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शनिवार, 29 मई 2021

कार्विका : सनातनी वीरांगना जिसने सिकंदर की अधीनता स्वीकार नही की अपार सेना को भी परास्त कर अपना परिचय दिया

कार्विका : सनातनी वीरांगना जिसने सिकंदर की अधीनता स्वीकार नही की और अपार सेना को भी परास्त कर अपना परिचय दिया

जय सनातन जय हिन्दू
जय हिंद जय श्रीराम


कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका --

राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राज्य की राजकुमारी थी । राजकुमारी कार्विका बहुत ही कुशल योद्धा थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी। इनका बचपन के खेल में भी शत्रुओं से देश को मुक्त करवाना और फिर शत्रुओं को दण्ड प्रदान करना यही सब होते थे। राजकुमारी में वीरता और देशभक्ति बचपन से ही थी। जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना इत्यादि खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका राजकुमारी को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे। राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुर्ण थी , तलवारबाजी जब करने उतरती थी दोनों हाथो में तलवार लिये लड़ती थी और एक तलवार कमर पे लटकी हुई रहती थी। अपने गुरु से जीत कर राजकुमारी कार्विका ने सबसे सुरवीर शिष्यों में अपना नामदर्ज करवा लिया था। दोनों हाथो में तलवार लिए जब अभ्यास करने उतरती थी साक्षात् माँ काली का स्वरुप लगती थी। भाला फेकने में अचूक निसाँचि थी , राजकुमारी कार्विका गुरुकुल शिक्षा पूर्ण कर के एक निर्भीक और शूरवीरों के शूरवीर बन कर लौटी अपने राज्य में।

 कुछ साल बीतने के साथ साथ यह ख़बर मिला राजदरबार से सिकंदर लूटपाट करते हुए कठगणराज्य की और बढ़ रहा हैं भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए आगे बढ़ रही थी, इसी खबर के साथ वह अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि 8000 से 8500 नारियों की सेना थी। कठगणराज्य की यह इतिहास की पहली सेना रही जिसमे महज 8000 से 8500 विदुषी नारियाँ थी। कठगणराज्य जो की एक छोटी सा राज्य था। इसलिए अत्यधिक सैन्यबल की इस राज्य को कभी आवस्यकता ही नहीं पड़ी थी।

 325(इ.पूर्व) में सिकन्दर  के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहुत नुक्सान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था। सिकन्दर की सेना लगभग 150000 थी और कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका के साथ आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी यह एक ऐतिहासिक लड़ाई थी जिसमे कोई पुरुष नहीं था सेना में सिर्फ विदुषी वीरांगनाएँ थी। राजकुमारी और उनकी सेना अदम्य वीरता का परिचय देते हुए सिकंदर की सेना पर टूट पड़ी, युद्धनीति बनाने में जो कुशल होता हैं युद्ध में जीत उसी की होती हैं रण कौशल का परिचय देते हुए राजकुमारी ने सिकंदर से युद्ध की थी।

सिकंदर ने पहले सोचा "सिर्फ नारी की फ़ौज है मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले 25000 की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया , और राजकुमारी कार्विका की सेना को मानो स्वयं माँ भवानी का वरदान प्राप्त हुआ हो बिना रुके देखते ही देखते सिकंदर की 25000 सेना दस्ता को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी। राजकुमारी की सेना में 50 से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी। सिकंदर की सेना में शायद ही कोई ज़िन्दा वापस लौट पाया थे।
दूसरी युद्धनीति के अनुसार अब सिकंदर ने 40000 का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया परंतु राजकुमारी सिकंदर जैसा कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया राजकुमारी के हाथों बुरी तरह से पस्त हो गयी सिकंदर की सेना।

तीसरी और अंतिम 85000 दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया सिकंदर के सेना में मार काट मचा दिया नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया इतनी भयंकर तवाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर होगया। इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के 8500 में से 2750 साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया जिसमे से नाम कुछ ही मिलते हैं। इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौरायमिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं। इस युद्ध में जिन्होंने प्राणों की बलिदानी देकर सिकंदर को सिंध के पार खदेड़ दिया था।  सिकंदर की 150000 की सेना में से 25000 के लगभग सेना शेष बची थी , हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधी पत्र दिया राजकुमारी कार्विका को ।

संदर्व-:
१) कुछ दस्ताबेज से लिया गया हैं पुराणी लेख नामक दस्ताबेज
२) राय चौधरी- 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव एशेंट इंडिया'- पृ. 220)
३) ग्रीस के दस्ताबेज मसेडोनिया का इतिहास ,
Hellenistic Babylon नामक दस्ताबेज में इस युद्ध की जिक्र किया गया हैं।
राजकुमारी कार्विका की समूल इतिहास को नष्ठ कर दिया गया था। इस वीरांगना के  इतिहास को बहुत ढूंढने पर केवल दो ही जगह पर दो ही पन्नों में ही खत्म कर दिया गया था। यह पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर को परास्त किया था 325(ई.पूर्व) में। समय के साथ साथ इन इतिहासों को नष्ठ कर दिया गया था और भारत का इतिहास वामपंथी और इक्कसवीं सदी के नवीनतम इतिहासकार जैसे रोमिला थाप्पर और भी बहुत सारे इतिहासकार ने भारतीय वीरांगनाओं के नाम कोई दस्तावेज़ नहीं लिखा था।
यह भी कह सकते हैं भारतीय नारियों को राजनीति से दूर करने के लिए सनातन धर्म में नारियों को हमेशा घूँघट धारी और अबला दिखाया हैं। इतिहासकारों ने भारत को ऋषिमुनि का एवं सनातन धर्म को पुरुषप्रधान एवं नारी विरोधी संकुचित विचारधारा वाला धर्म साबित करने के लिये इन इतिहासो को मिटा दिया था। इन वामपंथी और खान्ग्रेस्सी इतिहासकारो का बस चलता तो रानी लक्ष्मीबाई का भी इतिहास गायब करवा देते पर ऐसा नहीं कर पाये क्यों की 1857 की ऐतिहासिक लड़ाई को हर कोई जानता हैं । 
लव जिहाद तब रुकेगा जब इतिहासकार ग़ुलामी और धर्मनिरपेक्षता का चादर फ़ेंक कर असली इतिहास रखेंगे। जकुमारी कार्विका जैसी वीरांगनाओं ने सिर्फ सनातन धर्म में ही जन्म लिए हैं। ऐसी वीरांगनाओं का जन्म केवल सनातन धर्म में ही संभव हैं। जिस सदी में इन वीरांगनाओं ने  देश पर राज करना शुरू किया था उस समय शायद ही किसी दूसरे मजहब या रिलिजन में नारियों को इतनी स्वतंत्रता होगी । सनातन धर्म का सर है नारी और धड़ पुरुष हैं। जिस प्रकार  सर के बिना धड़  बेकार हैं उसी प्रकार सनातन धर्म नारी के बिना अपूर्ण है।
जितना भी हो पाया इस वीरांगना का खोया हुआ इतिहास आप सबके सामने प्रस्तुत है।
भारत सरकार से अनुरोध है महामान्य प्रधानमंत्री महोदय जी से की सच सामने लाने की अनुमति दें इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च को ।
वन्देमातरम्
जय माँ भवानी।

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