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शुक्रवार, 10 जून 2022

पुराणों में भारतवर्ष की महिमा -

पुराणों में भारतवर्ष की महिमा - 

ये पृथ्वी सप्तद्वीपा है । इनके नाम हैं - जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलिद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, तथा पुष्करद्वीप । सातों द्वीपों के मध्य जम्बूद्वीप है । जम्बूद्वीप के अधिपति महाराज आग्नीध्र के नौ पुत्र हुए - जिनके नाम थे - नाभि, किम्पुरूष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्मय, कुरू, भद्राश्व और केतुमाल । राजा आग्नीध्र ने जम्बूद्वीप के नौ खंड कर अपने प्रत्येक नौ पुत्रों को वहाँ का राजा  बनाया । इन खंड़ो का विस्तार नौ नौ हजार योजन बताया गया है । इन्हीं पुत्रों के नाम से नौ वर्ष (अर्थात् खंड ) प्रसिद्ध हुये ।

    राजा नाभि के नाम से ही एक वर्ष अर्थात् एक खंड का नाम अजनाभ वर्ष हुआ । राजा नाभि एवं उनकी पत्नी मेरूदेवी के एक पुत्र थे जिनका नाम था ऋषभदेव । ऋषभेदव जी के सबसे बड़े पुत्र का नाम था भरत ।

राजा भरत
वे अत्यंत प्रतापी तथा धर्मात्मा थे, अतः अजनाभ वर्ष का नाम हो गया  भारतवर्ष ।

‘‘अजनाभं नामऐतद्भारात्वर्षं भारतमिति ।’’

क्या पृथ्वी का यही खंड जहाँ हम लोग रहते हैं , भारतवर्ष है ? इसका प्रमाण क्या है ?

शास्त्रों में बताया गया है की भारतवर्ष में नर-नारायण हैं | इसी भारतवर्ष में भगवान श्रीहरि नर-नारायण रूप में है । केदारनाथ, बद्रीनाथ के रास्ते में दो पर्वत नर और नारायण हैं ऐसा माना जाता है कि देवर्षि नारद जी भगवान की आराधना नर-नारायण के रूप में करते हैं ।
नर और नारायण पर्वत

विष्णु पुराण में भी भारतवर्ष की स्थिति के बारे में बताया गया है - 
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेष्चैव दक्षिणम् ।
वर्शं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ।।
    ऐसा भूखण्ड जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय से दक्षिण में स्थित है वही भारतवर्ष है और वहीं पर चक्रवर्ती भरत जी की संतति निवास करती है ।पुराणों के आधार पर इस  भारतवर्ष का विस्तार 9000 योजन माना जाता है । एक योजन में 9 मील माना जाता है । अतः भारतवर्ष का विस्तार 81000 मील माना जा सकता है ।
भारतवर्ष अन्य वर्षों से श्रेष्ठ है क्यों कि यह कर्म भूमि है तथा अन्य वर्ष भोग भूमियाँ हैं -

‘यतो हि कर्मभूरेशा ह्यतो न्या भोगभूमयः’ (विष्णुपुराण) ।

ऐसा कहा जाता है कि मानव भगवान की सुन्दरतम रचना है और मानव को स्वतंत्रता है कर्मों को करने की । अच्छे कर्मों के द्वारा मानव अपना उद्धार कर सकता है । ऐसी स्वतंत्रता देवताओं को भी प्राप्त नहीं है क्योंकि वह भोगयोनि है । परंतु मनुष्यों में भी भारतवर्ष में जन्म लेने वाले को ही ऐसी स्वतंत्रता प्राप्त है क्योंकि भारतवर्ष कर्मभूमि है तथा अन्य वर्ष भोगभूमि है । यही कारण है कि पृथ्वी पर भारतवर्ष के अतिरिक्त कहीं भी कर्म विधि नहीं है । उसका विधान हमारे वर्णाश्रम व्यवस्था में है । वर्णाश्रम व्यवस्था सनातन धर्म का मूल है । सभी वर्णांे तथा आश्रमों में पूर्णतया प्रतिष्ठित मनुष्य जीवन के सर्वोत्तम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने का अधिकारी होता है । यहाँ पर पैदा होने वाले मनुष्य अपने-अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग तथा अपवर्ग प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए संसार के किसी अन्य धर्मों में वर्णाश्रम व्यवस्था का विधान नहीं है । अन्य धर्म भोग को बढ़ावा देता है परंतु सनातन धर्म योग को बढावा देता है । अतः भारतवर्ष में पैदा होने वाले प्राणी अन्य जगहों पर पैदा होने वालों से अधिक प्रबुद्ध होता है । भारतवर्ष का कण-कण ऊर्जा से भरा हुआ तीर्थ है जिसने भी भारतवर्ष की पदयात्रा की है उन्हें नई ऊर्जा तथा दिषा मिली है । पाण्डवों ने भारतवर्ष की पदयात्रा की थी वनवास काल में तभी उन्हें नई ऊर्जा मिली और धर्मराज्य की स्थापना हुई । भगवान राम ने भी वनवास काल में भारतवर्ष की पदयात्रा की तभी वह रामराज्य स्थापित करने में सफल रहें । आदिशंकराचार्य ने भारतवर्ष की पदयात्रा कर दिग्विजय किया और भारतवर्ष के एकता के सूत्र को और भी मजबूत किया । वर्तमान काल में भी महात्मा गांधी ने पूरे भारतवर्ष की पदयात्रा की तभी वे ब्रिटिश साम्राज्य का नाश कर पाये ।

 भारतवर्ष अपने आप में तीर्थ है जिस तरह तीर्थस्थानों की परिक्रमा से नई ऊर्जा मिलती है उसी तरह भारतवर्ष की परिक्रमा से भी नई ऊर्जा मिलती है । ये स्वयं प्रमाणित है ।  आप यहाँ पर किसी से भी भाग्य, भगवान, आत्मा, परमात्मा के बारे में बातें करके देख सकते हैं सभी के पास कुछ-न-कुछ अपने विचार होते हैं और वे विचार हमारे किसी-न-किसी शास्त्र में वर्णित होते हैं । हलाँकि वे उन शास्त्रों से हो सकता है अवगत नही हों । इसलिये यहाँ पर मनुष्य ही नहीं देवता भी जन्म लेकर यज्ञ यागादि अच्छे कर्मों के द्वारा पुण्य अर्जित कर अच्छे लोकों में जाना चाहते हैं । हमारे सनातन धर्म में ही भगवान के अवतार लेने की बात है । अन्य धर्मों मे नहीं क्योंकि सनातन धर्म भारतवर्ष में ही प्रचलित है और यह भारतवर्ष योगभूमि है । अतः यहाँ पर नये  कर्म किये जा सकते है और अन्य खण्डों में नये कर्म नहीं हो सकते है - केवल पुरातन कर्मों का भोग ही हो सकता है । अतः देवगण भी यही गान करते हैं -
गायन्ति देवाः किल गीतकानि
धन्यास्ते तु भारतभूमि भागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।।
  (श्रीविष्णुपुराण 2/3/24)
     
