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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013
मुंह के छाले से बचने के घरेलू उपाय
मुंह के छाले से बचने के घरेलू उपाय
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मुंह में अगर छाले हो जाएं तो जीना मुहाल हो जाता है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन, इ...सका इलाज आपके आसपास ही मौजूद है। मुंह के छाले गालों के अंदर और जीभ पर होते हैं। संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन छाले का प्रमुख कारण है। छाले होने पर बहुत तेज दर्द होता है। आइए हम आपको मुंह के छालों से बचने के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।
मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार –
शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें।
मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
छाले होने पर कत्था और मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए।
अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखिए। या केवल अमलतास के गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
अमरूद के मुलायम पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले से राहत मिलती है और छाले ठीक हो जाते हैं।
सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लीजिए, इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटिए, इससे मुंह के छाले समाप्त हो जाएंगे।
पान के पत्तों का रस निकालकर, देशी घी में मिलाकर छालों पर लगाने से फायदा मिलता है और छाले समाप्त हो जाते हैं।
नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी का सेवन कीजिए, इससे पेट साफ होगा और मुंह के छाले नहीं होंगे।
मशरूम को सुखाकर बारीक चूर्ण तैयार कर लीजिए, इस चूर्ण को छालों पर लगा दीजिए। मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे।
मुंह के छाले होने पर चमेली के पत्तों को चबाइए। इससे छाले समाप्त हो जाते हैं।
छाछ से दिन में तीन से चार बार कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।
खाना खाने के बाद गुड चूसने से छालों में राहत होती है।
मेंहदी और फिटकरी का चूर्ण बनाकर छालों पर लगाएं, इससे मुंह के छाले समाप्त होते हैं।
अगर आपको बार-बार मुंह के छाले हो रहे हैं तो अपने मुंह की सफाई पर विशेष ध्यान दीजिए। ज्यादा मसालेदार और गरिष्ठ भोजन करने से बचें। अगर फिर भी छाले ठीक न हो रहे हों तो चिकित्सक से सलाह अवश्य कर लीजिए।
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मुंह में अगर छाले हो जाएं तो जीना मुहाल हो जाता है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन, इ...सका इलाज आपके आसपास ही मौजूद है। मुंह के छाले गालों के अंदर और जीभ पर होते हैं। संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन छाले का प्रमुख कारण है। छाले होने पर बहुत तेज दर्द होता है। आइए हम आपको मुंह के छालों से बचने के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।
मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार –
शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें।
मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
छाले होने पर कत्था और मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए।
अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखिए। या केवल अमलतास के गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
अमरूद के मुलायम पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले से राहत मिलती है और छाले ठीक हो जाते हैं।
सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लीजिए, इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटिए, इससे मुंह के छाले समाप्त हो जाएंगे।
पान के पत्तों का रस निकालकर, देशी घी में मिलाकर छालों पर लगाने से फायदा मिलता है और छाले समाप्त हो जाते हैं।
नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी का सेवन कीजिए, इससे पेट साफ होगा और मुंह के छाले नहीं होंगे।
मशरूम को सुखाकर बारीक चूर्ण तैयार कर लीजिए, इस चूर्ण को छालों पर लगा दीजिए। मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे।
मुंह के छाले होने पर चमेली के पत्तों को चबाइए। इससे छाले समाप्त हो जाते हैं।
छाछ से दिन में तीन से चार बार कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।
खाना खाने के बाद गुड चूसने से छालों में राहत होती है।
मेंहदी और फिटकरी का चूर्ण बनाकर छालों पर लगाएं, इससे मुंह के छाले समाप्त होते हैं।
अगर आपको बार-बार मुंह के छाले हो रहे हैं तो अपने मुंह की सफाई पर विशेष ध्यान दीजिए। ज्यादा मसालेदार और गरिष्ठ भोजन करने से बचें। अगर फिर भी छाले ठीक न हो रहे हों तो चिकित्सक से सलाह अवश्य कर लीजिए।
स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण है।
आज के समय में
व्यक्ति अपने खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण अपनेआप पर ध्यान नहीं दे
पाता, नतीजन वह कई बीमारियों का शिकार हो जाता है और इन बीमारियों में
कब्ज, थकान होना, नींद न आना इत्यादि है। इनके इलाज के लिए व्यक्ति दवाईयों
का लगातार सेवन करता रहता है, जिससे वह कई और बीमारियों का शिकार हो जाते
है। लेकिन यदि हम थोड़ी सी सावधानी बरतकर और आयुर्वेद को अपनाए तो अपने
स्वास्थ्य की सही तरह से देखभाल कर ही
पाएंगे साथ ही शरीर का कायाकल्प भी करने में आसानी होगी। त्रिफला ऐसी ही
आयुर्वेदिक औषधी है जो शरीर का कायाकल्प कर सकती है। त्रिफला के सेवन से
बहुत फायदें हैं। स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण है।
त्रिफला सिर्फ कब्ज दूर करने ही नहीं बल्कि कमजोर शरीर को एनर्जी देने में
भी प्रयोग हो सकता है। बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की |
सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले | हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास |
१- ग्रीष्म ऋतू - १४ मई से १३ जुलाई तक त्रिफला को गुड़ १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
२- वर्षा ऋतू - १४ जुलाई से १३ सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
३- शरद ऋतू - १४ सितम्बर से १३ नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
४- हेमंत ऋतू - १४ नवम्बर से १३ जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
५- शिशिर ऋतू - १४ जनवरी से १३ मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
६- बसंत ऋतू - १४ मार्च से १३ मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें | शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये |
इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा |
दो तोला हरड बड़ी मंगावे |तासू दुगुन बहेड़ा लावे ||
और चतुर्गुण मेरे मीता |ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ||
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो :: 20 ग्राम हरड+40 ग्राम बहेडा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
त्रिफला लेने का सही नियम -
*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamine, iron, calcium, micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |
*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |
*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |
*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
- कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
- गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
- संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
- मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
- मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
- त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले | हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास |
१- ग्रीष्म ऋतू - १४ मई से १३ जुलाई तक त्रिफला को गुड़ १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
२- वर्षा ऋतू - १४ जुलाई से १३ सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
३- शरद ऋतू - १४ सितम्बर से १३ नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
४- हेमंत ऋतू - १४ नवम्बर से १३ जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
५- शिशिर ऋतू - १४ जनवरी से १३ मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण १/४ भाग मिलाकर सेवन करें |
६- बसंत ऋतू - १४ मार्च से १३ मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें | शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये |
इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा , तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा , पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा,छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा |
दो तोला हरड बड़ी मंगावे |तासू दुगुन बहेड़ा लावे ||
और चतुर्गुण मेरे मीता |ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ||
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो :: 20 ग्राम हरड+40 ग्राम बहेडा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
त्रिफला लेने का सही नियम -
*सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamine, iron, calcium, micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |
*सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |
*रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |
*रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
नेत्र-प्रक्षलन : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
- कुल्ला करना : त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
- त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
- गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
- संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
- मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
- मात्रा : 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
- त्रिफला का सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी : दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
किसने माँ का दूध पिया है जो मुझे जीवित पकड़ ले जाए - आजाद
अग्निपुंज की यादें
आगरा के एक मकान में आजाद, भगत सिंह राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा, विजयकुमार सिन्हा, जयदेव कपूर, डॉ गया प्रसाद, वैशम्पायन, सदाशिव आदि दल के सभी सक्रिय सदस्य बैठे थे। विनोद चल रहा था कि कौन कैस पकड़ा जाएगा, पकड़े जाने पर कौन क्या करेगा और सरकार से किसे क्या सजा मिलेगी?
