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शनिवार, 18 जनवरी 2020

मैंने स्कूल के इतिहास में भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते वक्त दामोदर चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर की कहानी नहीं पढ़ी थी।

आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो ये माना जा सकता है कि “सत्यनारायण कथा” होने वाली है। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था। हरि विनायक ने कभी 1890 के आस पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हमलोग लगभग वही सुनते हैं। हरि विनायक की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वो दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे।

कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने के लिए उन्होंने अपनी कीर्तन मंडली में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे। उन्होंने अपने तीनो बेटों को इसी काम में लगा रखा था। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली। हाँ ये कहा जा सकता है कि संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिए परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों के साथ उनका उठाना बैठना था। दामोदर हरि अपनी आत्मकथा में भी यही लिखते हैं कि दो चार परीक्षाएं पास करने से बेहतर शिक्षा उन्हें ज्ञानियों के साथ उठने बैठने के कारण मिल गयी थी।

आज अगर पूछा जाए तो हरि विनायक को उनके सत्यनारायण कथा के अनुवाद के लिए तो नहीं ही याद किया जाता। उन्हें उनके बेटों की वजह से याद किया जाता है। सर्टिफिकेट के आधार पर जो तीनों कम पढ़े-लिखे बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ हरि विनायक पुणे के पास रहते थे। आज जिसे इंडस्ट्रियल एरिया माना जाता है, वो चिंचवाड़ उस दौर में पूरा ही गाँव हुआ करता था। 1896 के अंत में पुणे में प्लेग फैला और 1897 की फ़रवरी तक इस बीमारी ने भयावह रूप धारण कर लिया। ब्युबोनिक प्लेग से जितनी मौतें होती हैं, पुणे के उस प्लेग में उससे दोगुनी दर से मौतें हो रही थीं। तबतक भारत के अंतिम बड़े स्वतंत्रता संग्राम को चालीस साल हो चुके थे और फिरंगियों ने पूरे भारत पर अपना शिकंजा कस रखा था।

अंग्रेजों को दहेज़ में मिले मुंबई (तब बॉम्बे) के इतने पास प्लेग के भयावह स्वरुप को देखते हुए आईसीएस अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैंड को नियुक्त किया गया। उसे प्लेग के नियंत्रण के तरीके दमनकारी थे। उसे साथ के फौजी अफसर घरों में जबरन घुसकर लोगों में प्लेग के लक्षण ढूँढ़ते और उन्हें अलग कैंप में ले जाते। इस काम के लिए वो घरों में घुसकर औरतों-मर्दों सभी को नंगा करके जांच करते। तीनों भाइयों को साफ़ समझ में आ रहा था कि महिलाओं के साथ होते इस दुर्व्यवहार के लिए वाल्टर रैंड ही जिम्मेदार है। उन्होंने देशवासियों के साथ हो रहे इस दमन के विरोध में वाल्टर रैंड का वध करने की ठान ली।

थोड़े समय बाद (22 जून 1897 को) रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक की डायमंड जुबली मनाई जाने वाली थी। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव ने इसी दिन वाल्टर रैंड का वध करने की ठानी। हरेक भाई एक तलवार और एक बन्दूक/पिस्तौल से लैस होकर निकले। आज जिसे सेनापति बापत मार्ग कहा जाता है, वो वहीँ वाल्टर रैंड का इन्तजार करने वाले थे मगर ढकी हुई सवारी की वजह से वो जाते वक्त वाल्टर रैंड की सवारी पहचान नहीं पाए। लिहाजा अपने हथियार छुपाकर दामोदर हरि ने लौटते वक्त वाल्टर रैंड का इंतजार किया। जैसे ही वाल्टर रवाना हुआ, दामोदर हरि उसकी सवारी के पीछे दौड़े और चिल्लाकर अपने भाइयों से कहा “गुंडया आला रे!”

सवारी का पर्दा खींचकर दामोदर हरि ने गोली दाग दी। उसके ठीक पीछे की सवारी में आय्रेस्ट नाम का वाल्टर का ही फौजी एस्कॉर्ट था। बालकृष्ण हरि ने उसके सर में गोली मार दी और उसकी फ़ौरन मौत हो गयी। वाल्टर फ़ौरन नहीं मरा था, उसे ससून हॉस्पिटल ले जाया गया और 3 जुलाई 1897 को उसकी मौत हुई। इस घटना की गवाही द्रविड़ बंधुओं ने दी थी। उनकी पहचान पर दामोदर हरि गिरफ्तार हुए और उन्हें 18 अप्रैल 1898 को फांसी दी गयी। बालकृष्ण हरि भागने में कामयाब तो हुए मगर जनवरी 1899 को किसी साथी की गद्दारी की वजह से पकड़े गए। बालकृष्ण हरि को 12 मई 1899 को फांसी दी गयी।

भाई के खिलाफ गवाही देने वाले द्रविड़ बंधुओं का वासुदेव हरि ने वध कर दिया था। अपने साथियों महादेव विनायक रानाडे और खांडो विष्णु साठे के साथ उन्होंने उसी शाम (9 फ़रवरी 1899) को पुलिस के चीफ कांस्टेबल रामा पांडू को भी मारने की कोशिश की मगर पकड़े गए। वासुदेव हरि को 8 मई 1899 और महादेव रानाडे को 10 मई 1899 को फांसी दी गयी। खांडो विष्णु साठे उस वक्त नाबालिग थे इसलिए उन्हें दस साल कैद-ए-बामुशक्कत सुनाई गयी।

मैंने स्कूल के इतिहास में भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते वक्त दामोदर चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर की कहानी नहीं पढ़ी थी। जैसे पटना में सात शहीदों की मूर्ती दिखती है वैसे ही चापेकर बंधुओं की मूर्तियाँ पुणे के चिंचवाड में लगी हैं। उनकी पुरानी किस्म की बंदूकें देखकर जब हमने पूछा कि ये क्या 1857 के सेनानी थे? तब चापेकर बंधुओं का नाम और उनकी कहानी मालूम पड़ी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अहिंसक साबित करने की जिद में शायद इनका नाम किताबों में शामिल करना उपन्यासकारों को जरूरी नहीं लगा होगा। काफी बाद में (2018) भारत सरकार ने दामोदर हरि चापेकर का डाक टिकट जारी किया है।

बाकी इतिहास खंगालियेगा भी तो चापेकर के किये अनुवाद से पहले, सत्यनारायण कथा के पूरे भारत में प्रचलित होने का कोई पुराना इतिहास नहीं निकलेगा। चापेकर बंधुओं को किताबों और फिल्मों आदि में भले कम जगह मिली हो, धर्म अपने बलिदानियों को कैसे याद रखता है, ये अगली बार सत्यनारायण की कथा सुनते वक्त जरूर याद कर लीजियेगा। धर्म है, तो राष्ट्र भी है!

