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बुधवार, 28 अगस्त 2024

कौन थे श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व कंस के हाथों मारे गए छह शिशु ?

कौन थे श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व कंस के हाथों मारे गए छह शिशु ?
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भगवान् श्री कृष्ण वह महानायक है, जिसने पूरी दुनिया को अधर्म और अन्याय के खिलाफ खड़े होना सिखाया ! जीवन-दर्शन का संदेश और ज्ञान गीता के द्वारा समझाया, भ्रमितों को राह दिखाई, दुखियों को न्याय दिलवाया ! इसके लिए भारी कीमत भी चुकाई ! जन्म लेते ही माँ-बाप से अलग होना पड़ा, जहां पला-बढ़ा, उस स्थान को भी छोड़ना पड़ा ! बचपन से लेकर जीवन पर्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद उसे बदनाम होना पड़ा, लांछन झेलने पड़े यहां तक कि श्रापग्रस्त भी होना पड़ा ! अपने जीवन काल में ही अपने वंश की दुर्दशा का सामना करना पड़ा पर इस सबके बावजूद चेहरे की मधुर मुस्कान को तिरोहित नहीं होने दिया ! कभी अपने दुखों की काली छाया अपने भक्तों की आशाओं पर छाने नहीं दी, क्योंकि सभी का कष्ट हरने के लिए ही तो अवतार लिया था ! 

द्वापर का समय था ! बड़ी भीषण परिस्थितियां थीं ! राज्याध्यक्ष उच्श्रृंखल हो चुके थे ! प्रजा परेशान थी ! न्याय माँगने वालों को काल कोठरी नसीब होती थी ! अराजकता का बोल-बाला था ! भोग-विलास का आलम छाया हुआ था ! उस समय मथुरा का राज्य कंस के हाथों में था ! कंश निरंकुश व पाषाण ह्रदय नरेश था ! वैसे तो वह अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था पर जबसे उसे मालूम हुआ था कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा तभी से उसने उसे काल कोठरी में डाल रखा था ! किसी भी तरह का खतरा मोल न लेने की इच्छा के कारण कंस ने देवकी के पहले छह पुत्रों की भी ह्त्या कर दी !

कौन थे वे अभागे शिशु ? 
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ब्रह्मलोक में स्मर, उद्रीथ, परिश्वंग, पतंग, क्षुद्र्मृत व घ्रिणी नाम के छह देवता हुआ करते थे ! ये ब्रह्माजी के कृपा पात्र थे ! इन पर ब्रह्मा जी की कृपा और स्नेह दृष्टि सदा बनी रहती थी ! वे इन छहों की छोटी-मोटी बातों और गलतियों पर ध्यान न दे उन्हें नज़रंदाज़ कर देते थे ! इसी कारण उन छहों में धीरे-धीरे अपनी सफलता के कारण घमंड पनपने लग गया ! ये अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझने लग गए ! ऐसे में ही एक दिन इन्होंने बात-बात में ब्रह्माजी का भी अनादर कर दिया ! इससे ब्रह्माजी ने क्रोधित हो इन्हें श्राप दे दिया कि तुम लोग पृथ्वी पर दैत्य वंश में जन्म लो ! इससे उन छहों की अक्ल ठिकाने आ गयी और वे बार-बार ब्रह्माजी से क्षमा याचना करने लगे ! ब्रह्मा जी को भी इन पर दया आ गयी और उन्होंने कहा कि जन्म तो तुम्हें दैत्य वंश में लेना ही पडेगा पर तुम्हारा पूर्व ज्ञान बना रहेगा !

समयानुसार उन छहों ने राक्षसराज हिरण्यकश्यप के घर जन्म लिया ! उस जन्म में उन्होंने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण कोई गलत काम नहीं किया ! सारा समय उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करने में ही बिताया ! जिससे प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उनसे वरदान माँगने को कहा ! दैत्य योनि के प्रभाव से उन्होंने वैसा ही वर माँगा कि हमारी मौत न देवताओं के हाथों हो, न गन्धर्वों के, न ही हम हारी-बीमारी से मरें ! ब्रह्माजी तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए !

इधर हिरण्यकश्यप अपने पुत्रों से देवताओं की उपासना करने के कारण नाराज था ! उसने इस बात के मालुम होते ही उन छहों को श्राप दे डाला की तुम्हारी मौत देवता या गंधर्व के हाथों नहीं एक दैत्य के हाथों ही होगी ! इसी शाप के वशीभूत उन्होंने देवकी के गर्भ से जन्म लिया और कंस के हाथों मारे गए और सुतल लोक में जगह पायी !

कंस वध के पश्चात जब श्रीकृष्ण माँ देवकी के पास गए तो माँ ने उन छहों पुत्रों को देखने की इच्छा प्रभू से की जिनको जन्मते ही मार डाला गया था ! प्रभू ने सुतल लोक से उन छहों को लाकर माँ की इच्छा पूरी की ! प्रभू के सानिध्य और कृपा से वे फिर देवलोक में स्थान पा गए !
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सोमवार, 26 अगस्त 2024

भगवान श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है माखन-मिश्री"

🍁 "भगवान श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है माखन-मिश्री" -
माखन क्या है ? मन ही माखन है। भगवान को मन रूपी माखन का भोग लगाना है। क्योंकि भोग तो भगवान लगाते है भक्त तो प्रसाद ग्रहण करता है, इसलिए हम भोक्ता न बने, बस मन माखन जैसा कोमल हो, कठोर न हो।

कहते है न "संत ह्रदय नवनीत समाना", अर्थात संतो का ह्रदय नवनीत अर्थात माखन के जैसा कोमल होता है, इसलिए भगवान संतो के ह्रदय में वास करते है। और वे उनके ह्रदय को ही चुराते हैं। अगर हमारा मन नवनीत जैसा है, तो भगवान तो माखन चोर हैं ही। वह हमारा मन चुरा ले जायेगे।

