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रविवार, 15 मार्च 2015

नेत्र-ज्योति बढ़ाने और चश्मा छुड़ाने के लिए

नेत्र-ज्योतिवर्द्धक व्यायाम और प्राकृतिक उपाय

आँखों का स्वास्थ्य असंयमित और अनियमित जीवनशैली के कारण बिगड़ता है। आँखों की बनावट सूक्ष्म तथा पूर्ण हैं। आँखें उसी समय तक ठीक काम कर सकती हैं जब तक कनीनिका, जलीय द्रव, ताल और  ताल के पीछे रहने वाले द्रव स्वच्छ रहते हैं। इनमें से किसी के भी अस्वच्छ होने पर दृष्टि में दोष उत्पन्न हो जाता है। दृष्टिपटल, मध्य पटल, दृष्टि नाड़ी तथा दृष्टि केन्द्रों के रोगों से भी दृष्टि खराब हो जाती है।
छोटे अक्षरों को पढ़ने, सीने-पिरोने,चित्रकारी करने, स्वर्णकारी करने, घड़ीसाजी करने आदि से आँखों  पर  दबाव पड़ता है। कम प्रकाश में पढ़ने या कोर्इ अन्य कार्य करने से भी आँखों को हानि पहुँचती है। अधिक  प्रकाश जैसे सूर्य या आग की ओर बहुत देर तक देखना भी हानिकारक है। झुककर या लेटकर पढ़ने से भी आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सामने से आता प्रकाश भी आँखों के लिए अच्छा नहीं होता है। पढ़ते या लिखते समय प्रकाश हमेशा बार्इ ओर से या पीछे से आना आँखों के लिए सर्वोत्तम होता है।
आँखों की भीतरी बनावट और व्यवस्था इस प्रकार से है कि पूरी आयु तक हमारी आँखें स्वस्थ रह सकती हैं, लेकिन आधुनिक जीवन में पर्यावरण, गलत खान-पान, विटामिन की कमी, दूरदर्शन तथा फिल्म अधिक देखने से लोगों, विशेषकर बच्चों की आँखें खराब रहने, दृष्टि कमजोर हो जाने, जल्दी चश्मा लग जाने की शिकायत हो जाती है। थोड़ी-सी सावधानी से आँखों के रोगों से बचा जा सकता है और आँखों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
नींद कम लेने, लगातार नजला-जुकाम रहने, धुआं और धूल वाले स्थान पर रहने, आँखों की अच्छी तरह सफार्इ न करने आदि से भी आँखों की दृष्टि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आँखों के कुछ ऐसे व्यायाम हैं जिनका प्रतिदिन अभ्यास करने से नेत्र ज्योति सदा ही बनी रहती है और नेत्रों का आकर्षण एंव स्वास्थ्य भी सही रहता है। दृष्टि के सभी प्रकार के रोगों का मूल कारण आँखों की बाहरी पेशियों पर तनाव पड़ना है, जो धीरे-धीरे आँखों का आकार ही बदल देता है। पास की दृष्टि में नेत्र गोलक की लम्बार्इ बढ़ जाती है, जिससे दूर के पदार्थों को देखने में असुविधा रहती हैं दूर की दृष्टि तथा वृद्धावस्था की अल्प दृष्टि में नेत्र-गोलक संकुचित अवस्था में रहते है, जिससे पास की वस्तु को देखना कठिन हो जाता है।
आँखों के व्यायाम नेत्र संबंधी दोषो से मुक्ति पाने में व्यक्ति की पूरी मदद करते हैं। यहां कुछ नेत्र व्यायाम दिए जा रहे हैं, जिनके अभ्यास से आप नेत्र समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।
करतल विश्राम :
आँखे ढीली बंद करें। दोनों हाथों की हथेलियां प्याली की तरह बनाकर गाल की हड्डियों पर रखते हुए उनसे अपनी बंद आँखों को इस प्रकार ढकें कि हथेलियां आँखों को न छुएं। हथेलियों से आँखे ढकते समय ध्यान रखें कि न तो  आँखों पर कोर्इ दबाव ही पड़े और न ही कहीं से प्रकाश आ सके। हाथ और आँखें तनाव रहित रखें। मस्तिष्क को तनावमुक्त रखने के लिए बिल्कुल कालापन का अनुभव करें। सही रीति के करतल-विश्राम में कालापन देखने के लिए कोर्इ प्रयास न करें बल्कि बिना किसी प्रयास के सहज ही बिल्कुल कालापन का अनुभव होना चाहिए क्योंकि तभी आँखें और मस्तिष्क विश्राम की अवस्था में हो सकते हैं।
कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद आप हाथ हटाकर तेजी से आँखें मिचकाइए और आँखें खोलिए। अब आप देखेंगे कि आपकी आँखें अधिक ताजगीपूर्ण और शक्तिशाली हो गर्इ है।
करतल-विश्राम का अभ्यास दिन में चार-पाँच बार, दो से दस मिनट तक कर सकते हैं। आँखों पर अनावश्यक दबाव से उत्पन्न रोगों तथा मोतियाबिंद की शांति के लिए करतल-विश्राम बहुत लाभदायक है और इसे प्रतिघंटे कुछ मिनट तक अवश्य करना चाहिए।
करतल-विश्राम में काले रंग का ध्यान के साथ-2 मस्तिष्क को आरामदेह स्थिति में रखना भी आवश्यक है। सोचना बिल्कुल बंद कर दें। यदि ऐसा न कर सकें तो कम से कम मस्तिष्क को अशांत करने वाले विचार जैसे खराब स्वास्थ्य, मन की सुस्ती, चिंता, क्रोध, आदि से मुक्त रखें और इनके स्थान पर अच्छे स्वास्थ्य एवं सुखद विचार में महत्व दें।
पुतली घुमाने की क्रियाएं :
आँखों की मांसपेशियों और आँखों से संबंधित स्नायु को ताकतवर व तनाव रहित बनाने के लिए करतल-विश्राम के अलावा इन व्यायामों को भी करना चाहिए।
पुतलियों को उपर-नीचे घुमाएं। इसके लिए रीढ़ सीधी और गर्दन को स्थिर रखकर बिना सिर घुमाएं दोनों पुतलियों को उपर - नीचे घुमाए अथार्त दोनों पुतलियों को पहले उपर की ओर ले जाते हुए आकाश देखें और फिर नीचे लाते हुए धरती देखें। इस तरह सहजता से क्रमष: उपर नीचे छ: बार देखें।
पुतलियों को बाएं-दाएं घुमाएं, मानों पुतलियां क्रमश: बाएं-दाएं कान को देख रही हों। सहजता से ऐसा छ: बार करे।
पुतलियों को चक्राकार घुमाएं अर्थात पहले बाएं से दाऐ बड़ा से बड़ा गोला बनाते हुए गोलकार घुमाएं और फिर दाएं से बाएं घुमाएं। ऐसा चार बार सहजता से करें।
इस प्रकार ( उपर-नीचे, बाएं-दाएं और गोलाकार घुमाने की ) तीनों क्रियाएं पहले धीरे-धीरे और बाद में जल्दी-जल्दी करें। प्रत्येक क्रिया चार-छ: बार करने के बाद कोमलता से पलक झपकाकर आँखें बंद करके कुछ क्षण विश्राम कर लें।
इन्हें दो-तीन बार, बीच-बीच में विश्राम देकर दोहराया जा सकता है। पुतली घुमाने से नेत्र-पेशियों का तनाव हटकर बहुत आराम मिलता है और दृष्टि शक्ति बढ़ती है।

