जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 7 जनवरी 2023
सबको बस बिज़नस चलाना है... एक आपको पानी छान के पिलाता है... दूसरा आपको पानी से छाने गए मिनरल को गोली में देता है... मगर कोई आपको असल बिमारी कभी नहीं बताता है..!!
#रामायण सीरियल का वह दृश्य है जहाँ एक अदभुद घटना घटी ( सत्य घटना )
गुरुवार, 5 जनवरी 2023
चतुर्दशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र का योग हो तो उस समय किया गया प्रणव (ॐ) का जप अक्षय फलदायी होता है ।*
भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ
सोमवार, 2 जनवरी 2023
आज का राशिफल व पंचांग - राजेन्द्र गुप्ता
रविवार, 1 जनवरी 2023
आजकल जिसे देखो सुबह शाम लगातार पानी पीने की सलाह दे रहा है, होड़ से मची है इसे लेकर आपकी राय में ऐसा करना किस हद तक सही है और क्यों?
पानी हमेशा सादा पियें, गर्म बिल्कुल भी नहीं अन्यथा शरीर से लुब्रिकेशन खत्म हो जाएगा। जोड़ों की चिकनाहट नहीं बचेगी। आजकल जोड़ों के दर्द , सूजन, थायराइड आदि की समस्याओं की वजह गर्म पानी का इस्तेमाल है।
यह एलोपैथिक चिकित्सा द्वारा फैलाया गया एक षड्यंत्र है। अभी 10 सालों में बीमारियों का जो अम्बार लगा है, उसका कारण गर्म पानी है।
भारत के खिलाफ हर प्रकार से साजिशें चल रही हैं। हमारे बड़े बुजुर्गों ने जीवन भर कभी गर्म पानी नहीं पिया। सावधान रहें। अगर गर्म पानी इतना आवश्यक होता, तो हमारी धरती माँ गर्म जल के स्त्रोत भी देती। जसए बद्रीनाथ, मणिमहेश आदि में उपलब्ध है।
लेह-लदाख में भी गर्म पानी के चश्मे हैं जहां गर्म पानी प्रकृति ने इसलिए दिया है क्योंकि वहां तापमान माइनस में जाता है। लेह से करीब 120 km दूर यह गर्म पानी का स्त्रोत अदभुत है। देखें वीडियो….
पानी माटी के पात्र का सबसे सुरक्षित और स्वाथ्य वर्द्धक रहता है।
मिट्टी के घड़े का जल..
मिट्टी के घड़े का पानी शरीर की जलन,
मानसिक वेदना, पेट की बीमारियों को
दूर करने में सहायक है इसे मार्च से जून (गर्मियों में) पीना हितकर रहता है।
जल का पर्याप्त मात्रा में उपयोग उम्ररोधी बताया गया है। पानी ऐसे पियें-जैसे खा रहे हों।
आयुर्वेद की एक सलाह है कि-
भोजन ऐसे करें, जैसे पी रहे हों अर्थात खाने को बहुत चबा-चबाकर जब तक कि वह पानी की तरह
तरल न हो जाये। धीरे-धीरे खाने से कभी मोटापा नहीं बढ़ता। औऱ पानी को ऐसे पियें जैसे खा रहे हों। पानी को हमेशा धीरे-धीरे बैठकर ही पीना बहुत लाभकारी होता है। खड़े होकर जल ग्रहण करने से
घुटनों व जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है। यह पीड़ा बुढ़ापे में बहुत दुःख देती है। इसलिए पानी हमेशा बैठकर ही पीना चाहिए।
सावधान रहें….गर्म जल पीने से आप की मर्दाना ताकत क्षीण हो सकती है…
अधिक नीबू का उपयोग वीर्य को पतला करता है। इस वजह से नपुंसकता आ सकती है। प्रकृति ने जो जैसा दिया है, वैसा ही हमें उपभोग करना चाहिए।
क्या इतना शुद्ध शहद प्रकृति दे रही है-जरा सोंचे…
अब शुद्ध शहद देश में बहुत कम उपलब्ध है। मैसूर, 36 गढ़, अमरावती, हिमाचल आदि जंगलों के शुद्ध शहद की कीमत 500 से 700/- रुपये किलो खरीदी मूल है।
ज्यादा मधु-शहद के सेवन से बचें…
आजकल 99 फीसदी मधु ग्लूकोज, इन्वर्ट शुगर से बनाकर नकली बेचा जा रहा है।
प्रेरक संस्कृत श्लोक विद्यार्थियों के लिए
प्रेरक संस्कृत श्लोक विद्यार्थियों के लिए
sanskrit shlokas: संस्कृत कभी हमारी संस्कृति की मूल और वाहक भाषा रही है, जिसमें हमारे पूर्वजों ने ,हमारे ऋषि-मुनियों ने तथा तत्कालीन समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों ने ज्ञान के सूत्रों को श्लोक सुभाषित और अन्य रूपों में संग्रहित किया है। हमारे धर्म ग्रंथ असंख्य जीवन उपयोगी सूत्रों एवं गूढ़ दर्शन को अपने आप में समेटे हुए तथ्यों से भरे-पड़े हैं ।