    अर्थात् जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के मार्गभूत भारतवर्ष में जन्म लिया है, वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य हैं ।

हिंदू संसार में सबसे अधिक राष्ट्र प्रेमी  और राष्ट्रभक्त लोग हैं।ऐसी उत्कृष्ट और गहरी और व्यापक राष्ट्रभक्ति संसार में लगभग कहीं भी नहीं है क्योंकि इतना प्राचीन और स्वाभाविक राष्ट्र विश्व में और कोई नहीं हैं ।
परंतु अंग्रेजो के द्वारा भारतीय शिक्षा का सर्वनाश करके फिर अपने चेलों को सत्ता सौंपने के बाद उन लोगों ने जो भारतीय ज्ञान परंपरा का सर्वनाश किया है ,उसके बाद से हिन्दू  लोगों के पास राजनीतिक चेतना बहुत अल्प है और वे तोतों की तरह से वे ही बातें करते रहते हैं जो हिंदू द्रोही  सत्ताधीशो ने शोर मचाया है और जो  उनके द्वारा प्रायोजित विद्यालय विद्या संस्थानों में पढ़ाया जाता है जो कि  झूठ है, भयंकर झूठ। पर हिन्दू अब वही दुहराते रहते हैं।
भारत को एक राष्ट्र मानकर अन्य लघु राष्ट्रों जैसा एक मानना घोर अज्ञान है।
यह यूरोप के 37 राष्ट्रों के बराबर आज है।पहले यह समस्त यूरोप से बड़ा था।
50 से अधिक मुस्लिम देशों के बराबर है अकेले भारत।
इसके विषय में सोचते और बोलते समय सदा यह ध्यान रखें, कृपया।
✍🏻रामेश्वर मिश्रा पंकज 

