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शनिवार, 7 सितंबर 2024

गणेशजी को दूर्वा और मोदक चढ़ाने का महत्व क्यों?

गणेशजी को दूर्वा और मोदक चढ़ाने का महत्व क्यों?

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भगवान गणेशजी को 3 या 5 गांठ वाली दूर्वा (एक प्रकार की घास) अर्पण करने से शीघ्र प्रसन्न होते और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इसीलिए उन्हें दूर्वा चढ़ाने का शास्त्रों में महत्त्व बताया गया है। इसके संबंध में पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है-"एक समय पृथी पर अनलासुर नामक राक्षस ने भयंकर उत्पात मचा रखा था। उसका अत्याचार पृथ्वी के साथ-साथ स्वर्ग और पाताल तक फैलने लगा था। यह भगवद्-भक्ति व ईश्वर आराधना करने वाले ऋषि-मुनियों और निर्दोष लोगों को जिंदा निगल जाता था। देवराज इंद्र ने उससे कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्हें हमेशा परास्त होना पड़ा। अनलासुर से अस्त होकर समस्त देवता भगवान शिव के पास गए। उन्होंने बताया कि उसे सिर्फ गणेश ही खत्म कर सकते हैं, क्योंकि उनका पेट बड़ा है इसलिए वे उसको पूरा निगल लेंगे। इस पर देवताओं ने गणेश की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। गणेशजी ने अनलासुर का पीछा किया और उसे निगल गए। इससे उनके पेट में काफी जलन होने लगी। अनेक उपाय किए गए, लेकिन ज्वाला शांत न हुई। जब कश्यप ऋषि को यह बात मालूम हुई, तो ये तुरंत कैलास गए और । दूर्वा एकत्रित कर एक गांठ तैयार कर गणेश को खिलाई, जिससे उनके पेट की ज्वाला तुरंत शांत हो गई।

गणेशजी को मोदक यानी लड्डू काफी प्रिय हैं। इनके बिना गणेशजी की पूजा अधूरी ही मानी जाती है। गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका में कार है

गाइये गणपति जगवंदन । 
संकर सुवन भवानी नंदन। 
सिद्धि-सदन गज बदन विनायक । कृपा-सिंधु सुंदर सब लायक ॥
मोदकप्रिय मुद मंगलदाता । 
विद्या वारिधि बुद्धि विधाता ॥

इसमें भी उनकी मोदकप्रियता प्रदर्शित होती है। महाराष्ट्र के भक्त आमतौर पर गणेशजी को मोदक चढ़ाते हैं। उल्लेखनीय है कि मोदक मैदे के खोल में रवा, चीनी, मावे का मिश्रण कर बनाए जाते हैं। जबकि लड्डू मावे व मोतीचूर के बनाए हुए भी उन्हें पसंद है। जो भक्त पूर्ण श्रद्धाभाव से गणेशजी को मोदक या लड्डुओं का भोग लगाते हैं, उन पर वे शीप प्रसन्न होकर इच्छापूर्ति करते हैं।

मोद यानी आनंद और 'क' का शाब्दिक अर्थ छोटा-सा भाग मानकर ही मोदक शब्द बना है, जिसका तात्पर्य हाथ में रखने मात्र से आनंद की अनुभूति होना है। ऐसे प्रसाद को जब गणेशजी को अर्पण किया जाए तो सुख की अनुभूति होना स्वाभाविक है। एक दूसरी व्याख्या के अनुसार जैसे ज्ञान का प्रतीक मोदक यानी मीठा होता है, वैसे ही ज्ञान का प्रसाद भी मीठा होता है।

गणपति अथर्वशीर्ष में लिखा है

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति स मेघावान् भवति ॥ 
यो मोदक सहस्रेण यजति स वांछित फलमवाप्राप्नोति ॥

अर्थात जो भगवान को दूर्वा चढ़ाता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धान-लाई) चाढाता है, वह यशस्वी हो जाता है, मेधावी हो जाता है और जो एक हजार लड्डुओं का भोग गणेश भगवान् को लगाता है, वह वांछित फल प्राप्त करता है।

गणेशजी को गुड भी प्रिय है। उनकी मोदकप्रियता के संबंध में एक कथा पद्मपुराण में आती है। एक बार गजानन और कार्तिकेय के दर्शन करके देवगण अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने माता पार्वती को एक दिव्य लड्डू प्रदान किया। इस लड्डू को दोनों बालक आग्रह कर मांगने लगे। तब माता पार्वती ने लड्डू के गुण बताए-इस मोदक की गंध से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है। निस्संदेह इसे सूंघने या खाने वाला संपूर्ण शास्त्रों का मर्मज्ञ, सब तन्त्रो में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान विशारद और सर्वज्ञ हो जाता है। फिर आगे कहा-"तुम दोनों से जो धर्माचरण के द्वारा अपनी श्रेष्ठता पहले सिद्ध करेगा, वही इस दिव्य मोदक को पाने का अधिकारी होगा।'