धर्मो रक्षति रक्षितः
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भगवद्गीता पर पोस्ट लिखने पर कई बार लोग ये पूछते थे कि कौन सी पढूं? हम मन ही मन सोचते पांच सौ वाली भगवद्गीता पचास वाली से बेहतर होती है क्या! करीब हर शहर में गीता प्रेस की दुकानें होती हैं, जो भी आर्थिक सामर्थ्य के हिसाब से सही लगे बारह से दो सौ रुपये के बीच की वो खरीद के रख लें। इन्टरनेट से मुफ्त डाउनलोड हो सकता है, उसे भी पढ़ सकते हैं। फिर भला मुझसे क्यों पूछना है? चलो पूछ भी लिया और हमने बता भी दिया तो उस जानकारी का कोई कुछ करता भी है?

शुरूआती दौर में नतीजे नहीं दिखेंगे ऐसा मानते हुए हमने बताना जारी रखा। एक बार में ही पूरा पढ़ना बोरियत भरा और मुश्किल हो सकता है इसलिए पेंसिल लेकर गीता के साथ रखिये, और उसे किसी सामने की जगह पर रखिये जिस से आते जाते, टीवी देखते कभी भी उसपर नजर पड़ जाए। जब समय मिले, याद आये, उठा के दो-चार, पांच जितने भी श्लोक हो सके पढ़ लीजिये। रैंडमली कभी भी कहीं से भी पढ़िए और जिसे पढ़ लिया उसपर टिक मार्क कर दीजिये। थोड़े दिन में सारे श्लोक पढ़ चुके होंगे, ये भी बताते रहे।

कई बार यही दोहराने पर भी करीब साल भर होने को आया और नतीजे लगभग कुछ नहीं दिख रहे थे। फिर एक दिन किसी ने बताया कि उसने पूरी भगवद्गीता पढ़ ली है, फिर दुसरे ने, अचानक कई लोग बताने लगे थे! मामला यहीं नहीं रुका, लोगों ने बच्चों के लिहाज से लिखी गई भगवद्गीता की टीकाएँ उठाई, किसी ने अंग्रेजी वाली ली, किसी ने उपन्यास की सी शक्ल वाली, और लोग पढ़ते गए। अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए भगवद्गीता बांटी भी जाने लगी है। कीमत बहुत ज्यादा नहीं होती इसलिए इतना मुश्किल भी नहीं। घर में होगी तो अपना पाठक वो खुद ढूंढ लेगी।

घर में होने वाले पूजा या अन्य आयोजनों में ऐसी किताबें आसानी से अतिथियों को भेंट की जा सकती हैं। कोशिश कीजिये, उतना मुश्किल भी नहीं है। कहते हैं :-

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।

जो धर्म का नाश करता है, उसका नाश धर्म स्वयं कर देता है, जो धर्म और धर्म पर चलने वालों की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा अपनी प्रकृति की शक्ति से करता है। अत: धर्म का त्याग कभी नहीं करना चाहिए। आपके धर्म की रक्षा आपकी ही जिम्मेदारी है। अगली पीढ़ी तक उसे पहुँचाने का अगर आपने कोई प्रयास नहीं किया तो उसके क्षय का किसी और को दोषी भी मत कहिये, ये आपकी ही जिम्मेदारी है।

आप “राष्ट्र” का क्या अर्थ समझते हैं? कभी सोचा भी है क्या इस बारे में? अगर नहीं सोचा तो ऐसे सोचिये – भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका जाते हैं और वहां भारी प्रवासी भारतीय और भारतवंशियों की भीड़ उनके नारे लगा रही होती है! चलिए प्रवासियों पर तो शायद असर होता होगा, लेकिन भारतवंशी को किसी के भारत का प्रधानमंत्री हो जाने, या ना होने से क्या फर्क पड़ेगा? उसके नाते रिश्ते तो दशकों पहले छूट गए।

वो ना भारत आता जाता है, ना ही जिन लोगों ने प्रधानमंत्री चुना, उनके जीवन से उसका कोई लेना-देना है। फिर वो खुश क्यों हो रहा है? कौन सी डोर उसे बांधती है? सवाल इतने पर ही ख़त्म नहीं होता, अभी दिल्ली के किले तक सिमित हो चुके मुग़ल साम्राज्य के शासक बहादुरशाह जफ़र पर चिपकाया जाने वाला शेर भी याद कीजिये – “गाज़ी खूं में बू रहेगी, जब तलक ईमान की, तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की”।

इसके साथ याद कीजिये कि जलियांवाला बाग़ के नरपिशाच को लन्दन में जाकर कुत्ते की मौत मारा गया था। एक आदमी के वहां होने से भारत का वहां होना अगर ऐसे समझने में दिक्कत होती हो तो इस तर्क को उल्टा कर लीजये। जो भारत में ही कहीं “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा### के नारे लगा रहा था वो कौन था? भारतीय था या कोई बाहर का था? सीमाओं के हिसाब से राष्ट्र होता तो वो भारत में भारत का था।

सीमाओं के हिसाब से राष्ट्र तय नहीं होता। ये किसी एक भाषा, किसी एक धर्म, किसी एक जाति, काबिले, वंश से भी तय नहीं होता। इन सब से अलग राष्ट्र सिर्फ एक सोच है। ये विचार जहाँ होगा, राष्ट्र उस हर जगह होगा। फिर चाहे वो सोच भौगोलिक सीमाओं के अन्दर हो, या फिर इनके बाहर। इसे समझने में दिक्कत इसलिए है क्योंकि इस विषय पर सोचने कभी किसी ने कहा ही नहीं। 

#शहरी_नक्सलों की धड़पकड़ ने इस सवाल को जिन्दा कर दिया है। वो प्रोफेसरों, लेखकों, पत्रकारों और क्रांतिकारियों के वेश में आपके बच्चों को बरगलाकर ले जा रहे हैं। आपके बच्चों को बचाने क्या आपके पड़ोसी आने वाले हैं? नहीं आ रहे तो कम से कम खुद तो सोचकर देखिये...
✍🏻आनंद कुमार जी की पोस्टों से   संग्रहित

बीमार कर देगी ये जहरीली हवा तो जानिए इससे बचने के नेचुरल उपाय

*बीमार कर देगी ये जहरीली हवा तो जानिए इससे बचने के नेचुरल उपाय।*
1. खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ जरूर खाएं गुड़ खून साफ करता है। इससे आप प्रदूषण से बचे रहेंगे।

 2. फेफड़ों को धूल के कणों से बचाने के लिए आप रोजाना एक गिलास गर्म दूध जरूर पियें। 

3. अदरक का रस और सरसों का तेल नाक में बूंद-बूंद कर डालने से भी आप हानिकारक धूल कणों से भी बचे रहेंगे।

4. खुद को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए आप ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करें।

 5. शहद में काली मिर्च मिलाकर खाएं, आपके फेफड़े में जमी कफ और गंदगी बाहर निकल जाएगी।

 6. अजवायन की पत्तियों का पानी पीने से भी व्यक्ति का खून साफ होने के साथ शरीर के भीतर मौजूद दूषित तत्व बाहर निकल जाते हैं।

7. तुलसी प्रदुषण से आपकी रक्षा करती है, इसलिए रोजाना तुलसी के पत्तों का पानी पीने से आप स्वस्थ बने रहेंगे।

8. ठंडे पानी की जगह गर्म पानी का सेवन करना शुरू कर दें।
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जब केवट भगवान के चरण धो रहे हैं।

