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मंगलवार, 14 जून 2011

क्या प्रत्येक बड़े कांग्रेसी नेता के विदेशी खाते में 1500 करोड़ रु. या ज्यादा होंगे ?

क्या प्रत्येक बड़े कांग्रेसी  नेता के विदेशी खाते  में 1500 करोड़ रु. या ज्यादा  होंगे ?
बाबा राम देव के ट्रस्ट कि कुल सम्पति 1177 करोड़ रु. पाई गई माने यदि
1300 करोड़ होगी पर सही साफ है ! ट्रस्ट कि सम्पति को  मिडिया ने बाबा कि
सम्पति बता कर बड़ा भ्रम व् आश्चर्य  किया पर यहा एक प्रशन है :-  क्या प्रत्येक बड़े संसदीय नेता के विदेशी खाते  में 1500 करोड़ रु. नहीं होंगे ?


सरकार से कोई 400 लाख करोड़ रु. के बारे में क्यों नहीं पूछता जो उसने
विदेशी खातो में भर रखा है ? सरकार अपने विरोधी के सफ़ेद धन को कला साबित
करने में तुली है पर जो उन्होंने कला धन विदेशो में भर रखा है उससे मिडिया
का ध्यान कैसे हटा दिया गया ?


बाबा ने जो धन लिया उसे प्रतिफल बदले जनता से साफ कहकर  लिया तथा जनता ने
अपनी इच्छा से उन्हें दिया ! मंत्रियो ने पर्सनल जो लिया और दिया उसके बारे
में कोई न तो काली राय न सफ़ेद राय, क्यों ?
क्या ये धन देश कि जनता का
नहीं है जो विदेशो में कला धन बन सड रहा है ?
इससे देश कि कितनी समस्याए हल
हो सकती है ?
जब कलमाड़ी 3 -4000 करोड़ का घोटाला कर सकता है तो हमारे कांग्रेश के बड़े नेता क्या ईस से पीछे होंगे ?
राहुल जी और सोनिया जी ८जुन २०११ व् ११ जून २०११ को चुपके से इटली & स्विजरलैंड क्यों गये ?
Bhartiya midiya sahi / satya khabar meen sabse piche  piche..............





नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

हर घोटाले में पार्टी हाई कमान को कितना परसेंट हिस्सा मिलता है ?

हर घोटाले में पार्टी हाई कमान को कितना परसेंट हिस्सा मिलता है ? 


मुख्य सोनिया & मनमोहन है तो हर घोटाले में इनका हिस्सा पक्का होगा तो सिर्फ एक मुख्य मंत्री का ही इस्तीफा क्यों लिया जाता है ?  मंत्री अकेला ही घोटाला करता है, क्या  उससे बड़े नेताओ को पता नहीं रहता है ? 

माना एक घोटाला हुवा तो उसमे  एक को हटा दिया पर पार्टी  के राज में इतने एक के बाद एक घोटाले तो कही अध्यक्ष सोनिया/राहुल/मनमोहन में ही कमी होगी तो कांग्रेश अपनी पार्टी से सोनिया/राहुल/मनमोहन  गांदी का स्तीफा क्यों नहीं लेती & सजा क्यों नहीं दिलाती ? & प्रधान मंत्री अपने मंत्रियो के साथ स्तीफा क्यों नहीं देते ? बाबा के पीछे क्यों पड़े है ? 

कला धन तो सरकार ने बनाया है ! बाबा ने किसी को ठगा नहीं , योग सिखा कर साफ कह के धन लिया है ! बाबा का तो सारा धन सामने है जो सफ़ेद है ,  माना यदि बाबा का धन  कला है तो भ्रस्टा चार लोकपाल बिल में वो भी क्या नहीं आजायेंगे ?

सरकार सही कानून क्यों नहीं बनाती  जिसके दायरे  में सभी मंत्री व् प्रधान मंत्री अवस्य हो ? 
छोटे लोग तो अपनी मज़बूरी पर करते होंगे पर ये ये बड़े मंत्री & नेता तो अपने ना पाक कायर्यो के लिए भ्रस्ताचार करते है ? अन्ना का समर्थन सरकार क्यों नहीं करती ? 

क्या  सोनिया के पास कांग्रेस का रिमोट है ? अत रिमोट चलाने वाले को क्या सब घोटालो कि पहले ही खबर रहती होगी  ? सरकार के सभी घोटालो  के लिए रिमोट के  टन किसने दाबाए ? 

An Indian
अगर प्रश्न अच्हे लगे तो अग्रेषित जरूर करे वरना   देश के लिए तो जरू करे !  
Please, forward it for own country & DeshDharma ................Jai Hind ....


