जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 23 सितंबर 2023
राधा अष्टमी आजहिंदू धर्म में राधा अष्टमी का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की उपासना करने से साधक को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
रविवार, 17 सितंबर 2023
रावण के जन्म की कथा....
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राम को रावण के जन्म की कथा सुनाते हुए अगस्त्य मुनि ने कहना जारी रखा......पिता की आज्ञा पाकर कैकसी विश्रवा के पास गई और उन्हें अपने अभिप्राय से अवगत कराया। उस समय भयंकर आँधी चल रही थी। आकाश में मेघ गरज रहे थे। कैकसी का अभिप्राय जानकर विश्रवा ने कहा कि भद्रे! तुम इस कुबेला में आई हो। मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर दूँगा परन्तु इससे तुम्हारी सन्तान दुष्ट स्वभाव वाली और क्रूरकर्मा होगी। मुनि की बात सुनकर कैकसी उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली कि भगवन्! आप ब्रह्मवादी महात्मा हैं। आपसे मैं ऐसे दुराचारी सन्तान पाने की आशा नहीं करती। अतः आप मुझ पर कृपा करें। कैकसी के वचन सुनकर मुनि विश्रवा ने कहा कि अच्छा तो तुम्हारा सबसे छोटा पुत्र सदाचारी और धर्मात्मा होगा।
“इस प्रकार कैकसी के दस मुख वाले पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम दशग्रीव रखा गया। उसके पश्चात् कुम्भकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण के जन्म हुये। दशग्रीव और कुम्भकर्ण अत्यन्त दुष्ट थे, किन्तु विभीषण धर्मात्मा प्रकृति का था। दशग्रीव ने अपने भाइयों सहित ब्रह्माजी की तपस्या की। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर दशग्रीव ने माँगा कि मैं गरुड़, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस तथा देवताओं के लिये अवध्य हो जाऊँ। ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कहकर उसकी इच्छा पूरी कर दी। विभीषण ने धर्म में अविचल मति का और कुम्भकर्ण ने वर्षों तक सोते रहने का वरदान पाया।
“फिर दशग्रीव ने लंका के राजा कुबेर को विवश किया कि वह लंका छोड़कर अपना राज्य उसे सौंप दे। अपने पिता विश्रवा के समझाने पर कुबेर ने लंका का परित्याग कर दिया और रावण अपनी सेना, भाइयों तथा सेवकों के साथ लंका में रहने लगा। लंका में जम जाने के बाद अपने बहन शूर्पणखा का विवाह कालका के पुत्र दानवराज विद्युविह्वा के साथ कर दिया। उसने स्वयं दिति के पुत्र मय की कन्या मन्दोदरी से विवाह किया जो हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी। विरोचनकुमार बलि की पुत्री वज्रज्वला से कुम्भकर्ण का और गन्धर्वराज महात्मा शैलूष की कन्या सरमा से विभीषण का विवाह हुआ। कुछ समय पश्चात् मन्दोदरी ने मेघनाद को जन्म दिया जो इन्द्र को परास्त कर संसार में इन्द्रजित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
“सत्ता के मद में रावण उच्छृंखल हो देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों को नाना प्रकार से कष्ट देने लगा। एक बार उसने कुबेर पर चढ़ाई करके उसे युद्ध में पराजित कर दिया और अपनी विजय की स्मृति के रूप में कुबेर के पुष्पक विमान पर अधिकार कर लिया। उस विमान का वेग मन के समान तीव्र था। वह अपने ऊपर बैठे हुये लोगों की इच्छानुसार छोटा या बड़ा रूप धारण कर सकता था। विमान में मणि और सोने की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं और तपाये हुये सोने के आसन बने हुये थे। उस विमान पर बैठकर जब वह ‘शरवण’ नाम से प्रसिद्ध सरकण्डों के विशाल वन से होकर जा रहा था तो भगवान शंकर के पार्षद नन्दीश्वर ने उसे रोकते हुये कहा कि दशग्रीव! इस वन में स्थित पर्वत पर भगवान शंकर क्रीड़ा करते हैं, इसलिये यहाँ सभी सुर, असुर, यक्ष आदि का आना निषिद्ध कर दिया गया है। नन्दीश्वर के वचनों से क्रुद्ध होकर रावण विमान से उतरकर भगवान शंकर की ओर चला। उसे रोकने के लिये उससे थोड़ी दूर पर हाथ में शूल लिये नन्दी दूसरे शिव की भाँति खड़े हो गये। उनका मुख वानर जैसा था। उसे देखकर रावण ठहाका मारकर हँस पड़ा। इससे कुपित हो नन्दी बोले कि दशानन! तुमने मेरे वानर रूप की अवहेलना की है, इसलिये तुम्हारे कुल का नाश करने के लिये मेरे ही समान पराक्रमी रूप और तेज से सम्पन्न वानर उत्पन्न होंगे। रावण ने इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और बोला कि जिस पर्वत ने मेरे विमान की यात्रा में बाधा डाली है, आज मैं उसी को उखाड़ फेंकूँगा। यह कहकर उसने पर्वत के निचले भाग में हाथ डालकर उसे उठाने का प्रयत्न किया। जब पर्वत हिलने लगा तो भगवान शंकर ने उस पर्वत को अपने पैर के अँगूठे से दबा दिया। इससे रावण का हाथ बुरी तरह से दब गया और वह पीड़ा से चिल्लाने लगा। जब वह किसी प्रकार से हाथ न निकाल सका तो रोत-रोते भगवान शंकर की स्तुति और क्षमा प्रार्थना करने लगा। इस पर भगवान शंकर ने उसे क्षमा कर दिया और उसके प्रार्थाना करने पर उसे एक चन्द्रहास नामक खड्ग भी दिया।”
अगस्त्य मुनि ने कथा को आगे बढ़ाया, “एक दिन हिमालय प्रदेश में भ्रमण करते हुये रावण ने ब्रह्मर्षि कुशध्वज की कन्या वेदवती को तपस्या करते देखा। वह उस पर मुग्ध हो गया और उसके पास आकर उसका परिचय तथा अविवाहित रहने का कारण पूछा। वेदवती ने अपने परिचय देने के पश्चात् बताया कि मेरे पिता विष्णु से मेरा विवाह करना चाहते थे। इससे क्रुद्ध होकर मेरी कामना करने वाले दैत्यराज शम्भु ने सोते में उनका वध कर दिया। उनके मरने पर मेरी माता भी दुःखी होकर चिता में प्रविष्ट हो गई। तब से मैं अपने पिता के इच्छा पूरी करने के लिये भगवान विष्णु की तपस्या कर रही हूँ। उन्हीं को मैंने अपना पति मान लिया है।
“पहले रावण ने वेदवती को बातों में फुसलाना चाहा, फिर उसने जबरदस्ती करने के लिये उसके केश पकड़ लिये। वेदवती ने एक ही झटके में पकड़े हुये केश काट डाले। फिर यह कहती हुई अग्नि में प्रविष्ट हो गई कि दुष्ट! तूने मेरा अपमान किया है। इस समय तो मैं यह शरीर त्याग रही हूँ, परन्तु तेरा विनाश करने के मैं अयोनिजा कन्या के रूप में जन्म लेकर किसी धर्मात्मा की पुत्री बनूँगी। अगले जन्म में वह कन्या कमल के रूप में उत्पन्न हुई। उस सुन्दर कान्ति वाली कमल कन्या को एक दिन रावण अपने महलों में ले गया। उसे देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि राजन्! यदि यह कमल कन्या आपके घर में रही तो आपके और आपके कुल के विनाश का कारण बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में फेंक दिया। वहाँ से वह भूमि को प्राप्त होकर राजा जनक के यज्ञमण्डप के मध्यवर्ती भूभाग में जा पहुँची। वहाँ राजा द्वारा हल से जोती जाने वाली भूमि से वह कन्या फिर प्राप्त हुई। वही वेदवती सीता के रूप में आपकी पत्नी बनी और आप स्वयं सनातन विष्णु हैं। इस प्रकार आपके महान शत्रु रावण को वेदवती ने पहले ही अपने शाप से मार डाला। आप तो उसे मारने में केवल निमित्तमात्र थे।
“अनेक राजा महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुँचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें भी द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि महात्मा इक्ष्वाकु के इसी वंश में दशरथनन्दन राम का जन्म होगा जो तेरा वध करेंगे। यह कहकर राजा स्वर्ग सिधार गये।
“रावण की उद्दण्डता में कमी नहीं आई। राक्षस या मनुष्य जिसको भी वह शक्तिशाली पाता, उसी के साथ जाकर युद्ध करने करने लगता। एक बार उसने सुना कि किष्किन्धापुरी का राजा वालि बड़ा बलवान और पराक्रमी है तो वह उसके पास युद्ध करने के लिये जा पहुँचा। वालि की पत्नी तारा, तारा के पिता सुषेण, युवराज अंगद और उसके भाई सुग्रीव ने उसे समझाया कि इस समय वालि नगर से बाहर सन्ध्योपासना के लिये गये हुये हैं। वे ही आपसे युद्ध कर सकते हैं। और कोई वानर इतना पराक्रमी नहीं है जो आपके साथ युद्ध कर सके। इसलिये आप थोड़ी देर उनकी प्रतीक्षा करें। फिर सुग्रीव ने कहा कि राक्षसराज! सामने जो शंख जैसे हड्डियों के ढेर लगे हैं वे वालि के साथ युद्ध की इच्छा से आये आप जैसे वीरों के ही हैं। वालि ने इन सबका अन्त किया है। यदि आप अमृत पीकर आये होंगे तो भी जिस क्षण वालि से युद्ध करेंगे, वह क्षण आपके जीवन का अन्तिम क्षण होगा। यदि आपको मरने की बहुत जल्दी हो तो आप दक्षिण सागर के तट पर चले जाइये। वहीं आपको वालि के दर्शन हो जायेंगे।
“सुग्रीव के वचन सुनकर रावण विमान पर सवार हो तत्काल दक्षिण सागर में उस स्थान पर जा पहुँचा जहां वालि सन्ध्या कर रहा था। उसने सोचा कि मैं चुपचाप वालि पर आक्रमण कर दूँगा। वालि ने रावण को आते देख लिया परन्तु वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ और वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करता रहा। ज्योंही उसे पकड़ने के लिये रावण ने पीछे से हाथ बढ़ाया, सतर्क वालि ने उसे पकड़कर अपनी काँख में दबा लिया और आकाश में उड़ चला। रावण बार-बार वालि को अपने नखों से कचोटता रहा किन्तु वालि ने उसकी कोई चिन्ता नहीं की। तब उसे छुड़ाने के लिये रावण के मन्त्री और अनुचर उसके पीछे शोर मचाते हुये दौड़े परन्तु वे वालि के पास तक न पहुँच सके। इस प्रकार वालि रावण को लेकर पश्चिमी सागर के तट पर पहुँचा। वहाँ उसने सन्ध्योपासना पूरी की। फिर वह दशानन को लिये हुये किष्किन्धापुरी लौटा। अपने उपवन में एक आसन पर बैठकर उसने रावण को अपनी काँख से निकालकर पूछा कि अब कहिये आप कौन हैं और किसलिये आये हैं?
“रावण ने उत्तर दिया कि मैं लंका का राजा रावण हूँ। आपके साथ युद्ध करने के लिये आया था। वह युद्ध मुझे प्राप्त हो चुका है। मैंने आपका अद्भुत बल देख लिया। अब मैं अग्नि की साक्षी देकर आपसे मित्रता करना चाहता हूँ। फिर दोनों ने अग्नि की साक्षी देकर एक दूसरे से मित्रता स्थापित की।”
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शुक्रवार, 15 सितंबर 2023
ये ढाई फीट की गाय देती है तीन लीटर दूध, 14 साल की मेहनत से तैयार हुई अनूठी 'ब्रीड'
मंगलवार, 12 सितंबर 2023
'छाप तिलक सब छीनी' पर सूफी संगीत क्यों होता है ? 'दाढ़ी टोपी छीनी तोसे नैना मिलाइके' ये लाइन क्यों नहीं होती । छाप तिलक पर ही निशाना क्यों ?
सोमवार, 11 सितंबर 2023
आज का थ्रेड - कांग्रेस राज में G20 - व्यंग्य
बुधवार, 6 सितंबर 2023
नेहरू जी के कुत्ते पर एक दिन में 3 रूपए तक खर्च होते थे... मतलब नेहरू जी के कुत्ते पर होने वाले खर्च में 15 भारतीय पल जाते.
आजादी के बाद जब देश में जबरदस्त गरीबी थी... तब लगभग 60% भारतीयों का एक दिन का औसत खर्च हुआ करता था 3 आना (1 आना =6.25 पैसा)... मतलब लगभग 19 पैसे रोजाना एक भारतीय का खर्च हुआ करता था... मतलब उनके जीवन यापन का खर्च.
वहीं नेहरू जी के कुत्ते पर एक दिन में 3 रूपए तक खर्च होते थे... मतलब नेहरू जी के कुत्ते पर होने वाले खर्च में 15 भारतीय पल जाते.
ऐसे समय में नेहरू जी पर रोजाना का खर्च हुआ करता था 25-30 हजार रूपए... यानी महीने का खर्च लगभग 10 लाख रूपए.
मतलब... नेहरू जी के रहने सहने खाने पीने पर जितना खर्च होता था.. उतने में 50 लाख भारतीयों का गुजारा होता था.