क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेषशैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं। 
विष्णुजी के एक पैर  का अँगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं । 

क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अँगूठे को अपनी जिह्वा से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा, 
यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा। 

उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा। 
फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया। 

कुछ समय पश्चात् जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया। 
इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया। 

इस प्रकार उस कछुवे ने अनेक प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे  सफलता नहीं मिली। 
यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। 
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इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा। अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था। 

कछुवे को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम और वही शेषनाग लक्ष्मण व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी। 
इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था।

एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे, इसीलिये उसने रामजी से कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूँ। 
संत श्री तुलसीदासजी भी इस तथ्य को जानते थे, 
इसलिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है कि.. 
“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।

केवल इतना ही नहीं, इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। 
उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था। 
अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, 
पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था, 
लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं। 

इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसीदासजी ने लिखा है..
हे नाथ! मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; 
मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता। 
हे राम ! मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, 
मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ। 
भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, 
पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा, 
तब तक हे तुलसीदास के नाथ! हे कृपालु! मैं पार नहीं उतारूँगा। 

तुलसीदासजी आगे और लिखते हैं..
केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे। 
जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं... 
"कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है!"

केवट बहुत चतुर था। 
उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया। 

तुलसीदासजी लिखते हैं...
चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया।

उस समय का प्रसंग है... 
जब केवट भगवान के चरण धो रहे हैं।
बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते हैं, और जब दूसरा धोने लगते हैं, 
तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
केवट दूसरा पैर बाहर रखते हैं, फिर पहले वाले को धोते हैं, 
एक-एक पैर को सात-सात बार धोते हैं।
फिर ये सब देखकर कहते हैं, 
प्रभु, एक पैर कठौती में रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो।
जब भगवान् ऐसा ही करते हैं। तो जरा सोचिये... क्या स्थिति होगी, 
यदि एक पैर कठौती में है और दूसरा केवट के हाथों में, 
भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते! 
बोले- केवट मैं गिर जाऊँगा?
केवट बोला - चिंता क्यों करते हो भगवन्!
दोनों हाथों को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाइये, फिर नहीं गिरेंगे,,
जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है, भगवान भी आज वैसे ही खड़े हैं। 
भगवान् केवट से बोले - भइया केवट ! मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे हैं?.
भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, 
अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, 
कि .... मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ,,
पर.. आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है।
जै राम जी की।।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

प्याज़ खाना क्यों मना?

*प्याज़ खाना क्यों मना!?!*

(कृपया पोस्ट पूरी पढ़ें; ये जानकारी अन्य कहीं नहीं मिलेगी)
शाकाहार होने तथा चिकित्सीय गुण होने के बावजूद साधकों हेतु प्याज-लहसुन वर्जित क्यों है, इसपर विस्तृत शोध के कुछ बिंदु आपके समक्ष रख रहा हूं!....

*1)मलूक पीठाधीश्वर संत श्री राजेन्द्र दास जी बताते हैं कि एक बार प्याज़-लहसुन  खाने का प्रभाव देह में 27 दिनों तक रहता है,और उस दौरान व्यक्ति यदि मर जाये तो नरकगामी होता है!ऐसा शास्त्रों में लिखा है!*

*2) प्याज़ का सेवन करने से 55 मर्म-स्थानों में चर्बी जमा हो जाती है, जिसके फलस्वरूप शरीर की सूक्ष्म संवेदनाएं नष्ट हो जाती हैं!*

3) भगवान के भोग में, नवरात्रि आदि व्रत-उपवास में ,तीर्थ यात्रा में ,श्राद्ध के भोजन में और विशेष पर्वों पर प्याज़-लहसुन युक्त भोजन बनाना निषिद्ध है, जिससे समझ में आ जाना चाहिए कि प्याज-लहसुन दूषित वस्तुएं हैं! 

4)कुछ देर प्याज़ को बगल में दबाकर बैठने से बुखार चढ़ जाता है! प्याज काटते समय ही आंखों में आंसू आ जाते हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शरीर के भीतर जाकर यह कितनी अधिक हलचल उत्पन्न करता होगा!?!

*5) हवाई-जहाज चलाने वाले 👉पायलटों को जहाज चलाने के 72 घंटे पूर्व तक प्याज़ का सेवन ना करने का परामर्श दिया जाता है, क्योंकि प्याज़ खाने से तुरंत प्रतिक्रिया देने की क्षमता(Reflexive ability) प्रभावित होती है!*

6) शास्त्रों में प्याज़ को "पलांडू" कहा गया है! *याज्ञवल्क्य संहिता के अनुसार प्याज एवं गोमांस दोनों के ही खाने का प्रायश्चित है--- चंद्रायण व्रत! (इसीलिए श्री जटिया बाबा प्याज़ को गो मांस तुल्य बताते थे!)*

*7) ब्रह्मा जी जब सृष्टि कर रहे थे, तो दो राक्षस उसमें बाधा उत्पन्न कर रहे थे! उनके शरीर क्रमशः मल और मूत्र के बने हुए थे! ब्रह्मा जी ने उन्हें मारा तो उनके शरीर की बोटियां पृथ्वी पर जहां-जहां गिरीं, वहां प्याज़ और लहसुन के पेड़ उग आए! लैबोरेट्री में टेस्ट करने पर भी प्याज़ और लहसुन में क्रमशः गंधक और यूरिया प्रचुर मात्रा में मिलता है, जो क्रमशः मल मूत्र में पाया जाता है!*

*8) एक अन्य कथा के अनुसार,भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार द्वारा राहूकेतू का सिर काटे जाने पर उसके कटे सिर से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं थीं,जिनसे प्याज़ और लहसुन उपजे! चूंकि यह दोनों सब्जियां अमृत की बूंदों से उपजी हैं, इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं,पर क्योंकि यह राक्षस के मुख से होकर गिरी हैं, इसलिए इनमें तेज गंध है और ये अपवित्र हैं, जिन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तमाल नहीं किया जाता! कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मजबूत हो जाता है, लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं!*

*9)इनके राजसिक तामसिक गुणों के कारण आयुर्वेद में भी प्याज़-लहसुन खाने की मनाही है! 👉प्राचीन मिस्र के पुरोहित प्याज़-लहसुन नहीं खाते थे!  चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी भी प्याज़-लहसुन खाना पसंद नहीं करते!* 

*वैष्णव और जैन पूरी तरह से प्याज और लहसुन का परहेज करते हैं ।*


         
इतने प्रमाण होते हुए भी केवल जीभ के स्वार्थ हेतु प्याज़-लहसुन खाते रहेंगे,तो जड़ बुद्धि कहलाएंगे! इसलिए इनका तुरंत परित्याग करने में ही भलाई है!
घरवाले नहीं मानते,तो उन्हें उपरोक्त बातें समझाएँ ।
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सोमवार, 13 जनवरी 2020

