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रविवार, 27 फ़रवरी 2022
‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’
हींग कैसे बनती है?
हींग कैसे बनती है, यह बात ज्यादातर लोग नहीं जानते , यहाँ तक कि जो अपने खाने में हींग का बहुतायत से प्रयोग करते हैं वह भी इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते।
हींग न केवल भारतीय खाने की शान है अपितु आयुर्वेद में हींग का बहुत महत्व है, यह कई बिमारियों के उपचार में भी काम आती है।
हींग कैसे बनती है?
जिस स्वरुप में में हम हींग का प्रयोग करते हैं वह उस स्वरुप में पैदा नहीं होती है। बाजार में मिलने वाला हींग का पाउडर शुद्ध हींग नहीं होता बल्कि हींग के साथ अन्य खाद्य पदार्थ मिला कर हींग का पाउडर बनाया जाता है।
हींग किसी भी फैक्ट्री में नहीं बनता बल्कि एक प्रकार के पौधे से प्राप्त होता है। हींग का पौधा एक बारहमासी शाक है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसनेवाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है।
हींग की खेती
इसकी खेती से जुड़े भी कई रोचक तथ्य है। वैसे तो हींग की खपत सबसे ज्यादा भारत में होती है लेकिन इसकी पैदावार भारत में न के बराबर होती है। इसकी खेती मुख्य रूप से अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान और बलूचिस्तान में होती है।
इन देशों में जहाँ इसकी खेती होती है उसके बीजों पर सरकारों की सख्त नज़र होती है और इसका बीज निर्यात करने पर पूरी तरह से पाबंदी है। यहाँ तक की चोरी-छुपे इसका बीज अन्य देशों में भेजने पर सख्त दंड का भी प्रावधान है।
इसके बारे में कहा जाता है कि 4 ईसा पूर्व अलेक्सेंडर इसे अपने साथ लाया था।
हींग के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसे “शैतान की लीद” (Devil’s Dung) भी कहा जाता है। इसकी तीक्ष्ण गंध के कारण इसे ऐसा कहा गया होगा।
भारत में हींग की खेती
भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है लेकिन इसकी पैदावार भारत में नहीं होने के कारण इसके आयत में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
अब भारत में भी इसकी खेती के प्रयास शुरू किये गए हैं। कश्मीर और हिमाचल में इसकी पैदावार करने की कोशिश की जा रही है जिसमें कुछ सफलता भी मिल रही है।
हींग के उपयोग
खाने में प्रयोग
विशेषकर हींग का प्रयोग मसलों के रूप में किया जाता है लेकिन आयुर्वेद
में इसे एक औषधि भी बताया है जिसकी सहायता से कई रोगों का इलाज भी किया जाता है।
हींग की तीक्ष्ण गंध के कारण इसे खाना बनाने में लहसुन की जगह भी प्रयोग किया जाता है और जो लोग लहसुन का सेवन नहीं करते हैं वह इसका ज्यादा उपयोग करते हैं।
औषधीय प्रयोग
पेट सम्बंधित रोगों में प्रयोग – आयुर्वेद दवाओं के साथ-साथ घरेलु उपचार हेतु भी पेट के रोग जैसे गैस, अम्लता , पेटदर्द आदि में हींग का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद दवा में हिंग्वाष्टक चूर्ण में हींग एक प्रमुख घटक होता है जिसे गैस और अम्लपित्त रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।
दांत दर्द में फायदेमंद – दांत में दर्द होने पर हींग का छोटा सा टुकड़ा दर्द वाली जगह रख कर दबा दें। इससे दांत दर्द में राहत मिलती है।
मासिकधर्म सम्बंधित परेशानियों में – 1 गिलास पानी में एक चुटकी हींग, आधा चम्मच मेथी पाउडर व काला नमक मिला कर दिन में 2 बार पूरे माह पीने से मासिक धर्म
सम्बंधित परेशानियाँ जैसे पेट दर्द, अनियमितता आदि से राहर मिलती है।
श्वास रोगो में – किसी वैद्य की देखरेख में इसका प्रयोग कर कई जटिल बिमारियों से निजात पायी जा सकती है।
कान दर्द में – तिल के तेल में हींग डाल कर उसे गर्म करें और ठंडा होने पर कान में डालने से कान दर्द में फायदा होता है।
हींग में एंटी बैक्टीरियल, एंटी वाइरल और दर्द निवारक गुण होने के कारण कई इलाज में इसका प्रयोग किया जाता है।
दवा के रूप में प्रयोग करने का आसान तरीका – निम्बू हींग का पानी रोज़ पियें
बनाने का तरीका –
सामग्री – दो छोटे चम्मच हींग का पाउडर (शुद्ध हींग नहीं), 1 छोटा चम्मच जीरा और 1 चम्मच निम्बू का रस
जीरे और हींग को लगभग 1 कप पानी में डाल कर उबालें। जब 3/4 कप तक बचे तो हल्का ठंडा कर निम्बू का रस मिला कर पियें। रोज इसका सेवन पेट सम्बंधित और अन्य जटिल बिमारियों को दूर करता है।
क्या आपने कभी 100 % शुद्ध हींग का उपयोग किया है? बाज़ार में ज्यादातर पाउडर के रूप में मिलने वाले हींग 100% शुद्ध नहीं होते। उन्हें पाउडर के रूप में रखने के लिए अन्य पदार्थ मिलाये जाते हैं। शुद्ध हींग हमेशा कठोर होता है। शुद्ध हींग आपके भोजन का जायका और बढ़ा देता है। शुद्ध हींग को पानी में घोल कर अपनी सब्जी या दाल में डालें और स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन का आनंद उठायें
मनुष्यों के जन्म के बारे में सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली बात
लंबी उम्र हो शॉन कर्नन की जिन्होंने यह विचार साझा किया। शायद विश्व में सबसे आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य हमारे अपने बारे में ही है।
इस gif को देखकर क्या लगता है, इसमें क्या दिख रहा है?