स्वाभाविक राष्ट्र है भारत

यह आज हमें पता है कि भारत का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 की देन है। आज अखंड भारत की कल्पना में हम केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ते हैं। परंतु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि भी भारत के ही भाग रहे हैं। यदि हम केवल 15 अगस्त 1947 के बाद के भारत को ही लें तो भी इस समय विश्व में केवल छह नेशन स्टेट या राष्ट्र ऐसे हैं जो आकार में भारत से बड़े हैं और ये छहों अस्वाभाविक राष्ट्र हैं। एक एक कर सभी पर विचार करते हैं।
पहला राष्ट्र है आस्ट्रेलिया। आस्ट्रेलिया क्या है? उसके केवल तटीय इलाकों में लोग बसे हैं। दिल्ली के बराबर आबादी है। इस नाम का भी कोई इतिहास नहीं है। यह बीसवीं शताब्दी में बना एक अस्वाभाविक राष्ट्र है। दूसरा बड़ा राष्ट्र है यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका। अमेरिका तो इस इलाके का नाम भी नहीं है। आज भी यूनाइटेड स्टेट्स किसी अमेरिगो नामक आदमी के नाम से जाना जाता है। इसे वेस्ट इंडिया ही कह दिया होता या वेस्ट इंडियन सबकोंटिनेंट ही कह दिया होता। यदि आपको किसी स्थान को उनके मूल नाम से नहीं बुलाना है तो कुछ पहचाना सा नाम तो रखना चाहिए था। किसी को पता ही नहीं है कि अमेरिगो कौन था। अमेरिका का मूल नाम तो टर्टल कोंटीनेंट यानी कि कच्छप महाद्वीप है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका तो उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में अस्तित्व में आया है। इसके टूटने का रुदन सैमुएल हंटिंगटन अपनी पुस्तक क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन में कर रहे हैं। भारत में इस पर काफी बहस चल रही है, परंतु बहस करने वालों ने ठीक से उसकी प्रस्तावना तक नहीं पढ़ी है। प्रस्तावना में ही वह कह रहा है कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका टूट रहा है। क्यों? क्योंकि उसके नीचे मैक्सिको उसे धक्का दे रहा है। मैक्सिको वहाँ का मूल है। वे वहाँ के मूलनिवासी हैं। उनका अपना क्षेत्र है। दीवाल बनाने से क्या होगा? दीवाल तो चीन ने भी बनाई थी। फिर भी उसे मंगोल, हूण, शक, मांचू सभी पराजित करते रहे।
तीसरा राष्ट्र है कैनेडा। संयुक्त राष्ट्र के ऊपर कैनेडा है। यहाँ कुछ फ्रांसीसी लोग हैं, कुछ अंग्रेज हैं और इन्होंने एक राष्ट्र बना लिया। यहां का पूरा इतिहास खंगाल डालिये, कैनेडा नाम नहीं मिलेगा। अस्वाभाविक राष्ट्र है। चौथा राष्ट्र है ब्राजील। यह नाम भी आपको इतिहास में नहीं मिलेगा। उन्नीसवीं शताब्दी तक ब्राजील का कोई अस्तित्व नहीं है। यह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से भगाए गए कुछेक फ्रांसीसी, अंग्रेज और जर्मन लोगों की रचना है। ये कृत्रिम सीमाएं हैं।
पाँचवां बड़ा राष्ट्र है जिसे हम पहले यूएसएसआर के नाम से जानते रहे हैं सोवियत संघ। उससे टूट कर सोलह राष्ट्र अलग हो गए, अब बचा है रूस। रूस के तीन चौथाई हिस्से के बारे में उसे स्वयं ही उन्नीसवीं शताब्दी तक पता नहीं था। यह हिस्सा था रूस का एशियायी हिस्सा। यह तो प्राचीन काल से भारत का हिस्सा रहा है। साइबेरिया का उच्चारण बदलें तो सिबिरिया होता है यानी शिविर का स्थान। इतालवी लोग स्थानों को स्त्रीलिंग से बुलाते हैं। इसलिए शिविर शिविरिया बन गया जिसे हम आज साईबेरिया कहते हैं। यह रूस का हिस्सा नहीं था। यह हिस्सा रहा है भरतवंशी शकों का, भरतवंशी मंगोलों का। इसे आप नक्शों में आसानी से देख सकते हैं। कब तक रहा है? उन्नीसवीं शताब्दी तक। यह कोई प्राचीन इतिहास नहीं है, जिसे ढूंढना पड़े। यह आधुनिक इतिहास है। फ्रांसीसी क्रांति या पुनर्जागरण के काल के बाद के इतिहास को आधुनिक काल माना जाता है। परंतु यह तो उससे भी कहीं नई घटना है। उन्नीसवीं शताब्दी तक रूस इस इलाके को जानता भी नहीं है। वह स्वयं उसे क्या बतलाता है, इसे देख लीजिए। अ_ारहवीं शताब्दी तक रूस अपनी सीमाएं क्या बता रहा है, देख लीजिए। जैसे हम कहते हैं न कि हमारी सीमाएं गांधार तक रही हैं, रूस अपनी सीमाओं के बारे में क्या कहता है? इसलिए यह भी स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है। कृत्रिम देश है। शीघ्र ही अपनी स्वाभाविक सीमाओं में आ जाएगा। इसकी स्वाभाविक सीमाएं क्या हैं? आज के यूक्रेन में एक स्थान है कीव। कीव के उत्तर में एक नदी चलती है। उस नदी के आस-पास का इलाका ही वास्तविक रूस है। और कीव सहित यूक्रेन आज रूस से बाहर है।
पाँच विशाल देशों के बाद अगला देश है चीन। चीन का वर्तमान आकार तो पंडित नेहरू का दिया हुआ है। तिब्बत तो कभी उसका था ही नहीं। जिसे भारत के यूरोपीय चश्मेवाले बुद्धिजीवी पूर्वी तूर्कीस्तान या फिर चीनी तूर्कीस्तान कहते हैं, वह भी उसका नहीं रहा है। इसे भी वर्ष 1949 में जवाहरलाल नेहरू ने चीन के लिए छोड़ दिया। यह तो महाकाल के उपासकों का स्थान रहा है। महाकाल के उपासक रहे महान मंगोल सम्राट कुबलाई खाँ ने चीन को पराजित किया था। चीन में मंगोलिया और मंचूरिया का हिस्सा मिला हुआ है। ये दोनों इलाके साम्यवादी चीन का हिस्सा 1949 के बाद रूस और चीन की सहमति से बने। रूस में लेनिन, स्टालिन जैसे कुछ तानाशाह लोग सत्ता में आ गए थे। उन्हें दुनिया भर में मित्र चाहिए था। कहा जाता है दुनिया भर में परंतु उसका वास्तविक अर्थ होता है यूरेशिया में। शेष चारों महादेश तो गिनती में होते ही नहीं हैं। तो साम्यवादी रूस को केवल एक सहयोगी मिला माओ के नेतृत्व वाला साम्यवादी चीन। साम्यवादी रूस ने मंगोलिया और मंचुरिया को चीन का हिस्सा मान लिया।
दूसरा विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की रचना हुई जिसमें यूएसएसआर स्थायी सदस्य था। दूसरा स्थायी सदस्य बनने का प्रस्ताव भारत को मिला था, परंतु जवाहरलाल नेहरू ने कूटनीतिक मूर्खता में वह प्रस्ताव चीन को दिलवा दिया। इन दोनों साम्यवादी देशों ने मिल कर बंदरबाँट की। परंतु आज चीन टूट रहा है। तीन हिस्सों में। यह अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट है। मंचुरिया और मंगोलिया, दोनों ही चीन को अपने कब्जे में रखने वाले देश हैं। वर्ष 1914 तक मंचुरिया का गुलाम रहा है। यह तो हमें कहीं पढ़ाया नहीं जाता कि तेरहवीं शताब्दी से लेकर वर्ष 1914 तक चीन भरतवंशी मंगोलों तथा मंचुओं का गुलाम रहा है।
हमने देखा कि 15 अगस्त 1947 के भारत से दुनिया के छह नेशन-स्टेटों का क्षेत्रफल अधिक है और वे छहों अस्वाभाविक राष्ट्र हैं और ये छहों अतिशीघ्र टूट जाएंगे। आज के दिन भी भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा स्वाभाविक राष्ट्र है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश का जन्म कैसे हुआ है। अक्सर यह कहा जाता है कि हम पड़ोसी रोज नहीं बदल सकते। परंतु हमने हर रोज पड़ोसी ही तो बदला है। पाकिस्तान हमारा पड़ोसी कब था, वह तो हमारा घर था। हमारा पड़ोसी अफगानिस्तान भी कब था, वह भी हमारा घर ही था। चीन भी आपका पड़ोसी कब था, नेपाल कब था हमारा पड़ोसी? हमने तो घरवालों को ही पड़ोसी बना दिया है।
याद करें कि युद्ध अपराध के कारण संयुक्त राष्ट्र ने ट्रीटी ऑफ वर्साई के कारण जर्मनी के दो हिस्से कर दिए, वह जर्मनी एक हो गया। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत एक हो गया। ऐसे में पाकिस्तान और भारत क्यों एक नहीं हो सकते? भारत का नक्शा देखिए, नीचे पेनिनसुलर भारत है, परंतु ऊपर विराट हिमालय है। अफगानिस्तान तो दुर्योधन का ननिहाल गाँधार ही तो था। शकुनि यहीं का था। और निकट इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह का राज्य गाँधार तक था। वर्ष 1905-10 में पंडित दीनदयालू शर्मा काबुल और कांधार में संस्कृत पर भाषण देने जाते हैं, सनातनधर्मरक्षिणी और गौरक्षिणी सभाएं करते हैं। गाँधी जी के जाने पर वायसराय खड़ा नहीं होता, पंरतु पंडित दीनदयालू शर्मा से मिलने के लिए इंग्लैंड का राजा भी खड़ा होता है। वर्ष 1910 में अफगानिस्तान नाम का कोई देश था ही नहीं। वर्ष 1922 में अंग्रेजों ने इसे बनाया रूस और उनके ब्रिटिश इंडिया के बीच बफर स्टेट के रूप में।
महाभारत में राजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में ढेर सारे राजा आते हैं। वे राजा जो युधिष्ठिर को कर देते हैं, वे सभी आते हैं। जो प्रदेश भारत के चक्रवर्ती सम्राट को कर देते हैं, वे भारत ही कहलाएंगे न? यह भारत कहाँ से कहाँ तक है? यवन प्रांत जिसे आज ग्रीक कहते हैं। परंतु ग्रीक स्वयं को ग्रीक नहीं कहते। वे स्वयं को एलवंशीय कहते हैं। उनके देश का नाम आज भी ग्रीस नहीं एलेनिक रिपब्लिक है। एलवंश मतलब बुद्ध और इला की संतान। यह भारतीय ग्रंथों में मिल जाएंगे। राजसूय यज्ञ के बाद युद्ध के वर्णन में स्पष्ट वर्णन है कि कौन-कौन सी सेनाएं पांडवों के साथ हैं और कौन-कौन कौरवों के साथ। वहाँ 250 जनपदों का उल्लेख है जिसमें दरद, काम्बोज, गाँधार, यवन, बाह्लीक, शक सभी नाम आते हैं। जिसे आज हम इस्लामिक देश के रूप में जानते हैं, यह पूरा इलाका शिव. ब्रह्मा, दूर्गा का पूजक सनातन धर्मावलम्बी चक्रवर्तीं भारतीय सम्राट के जनपद रहे हैं।
यह एक रोचक सत्य है कि अंग्रेजों को वर्ष 1910 तक पता नहीं था कि अशोक, देवानां पियदासी कौन है? वे महाभारत को नकार देते हैं। यदि हम महाभारत को गलत भी मान लें तो वायुपुराण, विष्णुपुराण, रामायण, कालीदास का रघुवंश, पाणिनी के अष्टाध्यायी आदि में किए गए भारतसंबंधी वर्णनों को देखें। यदि इन भारतीय संदर्भों से हमारी तुष्टि न हो तो फिर एक मुस्लिम लेखक का संदर्भ देखिए। अल बिरुनी का भारत पुस्तक को पढि़ए। अल बिरुनी की पुस्तक में भारत की सीमाओं और लोगों का वर्णन है। इसमें एक वर्णन है कि भारत के लोगों ने चारों दिशाओं में चार नगरों से आकाशीय गणना की है। उसकी आज तो जाँच की जा सकती है। वह कह रहा है कि इन चारों स्थानों पर भारत के लोग रहते हैं। ये चारों स्थान हैं – उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव, और पूरब तथा पश्चिम के शहरों का अक्षांश और देशांतर गणना दी हुई है। अल बिरुनी का कहना है कि ये गणनाएं तभी सही हो सकती हैं, जब आप वहाँ लगातार जा रहे हों।
पिरी राइस का नक्शा दुनिया का एक नक्शा है। यह फटी-पुरानी अवस्था में किसी विद्वान को मिला। उसने उसे देखा। उस नक्शे की विशेषता है कि उसमें दक्षिणी ध्रुव दिखाया गया है। दक्षिणी ध्रुव पर दो किलोमीटर मोटी बर्फ की परत जमी हुई है। वर्ष 1966 में इंग्लैंड और स्वीडेन ने एक सिस्मोलोजिकल सर्वेक्षण किया और उसके आधार पर दक्षिणी ध्रुव का नक्शा बनाया। यह नक्शा पिरी राइस के नक्शे के एकदम समान है। तो प्रश्न उठा कि पिरी राइस का नक्शा इतना पहले कैसे बना? उस विद्वान ने उस नक्शे को अमेरिका के एयर फोर्स के टेक्नीकल डिविजन के स्क्वैड्रन लीडर को भेजा। स्क्वैड्रन लीडर ने उत्तर लिखा कि नक्शा तो सही है, परंतु उस समय जब बर्फ नहीं थी, जब जानने के लिए जो यंत्र और तकनीकी ज्ञान चाहिए, वह नहीं रहा होगा। वह कहता है कि इस दो किलोमीटर की बर्फ की तह जमने में कई दशक लाख वर्ष लगे। यह नक्शा लगभग तबका बना हुआ है। यह उद्धरण मैप्स ऑफ एनशिएंट सी किंग्स के हैं। पिरी राइस तूर्क का डकैत था। तूर्कों को आमतौर पर हम मुसलमान मान लेते हैं। परंतु ध्यान दें कि ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी तक इसे यूरोप अनातोलिया बोलते थे। तूर्क लोग जब वर्तमान तूर्किस्तान पहुँचे, तब उसका नाम तूर्किस्तान रखा। वे वास्तव में दूर्गा और शिव के उपासक रहे हैं।
पिरी राइस लिख रहा है कि उसने यह नक्शा पुराने नक्शों के आधार पर बनाया है। अमेरिकन नक्शा बनाने वाले विद्वान लिखते हैं कि इस रास्ते पर लगातार समुद्री यात्राएं होती रही हैं। दक्षिणी ध्रुव पर यात्राएं हो रही हैं व्यापारिक और सैन्य कारणों से। अलग-अलग हिमयुगों में नक्शे बनाए गए हैं। इसे बनाने वाले और यात्रा करने वाले वे लोग हैं, जिनके नाम से एक महासागर का नाम ही रख दिया गया है। हिंद महासागर। दूसरे किसी भी देश के नाम पर महासागर का नाम नहीं रखा गया है, क्यों? इस हिंद महासागर में हिंद का तटीय प्रदेश छोटा सा ही है। फिर भी इसका नाम हिंद महासागर इसलिए है कि इसमें भारतीय ऐसे चलते हैं जैसे कनॉट प्लेस में दिल्ली पुलिस और जनता चलती है। इसी प्रकार हिंद महासागर में भारतीय व्यापारी और उनकी रक्षा के लिए चतुर्गिंणी सेना चलती है। चतुर्गिंणी में चौथा अंग कौन है? चार प्रकार की सेना है नौसेना। इसका प्रमाण है अजंता में बड़े-बड़े जहाजों का चित्रण है जिसमें हाथी-घोड़े और हथियार लदे होते हैं। ऐसे ही भित्तिचित्र भारत के उत्तर में स्थित पाँच स्तानों में भी मिले हैं।
इस प्रकार हम पाते हैं कि भारत एक स्वाभाविक राष्ट्र है और अत्यंत विशाल राष्ट्र रहा है। इसके ढेरों प्रमाण मिलते हैं। कुछ प्रमाण यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं।
✍🏻प्रो. कुसुमलता केडिया
(लेखिका धर्मपाल शोधपीठ, भोपाल की निदेशक हैं।)

निर्जला एकादशी कब करें 10 या 11 को ?

*निर्जला एकादशी कब करें 10 या 11 को ?*

*पद्मपुराण में एक प्रसंगंग है जब भगवान वाराह और हिरण्याक्ष का युद्ध हो रहा था तब भगवान नारायण के बार बार कोशिश करने पर भी जब हिरण्याक्ष नहीं मर रहा थातब भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान नारायण से पूछा हे प्रभु यह असुर तो आपकी दृष्टि मात्र से मरना चाहिए ऐसा क्यों हो रहा है कि आप इसे मार नहीं पा रहे हैं ।*
*तब भगवान जी बोले ब्रह्मा जी शुक्राचार्य की माया से मोहित होने से कुछ ब्राह्मण दशमी युक्ता एकादशी का व्रत कर रहे हैं ।*

*क्योंकि दशमी के दिन दैत्यों की उत्पत्ति हुई थी और एकादशी के दिन देवताओं की उत्पत्ति हुई थी इसीलिए दशमी को व्रत करने से दैत्यों का बल बढ़ता है और एकादशी को व्रत करने से देवताओं का बल बढ़ता है ब्राह्मणों के दशमी विद्धा एकादशी का व्रत करने से दैत्य का बल बढ़ रहा है और यह मर नहीं रहा है ।*

*जो मनुष्य दशमी युक्ता एकादशी का व्रत करता है उसके अंदर आसुरी शक्ति बढ़ती है ।*
*कलियुग में सब लोग मोहित हो कर दशमी विद्धा एकादशी का , व्रत करेंगे इसीलिए दुनिया में अशांति बनी रहेगी।*