गुड़ और चने खाने से सिर्फ पुरषों को नहीं महिलाओ को भी बहुत फायदा होता है।


गुड़ और चने खाने से सिर्फ पुरषों को नहीं महिलाओ को भी बहुत फायदा होता है। आइए जानते है:
भूने चने खाने से सेहत को काफी फायदा होता है लेकिन जब इनके साथ गुड़ का भी सेवन किया जाता है तो यह शरीर के लिए और भी फायदेमंद साबित होता हैं। मर्दों के लिए गुड़ और चना खाना काफी फायदेमंद तो होता ही है लेकिन जो महिलाएं सप्ताह में एक बार गुड़ और चना खाती हैं उनमें आयरन की कमी नहीं होती।
अक्सर पुरूष बॉडी बनाने के लिए जिम में जाकर कसरत करते हैं ऐसे में उन्हें गुड़ और चने का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे मसल्स मजबूत होते हैं और शरीर को अनेक फायदे मिलते हैं।
गुड़ खाने से खून बढ़ता है और चना स्टैमिना बढ़ता है अगर आपने गुड़ और चना साथ में खाना चालू कर दिया तो रोग आपसे कोसों दूर चले जायेगे, ठंड में गुड़ और चना साथ में खाने के फायदे और बढ़ जाते है क्योंकि यह आपको सर्दी से भी बचायेगा तो आइये जानते है गुड़ और चना साथ में खाने के फायदों को:
गुड़ और चना मसल्स बनाने के लिए
गुड़ और चने में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो मसल्स को मजबूत बनाने में मदद करता है। मर्दों को हर रोज इसका सेवन करना चाहिए।
चेहरा निखारने के लिए गुड़ और चना
इसमें जिंक होता है जो त्वचा को निखारने में मदद करता है। मर्दों को रोजाना इसका सेवन करना चाहिए जिससे उनके चेहरे की चमक बढ़ेगी और वे पहले से ज्यादा स्मार्ट भी लगेगे।
गुड़ और चना मोटापा कम करने के लिए
गुड़ और चने को एक साथ खाने से शरीर का मैटाबॉलिज्म बढ़ता है जो मोटापा कम करने में मदद करता है। कई मर्द वजन कम करने के लिए जिम जाकर एक्सरसाइज करते हैं उन्हें गुड़ और चने का सेवन जरूर करना चाहिए।
कब्ज दूर करने के लिए गुड़ और चना
शरीर का डाइजेशन सिस्टम खराब होने की वजह से कब्ज और एसिडिटी की समस्या हो जाती है। ऐसे में गुड़ और चने खाएं, इसमें फाइबर होता है जो पाचन शक्ति को ठीक रखता है।
गुड़ और चना दिमाग तेज करने के लिए
गुड़ और चने को मिलाकर खाने से दिमाग तेज होता है। इसमें विटामिन-बी6 होता है जो याददाश्त बढ़ाता है।
दांत मजबूत करने के लिए गुड़ और चना
इसमें फॉस्फोरस होता है जो दांतो के लिए काफी फायदेमंद है। इसके सेवन से दांत मजबूत होते हैं और जल्दी नहीं टूटते।
गुड़ और चना खाने के फायदे हार्ट के लिए
जिन लोगों को दिल से जुड़ी कोई समस्या होती है। उनके लिए गुड़ और चने का सेवन काफी फायदेमंद है। इसमें पोटाशियम होता है जो हार्ट अटैक होने से बचाता है।
गुड़ और चना हड्डियां मजबूत करने के लिए
आपको बता दें गुड़ और चने में कैल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत करता है। इसके रोजाना सेवन से गठिया के रोगी को काफी फायदा होता है।
गुड़ और चना के लाभ पुरुष रोगों में
चने और गुड़ खाने वाला व्यक्ति सदैव जवानी का अहसास करता है। कमजोरी दूर होकर शरीर हिष्ट पुष्ट रहता है। शरीर में बलवीर्य और तेज़ बना रहता है।
गुड़ और चना खून की कमी को दूर करे
गुड़ और चना दोनों ही आयरन से भरपूर होते हैं यही कारण है कि एनीमिया से बचने के लिए यह बेहद मददगार साबित होते है। गुड़ में उच्च मात्रा में आयरन होता है और भुने हुए चने में आयरन के साथ-साथ प्रोटीन भी पाया जाता है। इस प्रकार गुड़ और चने को एक साथ मिलाकर खाने से एनीमिया रोग के लिए जिम्मेदार आवश्यक पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाती है, और खून की कमी दूर होती है।

गुड़ और चने का सेवन जरूर करना चाहिए। सेहत के लिए गुड़ और चने काफी फायदेमंद होते हैं।
आजकल युवा अपनी फिटनेस को लेकर सर्तक रहते हैं। अक्सर पुरूष बॉडी बनाने के लिए जिम में जाकर कसरत करते हैं।
पुरुषों के लिए गुड़ और चने खाना बहुत बढ़िया होता है। आइए आपको बताते हैं इसे खाने से क्या होते हैं फायदे...
1. चेहरा पर निखार
  • गुड़ और चने से त्वचा में निखार आता है।
  • मर्दों को रोजाना इसका सेवन करना चाहिए जिससे उनके चेहरे की चमक बढ़ेगी और वे पहले से ज्यादा स्मार्ट भी लगेंगे।
2. मसल्स बनाने के लिए
  • गुड़ और चने में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो मसल्स को मजबूत बनाने में मदद करता है।
  • मर्दों को हर रोज इसका सेवन करना चाहिए।
3. वजन कम
  • गुड़ और चने को एक साथ खाने से शरीर का मैटाबॉलिज्म बढ़ता है जो मोटापा कम करने में मदद करता है।
  • कई मर्द वजन कम करने के लिए जिम जाकर एक्सरसाइज करते हैं उन्हें गुड़ और चने का सेवन जरूर करना चाहिए।
4. कब्ज दूर
  • शरीर का डाइजेशन सिस्टम खराब होने की वजह से कब्ज और एसिडिटी की समस्या हो जाती है।
  • ऐसे में गुड़ और चने खाएं, इसमें फाइबर होता है जो पाचन शक्ति को ठीक रखता है।
5. दिमाग तेज
  • गुड़ और चने को मिलाकर खाने से दिमाग तेज होता है। इसमें विटामिन-बी6 होता है जो याददाश्त बढ़ाता है।
6. दांत मजबूत
  • इसमें फॉस्फोरस होता है जो दांतो के लिए काफी फायदेमंद है।
  • इसके सेवन से दांत मजबूत होते हैं और जल्दी नहीं टूटते।

