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मंगलवार, 20 मार्च 2018

माँ सती के 51 शक्तिपीठ

माँ सती के 51 शक्तिपीठ

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

ज्ञातव्य है की इन 51 शक्तिपीठों में भारत-विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्ति पीठ रह गए है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठो में 1 श्रीलंकामें, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता*

*नम: तस्ये नम: तस्ये नम: तस्ये नमो नम:||*

*शक्तिपीठों के सन्दर्भ में कथा*

राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ मेंब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र याआभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या करशिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।

*51 शक्ति पीठो का विवरण*

किरीट शक्तिपीठ (किरीट शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।

कात्यायनी शक्तिपीठ (कात्यायनी शक्ति पीठ )

वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं।

करवीर शक्तिपीठ (करवीर शक्ति पीठ)

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

श्री पर्वत शक्तिपीठ (श्री पर्वत शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।

विशालाक्षी शक्तिपीठ (विशालाक्षी शक्ति पीठ)

उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

गोदावरी तट शक्तिपीठ (गोदावरी कोस्ट शक्ति पीठ)

आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।

शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (सुचिन्द्रम शक्ति पीठ)

तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

पंच सागर शक्तिपीठ (पंचसागर शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

ज्वालामुखी शक्तिपीठ (ज्वालामुखी शक्ति पीठ)

हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

भैरव पर्वत शक्तिपीठ (भैरवपर्वत शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।

अट्टहास शक्तिपीठ ( अट्टहास शक्ति पीठ)

अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

जनस्थान शक्तिपीठ (जनस्थान शक्ति पीठ)

महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (कश्मीर शक्ति पीठ और अमरनाथ शक्ति पीठ)

जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

नन्दीपुर शक्तिपीठ (नांदीपुर शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

श्री शैल शक्तिपीठ (श्री शैल शक्ति पीठ )

आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

नलहटी शक्तिपीठ (नलहाटी शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहरी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

मिथिला शक्तिपीठ (मिथिला शक्ति पीठ )

इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

रत्नावली शक्तिपीठ (रत्नावली शक्ति पीठ)

इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

अम्बाजी शक्तिपीठ (अम्बाजी शक्ति पीठ)

गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर देवी अिम्बका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

जालंध्र शक्तिपीठ (जालंधर शक्ति पीठ)

पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।

रामागरि शक्तिपीठ (रामगिरि शक्ति पीठ)

इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

वैद्यनाथ शक्तिपीठ (वैधनाथ शक्ति पीठ)

झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (वर्करेश्वर शक्ति पीठ)

माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैिन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (कन्याकुमारी शक्ति पीठ)

तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

बहुला शक्तिपीठ (बहुल शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

उज्जयिनी शक्तिपीठ (उज्जैनी शक्ति पीठ)

मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

मणिवेदिका शक्तिपीठ (मणिवेदिका शक्ति पीठ)

राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

प्रयाग शक्तिपीठ (प्रयाग शक्ति पीठ)

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं।

विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (उत्कल शक्ति पीठ)

उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

कांची शक्तिपीठ (कांची शक्ति पीठ)

तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

कालमाध्व शक्तिपीठ (कालमाध्व शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

शोण शक्तिपीठ (षोडश शक्ति पीठ)

मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

कामाख्या शक्तिपीठ (कामाख्या शक्ति पीठ)

कामगिरिअसम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

जयन्ती शक्तिपीठ (जयंती शक्ति पीठ)

जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

मगध् शक्तिपीठ (मगध शक्ति पीठ)

बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

त्रिस्तोता शक्तिपीठ (त्रिश्रोता शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ

त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ (विभाषा शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्रााम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (कुरुक्षेत्र शक्ति पीठ)

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप(भद्रकाली पीठ के नाम से मान्य है। माता का दहिने चरण (गुल्पफद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (उघड़ा शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था।

विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (विराट नगर शक्ति पीठ)

राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

कालीघाटशक्तिपीठ (कालीघाट शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

मानस शक्तिपीठ (माणसा शक्ति पीठ)

तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

लंका शक्तिपीठ (लंका शक्ति पीठ)

श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

गण्डकी शक्तिपीठ (गंडकी शक्ति पीठ)

नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (गुह्येश्वरी शक्ति पीठ)

नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

हिंगलाज शक्तिपीठ (हिंगलाज  शक्ति पीठ)

पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था।

सुगंध शक्तिपीठ (सुगंध शक्ति पीठ)

बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

करतोयाघाट शक्तिपीठ (करतोयातत शक्ति पीठ)

बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

चट्टल शक्तिपीठ (कैटल शक्ति पीठ)

बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

यशोर शक्तिपीठ (यशोर शक्ति पीठ)

बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का प्रसि( यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।

       

नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन

नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन
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नवरात्र में कन्या पूजन का बडा महत्व है । लेकिन हम मे से बहुत कम लोगो को ही कन्या पूजन से जुड़ी विशेष बाते पता होगी जैसे की कन्या पूजन विधि क्यों करते हैं ? कन्या पूजन विधि का लाभ और महत्व क्या हैं ? कन्या पूजन विधि के दौरान क्या सावधानियॉ रखने की खास आवश्यकता होती हैं और सबसे मत्वपूर्ण चीज की कन्या पूजन की विधि क्या हैं ? आइये इन सारी बातो को एक-एक करके विश्तार पूर्वक जाने-*

ऐसी मान्यता है कि जप और दान से देवी इतनी खुश नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से । शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।*

*🌹देवी पुराण के अनुसार, इन्द्र ने जब ब्रह्मा जी से भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कन्या पूजन ही बताया और कहा कि माता दुर्गा जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी उतनी प्रसन्न नहीं होती जितना सिर्फ कन्या पूजन से हो जाती हैं |*

*🌹दूसरी मान्यता है कि माता के भक्त पंडित श्रीधर के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने नवरात्र के बाद नौ कन्याओं को पूजन के लिए घर पर बुलवाया। मां दुर्गा उन्हीं कन्याओं के बीच बालरूप धारण कर बैठ गई। बालरूप में आईं मां श्रीधर से बोलीं सभी को भंडारे का निमंत्रण दे दो। श्रीधर से बालरूप कन्या की बात मानकर आसपास के गांवों में भंडारे का निमंत्रण दे दिया। इसके बाद उन्हें संतान सुख मिला।*

*🌹नवरात्रि में सामान्यतः तीन प्रकार से कन्या पूजन का विधान शास्त्रोक्त है –🌹*

*🌹1)प्रथम प्रकार- प्रतिदिन एक कन्या का पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ कन्याओं का पूजन – इस पूजन को करने से कल्याण और सौभाग्य प्राप्ति होती है |*

*🌹2)दूसरा प्रकार- प्रतिदिन दिवस के अनुसार संख्या अर्थात प्रथम दिन एक, द्वितीय दिन दो, तृतीया – तीन नवमी – नौ कन्या (बढ़ते क्रम में ) अर्थात नौ दिनों में 45 कन्याओ का पूजन – इस प्रकार से पूजन करने पर सुख, सुविधा और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है |*

*🌹3) तीसरा प्रकार – नौ कन्या का नौ दिनों तक पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ X नौ = 81 कन्याओं का पूजन– इस प्रकार से पूजन करने पर पद, प्रतिष्ठा और भूमि की प्राप्ति होती है |*

