यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 29 सितंबर 2012

अनूठे हैं शिव के 108 रूप


हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माना गया है। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं।
शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं। शिव के अनेक रूपों से जुड़े धर्मशास्त्र में अनेक नाम आते हैं। धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और सभी नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।
यहां जानते हैं शिव के इन 108 रूपों और नाम का अर्थ -

शिव - कल्याण स्वरूप
महेश्वर - माया के अधीश्वर
शम्भू - आनंद स्वरूप वाले
पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले

शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
विरूपाक्ष - भौंडी आँख वाले
कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले

शंकर - सबका कल्याण करने वाले
शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले
विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अतिप्रेमी
शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
अंबिकानाथ - भगवति के पति
श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह
करने वाले
भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी
शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले

शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
कपाली - कपाल धारण करने वाले
कामारी - कामदेव के शत्रुअंधकार
सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले

गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
ललाटाक्ष - ललाट में आँख वाले
कालकाल - काल के भी काल
कृपानिधि - करूणा की खान

भीम - भयंकर रूप वाले
परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने
वाले
मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
जटाधर - जटा रखने वाले
कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
कवची - कवच धारण करने वाले
कठोर - अत्यन्त मजबूत देह वाले

त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
वृषांक - बैल के चिह्न वाली झंडा वाले
वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले
भस्मोद्धूलितविगरह - सारे शरीर
में भस्म लगाने वाले
सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले

स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
अनीश्वर - जिसका और कोई मालिक नहीं है
सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
परमात्मा - सबका अपना आपा
सोमसूर्याग्निलो चन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले

हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले
सोम - उमा के सहित रूप वाले
पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाल
विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर
वीरभद्र - बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले

गणनाथ - गणों के स्वामी
प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले

हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
गिरीश - पहाड़ों के मालिक
गिरिश - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
अनघ - पापरहित

भुजंगभूषण - साँप के आभूषण वाले
भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
भगवान् - सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न

प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति
मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले

जगद्गुरू - जगत् के गुरू
व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले
रूद्र - भक्तों के दुख देखकर रोने वाले

भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले

सात्त्विक - सत्व गुण वाले
शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
शाश्वत - नित्य रहने वाले
खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

अज - जन्म रहित
पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
मृड - सुखस्वरूप वाले
पशुपति - पशुओं के मालिक

देव - स्वयं प्रकाश रूप
महादेव - देवों के भी देव
अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
हरि - विष्णुस्वरूप
पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले

अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाल

हर - पापों व तापों को हरने वाले
भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले

अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले
सहस्रपाद - अनंत पैर वाले
अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले

अनंत - देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित
तारक - सबको तारने वाला परमेश्वर

इस जमीं पर हुआ था जलियांवाला बाग से बड़ा नरसंहार !



इस जमीं पर हुआ था जलियांवाला बाग से बड़ा नरसंहार !
=================================
जयपुर. अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह जलियांवाला बाग की घटना से शायद ही कोई भारतीय अंजान हो। लेकिन इसी देश में अंग्रेजों ने राजस्थान की सात रियासतों के साथ मिलकर एक ऐसे नरसंहार को अंजाम दिया।

विडंबना है कि 121 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले इस मुल्क में करोड़ों लोगों को इस नरसंहार की कोई जानकारी नहीं। दूर की तो छोडि़ए उदयपुर के करीब हुए इस घटनाक्रम के बारे में स्थानीय लोग भी अनजान है।

राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसे मानगढ़ की कहानी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों के विद्रोह की गाथा हैं। बांसवाड़ा, मानगढ़, भीलवाड़ा और डूंगरपुर को मिलाकर बनने वाले इस संभाग को वागड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरा इलाका आदिवासी बहुल है।

राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसे मानगढ़ की कहानी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों के विद्रोह की गाथा हैं। बांसवाड़ा, मानगढ़, भीलवाड़ा और डूंगरपुर को मिलाकर बनने वाले इस संभाग को वागड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरा इलाका आदिवासी बहुल है।

मानगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार पर बामनवास के रहने वाले रिटायर्ड आईजी हरिराम मीणा ने गहन शोध किया है। इस शोध के बाद उन्होंने "जंगल-जंगल जलियांवाला" किताब लिखी। इस पुस्तक के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।