दृष्टि को बार-2 बदलने का अभ्यास करना चाहिए। दृष्टि को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाने या एक बिंदु को देखकर दूसरे बिंदु पर दृष्टि ले जाने को दृष्टि - ध्यानकहते हैं। अंगुठे के पास वाली तर्जनी उंगली अपनी आँखों के सामने 10 इंच की दूरी पर रखें। अब उंगली के उपरी सिरे पर दृष्टि जमाएं और उसे साफ-2 देखें। फिर उंगली को सीध में 20 फीट दूर कोर्इ बड़ी वस्तु जैसे खिड़की को देखें। दृष्टि को पास और दूर केंद्रित करें अर्थात बारी-बारी से दूर-पास देखें। यह क्रिया दस बार करने के बाद एक क्षण के लिए पलक झपकाकर विश्राम करें तथा दोहराएं। यह दृष्टि अनुसरण( Accommodation ) सुधारने के लिए विषेश गुणकारी है। स्वस्थ दृष्टि किसी एक बिंदु पर अधिक देर तक स्थिर नहीं रहती है बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलती रहती है।
पलक झपकाएं। पलक झपकाना अर्थात् पलकों को जल्दी-जल्दी बंद करने और खोलने की क्रिया से आँखों को आराम मिलता है, जिससे नजर तेज होती है। पलकें न झपका सकने का अर्थ है आँखों में तनाव और गड़बड़ी। इसलिए एकटक देखने की आदत पड़ने पर दिन में कर्इ बार पलकें झपकाने का अभ्यास करना शुरू करना चाहिए। जैसे एक बार में लगातार दस बाद पलक झपकना। पढ़ते समय भी प्रत्येक दस सेंकड़ में एक या दो बार पलक झपकनी चाहिए। पलक झपकने से आँखों की थकान मिटती है, आँख की पेशियां सिकुड़ने और फैलने से रक्त संचार सुधरता है। और अश्रु ग्रंथि से पर्याप्त तरल निकलते रहने से आँख साफ गीली और चमकदार रहती है।
हंसने और मुस्कराने का आँखों पर हितकारी प्रभाव पड़ता है और आँखों में एक मुग्ध कर देने वाली चमक आ जाती है। हंसने से दिल हल्का होता है, तनाव घटता है, और मानसिक तनावजन्य रोग जैसे थकान, चिंता, विषाद, चिड़चिड़ापन आदि मिटते हैं। प्रतिदिन चार-पांच किलोमीटर दौड़ने से जो व्यायाम होता है और उससे जो शारीरिक क्षमता बढ़ती है, उतनी ही पांच मिनट हंसने से बढ़ती है। कम से कम दिन में तीन बार खिलखिलाकर हंसना चाहिए। उन्मुक्त हंसी से मस्तिष्क से लेकर संपूर्ण नाड़ी-मंडल स्पंदित हो उठता है और फेफड़ों की अशुद्ध वायु शरीर से बाहर निकल जाती है। हंसने से न केवल मानसिक तनाव घटता है बल्कि रक्त संचालन और पाचन भी सुधरता है।
आँखों के लिए योगासन :
आँखों के सौंदर्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए अर्द्धमत्स्येंद्रासन उष्ट्रासन, धनुरासन, हस्तपादोत्तानासन, हलासन, सर्वांगासन, शीर्षासन आदि का नियमित अभ्यास होना चाहिए। इनमें से उष्ट्रासन की विधि यहाँ प्रस्तुत है-
उष्ट्रासन :
वज्रासन में बैठिए। अब एड़ियों को खड़ा करके उन पर दोनों हाथों को रखें। हाथों को इस प्रकार रखें कि अंगुलियाँ अंदर की तरफ अंगुश्ठ बाहर को हों।
श्वास अंदर भरकर सिर एवं ग्रीवा को पीछे मोड़ते हुए कमर को उपर उठाएं। शवास छोड़़ते हुए एड़ियों पर बैठ जाएं। इस प्रकार तीन-चार आवर्त्ति करें।
योगासनों से साथ-साथ प्रतिदिन सूत्र तथा जलनेति का भी अभ्यास करें। सप्ताह में तीन बार कुंजल करें। खुली हवा में सैर करे।
प्राकृतिक प्रयोग-
आँखों को प्रतिदिन ताजा शीतल पानी या त्रिफला के पानी से धोएं।
पढ़ते समय या टी वी देखते समय आँखों को झपकाते रहें।
कान में तेल, नाक में शुद्ध घी और आँख में मधु डालने से आँखे स्वस्थ रहती है।
आँखों के चारों ओर हाथों की उंगलियों से अच्छी तरह मालिश इस प्रकार करें कि आँखों पर दबाव न पड़े। इसके बाद ठंड़े पानी से आँखों को धोएं या ठंडे पानी की पट्टी रखें। ऐसा दिन में दो-तीन बार करे।  
अपने भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन युक्त आहार का प्रयोग करें। हल्का तथा सुपाच्य भोजन करें। रोगी का 50 प्रतिशत भोजन कच्चा फल, सब्जी, रस, सलाद आदि  और 50 प्रतिशत पका सुपाच्य भोजन होना चाहिए।
नेत्र-ज्योति बढ़ाने और चश्मा छुड़ाने के लिए-बदाम-गिरी, सौंफ (बड़ी), मिश्री कूंजा-तीनों को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और किसी कांच के बर्तन में रख दें। प्रतिदिन रात में सोते समय 10 ग्राम की मात्रा 250 ग्राम दूध के साथ चालीस दिन तक निंरतर लें। इससे दृष्टि इतनी तेज हो जाती है कि चश्मे की जरूरत ही नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त इससे दिमागी कमजोरी, दिमाग की गर्मी, दिमागी तनाव और बातों को भूल जाने की बीमारी भी दूर हो जाती है।
बच्चों को उपरोक्त नुस्खा आधी मात्रा में दें। पूर्ण लाभ के लिए औषधि के सेवन के दो घंटे तक पानी न पीएं। नेत्र ज्योति के साथ-साथ याद्दाश्त भी बढ़ती है। कूंजा मिश्री न मिले तो साधारण मिश्री का प्रयोग करे।
सुबह उठते मुँह में पानी भरकर मुँह फुलाकर ठड़े जल से आँखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन में तीन बार करें।
आंवला, हरड़, बहेड़ा ( गुठली रहित ) समान मात्रा में लेकर उन्हें कूटकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन शाम को इसमें से 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण को कोरे मिट्टी या शीशे के बर्तन में एक गिलास पानी डालकर भिगो दें। सुबह इसको मसलकर छान लें। फिर इसके निथरे हुए पानी से हल्के हाथ से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धो लिया करें। इससे आँखों की ज्योति की रक्षा होती है और नजर तेज होती है। आँखों की अनेक बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। इस त्रिफला जल से निंरतर महीने दो महीने से कम नजर आना, आँखों के आगे अधेंरा छा जाना, सिर घूमना, आँखों में उष्णता, रोहें, खुजली, दर्द, लाली, जाला, मोतियाबिंद आदि सब नेत्र रोगों  का नाश होता है।
नेत्र रोगी उपचार के दौरान मैदा, चीनी, धुले हुए चावल, खीर, उबले हुए आलू, हलवा भारी तथा चिकनार्इ वाले भोजन, चाय, काफी शराब, अचार, मुरब्बे, टॉफियों, चॉकलेट आदि का सेवन न करें।
कद्दूकस किया हुआ आंवला या आंवला का मुरब्बा, पपीता, पका आम, दूध, घी, मक्खन, मधु, काली मिर्च, घी-बूरा, सौंफ-मिश्री, गुड़, सूखा धनिया, चौलार्इ, पालक, पत्तागोभी, मेथी पत्ती, कढ़ी पत्ती आदि कैरोटीन प्रधान प​त्तियों वाली वनस्पतियां, पालक या कढ़ी पत्ती युक्त दाल, अंकुरित मूंग, गाजर, बादाम, मधु आदि का सेवन आँखों के लिए हितकारी है।
इलायची के दानों का चूर्ण और शक्कर समभाग में लेकर उसमें एंरड का तेल मिलाकर चार ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह खाने से 40 दिनों में ही नजर की कमजोरी दूर हो जाती है। इससे आँखों में ठंड़क आती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
हरा धनिया पीसकर उसका रस निकालकर दो-दो बूंद आँखों में प्रतिदिन डालने से भी आँखों की ज्योति में वृद्धि हो जाती है।
यह लेख पुस्तक योग संदेश से लिया गया है।