अब WiFi के जैसा ही LiFi आ गया है

भारत में भले ही इंटरनेट की स्पीड कम हो लेकिन दुनिया 5जी और इससे आगे निकल रही है। ऐसी ही एक तकनीक है Li-Fi। इसका फुल फॉर्म है Light Fidelity। यह एक ऐसी तकनीक है जो वायरलेस कम्युनिकेशन पर काम करती है। इसमें डिवाइस डाटा ट्रांसमिट के लिए प्रकाश (लाइट) का इस्तेमाल करता है।
सबसे पहले Harald Haas ने हमें बताया की VLC क्या है ? जब भी कभी data को visible light portion से भेजा जाता है, तो उसे VLC अर्थात visible light communication कहा जाता है. सबसे पहले 2011 इन्होने TECH TALK में lifi का प्रदर्सन किया था जिसके बाद ये काफी चर्चा में आ गयी थी.
इसी साल 2011 ही में इन्होने PURE LIFI नमक एक संस्था का उद्घाटन किया जिसके co-founder भी ये है. इसके पहले इस company का नाम Pure VLC था परन्तु lifi के business को बढ़ने के लिए ये company LED Bulb के field में काम करने लगी जिसके बाद इसका नाम बदल दिया गया.
ओक्टुबर 2011 में ही कई सारे Groups of companies मिल के LI-fi Consortium बनाया . इन सभी लोगों का सिर्फ एक ही मकसद था की कैसे लोगों को सबसे तेज़ data tranfer speed दे सके. wifi के सिमित दायरे को कैसे बढाया जाये और जो कमियां wifi में है उनको कैसे दूर किया जाये.
2012 में VLC को lifi के साथ मिला कर एक प्रदंर्सन में दिखाया गया. इसके बाद अगस्त 2013 के एक प्रदर्सन में यह प्रमाणित हो गया की lifi 1.6 Gbps का speed दे रहा है.
Rusian company Stins coman के द्वारा अप्रैल 2014 में एक wireless network बनाया गया जिसका नाम Beam Caster है. फ़िलहाल इसकी speed 1.25 Gbps है. उमीद किया जा रहा है की इसकी speed भविष्य में लगभग 5 Gbps हो जायेगा, या क्या पता तब तक कोई और fi आ जाये ( हा हा हा… ).
ये lifi के बारे में एक छोटा परन्तु बारा धमाका वाला इतिहास था उमीद है आपने इसे enjoy किया होगा. यदि हा, तो फिर देर किस बात की अभी निचे comment में लिख कर हमें बता दीजिये.
इतना सब कुछ पढ़ने के बाद यदि फायेदा और नुकसान की बात न करे तो शायद हम भारतियों को मज़ा नही आता. है ना ….  तो चलिए इसके फायेदे क्या है और इससे नुकसान क्या क्या है इसको भी समझ लेते है.

इंटरनेट के इस युग में यह तकनीक किसी क्रांति से कम नहीं है। मौजूदा समय में सिग्नल लेने और भेजने के लिए रेडियो सिग्नल्स का इस्तेमाल होता है लेकिन Li-Fi तकनीक में सिग्नल लेने और भेजने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल होता है।
कैसे काम करती है Li-Fi तकनीक?
जैसा कि हम आपको पहले बता चुके हैं कि Li-Fi तकनीक में सिग्नल भेजने और रिसीव करने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल एलईडी लाइट सिग्नल भेजने के लिए एक सेकेंड्स में लाखों बार टिमटिमाती है, जिसे हम अपनी खुली आंखों से नहीं देख पाते हैं और हमें लगता है कि बल्ब लगातार जल रहा है।
Li-Fi का पुरा नाम है "Light-Fidelity".
आज Internet का नाम लेते ही आजकल हर किसी को YouTube, Whats app, Facebook, Instagram का स्मरण मन में आने लगता है । जिसमे Internet से Downloading और Uploading हम जरुर करते हैं। इसके लिए हमें बहुत अच्छा और High-Speed Internet Connection चाहिए । वैसे तो ज्यादातर लोग Internet को Mobile से या फिर WiFi से access करते हैं ।
Li-Fi एक High Speed Optical Wireless Technology है । इस LiFi technology में Visible Light (LED बल्ब से निकलने वाली रोशनी) का इस्तमाल डिजिटल Information Transmission में किया जाता है । जैसे की आपको पता होगा यह Technology WiFi से मिलती जुलती है वैसे तो दोनों WiFi और LiFi में काफी अंतर है. दोनों सामान इसीलिए हैं क्यूंकि दोनों Wireless तरीके से Information को Share करते हैं ।
Li-Fi technology Wi-fi से 100 गुना ज्यादा तेज है और इसकी speed 224 gigabyte/sec तक पहुंच सकती हैंy । इस technology(Li-Fi) में Data , LED bulb की मदद से transfer होता है और Li-fi में Light waves (प्रकाश तरंगे) दिवार के दूसरी तरफ ना जाने के कारण Transmission Secure रहता है ।
Li-Fi और Wi-Fi में कुछ अंतर इस है:-
1.) Data का transmission:
-> Li-Fi में data transmission light bulbs के द्वारा होता है, Wi-fi में data transmission Radio wave के द्वारा होता है ।
2.) Technology:
-> Li-Fi में IrDA complement devices और Wi-fi में WLAN 802.11a/b/g/n/ac/ad standard compliant devices का उपयोग होता है ।
3.) Data transfer speed:
-> speed 1GB/sec से ज्यादा हो सकती है जबकि Wi-Fi में speed 150MB/sec तक होती हैं ।
4.) Interference:
-> Li-Fi में कोई भी Interference problem नहीं होती हैं जबकि Wi-fi में Router के साथ Interference problem होता है ।
5.) Environment:
-> Li-Fi ज्यादा घनत्व के वातावरण में काम कर सकता है वही Wi-fi कम घनत्व के वातावरण में काम कर सकता है ।
6.) Cost:
-> Li-Fi, Wi-fi की तुलना में सस्ता होगा ।
7.) Privacy:
-> Li-Fi में Data, LED bulb की मदद से transfer होता है और इस में Light waves (प्रकाश तरंगे) दिवार के दूसरी तरफ ना जाने के कारण Transmission Secure रहता है । जबकि Wi-fi में Radio signals दीवार के पार जा सकते है इसलिए Wi-fi में data कम secure रहता है ।
सबसे पहले Harald Haas ने हमें बताया की VLC क्या है ? जब भी कभी data को visible light portion से भेजा जाता है, तो उसे VLC अर्थात visible light communication कहा जाता है. सबसे पहले 2011 इन्होने TECH TALK में lifi का प्रदर्सन किया था जिसके बाद ये काफी चर्चा में आ गयी थी.
इसी साल 2011 ही में इन्होने PURE LIFI नमक एक संस्था का उद्घाटन किया जिसके co-founder भी ये है. इसके पहले इस company का नाम Pure VLC था परन्तु lifi के business को बढ़ने के लिए ये company LED Bulb के field में काम करने लगी जिसके बाद इसका नाम बदल दिया गया.
ओक्टुबर 2011 में ही कई सारे Groups of companies मिल के LI-fi Consortium बनाया . इन सभी लोगों का सिर्फ एक ही मकसद था की कैसे लोगों को सबसे तेज़ data tranfer speed दे सके. wifi के सिमित दायरे को कैसे बढाया जाये और जो कमियां wifi में है उनको कैसे दूर किया जाये.
2012 में VLC को lifi के साथ मिला कर एक प्रदंर्सन में दिखाया गया. इसके बाद अगस्त 2013 के एक प्रदर्सन में यह प्रमाणित हो गया की lifi 1.6 Gbps का speed दे रहा है.
Rusian company Stins coman के द्वारा अप्रैल 2014 में एक wireless network बनाया गया जिसका नाम Beam Caster है. फ़िलहाल इसकी speed 1.25 Gbps है. उमीद किया जा रहा है की इसकी speed भविष्य में लगभग 5 Gbps हो जायेगा, या क्या पता तब तक कोई और fi आ जाये ( हा हा हा… ).
ये lifi के बारे में एक छोटा परन्तु बारा धमाका वाला इतिहास था उमीद है आपने इसे enjoy किया होगा. यदि हा, तो फिर देर किस बात की अभी निचे comment में लिख कर हमें बता दीजिये.
इतना सब कुछ पढ़ने के बाद यदि फायेदा और नुकसान की बात न करे तो शायद हम भारतियों को मज़ा नही आता. है ना ….  तो चलिए इसके फायेदे क्या है और इससे नुकसान क्या क्या है इसको भी समझ लेते है.