शायद आपको लग रहा होगा कि यह किसी दूसरे ग्रह का जीव है। लेकिन,
यह सिर्फ एक मानवीय चेहरा है जो गर्भ में बन रहा है।
इस दुनिया में 770 करोड़ मनुष्य जीवित हैं, और सब ऐसे ही बने हैं।
तो, हम एक बहुकोशिकीय (मल्टीसेलुलर) जीव से जेलीफ़िश में बदल जाते हैं, और फिर 9 महीने के दौरान एक मानव में।
यही है सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात—गर्भ के अंदर मनुष्य अनेक रूप लेता है और एक समय पर एलियन जैसा भी दिखता है!
जानिए हनुमान जी को देवताओं से कौन-कौन मिले थे वरदान
धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा। कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था।
हनुमान जी की पूजा सबसे सरल मानी गई है। हनुमान जी चुटकी भर सिंदूर से प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता है कि हनुमानजी आज भी इस धरती पर भ्रमण कर भक्तों की मनोकानाए पूरी करते हैं। बजरंगबली बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इन्हें संकटमोचक कहा जाता है यानी अगर आप किसी भी बड़ी मुसीबत में है तो सिर्फ हनुमानजी का नाम लेने से संकट कट जाता है। हनुमान भक्तों के लिए हनुमान जयंती का पर्व सबसे बड़ा दिन है। 08 अप्रैल को हनुमान जयंती है। इस दिन हनुमान जी विशेष पूजा करने से सभी तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार रुद्रावतार भगवान हनुमान के पास कई तरह शक्तियां और वरदान प्राप्त है। हनुमान जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं कुछ खास बातें.....
सूर्य देव
सूर्य देव ने भगवान हनुमान को अपने तेज का सौवां अंश दिया था। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद हनुमान जी के सामने को अन्य वक्ता नहीं टिक सकता था।
धर्मराज यम
धर्मराज यम ने भी भगवान हनुमान को एक वरदान दिया जिसमें कहा गया था कि हनुमान जी को कभी भी यम का शिकार नहीं होना पड़ेगा।
कुबेर
कुबेर द्वारा भगवान हनुमान को कभी भी किसी युद्ध में परास्त नहीं किया जा सकता है उन्होने हनुमान को ऐसा वरदान दिया था। कुबेर हनुमान जी को गदा दिया था।
भगवान शंकर
भगवान शंकर ने अपने अंशावतार को किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान दिया था।
इंद्र
इंद्र के प्रहार से बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा था। इंद्र और हनुमान जी से युद्ध के बाद इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान किया था कि उनके व्रज से हनुमानजी पर भविष्य में कोई असर नहीं पड़ेगा।
विश्वकर्मा
देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने भी हनुमानजी को वरदान दिया था कि उनके द्वारा बनाए जितने भी शस्त्र हैं उन पर उसका कोई असर नहीं होगा।
वरुण देव
वरुण देव ने भगवान हनुमान को एक महत्वपूर्ण वरदान दिया था जिसमें दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी जल से मृत्यु नहीं हो सकेगी।
ब्रह्मा
हनुमानजी को ब्रह्माजी ने दीर्घायु होने का वरदान दिया था। हनुमान जी अपनी इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर कहीं भी जा सकते हैं।
हनुमान जी के आयुधों की व्याख्या में खड्ग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, पर्वत, अंकुश, स्तम्भ, मुष्टि, गदा और वृक्ष हैं. हनुमान जी का बायां हाथ गदा से युक्त कहा गया है. 'वामहस्तगदायुक्तम्'. श्री लक्ष्मण और रावण के बीच युद्ध में हनुमान जी ने रावण के साथ युद्ध में गदा का प्रयोग किया था