माखन को नवनीत भी कहते है ये नवनीत बहुत सुन्दर शब्द है। नवनीत का एक अर्थ है जो नित्य नया है। मन भी रोज नया चाहिए। बासी मक्खन भगवान को अच्छा नहीं लगता। इसलिए शोक और भविष्य की चिंता से मुक्त हो जाओ। पर ऐसा कब होगा, जब वर्तमान में विश्वास कायम करेगे।

कहते है न - 
"राम नाम लड्डू, गोपाल नाम खीर है, 
  कृष्ण नाम मिश्री, तो घोर घोर पी।" 

अर्थात राम जी का नाम लड्डू जैसा है- जिस प्रकार यदि लड्डू एक साथ पूरा खाया जाए तभी आनंद आता है, और राम का नाम भी पूरा मुंह खोलकर कहे तभी आनंद आता है। 

इसी प्रकार गोपाल नाम खीर है- अर्थात यदि हम गोपाल-गोपाल-गोपाल जल्दी-जल्दी कहें, तभी आनंद आता है मानो जैसे खीर का सरपट्टा भर रहे हो।

इसी तरह कृष्ण नाम मिश्री जैसे मिश्री होती है- यदि मिश्री को हम मुंह में रख कर एकदम से चबा जाएंगे तो उतना आनंद नहीं आएगा, जितना आनंद मुह में रख कर धीरे-धीरे चूसने में आएगा। और जब हम मिश्री को मुंह में रखकर चूसते हैं तो हमारा मुंह भी थोडा टेढ़ा हो जाता है। मिश्री का स्वाद मीठा होता है इस प्रकार मीठे स्वाद की तरह ही मिश्री भी वाणी और व्यवहार में मिठास घोलने का संदेश देती है। जिस तरह इसको चूसने से अधिक आनंद मिलता है। ठीक उसी तरह मीठे बोल भी निरंतर सुख ही देते हैं।

इसी तरह कृष्ण जी का नाम है धीरे-धीरे कहो मानो मिश्री चूस रहे हो, तभी आनंद आता है। और जब हम कृष्ण कहते है तब हमारा मुंह भी थोड़ा सा टेढ़ा हो जाता है।
कान्हा को ''माखन-मिश्री'' बहुत ही प्रिय है। मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है की जब इसे माखन में मिलाया जाता है तो माखन का कोई भी हिस्सा नहीं बचता, उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समां जाती है। इस प्रकार से कृष्ण को प्रिय ''माखन-मिश्री'' से तात्पर्य है, ऐसा ह्रदय जो प्रेम रूपी मिठास संपूर्णतः पूरित हो।

मिश्री के माखन के साथ खाने की बात है तो इसका अर्थ यह है कि माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। लेकिन माखन स्वाद में फीका भी होता है। उसके साथ मीठी मिश्री खाने का अर्थ है कि जीवन में प्रेम रूपी माखन तो हो पर वह प्रेम फीका यानि दिखावे से भरा न हो, बल्कि उस प्रेम में भावना और समर्पण की मिठास भी हो। ऐसा होने पर ही जीवन के वास्तविक आनंद और सुख पाया जा सकता है।
🙏🕉️🌺 जय श्री कृष्ण जन्माष्टमी 🌺🕉️🙏

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संदिग्ध व्रत-पर्व शंका समाधान

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संदिग्ध व्रत-पर्व शंका समाधान
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अर्धरात्रि व्यापिनी भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को चन्द्रोदय के समय रोहिणी नक्षत्र से संयोग होने पर यह पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 26 अगस्त के दिन अर्धरात्रिव्यापिनी चन्द्रोदयकालीन अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त होने पर यह पर्व स्मार्त (सन्यासी एवं गृहस्थ) एवं वैष्णव एवं निम्बार्क दोनो ही सम्प्रदायों द्वारा एक साथ मनना ही शास्त्रोक्त रहेगा।

जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में जन्माष्टमी पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु इस दिन मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

पौराणिक मान्यता
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पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रुप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं. श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं।

अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है।

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है। अन्त्य की दोनों में परा ही लें।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

व्रजमण्डल में श्रीकृष्णाष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनि बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।

संदिग्ध व्रत पर्व निर्णय
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गत वर्षो की भाँति इस वर्ष भी दो दिन अष्टमी व्याप्त होने से जन्माष्टमी व्रत एंव उत्सव के सम्बन्ध मे संशय बना हुआ है  ओर इसी कारण हमारे पुराणो व धर्मग्रंथो मे कृष्ण जन्माष्टमी व्रत व उत्सव का निर्णय स्मार्त मत (गृहस्थ और सन्यासी) व वैष्णव मत (मथुरा वृन्दावन) साम्प्रदाय के लिए अलग अलग सिद्धांतो से किया है। गृहस्थ व उतरी भारत के लोग कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजा अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी रोहिणी नक्षत्र वृषभ लग्न मे करते है जबकि वैष्णव मत वाले लोग विशेष कर मथुरा वृन्दावन अन्य प्रदेशो मे उदयकालिन अष्टमी (नवमी युता) के दिन ही कृष्ण उत्सव मनाते आ रहे है। अर्द्धरात्रि को अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र हो या न हो इस बात को महत्व नही देते है। जन्म स्थली मथुरा को आधार मानकर मनाई जाने वाले श्रीकृष्ण उत्सव के दिन ही सरकार छुट्टी की घोषणा करती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत तथा जन्मोत्सव दो अलग अलग स्थितिया है।

जन्माष्टमी निर्धारण के नियम
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1👉 अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।

2👉 अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

3👉 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।

4👉 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

5👉 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

6👉  अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।

विशेष: उपरोक्त मुहूर्त स्मार्त मत के अनुसार दिए गए हैं स्मार्त मत वाले प्रायः व्रत निर्णय तिथि को आधार मानकर ही करते है। वैष्णवों संप्रदाय से जुड़े लोग उदय कालीन तिथि होने से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगले दिन मनायेंगे। ध्यान रहे कि वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।