रविवार, 8 मार्च 2015

शहद के साथ दालचीनी पाउडर

आर्थराइटिस का दर्द---
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* आर्थराइटिस का दर्द दूर भगाने में शहद और दालचीनी का मिश्रण बड़ा कारगर है। एक चम्मच दालचीनी पाउडर लें। इसे दो तिहाई पानी और एक तिहाई शहद में मिला लें। इस लेप को दर्द वाली जगह परर लगाएं। 15 मिनट में आपका दर्द फुर्र हो जाएगा।

बालों का झड़ना---
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* गंजेपन या बालों के गिरने की समस्या बेहद आम है। इससे छुटकारा पाने के लिए गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से धुल लें।

दांत दर्द में पहुंचाए राहत---
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* एक चम्मच दालचीनी पाउडर और पांच चम्मच शहद मिलाकर बनाए गए पेस्ट को दांत के दर्द वाली जगह पर लगाने से फौरन राहत मिलती है।
घटाता है कोलेस्ट्राल---

* करीब आधा लीटर चाय में तीन चम्मच शहद और तीन चम्मच दालचीनी मिलाकर पीएं। दो घंटे के भीतर रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर 10 फीसदी तक घट जाता है।


सर्दी जुकाम की करे छुट्टी---
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* सर्दी जुकाम हो तो एक चम्मच शहद में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर दिन में तीन बार खाएं। पुराने कफ और सर्दी में भी राहत मिलेगी।

बढ़ाए वीर्य की गुणवत्ता---
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* सदियों से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शहद का इस्तेमाल होता रहा है। वैद्य पुरुषों को सोने से पहले दो चम्मच शहद खाने की सलाह देते हैं। ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं उन्हें एक चम्मच शहद में चुटकी भर दालचीनी पाउडर मिलाकर मसूढ़ों पर लगाने के लिए कहा जाता है।

भगाए पेट का दर्द---
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* शहद के साथ दालचीनी पाउडर लेने पर पेट के दर्द से राहत मिलती है। ऐसे लोग जिन्हें गैस की समस्या है उन्हें शहद और दालचीनी पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करना चाहिए।

मजबूत करे प्रतिरक्षा तंत्र---
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* रोजाना शहद और दालचीनी पाउडर का सेवन करने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और आप वाइरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि शहद में कई तरह के विटामिंस और प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो आपकी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं।

बढ़ाए आयु---
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* पुराने समय में लोग लंबी आयु के लिए चाय में शहद और चालचीनी पाउडर मिलाकर पीते थे। इस तरह की चाय बनाने के लिए तीन कप पानी में चार चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाया जाता था। इसे रोजाना तीन बार आधा कप पीने की सलाह दी जाती थी। इस तरह से बनी चाय त्वचा को साफ्ट और फ्रेश रखने में मदद करती है।

घटाए वजन---
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* अब बात करे मोटापे की .......खाली पेट रोजाना सुबह एक कप गरम पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से फैट कम होता है। यदि इसका सेवन रोजाना किया जाए तो मोटे से मोटे व्यक्ति का वजन भी घटना शुरू हो जाता है।

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बुद्धि, शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक प्रयोग

बुद्धि, शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक प्रयोग....!

* हेमंत ऋतू में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है | इस समय पौष्टिक पदार्थों का सेवन कर वर्षभर के लिए शारीरिक शक्ति का संचय किया जा सकता है | 

* निम्नलिखित प्रयोग केवल १५ दिन तक करने से शारीरिक कमजोरी दूर होकर शरीर पुष्ट व बलवान बनता है, नेत्रज्योति बढती है तथा बुद्धि को बाल मिलता है | 

सामग्री :-
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बादाम ५ ग्राम
खसखस १० ग्राम
मगजकरी (ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, पेठा व लौकी के बीजों का समभाग मिश्रण) ५ ग्राम
कालीमिर्च ७.५ ग्राम
मालकंगनी २.५ ग्राम
गोरखमुंडी ५ ग्राम |

विधि :- 

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* रात्रि को उपरोक्त मिश्रण कुल्हड़ में एक गिलास पानी में भिगोकर रखें | सुबह छानकर पानीपी लें व बचा हुआ मिश्रण खूब महीन पीस लें | इस पिसे हुए मिश्रण को धीमी आँच पर देशी घी में लाल होने तक भुने | ४०० मि.ली. दूध में मिश्री व यह मिश्रण मिला के धीरे-धीरे चुसकी लेते हुए पियें |

* १५ दिन तक यह प्रयोग करने से बौद्धिक व शारीरिक बल तथा #नेत्रज्योति में विशेष वृद्धि होती है | 


* इसमें समाविष्ट बादाम, खसखस व मगजकरी मस्तिष्क को बलवान व तरोताजा बनाते हैं | मालकंगनी मेधाशक्तिवर्धक है | यह ग्रहण व स्मृति शक्ति को बढाती है एवं मस्तिष्क तथा तंत्रिकाओं को बाल प्रदान करती है | अत: पक्षाघात (अर्धांगवायु), संधिवात, कंपवात आदि वातजन्य विकारों में, शारीरिक दुर्बलता के कारण उत्पन्न होनेवाले श्वाससंबन्धी रोगों, जोड़ों का दर्द, अनिद्रा, जीर्णज्वर (हड्डी का बुखार) आदि रोगों में एवं मधुमेह के कृश व दुर्बल रुग्णों हेतु तथा सतत बौद्धिक काम करनेवाले व्यक्तियों व विद्यार्थियों के लिए यह प्रयोग बहुत लाभदायी है | 

* इससे मांस व शुक्र धातुओं की पुष्टि होती है |

अजवायन का उपयोग

अजवायन का उपयोग

अजवायन एक ऐसी चीज या औषधि है,जो अकेली ही एक ऐसी जो कि सौ प्रकार के खाद्य पदार्थों को पचाने वाली होती है। 

* अनेक प्रकार के गुणों से भरपूर अजवायन पाचक रूचि कारक,तीक्ष्ण, कढवी, अग्नि प्रदीप्त करने वाली, पित्तकारक तथा शूल, वात, कफ, उदर आनाह, प्लीहा, तथा क्रमि इनका नाश करने वाली होती है।

* अति गर्म प्रकृति वालों के लिए यह हानिकारक होती है। इसकी खेती सारे देश में होती है।


* अजवायन का उपयोग औषिध के रूप में, मुख्यत: उदर एवं पाचन से समबन्धित विकारों तथा वात व्याधियों को दूर करने में बहुत गुणकारी होती है।