खंजन पक्षी के बारे में रौचक जानकारी - जादुई खंजन पक्षी की मदद से पाए गायब (अदृश्य) होने की शक्ति
ये दुनिया
प्राणियों और पक्षियों की विविधता से भरी पड़ी हुई हे और हम एक ऐसे ही पक्षी
के बारे में बात करने वाले जो अपनी दुम (पूंछ ) को लगातार ऊपर निचे हिलाता
ही रहता हे जी हा दोस्तों में बात कर रहा हु खंजन पक्षी के बारे में जिनका
अंग्रेजी नाम Wagtail Bird हे। तो दोस्तों चलो इस पक्षी के बारे में अधिक
जानकारी को पढ़ लेते हे।
खंजन पक्षी – Wagtail Bird Information In Hindi
दोस्तों इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम बात करने वाले हे खंजन पक्षी
के बारे में जिनको अंग्रेजी में Wagtail Bird कहते हे। खंजन पक्षी भारत
में पाए जाने वाले प्रसिद्र पक्षियों में से एक हे। दिखने में ये एक छोटा
पक्षी हे। जिनको खिंडरिच या ख़ंजरीड के नामों से भी जाना जाता हे। ये एक
सुन्दर और चंचल पक्षी हे। तो चलो दोस्तों इस पक्षी के बारे में और भी रौचक
जानकारी को देख लेते हे।
Wagtail Bird In Hindi
खंजन - लगातार दुम ऊपर-नीचे हिलाते रहने वाला पक्षी
खंजन - लगातार दुम ऊपर-नीचे हिलाते रहने वाला पक्षी
अंग्रेज़ी में नाम : White Wagtail
वैज्ञानिक नाम : Motacilla alba
{L. motacilla, a wagtail,-cilla, hair, alba : L. albus, white.}
स्थानीय नाम : हिंदी में इसे धोबन भी कहा जाता है। पंजाब में इसे बालकटारा, बांग्ला में खंजन, आसाम में बालीमाटी और तिपोसी और मलयालम में वेल्ला वलकुलुक्की कहते हैं।
विवरण व पहचान : बड़े प्यारे और सुंदर दिखने वाले इस पक्षी का आकार गोरैयों के बराबर, लगभग 8 इंच लंबा और रंग में चितकबरा होता है। ये पतली होती हैं। इन्हें खड़रिच भी कहा जाता है। नर और मादा रूपरंग में प्राय: एक से ही होते हैं। नर के शरीर ऊपरी हिस्सा राख के रंग का और नीचे का सफेद होता है। सिर के ऊपर का हिस्सा काला होता है। इसकी छाती पर एक काला चन्द्राकार चित्ता भी रहता है। डैने काले होते हैं, जिन पर सफेद धारियां बनी होती हैं। किन्तु उनके सिरों पर सफेदी रहती है। यह पक्षी साल में कई बार अपना रंग बदलता है। जाड़ों में इसके नर के सिर के पीछे एक काला चकत्ता रहता है जो गले के चारों ओर फैल जाता है। सिर का ऊपरी भाग और शरीर का निचला हिस्सा सफेद होता है जिसमें थोड़ी कंजई झलक रहती है। ऊपर का हिस्सा हल्का सिलेटी और डैने काले होते हैं। डैने के परों के किनारे सिलेटी और सफेद होते हैं ; दुम काली होती है जिसके दोनों बाहरी पंख सफेद रहते हैं। गरमी आते ही नर का सारा वक्षस्थल चमकीला काला हो जाता है और मादा का धूमिल होती हैं और शरीर पर की चित्तियां चटक नहीं होती। आंख की पुतलियां भूरी और चोंच और पांव काले होते हैं। भौंहें सफेद होती हैं। जाड़े में, जब इनका प्रजनन काल नहीं होता, आगे का वक्ष पर का काला भाग सफेद हो जाता है। ठोड़ी और गला भी नीचे की तरह सफेद हो जाता है।
व्याप्ति : जाड़े में समस्त भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के घास वाले मैदानी इलाक़ों में पाया जाता है। हमने इसकी तस्वीरें राजगीर, नालंदा और गंगासागर में ली थी।
अन्य प्रजातियां : भारत में पाई जाने वाली इसकी प्रमुख क़िस्में निम्नलिखित हैं –
1. Forest Wagtail – Dendronanthus indicus
2. चितकबरी – ख़ूबसूरती के लिए मशहूर – Large Pied Wagtail – M. maderaspatensis इसे ममोला और कालकंठ भी कहते हैं। यह सफेद खंजन से कुछ बड़ा और उससे अधिक चितकबरा होता है। यह भारतवर्ष का बारहमासी पक्षी है और अपना देश छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाता।