*जब सीता जी को लक्ष्मण जी वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ कर आए थे तब सीता जी ने वाल्मीकि ऋषि से पूछा कि हे ऋषिवर मैंने जीवन में कभी पाप नहीं किया पतिव्रता रही पति की सेवा की फिर भी मेरे जीवन में इतने सारे कष्ट क्यों आए तब बाल्मीकि जी ने सीता जी को जवाब दिया था कि आपने कभी पूर्व जन्म में दशमी विद्धा एकादशी का व्रत किया था उसी दिन भगवान की पूजा की थी उससे पुण्य नहीं पाप पड़े उसी का परिणाम है कि आपको यह कष्ट झेलना पड़ा ।*
*पुराणों में लिखा है कि दशमी विद्धा एकादशी का व्रत करने से धन और पुत्र का विनाश होता है ।*
*इस बार जून 10 तको निर्जला एकादशी दशमी विद्धा अशुद्ध आसुरी शक्ति को बढ़ाने वाली है इसीलिए उस दिन एकादशी का व्रत कदापि शास्त्र सम्मत नहीं है इसलिए सभी को एकादशी 11 तारीख शनिवार को करना चाहिए पुराणों में स्पष्ट मत मिलता है कि अगर दशमी विद्धा एकादशी हो दूसरे दिन सूर्योदय से पहले एकादशी समाप्त हो रही हो तो द्वादशी के दिन एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी को पारण करना चाहिए ।*

             
🙏🙏 *॥ जय श्री कृष्ण ॥* 🙏🙏

गुरुवार, 9 जून 2022

अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते हुए मोदी जी ने पारिजात का पौधा लगाया है

 

श्रीराम के जीवन मे पारिजात एवं कल्पवृक्ष का बड़ा महत्व है जिसके पीछे एक विचित्र कथा है।

ये बात तब की है जब लंका युद्ध समाप्त हो गया था और श्रीराम सुखपूर्वक अयोध्या पर राज्य कर रहे थे। महर्षि दुर्वासा महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे जो भगवान शिव के अंश से जन्मे थे। ये बहुत क्रोधी थे और श्राप तो जैसे इनकी जिह्वा की नोक पर रखा रहता था। इन्होंने एक बार श्रीराम की परीक्षा लेने की ठानी। उन्हें पता था कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं किन्तु फिर भी वे श्रीराम की परीक्षा लेने अपने 60000 शिष्यों के साथ अयोध्या पहुँचे।

जब श्रीराम को पता चला कि महर्षि दुर्वासा अयोध्या पधारे हैं तो वे स्वयं अपने भाइयों के साथ द्वार पर उन्हें लिवाने चले आये। उन्होंने महर्षि दुर्वासा की अभ्यर्थना की और उनके चरण प्रक्षालन कर उन्हें ऊँचे आसन पर बिठाया। फिर उन्हें अर्ध्यपान देने के बाद उन्होंने कहा - 'हे महर्षि! आप अपने तेजस्वी शिष्यों के साथ अयोध्या पधारे ये हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है। मुझे वनवास समय में अपनी पत्नी और भाई के साथ आपके माता-पिता महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज आपके भी दर्शन प्राप्त कर मैं अपने आपको धन्य मान रहा हूँ। कृपया कहें कि मेरे लिए क्या आज्ञा है।"

तब महर्षि दुर्वासा ने कहा - 'हे कौशल्यानंदन! मुझे भी तुम्हारे दर्शन कर बड़ा हर्ष हो रहा है। मैं पिछले १०० वर्षों से उपवास पर था और आज ही मेरा उपवास पूर्ण हुआ है। इसी कारण भोजन करने की इच्छा से मैं अपने शिष्यों सहित तुम्हारे द्वार पर आया हूँ।' तब श्रीराम ने प्रसन्नता से कहा - 'हे भगवन! मेरे लिए इससे प्रसन्नता की और क्या बात होगी कि आपको भोजन कराने के सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा।' तब महर्षि दुर्वासा ने आगे कहा - 'हे राम! किन्तु मेरा संकल्प है कि तुम मुझे ऐसा भोजन कराओ जो जल, धेनु या अग्नि की सहायता से ना पका हो। इसके अतिरिक्त भोजन करने से पूर्व मेरी शिव पूजा के लिए तुम मुझे ऐसे अद्भुत पुष्प मँगवा दो जैसे आज तक किसी ने ना देखे हों। इस सब के लिए मैं तुम्हे केवल एक प्रहर का समय देता हूँ। अगर ये तुमसे ना हो सके तो मुझे स्पष्ट कह दो ताकि मैं यहाँ से चला जाऊँ।'

तब महर्षि की इस बात को सुनकर श्रीराम ने मुस्कराते हुए नम्रता से कहा - 'भगवान् ! मुझे आपकी यह सब आज्ञा स्वीकार है।' ये सुनकर महर्षि दुर्वासा प्रसन्न होकर बोले - 'ठीक है। मैं अपने शिष्यों के साथ सरयू में स्नान करके आता हूँ। तब तक हमारे लिए सभी सामग्रियों की व्यवस्था कर दो।' ये कह कर महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ स्नान करने को चले गए। उनके जाने के बाद देवी सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे कि किस प्रकार श्रीराम केवल एक प्रहर ऐसी दुर्लभ चीजों को प्राप्त कर पाएंगे। तब श्रीराम ने लक्ष्मण से एक पत्र लिखने को कहा और फिर उसे अपने बाण पर बांध कर स्वर्गलोक की ओर छोड़ दिया। वह बाण वायु वेग से उड़कर अमरावती में इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जाकर उनके सामने गिर पड़ा। उस बाण को देखते ही देवराज इंद्र पहचान गए कि ये श्रीराम का बाण है।

उन्होंने तुरंत उसपर बंधे पत्र को खोलकर पढ़ा तो उसमे लिखा था - 'हे देवराज! आप सुखी रहें। मैं सदैव आपका स्मरण करता हूँ किन्तु आज आपकी एक सहायता के लिए आपको पत्र लिख रहा हूँ। अयोध्या में इस समय महर्षि दुर्वासा अपने 60000 शिष्यों के साथ उपस्थित हैं और वो ऐसा भोजन चाहते हैं, जो गऊ, जल अथवा अग्नि के द्वारा सिद्ध न किया हो। साथ ही उन्होंने शिव पूजन के लिए ऐसे पुष्प माँगे हैं जिन्हें कि अब तक मनुष्यों ने न देखा हो। अतः आप अतिशीघ्र कल्पवृक्ष और पारिजात, जो क्षीरसागर से निकले हैं, मेरे पास भेज दें। इसके लिए रावण के संहारक मेरे बाणों की प्रतीक्षा मत कीजियेगा।'

