाहते है

तो इसके लिए आप गूगल प्ले स्टोर पर जाए और किसी भी QR Code स्कैनर को डाउनलोड करे और इंस्टाल हो जाने पर उसे खोले और स्कैन करे .

QR Code मे क्या स्टोर करे

QR Code मे क्या स्टोर करे यह सवाल आपके मन मे भी आ रही होगी तो हम जानते है। QR Code आज कोई भी बना सकता अगर आप भी चाहते है

अपने बिजनस या अपने विजिटिंग कार्ड मे QR Code भी जोड़ना चाहते है तो QR Code कैसे बनाए हम आगे जानेंगे फिलहाल जानते है।

QR Code मे क्या स्टोर करे हम QR Code मे किसी भी तरह का URL,LINK,तथा अपने ईमेल आइडी और फोन नंबर और बिजनस का पता स्टोर कर सकते है।

आप अपने वेबसाईट का URL भी स्टोर कर सकते है। ताकि लोग सीधे आपके QR Code को स्कैन करके आपके वेबसाईट पर पहुच जाए । इत्यादि .

QR Code के प्रकार -Types of QR Code in Hindi?

QR code क्या है -What is QR code in Hindi आपने जाना अब हम जानते है QR Code के प्रकार QR Code दो तरह के होते है।

  1. Static QR Code
  2. Dynamic QR Code
  • Static QR Code को किसी भी आम सूचना को प्रकाशित करने के लिए कीया जाता है। इसे बनाने वाले इससे काफी कम जानकारी ही हासिल कर पते है। जैसे इसे कितनी बार स्कैन कीया गया है और कौन से प्लेटफॉर्म से स्कैन कीया गया है OS या ANDROID.
  • वही Dynamic QR Code के निर्माता इस QR Code काफी जानकारी हासिल कर पाते है जैसे -जिसने स्कैन कीया उसका नाम स्कैन करने वाले की ईमेल आईडीQR Code को कितनी बार स्कैन किया गया ,इत्यादि.
QR Code कैसे बनाए – How to Generate QR code in Hindi

QR Code kse bnae यदि आप भी अपने बिजनस के लिए QR Code Generate करना चाहते है।तो यद बिल्कुल ही आसान है। इसे कोई भी Generate कर सकता है।

स्टेप 1- सबसे पहले अपने स्मार्ट फोन के गूगल प्ले स्टोर मे जाए .

स्टेप 2- वहाँ सर्च करे QR code Generator.

स्टेप 3 -अब आपके सामने कई QR code Generator के लिस्ट आएंगे इसनमे से कोई भी इंस्टाल करे.

स्टेप 4- अब आप Generator खोले और बनाए अपना QR code.

मुझे उम्मीद है What is QR code in Hindi (QR Code क्या है)QR code कैसे बनाए ?आपको आपको पूरा समझ आ गया होगाआपने आज QR code को कैसे बनाए ये भी जाना मैंने यह आर्टिकल बहुत ही आसान सबद्धों ने लिखा है ताकि आपको What is QR code in Hindi (QR Code क्या है) अच्छे से समझ आ सके यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल हो तो हमसे जरूर पूछे और कैसी लगी आपको यह जानकारी नीचे कमेन्ट कर के जरूर बताए और इस आर्टिकल को शेयर करे धन्यबाद.

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