उन्होंने ने कहा कि अंग्रेजों की तत्कालीन नई आबकारी नीति ने आदिवासियों के जीवन को बहुत प्रभावित किया। इस नीति में देसी शराब निकालने के खिलाफ ठेकेदारी की प्रथा, वनोपज, महुआ, गोंद, जंगलात पर निगरानी, पोस्ट ऑफिस, ऑन पेमेंट जैसे प्रावधानों ने आदिवासियों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की चिंगारी जला दी। ये दौर जनरल टांड का था। हालांकि बाद में अंग्रेजों के साथ संधियों का दौर भी चला, जो बहुत सफल नहीं रहा।

गोबिंद गुरु का सामाजिक धार्मिक आंदोलन अब राजनीतिक रंग में ढलने लगा था। आगे चलकर आदिवासियों की ओर से बांसवाड़ा, कुशलगढ़, प्रतापगढ़ और मेवाड़ जैसे प्रमुख क्षेत्रों को मिलाकर अलग भील राज्य बनाने की मांग उठी। आदिवासियों की इस मांग ने रियासतों को एकजुट कर दिया। गोबिंद गुरु का मूवमेंट चलता रहा। लेकिन अंग्रेजों, रियासतों और आदिवासियों में सुलह की कोई संभावना नहीं बनी।

1913 में कैप्टन इस्टॉकले की अगुआई में अंग्रेजों की प्रशिक्षित सेना और सात रियासतों ने आदिवासियों के खिलाफ युद्ध की शुरुआत कर दी। इस बीच गोबिंद गुरु ने शांति स्थापित करने की कोशिश की। लेकिन उनके प्रयास विफल साबित हुए।

मीणा के मुताबिक आदिवासियों के खिलाफ इस युद्ध में बड़ौदा राइफल्स, 11वीं राजपूत बटालियन, 9वीं और 7वीं जाट बटालियन, मेवाड़ की कैवेलरी और घुड़सवार दास्तां प्रमुख रूप से शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस बारे में कमिश्नर बोरो की एडवांस सर्वे रिपोर्ट उपलब्ध हैं।

600 फीट से ज्यादा ऊंचे पहाड़ी इलाकों में अंग्रेजों ने गधों और खच्चरों की मदद से तोपें पहाड़ों पर चढ़ाई। मीणा ने बताया कि उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक 700 फोर्स, जिनमें 5 फुल कंपनियां थी। और इसमें एक आदमी के पास 100 गोलियां थी। उन्होंने ने कहा कि इस बारे में गोबिंद गुरु की एक दो चिट्ठियां भी मौजूद हैं। जो उन्होंने 12 और 13 नवम्बर 1913 को लिखी थी।

17 नवंबर 1913 को हुई घटना में 800 के करीब आदिवासियों मौके पर ही मारे गए। अंग्रेजों के आधुनिक गोला बारूद के आगे आदिवासियों के परंपरागत हथियार टिक नहीं पाए। इस भीषण नरसंहार के बाद सैकड़ों आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि 900 से ज्यादा घायल आदिवासियों ने बाद में दम तोड़ दिया।

आदिवासियों के नेता गोबिंद गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ 38 आदिवासियों को मुकदमा चलाकर सजा दी गई। गोबिंद गुरु दोबारा डूंगरपुर और बांसवाड़ा में ना जाएं। इसके लिए उन पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने उनके अच्छे व्यवहार के चलते उन्हें रिहा कर दिया। गुजरात के कंबोई में उनका देहांत हो गया।

आदिवासियों के रणक्षेत्र मानगढ़ में आज भी मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को उन अनजाने शहीदों की याद में मेला लगता है। हजारों की तादाद में आदिवासी समुदाय के लोग इकट्ठे होते हैं और शहीदों की याद में प्रज्जवलित हो रहे अग्निकुंड में नारियल फोड़कर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं

हालांकि भारत सरकार ने 86 साल बाद इस तथ्य को स्वीकारते हुए मानगढ़ में 54 फीट की ऊंचाई का शहीद स्मारक बनवाया है। आदिवासियों के संघर्ष के प्रतीक इस स्मारक को अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठने लगी हैं। दिलचस्प है कि 1 अरब से ज्यादा की आबादी वाले इस देश में करोड़ों लोग इस आदिवासी संघर्ष से अनभिज्ञ हैं। जिसका शताब्दी वर्ष महज तीन महीने बाद शुरू होने जा रहा है।

function disabled

Old Post from Sanwariya