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मंगलवार, 25 जून 2024

इतिहास के पन्नों में कहाँ हैं ये नाम?? सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर


#वंदेभारत 
इतिहास के पन्नों में कहाँ हैं ये नाम??

सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया।

सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बेंकर थे.  इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था. इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी।

उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते है”

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची तो

दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई । रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे ।

रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया 

"मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जायेगा "

रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की।

सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संघठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए ।
सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया।

उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में सभी सँगठित हो और देश को स्वतंत्र करवाएं।

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे

कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा । एक दिन उन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वही लेट जाती । अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पे शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है 

सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वो क्रूरता की मिसाल है।

पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया फिर उन पर  शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया। 

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' में लिखा है - 

"सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी।

सेठ रामदास जैसे अनेकों क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम हो गए क्या सेठ रामदास जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान का ऋण हम चुका पाये???
तुम न समझो देश को आज़ादी यूं ही मिली है।
हर कली इस बाग की,कुछ खून  पी कर ही खिली है।
मिट गये वतन के वास्ते,दीवारों में जो गड़े हैं।
महल अपनी आज़ादी के,शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।।

रविवार, 23 जून 2024

ये हमारा यह श्री कृष्ण का पहरेदार दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है..!!

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*श्री कृष्ण का पहरेदार दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ*
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मगरमच्छ पानी में रहने वाला एक खतरनाक जानवर जो एक इंसानी शरीर को बिना चबाए आराम से निगल सकता है  और जिसके शरीर के ऊपर की त्वचा इतनी सख्त होती है कि इस पर बंदूक की गोली का भी कोई असर नहीं होता है।

लेकिन आज हम जिस मगरमच्छ के बारे में बात करने वाले हैं वह दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है यह जानकर आपको हैरानी जरूर होगी लेकिन यह एक सच है।

केरल के कासरगोड जिले में स्थित है भगवान विष्णु के अवतार श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का मंदिर है इसी मंदिर के किनारे बनी झील में रहता है यह शाकाहारी मगरमच्छ जिसका नाम है “बबिया”.

बबिया मगरमच्छ खाने में केवल मंदिर का बना प्रसाद ही खाता है इसके अलावा कुछ नहीं खाता इस झील में उसके साथ रहने वाली मछलियाँ उससे बिल्कुल भी भयभीत नहीं होती है बल्कि आराम से उसके पास तैरती है बिना किसी डर के अनंत पदमनाभ स्वामी मंदिर तिरुवंतपुरम में श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का एक बहुत विशाल एवं भव्य मंदिर है लेकिन  स्थानीय लोगों के हिसाब से अनंतपुर में स्थित मंदिर ही श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का मूल स्थान है 
अनंतपुर में यह मंदिर करीब 2 एकड़ जितनी जगह में फैला हुआ है इस मंदिर के पास में एक झील भी है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु अनंत पद्मनाभस्वामी इसी झील के अंदर स्थित एक गुफा से होकर तिरुवंतपुरम गए थे इसी वजह से दोनों जगहों का नाम एक जैसा ही है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
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मंदिर में पूजा करने वाले स्थानीय पुजारियों के अनुसार लगभग 3000 साल पहले दिवाकर मुनि विल्व  मंगलम स्वामी  अनंतपुर के इसी मंदिर मे रहा करते थे एवं विष्णु भगवान की पूजा किया करते थे। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन विष्णु भगवान स्वयं एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने प्रकट हुए एवं उनके साथ इसी आश्रम में रहने लगे, धीरे धीरे यह बालक विल्व मंगलम स्वामी के साथ घुल मिल गया एवं वह आश्रम की कार्यों में भी मुनि का हाथ बटाने लगा, समय बीतता गया और एक दिन जब विल्व  मंगलम स्वामी अपने दैनिक पूजा का कार्य कर रहे थे उस समय वह बालक उनके कार्य में विघ्न उत्पन्न कर रहा था। इस बात से परेशान होकर उन्होंने उस बालक को डाँटा और उसे पीछे की ओर धकेल दिया मुनि के इस व्यवहार से आहत होकर वह बालक यह कहते हुए पास स्थित झील मे अदृश्य हो गया कि जब भी विल्व मंगलम स्वामी उनसे मिलना चाहे वे अनंतकट के जंगलों में उसे पाएंगे। 