कौन है स्मार्त और वैष्णव
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हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार वैष्णव वे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह (टीका) लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि - वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का मुहूर्त
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कृष्ण जन्माष्टमीऽयं निशीथव्यापिनी ग्राह्या । पूर्वदिन एव निशीथयोगे पूर्वा ।।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है पंचांग के अनुसार इस वर्ष 26  अगस्त दोपहर के 03 बजकर 55 मिनट से रोहिणी नक्षत्र आरम्भ होगा और 27 अगस्त की दिन 03 बजकर 37 मिनट तक रहेगा अतः रोहिणी नक्षत्र केवल 26 अगस्त की मध्यरात्री के समय रहेगा।

जन्‍माष्‍टमी की तिथि:👉 26 अगस्त ।

अष्टमी तिथि आरंभ👉 26 अगस्त की प्रातः 03 बजकर 39 मिनट से।

अष्टमी तिथि समाप्त 👉 26 अगस्त रात्रि दिन 02 बजकर 19 मिनट तक।
 
निशिथ (रात्रि) पूजा का समय 👉 (26 अगस्त) रात 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 41 मिनट तक।

शास्त्र के अनुसार पारण समय
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अगस्त 27 को दिन 03:37 बजे के बाद
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र का समाप्ति समय दिन 03:38 पर।

पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी है।

शास्त्र के अनुसार वैकल्पिक पारण समय
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पारण समय 27 अगस्त को प्रातः 05:51  बजे के बाद।

अर्थात देव पूजा, विसर्जन आदि के बाद अगले दिन सूर्योदय पर पारण किया जा सकता है।

वर्तमान समाज में प्रचलित पारण समय
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पारण समय 26 अगस्त को रात्रि 12:41 बजे के बाद से होगा।

भारत में कई स्थानों पर, पारण निशिता यानी हिन्दु मध्यरात्रि के बाद किया जाता है।

इस वर्ष दही हाण्डी 27 अगस्त को ही मनाई जाएगी।
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शनिवार, 24 अगस्त 2024

जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार-बार चुभे... उसे एक बार हथौड़ी बन कर ठोक दो।

जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार-बार चुभे... उसे एक बार हथौड़ी बन कर ठोक दो।
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काकभुशुण्डि जब करोड़ों ब्रह्माण्डों में घूमें होंगे तो उन्हें समय कितना लगा होगा? क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान् राम तो अवतरित होकर केवल ग्यारह हजार वर्ष अथवा तेरह हजार वर्ष तक ही रहे। करोड़ों ब्रह्माण्ड देखने के लिये तो बड़ा लम्बा समय चाहिये।गरुड़ जी ने पूछ दिया कि भगवान् श्रीराम के उदर में करोड़ों ब्रह्माण्ड आपने कितने समय में देखें? उत्तर देते हुए काकभुशुण्डि जी ने कहा कि-
भ्रमत मोहि ब्रह्माण्ड अनेका।
बीते मनहुँ कलप सत एका॥
      एक सौ एक कल्प तक मैं भगवान् के पेट में स्थित कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों को देखता रहा। अब आश्चर्य होता है कि कहाँ ग्यारह अथवा तेरह हजार वर्ष और कहाँ एक सौ एक कल्प। वैसे तो एक कल्प का समय ही बहुत लम्बा-चौड़ा होता है और इस अवधि की गणना करने वाले अंकों को पढ़कर तो व्यक्ति आतंकित हो जायगा कि एक सौ एक कल्प तक उन्होंने देखा, यह भला कैसे सम्भव है? जब एक सौ एक कल्प तक देख चुके तो भगवान् फिर हँसे और हँसते ही भुशुण्डि जी पेट से निकल कर बाहर आ गये और बाहर आकर देखने लगे कि यह जो मैंने देखा है उसे देखने में कितना समय लगा है? और बाहर की घड़ी की ओर देखने पर पता चला कि-
उभय घरी महँ मैं सब देखा।
          केवल दो घड़ी में मैंने सब देख लिया। आश्चर्य हुआ कि कहाँ दो घड़ी और कहाँ एक सौ एक कल्प। एक देश में भगवान् श्रीराम और उन श्रीराम के उदर में अनेकानेक ब्रह्माण्ड, यह विचित्र विरोधाभास है और तब प्रभु ने मुस्करा कर भक्त के मस्तक पर हाथ रख दिया-"भुशुण्डि तुम्हें क्या लगा?" वे बोले, 'प्रभु! मैं पहले यह समझता था कि आप अयोध्या में थे और आपके साथ मैं क्रीड़ा करता था। बाद में पता चला कि आप सारे ब्रह्माण्ड में हैं, पर नहीं नहीं और अधिक गहराई में जाने पर पता चला कि आप सारे ब्रह्माण्ड में नहीं हैं अपितु सारा ब्रह्माण्ड ही आपमें है। क्योंकि जितने ब्रह्माण्ड होंगे अगर उनमें ही ईश्वर होगा तो वह सीमित होगा क्योंकि आखिर ब्रह्माण्डों की संख्या की भी तो एक सीमा होगी। इसलिये प्रभु! अन्त में यह पता चला कि वस्तुतः ब्रह्माण्ड में आप दिखायी भले ही देते हैं पर सत्य तो यह है कि-'एकांशेन स्थितं जगत्' - अनन्त ब्रह्म के एक अंश में ही कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड रहते हैं, देश की दृष्टि से यह बात पता चली।" 
        काल की दृष्टि से इस सत्य का ज्ञान हुआ कि बाह्य काल की गणना के अनुसार जिस कार्य में एक सौ एक कल्प लगना चाहिये था उसे आप दो घड़ी में ही सम्पन्न करा सकते हैं। मानो दो ही घड़ी में एक सौ एक कल्प की अनुभूति करा देते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ है कि वस्तुतः काल तो आपका ही संकल्प है। आप भले ही काल में दिखायी दें, देश में दिखायी दें और व्यक्ति के रूप में दिखायी दें पर आप इन सबकी सीमा में नहीं हैं। भुशुण्डि की बात सुनकर भगवान् ने कहा- "चलो! अब हम फिर से खेलें।" मानो खेल-खेल में ही इतना बड़ा तत्त्व ज्ञान उन्होंने काकभुशुण्डि जी को दे दिया। इस तरह से अवतार के रूप में प्रभु की लीला चलती ही रहती है।