*🌹💁‍♀कन्याओ की उम्र व अवस्था ?शास्त्रों के अनुसार कन्या की अवस्था…🌹*

*🌹एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए*

*🌹दो वर्ष – कुमारी –  दुःख-दरिद्रता और शत्रु नाश*

*🌹तीन वर्ष – त्रिमूर्ति – धर्म-काम की प्राप्ति, आयु वृद्धि*

*🌹चार वर्ष– कल्याणी – धन-धान्य और सुखों की वृद्धि*

*🌹पांच वर्ष – रोहिणी – आरोग्यता-सम्मान प्राप्ति*

*🌹छह वर्ष – कालिका – विद्या व प्रतियोगिता में सफलता*

*🌹सात वर्ष – चण्डिका – मुकदमा और शत्रु पर विजय*

*🌹आठ वर्ष – शाम्भवी – राज्य व राजकीय सुख प्राप्ति*

*🌹नौ वर्ष – दुर्गा – शत्रुओं पर विजय, दुर्भाग्य नाश*

*🌹दस वर्ष – सुभद्रा – सौभाग्य व मनोकामना पूर्ति*

*🌹किस दिन करें  वैसे तो प्रायः लोग सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार अथवा नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करते हैं । शास्‍त्रों के अनुसार कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्‍टमी के दिन को सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण और शुभ माना गया है.*

*🌹सर्वप्रथम व्यक्ति को प्रातः स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात् कन्याओं के लिए भोजन अर्थात पूरी, हलवा, खीर, चने आदि को तैयार कर लेना चाहिए । कन्याओं के पूजन के साथ बटुक पूजन का भी महत्त्व है, दो बालकों को भी साथ में पूजना चाहिए एक गणेश जी के निमित्य और दूसरे बटुक भैरो के निमित्य कहीं कहीं पर तीन बटुकों का भी पूजन लोग करते हैं और तीसरा स्वरुप हनुमान जी का मानते हैं | एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के अधूरी होती है |*

*🌹कन्याओं को माता का स्वरुप समझ कर पूरी भक्ति-भाव से कन्याओं के हाथ पैर धुला कर उनको साफ़ सुथरे स्थान पर बैठाएं | ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें । सभी कन्याओं के मस्तक पर तिलक लगाएं, लाल पुष्प चढ़ाएं, माला पहनाएं, चुनरी अर्पित करें तत्पश्चात भोजन करवाएं | भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें।*

*🌹भोजन के बाद कन्याओं के  विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें-*

*🌹मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।*

*नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।*

*जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।*

*पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।🌹*

*तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।*

*🌹नवरात्रि में कन्या पूजन विधि में सावधानियॉ ? कन्याओ की आयु दो वर्ष से कम न हो और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो।*

*🌹💁‍♀एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। कन्या पूजन में ध्यान रखें कि कोई कन्या हीनांगी, अधिकांगी, अंधी, काणी, कूबड़ी, रोगी अथवा दुष्ट स्वाभाव की नहीं होनी चाहिए |एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के न करे।*

*🌺माताजी  आपका और आपके पुरे परिवार का कल्याण करे🌺*

हनुमानजी के 5 सगे भाई थे,


पुराणों में ऐसी कई बातें ल‍िखी हुई हैं, जिसे जानकर लोग हैरत में पड़ जाएं. वैसे तो रामभक्त हनुमान की कीर्ति रामचरितमानस में भरपूर गाई गई है. पर पुराण में उनके बारे में एक बेहद गूढ़ जानकारी मिलती है. पुराण में कहा गया है कि हनुमानजी के 5 सगे भाई थे, जो विवाहित थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में वानरों की वंशावली के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इसी में हनुमानजी के सगे भाइयों के बारे में जिक्र मिलता है. अपने भाइयों के बीच हनुमानजी सबसे बड़े थे. उनके अन्य भाइयों के नाम हैं- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान. उनके अन्य सभी भाई विवाहित थे और सभी संतान से युक्त थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में ल‍िखा है कि केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. अंजना रूपवती थीं. इन्हीं के गर्भ से प्राणस्वरूप वायु के अंश से हनुमान का जन्म हुआ. इसी प्रसंग में हनुमान के अन्य भाइयों के बारे में बताया गया है.

ब्रह्मचारी हनुमान

इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?