जब तक मुनि को अपनी भूल का एहसास हुआ कि जिस नन्हे बालक को उन्होंने डांटा है वह स्वयं भगवान विष्णु का रूप है तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वह बालक झील मे बनी गुफा मे अद्रश्य चुका था।

झील मे बनी गुफा 
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विल्व मंगलम स्वामी स्वयं से हुई भूल का पश्चाताप करने के लिए एवं बालक से माफी मांगने के लिए उसी गुफा में प्रवेश करते हैं और वे गुफा के दूसरी और समुद्र के पास में निकलते हैं वहां पर वह देखते हैं कि समुद्र में स्वयं भगवान विष्णु विराजमान है उनके चारों और विशाल नाग लिपटे हुए हैं।

बबिया मगरमच्छ के अस्तित्व का इतिहास
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स्थानीय पुजारियों के अनुसार बबिया मगरमच्छ उसी गुफा में रहता है जहां पर भगवान श्री विष्णु के बाल अवतार श्री कृष्ण अदृश्य हुए थे। उनके अनुसार बबिया मगरमच्छ श्री कृष्ण के द्वार की पहरेदारी करता है। बबिया के बारे में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है मंदिर के पुजारियों द्वारा इसे दिन में दो बार चावल का प्रसाद भोजन के रूप में दिया जाता है।

मंदिर में पूजा करने वाले चंद्र प्रकाश जी के अनुसार वे पिछले 10 सालों से बबिया को भोजन करा रहे हैं वे कहते हैं कि वे प्रतिदिन 1 किलो चावल स्वयं अपने हाथों से बबिया को खिलाते हैं और वह बिना उन पर आक्रमण किए या किसी अन्य मछलियों पर आक्रमण किए प्रसाद का भोजन करता है एवं अपनी गुफा में चला जाता है।

बबिया पिछले 75 सालों से इसी झील में रह रहा है।

बबिया का इतिहास
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स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग 75 साल पहले  एक ब्रिटिश सैनिक ने बबिया से पहले इस गुफा की सुरक्षा कर रहे मगरमच्छ को मार दिया था। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उसे सैनिक की रहस्यमयी तरीके से सांप के काटने के कारण मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि सर्प देवता ने उसे उसके अपराध की सजा दी है।

पहले वाले मगरमच्छ की मृत्यु हो जाने के बाद बबिया मगरमच्छ उसकी जगह पर उस गुफा की पहरेदारी करने के लिए उपस्थित हो गया। ऐसा हर बार होता है जब भी गुफा की सुरक्षा में लगा हुआ मगरमच्छ मृत्यु को प्राप्त होता है उसकी जगह पर दूसरा मगरमच्छ अपने आप ही उसका स्थान ले लेता है यह कहां से आते हैं कोई नहीं जानता पर यहां पर ऐसी मान्यता है कि अगर आप इस झील में बबिया मगरमच्छ को तैरता हुआ देख लेते हैं तो आपकी किस्मत बदल सकती है बबिया अच्छे भाग्य का प्रतीक माना जाता है।

ये हमारा यह श्री कृष्ण का पहरेदार दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है..!!
    *🙏🏼🙏🏽🙏जय श्री कृष्ण*🙏🏻🙏🏾🙏🏿

बुधवार, 19 जून 2024

क्या आप जानते हैं कि IRCTC आपको सीट चुनने की अनुमति क्यों नहीं देता है? क्या आप विश्वास करेंगे कि इसके पीछे का तकनीकी कारण PHYSICS है।