भगत सिंह ने आजाद से विनोद करते हुए कहा- “पंडित जी, आपके लिए दो रस्सों की जरूरत पड़ेगी। एक आपके गले के लिए और दूसरा आपके इस भारी भरकम पेट के लिए।” आजाद तुरंत हँसकर बोले- “देख, फाँसी जाने का शौक मुझे नहीं है। वह तुझे मुबारक हो, रस्सा-फुस्सा तुम्हारे गले के लिए है। जबतक यह बमतुल बुखारा (आज़ाद ने अपनी माउजर पिस्तौल का यही विचित्र नाम रखा था) मेरे पास है, किसने माँ का दूध पिया है जो मुझे जीवित पकड़ ले जाए।”
एक मित्र अपना प्रेम गीत सुना रहा था, तभी क्या साला प्रेम-फ्रेम पिनपिनाता रहता है। अबे क्यों अपना और दूसरों का मन खराब करता रहता है। कहाँ मिलेगा इस जिन्दगी में प्रेम-फ्रेम का अवसर? कल कहीं सड़क पर पुलिस की गोली खाकर लुढ़कते नजर आएँगे। मन्मथशर-कनमथशर! हमें मतलब मन्मथशर से है। अरे कुछ ‘बम फटकर, पिस्तौल झटकर, ऐसा कुछ गा। देख मैं गाऊँ अपनी एक ही कविता जिसे जिन्दगी में कर जाने के लिए जिन्दा हूँ।’ फिर आजाद ने अपने गले को और भारी-भरकम बनाते हुए स्वरों पर स्टीम रोलर-सा चलाना शुरू किया-
“दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आज़ाद ही रहे हैं आज़ाद ही रहेंगे।”
देख इसे कहते हैं कविता! क्या साला ‘हृद्य लागी’, ‘प्रेम की बात’, ‘मन्मथशर’ पिनपिनाता रहता है? हृद्य में लगेगी थ्री नाट थ्री की एक गोली, मन्मथशर-फनमथशर नहीं। इन्हीं दो पंक्ति को 27 फरवरी 1931 के आज के दिन इलाहाबाद एल्फ्रेड पार्क में अपनी पिस्तौल के साज पर, गले से नहीं, अपने कर्मठ हाथों से गाया और स्याही से कागज पर नहीं, भारत की उज्जवल क्रान्तिकारी कर्मभूमि पर अपने रक्त से लिखा, उसे ‘चरितार्थ’ करके अमर कर दिया, उसे काव्य नहीं, ‘कृत’ बना दिया!
आजाद के पिता का नाम पं सीताराम तिवारी और माता श्रीमती जगरानी देवी जी ने बताया था कि चन्द्रशेखर का जन्म सावन सुदीदूज सोमवार को दिन के दो बजे हुआ था। संवत् माता जी को विस्मृत हो गया था। पुराने पंचागों को देखने से आज़ाद की जन्मतिथि का निश्चय किया गया है जो है तारीख 23 जुलाई सन् 1906 ई.।
आज़ाद ने सन् 1922 में क्रांतिकारी पार्टी में प्रवेश किया था। उससे पूर्व 1921 के असहयोग आन्दोलन में पिकेटिंग के अपराध में उन पर मुकदमा चला था। अदालत ने बालक सत्याग्रही से प्रश्न किया- “तुम्हारा नाम क्या है?”
“आजाद।”
“पिता का नाम?”
“स्वाधीनता।”
“घर?”
“जेलखाना”
इन उत्तरों से चिढ़कर मजिस्ट्रेट ने उन्हें पन्द्रह बेंतों की सजा दी। जिस समय बेंत लगाने के लिए आज़ाद को टिकटिकी में बाँधा गया तो उन्होंने हर बेंत पर ‘महात्मा गाँधी की जय’ का नारा लगाया। बालक चन्द्रखेसर ने आगे चलकर अपने ‘आजाद’ नाम को तो सार्थक किया पर जेल को उन्होंने अपना घर एक दिन के लिए भी नहीं बनाया।
आज़ाद को देखकर गोस्वामी तुलसीदास के शब्द थिरक उठते थे-
‘मानहुँ वीर रस धरे सरीरा’
उन्नत ललाट। चौड़ा वक्षस्थल। आजानु बाहु। गठीला बदन और चेहरे पर चेचक के दाग। यही चन्द्रशेखर आज़ाद की आकृति थी। उनेक रोम-रोम से वीरता और उत्साह फूट पड़ता था।
आज़ाद और उनके साथी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने की साध में कर्मक्षेत्र में अविरल गति से अपना काम कर रहे थे और भारतीय क्रान्ति के अग्रदूत के रूप में खलेआम ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, सड़कों और गली-कूचों में अलख जगाते हुए मानो प्रगाढ़ निद्रामग्न अलसित देशवासियों के कानों में ऋषियों के अमर सन्देश का उद्घोष करते फिर रहे थे-
