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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

क्या आप - हम साम्प्रदायिक हैं ?

क्या आप - हम साम्प्रदायिक हैं ?
वैसे इस " साम्प्रदायिक " शब्द से ही मैं सहमत नहीं हूँ . लेकिन आज भारत के राजनैतिक क्षितिज में यह शब्द बहुत फल - फूल रहा है अतएव इस शब्द पर चर्चा भी अनिवार्य हो गयी है .
कांग्रेस तो खैर क्या बोलती है - क्या करती है , इस दल का तो पूर्णतः दोहरा चरित्र शनैः शनैः उजागर होता जा रहा है . बांग्ला देश के मुसलामानों ने आज असोम ( आसाम ) के क्या हालात कर दिए हैं - इस बात से बहुत कम लोग परिचित है , क्यों ? क्योंकि पूर्वोत्तर के इस क्षेत्र के समाचार हमारी बिकी हुई मीडिया प्रकाशित - प्रसारित ही नहीं करती है . इन मुसलामानों की पीठ पर हमेशा कांग्रेस का ' हाथ ' रहा है . यही नहीं , जहाँ जहाँ भी इस दल की सरकारे हैं - बांग्लादेशी मुसलमान लाखों की संख्या में बसाए गए हैं . दिल्ली , जयपुर जैसे शहर आज इनकी आबादी से पटे पड़े हैं . इन लोगों को तुरंत राशन कार्ड , मतदाता पहचान पत्र , आधार कार्ड आदि सुलभ हो जाते हैं जबकि आम स्थानीय नागरिक इन कामों के लिए मारा मारा फिरता है .
देश के किसी भी कोने में दुर्भाग्य वश यदि किसी मुसलमान के साथ कोई साधारण सा भी हादसा हो जाय तो नेतागिरी , प्रशासन और मीडिया शुरू हो जाते हैं - भोंपू बजाने . तिल का ताड़ बना डालने में मानों पी एच डी इन लोगों ने ही की हो !
और साम्प्रदायिक हैं आप - हम , साम्प्रदायिक हैं नरेन्द्र मोदी , साम्प्रदायिक है भाजपा , संघ , साधु - सन्त . ये लोग भूल जाते हैं कि बहुसंख्यक हिन्दू इस देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को हर हमेश तैयार रहते हैं . हर मुश्किल में पूरे भारत का हिन्दू अपने अन्य अल्पसंख्यक भाइयो के लिए जी जान से सहायक बन जाते हैं . इन बातों को आज की भ्रष्ट राजनीति और बिकी हुई मीडिया उत्साह से न तो प्रसारित करती है न आभार प्रगट करने की जुर्रत समझती है .
कोई भगवा आतंकवाद तो कोई हिन्दू आतंकवाद कह कर बदनाम करने की मुहीम छेड़ रक्खी है , यदि कोई भगवा वस्त्रधारी ( अग्निवेश जैसे ) का संग मिल जाय तो फिर मीडिया वालों को मिर्च के साथ मसाला भी मिल जाता है .
आज मैं एक प्रश्न खड़ा करना चाहता हूँ कि आप सर्व साधारण निर्णय लें कि कौन है मौत का सौदागर ? कौन है सांप्रदायिक ? कौन है देश के हितों पर दुधारी तलवार चलाने वाला ?
वस्तुस्थिति समझनी होगी . परदेशियों को स्वदेशी बनवाकर , दारू - पैसों का लालच देकर , सी बी आई जैसी संस्थाओं का डर दिखा कर आखिर कब तक आप - हम पर इन राक्षसों का राज रहेगा ? कब तक हम हमारे वजूद को समझ पाएंगे ? कब तक हम राष्ट्रीयता के सतत प्रवाह में जीने का संकल्प करेंगे ? कब तक जातिवाद की बैसाखियों का सहारा इन भ्रष्ट नेताओं को देते रहेंगे ?
आइये ! संकल्प करें कि माँ भारती के सच्चे सपूत बन कर इस आर्यावर्त को विश्व गुरु के आसन पर विराजित कर के ही रहेंगे . सकारात्मक सन्देश इस ब्रह्माण्ड में गुंजाकर ही दम लेंगे .