इसी अनमोल खजाने से हमने आपके लिए कुछ बेहद अनमोल मोतियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। वैसे तो यह तमाम सूत्र जनसाधारण के जीवन पर 100% सटीक बैठती हैं, उपयोगी हैं। लेकिन विद्यार्थी जीवन जिसे हम मनुष्य जीवन का स्वर्णिम द्वार कह सकते हैं, में यदि हमें इन सूत्रों की समझ हो जाए तो हम बतौर एक सफल नागरिक अपने जीवन से परिवार समाज देश तथा विश्व का भला कर पाएंगे । आगे पढ़िए गूढ़ तथ्यों से भरपूर संस्कृत श्लोकों को…
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात् :– जो व्यक्ति अभिवादन शील एवं विनम्र है तथा अपने से बड़ों का सम्मान करता है । नित्य प्रतिदिन वृद्धजनों की सेवा करता है.उसे इस सेवा के फलस्वरूप जो आशीर्वाद प्राप्त होता है, उससे उसके आयु विद्या कीर्ति और बल में वृद्धि होती है। ये श्लोक हमारी संस्कृति की मूल अवधारणा का उद्घोष कर रही है जिसमें (भारतीय संस्कृति में ) बड़े बुजुर्गों की सेवा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
क्षणशः कणशः चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणत्यागे कुतो विद्या कण त्यागे कुतो धनम् ॥
अर्थात् :– एक एक क्षण का सदुपयोग कर विद्या प्राप्त करनी चाहिए तथा एक एक कण को महत्वपूर्ण समझ कर के धन संचय करना चाहिए। क्षण के महत्व को बिना समझे उसे गंवाने वाले को विद्या कहां प्राप्त होगी ? ठीक उसी प्रकार जो कण(धन का अत्यंत छोटा सा हिस्सा) के महत्व को नहीं समझेगा उसे धनवान बनने का सुयोग नहीं प्राप्त हो सकता। एक बुद्धिमान व्यक्ति, जो विद्याध्ययन की अभिलाषा रखता हो, को प्रत्येक क्षण (समय) का उपयोग करना चाहिए तथा धनवान बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को प्रत्येक कण को महत्वपूर्ण समझ कर इसका संग्रह करना चाहिए ।
Sanskrit Shlokas विद्यार्थियों के लिए-
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥
अर्थात् :– मनुष्यों का आलस्य ही उसका सबसे बड़ा शत्रु है तथा परिश्रम जैसा कोई दूसरा मनुष्य का अनन्य मित्र नहीं है । परिश्रम करने वाला मनुष्य कभी भी दुःख नहीं भोगता, दुखी नहीं होता ।
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यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ॥
अर्थात् :– जिस प्रकार एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है, उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है । अतः भाग्य के भरोसे सब कुछ छोड़कर मत बैठिये लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करते रहिये ।
पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं च धनम् ।
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद्धनं ॥
अर्थात् :– पुस्तक में रखी विद्या ज्ञान की बातें तथा दूसरे के हाथ में गया धन… ये दोनों जब बहुत आवश्यकता हो जरूरत हो, उस वक्त काम नहीं आता. अतः एक जागरूक व्यक्ति को इस बात को हमेशा ध्यान में रख कर ही आचरण करना चाहिए।
उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि न मनोरथै:।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
अर्थात् :– जैसे सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं प्रवेश कर के उसकी क्षुधातुष्टि नहीं करता । उसी प्रकार सारे अभीष्ट कार्य उद्यम अर्थात प्रयत्न करने से ही पूर्ण होते हैं न कि उन्हें संपन्न कर लेने की इच्छा मात्रा से मनोरथ मात्र से …
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥
अर्थात् :– अचानक आवेश में आ कर बिना सोच विचार किये कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है। इसके उलट जो व्यक्ति सोच –समझकर कार्य करता है, उसके इसी गुण की वजह से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद उन्हें स्वतः प्राप्त हो जाता है अर्थात धन सम्पदा स्वतः उनकी ओर आकृष्ट होने लगती है ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेत विद्या विद्यार्थी व त्यजेत् सुखम् ॥
अर्थात् :-सुख की कामना करने वालों को विद्या कहां प्राप्त हो सकती है ? और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख नहीं मिल सकता. अतः सुख की लालसा रखने वालों को विद्या अध्ययन को त्याग देना चाहिए, तथा जो वास्तव में विद्या प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें सुख का परित्याग कर देना चाहिए।
Sanskrit Shlokas for Better Life.
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता ॥
अर्थात् :– प्रिय अर्थात मधुर वचन से सभी जीवों को प्रसन्नता होती है,फिर मधुर वचन बोलने में कंजूसी किस लिए ? अतएव हमें सदा सर्वदा मधुर वचन ही बोलना चाहिए।
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ॥
अर्थात् :– बिना बुलाए भी जाना, बिना किसी के पूछे बहुत बोलना, विश्वास नहीं करने लायक व्यक्तियों पर विश्वास करना.. ये सभी मूर्ख और अधम लोगों के लक्षण हैं। अतः अपने जीवन में हमें इन चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए ।
रूप यौवन सम्पन्ना विशाल कुल सम्भवा: l
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ll
अर्थात् :– रूप और यौवन से सम्पन्न तथा उच्च कुलीन परिवार में उत्पन्न व्यक्ति भी विद्याहीन होने पर सुगंध रहित पलाश के फूल की भाँति ही शोभा नहीं देते। विद्या अध्ययन करने में ही मनुष्य जीवन की सफलता है।
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
अर्थात् :– विद्या के सामान कोई बंधु नहीं , विद्या जैसा कोई मित्र नहीं, विद्या धन के जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं। अतः विद्या इस लोक में हमारे लिए सकल कल्याण की वाहक है, अतएव विद्यार्जन जरूर करनी चाहिए ।
न विना परवादेन रमते दुर्जनो जनः ।
काकः सर्वरसान् भुंक्ते विनाऽमध्यं न तृप्यति ॥
अर्थात् :-दुर्जन व्यक्तियों को परनिंदा अर्थात दूसरे व्यक्ति की निंदा किए बिना ठीक उसी प्रकार चैन नहीं आता आनंद नहीं आता है, जैसे कि कौआ सभी प्रकार के रसों का आनंद लेने के बाद भी बिना गंदगी (मैला) खाए तृप्त नहीं होता.अतः एक बुद्धिमान व्यक्ति को परनिंदा से बचना चाहिए ।
sanskrit shlokas for success
षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
अर्थात् :-इस संसार में सम्पन्न होने अथवा उन्नति करने की प्रबल इच्छा रखने वाले मनुष्यों को इन छह आदतों का परित्याग कर देना चाहिए – (अधिक) नींद लेना अथवा अधिक सोना, जड़ता, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता अर्थात कार्यों को टालने की प्रवृत्ति. अन्यथा ये आदतें व्यक्ति के उन्नति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर उसकी कामना को कभी भी पूर्ण नहीं होने देंगे ।
विद्यां ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थात् :-विद्या विद्या विनय देती है अर्थात विद्या से विनय प्राप्त होता है। विनय अथवा विनयशीलता से हमें पात्रता (लक्ष्य को प्राप्त करने की योग्यता) प्राप्त होती है। पात्रता से धन प्राप्त होता है और धन से धर्म और सुख की प्राप्ति होती है। दूसरे प्रकार से अगर हम कहें तो धन कभी भी अपात्र के हाथों में एकाएक नहीं आ जाता और अगर आ भी जाए तो नहीं रुक सकता क्योंकि धन की प्राप्ति के लिए पात्र(विनयशील) होना एक आवश्यक शर्त है। विनय शील होना ही धन प्राप्ति की पात्रता है और विनय शील होने के लिए मनुष्य को विद्यावान होना भी आवश्यक है।