वो पत्र मिलते ही इंद्रदेव उठे और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुँचे। वहाँ श्रीराम ने इंद्र का स्वागत किया उधर सरयू तट पर महर्षि दुर्वासा ने अपने एक शिष्य से कहा कि वे भवन जाकर देख आएं कि वहाँ का क्या हाल है। जब वो शिष्य राजभवन पहुँचा तो इन्द्रादि देवताओं से घिरे श्रीराम को देखा। उसने वापस आकर महर्षि को सारा हाल सुनाया। ये सुनकर महर्षि आश्चर्य करते हुए श्रीराम के पास पहुँचे। उन्हें आया देख कर श्रीराम ने देवताओं सहित उठकर उन्हें प्रणाम किया और फिर उन्होंने महर्षि को किसी के द्वारा ना देखे गए पारिजात के पुष्प शिव पूजा के लिए अर्पण किये। महर्षि दुर्वासा ने प्रसन्नतापूर्वक उन अद्भुत पुष्पों द्वारा श्रीराम और देवताओं सहित भगवान महाकाल की पूजा की।

पूजा समाप्त होने के बाद श्रीराम ने देवी सीता को भोजन परोसने के लिए कहा। तब सीता ने कल्पवृक्ष के नीचे असंख्य पात्रों को रखवा कर प्राथना की - 'हे कपलवृक्ष! आप सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। कृपया महर्षि दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों को संतुष्ट करें।' देवी सीता के ऐसा कहते ही वो सारे पात्र कल्पवृक्ष द्वारा ऐसे व्यंजनों से भर गए जो अग्नि, दूध अथवा जल से नहीं बने थे। ये देख कर महर्षि दुर्वासा ने श्रीराम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और आकंठ भोजन कर वहाँ से प्रस्थान किया।

यही कारण है कि श्रीराम मंदिर में पारिजात वृक्ष लगाया जा रहा है। ये बहुत शुभ संकेत है।

जय श्रीराम। 🚩

#ब्लड कैंसर का यही एकमात्र उपचार है - संजीवनी बूटी है यह पेड़ और फल

 #संजीवनी बूटी है यह,,,

हाँ सही समझे,, लेकिन सबके लिए नहीं सिर्फ ब्लड कैंसर वालों के लिए,,,

#चकोतरा नाम है इसका,,हरिद्वार, #रुड़की में बहुत होता है,, रोड़ पर खूब बिकता मिलेगा कई किलोमीटर तक,,आप इसे एक बड़ा संतरा मान सकते हैं,,,

एक बार हमारे गुरुकुल के कुछ ब्रह्मचारी भाइयों का ग्रुप #कर्नाटक घूमने गया था,,जिसमें मैं भी शामिल था,,वहाँ घने जंगल हैं जिन्हें BR Hills कहते हैं,,, उन्हीं जंगलों में घूमते घूमते एक साधु मिले थे,,

तब बातचीत के दौरान उन्होंने सामने पेड़ की तरफ हाथ करके कहा था--देख रहे हो ब्रह्मचारी यह पेड़ और फल,,,#ब्लड कैंसर का यही एकमात्र उपचार है,,मैंने पूछा कैसे??

तब उसने कहा कि #एक महीने तक रोगी को और कुछ नहीं खाना है,, भूख लगे तो इसी फल को खाओ,, प्यास लगे तो इसी का जूस पीओ,, इसी का सलाद खाओ,, मतलब यह है कि जो कुछ भी करना है इसी से करो,, पूरे एक महीने तक,,,ब्लड कैंसर ठीक हो जाएगा,,,

उसने यह बात इतने आत्मविश्वास से बताई थी कि ना करने का सवाल ही नहीं था,,, आज एक बहन Rakhi Mishra ने अपने पति की नाज़ुक हालत के बारे में लिखा तो मुझे यह बात सबको बताने की आवश्यकता हुई,,,,,

इस पोस्ट पर तर्क वितर्क के लिए जगह नहीं है,,, मुझे कैंसर है नहीं वरना मैं टेस्ट करके देखता,,, जीवन कीमती है,, ईलाज कराते कराते पहले वह सबकुछ लूट जाएगा जो आपने खून पसीने से कमाया है,, और फिर जिंदगी भी हाथ से जाएगी जोकि आज नहीं कल जानी ही है,,,

विश्वास कीजिए,,, ब्लड कैंसर वाले के लिए वैसे भी खोने को कुछ नहीं है लेकिन पाने को बहुत कुछ है,,, एक लंबा रोग रहित पवित्र जीवन,,, अपने परिवार के साथ,,

ॐ श्री परमात्मने नमः,,,

अगर रास्ते में आते जाते वक्त भूत प्रेतों का डर लगता हो तो क्या करना चाहिए?

मैं आपको एक छोटा सा उपाय बताने जा रहा हूँ जिसको करने से आप किसी भी तरीके के भूत प्रेत से दूर रहेंगे, किसी भी तरीके की आत्मा से दूर रहेंगे। ये उपाय खासकर उन लोगों के लिए है जो लोग ट्रेवल करते हैं। जो लोग ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर रहते हैं। जिनका एक जगह पर रह कर काम करने का ऑक्यूपेशन नहीं है। मैंने पहले भी एक उत्तर लिखा था जिसमें मैंने पाँच गलतियों का वर्णन किया है, जिनको करने से आप पर भूत चिपक सकता है

अगर आपको लगता है कि आप किसी भी ऐसे स्थान पर जाते हैं या फिर किसी भी ऐसी जर्नी में जाते हैं जो सेफ नहीं है या फिर आपको ऐसा अंदेशा होता है कि वहाँ पर कोई चीज है जो आप पर अटैक कर सकती है तो ये उपाय आपको काफी मदद करेगा।

मुझे उस उत्तर में भी बहुत लोगों ने पूँछा था कि ये पाँच गलतियाँ अक्सर लोग करते हैं तो आप कोई इसकी रेमेडी बताएं जिससे हम आगे अगर कभी भी कहीं पर ट्रेवल करते हैं तो हमें इस तरीके की दिक्कत का सामना न करना पड़े, न ही कोई ऐसा अंदेशा हो कि हमने ऐसी गलती कर दी है।

ये बहुत छोटा है और बहुत ज्यादा कारगर है। आप इसको अपनाइए और आप खुद देखेंगे कि आप हर तरीके से अच्छा फील करेंगे। ये उपाय में आपको बस करना क्या है आपको एक छोटा सा कालीमिर्च का दाना लेना है और जब भी आप घर से बाहर निकलें तो कालीमिर्च का दाना मुंह में डाल लें और उसको चबा लें। ऐसा करने से किसी भी तरीके की नकारात्मकता, किसी भी तरीके की निगेटिव एनर्जी आप पर अटैक नहीं करेगी। इसका मेन रीजन ये है कि जो कालीमिर्च है, नमक है, ये ऐसी चीजें होती हैं जो निगेटिविटी को दूर करते हैं, निगेटिविटी की काट हैं ये।