स्त्रोत : Google

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

क्या महाराणा प्रताप वास्तव में 7 फ़ीट 4 इंच लंबे थे? क्या उनके भाले के अलावा और कोई प्रमाण है कि उनका कद इतना लंबा था?

आप प्रमाण मांगते हैं लीजिए प्रमाण,
गूगल बाबा
पुरातत्व विभाग के कई शोधों के बाद पता चला है कि उनका कद 7 फीट 4 इंच ही था!
🔴महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-
1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे । तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए ? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ।”
लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था |
“बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं |
3.... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|
कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है, तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है, जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं | इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |
9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे । जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था । वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे ।
आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं, तो दूसरी तरफ भील |
13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है, जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|
15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे ।
16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’4” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी:
मित्रो, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा,
लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के
युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।
वो लिखता है की- जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी । एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।
आगे अल बदायुनी लिखता है की- वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था ।
वो आगे लिखता है कि- उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक
चक्रव्यूह बनाया और उन पर14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया ।
जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया।
पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही
पानी पिया और वो शहीद हो गया।
तब अकबर ने कहा था कि- जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया,
उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.?
इसलिए मित्रो हमेशा अपने भारतीय होने पे गर्व करो।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

धर्मनिरपेक्षता हिंदुस्तान का सबसे बड़ा झूठ है

धर्मनिरपेक्षता हिंदुस्तान का सबसे बड़ा झूठ है

लोग हज़ारों की हिंसक भीड़ को कुछ ‘अराजक तत्व’ बताकर खारिज कर देते हैं। वो दावा करते हैं कि ये असली प्रदर्शनकारी नहीं है बल्कि असमाजिक तत्व हैं। और यही लोग पिछले 6 सालों से कुछ-एक लिंचिंग घटनाओं को आगे रख ये माहौल बना रहे हैं कि एक कौम ज़ुल्म कर रही है और दूसरे पर जुल्म हो रहा है...

तब कभी ये समझने की कोशिश नहीं की गई वो हिंसा करने वाले भी कुछ हिंसक तत्व ही थे। क्या 130 करोड़ लोगों के मुल्क में जहां 20 करोड़ के करीब मुसलमान हैं आप कुछ-एक घटनाओं को आगे रखकर ये दावा कर सकते हैं कि हर किसी के साथ ऐसा हो रहा है? होनी तो एक भी घटना नहीं चाहिए...लेकिन अगर कोई अफसोसनाक घटना हुई तो उसे उसी संदर्भ में क्यों न देखा जाए मगर तब तक तो आप उसे पूरे देश के माहौल से जोड़कर टिप्पणी करने लगते हैं...आज आप अराजक तत्वों को कौम से न जोड़ने की अपील कर रहे हैं और कठुआ की अफसोसनाक घटना के बाद आपने पूरी हिंदू कौम को ही बलात्कारी बता दिया था...हिंदू धर्म से जुड़े चिन्हों पर आपत्तिजनक चित्र बनाकर हिंदू धर्म को बलात्कारी बताया गया...जिस देश में ये घिनौना अपराध हर किसी के साथ हर रोज़ होता है, उसे इस तरह पेश किया गया जैसे उस बच्ची के साथ सिर्फ उसके धर्म की वजह से ऐसा किया गया...तब क्यूं सिर्फ कुछ लोगों के अपराध की तरह लिया गया...किस-किस मक्कारी का ज़िक्र करू...किस्से ख़त्म नहीं होंगे...

5 सालों में 100 से ज़्यादा हिंदू भी हेटक्राइम का शिकार हुए जिसमें अपराधी मुस्लिम थे...उस पर चर्चा करना तो आपको पता तक नहीं होगा...मगर नहीं, हमें तो वही कुछ-एक मामले आगे रखकर हायतौबा मचानी है। खुद इस बात की शिकायत करते हैं कि सरकार की आलोचना पर आपको एंटी नेशनल बता दिया जाता है और खुद हर उस आदमी को एक खास पार्टी का एजेंट बताते हैं जो आपसे सहमत नहीं होता है। अगर आपका विरोध आपके विश्वास से निकला है, आपकी राजनीतिक Conviction से निकला है, तो सामने वाले का विरोध भी तो उसकी कंवीकशन से निकला हो सकता है...तब आपको ये क्यूं लगता है कि सामने वाला किसी से पैसे लेकर अपना राजनीतिक राय बना रहा है। 
जब आप खुद विरोध का हक चाहते हैं, तो सामने वाले पर बिना लांछन लगाए उसे ये अधिकार क्यों नहीं देते...क्या ये ज़रूरी है कि आप किसी इंसान को तभी ईमानदार मानेंगे जब वो आपकी नफरत से सहमत हो...क्या उसकी पवित्रता तभी साबित होगी जब वो उस इंसान से उतनी ही नफरत करे जितना आप करते हैं...अगर आप अपनी आलोचना में संयम नहीं बरतते तो तब क्यूं भड़क उठते हैं जब लोग आपको पाकिस्तान का हमदर्द बताते हैं...क्या वजह है कि कश्मीर से लेकर 370 तक और सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर कैब तक आपको और पाकिस्तान के सुर एक ही होते हैं...आपको कैसा लगेगा अगर ऐसे हर मामले पर आपको पाकिस्तानी एजेंट बता दिया जाए...बुरा लगता है न...उसी तरह उन लोगों को भी लगता है जो अपनी निजी निष्ठा से कोई बात बोलते हैं और आप उन्हें भक्त, एजेंट या बिका हुआ बता देते हैं।

आप हज़ारों सालों की गंगा ज़मनी संस्कृति की दुहाई देते हैं, तो क्यूं आपकी कुछ कमज़ोरियों पर सवाल उठाने पर इतना बिदक जाते हैं...क्या दुनिया के सारे रिश्ते ऐसे ही वर्क करते हैं...घर पर मां-बाप से प्यार करते हैं, तो क्या उनकी हर बात से सहमत होते हैं...नहीं न..उनसे प्यार करते हुए उन्हें उनकी गलती बताते हैं न...वो भी आपको प्यार करते हुए आपको भी आपको गलती बताते हैं, तो क्यों ये छूट धर्मों के बीच लोगों को नहीं हो सकती...आप क्यों खुद को आलोचना से ऊपर मानते हैं...ये कैसी गंगा जमनी संस्कृति है जहां आप सिर्फ तारीफ तो सुन सकते हैं मगर आलोचना नहीं...मगर आपके तो किसी विश्वास पर ज़रा सा सवाल उठा दिया जाए, तो आप सामने वाले कट्टर घोषित कर देते हैं...क्या भाईचारे का मतलब ये होता है कि कोई भी इंसान दूसरे की कमज़ोरी पर सवाल उठाकर उसको शर्मिंदा नहीं करेगा...मगर आप तो हो जाते हैं...तभी तो ट्रिपल तलाक ख़त्म करने को आप मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताते हैं...बिना ये सोचे कि पूरी दुनिया इससे कब से मुक्त हो चुकी है..भाइचारे का मतलब क्या किसी को उसके हाल पर छोड़ देना होता है क्या... आप इन सब सवालों पर कभी नहीं सोचते...बस अपनी नफरतों से चिपके रहते हैं...