* अजवायन में लाल मिर्च की तेजी, राई की कटुता तथा हींग और लहसुन की वातनाशक गुण एक साथ मिलते हें। इस लिए यह गुणों का भंङार है । इसी लिए यह #उदर शूल, #गैस, वायुशोला, पेट फूलना, वात प्रकोप आदि को दूर करता है। इसी कारण इसे घर पर छुपा हुआ वेद्य कहा गया हे।
* अजवायन की पत्ती का दिलकश स्वाद होता है । इसी कारण इसका ( पत्ती) इतालवी व्यंजनों में,जेसे पिज्जा पास्ता आदि। अजवायन की पत्ती में एंटी बैक्टीरियल गुण है जो कि संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। अजवायन की ताजा पत्ती में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व और विटामिन है. विटामिन सी, विटामिन ए, लोहा, मैंगनीज और कैल्शियम और साथ ही युक्त ओमेगा -3 फैटी एसिड का एक अच्छा स्रोत है। अजवायन से कैलशियम, फासफोरस, लोहा सोडियम व पोटेशियम जैसे तत्व मिलते हैं।
* यह एक उत्कृष्ट एंटीऑक्सिडेंट है, अजवायन मोटापे को कम करने में भी मदद करती है। सर्दियों के मौसम में सर्द से बचने के लिए अजवायन एक सफल औषधि है। जंगली अजवायन की पत्ती का तेल श्रेष्ट माना गया है प्रतिरक्षा प्रणाली को दृढ़ करता है,श्वसन किर्या को दरुस्त करता है जोड़ों और मांसपेशियों का लचीलापन बढाता है और त्वचा को संक्रमण से बचाता है
* बरसात के मौसम में पाचन क्रिया के शिथिल पड़ने पर अजवायन का सेवन काफी लाभदायक होता है। इससे अपच को दूर किया जा सकता है।
* अजवायन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फाँकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढ़ना बंद हो जाएगा।
* खीरे के रस में अजवायन पीसकर चेहरे की झाइयों पर लगाने से लाभ होता है।

* अधिक शराब पी लेने से अगर व्‍यक्ति को उल्‍टियां आ रहीं हो तो उसे अजवाईन खिलाना बेहतर होगा। इससे उसको आराम मिलेगा और भूंख भी अच्‍छी तरह से लगेगी।
* #गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अजवाइन जरुर खानी चाहिए क्‍योंकि इससे ना सिर्फ खून साफ रहता है बल्कि यह पूरे शरीर में रक्त के प्रवाह को संचालित भी करता है।


* कान में दर्द होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूंदे कान में डालने से आराम मिलता है
* शरीर में दाने हो जाएं या फिर दाद-खा़ज हो जाए तो, अजवाइन को पानी में गाढ़ा पीसकर दिन में दो बार लेप करने से फायदा होता है। घाव और जले हुए स्थानों पर भी इस लेप को लगाने से आराम मिलता है और निशान भी दूर हो जाते हैं।