 नमक का पोंछा घर में लगाना चाहिए। वो इसीलिए बताया गया था क्योंकि नमक का एक बहुत ही कमाल का रोल है निगेटिव एनर्जी को दूर भगाने में और कालीमिर्च भी उसी फैमिली से आती है जिस फैमिली से नमक और रॉक सॉल्ट वगैरह आते हैं, वही श्रेणी है, वही गुण हैं किसी भी तरीके की नकारात्मकता को दूर करने के।

आप ऐसा भी कर सकते हैं कि आप थोड़ी सी साबुत कालीमिर्च हमेशा अपने पास रखें। अगर आप दस ग्राम भी कालीमिर्च अपने साथ रखें तो कहीं भी आप ट्रेवल करके जा रहे हैं, बीच में रास्ते में कोई भी सुनसान एरिया आता है तो आप कालीमिर्च मुंह में डाल कर चबा लें। इससे हाजमा तो होगा ही होगा, आपको इस तरीके के कोई भी बुरे अंदेशे नहीं रहेंगे।

चित्र स्त्रोत : Google

 

प्रयागराज में गर्ल्स हॉस्टल की असुरक्षा

 

प्रयागराज में गर्ल्स हॉस्टल की असुरक्षा

प्रयागराज विश्व भर में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शहर के नाम से प्रसिद्ध है। इस शहर में देश भर से लड़के और लड़कियां पढ़ने आते हैं। यहां लगभग 120 से ज्यादा गर्ल्स हॉस्टल हैं।

प्रयागराज के कचहरी रोड पर एक डाक्टर के बेटे आशीष खरे ने अपने घर में गर्ल्स हॉस्टल बना रखा है। आशीष खरे ने आनलाईन स्पाई कैमरा मंगवाकर बाथरूम के शावर में लगवा रखा था। यह व्यक्ति लड़कियों को नहाते हुए देखता था।

जितनी भी लड़कियां बाथरूम में नहाने जातीं वह सभी का वीडियो बनाता था। एक दिन शावर से पानी कम आ रहा था एक लड़की ने शावर हिलाया तो कैमरा नीचे गिर गया जिससे यह व्यक्ति पकड़ा गया।

कैमरा निकलते ही लड़कियां रोने लगीं और मुंह छिपाकर वहां से निकलने लगीं। पुलिस ने आशीष खरे के घर से कंप्यूटर, 9 हार्ड डिस्क, डिजिटल वीडियो रिकार्डर, लड़कियों के न्यूड फोटो वीडियो, 100 से अधिक लड़कियों के फोटो और फोन नंबर बरामद किए।

लड़कियों के वीडियो और फोटो को वह व्यक्ति पोर्न साईट पर बेंच सकता है, उनको ब्लैकमेल कर सकता है, उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर कर सकता है।

(आरोपी )

https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/story-prayagraj-spy-camera-installed-in-washroom-of-girls-hostel-son-of-doctor-arrested-6581896.html

आशीष ने अपने जुर्म को स्वीकार कर लिया है और जिस टेक्निशियन ने कैमरा फिट किया था उसे पुलिस खोज रही है। लेकिन इतनी शर्मनाक हरकत करने वाले आशीष खरे को मात्र 2 घंटे में जमानत मिल गई, ये लोग जिन किराएदारों के पैसे से घर चलाते हैं उनके साथ ऐसी घटिया हरकत करते हैं।

पुलिस भी इतनी कमजोर धारा लगाती है कि आरोपी को तुरंत जमानत मिल गई। लड़कियों को हास्टल लेते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए खासकर प्रयागराज में, प्रयागराज में मकान मालिक के रुप में भेड़िए बैठे हैं जिनका पुलिस और प्रशासन भी कुछ नहीं कर सकता।

सबसे खराब पैकेजिंग डिजाइन क्या हैं?

 

अंतिम तस्वीर बहुत बढ़िया है ……!

मुझे वास्तव में कुछ दिलचस्प दिखा आइये देखते हैं

1. मूल प्रोडक्ट से 30% ज्यादा ।

2. नीचे की तरफ अतिरिक्त जगह!

3. यह चालाकी है

4. वास्तव में बड़ा 😅

5. गमी बीयर कप!

6. यही कारण है कि मैं विश्वास नहीं करता !

7. हमें स्क्रू मिल रहा है

8.

9.

10.

11. यह सिर्फ असभ्यता है।

12. मैकडॉनल्ड्स में एक छोटे और मध्यम ऑरेंज जूस के बीच का अंतर।

यह एक खेल है !


बुधवार, 8 जून 2022

यह थी महान मुगलों की महान संस्कृति जिसका महिमा मंडन करते करते महाझूठे कपोल कल्पित इतिहासकार नही थकते

महान आसुरी संस्कृति ---
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मुमताज महल से शाहजहाँ को इतना प्रेम था कि उसके मरने पर उसने उससे उत्पन्न १७ वर्ष की अपनी स्वयं की सगी बेटी जहाँआरा को ही अपनी बादशाह बेगम बना लिया था। यद्यपि शाहजहाँ की आठ बेगमों में से तीन जीवित थीं। किन्तु शाहजहाँ को १७ वर्ष की बेटी जहाँआरा ही “बादशाह बेगम”  बनने योग्य लगी। जहाँआरा दारा शिकोह की समर्थक थी और बाप को कैद किये जाने पर बाप के साथ रही। किन्तु बाप के मरने पर औरंगजेब से दोस्ती करके अपनी छोटी बहन रोशनआरा को हटाकर औरंगजेब की “बादशाह बेगम” बन गयी। पहले अपने सगे बाप की बेगम थी फिर अपने भाई की बेगम बन गई। बाद में औरंगज़ेब ने अपनी सगी बेटी जीनत को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया। इसी क्रम में मुगल बादशाह फर्रूखसियर ने भी अपनी ही बेटी को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया था। शाहजहाँ ने अपनी बेटी तथा औरंगजेब ने अपनी दो बहनों और बेटी को बारी−बारी से अपनी “बादशाह बेगम” बनाया। यह मुगलों की महान सभ्यता थी। उनकी बेगमों की सूची अंतर्जाल पर उपलब्ध है। मुगलों की कब्रें खोदकर जबतक उन सबका DNA टेस्ट नहीं होता तब तक कहना कठिन है कौन अपनी बहन वा बेटी का क्या था। मुगल क्रूर थे लेकिन नालायक निकम्मे और भ्रष्ट थे। उनके दरबारी मुल्लाओं का तर्क था कि अपने द्वारा रोपे वृक्ष का फल खाने से किसी को रोकना अन्याय है। इसलिए मुगल बादशाह लोग अपनी बेटियों के साथ शादी कर लेते थे। 
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औरंगजेब ने अपनी बेटी जुब्दत−उन−निसा की शादी दाराशिकोह के बेटे से करायी, किन्तु दूसरी बेटी को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया और तीसरी को बीस वर्षों तक जेल में रखा। अकबर ने स्वयं दो मुगल शहजादियों से शादी की — रुकैया और सलमा जो उसकी बहनें थीं (कजिन)। अकबर की सभी बेटियों की शादी हुई, केवल एक के सिवा जो जहाँगीर के साथ आजीवन रही। जहाँगीर ने अपनी तीन बहनों (कजिन) से शादी की। जहाँगीर की दो बेटियाँ थीं जिनमें से एक की शादी उसकी सौतेली माँ नूरजहाँ ने वैमनस्य के कारण नहीं होने दी और दूसरी की शादी जहाँगीर के भतीजे से हुई। उस भतीजे के बाप दानियाल की माँ कौन थी इसपर सारे समकालीन लेखक मौन हैं किन्तु उसका बाप अकबर था यह सब लिखते थे। दानियाल की माँ अनारकली थी, जिससे अकबर ने दानियाल को पैदा किया और जब अनारकली से सलीम का चक्कर चला तो अकबर ने अनारकली को जीवित दीवार में चिनवा दिया।
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यह थी महान मुगलों की महान संस्कृति जिसका महिमा मंडन करते करते महाझूठे कपोल कल्पित इतिहासकार नही थकते। जय हो !! जय हो !! आप सब की जय हो॥