माता पार्वती की आज्ञा पाकर कार्तिक अपने तीव्रगामी वाहन मयूर पर आरूढ होकर त्रिलोक की तीर्थयात्रा पर चल पड़े और मुहर्त भर में ही सभी तीर्थों के दर्शन, स्नान कर लिए। इधर गणेशजी ने अत्यत श्रद्धा-भक्ति पूर्वक माता-पिता की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर उनके सम्मुख खड़े हो गए और कहा कि तीर्थ स्थान, देव स्थान के दर्शन, अनुष्ठान व सभी प्रकार के व्रत करने से भी माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर पुण्य प्राप्त नहीं होता है, अतः मोदक प्राप्त करने का अधिकारी मैं हूँ। गणेशजी का तर्कपूर्ण जवाब सुनकर माता पार्वती ने प्रसन्न होकर गणेशजी को मोदक प्रदान कर दिया और कहा कि माता-पिता की भक्ति के कारण गणेश ही यज्ञादि सभी शुभ कार्यों में सर्वत्र अग्रपूज्य होंगे।
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पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्व

पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
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अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         

(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 
                                         
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर।  पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

 (4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री।  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 

(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस में ही झगड़ने लगते हे। 

(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
                           
(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 
                       
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
                           
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    

(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।
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श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि

श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि
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पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर।

विधि👉 गणेश जी की मूर्ती लकड़ी की चौकी पर लाल या हरा रंग का कपड़ा बिछाकर स्वयं पूर्वाभिमुख बैठकर चौकी को आने सामने रखकर उसके उर गणेश जी को आसान दें और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करे अथवा मिट्टी के गणेश बनाये और आवाहन करें।

आवाहन मंत्र
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गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।

अब नीचे दिया मंत्र पढ़कर प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
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मंत्र👉 अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।

निम्न मंत्र से गणेश भगवान को आसान दें
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रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम।
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।

पाद्य (पैर धुलना) निम्न मंत्र से पैर धुलाये।
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उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम।।

आर्घ्य(हाथ धुलना) निम्न मंत्र से हाथ धुलाये
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अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै:।
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते।।

अब निम्न मंत्र से आचमन कराए
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सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं।
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः।।

स्नान का मंत्र
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गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे।।

दूध् से स्नान कराये
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कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं।।

दही से स्नान कराए
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पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं।
ध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां।।

घी से स्नान कराए
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नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।।

शहद से स्नान कराए
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तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शर्करा (गुड़ वाली चीनी) से स्नान
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इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

पंचामृत से स्नान कराए
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पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान कराए
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मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र पहनाए
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सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां।।

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा ) अर्पण करें
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सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव:।
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो।।

अब यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाए
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नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क (दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) अर्पण करें।
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कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां।।

गन्ध (चंदन अबीर गुलाल) चढ़ाए
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श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां।।

रक्त(लाल )चन्दन चढ़ाए
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रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम।
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम।।

रोली लगाए
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कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम ।
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्:।।

सिन्दूर चढ़ाए
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सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां।।

अक्षत चढ़ाए
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अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः।
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः।।

पुष्प चढ़ाये
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पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै:।
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां।।

पुष्प माला चढ़ाए
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माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर:।।

बेल का पत्र चढ़ाए
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त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर :।।

दूर्वा चढ़ाए
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त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि।
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव।।

दूर्वाकर (दूर्वा हरि दूब) चढ़ाए।
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दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम।
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:।।

शमीपत्र अर्पण करें
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शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका।
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।

अबीर गुलाल चढ़ाए
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अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च।
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे।।

आभूषण चढ़ाए
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अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान।
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर:।।

सुगंध तेल चढ़ाए
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चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि:।
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां।।

धूप दिखाए 
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वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम :।
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां।।

दीप दिखाए
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आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम।।

धूप दीप दिखाने के बाद अपने हाथ धो लें।

नैवेद्य (मिठाई) अर्पण करें
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शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम।
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां।।

मध्येपानीय (आचमन के लिये जल दिखाए)
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अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या।
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि।।

ऋतुफल (फल)
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नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम।
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां।।

आचमन (भगवान को जल दिखाकर किसी पात्र में डाले)
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गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन।
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम।।

अखंड ऋतुफल (सूखे मेवे) चढ़ाए।
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इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।

ताम्बूल पूंगीफलं (पान, सुपारी लौंग, इलायची) चढ़ाए
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पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम।
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां।।