जय श्री राम

ईश्वर महान है वो कुछ भी कर सकता है।

करिश्मा…
( एक कहानी )

यह कहानी बीहड़ के रेगिस्तान की है , जहाँ पर जब रेत के तूफान आते थे , तो सब तरफ अंधेरा सा छा जाता था और कुछ भी दिखाई नही देता था।

इसी बीहड़ के रेगिस्तान के एक गाँव में , एक औरत अपने 2 वर्ष के बच्चे को एक कपड़े के झूले में झूला झुला रही थी और अपनी मीठी आवाज़ में लोरी सुना रही थी। उस औरत का एक छोटा सा झोपड़ी नुमा घर था। जो मिट्टी और कुछ ईंटों से बना हुआ था।

वो औरत बहुत ममतामई निगाहों से अपने बच्चे को देख रही थी , पर उस सांवली सी दिखाई देने वाली औरत के चेहरे पर , चिंता की लकीरें साफ नज़र आ रही थी।

वह औरत विधवा थी और उस औरत की माली हालत बिल्कुल भी अच्छी नही थी। उस औरत के पास , अब बस महीने भर का अनाज बचा था और रेगिस्तान के बीहड़ में ऐसा होना , गुपचुप से संकट की ओर इशारा कर रहा था।

रेगिस्तान के बीहड़ में रहने वाले अधिकतर लोग किसान थे या मवेशी पालते थे और बीहड़ के गाँव में रहने वाले अधिकतर किसान साल भर का अनाज और जीवन उपयोगी वस्तुएँ , एक ही बार खरीद कर रख लेते थे। पर उस औरत के पति का देहांत हुए अभी कुछ ही महीने बीते थे और अब उस घर की सुरक्षा करने वाला और कमाने वाला कोई भी नही था। कभी इस मातम मनाते घर में , ढेर सारी खुशियाँ थी और उनके परिवार के अच्छे दिन थे। तब उनके पास तीन चार गाय थी जिसका दूध बेच कर उनकी अच्छी गुज़र बसर हो जाती थी। पर जब से उस औरत के पति का देहांत हुआ था , बीहड़ के गाँव में रहने वाली उस अकेली औरत पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उस औरत के पति के गुज़र जाने के बाद , कुछ ही महीनों में , एक एक करके उनकी दो गाय भी गुज़र गई थी और अब उनके घर पर एक कमज़ोर सी दिखाई देने वाली गाय आँगन में बंधी थी और वह गाय भी ठीक समय पर चारा न मिलने की वजह से , बहुत कमज़ोर हो चुकी थी।

वह औरत अपनी मुसीबतों से अकेली लड़ रही थी। एक तरफ तो वो घर के रोज़मर्रा के कामों में जी जान से जुटी हुई थी और साथ ही वो अपने 2 वर्ष के छोटे बच्चे की देखभाल भी कर रही थी। पर इतनी मेहनत मुश्क्त करने के बाद भी और थक कर चूर हो जाने के बाद भी , उसकी आँखों में अपने बच्चे के लिये ममता कम नही हुई थी।

वह अपने बच्चे को लोरी सुनाती हुए सोच रही थी कि अगर उसकी परिस्थिति और भी खराब हो गई , तो वो पास के किसी गाँव में चली जायेगी और मेहनत मजदूरी कर लेगी पर अपने बच्चे को कोई भी कष्ट नही होने देगी।

बीहड़ के उस रेगिस्तान में , उस छोटे से कच्चे घर में , रात बहुत कयामत सी गुज़रती थी। एक तरफ वह औरत अपने छोटे बच्चे को कपड़े के बने झूले में डाल कर लोरियाँ देकर सुलाने की कोशिश कर रही होती थी और दूसरी तरफ रेगिस्तान की तेज़ हवाओं से उसके घर का किवाड़ बजता रहता था और घर के बाहर आँगन में बंधी गाय , रंभाती रहती थी। कुल मिलाकर यह सारा माहौल जैसे उस मासूम औरत की कठिन परीक्षा ले रहा था।
जब कभी उस औरत का बच्चा थोड़े समय के लिए सो जाता था , तब वह औरत अपने घर में बने एक छोटे से मंदिर में दिया जलाती थी और आँसु बहाते हुए ईश्वर से ये प्रार्थना करती थी कि " हे ईश्वर अभी सिर्फ तू ही हमारी रक्षा कर सकता है " और एक दिन उस औरत की ज़िन्दगी में एक करिश्मा हुआ।

उस समय सरकार की एक स्वास्थ्य अभियान की योजना के अंतर्गत बहुत से डॉक्टरों के दल गाँव गाँव भेजे जा रहे थे, जो अनपढ़ और गरीब लोग का मुफ्त इलाज कर रहे थे और छोटे बच्चों को चेचक प्लेग और पोलियो जैसी भयानक बीमारियों से लड़ने के लिए टीके लगा रहे थे। उसी योजना के अंतर्गत डॉक्टरों का एक दल , डॉक्टर अभय श्रीवास्तव के संचालन में उसी गाँव में आया हुआ था।

डॉक्टर अभय श्रीवास्तव एक ऐसे डॉक्टर थे , जो हिंदुस्तान में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद , विदेश से शिक्षा ले कर हिन्दुस्तान वापिस लौटे थे। 35 वर्षीय डॉक्टर अभय श्रीवास्तव बहुत अद्धभुत समझ बुझ वाले बहुत दयालु इंसान थे।

जब डॉक्टर अभय श्रीवास्तव अपने कुछ सहयोगी डॉक्टरों की टीम के साथ , उस औरत के घर के करीब पहुँचे , तब उन्होंने उस औरत के घर पर बहुत अद्धभुत नज़ारा देखा , उन्होंने देखा कि एक औरत अपने छोटे बच्चे को , घर के आंगन में लगे पेड़ पर बंधे एक कपड़े के झूले में , झूला झुला रही थी और अपनी मधुर और ममतामई आवाज़ में , अपने छोटे बच्चे को लोरी सुना रही थी।