sanskrit shlokas
परोपि हितवान् बन्धुर्बन्धु अपि अहितः पर: ।
अहितो देहजो व्याधि हितमारण्यमौषधम ॥
अर्थात् :-अगर कोई अपिरिचित व्यक्ति भी हमारी मदद करें, हमारा हित करें तो हमें उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह सम्मान करना चाहिए मान देना चाहिए। तथा यदि अपने परिवार का सदस्य भी हमारा अहित करें तो उसे अपरिचित व्यक्ति की तरह देखना चाहिए उसे महत्व नहीं देना ही उचित है। ठीक उसी प्रकार जैसे कि जब हमारे शरीर में कोई व्याधि लग जाती है कोई रोग हो जाता है तो वैन की औषधि ही हमारे लिए हितकर होतीं हैं ।
#हितोपदेश
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् ।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ॥
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् ।
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
अर्थात् :– विद्या मनुष्य का सबसे गुप्त एवं विशिष्ट धन है। वह भोग देनेवाली, यश प्रदान करने वाली और सुखकारक है। विद्या गुरुओं की भी गुरु है। विदेश में विद्या अपने बंधुजनों के समान ही है। विद्या ही परम देवता है, राजा भी विद्या की ही पूजा करता है। अतः जिसके पास यह विद्याधन नहीं है वह मनुष्य पशु के ही समान है।
sanskrit shlokas
द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दॄढां शिलाम् ।
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् ॥
अर्थात् :-दो प्रकार के लोगों की गर्दन में एक बड़ी शिला(पत्थर) बांधकर उनको गहरे जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। पहला जो धनवान होकर भी दान नहीं करता तथा दूसरा जो निर्धन होकर भी कठिन परिश्रम करने से भागता हो।
यहां चीजों को नकारात्मक ढंग से लेने की आवश्यकता नहीं है। इस सुभाषित का मतलब इतना सा है कि एक निर्धन व्यक्ति को, धन हीन व्यक्ति को कठोर श्रम करना चाहिए ताकि उसे धन की प्राप्ति हो, जो कि जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक तत्व है, तथा धनवान व्यक्ति जब दानशील होगा तो उससे समाज में जो कमजोर लोग हैं उनकी सहायता भी होगी और धनवान व्यक्ति की ख्याति भी बढ़ेगी।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं अप्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:॥
अर्थात् :– हमें सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए परन्तु अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए, यही धर्म है। इस श्लोक(सुभाषित) का अर्थ यही है कि हमारा व्यवहार ही हमारे सामाजिक जीवन में, हमारे पारस्परिक संबंधों में काफी अहम भूमिका निभाता है। यदि हमारा स्वयं का रवैया किसी के प्रति अथवा किसी और का रवैया हमारे प्रति घृणायुक्त और दोषपरक होगा, तो इससे हमारे बीच शत्रु भाव आ जायेगा। यदि दृष्टि एवं व्यवहार प्रेम मय होगा तो संबंध सुंदर सजीव और मित्रवत हो जाएगा.अर्थात व्यवहार ही हमारे सामाजिक संबंधों का मूल है।
sanskrit shlokas for education
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
अर्थात् :-जो माता-पिता अपने संतान की शिक्षा का प्रबंध नहीं करते उन्हें नहीं पढ़ाते हैं। वह अपने संतानों के लिए शत्रु के समान हैं, क्योंकि उनकी विद्याहीन संतान को समाज में यथोचित आदर नहीं मिलेगा जिस प्रकार हंसों के बीच में बगुले का सत्कार नहीं होता ।
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