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सुनील ने सिर्फ  जूता दिखाया तो कांग्रेसियों sath  दिग्विजय ने,फिर बाद में पुलिश ने  मारा , क्या यह सरकार कि निति सही है ? 


उसे बुरी तरह मिडिय ने जूता दिखाना बताया और  कुछ मिडिया ने जूता  दिखiने को मरना कहा ! क्या दिखने और मारने में अंतर मिडिया को नहीं पता  ?

आन्दोलन करने वाली  जनता को  लापता कर दिया या जानसे भी मारा गया होगा  अगर इसी तरह जनता भी अपना आक्रोश निकले तो क्या वह गलत होगा ? क्या यह सरकार ने जो निति  सुनील के साथ कि वो यदि जनता करे तो क्या गलत है ?

मंत्रियो द्वारा पीड़ित व्यक्ति हे जो मंत्रियो को कैसे सबक सिखाएँगे ? हमने देखा कि राम लीला मैदान में सो रहे व्यक्तियो को सरकार ने मारा , उनके साथ धोखा , कपट , उत्पीडन , षड्यंत्र आदि किये तो वहा लोगो ने सरकार व् नेताओ को सबक सिखाने कि सोगंद /सपथ ली थी ! क्या वे आपना इंतकाम या बदला ले पाएंगे ? 
 
देखेगे ! देखे नही , इनके लिए अन्ना के साथ शांति से सत्याग्रह करे ! 
सरकार को भगवान सद बुधि दे !!!




An Indian
अगर प्रश्न अच्हे लगे तो अग्रेषित जरूर करे वरना   देश के लिए तो जरू करे !  
Please, forward it for own country & DeshDharma ................Jai Hind ....



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एक और महाभारत के प्रारंभ होने का इंतजार है


भगवान श्री कृष्ण दुर्योधन (कालेधन,बुरे धन ) के साथ नहीं है ,
बल्कि भगवान  श्री कृष्ण  अर्जुन (साधक,सत )  के   साथ  है ,
भगवान श्री कृष्ण अधर्म के साथ नहीं बल्कि  धर्म के  साथ है ! 
भारत को बस एक और  महाभारत के प्रारंभ होने का इंतजार है 

मंगलवार, 24 मई 2011

मन नहीं लगे तब भी बैठकर जप करो,

किसी सेठ के पास एक नौकर गया। सेठ ने पूछाः "रोज के कितने रुपये लेते हो?"

नौकरः "बाबू जी ! वैसे तो आठ रूपये लेता हूँ। फिर आप जो दे दें।"

सेठः "ठीक है, आठ रुपये दूँगा। अभी तो बैठो। फिर जो काम होगा, वह बताऊँगा।"

सेठ जी किसी दूसरे काम में लग गये। उस नये नौकर को काम बताने का मौका नहीं मिल पाया। जब शाम हुई तब नौकर ने कहाः "सेठ जी! लाइये मेरी मजदूरी।"

सेठः "मैंने काम तो कुछ दिया ही नहीं, फिर मजदूरी किस बात की?"

नौकरः "बाबू जी ! आपने भले ही कोई काम नहीं बताया किन्तु मैं बैठा तो आपके लिए ही रहा।"

सेठ ने उसे पैसे दे दिये।



जब साधारण मनुष्य के लिए खाली-खाली बैठे रहने पर भी वह मजदूरी दे देता है तो परमात्मा के लिए खाली बैठे भी रहोगे तो वह भी तुम्हें दे ही देगा। 'मन नहीं लगता.... क्या करें?' नहीं, मन नहीं लगे तब भी बैठकर जप करो, स्मरण करो। बैठोगे तो उसके लिए ही न? फिर वह स्वयं ही चिंता करेगा।