हिंदुस्तान सेक्युलर मुल्क इसलिए नहीं है क्योंकि नेहरू या कांग्रेस ने आज़ादी के वक्त ऐसा चाहा था..वो इसलिए सेक्युलर है क्योंकि यहां कि बहुसंख्यक आबादी भी यही चाहती रही है...अगर आवाम नहीं चाहती, तो वो कभी नेताओं के कहने पर ऐसा नहीं करती...जैसे पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी ने जिन्ना की ख्वाहिश के बावजूद पाकिस्तान को सेक्युलर नहीं होने दिया...संविधान में ही उसे मुस्लिम मुल्क घोषित करवा दिया...अगर ये देश सेक्युलर नहीं होता, तो पाकिस्तान की धर्म लोगों को अपना हीरो बनाने से पहले पूंछ उठाकर देखता कि वो हिंदू या मुसलमान...वो तीनों खानों का बालीवुड का बादशाह नहीं बनाता..अज़हर से लेकर ज़हीर और इरफान जैसों को अपना हीरो नहीं मानता...ये हिंदू धर्म नहीं देखता तभी तो हिंद्स्तान से बेपनाह नफरत करने वाले कश्मीरियों को भी सिर आंखों पर बिठात है....याद है कुछ साल पहले फेमगुरू कुल में आए एक कश्मीरी लड़के काज़ी को लोगों ने सिर्फ इसलिए जीता दिया क्योंकि वो बातें अच्छी करता था...लोगों को उसकी शख्सियत से प्यार हो गया था...अगर हम धर्म या प्रांत के आधार पर नफरत करने वाले होते तो क्या उस राज्य के मुस्लिम लड़के को जीताते जो हर दिन भारत के झंडे जलाती है...

अगर ये हिंदू संयमी नहीं होता, सब्र वाला नहीं होता तो 75 सालों से हिंदू बस्तियों में मुसलमानों को सुबह 6 बजे लाउस्पीकर पर अजान नहीं चलाने देता...यहां भी कॉलेज में हिंदू त्यौहार मनाया जाना खबर बनता...यहां भी पाकिस्तान की तरह Minority की आबादी घटती, उनके धार्मिक स्थल ढहाए जाते...कश्मीर की तरह मंदिरों पर ताले लगाए जाते...मगर तुम्हें ये सब दिखाई नहीं देता...तुम्हें ये इसलिए नहीं दिखाई देता क्योंकि तुम धार्मिक श्रेष्ठता के शिकार हो...तुममें इतना नैतिक साहस नहीं कि अपने मज़हब के कट्टपंथियों के खिलाफ आवाज़ उठा पाओ...
मोदी ने तो 6 साल में देश में धर्मनिरपेक्षता की नींव हिला दी...मगर हर शहर में जो सालों से जो तुम अपने मोहल्ले बसाकर रहते हैं क्या ये भी पीछे जाकर मोदी बसा आए हैं...या तो आपने अपनी मर्ज़ी से ऐसा किया है...या फिर इस देश की हिंदू कौम तुम्हें अपने साथ नहीं रहने देती...अगर ये दोनों ही बातें सच है, तो ये देश तो कभी सेक्युकलर था ही नहीं...मतलब हिंदू कट्टर रहे हैं जो तुम्हें साथ नहीं रख सकते या तुम इतने कट्टर हो जो उसके साथ रहना नहीं चाहते...अगर ऐसा है तो आज तुम किसी गंगा जमनी संस्कृति की, धार्मिक सौहार्द्र की दुहाई देते हो 

ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है, जो ज़रा सी तकलीफ होने पर तो संविधान की दुहाई देती है मगर तुम्हें कॉमन सिविल कोड मानने नहीं देती, ट्रिपल तलाक लाने नहीं देती, वंदेमातरम नहीं बोलने देती, हिंदू परिवारों में शादी नहीं करने देती...ये किसी तरह का झूठ हम अपने आप से बोल रहे हैं...जब हमें कानून भी अपने बनाने हैं, रहना भी अपने लोगों के बीच है, मानना भी सिर्फ अपने ईश्वर को है, शादी भी अपने लोगों में ही करनी है, तो किस सेक्युरलिज़्म की बात कर रहे हैं हम...क्यों ये झूठ बोल रहे हैं कि हमने तो कट्टर पाकिस्तान के ऊपर सेकुलर हिंदुस्तान चुना...किसलिए चुना...अपने ही लोगों के बीच अपने मोहल्ले बनाकर उन्ही से रिश्तेदारियां जोड़कर...सेक्युरलिज़्म क्या नियम और शर्तों के साथ आता है...कम से कम मेरा तो नहीं आता...उसमें कोई रोक नहीं है, कोई बंधन नहीं है, मेरा सेकुयुरलजिम तो हर मंदिर-मस्जिद के आगे झुकता है, हर किसी की इबादत की इजाज़त देता है, हर किसी से मोहब्बत की छूट देता है..झांको अपने अंदर पूछो खुद से क्या तुम्हारा सेक्युलरज़िम भी यही बोलता है...अगर नहीं, तो बदलना तुम्हें है मुझे नहीं!

धर्मनिरपेक्षता और कट्टरता पर कुछ समय पहले एक पोस्ट लिखी थी...यहां फिर से दोहरा रहा हूं...शायद इसके बाहर कुछ नहीं है

अगर आपको लगता है कि जिस धर्म में आप पैदा हुए हैं, उसे डिफेंड करना आपकी मजबूरी या फर्ज़ है, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि आपका धर्म आलोचना से परे है, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि आपका जीवन प्राकृतिक या मानवीय नियमों पर नहीं, आपकी धार्मिक मान्यताओं से तय होगा, तो आप कट्टर हैं। अगर आपको लगता है कि एक भी चीज़ सवाल से परे है या वो अंतिम सत्य है, तो आप कट्टर हैं।

अगर आप अपनी धार्मिक मान्यताओं पर चर्चा के लिए तैयार हैं, तो आप उदार हैं। अगर आप मानते हैं कि सच को किसी धर्म या किताब में नहीं बांधा जा सकता, तो आप उदार हैं। अगर आपको लगता है कि सब कुछ आलोचना के दायरे में है, तो आप उदार हैं।

