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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

प्राचीन अनुष्ठानों का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव

प्राचीन अनुष्ठानों का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव

केरल के दूरदराज के एक गांव में 4,000 साल से एक ज्वाला अनुष्ठान चल रहा है इस साल अप्रैल में वैज्ञानिकों ने उस ज्वाला अनुष्ठान और वहां के बाताबरण पर प्रयोग किया और निष्कर्ष निकला कि इस अनुष्ठान से वातावरण, मिट्टी और अन्य पर्यावरण प्रभाव पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

"Athirathram" नाम का यह अनुष्ठान 4 अप्रैल को त्रिशूर जिले के पंजाल गांव में आयोजित किया गया जिसका विस्तृत अध्ययन Prof V P N Nampoori, former director of the International School of Photonics, Cochin University of Science and Technology. की टीम द्वारा किया गया।

वैज्ञानिकों ने ज्वाला अनुष्ठान से वैज्ञानिक आयाम, वातावरण, मिट्टी और उसके सूक्ष्म जीवों और अन्य संभावित पर्यावरणीय पर होने वाले प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया|

अनुष्ठान स्थल के चार पक्षों पर अलग - अलग दूरी पर लोबिया, हरा चना और चने की दाल - टीम के तीन प्रकार के बीज लगाया था. उन्होंने पाया कि विकास बर्तन के मामले में बेहतर था जिसको यज्ञ वेदी के करीब रखा था।

इस प्रभाव का अध्ययन किया गया, चने की दाल का विकास अन्य स्थानों की तुलना में 2,000 गुना तेजी से हुआ।

Nampoori जी के अनुसार, ध्वनि और जप के माध्यम से वायु में एक निरंतर सकारात्मक कंपन ( सकारात्मक यांत्रिक तरंगे) उत्पन्न होता है, जो अंकुरण की प्रक्रिया की गति में बृद्धि करता है।.

Nampoori कहते हैं. "यह निष्कर्ष केवल वैदिक अनुष्ठानों के साथ जुड़े अंधविश्वासी विचार दूर करेगा बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण की बेहतरी और समुन्नति के लिए अनुष्ठान परंपरा की निरंतरता में मदद करेगा"

यज्ञशाला से तीन स्थान निश्चित किये गए उसके समीप, 500 मीटर की दूरी और 1.5 किलोमीटर की दूरी जहाँ पर जीवाणु कॉलोनियों का अध्ययन किया गया। यज्ञ समाप्ति के बाद निष्कर्ष निकला गया की यज्ञशाला के समीप मिटटी, पानी और हवा जीवाणुओं की उपस्तिथि नगण्य थी।

The “Athirathram” ritual which literally means “building up of the fireplace and performed overnight” and usually held to propagate universal peace and harmony, was first documented 35 years ago by US-based Indologist Frits Staal.

Staal, currently Emeritus Professor of Philosophy and South and Southeast Asian Studies at the University of California, Berkeley had in 1975 organised and recorded the ritual in detail with the help of grants and donations from the Universities of Havard, Berkely and Finland's Helsinki University.

अनुसंधान टीम ने 1918 और 1956 Athirathram रस्म में यज्ञ वेदियों के पास परीक्षण किया, अभी भी Namboothiri घरों के पीछे की दीवारें माइक्रोबियल उपस्थिति से मुक्त हो रहे हैं.

Prof A K Saxena, head of photonics division, Indian Institute of Astrophysics, Bangalore के अनुसार यज्ञ अनुष्ठान में उठने वाली अग्नि की लपटें असामान्य रूप से उच्च तीव्रता और विशेष तरंगदैर्ध्य की होती हैं जिनका तापमान 3,870 degree centigrade होता है लगभग उच्चा तीब्रता की laser beams के समान है ।

Panjal Athirathram 2011 वैज्ञानिक टीम के सदस्य Dr Rajalakshmy Subrahmanian (Cusat), Dr Parvathi Menon (M G College, Thiruvanathapuram), Dr Maya R Nair (Pattambi Government College), Prof Saxena ( Indian Institute of Astrophysics, Bangalore) and Prof. Rao (Andhra University). ये सभी वैज्ञानिक अपने अपने विषयों के Expert थे।

साभार - इंडियन एक्सप्रेस

।। जयतु संस्‍कृतम् । जयतु भारतम् ।।

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- श्री राम का चरण सेवक
चाणक्य का अखंड भारत !!
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विमान के आविष्कारक- पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे......

विमान के आविष्कारक- पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे......

राइट्स बंधु को हवाई जहाज के आविष्कार के लिए श्रेय दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 17 दिसम्बर 1903 हवाई जहाज उड़ाने का प्रदर्शन किया था। किन्तु बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि उससे लगभग 8 वर्ष पहले सन् 1895 में संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने “मारुतसखा” या

“मारुतशक्ति” नामक विमान का सफलतापूर्वक निर्माण कर लिया था जो कि पूर्णतः वैदिक तकनीकी पर आधारित था। पुणे केसरी नामक समाचारपत्र के अनुसार श्री तलपदे ने सन् 1895 में एक दिन (दुर्भाग्य से से सही दिनांक की जानकारी नहीं है) बंबई वर्तमान (मुंबई) के चौपाटी समुद्रतट में उपस्थित कई जिज्ञासु व्यक्तियों , जिनमें भारतीय अनेक न्यायविद्/ राष्ट्रवादी सर्वसाधारण जन के साथ ही महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराज सायाजीराव गायकवाड़ जैसे विशिष्टजन सम्मिलित थे, के समक्ष अपने द्वारा निर्मित “चालकविहीन” विमान “मारुतशक्ति” के उड़ान का प्रदर्शन किया था। वहाँ उपस्थित समस्त जन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि टेक ऑफ करने के बाद “मारुतशक्ति” आकाश में लगभग 1500 फुट की ऊँचाई पर चक्कर लगाने लगा था। कुछ देर आकाश में चक्कर लगाने के के पश्चात् वह विमान धरती पर गिर पड़ा था।
यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और
वैज्ञानिक संस्थाओं/संगठनों पूरी पूरी जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जाना बदस्तूर जारी है और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करने/ करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई (हम सदा सन्तोषी और आत्ममुग्ध लोग जो है!)।
कहा तो यह भी जाता है कि संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित एवं वैज्ञानिक तलपदे जी की यह सफलता भारत के तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को फूटी आँख भी नहीं सुहाई थी और उन्होंने बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे केप्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे, पर दबाव डालकर श्री तलपदे के प्रयोगों को अवरोधित कर दिया था। महाराज गायकवाड़ की सहायता बन्द हो जाने पर अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए श्री तलपदे एक प्रकार से कर्ज में डूब गए। इसी बीच दुर्भाग्य से उनकी विदुषी पत्नी, जो कि उनके प्रयोगों में उनकी सहायक होने के साथ ही साथ उनकी प्रेरणा भी थीं, का देहावसान हो गया और अन्ततः सन् 1916 या 1917 में श्री तलपदे का भी स्वर्गवास हो गया। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।
श्री तलपदे का जन्म सन् 1864 में हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद् स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः
महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान के अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ
ग्रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।
वन्दे मातरम... जय हिंद... जय भारत..

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