‘उतिष्ठित जागृत प्राप्त वर्णम्य बोधत।’
उठो, जागो और श्रेष्ठ पुरुषों के पास जाकर आत्मबोध प्राप्त करो।
प्रायः चन्द्रशेखर आज़ाद कमीज, खुले गले का कोट और धोती पहने देखे जाते थे। बाएँ हाथ की कलाई में रिस्टवाच खूब फबती थी। दोनों जेबों में दो रिवाल्वर डाले खुलेआम सड़क पर मस्तानी चाल से चलते हुए उन्हें देखकर कवि के यह शब्द आए बिना न रहते थे-
जब से सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर पे कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।
आज़ाद के ऊपर इंडिया के प्रसिद्ध षड्यंत्रों में सक्रिय क्रियात्मक रूप से भाग लेने के आरोप थे। यदि विदेशी नौकरशाही की पुलिस उन्हें जीवित पकड़ पाती तो फाँसी पर चढ़ाने से पहले उनका कैसे कीमा बनती, इस बात से आज़ाद गाफिल नहीं थे। संभवतः इसी बात को ध्यान में रखकर वह अपनी बलिष्ठ कलाइयों पर नज़र डालते-डालते बहुधा कह उठते थे- “इन हाथों में पुलिस की हथकड़ियाँ कभी नहीं पड़ सकतीं।”
पुलिस को छकाने और मौका पड़ने पर उससे अच्छी तरह निपट लेने में आज़ाद को कमाल हासिल था।
आगरा के एक मकान में आजाद, भगत सिंह राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा, विजयकुमार सिन्हा, जयदेव कपूर, डॉ गया प्रसाद, वैशम्पायन, सदाशिव आदि दल के सभी सक्रिय सदस्य बैठे थे। विनोद चल रहा था कि कौन कैस पकड़ा जाएगा, पकड़े जाने पर कौन क्या करेगा और सरकार से किसे क्या सजा मिलेगी?
भगत सिंह ने आजाद से विनोद करते हुए कहा- “पंडित जी, आपके लिए दो रस्सों की जरूरत पड़ेगी। एक आपके गले के लिए और दूसरा आपके इस भारी भरकम पेट के लिए।” आजाद तुरंत हँसकर बोले- “देख, फाँसी जाने का शौक मुझे नहीं है। वह तुझे मुबारक हो, रस्सा-फुस्सा तुम्हारे गले के लिए है। जबतक यह बमतुल बुखारा (आज़ाद ने अपनी माउजर पिस्तौल का यही विचित्र नाम रखा था) मेरे पास है, किसने माँ का दूध पिया है जो मुझे जीवित पकड़ ले जाए।”
एक मित्र अपना प्रेम गीत सुना रहा था, तभी क्या साला प्रेम-फ्रेम पिनपिनाता रहता है। अबे क्यों अपना और दूसरों का मन खराब करता रहता है। कहाँ मिलेगा इस जिन्दगी में प्रेम-फ्रेम का अवसर? कल कहीं सड़क पर पुलिस की गोली खाकर लुढ़कते नजर आएँगे। मन्मथशर-कनमथशर! हमें मतलब मन्मथशर से है। अरे कुछ ‘बम फटकर, पिस्तौल झटकर, ऐसा कुछ गा। देख मैं गाऊँ अपनी एक ही कविता जिसे जिन्दगी में कर जाने के लिए जिन्दा हूँ।’ फिर आजाद ने अपने गले को और भारी-भरकम बनाते हुए स्वरों पर स्टीम रोलर-सा चलाना शुरू किया-
“दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आज़ाद ही रहे हैं आज़ाद ही रहेंगे।”
देख इसे कहते हैं कविता! क्या साला ‘हृद्य लागी’, ‘प्रेम की बात’, ‘मन्मथशर’ पिनपिनाता रहता है? हृद्य में लगेगी थ्री नाट थ्री की एक गोली, मन्मथशर-फनमथशर नहीं। इन्हीं दो पंक्ति को 27 फरवरी 1931 के आज के दिन इलाहाबाद एल्फ्रेड पार्क में अपनी पिस्तौल के साज पर, गले से नहीं, अपने कर्मठ हाथों से गाया और स्याही से कागज पर नहीं, भारत की उज्जवल क्रान्तिकारी कर्मभूमि पर अपने रक्त से लिखा, उसे ‘चरितार्थ’ करके अमर कर दिया, उसे काव्य नहीं, ‘कृत’ बना दिया!
