जन्माष्टमी
श्रावण कृष्ण अष्टमीपर जन्माष्टमीका उत्सव मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम्
करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।'
यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे
श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर (Blackhole) में प्रकाश है, इसका शोध
आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें
खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर
सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।
उत्सव मनाने की पद्धति
इस तिथिपर दिनभर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालनेमें बालक श्रीकृष्णका
जन्म मनाया जाता है व उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं अथवा अगले
दिन प्रात: दहीकालाका प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं ।
दहीकाला
विविध खाद्यपदार्थ, दही, दूध, मक्खन, इन सबको मिलाना अर्थात् `काला' ।
श्रीकृष्णने काजमंडलमें गायोंको चराते समय अपने व अपने साथियों के कलेवे को
एकत्रित कर उन खाद्यपदार्थों को मिलाया व सबके साथ मिलकर ग्रहण किया । इस
कथा के अनुसार गोकुलाष्टमी के दूसरे दिन `काला' बनाने व दही मटकी फोडने की
प्रथा निर्माण हो गई ।
श्रीकृष्णका नामजप
जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्णतत्त्व अन्य दिनों की अपेक्षा १००० गुणा
कार्यरत होता है । इसलिए इस तिथिपर `ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।' का जप तथा
श्रीकृष्णकी भावपूर्ण उपासनासे श्रीकृष्णतत्त्वका अधिकाधिक लाभ मिलता है ।
जन्माष्टमीपर किए गए उपवाससे, स्त्रियोंपर माहवारी, अशौच व स्पर्शास्पर्शका प्रभाव कम होता है ।
जन्माष्टमी पर होने वाले अनाचार रोकें !
आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य,
महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली
बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है
।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सव की पवित्रता भंग
होती है । देवता के तत्त्व का लाभ नहीं होता; वरन् उनकी अवकृपाके पात्र बनते
हैं । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा
लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।
गोपीचंदन: `गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं
आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी
स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके
भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा
गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार
गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण
करते हुए मस्तक पर गोपिचंदन लगाने की प्रथा है ।
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के निवारणार्थ भगवान श्रीकृष्ण की उपासना
नामजप: अनिष्ट शक्तियोंका निवारण करनेवाले उच्च
देवताओंमेंसे एक हैं श्रीकृष्ण । श्रीकृष्णके नामजपसे अनिष्ट शक्तियोंके
कष्टसे मुक्ति पा सकते हैं ।
श्रीगोपालकवचका पाठ: अनिष्ट शक्तिके कष्टसे पीडित लोगोंके लिए नामजपके साथ ही `श्रीगोपालकवच' का नित्य पाठ उपयुक्त है ।
६. राधा-श्रीकृष्णके नाते संबंधी आरोप की व्यर्थता
राधाकी प्रीति (भक्ति) को प्रेम समझकर, राधा-श्रीकृष्णके संबंध को वेशयी
स्वरूप देने की व्यर्थता, श्रीकृष्ण की उस समय की आयु जानने पर स्पष्ट होती है ।
जब श्रीकृष्ण ने गोकुल छोडा, तब उनकी आयु मात्र सात वर्ष थी यानी,
श्रीकृष्ण की तीन से सात वर्ष की आयु तक ही राधा-श्रीकृष्ण का संबंध था ।
७. श्रीकृष्ण को तुलसी क्यों अर्पित करते हैं ?
`पूजाके दौरान देवताओं को जो वस्तु अर्पित की जाती है, वह वस्तु उन
देवताओं को प्रिय है, ऐसा बालबोध भाषा में बताया जाता है, उदा. गणपति को लाल
फूल, शिवको बेल व विष्णु को तुलसी इत्यादि । उसके पश्चात् उस वस्तु के प्रिय
होने के संदर्भमें कथा सुनाई जाती है। प्रत्यक्ष में शिव, विष्णु, गणपति
जैसे उच्च देवताओं की कोई पसंद-नापसंद नहीं होती । देवता को विशेष वस्तु
अर्पित करने का तात्पर्य आगे दिए अनुसार है ।
पूजा का एक उद्देश्य यह है कि, पूजी जाने वाली मूर्ति में चैतन्य निर्माण
हो व उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए हो । यह चैतन्य निर्माण
करने हेतु देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें
देवताओंके महालोकतक फैले हुए पवित्र (उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण)
आकर्षित करने की क्षमता अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक होती है । लाल फूलोंमें
गणपतिके, बेलमें शिवके, तुलसीमें विष्णुके (श्रीकृष्णके) पवित्रक आकर्षित
करनेकी क्षमता सर्वाधिक रहती है; इसी करण श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी
अर्पित करते हैं । घरके सामने भी तुलसी वृंदावन होता है । श्रीकृष्णके साथ
तुलसीका विवाह रचानेकी प्रथा भी है । (यहां `विवाह' का अर्थ है, उपासनाके
तौरपर श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी अर्पित करना ।)