शष्टकर्म धौति क्रियाएँ शरीर शुद्धि क्रियाओ का द्वितीय भाग
पिछले अंक में हमने षष्ठ कर्म क्रियाओं का प्रथम अद्द्याय जल नेति क्रिया को समझा। आज इन्ही षष्ठ क्रियाओं का द्वितीय सोपान धौति क्रियाओं को जानने का प्रयास कर रहे है
कृपया विशेष ध्यान दीजियेगा की ये सभी क्रियाए अत्यंत ही नाजुक, कठिन और संवेदनशील क्रियाए है अतः इन क्रियाओं को विशेषज्ञ की सलाह और सानिध्य के बिना नही की जानी चाहिए
धौति क्रिया शरीर के अंदरूनी पेट, भोजन नलिका की सफाई और शुद्धि के लिए की जाती है। इन क्रियाओं से आंतरिक शुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है
धौति क्रियाए दो प्रकार की है
जल धौति
वस्त्र धौति
*धौति क्रिया के लाभ*
आमाशय साफ होता है |
गैस, अजीर्ण पेट में जलन, सिर दर्द तथा शरीर का बढ़ा हुआ वजन कम हो जाते हैं
नियमित यह क्रिया करें तो पीलिया रोग पास नहीं फटकेगा |
श्वास संबंधी बीमारियाँ तथा मधुमेह दूर होंगे।
सभी प्रकार के ज्वर से बचाव होगा |
*1. जल धौति – गज करणी – कुंजल या वमन धौति क्रिया*
धौति का अर्थ है धुलाई | योग विद्या में इसे उदरशुद्धि कहते हैं | हाथी को ज्वर आवे तो वह यह क्रिया करता है | इसीलिए यह क्रिया गज करणी या कुंजल क्रिया भी कहलाती है | हाथी को देख कर मनुष्यने यह क्रिया सीखी।
*जलधौति क्रिया की विधि*
मल विसर्जन करते समय जिस प्रकार बैठते हैं पानी पेट भर पी लें । पानी पीने के बाद खड़े होकर पेट और कमर को इधर-उधर आगे पीछे, ऊपर नीचे तथा गोल घुमाएँ । इस तरह हिलाने , व घुमाने से एसिड़, श्रलेष्म तथा गैस आदि मलिन पदार्थ उदर में भरे उस पानी में मिल जाते हैं। इसके बाद बाये हाथ से पेट को दबा कर दायें हाथ की तर्जनी तथा मध्यम उंगलियों को गले में डाल कर अलिजिह्वा को थोड़ा दबा कर उसे इधर-उधर हिलाएँ। ऐसा करने से पेट में जो पानी है वह वमन के द्वारा मलिन पदार्थों के साथ बाहर निकल जाता है |
पेट का पानी जब तक पूरा बाहर निकल नहीं जाता, तो वह मूत्र के रूप में बाहर निकल जायेगा।
नमक के बदले नीम्बू का रस मिला कर हलका गरम जल पी सकते हैं।
इस क्रिया को करते समय लाल रंग का पानी बाहर निकल सकता है | वह रक्त नहीं है | इस क्रिया के बाद हलका गरम दूध या आरोग्यामृतम् औषध का सेवन करना चाहिए। इसके बाद थोड़ी देर आराम करना चाहिए |
*जलधौति क्रिया में सावधानिया*
यह क्रिया बिना विशेषज्ञ की सहमति नही की जानी चाहिए
दोनों उंगलियों के नाखून बढ़े हुए न हों, इस पर ध्यान देना जरूरी है
छाती दर्द और अलसर हो, या पेट का आपरेशन हुआ हो तो यह क्रिया नहीं करनी चाहिए | गर्भिणी स्त्रियों को इस क्रिया से दूर रहना चाहिए।
इस क्रिया के करते ही मिर्च मसालों से बनों चीजें जैसे, पकोड़ो आदि ना खाएँ । मांस न खाएं | हफ्ते में एक बार यह क्रिया की जा सकती है।
*2. वस्त्र धौति क्रिया*
3 इंच चौड़े 4-7 मीटर लम्बे महीन शुद्ध मलमल कपड़े को शक्कर या नमक से मिले हल्के गरम पानी में भिगोना चाहिए | बाद धीरे-धीरे उसे निगलना चाहिए | इसके बाद उसे वापस मुँह के द्वारा बाहर निकालना चाहिए| इसी को वस्त्र धौतिक्रिया कहते हैं। विशेषज्ञों की सहायता से यह क्रिया सावधानी से करनी चाहिए | दूध या शहद में भी भिगो कर वस्त्र निगल सकते हैं । प्रथम दिन एक फुट वस्त्र ही निगलें । धीरे धीरे 8 या 10 दिनो में इसका पूरा अभ्यास हो जायेगा | कपड़े के सिरे को हाथ की उंगली से बांध लें । तब उस सिरे की सहायता से आहिस्ते-आहिस्ते निगला हुआ वस्त्र बाहर निकल सकता है |
वस्त्र धौतिक्रिया के बाद फिर जल धौतिक्रिया करें | इस क्रिया के समाप्त होते ही हलका गरम दूध पीना चाहिए। उस दिन हलका भोजन करो |
सात दिन लगातार जलधौति क्रिया करनेके बाद ही वस्त्र धौति क्रिया शुरु करनी चाहिए |
इस क्रिया से खाँसी, कफ, आस्थमा तथा गैस आदि रोग दूर होते हैं । सिरदर्द, ज्वर, चर्म रोग जैसे कोढ़, खाज़ तथा एक्झीमा आदि भयानक रोग दूर होते हैं | जठराग्नि बढ़ती हैं |
योगी, मुनि लकड़ी का टुकड़ा भी निगल कर धौति क्रिया किया करते थे।
इसे दंड धौति क्रिया कहते थे | अब यह क्रिया करनेवाले कम हैं |
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः*