यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

हरा धनिया - औषधिय गुण

हरा धनिया मसाले के रूप में व भोजन को सजाने या सुंदरता बढ़ाने के साथ ही चटनी के रूप में भी खाया जाता है। हमारे बड़े-बुजूर्ग इसके औषधिय गुणों को जानते थे इसीलिए प्राचीन समय से ही धनिए का उपयोग भारतीय भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हरे धनिए के कुछ ऐसे ही औषधिय गुणों के बारे में...

- इसके एंटीसेप्टिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है इसीलिए अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो धनिए की हरी पत्तियों को पीसकर उसमें चुटकीभर हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जीमा, सुखापन और एलर्जी से राहत दिलवाता है।

- आयरन से भरपूर होने के कारण यह एनिमिया को दूर करने में मददगार होता है। एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, सी और कई मिनरलों से भरपूर धनिया कैंसर से बचाव करता है।

- हरा धनिया की चटनी बनाकर खाई जाती है क्योंकि जो इसको खाने से नींद भी अच्छी आती है। डायबिटीज से पीडि़त व्यक्ति के लिए तो यह वरदान है। यह इंसुलिन बढ़ाता है और रक्त का ग्लूकोज स्तर कम करने में मदद करता है।

- धनिया की पत्तियों में एंटी टय़ुमेटिक और एंटी अर्थराइटिस के गुण होते हैं। यह सूजन कम करने में बहुत मददगार होता है, इसलिए जोड़ों के दर्द में राहत देता है।

- हरा धनिया वातनाशक होने के साथ-साथ पाचनशक्ति भी बढ़ाता है। धनिया की हरी पत्तियां पित्तनाशक होती हैं। पित्त या कफ की शिकायत होने पर दो चम्मच धनिया की हरी-पत्तियों का रस सेवन करना चाहिए।

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

जानिये 108 का वैज्ञानिक नज़रिया :

जानिये 108 का वैज्ञानिक नज़रिया :
आखिर माला में 108 मनके क्यूँ ?? संतों के नाम के आगे श्री श्री 108 क्यूँ आता है ?? देवताओं के 108 नाम क्यूँ ?
सभी से शेयर करें| सनातन हिंदू धर्म का वैज्ञानिक आधार |

हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!वेदान्त में एक ""मात्रक विहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया
था l. 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).....अब आप देखें .........
**प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :
1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐसूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं

3-. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐपृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं
.4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है
**.इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है..... ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है|

खाने पीने की चीजोँ मेँ मिलावट खुद पहचानेँ (Must Share)

खाने पीने की चीजोँ मेँ मिलावट खुद पहचानेँ (Must Share)

सेब की चमक देखकर ज्यादा खुश मत होइए ज्यादातर यह चमक सेब पर वैक्स पॉलिश की वजह से दिखती है इसकी जांच के लिए बस एक ब्लेड लीजिए और सेब को हल्के-हल्के खुरचिए अगर कुछ सफेद पदार्थ निकले तो आपको बधाई क्योंकि आप मोम खाने से बच गए

अगली बार चाय बनाने से पहले
चायपत्ती को जरूर जांचें चायपत्ती ठंडे पानी में डालने पर रंग छोड़े तो साफ है कि उसमें मिलावट है या वह एक बार यूज हो चुकी है

मटर के दाने खरीदे हैं तो उसमें से एक हिस्से को पानी में डालकर हिलाएं और 30 मिनट तक छोड़ दें अगर पानी रंगीन हो जाता है तो नमूने में मेलाकाइट हरे की मिलावट है
ऐसी मिलावटी चीजें खाने से पेट से संबंधित गंभीर बीमारियां (अल्सर, ट्यूमर आदि) होने का खतरा रहता है

हल्दी मेँ चार बूँद खटाई और थोड़ा पानी मिलाने पर अगर हल्दी का रंग बैगनी हो जाये तौ हल्दी मिलावटी है

अगर आप हल्दी को पिसवाते है तो हल्दी की पहचान करने के लिए पेपर पर हल्दी को रखकर ठंडा पानी मिलाएं अगर रंग अलग हो जाए तो हल्दी पॉलिश की हुई है

मसाले में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी में अमरूद की छाल मिलाई जाती है इसे हाथ पर रगड़कर देखें अगर यह नकली होगी तो कोई कलर नहीं आएगा...

बुधवार, 7 नवंबर 2012

ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें

ऋग्वेद
-----------------------

ऋग्वेद सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का स्रोत है । इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है। इस ग्रंथ में देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को दुनिया के सभी इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सबसे पहली रचना मानते हैं। ये दुनिया के सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 10
28 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को 'सूक्त' कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है।
प्रमुख तथ्य

ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-
------------------------------------------------------------
यह सबसे प्राचीनतम वेद माना जाता है।

ऋग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं, यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है।

ऋग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1028 सूक्त हैं और कुल 10,580 ऋचाएँ हैं।

इसके दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं।

प्रथम और अन्तिम मण्डल, दोनों ही समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है।

दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है, उसका हृदय है।

आठवें मण्डल और प्रथम मण्डल के प्रारम्भिक पचास सूक्तों में समानता है।

ऋक्ष शब्द ऋग्वेद में एक बार तथा परवर्ती वैदिक साहित्य में कदाचित ही प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुँचाने वाला कहा गया है। नवाँ मण्डल सोम से सम्बन्धित होने से पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यह नवाँ मण्डल आठ मण्डलों में सम्मिलित सोम सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है, इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है। दसवें मण्डल में प्रथम मण्डल की सूक्त संख्याओं को ही बनाये रखा गया है। पर इस मण्डल का विषय, कथा, भाषा आदि सभी परिवर्तीकरण की रचनाएँ हैं। ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की, अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं। ऋग्वेद के मन्त्र स्तुति मन्त्र होने से ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अधिक है। चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद अर्थात ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो।
विभाग

ऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं-
----------------------------------------------
अष्टक क्रम - इसमें समस्त ग्रंथ आठ अष्टकों तथा प्रत्येक अष्टक आठ अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय वर्गो में विभक्त है। समस्त वर्गो की संख्या 2006 है।

मण्डलक्रम - इस क्रम में समस्त ग्रन्थ 10 मण्डलों में विभाजित है। मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त तथा सूक्त मंत्र या ॠचाओं में विभाजित है। दशों मण्डलों में 85 अनुवाक, 1028 सूक्त हैं। इनके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।

सूक्तों के पुरुष रचयिताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वसिष्ठ तथा स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, विश्वरा, सिकता, शचीपौलोमी और कक्षावृत्ति प्रमुख है। इनमें लोपामुद्रा प्रमुख थी। वह क्षत्रीय वर्ण की थी किन्तु उनकी शादी अगस्त्य ऋषि से हुयी थी। ऋग्वेद के दूसरे एवं सातवें मण्डल की ऋचायें सर्वाधिक प्राचीन हैं, जबकि पहला एवं दसवां मण्डल अन्त में जोड़ा गया है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में मिली हस्तलिखित प्रतियों के परिशिष्ट को ‘खिल‘ कहा गया है।

प्राचीन रचना
----------------
ऋग्वेद भारत की ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम रचना है। इसकी तिथि 1500 से 1000 ई.पू. मानी जाती है। सम्भवतः इसकी रचना सप्त-सैंधव प्रदेश में हुयी थी। ऋग्वेद और ईरानी ग्रन्थ 'जेंद अवेस्ता' में समानता पाई जाती है। ऋग्वेद के अधिकांश भाग में देवताओं की स्तुतिपरक ऋचाएं हैं, यद्यपि उनमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है, फिर भी इसके कुछ मन्त्र ठोस ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध करते हैं। जैसे एक स्थान ‘दाशराज्ञ युद्ध‘ जो भरत कबीले के राजा सुदास एवं पुरू कबीले के मध्य हुआ था, का वर्णन किया गया है। भरत जन के नेता सुदास के मुख्य पुरोहित वसिष्ठ थे, जब कि इनके विरोधी दस जनों (आर्य और अनार्य) के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे। दस जनों के संघ में- पांच जनो के अतिरिक्त- अलिन, पक्थ, भलनसु, शिव तथ विज्ञाषिन के राजा सम्मिलित थे। भरत जन का राजवंश त्रित्सुजन मालूम पड़ता है, जिसके प्रतिनिधि देवदास एवं सुदास थे। भरत जन के नेता सुदास ने रावी (परुष्णी) नदी के तट पर उस राजाओं के संघ को पराजित कर ऋग्वैदिक भारत के चक्रवर्ती शासक के पद पर अधिष्ठित हुए। ऋग्वेद में, यदु, द्रुह्यु, तुर्वश, पुरू और अनु पांच जनों का वर्णन मिलता है।

शाखाएँ
----------
ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण यज्ञों के अवसर पर 'होतृ ऋषियों' द्वारा किया जाता था। ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में 'संप्रति संहिता' ही उपलब्ध है। संहिता का अर्थ संकलन होता है। ऋग्वेद की पांच शाखायें हैं-

शाकल,
वाष्कल,
आश्वलायन,
शांखायन
मांडूकायन

ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशम मंडल, जिसे ‘पुरुषसूक्त‘ के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम शूद्रों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त नासदीय सूक्त (सृष्टि विषयक जानकारी, निर्गुण ब्रह्म की जानकारी), विवाह सूक्त (ऋषि दीर्घमाह द्वारा रचित), नदि सूक्त (वर्णित सबसे अन्तिम नदी गोमल), देवी सूक्त आदि का वर्णन इसी मण्डल में है। इसी सूक्त में दर्शन की अद्वैत धारा के प्रस्फुटन का भी आभास होता है। सोम का उल्लेख नवें मण्डल में है। 'मैं कवि हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, माता अन्नी पीसनें वाली है। यह कथन इसी मण्डल में है। लोकप्रिय 'गायत्री मंत्र' (सावित्री) का उल्लेख भी ऋग्वेद के 7वें मण्डल में किया गया है। इस मण्डल के रचयिता वसिष्ठ थे। यह मण्डल वरुण देवता को समर्पित है।

function disabled

Old Post from Sanwariya