* गठिया के रोगी को अजवाइन के चूर्ण की पोटली बनाकर सेंकने से रोगी को दर्द में आराम पहुंचता है। अजवाइन का रस आधा कप में पानी मिलाकर आधा चम्मच पिसी सोंठ लेकर ऊपर से इसे पीलें। इससे गठिया का रोग ठीक हो जाता है।
* अजवाइन के रस में एक चुटकी कालानमक मिलाकर सेवन करें। और ऊपर से गर्म पानी पी लें। इससे खांसी बंद हो जाती है।
* गुड़ और पिसी हुई कच्ची अजवाइन समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच रोजाना 4 बार खायें। इससे गुर्दे का दर्द भी ठीक हो जाता है।
* जिन बच्चे को रात में पेशाब करने की आदत होती है उन्हें रात में लगभग आधा ग्राम अजवाइन खिलायें।
* 2 चम्मच अजवाइन को 4 चम्मच दही में पीसकर रात में सोते समय पूरे चेहरे पर मलकर लगाएं और सुबह गर्म पानी से साफ कर लें।
* अजवाइन को भून व पीसकर मंजन बना लें। इससे मंजन करने से मसूढ़ों के रोग मिट जाते हैं।
* अजवाइन, सेंधानमक, सेंचर नमक, यवाक्षार, हींग और सूखे आंवले का चूर्ण आदि को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।
* जुकाम के साथ हल्का बुखार ....देशी अजवाइन 5 ग्राम, सतगिलोए 1 ग्राम को रात में 150 मिलीलीटर पानी में भिगोकर, सुबह मसल-छान लें। फिर इसमें नमक मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से लाभ मिलता है।
* अजवाइन का रस आधा कप इसमें इतना ही पानी मिलाकर दोनों समय (सुबह और शाम) भोजन के बाद लेने से दमा का रोग नष्ट हो जाता है।
* मासिक धर्म के समय पीड़ा होती हो तो 15 से 30 दिनों तक भोजन के बाद या बीच में गुनगुने पानी के साथ अजवायन लेने से दर्द मिट जाता है। मासिक अधिक आता हो, गर्मी अधिक हो तो यह प्रयोग न करें। सुबह खाली पेट 2-4 गिलास पानी पीने से अनियमित #मासिक स्राव में लाभ होता है।
* #एसिडिटी की तकलीफ है तो थोड़ा-थोड़ा अजवाइन और जीरा को एक साथ भून लें। फिर इसे पानी में उबाल कर छान लें। इस छने हुए पानी में चीनी मिलाकर पिएं, एसिडिटी से राहत मिलेगी।
* इसे अदरक(सोंठ) पाउडर और काला नमक 2-2 और 1 के अनुपात में मिलाएं भोजन करने के बाद एक चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें तो पेट दर्द व गैस की समस्या में आराम मिलेगा। अशुद्ध वायु का बनना व सर में चढ़ना ख़त्म होगा।
• अजवायन पाउडर का एक चम्मच (टी स्पून) ले उसमे एक चुटकी काला नमक मिला कर दिन में दो या तीन बार गुनगुने पानी के साथ सेवन से पेट में दर्द, दस्त , अपच, अजीर्ण, अफारा तथा मन्दाग्नि में लाभकारी होती है।
• अजवायन, सौंफ, सोंठ और काला नमक को बराबर मात्रा में मिलाकर देसी घी के साथ दिन में तीन बार खाएं। भूख लगने लगेगी ।
• शाम को अजवायन को एक गिलास पानी में भिगोएं सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने से मोटापे को कम करने में मदद होती है।
• अजवायन के तेल की कुछ बूंदें गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन कम होती है।
• खांसी जुकाम में चुटकी भर काला नमक, आधा चम्मच अजवायन,और दो लांग इन सब को पिस कर गुनगुने पानी के साथ दिन में कई बार पीने से अदभुत लाभ मिलता है ।यह रामबाण दवा है।
• आधा कप पानी में आधा चम्मच अजवायन और थोड़ी सी हल्दी पाउडर डालकर उबाले और ठंडा करें और इसमें एक चम्मच शहद डालकर पीएं। और गर्म पानी में अजवायन डालकर इसका भाप लें। इस से छाती में जमा #कफ निकल जाता है ।
• #शीत-पित्ती की बीमारी के लिए अजवायन के फूल को गुड के साथ मिला कर पानी से लेने से पित्ती ठीक होती है। अजवायन का चूर्ण गेरु में मिलाकर शरीर पर मलने से पित्ती में तुरन्त लाभ होता है।
• बेर के पत्तों और अजवायन को पानी में उबालकर, छानकर उस पानी से गरारे करने पर खांसी में लाभ होता है।
• अजवायन को पानी में डालकर उबालें। छानकर बार बार थोड़ा-थोड़ा लेते रहने से आधे सिर दर्द में लाभ होता है। रात को कई बार पेशाब आने पर भी इसके सेवन से फायदा होता है।
• जोड़ों के दर्द में सरसों के तेल में अजवायन डालकर अच्छे से गर्म करें व छान ले और इससे जोड़ों की मालिश करे इससे आराम होगा।