यह योजना आयोग के आंकड़े थे... जो नेहरू जी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले राम मनोहर लोहिया जी ने on record बताये थे.
अभी आपको महात्मा गाँधी पर होने वाले खर्च का तो पता ही नहीं.... सरोजिनी नायडू जो कांग्रेस की ही नेता थीं... उन्होंने ही एक बार कहा था... महात्मा गाँधी के सादा जीवन यापन को दिखाने के लिए, उनकी Image को maintain करने पर ही बहुत खर्चा हुआ करता था.
प्रेरक प्रसंग - "My bad Habits" यानि मेरी बुरी आदतें।
प्रेरक प्रसंग 🌹🌹
एक शाम एक एक मित्र के निवासस्थान पर जाना हुआ। हमारे मित्र की अर्धांगिनी यानि हमारी भाभी जी उनके सुपुत्र को पढा रही थी। हम पहुंचे तो भाभी जी किचेन में चाय बनाने चली गयी और हमारा भतीजा मेरी बगल में आ कर बैठ गया। बच्चे के हाथ में एक कॉपी और पेंसिल थी। कॉपी पर 1 से लेकर 10 तक क्रमांक लिखा हुआ था और पन्ने के श्रीर्ष पर लिखा था "My bad Habits" यानि मेरी बुरी आदतें। मैंने बच्चे से पूछा के कॉपी पर क्या लिख रहा है तो वह मायूस होकर बोला के मम्मी ने मुझे अपनी 10 बुरी आदतें लिखने को कहा है ताकि मैं उन्हें सुधार सकूं। 10 में 3 तीन बुरी आदतें वह लिख चुका था। जैसे कि वह सुबह देर से उठता है। लंच बॉक्स में खाना छोड़ देता है आदि इत्यादि......
मैंने उससे कॉपी ली। इरेज़र से कॉपी पर लिखा सब कुछ मिटा दिया। दो कॉलम बनाये। एक ओर लिखा "My good habits" यानि मेरी अच्छी आदतें और दूजी ओर लिखा "My bad Habits " यानि मेरी बुरी आदतें। मैंने बच्चे से कहा के अपनी 10 बुरी आदतें लिखने की बजाय अपनी 5 अच्छी आदतों के बारे में लिखे और 5 बुरी आदतों के बारे में भी लिखे।
लड़का खुश हो गया। पहले झट से अच्छाई वाला कॉलम भर दिया। स्व्च्छता का ध्यान रखने से लेकर अपनी सुंदर लेखनी को उसने अपनी अच्छी आदतों में शुमार कर लिया। फिर झट से अपनी बुरी आदतें भी लिख डाली।
बगल में हमारे मित्र विराजमान थे और इतने में हमारी आदरणीय भाभी जी चाय लेकर आ गयी। मैंने भाभी जी से पूछा के केवल इसे अपनी बुरी आदतें लिखने का कार्य क्यों दिया गया। भाभी जी ने तपाक से शिकायतों की झड़ी लगा दी। सुस्त है , कामचोर है , बहानेबाज है, टाइमपास करता रहता है आदि इत्यादि। सोचा के अगर खुद अपनी बुरी आदतें कागज़ पर लिखेगा तो आत्ममंथन करेगा।
मैंने तुरंत ही भाभी जी पर एक और सवाल दाग दिया। मैने कहा के यह तो बुरी आदतें हो गयी .....अब आप मुझे इसकी 10 अच्छी आदतें गिनवा दीजिये।
भाभी जी ने मौन साध लिया .....
मैं अपने मित्र की ओर पलटा। मैंने कहा तू तो लड़के का बाप है....चल तू ही बता लड़के की खासियत क्या है।
हमारे भाई ने भी मौन साध लिया....