वैलेंटाइन डे की कहानी::


वैलेंटाइन डे की कहानी::

यूरोप (और अमेरिका) का समाज जो है वो रखैलों (Kept) में विश्वास करता है पत्नियों में नहीं, यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या मिहला मिले जिसकी एक शादी हुई हो, जिनका एक पुरुष से या एक स्त्री से सम्बन्ध रहा हो और ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके यहाँ | आपने एक शब्द सुना होगा "Live in Relationship" ये शब्द आज कल हमारे
देश में भी नव-अिभजात्य वगर् में चल रहा है, इसका मतलब होता है कि "बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना" | तो उनके यहाँ, मतलब यूरोप और अमेरिका में ये परंपरा आज भी चलती है,खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) का एक स्त्री से सम्बन्ध नहीं रहा, प्लेटो ने लिखा है कि "मेरा 20-22 स्त्रीयों से सम्बन्ध रहा है" अरस्तु भी यही कहता है, देकातेर् भी यही कहता है, और रूसो ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "एक स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It's Highly Impossible" | तो वहां एक पत्नि जैसा कुछ होता नहीं | और इन सभी महान दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती" "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये " | तो बीच-बीच में यूरोप में कुछ-कुछ ऐसे लोग निकले जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इन रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की | उन कुछ लोगों में से एक ऐसे ही यूरोपियन व्यक्ति थे जो आज से लगभग 1500 साल पहले पैदा हुए, उनका नाम था - वैलेंटाइन | और ये कहानी है 478 AD (after death) की, यानि ईशा की मृत्यु के बाद |
स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ
उस वैलेंटाइन नाम के महापुरुष का कहना था कि "हम लोग (यूरोप के लोग) जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं कुत्तों की तरह से, जानवरों की तरह से, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, इनको सुधारो, एक पति-एक पत्नी के साथ रहो, विवाह कर के रहो, शारीरिक संबंधो को उसके बाद ही शुरू करो" ऐसी-ऐसी बातें वो करते थे और वो वैलेंटाइन महाशय उन सभी लोगों को ये सब सिखाते थे, बताते थे, जो उनके पास आते थे, रोज उनका भाषण यही चलता था रोम में घूम-घूम कर | संयोग से वो चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को यही बताते थे, तो लोग उनसे पूछते थे कि ये वायरस आप में कहाँ से घुस गया, ये तो हमारे यूरोप में कहीं नहीं है, तो वो कहते थे कि "आजकल मैं भारतीय सभ्यता और दशर्न का अध्ययन कर रहा हूँ, और मुझे लगता है कि वो परफेक्ट है, और इसिलए मैं चाहता हूँ कि आप लोग इसे मानो", तो कुछ लोग उनकी बात को मानते थे, तो जो लोग उनकी बात को मानते थे, उनकी शादियाँ वो चर्च में कराते थे और एक-दो नहीं उन्होंने सैकड़ों शादियाँ करवाई थी |

जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय रोम का राजा था क्लौड़ीयस, क्लौड़ीयस ने कहा कि "ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं, और ये शादियाँ करवाता फ़िर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है, हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है", तो क्लौड़ीयस ने आदेश दिया कि "जाओ वैलेंटाइन को पकड़ के लाओ ", तो उसके सैनिक वैलेंटाइन को पकड़ के ले आये | क्लौड़ीयस नेवैलेंटाइन से कहा कि "ये तुम क्या गलत काम कर रहे हो ? तुम अधमर् फैला रहे हो, अपसंस्कृति ला रहे हो" तो वैलेंटाइन ने कहा कि "मुझे लगता है कि ये ठीक है" , क्लौड़ीयस ने उसकी एक बात न सुनी और उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, मतलब शादी करना जुर्म था | क्लौड़ीयस ने उन सभी बच्चों को बुलाया, जिनकी शादी वैलेंटाइन ने करवाई थी और उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दिया गया |

पता नहीं आप में से कितने लोगों को मालूम है कि पूरे यूरोप में 1950 ईःवी तक खुले मैदान में, सावर्जानिक तौर पर फाँसी देने की परंपरा थी | तो जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी वो बहुत दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे
मनाया जाता है | मतलब ये हुआ कि वैलेंटाइन, जो कि यूरोप में शादियाँ करवाते फ़िरते थे, चूकी राजा ने उनको फाँसी की सजा दे दी, तो उनकी याद में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | ये था वैलेंटाइन डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार |



अब यही वैलेंटाइन डे भारत आ गया है जहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है यहाँ तो कोई बिना शादी के घूमता हो तो अद्भुत या अचरज लगे लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है | अब ये वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में आ गया है और बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं | और जो कार्ड होता है उसमे लिखा होता है " Would You Be My Valentine" जिसका मतलब होता है "क्या आप मुझसे शादी करेंगे" | मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वो समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड देना चाहिए तो वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये
ही कार्ड वो दे देते हैं | और इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचना है, जिनको चाकलेट बेचनी हैं और टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया | ये सब लिखने के पीछे का उद्देँशय यही है कि नक़ल आप करें तो उसमे अकल भी लगा लिया करें | उनके यहाँ साधारणतया शादियाँ नहीं होती है और जो शादी करते हैं वो वैलेंटाइन डे मनाते हैं लेकिन हम भारत में क्यों ??????

जय हिंद

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