वह दृश्य वास्तव में बेहद खूबसूरत था। उस समय आसपास का वातावरण बहुत शांत था और सुबह की गुनगुनी धूप उस सुखद दृश्य को चार चाँद लगा रही थी।

उस पल डॉक्टर अभय ने , अपने सब साथियों को खामोश रहने के लिए कहा और वह आँखें बंद करके उस औरत की लोरी को ध्यान मगन होकर सुन रहे थे और जब उस औरत का बच्चा सो गया , तब उस औरत का ध्यान टूटा और उसने देखा कि उसके घर के आँगन में कुछ लोग खड़े थे।
लोरी की मधुर आवाज़ बन्द होते ही डॉक्टर अभय ने अपनी आँखें खोली और उस औरत से बातचीत करने के लिये आगे बढ़े और उन्होंने उस औरत को अपना और अपने साथियों का परिचय दिया

उस औरत को बीहड़ के इस रेगिस्तान में अकेले देख कर डॉक्टर अभय बहुत हैरान थे। उन्होंने बातचीत करने के लिए उस औरत से कहा " आप बहुत अच्छा गाती हैं , हम काफी देर से आपकी मीठी आवाज़ का आनन्द ले रहे थे "

वह औरत बस मुस्करा भर दी थी , पर डॉक्टर अभय ने देखा कि अपनी तारीफ सुन कर भी उसे कुछ खास खुशी नही हुई थी। बस चेहरे पर एक बुझी बुझी सी मुस्कान चली आई थी।

फिर अपनी बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए और उस औरत के घर पर एक सरसरी नज़र डालते हुए डॉक्टर अभय ने उस औरत से पूछा " आपके घर पर और कितने सदस्य रहते हैं "

ज़िन्दगी से मायूस उस औरत ने मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा " इस घर में मेरे बच्चे और मेरे सिवा और कोई भी नही रहता जी " वह औरत एक सीधी सादी बंजारन थी और बहुत भोली थी , उसे लाग लपेट कर बातचीत करनी नही आती थी और यह बात उसका चेहरा देख कर ही प्रकट होती थी।

" ओह " यह सुनते ही डॉक्टर अभय के चेहरे पर अफसोस के भाव उभर आये थे। वो अपनी पैनी निगाहों से घर की माली हालत को भांप रहे थे और उन्होंने घर के आँगन में बंधी उस कमज़ोर सी गाय को भी देख लिया था और उन्हें यह समझते देर नही लगी थी कि वह औरत बहुत कठिन दौर में से गुज़र रही है।

फिर भी उन से रहा नही गया और उन्होंने पूछ ही लिया " और आपके पति " उन्होंने देखा कि उनके इस सवाल से उस औरत के चेहरे पर बेहद पीड़ा भरे भाव उभरे थे और उस औरत ने डॉक्टर अभय को बताया कि उसके पति को गुज़रे हुए 6 महीने हो चुके हैं।

डॉक्टर अभय को उस औरत की उम्र 25 वर्ष के लगभग लग रही थी और इतनी कम उम्र में विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़े , यह उस औरत पर बहुत बड़ा ज़ुल्म था। अपना सब काम निबटाने के बाद , जब डॉक्टर अभय वहाँ से जाने लगे , तब उन्होंने उस औरत की सहायता करने के लिये उस औरत को एक छोटा सा झूठ बोला। उन्होंने उस औरत से कहा कि उनका एक छोटा बच्चा है , जिसे किसी बीमारी की वजह से ठीक से नींद नही आती और उन्होंने उस औरत को गुज़ारिश की कि अगर वह एक बार फिर से वह लोरी गुनगुना दें , तो वो उस लोरी को अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लेंगे और वह उस लोरी की रिकार्डिंग सुनाकर अपने बच्चे को भी सुलाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने बहुत प्रेम से उस बंजारन औरत से कहा कि " मुझे यकीन है कि आपकी मीठी आवाज़ सुनकर मेरा बच्चा सुख की मीठी नींद सो जायेगा "

उस औरत में माँ की ममता कूट कूट कर भरी हुई थी , वह डॉक्टर अभय के उस प्यार भरे आग्रह को टाल न सकी।

डॉक्टर अभय ने उस खूबसूरत लोरी को अपने मोबाईल फोन पर रिकार्ड कर लिया और पुरस्कार के तौर पर उस बंजारन औरत को 5000 रुपये दिये।
वह औरत बहुत हैरागी सी डॉक्टर अभय को देख रही थी। पहली बार उसने वह पैसे लेने से इनकार कर दिया था और भोलेपन से डॉक्टर अभय से ये कहा था कि इतने मामूली से काम के मैं इतने पैसे कैसे ले सकती हूँ।

वह बेचारी गाँव की रहने वाली थी और उस में लालच लेशमात्र भी नही था। पर डॉक्टर अभय की ज़िद के आगे उस औरत की एक न चली थी और उस औरत को डॉक्टर अभय की दी हुई धनराशि स्वीकार करनी पड़ी। अपने कार्य को ठीक से अंजाम देने के बाद , डॉक्टर अभय की टीम वापिस शहर लौट गई।

इतने सारे पैसे एक साथ देख कर , उस औरत की आँखों में मारे खुशी के आँसु आ गये थे और उसने उन पैसों से अनफन में अपने घर में कुछ महीने का राशन भर लिया था। अब वो थोड़ी सी निश्चिंत सी लग रही थी और ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी कि घर बैठे ईश्वर ने उसके लिये मदद भेज दी थी।

उधर डॉक्टर अभय उस औरत की मीठी आवाज़ से बहुत प्रभावित थे और साथ ही उन्हें उस औरत और उसके बच्चे के भविष्य की चिंता हो रही थी। वह जानते थे कि रेगिस्थान के उस बीहड़ में रह कर अपनी और अपने बच्चे की देख भाल करना , उस औरत के लिये एक टेड़ी खीर साबित होगा।