विकारो से बचने हेतु संकल्प-साधना

विषय-विकार साँप के विष से भी अधिक भयानक है, इन्हें छोटा नहीं समझना चाहिए | सैकड़ो लीटर दूध में विष की एक बूंद डालोगे तो परिणाम क्या मिलेगा? पूरा सैकड़ो लीटर दूध व्यर्थ हो जायेगा|
साँप तो कटेगा तभी विष चढ़ पायेगा किन्तु विषय-विकार का केवल चिंतन ही मन को भ्रष्ट कर देता है | अशुद्ध वचन सुनने से मन मलिन हो जाता है |
अत: किसी भी विकार को कम मत समझो | विकारो से सदैव सौ कोस दूर रहो | भ्रमर में कितनी शक्ति होती है कि वह लकड़ी को भी छेद देता है, परन्तु बेचारा फूल की सुगंध पर मोहित होकर पराधीन होके अपने को नष्ट कर देता है | हाथी स्पर्श के वशीभूत होकर स्वयं को गड्ढे में डाल देता है | मछली स्वाद के कारण कांटे में फँस जाती है | पतंगा रूप के वशीभूत होकर अपने को दिये पर जला देता है | इन सबमे सिर्फ एक-एक विषय का आकर्षण होता है फिर भी ऐसे दुर्गति को प्राप्त होते है, जबकि मनुष्य के पास तो पाँच इन्द्रियों के दोष है | यदि वह सावधान नहीं रहेगा तो तुम अनुमान लगा सकते हो की उसका क्या हाल होगा !
अली पतंग मृग मीन गज, एक एक रस आंच|
तुलसी तिनकी कौन गति जिनको व्यापे पाँच ||
अत: भैया मेरे ! सावधान रहे | जिस-जिस इन्द्रियों का आकर्षण है उस-उस आकर्षण से बचने का संकल्प करे | गहरा स्वास ले और प्रणव (ॐकार) का जप करे | मानसिक बल बढ़ाते जाये | जितनी बार हो सके बलपूर्वक उच्चारण करे, फिर उतनी ही देर मौन रहकर जप करे | 'आज उस विकार में फिर से नहीं फँसूँगा या एक सप्ताह तक अथवा एक माह तक नहीं फँसूँगा...' ऐसा संकल्प करे | फिर से गहरा श्वास ले और 'हरि ॐ ॐ ॐ...हरि ॐ ॐ ॐ...' ऐसा उच्चारण करे|

ढाई अक्षर प्रेम का

ढाई अक्षर प्रेम का......
एक बार चैतन्य महाप्रभु को विद्वानों ने घेर लिया। पूछने लगेः
"आप न्यायशास्त्र के बड़े विद्वान हो, वेदान्त के अच्छे ज्ञाता हो। हम समझ नहीं पाते कि इतने बड़े भारी विद्वान होने पर भी आप 'हरि बोल.... हरि बोल....' करके सड़कों पर नाचते हो, बालकों जैसी चेष्टा करते हो, हँसते हो, खेलते हो, कूदते हो !"
चैतन्य महाप्रभु ने जवाब दियाः "बड़ा भारी विद्वान होकर मुझे बड़ा भारी अहं हो गया था। बड़ा धनवान होने का भी अहं है और बड़ा विद्वान होने का भी अहं है। यह अहं ईश्वर से दूर रखता है। इस अहं को मिटाने के लिए मैं सोचता हूँ कि मैं कुछ नहीं हूँ......मेरा कुछ नहीं है। जो कुछ है सो तू है और तेरा है। ऐसा स्मरण करते-करते, हरि को प्यार करते-करते मैं जब नाचता हूँ, कीर्तन करता हूँ तो मेरा 'मैं' खो जाता है और उसका मैं हो जाता है।
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ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान।।

मौन का असर

 मौन का असर है।
एक गांव में सास और बहू रहती थी। उन दोनों के बीच अक्सर लडाई-झगडा होता रहता था। सास बहू को खूब खरी-खोटी सुनाती थी। पलटकर बहू भी सास को एक सवाल के सात जवाब देती थी।
एक दिन गांव में एक संत आए। बहू ने संत से निवेदन किया-गुरूदेव, मुझे ऐसा मंत्र दीजिए या ऐसा उपाय बताइए कि मेरी सास की बोलती बंद हो जाए। जवाब में संत ने कहा बेटी, यह मंत्र ले जाओ। जब तुम्हारी सास तुमसे गाली-गलौज करे, तो इस मंत्र को एक कागज पर लिखना और दांतो के बीच कसकर भींच लेना।
दूसरे दिन जब सास ने बहू के साथ गाली-गलौज किया, तो बहू ने संत के कहे अनुसार मंत्र लिखे कागज को दांतों के बीच भींच लिया। ऐसी स्थिति में बहू ने सास की बात को कोई जवाब नहीं दिया। यह सिलसिला दो-तीन दिन चलता रहा।
एक दिन सास के बडे प्रेमपूर्वक बहू से कहा-अब मैं तुमसे कभी नहीं लडूंगी
क्योंकि अब तुमने मेरी गाली के बदले गाली देना बंद कर दिया।
बहू ने सोचा- मंत्र का असर हो गया है और सासूजी ने हथियार डाल दिए है।
दूसरी दिन बहू ने जाकर संत से निवेदन किया-गुरूजी आपका मंत्र काम कर गया।
संत ने कहा यह मंत्र का असर नही, मौन का असर है।