• अजवायन प्रबल कीटनाशक है। आँतों में कीड़े होने पर अजवायन के साथ काले नमक का सेवन करने पर पेट के कीड़े बाहर निकल जाते हैं।अजवायन का चूर्ण और गुड समान मात्रा में मिलकर गोली बनाकर दिन में दो तीन बार खिलाने से पेट के सभी प्रकार के कीडे नष्ट हो जाते है।
• एक से दो ग्राम ग्राम अजवायन का चूर्ण छाछ के साथ देने से #पेट के कीडे नष्ट होकर मल के साथ बाहर निकल जाते है।
• सुबह दस-पन्द्रह ग्राम गुड खाकर दस-पन्द्रह मिनट बाद एक से दो ग्राम अजवायन का चुर्ण बासी पानी के साथ ले। इससे आंतों में मौजूद सब प्रकार के कीडे मर कर मल के साथ बहार निकल जायेंगे।
• अजवायन को रात में चबाकर गरम पानी पीने से सवेरे पेट साफ हो जाता है।
• अजवायन के फूल को शहद में मिलाकर लेने से खॉसी और कफ में फायदेमंद होता है इससे कफ की दुर्गन्ध भी खत्म होती है।
• चोट लगने पर अजवायन एवं हल्दी की पुल्टिस बाँधने से चोट की सूजन व दर्द कम होती है।
• अजवायन का अर्क या तेल 10-15 बूँद बराबर लेते रहने से #दस्त बंद होते हैं।
• अजवायन का चूर्ण दो-दो ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार लेने से ठंड का बुखार शान्त होता है।
• ब्लडप्रेशर, बाय का दर्द, रक्तचाप और चर्म रोगों, में ऊँगलियों के काम न करने पर अजवायन के फूल,एवं गिलोय का अर्क 1-1 ग्राम साथ मिलाकर लेना लाभ दायक होता है।
• अजवायन के फूल (सफ़ेद दाने के रूप में बाज़ार में उपलब्ध) का चूर्ण पानी में मिलाकर उस घोल से घाव, दाद, खुजली, फुंसियाँ आदि धोने पर ये चर्मरोग नष्ट होते हैं।
• अजवायन का प्रसव के बाद अग्नि की प्रदिप्त करने और भोजन को पचाने, वायु एवं गर्भाशय को शुद्ध करने के लिए सभी परम्परागत भारतीय परिवारों में लड्डू बना कर खिलाया जाने की परंपरा हे।यह चमत्कारी लाभ देता हे। । प्रसूति स्त्रियों को अजवायन व गुड मिलाकर देने से भूख बढ़ती है। प्रसव के बाद अजवायन के प्रयोग से गर्भाशय शुद्ध होता है। गर्भाशय पूर्वास्थिती में आ जाता है। दूध ज्यादा बनता है। बुखार व कमर का दर्द ठीक करता है। इससे खराब मासिक चक्र ठीक भी हो जाता हें।
• अजवायन 10 ग्राम, छोटी हरड़ का चूर्ण 6 ग्राम, सेंधा नमक 3 ग्राम, हींग 3 ग्राम का चूर्ण बनाकर रखें और 3-3 ग्राम की मात्रा में जल के साथ लें तो पेट दर्द, जलन, अफारा , और मलमूत्र की रूकावट दूर होती है।
• अजवायन चूर्ण गरम पानी के साथ लेने से या अर्क को गुनगुना करके पीने से या इसके तेल की मालिश करने से बदन दर्द ठीक होता है।
• अजवायन की पत्ती माहवारी के विकारों के उपचार, फेफड़ों की समस्याओं और अजीर्ण में और प्रयोग किया जाता है यह शक्तिशाली एंटीबायोटिक और एंटीऑक्सिडेंट भी होता है। अजवायन की पत्ती में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक तत्व हंड यह संक्रमण को दूर रखने के महत्वपूर्ण होता है।
• किडनी या गुर्दे संबंधी परेशानी में एक बड़ा चम्मच जीरा और दो चम्मच अजावयन को पीस कर पाउडर बना लें। इसमें थोड़ा सा काला नमक और एक चम्मच भूरे रंग का सिरका डाले। हर घंटे बाद एक एक चम्मच इस मिश्रण का लें। दर्द से जल्द ही आराम मिल जाएगा।
• दोपहर को भोजन के बाद पिसी 2 - 3 ग्राम अजवायन लेने से खाना आसानी से हजम होता है।
• पान में अजवायन को डाल कर खाने से पुरानी खांसी ठीक होती है।
• अजवायन को सरसों के तेल में डाल कर पकायें उससे बच्चों को मालिश करें सर्दीजुकाम में तथा प्रसव उपरांत लाभ होगा।
• मसूड़ों में सूजन होने पर अजवायन के तेल की कुछ बूँदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है।
• आधे सिर में दर्द होने पर एक चम्मच अजवायन आधा लीटर पानी में डालकर उबालें। पानी को छानकर रखें एवं दिन में दो-तीन बार थोड़ा-थोड़ा लेते रहने से काफी लाभ होगा।
• सरसों के तेल में अजवायन डालकर अच्छी तरह गरम करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर जोड़ों के दर्द में आराम होता है।
• चोट लगने पर नीले-लाल दाग पड़ने पर अजवायन एवं हल्दी की पुल्टिस चोट पर बाँधने पर दर्द व सूजन कम होती है।
* मुख से दुर्गंध आने पर थोड़ी सी अजवायन को पानी में उबालकर रख लें, फिर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला करने पर दो-तीन दिन में दुर्गंध खत्म हो जाती है।