डॉक्टर अभय जब शहर वापिस लौटे , तो उन्होंने उस औरत की वीडियो रिकार्डिंग को अपने कुछ उन दोस्तों को दिखाया , जो संगीत के क्षेत्र में स्थापित थे। डॉक्टर अभय के सब दोस्तों को उस बंजारन औरत की आवाज़ बहुत भा गई थी। डॉक्टर अभय के सभी दोस्त , डॉक्टर अभय का बहुत सम्मान करते थे। डॉक्टर अभय ने अपने सब दोस्तों से अनुरोध किया कि हो सके अगर तो उस बंजारन औरत की मदद करिये , वो बहुत कठिन परिस्थितियों से जूँझ रही है। डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने , उन्हें उस बंजारन औरत का अतापता दिया और उनसे आश्वासन लिया कि वह सब उस बंजारन औरत की सहायता ज़रूर करेंगे। उन सब सिलसिलों से निबट कर , वह अपने कार्यों में व्यस्त हो गये और कुछ महीनों के बाद वह हिन्दुस्तान से बाहर विदेश चले गये।

आज तीस वर्षों के बाद डॉक्टर अभय श्रीवास्तव हिन्दुस्तान वापिस लौटे थे और एक बहुत शानदार पाँच सितारा होटल में अपने परिवार के साथ डिनर कर रहे थे।

तब डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने देखा कि एक अधेड़ सी उम्र की दिखाई देने वाली महिला उनके टेबल की ओर चली आ रही है। वह हैरान से उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहे थे पर उन्हें कुछ भी याद नही आ रहा था।

वो महिला मुस्कराती सी उनके बहुत करीब आ गई थी और उनके निकट आते ही उसने डॉक्टर अभय को नमस्ते कहा। फिर उस महिला ने कुछ मुस्कराते हुए डॉक्टर अभय से कहा " क्या आपने मुझे पहचाना डॉक्टर साहब " डॉक्टर अभय श्रीवास्तव ने देश और विदेश में हज़ारों मरीजों का ईलाज किया था। उन्होंने अपनी याददाश्त पर बहुत जोर डाला पर फिर भी वो उस महिला को पहचानने में असफल रहे थे।

कुछ पल रुक कर , उस अमीर सी दिखाई देने वाली महिला ने डॉक्टर अभय से कहा " मैं रेगिस्थान के बीहड़ में रहने वाली वो ही बंजारन हूँ , जिसकी अपने आज से ठीक 30 साल पहले 5000 रुपया देकर मदद की थी "

उस महिला की बात सुनकर , उन्हें सब याद आ गया , पर फिर भी उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नही हो रहा था। वह उस महिला की बात सुनकर बहुत खुश थे और अभी तक आश्चर्यचकित से खड़े थे। वह बरसों पुराने उस किस्से को याद करने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें रेगिस्थान की उस बंजारन में और उस सभ्य सी दिखाई देने वाली महिला में ज़मीन आसमान का अंतर दिखाई दे रहा था।

उन्होंने अपनी कुर्सी से उठकर उस औरत का स्वागत किया और अपने परिवार के साथ बैठने के लिये उस महिला को आमंत्रित किया।

तब उस महिला ने उन्हें बताया कि वह अपने बेटे और बहू के साथ आई है और उनके ठीक पीछे की टेबल पर अपने परिवार सहित बैठी है।

दो परिवारों का बहुत प्रेम से मिलन हुआ और उस बंजारन औरत ने , जो अब बहुत बड़ी गायिका बन चुकी थी अपने सारे परिवार को बताया कि कैसे डॉक्टर अभय ने उनकी मदद की थी , जिससे वो इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँच पाई थी। उस महिला ने डॉक्टर अभय श्रीवास्तव को बताया कि उनके विदेश चले जाने के बाद , कैसे उनके दोस्तों ने उसकी मदद की थी और उसे संगीत की दुनिया में नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया था।

बरसों के बाद डॉक्टर अभय को अपनी आँखों के सामने देख कर , उस महिला की आँखों से झर झर आँसु बह रहे थे और वो हाथ जोड़े डॉक्टर अभय श्रीवास्तव के सामने खड़ी थी।

उसने डॉक्टर अभय श्रीवास्तव को बताया कि उसने उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की थी , पर असफल रही थी क्योंकि डॉक्टर अभय श्रीवास्तव उस समय विदेश में थे।

वह बंजारन महिला कुछ समय के बाद ही जान गई थी कि डॉक्टर अभय ने उसे झूठ बोल कर 5000 रुपये की मदद दी थी। वो इस बात को जान गई थी कि उस समय तक डॉक्टर अभय की खुद की शादी भी नही हुई थी, फिर उनके बच्चे का तो सवाल ही पैदा नही होता था। फिर ऐसे देवता जैसे इंसान को कोई कैसे भूल सकता था।

वो कहते हैं न कि ईश्वर की मर्ज़ी के बिना कहीं पर एक पत्ता भी नही हिलता और यह बात पत्थर पर पड़ी लकीर की भांति सत्य है। जब भी किसी नेक इंसान को ईश्वर की सहायता की ज़रूरत पड़ती है और वो सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, तब ईश्वर किसी न के रूप में आकर उसकी मदद ज़रूर करता है। पर यह बात और है कि " उन हैरान कर देने वाले करिश्मों को सिर्फ कुछेक लोग ही जान पाते हैं कि कैसे किसी के जीवन में सिर्फ क्षण भर में जीवनभर के सारे अंधकार मिट गये थे और ईश्वरीय रोशनी हो गई थी।

ईश्वर महान है वो कुछ भी कर सकता है।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

बॉस ने पूछा ~ इससे पहले कि आप भारत में कहां काम करते थे? भारतीय ~ जी! मैं .. एक निजी अस्पताल में कंपाउंडर था.

