हिंदुस्तानी हिन्दू चंद के लालच में अपना सर्वस्व गवाने को तैयार बैठा है: आंखे खोलो कायर तथाकथित सेक्युलरो
जय हिंद वन्दे मातरम
आप एक पोस्ट प्राप्त हुई आपकी सेवा में प्रस्तुत है
*क्या हम लालची है जो अभी तक दूसरों की तरफ से अपनो से लड़ रहे है।*
*3 उदाहरण दें रहा हूँ।*
*(1)*
पिछले दिनों एक पुस्तक पढते समय एक घटना से जानकारी मिली। जब मुगल हिन्दुस्थान में आये थे तब उनके साथ कुछ हजार ही मुगल सैनिक थे। उन्होंने हमारे ही लोगो को यानी हिंदुस्तानियों को लालच देकर अपनी सेना में भर्ती किया। और लाखों की संख्या की सेना बनाई और हिंदुस्तानियों को ही मार काट कर हम पर राज किया।
एक बार इब्राहिम लोदी जिसकी सेना में 90 प्रतिशत हिंदुस्तानी सैनिक थे एक भारतीय राजा से युद्ध करते समय उसने अपनी सेना में कम सैनिक होते हुए भी अपने मुस्लिम सेनापति को युद्ध का आदेश दिया तो सेनापति बोला जहाँपनाह हम युद्ध हार जाएंगे हमारी सारी सेना मर जाएगी तो लोदी सेनापति से बोला कि कोई बात नही युद्ध करो दोनों तरफ मरेंगे तो हिंदुस्तानी ही हम फिर लालच देकर दुबारा अपनी फौज खड़ी कर लेंगे।
वो लालच क्या था जिसके कारण हम मुगलो का साथ देकर अपने ही लोगो से लड़ते हुए मुगलों के गुलाम हुए।
*और वो लालच क्या अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*
*(2)*
जब अंग्रेजो नें हम पर राज करना शुरू किया वे भारत में 3000 थे।
पलासी के युद्ध की घटना का जिक्र पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने एक उद्बोधन में किया है।
जिसमे 3000 अंग्रेजो के साथ उनकी 15000 की सेना में 12000 हिंदुस्तानी थे और वे हिंदुस्तानी राजा से लड़ रहे थे जिसकी सेना में 10000 हिंदुस्तानी सैनिक थे और सबसे मजे की बात तो ये की उस युद्ध को 40000 हिंदुस्तानी पहाड़ियों पर बैठ कर देख रहे थे।
अंग्रेजो नें अपनी फौज में लाखों हिंदुस्तानियों को भर्ती किया और हिंदुस्तान में हिंदुस्तानियों के साथ साथ प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी और न जाने कितने देशो से लड़वाया, मरवाया और फिर लालच देकर अपनी सेना में हमे भर्ती किया और फिर मरवाया।
*वो लालच क्या अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*
*(3)*
आज युद्ध का स्वरूप बदल चुका है और गुलामी का भी
आज युद्ध हथियारों से नही लड़ जा रहा आज युद्ध बुद्धि भ्रष्ट कर लड़ा जा रहा है, सोशल मीडिया को हथियार बनाया जा रहा है और विचारो से गुलाम बनाया जा रहा है।
आज भी वही लालच देकर हिंदुस्तानियों की बुद्धि भ्रष्ट कर हिंदुस्तानियों के खिलाफ वातावरण बना कर आपस में लड़वाया जा रहा है।
ये लालच का कैसा नशा है। जो हजारों वर्षों से आज तक हमारी रगों में दौड़ रहा है, कही अपने तुच्छ लाभ के लिए, कही किसी को समाप्त करने के विचार के लिए, कही वामपंथी बनकर, कही सोशल एक्टिविस्ट बनकर, कही आंदोलनों के नाम पर, कही सुख सुविधाओं के नाम पर, कही सिविल सोसाइटी के नाम पर, कभी अपनी झूठी प्रसिद्धि के नाम पर और न जाने क्या क्या ?
हमारी संस्कृति, अपने देश के प्रति, राष्ट्रीयता के प्रति हमारा समर्पण क्या है ? क्या हमने कभी विचार किया है ?
परन्तु छोटे से लालच के लिए हम अपने देश से गद्दारी के तैयार हो जाते है। क्यों ?
*हमारा इतिहास तो गौरवशाली है पर वो लालच क्या है और क्यों अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*
प्रत्येक को विचार की आवश्यकता है।
विचार करें कि क्या हम लालची ही बने रहेंगे या अपने लालच को परे रख कर राष्ट्र प्रथम को प्राथमिकता देंगे।
*समझदारों को इशारा काफी है*।
भारत माता की जय
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