अगर आपको लगता है कि कुछ चीज़ों पर चर्चा नहीं हो सकती, तो आपको किसी को भी कट्टर कहने का हक नहीं। अगर आपके लिए कोई मान्यता या किताब आलोचना से परे है, तो किसी और के लिए कोई संगठन या व्यक्ति आलोचना से परे हो सकता है। मूर्खता हर हाल में मूर्खता ही होती है फिर चाहे वो एक किताब को जीवन का सच मानने की ज़िद्द में छिपी हो या किसी एक व्यक्ति को राष्ट्र का सच मानने में।

जीवन इतना तेज़ी से बदलता है कि कुछ महीनों के अंतराल में हमारा अपने आप से सहमत होना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में अपने आज को हज़ारों साल पुराने किसी किताबी संविधान के हवाले कर देना सिवाए बौधिक आलस्य को और कुछ नहीं। और आलस्य से बड़ा तो दुनिया में दूसरा और कोई पाप है ही नहीं।

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

जिन ने राहत इन्दोरी के शेर को शान से पढ़ा कि
"सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है "
तो - उनको उन्ही की भाषा में मुँहतोड़ जवाब :
ख़फ़ा होते हैं होने जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं
जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं , इनका मान थोड़ी है
ये कान्हा राम की धरती, सजदा करना ही होगा
मेरा वतन ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी
जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है
मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे कतरे से
बहुत बांटा मगर अब बस, ख़ैरात थोड़ी है
जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा
मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं ?
बहुत लूटा फिरंगी ने कभी बाबर के पूतों ने
ये मेरा घर है मेरी जाँ, मुफ्त की सराय थोड़ी है...
बिरले मिलते है सच्चे मुसलमान दुनिया में
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है ।।
कुछ तो अपने भी शामिल है वतन तोड़ने में
अब ये बरखा और रविश मुसलमान थोड़ी है ।
नही शामिल है तुम्हारा खून इस मिट्टी में,
ये तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ।।

सीएए : मामला उतना सीधा भी नहीं जितना बताया जा रहा

सीएए : मामला उतना सीधा भी नहीं जितना बताया जा रहा
कैब (सीएबी) यानी अब सीएए पर संसद में बहस सुन रहा था, दोनों पक्ष सरकार और प्रतिपक्ष जितनी सरल शब्दों में इसकी व्याख्या कर रहे थे असल में मामला उतना सीधा है नहीं। असल बात दोनों पक्षों ने छिपा ली। सरकार ने अपना दूरगामी लक्ष्य छिपा लिया और विपक्ष ने अपनी हार की तिलमिलाहट छिपाने के लिए संविधान की आड़ ले ली। कुछ बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं। 
क्या हैं इसके दूरगामी परिणाम 
- सीएए के माध्यम से सरकार ने पाकिस्तान और बांग्लादेश  पर ऐसा घुटना मारा है जिससे ये तिलमिला तो गए हैं लेकिन अपना दर्द नहीं बयां कर पा रहे हैं। सरकार ने ये बिल लाकर बिना इनका नाम लिए बिना पूरी दुनिया को बता दिया कि इन देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा है। 
- बिल पास होते ही बांग्लादेश को दुनिया के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए कहना पड़ा कि वह अपने सभी नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है। उसने स्वीकार भी किया कि उसके यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हुआ है। 
- कश्मीर में उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने ऊल-जुलूल बयान दिया लेकिन यूएन की रिपोर्ट ने उसकी पोल खोल दी।
- इस बिल के आने से पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा था वह अब एक दस्तावेजी रिकॉर्ड बन गया है, जुबानी जमा खर्च नहीं है। भारत में जितने लोगों को यहां नागरिकता दी जाएगी ये दोनों देश उतने ही एक्सपोज होंगे। 
- इस बिल के पास होने के बाद ही बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिए म्यांमार पर दबाव बना शुरू कर दिया है। 
- इस बिल के आने के बाद भारत में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक पीडि़त खुलकर बता सकेंगे कि वे किस देश से आए हैं, इससे इन देशों की और पोल खुलेगी। इसके चलते इनको अपने यहां उन कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, जिनका उपयोग ये दोनों देश  भारत को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं। 

विपक्ष ने क्या छिपाया अपना दर्द
- विपक्ष को पता है कि इसका भारत के नागरिकों पर असर नहीं पडऩे वाला लेकिन 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर प्रतिरोध न होना, सबकुछ शांति से निपट जाने पर विपक्ष काफी चकित था, उसे इस तरह का निष्कंटक राज पसंद नहीं आ रहा था। 
- इसलिए उसने एनआरसी का डर दिखाकर लोगों को भड़काया, लेकिन देश में इतनी हिंसा हो गई इससे विपक्ष का ये पांसा भी उल्टा ही पड़ता दिखाई दे रहा है। 
- अमित शाह का ये कहना कि रोहिंग्या को हम रहने नहीं देंगे, एनआरसी तो हम लेकर ही आएंगे। भारत में पिछले 70 साल में इतनी स्पष्टता से संसद में किसी नेता ने भाषण नहीं दिया था। इस भाषण से देश के बहुत से स्वयंभू लोगों ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया, उनकी अकड़ को ठेस पहुंची। 
- मौलाना, पर्सनल लॉ बोर्ड, फतवेबाजों के फफोले भी इस बिल के माध्यम से फूट पड़े जो पिछले कई महीनों से इस सरकार की कारगुजारियों से कलेजे में पड़े हुए थे। इन्हें अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया। 

अब आगे क्या
- मौलानाओं, धर्म के ठेकेदारों, पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी अवैध संस्थाओं को डर है कि ये सरकार कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून, एनआरसी पर बहुत तेजी से काम कर सकती है, इसलिए इसका एक ही उपाय है हिंसा। हिंसा फैलाकर देश-दुनिया का ध्यान खींचो, सरकार अपने आप कदम पीछे खींच लेगी। 
- सरकार इसको लिटमस टेस्ट भी मान सकती है क्योंकि 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर जिस तरह से शांति रही थी, उससे सरकार मुगालते में आ गई थी, अब सरकार आगे की चीजों को करने से पहले अपनी जरूरी तैयारी करके रखेगी। 
- अब शायद हिन्दू बोलते ही चीखने, हिंसा करने वालों को शायद समझ में आ जाए कि एक तो चीखने का कोई फायदा नहीं, दूसरा आप लोग एक्सपोज हो चुके हो और तीसरा इस देश के नागरिक हिन्दू भी हैं,  उनके लिए भी कुछ करने की जिम्मेदारी सरकार की है, सिर्फ एक ही समुदाय का तुष्टिकरण नहीं किया जा सकता। 
- इस सख्ती का तात्कालिक फायदा ये होता दिख रहा है कि फिलहाल बाकी देशों से घुसपैठिए थोड़ा ठिठकेंगे, जो खिसक सकते हैं वे तुरंत यहां से खिसकेंगे।
- भारत को सराय समझने वाले यहां आने से पहले दस बार सोचेंगे। पड़ोसी सरकारें भी शायद हमारी सरकारों को गंभीरता से लेने लगेंगी, क्योंकि अब चीजें रिकॉर्ड पर आएंगी, हवाई किले बनाने के दिन लद गए।
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