जिन्हे नजदीक या दूर का चश्मा लगा हुआ है वह प्रयोग करे- गोरखमुंडी


जिन की आंखे कमजोर हैं, जिन्हे नजदीक या दूर का चश्मा लगा हुआ है वह यह प्रयोग करे


* भारतीय वनौषधियों में गोरखमुंडी का विशेष महत्‍व है। सर्दी के मौसम में इसमें फूल और फल लगते हैं। इस पौधे की जड़, फूल और पत्‍ते कई रोगों के लिए फायदेमंद होते हैं।

* गोरखमुण्डी भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में पाई जाती है। संस्कृत में इसकी श्रावणी महामुण्डी अरुणा, तपस्विनी तथा नीलकदम्बिका आदि कई नाम हैं। यह अजीर्ण, टीबी, छाती में जलन, पागलपन, अतिसार, वमन, मिर्गी, दमा, पेट में कीड़े, कुष्ठरोग, विष विकार आदि में तो लाभदायक होती ही है, इसे बुद्धिवर्द्धक भी माना जाता है। गोरखमुंडी की गंध बहुत तीखी होती है।

* गर्भाशय, योनि सम्बन्धी अन्य बीमारियों पथरी-पित्त सिर की आधाशीशी आदि में भी यह अत्यन्त लाभकारी औषधि है।

* गोरखमुंडी के चार ताजे फल तोड़कर भली प्रकार चबायें और दो घूंट पानी के साथ इसे पेट में उतार लें तो एक वर्ष तक न तो आंख आएगी और न ही आंखों की रोशनी कमजोर होगी। गोरखमुंडी की एक घुंडी प्रतिदिन साबुत निगलने कई सालों तक आंख लाल नहीं होगी।

* इसके पत्ते पीस कर मलहम की तरह लेप करने से नारू रोग (इसे बाला रोग भी कहते हैं, यह रोग गंदा पानी पीने से होता है) नष्ट हो जाते हैं।

* गोरखमुंडी तथा सौंठ दोनों का चूर्ण बराबर-बराबर मात्रा में गर्म पानी से लेने से आम वात की पीड़ा दूर हो जाती है।

* गोरखमुंडी चूर्ण, घी, शहद को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से वात रोग समाप्‍त होते हैं।

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* कुष्‍ठ रोग होने पर गोरखमुंडी का चूर्ण और नीम की छाल मिलाकर काढ़ा तैयार कीजिए, सुबह-शा‍म इस काढ़े का सेवन करने से कुष्‍ठ रोग ठीक हो जाता है।

* गले के लिए यह बहुत फायदेमंद है, यह आवाज को मीठा करती है।

* गोरखमुंडी का सुजाक, प्रमेह आदि धातु रोग में सर्वाधिक सफल प्रयोग किया गया है।

* योनि में दर्द हो, फोड़े-फुन्सी या खुजली हो तो गोरखमुंडी के बीजों को पीसकर उसमें समान मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें और एक बार प्रतिदिन दो चम्मच ठंडे पानी से लेने से इन बीमांरियों में फायदा होता है। इस चूर्ण को लेने से शरीर में स्‍फूर्ति भी बढ़ती है।

* गोरखमुडी का सेवन करने से बाल सफेद नही होते हैं।

* गोरखमुंडी के पौधे उखाड़कर उनकी सफाई करके छाये में सुखा लें। सूख जाने पर उसे पीस लीजिए और घी चीनी के साथ हलुआ बनाकर खाइए, इससे इससे दिल, दिमाग, लीवर को बहुत शक्ति मिलती है।

* गोरखमुडी का काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से पथरी की समस्‍या दूर होती है।