3. भूरी – Grey Wagtail – M. cinerea इसे खैरैया भी कहते हैं। यह जाड़ों में उत्तर और पश्चिम की ओर से आता है और हिमालय से लेकर धुर दक्षिण तक फैल जाता है। यह अपनी लंबी दुम, निलछौंह स्लेटी पीठ और पीले पेट के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। गर्मियों में यह पक्षी स्वदेश लौट जाता है।
4. पीली – Yellow Wagtail – Motacilla flava इसे पिल्किया भी कहते हैं। यह खंजनों में सबसे सुंदर कहा जाता है। इस जाति का खंजन जाड़ों में अगस्त महीने के आसपास उत्तर और पश्चिम से आते हैं और जाड़ा समाप्त होने पर अप्रैल तक उसी ओर लौट जाते हैं।
5. नीम्बू के रंग का - Citrine Wagtail – M. citreola
6. Eastern Yellow Wagtail – M. tschutchensis
आदत और वास : ये सितम्बर अक्तूबर में आ जाते हैं और मार्च-अप्रैल में वापस चले जाते है। काफ़ी चंचल होते हैं। घने जंगलों में ये शायद ही नज़र आएं। अधिकतर ये दिनभर जलाशयों के किनारे या खेत-खलिहानों, पगडंडियों पर या मानव-आवास के बीच, गोशाला, घर के आंगन में आदि स्थानों पर लगातार अपनी दुम ऊपर-नीचे हिलाते हुए इधर-उधर कीड़ों-मकोड़ों के लिए दौड़ लगाते रहते हैं। यह दौड़कर चलता है, अन्य पक्षियों की भाँति फुदकता नहीं। खतरे का आभास मिलने पर उड़ जाता है किंतु थोड़ी ही दूर के बाद पुन: जमीन पर उतर आता है। इसकी उड़ान लहराती हुई होती है और उड़ते समय ‘चिट् चिट्’ जैसी बोली बोलता रहता है। सामान्यत: यह पक्षी दो चार की ही टोली में देखा जाता है किंतु गरमी आते ही जब वे अपने स्थायी स्थानों पहाड़ों की ओर लौटते हैं तो इनका एक बड़ा समूह बन जाता है। गर्मी और बरसात ये पहाड़ों पर या हिमालय की घाटियों में बिताते हैं। वहीं अंडे देते है और शरद ऋतु में इनका फिर से मैदानों और आबादी वाले क्षेत्रों में आगमन होता है। इस प्रकार ऋतु के अनुसार इतनी इतनी दूरियों का स्थानांतरण प्रकृति का एक आश्चर्यजनक चमत्कार ही कहा जाएगा। इस पक्षी को धोबिन भी कहा जाता है। कपड़े धोती महिलाओं के बीच खुद भी मज़े से टहलता रहता है। यह अत्यंत मधुर तान छेड़ता है।
भोजन : यह छोटे-छोटे कीड़ों, मकोड़ों, मच्छरों और नम भूमि से इकट्ठा किए गए सूंड़ियों को अपना आहार बनाता है। कभी-कभी यह घास चरने वाले जानवरों द्वारा परेशान किए गए उड़ते कीड़े को भी पकड़ता है।
प्रजनन : वसंत के समाप्त होते ही ये पक्षी पहाड़ों की ओर चले जाते हैं। वहीं, हिमालय की गोद में पत्थरों के कोटरों में मई से जुलाई के बीच यह अपना प्यालानुमा घोंसला बनाता है। घोंसला सूखी घास, जड़ें, दूब, और इसी तरह के कर्कटों से बना होता है। प्रजनन काल में नर कई मिनटों तक सुरीले गीत गाता है। इसके अंडों की संख्या साधारणतः 4-6 होती है। अंडे चौड़े-अंडाकार होते हैं। छोटे किनारे की तरफ़ नुकीले होते हैं। नर और मादा दोनों मिलकर अंडों की देखभाल करते हैं। चूजों को प्रायः कीड़े खिलाए जाते हैं। नर और मादा द्वारा संतानों को पाल-पोस कर यह इस लायक कर दिया जाता है कि वे वर्षा के समाप्त होते ही नीचे उतर आएं।
1 . खंजन पक्षी की रंग और स्वाभाव के आधारित चार जातीय जातियां पाइ जाती हे। इस पक्षी की और भी अनेक जातियां एशिया , यूरोप , और अफ्रीका में पाइ जाती हे। जिनमे सफ़ेद खंजन , शबल खंजन , भूरा खंजन और पीला खंजन शामिल हे।
2 . ये पक्षी भारत , पाकिस्तान और बाग्लादेश में पाए जाते हे।
3 . खंजन पक्षी का वैज्ञानिक नाम Motacilla हे।