सोमवार, 6 जून 2022

जिला स्तरीय सब जूनियर प्रतियोगिता संपन्न लक्ष्यराज रहे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी

जिला स्तरीय सब जूनियर प्रतियोगिता संपन्न
लक्ष्यराज रहे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी

 जोधपुर 6 जून जोधपुर
वुशु संघ और आचार्य स्पोर्ट्स गुरुकुल के संयुक्त तत्वाधान में
16 वीं जिला स्तरीय वुशु प्रतियोगिता संपन्न हुई

जानकारी देते हुए जोधपुर वुशु संघ के अध्यक्ष सुरेश डोसी ने बताया कि 16 वीं जिला स्तरीय वुशु प्रतियोगिता राजकीय नवीन सीनियर सेकेंडरी स्कूल मोहनपुरा में आयोजित हुई

तीन दिवसीय इस प्रतियोगिता के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में लेफ्टिनेंट कर्नल अपर्णा बिसेन अध्यक्षता समाजसेवी सुरेश सोनी कार्यक्रम के विशेष अतिथि पुनीत राव, डॉक्टर पृथ्वी सिंह भाटी, रविंद्र जांगिड़, चेतन कालीराणा ,कैलाश चंद्र लढा ,रामस्वरूप पोटलिया ,राजस्थान प्रो बॉक्सिंग के डायरेक्टर हेमंत शर्मा जिला ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पूनम सिंह शेखावत थे 

प्रतियोगिता में बालक वर्ग के तालु  इवेंट में लक्ष्यराज सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे बालिका वर्ग में मनीषा भाटी ,सांशु वर्ग  के बालिका में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चित्रांशी चौहान, बालक वर्ग में नवदीप ,सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे विजेता खिलाड़ी दिनांक 17 से 19 जून तक हनुमानगढ़ में आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेंगे

एक शाम बुजुर्गो के नाम सांस्कृतिक संध्या का आयोजन जोधाणा वृद्धाश्रम मे


जोधाणा वृद्धाश्रम मे यति क्रिएशन द्वारा निर्देशित "संस्कारी इवेंट" जोधपुर मे एक शाम बुजुर्गो के नाम - सांस्कृतिक संध्या का आयोजन


  जोधपुर दिनांक 05. June. 2022, शाम 6 से महामंदिर स्थित जोधाणा वृद्धाश्रम मे यति क्रिएशन द्वारा निर्देशित "संस्कारी इवेंट" जोधपुर मे एक शाम बुजुर्गो के नाम - सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया जिसके आयोजक श्री अभिषेक शर्मा ने बताया कि जोधपुर मे 8 वर्ष से 60 वर्ष तक के उभरती प्रतिभाओ को मंच प्रदान करने हेतु सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया| मंच संचालन युगल जोड़ी श्रीमती वंदना शर्मा एवं अभिषेक शर्मा द्वारा किया गया| जिसमे सर्व प्रथम दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया

जिसमे यति शर्मा जानवी शर्मा द्वारा गणेश वंदना पर अपनी मनमोहक प्रस्तुति से सभी प्रतिभागियों का मन मोह लिया,


उसके बाद सबसे छोटे प्रतिभागी कुंज माहेश्वरी ने "तेरी ऊँगली पकड़ के चला" गीत गाकर वृद्धाश्रम के सभी बड़े बुजुर्गों को एवं दर्शको को अभिभूत कर दिया| कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि श्री आलोक  मोहता जी, डॉ सुधा, सोनू जेठवानी, सत्य प्रकाश सोनी ,हरि प्रकाश जी, दिलीप टॉक, देवेश सोनी, कविता अरोड़ा थे, सभी मुख्य अतिथियों को साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा एवं अन्य कलाकारों द्वारा दुपट्टा एवं माला पहना कर सम्मानित किया


कार्यक्रम के संयोजक मानवता की सेवा मे समर्पित साँवरिया के अध्यक्ष श्री अभिषेक शर्मा ने बताया की कार्यक्रम मे ओल्ड ईज़ गोल्ड पुराने गानो की झलकियाँ दिखाई दी कार्यक्रम मे 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमे यति शर्मा, कुंज माहेश्वरी, मनीषा गोयल, योगिता टाक, कृष्णा खत्री, डॉ. सुधा मोहता, विनीता, वंदना शर्मा, कैलाशचंद्र लढा, अभिषेक शर्मा, अजय दवे, , महेंद्र मालपनि, मुकेश, अभिलेश, एस. एन व्यास, दिलीप टाक ललित जी हरीश जी आदि प्रतिभागियों ने अपनी प्रस्तुति दी |


कार्यक्रम में सनसिटी रॉकस्टार अमित पेड़ीवाल ने भी की शिरकत...
अपनी मनमोहक प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया कार्यक्रम में चार चांद लगाए

साउंड दीपक साउंड द्वारा लगाया गया, कार्यक्रम के अंत मे सभी प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि द्वारा दुपट्टा वह माला पहनाकर स्वागत किया गया, कार्यक्रम के अंत मे अभिषेक शर्मा व वंदना शर्मा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया|

कार्यक्रम के अंत मे प्रतिभागियों के उत्साह को देखते हुए गर्ल्स सेव यूथ असोसियेशन के संस्थापक कनिष्क शर्मा ने बताया इसके अगले आयोजन की जल्द घोषणा की जाएगी









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