 

सिरदर्द ....एक भारतीय ने अपनी नौकरी छोड़ दी


कनाडा में दुनिया की सबसे बड़ी

डिपार्टमेंटल स्टोर में

सेल्समैन की नौकरी ज्वाइन की।

बॉस ने पूछा ~

क्या आपके पास कोई अनुभव है?

उसने कहा ~ हाँ सर !

मैं भारत में सेल्समैन था।

पहला दिन उस भारतीय ने

पूरे मन से काम किया।

शाम 6 बजे बॉस ने पूछा ~

आज पहला दिन है...

आपने कितनी बिक्री की?

भारतीय ने कहा ~

सर ! मैंने 1 बिक्री की।

बॉस चौंक कर बोला ~ क्या...

केवल एक सेल?

जो आम तौर पर यहाँ काम करते हैं

20 से 30 प्रत्येक सेल्समैन बेचते हैं

रोज़ाना करते हैं.

अच्छा ये बताओ...

तुमने कितने की बिक्री की.

9,33,005 डॉलर ~

भारतीय बोलो.

क्या? लेकिन तुमने ऐसा कैसे किया?

हैरानी से बॉस ने पूछा.

भारतीय बोला ~

एक व्यक्ति आया,

मैंने उसे थोड़ा सा

मछली पकड़ने का हुक बेचा,

फिर एक माजोला और फिर

आखिर में एक बड़ा हुक बेचा.

फिर मैंने उसे एक बड़ी मछली पकड़ने वाली छड़ी दी

और कुछ मछली पकड़ने का सामान बेचा.

फिर मैंने उससे पूछा कि ~

तुम मछली कहाँ पकड़ोगे?

उसने कहा कि वह

तटीय क्षेत्र में पकड़ेगा.

फिर मैंने कहा इसके लिए

नाव की ज़रूरत होगी.

तो मैं उसे नीचे ले गया

उसे नाव विभाग में ले गया और उसे

20 फीट डबल इंजन

👉 स्कूनर नाव बेची.

जब उसने कहा कि यह नाव उसकी है

वोक्स वैगन में नहीं आएगी,

फिर मैंने उसे अपना

ऑटोमोबाइल सेक्शन में ले गया

और उसकी नई नाव कैरी

👉 डीलक्स 4×4 ब्लेज़र बेचा।

और जब मैंने उससे पूछा कि ~

मछली पकड़ने के दौरान तुम कहाँ रहोगी?

उसने कुछ भी प्लान नहीं किया था, इसलिए मैं

उसे कैंपिंग सेक्शन में ले गया, और

छह स्लीपर...

👉 कैंपर टेंट बेचा

और फिर उसने कहा कि

जब इतना कुछ ले लिया जाता है,

तो 200 डॉलर का किराना और

दो केस बीयर भी ले लूँगी।

अब बॉस दो कदम पीछे हटे, और

बहुत ही धमाकेदार अंदाज में

पूछना शुरू किया ~ तुमने इतना कुछ किया...

उस आदमी को बेचा, जो..

👉 सिर्फ़ एक मछली का हुक

खरीदने आया था।

नहीं सर! युवा भारतीय सेल्समैन ने

जवाब दिया ~ वह सिर्फ़...

सिरदर्द से राहत पाने के लिए

टैबलेट लेने आया था।

मैंने उसे समझाया कि ~

मछली पकड़ना

सिर दर्द से राहत पाना

सबसे बढ़िया उपाय है.

बॉस ने पूछा ~ इससे पहले कि आप

भारत में कहां काम करते थे?

भारतीय ~ जी! मैं ...

★ एक निजी अस्पताल में कंपाउंडर था.

घबराहट की मामूली शिकायत पर

हम मरीजों से हैं

पैथोलॉजी, इको, ईसीजी, टीएमटी,

सीटी स्कैन, एक्स-रे, एमआरआई

आदि जांच करवाते हैं.

बॉस ~ आप मेरी कुर्सी पर बैठिए.

मैं भारत में प्रशिक्षण के लिए

निजी अस्पताल

जॉइन करने जा रहा हूँ.

जय हिंद 🇮🇳

#बहन_बेटियों_सावधान 👬

 

#बहन_बेटियों_सावधान 👬

जब कोई रिश्तेदार मामा चाचा ताऊ फूफा मौसा पड़ोसी कज़िन भैया आदि प्रकार का रिश्ता किनारे रख कर तुमसे कहने लगे "रिश्ते अपनी जगह ,पर मैं तो तुम्हें अपनी फ्रेंड मानता हूँ।

तुम एक मॉर्डन गर्ल हो आज के ज़माने की तो पुराने टाइप के रिश्ते मत मानो।

"तो अपने माता पिता भाई को बता दो,,, क्योंकि उनकी नियत में खोट है।

फेसबुक के फ्रेंड किसी फ्रेंडशिप के प्रतीक नहीं हैं।

फेसबुक फ्रेंड मतलब फालतू के फ्रेंड, सिर्फ ऑनलाइन हैं ये,,,,इनसे जिंदगी पर तब तक कोई फर्क नही जबतक असल जिंदगी में न मिलो।

अतः फेसबुक पर उनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट को संदेह से न देखो,,,,

पर इनबॉक्स और व्हाट्सअप में वीडियो कोटेशन शेयर करने लगें तो सावधान।

पुरुषों के हथकंडे -

वे तुमसे ऐसे बातें करेंगे कि दर्द आंखों से छलक पड़े

स्वयं को अपनी पत्नी के पिछड़ेपन से त्रस्त दिखाएंगे

खुद हैंडसम बने रह कर जताएंगे कि बहुत पुराने विचारों की पत्नी मिली है,दर्द किससे कहे,,,,,,