दक्षिणा (दान) अर्पण करें 
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हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे।।

आरती करें
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चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च।
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम।।

पुष्पांजलि करें
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नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च ।
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर:।।

प्रार्थना करें
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रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात।।

।।अनया पूजया श्री गणपति: देवता प्रीयतां न मम।। ऐसा बोलकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
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श्री गणेश पूजन (सरलतम विधि)
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जो साधकगण समयाभाव के चलते विस्तृत पूजा नही कर सकते उनके लिए समय पूजन विधि बताई जा रही है।

पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) 
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शुद्ध जल,गंगाजल, सिन्दूर,रोली,रक्षा, कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है)।

विधि👉 गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें।

ध्यान श्लोक👉 शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..

लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है।सुखी व सफल जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिएबुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल (11 या 21 दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं )।

अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रोंका मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :-

ॐ चतुराय नम:।
ॐ गजाननाय नम:।
ॐ विघ्नराजाय नम:।
ॐ प्रसन्नात्मने नम:।

सामान्य पूजन विधि
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षोडशोपचार पूजन -  
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ध्यायामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आवाहयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आसनं। समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पाद्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः। 
आचमनीयं समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्र युग्मं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं धारयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आभरणानि (आभूषण) समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः गंधं धारयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अक्षतान् समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पुष्पैः पूजयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः प्रतिष्ठापयामि और गणेश जी के इन नामों का जप करें।

ॐ गणपतये नमः॥ 
ॐ गणेश्वराय नमः॥ 
ॐ गणक्रीडाय नमः॥ ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ 
ॐ एकदंताय नमः॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ॐ गजवक्त्राय नमः॥ 
ॐमदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥ 
ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ 
ॐविकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ॐ सुमुखाय नमः॥ 
ॐ दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥ 
ॐविघ्नराजाय नमः॥ 
ॐ गजाननायनमः॥
ॐ भीमाय नमः॥ 
ॐ प्रमोदाय नमः ॥ 
ॐ आनन्दायनमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥ 
ॐमदोत्कटाय नमः॥ 
ॐहेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥ 
ॐ शम्भवे नमः ॥
ॐ लम्बकर्णायनमः ॥
ॐ महाबलाय नमः॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥
ॐ अलम्पटाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥
ॐ मेघनादायनमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥
ॐ विनायकाय नमः॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥
ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूरायनमः ॥
ॐ वरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥
ॐ बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥
ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥
ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥
ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥
ॐ सिद्ध्यैनमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥
ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥
ॐ सिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥
ॐराजपुत्राय नमः ॥
ॐशकलाय नमः ॥
ॐ सम्मिताय नमः॥
ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥
ॐ दुर्जयाय नमः ॥
ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥
ॐभूपतये नमः ॥
ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥
ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥
ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः॥
ॐ घृणये नमः ॥
ॐ कवये नमः ॥
ॐकवीनामृषभाय नमः॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥
ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥
ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥
ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥
ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥
ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥
ॐ कुण्डलिने नमः॥
ॐ हारिणे नमः ॥
ॐ वनमालिने नमः ॥
ॐ मनोमयायनमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥
ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिनेनमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥
ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥
ॐ पीताम्बराय नमः ॥
ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥
ॐ ध्वजिने नमः ॥
ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥
ॐनादाय नमः ॥
ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥
ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥
ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥
ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥
ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥
ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥
ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥
ॐ धर्माय नमः ॥
ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥
ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ 
ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥
ॐ तारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥
ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः ॥ॐ व्योमनाभाय नमः॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥
ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः।।

उत्तर पूजा👉 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः धूपं आघ्रापयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः दीपं दर्शयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः फलाष्टकं समर्पयामि। 
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः कर्पूर नीराजनं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंगल आरतीं समर्पयामि।
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलि समर्पयामि।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः मंत्र पुष्पं समर्पयामि।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

प्रार्थनां समर्पयामि।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं।
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम।

क्षमापनं समर्पयामि।

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च।।

 श्री गणेश जी की आरती
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जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा।
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी।
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी।जय .......

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया। जय ......

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा। जय .......

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी। जय .......
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श्री गणेश की दाईं सूंड या बाईं सूंड

श्री गणेश की दाईं सूंड या बाईं सूंड

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 अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेश की कौन सी सूंड होनी... चाइये ?

 क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है।
भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की आेर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्त जब भी दक्षिण की आेर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है। 
प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाआें से दिखती है। जब सूंड दाईं आेर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। एेसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है।
वहीं बाईं आेर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एेसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।
सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एेसी मूर्त की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं आेर सूंड वाली मूर्त है इसीलिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
 
कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।
यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऎसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।

घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
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