षष्टकर्म प्रक्षालयन क्रिया : वस्ति (एनिमा) क्रिया : पचित भोजन को मल द्वार द्वारा विसर्जित करने की क्रिया
स्वास्थ्य की रक्षा में मल विसर्जन का महत्व अधिक है। जो खाना खाया जाता है उसका पचना तथा अजीर्ण का न होना आवश्यक है। प्राचीन काल में जल से भरी नाँद, नदी या तालाब में बैठ कर साधक मल रंध्र से पानी अंदर खींच कर अधोजठर में भरते थे | इसमें मन:शक्ति बड़ी सहायता करती थी | यह वस्ति क्रिया कर सकनेवाले अब बहुत कम हैं | आधुनिक काल में एनिमा की सहायता लेकर इसे सरल बनायी गयी है |
इसके लिए मलरंध्र के द्वारा जल को अधो जठर में भर कर, थोड़ी देर वहीं रहने देना चाहिए | बाद अधों जठर पर हाथ फेर कर बाद को संचित मल के साथ उस जल को विसर्जित करना चाहिए |
*एनिमा क्रिया*
हलके गरम पानी में थोड़ा सा नींबू का रस या नमक या त्रिफला चूर्ण मिला कर, उस पानी को एनिमा के डिब्बे में भरें | रबर की नली की मदद से वह पानी मल रंध्र के द्वारा अधोजठर में भेजें । थोड़ी देर बाद उस पानी को मल द्वार के द्वारा बाहर विसर्जित करें | उस पानी के साथ मल, श्रलेष्म तथा आम्ल बाहर निकल जाते हैं | महीने में एक बार आवश्यक हो तो अधिक बार यह क्रिया की जा सकती है | इस के बाद साधक को थोड़ी देर आराम कर, उसके बाद हल्का भोजन करना चाहिए।
*शंख प्रक्षालन क्रिया*
मुँह से लेकर मलद्वार तक की पूर्ण पाचन प्रणाली की शुद्धि के लिए शंख प्रक्षालन क्रिया की जाती है
पाचन के में सहयोग देने वाली योग की क्रिया ही शंख प्रक्षालन है। मल द्वार शंख के रूप में रहता है| उसका प्रक्षालन कर उसे धोकर साफ करने की यह क्रिया है। अत: इसका नाम शंख प्रक्षालन पड़ा |
शंख प्रक्षालन शारीरिक शुद्धि से संबंधित यौगिक क्रियाओं में श्रेष्ठ है। यह बड़ी सावधानी से की जानेवाली क्रिया है। इससे संबंधित 4 आसन हैं। उन्हें आचरण में लाकर फायदा उठाना जरूरी है।
इन सभी आसनों के पहले नमकीन जल पीना चाहिए। उस जल के द्वारा मुँह से लेकर मल द्वार तक का 30 – 40 फुट लंबा मार्ग शंख प्रक्षालन की क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है।
टेढ़े-मेढ़े नाल को साफ करना हो तो जैसे ज्यादा जल आवश्यक है, वैसे ही हमारे पेट के अंदर जो टेढ़ा-मेढ़ा मार्ग है उसे साफ करने के लिए अधिक जल आवश्यक होता है।
यह जल मुँह से पेट में, पेट से छोटी आंत में, छोटी आंत से बड़ी आंत में और बड़ी आंत से मल द्वार तक जबर्दस्ती भेजा जाता है| इस जल के साथ अपच व्यर्थ पदार्थ भी बाहर निकल जाता है। इस क्रिया के आरंभ के पूर्व थोड़ा नमक या चारपाँच नींबुओं का रस मिला कर पाँच छ: लीटर हलका गरम पानी तैयार कर रखना चाहिए। शंख प्रक्षालन की क्रिया करने के लिए निम्नलिखित चार आसन क्रम से करने पड़ते हैं |
1. सर्पासन
2. ऊर्ध्वं हस्तासन
3. कटि चक्रासन
4. उदराकर्षणासन
इन चार आसनों के ग्रुप से शंख प्रक्षालन क्रिया की जाती है। जिनका विस्तृत अध्धयन हम आगे के अंकों के अवश्य ही करेंगे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
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