4 . इस पक्षी के बारे में एक ख़ासियत ये हे की वो जब भी ज़मीन पे होता हे तब वो अपनी दुम ऊपर – निचे हिलाता ही रहता हे। Wagtail In Hindi
5 . खंजन पक्षी मोटासिलिडी कुल के मोटासीला परिवार से सबंध रखता हे।
6 . अगर हम इस छोटे पक्षी की लम्बाई की बात करे तो ये करिब 7 से लेकर 9 इंच तक की होती हे। जबकि इस पक्षी का वज़न करीब 20 ग्राम से लेकर 25 ग्राम के आसपास रहता हे। और उनका पूरा शरीर लम्बा एवम पतला होता हे। जबकि उनके पंख काले सफ़ेद रंग के होते हे।
7 . ज़्यादातर खंजन पक्षी झीलों , नदियों , तालाबों और सरोवरों के किनारे पे भोजन की तलाश में इधर – उधर फिरता रहता हे।
8 . इस पक्षी का मुख्य खोराक छोटे छोटे कीड़े – मकोड़े होते हे।
9 . ये पक्षी अन्य पक्षी की तरह चलना नहीं बल्कि दौड़कर चलना पसंद करता हे।
10 . खंजन पक्षी को ख़तरा महसूस ही वो उड़ जाता हे और उनके उड़ते समय चिट्ट जैसा आवाज उत्पन होता हे। जबकि इस पक्षी की चोंच लाल और दुम हलकी काली झाई सफ़ेद और सुन्दर होती हे।
11 . आमतौर पर नर और मादा एकसमान ही दीखते हे। लेकिन नर की अपेक्षा में मादा धुमैली होती हे।
12 . ज्यादातर ये पक्षी अकेले रहना पसंद करते हे लेकिन शाम को ये पक्षी झुंड भी बना लेते हे।
13 . इस पक्षी के नेत्र हर समय चंचल रहते इस वज़ह से भारतीय कवियों नेत्रों की उपमा खंजन से दिया करते हे।
14 . नर और मादा साथ मिलकर अपने घोसले का निर्माण करते हे और फिर मादा करीब 4 से लेकर 7 तक अंडे देती हे।
15 . नर और मादा दोनों साथ मिलकर अपने बच्चो का पालन पोषण करते हे।
16 . इस पक्षी के बारे में ऐसा माना जाता हे की इस पक्षी को पाला नहीं जा सकता। और जब इस पक्षी के सिर पर चोटी निकलती हे तब ये पक्षी कही छिप जाता हे यानिकि किसी को भी दिखाइ नहीं देता।
17 . कभी कभी बड़े पक्षी खंजन पक्षी का शिकार भी करते हे।
18 . सफ़ेद खंजन का जीवनकाल करीब 12 साल के आसपास होता हे। Wagtail Bird Information In Hindi
तो दोस्तों
अगर आपको ये आर्टिकल पसंद हे तो आप इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ भी
सेर करे। ताकि वो भी इस पक्षी के बारे में जान सके।
खंजन पक्षी की किस प्रजाति से गायब होने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं
https://www.youtube.com/watch?v=oEJntOwR3bo
संदर्भ
1. The Book of Indian Birds – Salim Ali
2. Popular Handbook of Indian Birds – Hugh Whistler
3. Birds of the Indian Subcontinent – Richard Grimmett, Carlos Inskipp, Tim Inskipp
4. Latin Names of Indian Birds – Explained – Satish Pande
5. Pashchimbanglar Pakhi – Pranabesh Sanyal, Biswajit Roychowdhury
6. हमारे पक्षी – असद आर. रहमानी
7. एन्साइक्लोपीडिया पक्षी जगत – राजेन्द्र कुमार राजीव
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022
एक दर्द पैदा करती पोस्ट- हमें बदलना होगा पीढ़ियों के लिये तुरंत
बुधवार, 23 फ़रवरी 2022
प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलित और कारगर विधियां
प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलित और कारगर विधियां
1 कटिस्नान –
इसे रीढ़ स्थान कटिस्नान, उदर स्नान तथा नाभि स्नान भी कह सकते हैं। कटिस्नान के लिए आवश्यक टब बाज़ार में खरीदने को मिलते हैं। टब में कटि तक पानी भर कर उसमें आराम कुर्सी में बैठने की तरह बैठना चाहिए | टब के बाहर लकड़ी का स्टूल रख कर उस पर पाँव रखें। छोटासा अंगोछा जल में भिगो कर उसे सिर पर डाल लेना चाहिए। जेबीरूमाल पानी में भिगो कर चार तहों में उसे मोड़ कर नाभि और उसके चारों और उससे गरमी पोछते रहना चाहिए। जोर से पोंछना नहीं चाहिए। हर दिन 10 मिनट से 30 मिनट तक कटिस्नान करते रहना चाहिए। नाभि के नीचे का भाग तथा कूल्हे जल में भीगे रहें, यह जरूरी है। ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। कटि स्नान के बाद शरीर को अंगोछे से पोंछ लें। ठंड लगे तो कंबल ओढ़ लें। थोड़ी देर व्यायाम करें। इससे शरीर में गर्मी पैदा होगी। कटि स्नान के आंधे घंटे के बाद स्नान करें। एक घंटे तक कुछ भी न खावें।
कटि स्नान के लाभ –
कटिस्नान से ऑतों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा | अंदर की गर्मी कम होगी | मलशुद्धि अच्छी होगी | हृदय से संबंधित दर्द, अधिक रक्त चाप, जुकाम, नींद की कमी तथा नीरस आदि बीमारियाँ दूर होंगी।
स्त्रियों की व्याधियाँ दूर होंगी। मासिक ऋतुस्राव ठीक तरह से होगा। कटि स्नान, सबेरे और शाम दोनों समय कर सकते हैं। कटिस्नान के पहले प्राकृतिक चिकित्सा के विशेषज्ञों की सलाह लें तो ठीक होगा।
2. मिट्टी की पड़ियाँ –
चिकनी मिट्टी या काली चिपकाऊ मिट्टी लगा कर कपड़े की पड़ी तैयार करें और पेट, ऑखें गाल, कान, गला, पाँव, पीठ तथा रीढ़ की हड़ी आदि अवयवों पर लगावें तो वहाँ के मालिन्य को वह चूस लेती है। अवयव में गर्मी हो तो उसे भी मिट्टी की वह पट्टी चूस लेती है। मिट्टी का चूर्ण बना कर उसे छान कर, पानी में डाल कर रख देना चाहिए। भीगी मिट्टी को कपड़े पर डाल कर चारों ओर से मोड़ कर उसकी पट्टी बनावें और आवश्यक जगह पर 30 मिनट तक उसे डाल कर रखें। इससे गैस एवं अजीर्ण आदि रोग दूर हो जाते हैं। मिट्टी के लेपन से मुँह पर की फुंसियाँ दूर होती हैं। फोडे पर लगावें तो वह फूट जाएगा। अंदर का मलिन रक्त बाहर निकल जाएगा। सारे शरीर पर चिकनी मिट्टी लगावें तो चर्म संबंधी रोग दूर हो जाएँगे। शरीर की कॉति बढ़ जाएगी। चूँकि मिट्टी में क्षारगुण अधिक रहता है, इसलिए मिट्टी की पट्टियों की सहायता से व्याधियाँ दूर की जा सकती हैं। गहरा गढा खोद कर उसमें गले तक मनुष्य को डाल कर मिट्टी से गढ़ा भर दें तो कई बीमारियाँ दूर होती हैं। सिर भूमि के बाहर हो रहेगा। यह पुरानी पद्धति ही है। प्राकृतिक चिकित्सकों का मार्गदर्शन लें ।
3. सूर्यस्नान –
प्रात:कालीन सूर्य रश्मि में पीठ के बल या पेट के बल लेट कर, सौम्य सूर्यकिरणों की गर्मी शरीर में भरना सूर्य स्नान कहलाता है। सभी लोग सूर्य स्नान कर सकते हैं। लंगोटी या कट ड्रायर पुरुष पहनें और स्त्रियाँ कम कपड़े पहनें और सूर्य स्नान करें तो ठीक होगा। सूर्य स्नान के पहले सिर को पानी में भिगोना चाहिए। इसके बाद लेट कर सिर पर पानी से भीगा वस्त्र ढक लें। धूप में खुली जमीन या चटाई पर लेट सकते हैं। सूर्य की तरफ पाँव रख कर इस प्रकार लेटें कि सूर्य किरणें शरीर को सीधे लग सकें। इस तरह 30 मिनट सूर्य स्नान कर सकते हैं। खाली पेट सूर्योदय के समय सूर्य स्नान करना चाहिए। सूर्यस्नान से शरीर को नूतन शक्ति और स्फूर्ति मिलेगी । डी-विटमिन की प्राप्ति होगी। रिकेट्स रोग, तथा चर्म संबंधी रोग दूर होंगे। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, रंगीन शीशों के बीच भी सूर्य स्नान कराते हैं। केले के पत्तों से सिर से पैर तक शरीर ढक कर भी सूर्य स्नान 10-15 मिनट करें | इससे दीर्घ कालीन रोग दूर होते हैं। निष्णातों की सलाह लें ।
4. भीगे कपड़े की पट्टी –
छोटा जेबी रूमाल या खादी कपड़ा ठंडे फ्रिज के पानी में भिगोवें, उसे निचोड़ कर मुख या नाभि या जहाँ आवश्यक समझे वहां डाल कर थोड़ी देर इस प्रकार रखें, जिससे वह कपड़ा अपने आप सूख जाये। पेट पर डालें तो गैस कम होगा। मुख पर डालें तो ज्वर की तीव्रता कम होगी। चोट लगे या कहीं कटे तो उस पर शीतल पट्टी डाल दें तो रक्त स्त्राव कम हो जाएगा |
5. गरम पानी से पाद-स्नान –
कुर्सी पर बैठे | बकेट में गरम जल भर दें। हलके गरम पानी में दोनों तलुवे रख दें। जब इस पानी की गर्मी कम होगी तब उसमें 3 या 4 बार गरम पानी मिलाते रहें। बकेट के साथ सारे शरीर को कंबल या ब्लॉकेट से ढकना चाहिए। सिर पर निचौडा हुआ भीगा कपड़ा डालना चाहिए। 15 मिनट तक वैसा रखें तो सारे शरीर में पसीना आ जाएगा। पादस्नान के पूर्व एक गिलास पानी पीना चाहिए। 20 मिनट तक पाद स्नान कर, पसीना अंगोछे से पोंछ कर, दुपट्टा ओढ़ कर सो जाना चाहिए। गरम पानी के इस स्नान से पाँवों का दर्द दूर होगा। वात, जोड़ों का दर्द तथा बदन दर्द दूर होंगे। जिन्हें नींद नहीं आती उनके लिए पादस्नान सचमुच रामबाण सा काम करता है| इससे गाढ़ी नींद आ जाएगी।
विशेष सावधानिया
उच्च रक्तचाप रोगी हदय रोगी तथा छाती दर्दवाले व्यक्तियों को गरम पानी से पाद स्नान नहीं करना चाहिए।
न रहे बेरोजगार ,कार वाशिंग का शुरू करे व्यापार, कम पूंजी में भी 50000 तक कमा सकते है आप
न रहे बेरोजगार ,कार वाशिंग का शुरू करे व्यापार,
कम पूंजी में भी 50000 तक कमा सकते है आप
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद देशभर में लगभग सभी राज्यों में लॉकडाउन लगा था. और अब स्थिति फिर सामान्य हो गई है. ऐसे में जो लोग नया बिजनेस शुरू करना चाहते हैं लेकिन उनके पास पूंजी कम है तो आज हम आपको ऐसे ही बिजनेस के बारे में बता रहे हैं जिसे आप महज 25 हजार रुपये लगाकर शुरू कर सकते हैं और उसके बदले में आपको हर महीने में करीब 50 हजार रुपये की आमदनी हो सकती है. बात हो रही है कार वॉशिंग बिजनेस की. आइए जानते हैं कि इसे आप कैसे शुरू कर सकते हैं.
बिना पूंजी लगाए भी घर घर जाकर कार सफाई का कार्य कर सकते है, कमाई होगी 30000 प्रति माह
ये तो प्रारम्भिक कार्य है स्थान विशेष पर इसे बड़ा रूप भी दिया जा सकता है
शुरूआत छोटी मशीन से करें
देखा जाए तो कार वॉशिंग की प्रोफेशनल या कर्मशियल मशीनें एक लाख रुपये तक भी आती हैं. लेकिन जब तक यह पता नहीं चले कि आपके यहां उतनी कारें आ भी रही है या नहीं जिससे उसकी लागत निकल सके उस पर नहीं जाना चाहिए. मार्केट में कर्मशियल मशीनें 12 हजार रुपये से भी शुरू हो जाती है. इनमें आप दो हॉर्स पावर की मोटर लगवा लें तो करीब 14 हजार रुपये तक पड़ जाएगी जिसमें पाइप से लेकर नोजल सब कुछ शामिल है. इसके अलावा आपको 30 लीटर का वैक्यूम क्लीनर लेना होगा जो करीब 9 से दस हजार रुपये तक मिल जाएगा. वॉशिंग का सामान जिसमें शैंपू, ग्लब्ज, टायर पॉलिश और डेशबोर्ड पॉलिश की पांच लीटर की केन लेंगे तो सब मिलाकर करीब 1700 रुपये का आ जाएगा.
स्थान का चयन
शॉप की लोकेशन के लिए इस बात का रखें ध्यानकार वॉशिंग सेंटर खोलने के लिए सबसे पहले आपको एक अच्छी लोकेशन देखनी होगी जहां सोसायटी हो या फिर कार से जुड़ी चीजों का मार्केट. ऐसा इसलिए क्योंकि वहां लोगों की आवाजाही ज्यादा रहती है. पर शॉप ऐसी जगह लें जहां पर पार्किंग स्पेस हो या गाड़ियां आसानी से आ जा सके. यदि दुकान आपकी हो तो और बेहतर वर्ना आप किसी मैकेनिक की शॉप के साथ उसे आधा किराया देकर भी अपना वॉशिंग का काम शुरू कर सकते हैं. इससे पैसे भी बचेंगे और आप देख पाएंगे कि उस इलाके में कैसा रिस्पांस है.