तुम अगर कह बैठी कि मुझसे कहिये,में हूँ न तो बस तुम्हारा जीवन उनके हवाले हो गया।

पत्नी को बीमार बता सकते हैं

पत्नी के अवैध संबंधों की झूठी बात बता कर सहानुभूति लूटेंगे,,,

तुम्हें सुंदर और इंटेलीजेंट बता कर काबू करेंगे,,,,

तुम में उन्हें अचानक ऐश्वर्या सानिया कल्पना चावला दिखने लगेगी।

तुम्हारी ममी पापा की ज़्यादा केअर शुरू करेंगे,,,,

तुम्हें वो गिफ्ट करना शुरू करेंगे जो पापा नहीं दे सकते

कोई कुछ कहेगा भी नहीं

उनसे रिश्ता ही ऐसा है अचानक गिफ्ट बढ़ जाएं

कपड़े ज़्यादा प्राप्त होने लगें घर आना जाना बढ़ जाये।

तुम्हें एग्जाम दिलाने वे स्वयं जाने लगे।

#सावधान

कोई पुरुष रिश्ते की आड़ में तुम्हें लूटने की तैयारी में है।

अच्छी नियत वाले भी अलग दिख जाते हैं,,

#सबसे_सुरक्षित_रहें।।

मां बाप सगे भाई बहन के अलावा इस समाज में कोई हितैषी हो ही नही सकता ।।।

🌷❣️ 🙏राधे राधे 🙏❣️🌷

सालाना सैलरी 30 करोड़ रुपए, काम - सिर्फ स्विच ऑन-ऑफ करना, फिर भी लोग नहीं करना चाहते ये नौकरी

 

World`s First Lighthouse: ऐसी नौकरी जिसमें ना नजर रखने वाला बॉस हो, ना काम करने की टेंशन हो. जब मर्जी हो सो जाओ, जब मन करे मजे करो और सैलरी भी 30 करोड़ रुपए, फिर भी लोग नहीं करना चाहते ये जॉब, आखिर क्‍यों?

Highest Paying Lighthouse Job Salary: करोड़ों का मोटा पैकेज, काम के घंटे न के बराबर और उस पर बॉस भी ना हो. ऐसी नौकरी का सुख स्‍वर्ग के सुख से कम नहीं है. यूं कहें कि ऐसी नौकरी हर कोई करना चाहता है लेकिन एक ऐसी ही नौकरी के लिए कैंडिडेट मिलना मुश्किल होता है. ये नौकरी है मिस्‍त्र के अलेक्‍जेंड्रिया बंदरगाह में फारोस नाम के द्वीप पर स्थित लाइटहाउस ऑफ अलेक्‍जेंड्रिया के कीपर की नौकरी. इस नौकरी के लिए सालाना सैलरी 30 करोड़ रुपए है.

इस लाइटहाउस के कीपर का एक ही काम है कि उसे इस लाइट पर नजर रखना होती है कि यह लाइट कभी बंद ना हो. फिर चाहे दिन के चौबीसों घंटे उसका जो मन करे, वो करे. यानी कि जब मन करे सो जाओ, जब जागने का मन हो उठो और एंजॉय करो, फिसिंग करो, समुद्री नजारे देखो. बस, एक बात का ध्‍यान रखना है कि लाइट हाउस की लाइट बंद ना होने पाए. यह लाइट हमेशा जलती रहे. फिर भी लोग इतने मोटे पैकेज वाली आरामदायक नौकरी करने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते हैं.

जान जाने का खतरा

इस नौकरी को दुनिया की सबसे कठिन नौकरी माना जाता है क्‍योंकि यहां व्‍यक्ति को पूरे समय अकेले रहना होता है. ना उससे कोई बात करने वाला होता है और ना ही उसे इंसान नजर आते हैं. समुद्र के बीचोंबीच बने इस लाइटहाउस को कई खतरनाक तूफान भी झेलने पड़ते हैं. कई बार तो समुद्री लहरें इतनी ऊंची उठती हैं कि लहरों से लाइफहाउस पूरी तरह ढंक जाता है. इससे लाइटहाउस कीपर का जान जाने का खतरा भी बना रहता है.

आखिर क्‍यों इतना जरूरी है यह लाइट जलना?

अब सवाल यह है कि इस लाइट हाउस को क्‍यों बनाया गया और इसकी लाइट जलते रहना इतना जरूरी क्‍यों है? एक बार मशहूर सेलर (नाविक) कैप्‍टन मेरेसियस इस ओर से निकल रहे थे. इस इलाके में बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं, जो उन्‍हें रात के अंधेरे में तूफान के बीच दिखाई नहीं दीं. इससे उनकी नाव उलटी हो गई. कई क्रू मेंबर मारे गए, काफी नुकसान हुआ. कैप्‍टर मेरी को बहुत दूर जाकर जमीन मिली और वे मिस्‍त्र पहुंचे. अक्‍सर यहां की चट्टानों से समुद्री जहाजों को बहुत नुकसान होता था.

इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना

तब यहां के शासक ने आर्किटेक्‍ट को बुलाया और कहा कि समुद्र के बीच ऐसी मीनार बनाओ जहां से रोशनी की व्‍यवस्‍था की जा सके. इससे जहाजों को रास्‍ता भी दिखाया जा सके और उन्‍हें बड़े पत्‍थरों से भी बचाया जा सके. तब यह लाइट हाउस बनाया गया लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो उन्‍हें खुद ये अंदाजा नहीं था कि वह इंजीनियरिंग की दुनिया का बड़ा इंवेंशन होने वाला है.

इस लाइटहाउस का नाम रखा गया 'द फेरोस ऑफ अलेक्‍जेंड्रिया'. इस लाइटहाउस में लकडि़यों की मदद से बड़ी आग जलाई जाती थी और लेंस की मदद से उसे और बड़ा किया जाता था ताकि उसकी रोशनी दूर तक जा सके.

दुनिया का पहला लाइटहाउस

इस लाइटहाउस के कारण अब यहां नाविक आसानी से आने-जाने लगे. यह दुनिया का पहला लाइट हाउस था. इसके बाद दुनिया भर में लाइट हाउस बने. पहले लाइट हाउस केवल समुद्री किनारों पर बनते थे, लेकिन बाद में पत्‍थरों वाली जगहों पर भी लाइट हाउस बनने लगे. साथ ही समय के साथ बिजली की खोज हुई और लाइट हाउस पर बिजली से रोशनी की जाने लगी.

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