* पीलिया के मरीजों के लिए भी यह फायदेमंद औषधि है।

* गोरखमुंडी के पत्ते तथा इसकी जड़ को पीस कर गाय के दूध के साथ लिया जाये तो इससे यौन शक्ति बढ़ती है। यदि इसकी जड़ का चूर्ण बनाकर कोई व्यक्ति लगातार दो वर्ष तक दूध के साथ सेवन करता है तो उसका शरीर मजबूत हो जाता है। गोरखमुंडी का सेवन शहद, दूध मट्ठे के साथ किया जा सकता है।

* गोरखमुंडी का प्रयोग बवासीर में भी बहुत लाभदायक माना गया है। गोरखमुंडी की जड़ की छाल निकालकर उसे सुखाकर चूर्ण बनाकर हर रोज एक चम्मच चूर्ण लेकर ऊपर से मट्ठे का सेवन किया जाये तो बवासीर पूरी तरह समाप्त हो जाती है। जड़ को सिल पर पीस कर उसे बवासीर के मस्सों में तथा कण्ठमाल की गाठों में लगाने से बहुत लाभ होता है। पेट के कीड़ों में भी इस की जड़ का पूर्ण प्रयोग किया जाता है, उससे निश्चित लाभ मिलता है।

जिन की आंखे कमजोर हैं, जिन्हे नजदीक या दूर का चश्मा लगा हुआ है वह यह प्रयोग करे:-

* ये सभी प्रयोग अनेक बार आजमाए हुए व सुरक्षित हैं। किसी को भी कोई हानी नहीं होगी। लाभ किसी को कम व किसी को अधिक हो सकता है परंतु लाभ सभी को होगा। हो सकता है किसी का चश्मा न उतरे परंतु चश्मे का नंबर जरूर कम होगा। प्रयोग करने से सिर मे दर्द नहीं होगा। बाल दोबारा काले हो जाएगे। बाल झड़ने रूक जाएगे। गोरखमुंडी एक एसी औषधि है जो आंखो को जरूर शक्ति देती है। अनेक बार अनुभव किया है। आयुर्वेद मे गोरखमुंडी को रसायन कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार रसायन का अर्थ है वह औषधि जो शरीर को जवान बनाए रखे।

* गोरखमुंडी का पौधा यदि यह कहीं मिल जाए तो इसे जड़ सहित उखाड़ ले। इसकी जड़ का चूर्ण बना कर आधा आधा चम्मच सुबह शाम दूध के साथ प्रयोग करे । बाकी के पौधे का पानी मिलाकर रस निकाल ले। इस रस से 25% अर्थात एक चौथाई घी लेकर पका ले। इतना पकाए कि केवल घी रह जाए। यह भी आंखो के लिए बहुत गुणकारी है।

* बाजार मे साबुत पौधा या जड़ नहीं मिलती। केवल इसका फल मिलता है। तब आप इस प्रकार प्रयोग करे ..100 ग्राम गोरखमुंडी लाकर पीस ले। बहुत आसानी से पीस जाती है। इसमे 50 ग्राम गुड मिला ले। कुछ बूंद पानी मिलाकर मटर के आकार की गोली बना ले। इसे भी ले सकते है .

* जो अधिक गुणकारी बनाना चाहे तो ऐसे करे यह काम लौहे कि कड़ाही मे करना चाहिए । न मिले तो पीतल की ले। यदि वह भी न मिले तो एल्योमीनियम कि ले। 300 ग्राम गोरखमुंडी ले आए।लाकर पीस ले । 100 ग्राम छन कर रख ले। बाकी बची 200 ग्राम गोरखमुंडी को 500 ग्राम पानी मे उबाले। जब पानी लगभग 300 ग्राम बचे तब छान ले। साथ मे ठंडी होने पर दबा कर निचोड़ ले। इस पानी को मोटे तले कि कड़ाही मे डाले। उसमे 100 ग्राम गुड कूट कर मिलाकर धीमा धीमा पकाए। जब शहद के समान गाढ़ा हो जाए तब आग बंद कर दे। जब ठंडा जो जाए तो देखे कि काफी गाढ़ा हो गया है। यदि कम गाढ़ा हो तो थोड़ा सा और पका ले। फिर ठंडा होने पर इसमे 100 ग्राम बारीक पीसी हुई गोरखमुंडी डाल कर मिला ले। अब 50 ग्राम चीनी/मिश्री मे 10 ग्राम छोटी इलायची
मिलाकर पीस ले। छान ले। हाथ को जरा सा देशी घी लगा कर मटर के आकार कि गोली बना ले। गोली बना कर चीनी इलायची वाले पाउडर मे डाल दे ताकि गोली सुगंधित हो जाए। 3 दिन छाया मे सुखाकर प्रयोग करे। इलायची केवल खुशबू के लिए है।

प्रयोग विधि :-
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* 1-1 गोली 2 समय गरम दूध से हल्के गरम पानी से दिन मे 2 बार ले। सर्दी आने पर 2-2 गोली ले सकते हैं। इसका चमत्कार आप प्रयोग करके ही अनुभव कर सकते हैं। आंखे तो ठीक होंगी है रात दिन परिश्रम करके भी थकावट महसूस नहीं होगी। कील, मुहाँसे, फुंसी, गुर्दे के रोग सिर के रोग सभी मे लाभ करेगी। जिनहे पेशाब कम आता है या शरीर के किसी हिस्से से खून गिरता है तो ठंडे पानी से दे। इतनी सुरक्षित है कि गर्भवती को भी दे सकते हैं। ध्यान रहे 2-4 दिन मे कोई लाभ नहीं होगा। लंबे समय तक ले । गोली को अच्छी तरह सूखा ले। अन्यथा अंदर से फफूंद लग जाएगी।

* ये पाचन शक्ति बढ़ाती है इसलिए भोजन समय पर खाए। चाय पी कर भूख खत्म न करे। चाय पीने से यह दवाई लाभ के स्थान पर हानि करेगी।

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