आजाद के पिता का नाम पं सीताराम तिवारी और माता श्रीमती जगरानी देवी जी ने बताया था कि चन्द्रशेखर का जन्म सावन सुदीदूज सोमवार को दिन के दो बजे हुआ था। संवत् माता जी को विस्मृत हो गया था। पुराने पंचागों को देखने से आज़ाद की जन्मतिथि का निश्चय किया गया है जो है तारीख 23 जुलाई सन् 1906 ई.।
आज़ाद ने सन् 1922 में क्रांतिकारी पार्टी में प्रवेश किया था। उससे पूर्व 1921 के असहयोग आन्दोलन में पिकेटिंग के अपराध में उन पर मुकदमा चला था। अदालत ने बालक सत्याग्रही से प्रश्न किया- “तुम्हारा नाम क्या है?”
“आजाद।”
“पिता का नाम?”
“स्वाधीनता।”
“घर?”
“जेलखाना”
इन उत्तरों से चिढ़कर मजिस्ट्रेट ने उन्हें पन्द्रह बेंतों की सजा दी। जिस समय बेंत लगाने के लिए आज़ाद को टिकटिकी में बाँधा गया तो उन्होंने हर बेंत पर ‘महात्मा गाँधी की जय’ का नारा लगाया। बालक चन्द्रखेसर ने आगे चलकर अपने ‘आजाद’ नाम को तो सार्थक किया पर जेल को उन्होंने अपना घर एक दिन के लिए भी नहीं बनाया।
आज़ाद को देखकर गोस्वामी तुलसीदास के शब्द थिरक उठते थे-
‘मानहुँ वीर रस धरे सरीरा’
उन्नत ललाट। चौड़ा वक्षस्थल। आजानु बाहु। गठीला बदन और चेहरे पर चेचक के दाग। यही चन्द्रशेखर आज़ाद की आकृति थी। उनेक रोम-रोम से वीरता और उत्साह फूट पड़ता था।
आज़ाद और उनके साथी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने की साध में कर्मक्षेत्र में अविरल गति से अपना काम कर रहे थे और भारतीय क्रान्ति के अग्रदूत के रूप में खलेआम ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, सड़कों और गली-कूचों में अलख जगाते हुए मानो प्रगाढ़ निद्रामग्न अलसित देशवासियों के कानों में ऋषियों के अमर सन्देश का उद्घोष करते फिर रहे थे-
‘उतिष्ठित जागृत प्राप्त वर्णम्य बोधत।’
उठो, जागो और श्रेष्ठ पुरुषों के पास जाकर आत्मबोध प्राप्त करो।
प्रायः चन्द्रशेखर आज़ाद कमीज, खुले गले का कोट और धोती पहने देखे जाते थे। बाएँ हाथ की कलाई में रिस्टवाच खूब फबती थी। दोनों जेबों में दो रिवाल्वर डाले खुलेआम सड़क पर मस्तानी चाल से चलते हुए उन्हें देखकर कवि के यह शब्द आए बिना न रहते थे-
जब से सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर पे कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।
आज़ाद के ऊपर इंडिया के प्रसिद्ध षड्यंत्रों में सक्रिय क्रियात्मक रूप से भाग लेने के आरोप थे। यदि विदेशी नौकरशाही की पुलिस उन्हें जीवित पकड़ पाती तो फाँसी पर चढ़ाने से पहले उनका कैसे कीमा बनती, इस बात से आज़ाद गाफिल नहीं थे। संभवतः इसी बात को ध्यान में रखकर वह अपनी बलिष्ठ कलाइयों पर नज़र डालते-डालते बहुधा कह उठते थे- “इन हाथों में पुलिस की हथकड़ियाँ कभी नहीं पड़ सकतीं।”
पुलिस को छकाने और मौका पड़ने पर उससे अच्छी तरह निपट लेने में आज़ाद को कमाल हासिल था।
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