कितनी होगी कमाई
शहरों के हिसाब से होगा वॉशिंग का चार्ज
कार वॉशिंग का चार्ज शहरों पर भी निर्भर करता है. छोटे शहरों में जहां 150 रुपये में छोटी कारें मसलन ऑल्टो, वैगनआर, क्वीड कारों की वॉशिंग हो जाती है तो वहीं बड़े शहरों में इन्हीं कारों का 250 रुपये तक चार्ज करते हैं जबकि इससे इससे बड़ी कारों जैसे स्विफ्ट डिजायर, हुंडई वर्ना जैसी कारों के 350 और एसयूवी के 450 रुपये तक चार्ज लिए जाते हैं. प्रतिदिन 5 से 6 वाशिंग होने पर प्रतिमाह 50000 के लगभग प्राप्ति का अनुमान है।
न रहे बेरोजगार ,कार वाशिंग का शुरू करे व्यापार, कम पूंजी में भी 50000 तक कमा सकते है आप
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022
मखाना सीधे से खेत नहीं निकलता इसके पीछे पूरी कहानी है।
भारत का अधिकांश मखाना उत्पादन उत्तर बिहार में होता है। मखाना सीधे से खेत नहीं निकलता इसके पीछे पूरी कहानी है।
मखाने की खेती बहुत आसान है पर ज्यादातर किसान जानकारी के अभाव में इसकी खेती नहीं कर पाते। इसके लिए उष्ण-कटिबंधीय मौसम वेटलैंड ठीक रहता है। खेत में लगभग हर वक्त डेढ़ से दो फिट पानी की आवश्यकता रहती है। साल में दो फसल ले लिया जा सकता है।
सबसे पहले शुरुआत होती है इसके बीजो से या पौधा आप सीधे सीधे नर्सरी भी खरीद सकते है।
एक हेक्टेयर खेती के लिए जितना पौधा चहिये उसके लिए नर्सरी 500 मीटर स्क्वायर के स्पेस में बन जायेगा। इतने के लिए लगभग 20 किलो बीज की आवश्यकता होगी जो राज्य सरकार के कृषि संस्थानों में 100-120 रूपये प्रति किलो के रेट में उपलबध करवाया जाता है।
मध्य नवंबर में इसके बीज रोपा जाता है जो मार्च में नर्सरी बन जाती है। नर्सरी को फिर अलग अलग खेत में शिफ्ट कर दिया जाता है। मई महीने में पौधों से हलके गुलाबी फूल आते है।
इस फुल में बीज आते है। जैसे जैसे बीज मैच्योर होता है फुल भारी होता जाता है और लटकते लटकते पानी में चला जाता है। इसका वजन 300 तक ग्राम तक भी हो जाता है। कुछ दिन पश्चात फूल फट जाता है और इसके बीज बिखर कर पानी के निचे मिटटी की सतह पर चला जाता है।
श्रमिक फिर उसे जालीदार डोंगे की मदद से सतह से इक्क्ठा करते है।
बीज को नहला धुला कर मस्त साफ करने के बाद धूप में सूखाते है।
फिर साइज़ के अनुसार ग्रेडिंग की जाती है।
इसके बाद बीजों को कास्ट आयरन के कड़ाही में 200-250 डिग्री तापमान पर 5-6 मिनट के लिए रोस्ट किया जाता है ताकि बीजों में मौजूद नमी दूर हो जाय और बाद में बीज का कवर अलग करने में आसानी रहे। इसे फिर 72 घंटे के लिए रूम टेम्पेरेचर पर छोड़ दिया जाता है।
अगले चरण में उन बीजों को अब चार अलग-अलग तापमान लेवल पर रोस्ट किया जाता है।
रोस्टिंग के बाद बैठा होता है फोडिया जो रोस्टेड बीजों को फोड़ने का काम करता है, बीज फटने के बाद इसमें से पॉपकॉर्न जैसा मखाना निकलता है।
अंत में पैक और GI टैग लग कर आता है आपके शहर।
फिर जो जैसा वैसा इस्तेमाल करता है। दारु वाले चखना बनाते है, धार्मिक लोग पूजा में, खाने के शौक़ीन लोग सब्जी और खीर में और विदेशी कहलाने के शौक रखने वाले बनाते है रोस्टेड कैरामलाईज़ेड मखाना ! हमारे यहाँ शादियों की रीती रिवाज में मखाना मस्ट है।
बोनस तो ये है की उसी तालाब/खेत में थोड़ा सेपरेट स्पेस का इंतजाम किया जाय तो हाई डिमांड वाली मछलियों का भी पालन किया जा सकता है।
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