क्या आप जानते हैं कि IRCTC आपको सीट चुनने की अनुमति क्यों नहीं देता है?  क्या आप विश्वास करेंगे कि इसके पीछे का तकनीकी कारण PHYSICS है।
 ट्रेन में सीट बुक करना किसी थिएटर में सीट बुक करने से कहीं अधिक अलग है।

 थिएटर एक हॉल है, जबकि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है।  इसलिए ट्रेनों में सुरक्षा की चिंता बहुत अधिक है।

 भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह टिकट इस तरह से बुक करेगा जिससे ट्रेन में समान रूप से लोड वितरित किया जा सके।

 मैं चीजों को और स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लेता हूं: कल्पना कीजिए कि S1, S2 S3... S10 नंबर वाली ट्रेन में स्लीपर क्लास के कोच हैं और प्रत्येक कोच में 72 सीटें हैं।

 इसलिए जब कोई पहली बार टिकट बुक करता है, तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करेगा जैसे कि S5, बीच की सीट 30-40 के बीच की संख्या, और अधिमानतः निचली बर्थ (रेलवे पहले ऊपरी वाले की तुलना में निचली बर्थ को भरता है ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके)

 और सॉफ्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है कि सभी कोचों में एक समान यात्री वितरण हो और सीटें बीच की सीटों (36) से शुरू होकर गेट के पास की सीटों तक यानी 1-2 या 71-72 से निचली बर्थ से ऊपरी तक भरी जाती हैं।

 रेलवे बस एक उचित संतुलन सुनिश्चित करना चाहता है कि प्रत्येक कोच में समान भार वितरण के लिए होना चाहिए।

 इसीलिए जब आप आखिरी में टिकट बुक करते हैं, तो आपको हमेशा एक ऊपरी बर्थ और एक सीट लगभग 2-3 या 70 के आसपास आवंटित की जाती है, सिवाय इसके कि जब आप किसी ऐसे व्यक्ति की सीट नहीं ले रहे हों जिसने अपनी सीट रद्द कर दी हो।

 क्या होगा अगर रेलवे बेतरतीब ढंग से टिकट बुक करता है?  ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है जो रेल पर लगभग 100 किमी / घंटा की गति से चलती है।
 इसलिए ट्रेन में बहुत सारे बल और यांत्रिकी काम कर रहे हैं।

 जरा सोचिए अगर S1, S2, S3 पूरी तरह से भरे हुए हैं और S5, S6 पूरी तरह से खाली हैं और अन्य आंशिक रूप से भरे हुए हैं।  जब ट्रेन एक मोड़ लेती है, तो कुछ डिब्बे अधिकतम अपकेंद्र बल (centrifugal force) का सामना करते हैं और कुछ न्यूनतम, और इससे ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना अधिक होती है।

 यह एक बहुत ही तकनीकी पहलू है, और जब ब्रेक लगाए जाते हैं तो कोच के वजन में भारी अंतर के कारण प्रत्येक कोच में अलग-अलग ब्रेकिंग फोर्स काम करती हैं, इसलिए ट्रेन की स्थिरता फिर से एक मुद्दा बन जाती है।

 मुझे लगा कि यह एक अच्छी जानकारी साझा करने लायक है, क्योंकि अक्सर यात्री रेलवे को उन्हें आवंटित असुविधाजनक सीटों/बर्थों का हवाला देते हुए दोष देते हैं।

✍️🏼 #WhatsApp से साभार !