भगवान की पूजा में महत्व सोने-चांदी के गहनों का नहीं, भावना का होता है।

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के मन में एक दिन एक विचित्र विचार
आया। उन्होंने तय किया कि वह भगवान श्रीकृष्ण को अपने गहनों से तौलेंगी।
श्रीकृष्ण ने जब यह बात सुनी तो बस मुस्कुराए, बोले कुछ नहीं। सत्यभामा
ने भगवान को तराजू के पलडे़ पर बिठा दिया। दूसरे पलड़े पर वह अपने गहने रखने लगीं।
भला सत्यभामा के पास गहनों की क्या कमी थी। लेकिन श्रीकृष्ण का पलड़ा
लगातार भारी ही रहा। अपने सारे गहने रखने के बाद भी भगवान का पलड़ा नहीं उठा तो वह हारकर बैठ गईं। तभी रुक्मिणी आ गईं। सत्यभामा ने उन्हें सारी बात बताई। रुक्मिणी तुरंत पूजा का सामान उठा लाईं। उन्होंने भगवान की पूजा की। जिस पात्र में भगवान का चरणोदक था, उसे उठाकर उन्होंने गहनों वाले पलड़ों पर रख दिया।
देखते ही देखते भगवान का पलड़ा हल्का पड़ गया। ढेर सारे गहनों से जो बात नहीं बनी, वह चरणोदक के छोटे-से पात्र से बन गई। सत्यभामा यह सब आश्चर्य से देखती रहीं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ। तभी वहां नारद मुनि आ पहुंचे। उन्होंने समझाया, 'भगवान की पूजा में महत्व सोने-चांदी के गहनों का नहीं, भावना का होता है। रुक्मिणी की भक्ति और प्रेम की भावना भगवान के चरणोदक में समा गई। भक्ति और प्रेम से भारी दुनिया में कोई वस्तु नहीं है। भगवान की पूजा भक्ति-भाव से की जाती है, सोने-चांदी से नहीं। पूजा करने का ठीक ढंग भगवान से मिला देता है।' सत्यभामा उनकी बात समझ गईं।

संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना श्रेष्ठ कार्य है। (श्रेष्ठता के 3 सवाल)

एक राजा जिस साधु-संत से मिलता, उनसे तीन प्रश्न पूछता। पहला- कौन व्यक्ति श्रेष्ठ है? दूसरा- कौन सा समय श्रेष्ठ है? और तीसरा- कौन सा कार्य श्रेष्ठ है? सब लोग उन प्रश्नों के अलग-अलग उत्तर देते, किंतु राजा को उनके जवाब से संतुष्टि नहीं होती थी। एक दिन वह शिकार करने जंगल में गया। इस दौरान वह थक गया, उसे भूख-प्यास सताने लगी। भटकते हुए वह एक आश्रम में पहुंचा। उस समय आश्रम में रहने वाले संत आश्रम के फूल-पौधों को पानी दे रहे थे। राजा को देख उन्होंने अपना काम फौरन रोक दिया। वह राजा को आदर के साथ अंदर ले आए। फिर उन्होंने राजा को खाने के लिए मीठे फल दिए। तभी एक व्यक्ति अपने साथ एक घायल युवक को लेकर आश्रम में आया। उसके घावों से खून बह रहा था। संत तुरंत उसकी सेवा में जुट गए। संत की सेवा से युवक को बहुत आराम मिला। राजा ने जाने से पहले उस संत से भी वही प्रश्न पूछे। संत ने कहा, 'आप के तीनों प्रश्नों का उत्तर तो मैंने अपने व्यवहार से अभी-अभी दे दिया है।'राजा कुछ समझ नहीं पाया। उसने निवेदन किया, 'महाराज, मैं कुछ समझा नहीं। स्पष्ट रूप से बताने की कृपा करें।' संत ने राजा को समझाते हुए कहा, 'राजन्, जिस समय आप आश्रम में आए मैं पौधों को पानी दे रहा था। वह मेरा धर्म है। लेकिन आश्रम में अतिथि के रूप में आने पर आपका आदर सत्कार करना मेरा प्रधान कर्त्तव्य था। आप अतिथि के रूप में मेरे लिए श्रेष्ठ व्यक्ति थे। पर इसी बीच आश्रम में घायल व्यक्ति आ गया। उस समय उस संकटग्रस्त व्यक्ति की पीड़ा का निवारण करना भी मेरा कर्त्तव्य था, मैंने उसकी सेवा की और उसे राहत पहुंचाई। संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना श्रेष्ठ कार्य है। इसी तरह हमारे पास आने वालों के आदर सत्कार करने का, उनकी सेवा-सहायता करने का समय ही श्रेष्ठ है।' राजा संतुष्ट हो गया।

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