हनुमान जी के पांच सगे भाई

जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।

ब्रह्मांडपुराण के अनुसार

इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।

सबसे बड़े थे बजरंगबली

बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है।



नवरात्रि के व्रत में खाए जाने वाली चीज़े और इनके फायदे ।।

🙏🏻🌺जय माता दी🌺हर हर महादेव🌺🙏🏻
🙏🏻🌺।। नवरात्रि के व्रत में खाए जाने वाली चीज़े और इनके फायदे ।।🌺🙏🏻

1 - पपीता - व्रत के दौरान इससे पेट साफ होता है , और रोग प्रति रोधक श्रमता बढ़ती है ।

2 - मौसमी - व्रत के इस मौसम में संक्रमण रोग हावी रहते है ऐसे में विटामिन - सी  से भरपूर मौसमी सक्रमण से बचाती है ।

3 - केला - यह एनर्जी बूस्टर का काम करता है और व्रत की थकान होने से बचाता है ।

4 - सिंघाड़ा - इसे खाने से आलस व् अकड़न दूर होती है और हड्डियो को केल्सियम मिलता है ।

5 - छाछ - पानी की कमी न होने देता ।

6- आलू - उभला या भुना आलू पोटेशियम का प्रभावी स्त्रोत है शरीर में श्ररो की मात्रा बढ़ाने या बराबर रखने में मददगार होता है आलू शरीर में एसिडिटी भी नहीं होने देता है , जो लोग ब्लड प्रेशर या केंसर से ग्रसित है उनके लिए यह फायदे मंद है , आलू में सोडा , पोटाश , और विटामिनA और D भी होता है आलू का सबसे पोस्टिक तत्व विटामीन C होता है ।

7- साबुन दाना -  साबुन दाना शरीर में जमा अतिरिक्त पानी को निकलने का काम करता है यह किडनी की सफाई का भी काम करता है ।

8 - नारियल पानी - यह शरीर में व्रत के दौरान हुए इलेक्टो लाइट असंतुलन को कम करने का काम करता है ।

9 - कुट्टू - इसका आटा , हलवा , दलिया , या खीर आशानि पय जाता है व् व्रत में भी पाचन तंत्र को दुरुस्त रहता है लेकिन इन्हें पकाने के लिए घी आदि का प्रयोग न करे वर्ना सेहत को नुकसान  होगा ।

10 - सेंधा नमक - सेंधा नमक वात , कफ , और पित को दूर करता है पाचन में सहायता होता है सेंधा नमक में पोटेशियम और मैग्नीशियम होता है ह्रदय रोग नही होता है ।

11 - दही - दही में भरपूर मात्रा में  केल्शियम और पोटेशियम होता है दही खाने से पाचन ठीक रहता है मन को शांत करता है लेकिन रात को दही ना खाये खाये तो चोक कर खाये ।

12 - मूँगफली - मूँगफली में आयरन , नियासिन , फोलेट , केल्शियम और जिंक होता है मूँगफली में 426 केलोरिज , 5 ग्राम कार्बो हैड्रेडट होता है 17 ग्राम प्रोटीन और 35 ग्राम फेट होता है थोड़े से मूँगफली में विटामिन e , k , भी और b6 भी भरपूर मात्रा में होता है त्वचा में चमक आती है मूँगफली खाने से कब्जी की समस्या नहीं होती है गैस और एसिडिटी की समस्या से भी राहत मिलती है मूंगफली में आमेगा - 6 फेट भी भरपूर मात्रा में मिलता है ।

     

13 - मखाना - मखाना खाने से तुरंत एनर्जी देता है जल्दी पय जाता है तनाव कम होता है और नींद अछि आती है रात में सोते समय दूध के साथ मखाने खाने ने नींद अछि आती है मखाने को घी में भूनकर चाय के साथ ले सकते है मखाने की खीर भी खाये ।🌺🙏🏻जय माता दी🌺🙏🏻

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