सोमवार, 17 जून 2024

#जामुनभारत को जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है और यह नाम जामुन के वजह से है।आश्चर्य की बात तो है कि किसी फल के वजह से किसी देश का नामकरण किया गया

#जामुन

भारत को जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है और यह नाम जामुन के वजह से है।आश्चर्य की बात तो है कि किसी फल के वजह से किसी देश का नामकरण किया गया !
दरअसल जामुन के कई नाम है और उन्हीं में से एक नाम है जम्बू । भारत में जामुन की बहुतायत रही है । हमारे देश में इसकी पेड़ों की संख्या लाखों-करोड़ों में है और शायद इसी कारण से यह फल हमारे देश का पहचान बन गया।

सनातन आस्था के दो प्रमुख केंद्र रामायण और महाभारत में भी यह विशेष पात्र रहा है।भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास में मुख्य रूप से जामुन का ही सेवन किया था वहीं श्री कृष्णा के शरीर के रंग को ही जामुनी कहा गया है। संस्कृत के श्लोकों में अक्सर इस नाम का उच्चारण आता है।

जामुन विशुद्ध रूप से भारतीय फल है।भारत का हर गली - मोहल्ला ईसके स्वाद से परीचित हैं। जामुन एक मौसमी फल है। खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी हैं। जामुन अम्लीय प्रकृति का फल है पर यह स्वाद में मीठा होता है। जामुन में भरपूर मात्रा में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज पाया जाता है. जामुन में लगभग वे सभी जरूरी लवण पाए जाते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है।

जामुन खाने के फायदे:
1. पाचन क्रिया के लिए जामुन बहुत फायदेमंद होता है. जामुन खाने से पेट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं.

2. मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन एक रामबाण उपाय है. जामुन के बीज सुखाकर पीस लें. इस पाउडर को खाने से मधुमेह में काफी फायदा होता है.

3. मधुमेह के अलावा इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाव में कारगर होते हैं. इसके अलावा पथरी की रोकथाम में भी जामुन खाना फायदेमंद होता है. इसके बीज को बारीक पीसकर पानी या दही के साथ लेना चाहिए.

4. अगर किसी को दस्त हो रहे जामुन को सेंधा नमक के साथ खाना फायदेमंद रहता है. खूनी दस्त होने पर भी जामुन के बीज बहुत फायदेमंद साबित होते हैं.

5. दांत और मसूड़ों से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में जामुन विशेषतौर पर फायदेमंद होता है. इसके बीज को पीस लीजिए. इससे मंजन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं, जामुन मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है। यह पाचनतंत्र को तंदुरुस्त रखता हैं। साथ ही दांत और मसूड़े के लिए बेहद फायदेमंद है। जामुन में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पोटैशियम होता है। आयुर्वेद में जामुन को खाने के बाद खाने की सलाह दी जाती है। 

जामुन के लकड़ी का भी कोई जबाव नहीं है। एक बेहतरीन इमारती लकड़ी होने के साथ ईसके पानी मे टिके रहने की बाकमाल शक्ति है‌। अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती सो टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता |प्राचीन समय में जल स्रोतों के किनारे जामुन की बहुतायत होने की यही कारण था इसके पत्ते में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो कि पानी को हमेशा साफ रखते हैं। कुए के किनारे अक्सर जामुन के पेड़ लगाए जाते थे।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय
तक सड़ता नही है। जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़े पैमाने पर होता है।
जामुन औषधीय गुणों का भण्डार होने के साथ ही किसानो के लिए भी उतना ही अधिक आमदनी देने वाला फल है ।

  नदियों और नहरों के किनारे मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए जामुन का पेड़ काफी उपयोगी है। अभी तक व्यवसायिक तौर पर योजनाबद्ध तरीके से जामुन की खेती बहुत कम देखने को मिलती हैं। देश के अधिकांश हिस्से में अनियोजित तरीके से ही किसान इसकी खेती करते हैं।अधिकतर किसान जामुन के लाभदायक फल और बाजार के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं, शायद इसी कारणवश वो जामुन की व्यवसायिक खेती से दूर हैं।जबकि सच्चाई यह है कि जामुन के फलों को अधिकतर लोग पसंद करते हैं और इसके फल को अच्छी कीमत में बेचा जाता है।

जामुन की खेती में लाभ की असीमित संभावनाएं हैं।इसका प्रयोग दवाओं को तैयार करने में किया जाता है, साथ ही जामुन से जेली, मुरब्बा जैसी खाद्य सामग्री तैयार की जाती है।

सबसे खास बात कि जामुन हम भारतीयों की पहचान रही है अतः इस वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन में हम सभी को अपना योगदान देना चाहिए।
साभार 🙏

रविवार, 16 जून 2024

फूल (अस्थियों) का गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन क्यों?

फूल (अस्थियों) का गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन क्यों? 
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मृतक की अस्थियों (हड्डियों) को धार्मिक दृष्टिकोण से 'फूल' कहते हैं। इसमें अगाध श्रद्धा और आदर प्रकट करने का भाव निहित होता है। जहां संतान फल है, वहीं पूर्वजों की अस्थियां 'फूल' कहलाती हैं।

इन्हें गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जन करने के दो कारण बताए गए हैं। पहला कूर्मपुराण के मतानुसार

यावदस्वीनि गंगायां तिष्ठन्ति पुरुषस्य तु ।
तावद् वर्ष सहस्राणि स्वर्गलोके महीयते ॥ 31 ॥ 

तीर्थानां परमं तीर्थ नदीनां परमा नदी। मोक्षदा सर्वभूतानां महापातकीनामपि ॥ 32 ॥ 

सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा । गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे ॥ 33॥ 

सर्वेषामेव भूतानां पापोपहतचेतसाम् ।
गतिमन्वेषमाणानां नास्ति गंगासमा गतिः ॥ 34 ॥

-कूर्मपुराण 35 31-34

अर्थात् जितने वर्ष तक पुरुष की अस्थियां (फूल) गंगा में रहती हैं, उतने हजार वर्षों तक वह स्वर्गलोक में पूजित होता है। गंगा को सभी तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में श्रेष्ठ नदी माना गया है, वह सभी प्राणियों, यहां तक कि महापातकियों को भी मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। गंगा सर्व-साधारण के लिए सर्वत्र सुलभ होने पर भी हरिद्वार, प्रयाग एवं गंगासागर-इन तीनों स्थानों में दुर्लभ होती है। उत्तम गति की इच्छा करने वाले तथा पाप से उपहत चित्त वाले सभी प्राणियों के लिए गंगा के समान और कोई दूसरी गति नहीं है।

मृतक की पंचांग अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के संबंध में शास्त्रकार कहते हैं।

यावदस्थीनि गंगायां तिष्ठिन्ति पुरुषस्य च। तावद्वर्ष सहस्राणि ब्रह्मलोके महीयते ॥

-शंखस्मृति 

अर्थात मृतक की अस्थियां जब तक गंगा में रहती हैं, तब तक मृतात्मा शुभ लोकों में निवास करता हुआ हजारों वर्षों तक आनन्दोपभोग करता है।

धार्मिक लोगों में यह भी मान्यता है कि तब तक मृतात्मा की परलोक यात्रा प्रारंभ नहीं होती, जब तक कि उसके फूल गंगा में विसर्जित नहीं कर दिए जाते।

दूसरा, मृतक की अस्थियों को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन करने की प्रथा के पीछे भी वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। चूंकि गंगा नदी से सैकड़ों वर्ग मील भूमि को सींचकर उपजाऊ बनाया जाता है, जिससे उसके निरंतर प्रवाह के कारण भी उपजाऊ शक्ति घटती रहती है। ऐसे में गंगा में फास्फोरस की उपलब्धता बनी रहे, इसीलिए उसमें अस्थि विसर्जन करने की परंपरा बनाई गई है, ताकि फास्फोरस से युक्त खाद, पानी द्वारा अधिक पैदावार उत्पन्न की जा सके। उल्लेखनीय है कि फास्फोरस भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक तत्त्व होता है, जो हमारी हड्डियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है।
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