फिर दोनों ने कुछ समय मंथन करने के बाद कुछ अच्छी आदतें गिनवाने की प्रक्रिया शुरू की। जैसे भाभी जी ने बताया के सुबह उठ कर सभी के चरणस्पर्श करता है। हमारा मित्र बोला के साफ सफाई के प्रति जागरूक है। कई बार मुझे भी कचरा फेंकने से टोक चुका है। फिर हमारी भाभी बोली के इसकी मेंटल केलकुलेशन बड़ी तेज़ हैं। इसी तरह बहुत सोच विचार के बाद दोनों ने बच्चे की कई अच्छी आदतें गिनवा दी।
कुल 10 मिनट के अंतराल में मेरा बच्चे के प्रति नज़रिया बदल चुका था। पहले मैं कॉपी पर लिखी उसकी 10 बुराइयां पढ़ कर उसके प्रति एक धारणा बना चुका था परंतु जब मुझे उसकी विशेषताओं के विषय में पता चला तो मेरी धारणा कांच के शीशे की तरह चकनाचूर हो गयी।
अच्छाई और बुराई या हीरो और विलेन का कॉन्सेप्ट अपनी समझ से बाहर है। मैं तो अब तक के जीवन में इतना समझ पाया हूँ के हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों मौजूद हैं। गुड़ हैबिट्स भी हैं और बैड हैबिट्स भी हैं।
परंतु जब भी हम किसी के प्रति धारणा बनाते हैं तो आदतन हम अपने मन की कॉपी पर पहले उसकी 10 बैड हैबिट्स यानि बुराईयां लिख डालते हैं।
यह वास्तविकता है के बहुत कम लोग किसी व्यक्ति में वास कर रहे "राम " को ढूंढते हैं। हमें पहले रावण दिखाई देता है।
ईश्वर के बनाये हर माटी के पुतले में कुछ अच्छाइयाँ हैं ......विशेषताएं हैं ....हुनर है .......काबिलियत है...... हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ खासियत है।
बस फर्क नज़र और नज़रिये का है। जब हम व्यक्ति , समाज और राष्ट्र की बुराइयों तक सीमित रह जाते हैं तब हम एक संकीर्ण दायरे में फंस जाते हैं ........और जब हम व्यक्ति समाज और राष्ट्र में छिपी अच्छाइयों को पहचानते हैं तो हमें इन अच्छाइयों के दम पर समाज में व्याप्त बुराइयों का विनाश करने का बल मिलता है। किसी को गलत नजरिए से देखने के पहले खुद ये तय जरूर करना चाहिए के कही में तो गलत नही ।
नकारात्मक खबरों से भरे अखबार , न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया का एक अंश कॉपी पर लिखी बैड हैबिट्स के समान है , जबकि स्वतंत्र होकर समाज का सकारात्मक और रचनात्मक चेहरा देखते ही लगता है
🙏🙏
जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!
हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्
देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी थी कांग्रेसिओं की।
जस्टिस G D Khosla एक जज थे जिन्होंने नाथूराम गोडसे के केस की सुनवाई की थी और नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा दी थी ।
गोडसे को फांसी पर चढ़ा देने के बाद जज साहब ने अपनी किताब "द मर्डर ऑफ महात्मा एन्ड अदर केसेज फ्रॉम ए जजेज डायरी" में पेज नंबर 305 - 06 पर लिखते है कि :
"अदालत में गोडसे ने अपनी बात पाँच घंटे के लंबे ब्यान के रूप में रखी थी जो कि 90 पृष्ठों का था। । 5 घंटे तक लगातार बोलने के बाद जब गोडसे ने बोलना बन्द किया तब सभी सुनने वाले स्तब्ध और विचलित थे। एक गहरा सन्नाटा था, जब उसने बोलना बंद किया। महिलाओं की आँखों में आँसू थे और पुरुष भी खाँसते हुए रुमाल ढूँढ रहे थे।…
मुझे कोई संदेह नहीं है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित लोगों की जूरी बनाई जाती और लोगों को गोडसे पर फैसला देने को कहा जाता तो उन्होंने भारी बहुमत से गोडसे को ‘निर्दोष’ करार कर दिया होता ।
गोडसे का ब्यान सुनने के बाद मैं उन्हें फांसी की सज़ा नहीं देना चाहता था लेकिन मैं सरकार और प्रशासन के दबाव में मजबूर था । मुझे पता है कि गोडसे को फांसी की सज़ा देकर मैंने जो पापकर्म किया है उस के कारण यमराज के घर एक भयंकर सज़ा मेरा इंतजार कर रही है। मैंने एक निर्दोष और महान देशभक्त को फांसी की सज़ा दी थी जिसके लिए भगवान मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा।”
हिंदुस्तान में सनातनिओं के प्रति कांग्रेसिओं की 'महान' 'उपलब्धिओं' तथा काले कारनामों के बारे में सभी सनातन धर्मावलम्बियों ज्ञात होना चाहिए...
अंधाधुंध कांग्रेस की आलोचना करते जाना ठीक नहीं। उपलब्धियां भी देखिए।🙏
कौन कहता है कि कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में 'सनातन हिन्दुओं के बारे में' 'कुछ काम' नहीं किया है। 'काम' तो बहुत किया है लेकिन केवल अपने मुसलमानों भाइयों के लिए ही किया है...
जैसे
• पाकिस्तान बनाया, केवल मुसलमानों के लिए,
• बांग्लादेश बनाया केवल मुसलमानों के लिए,
• कश्मीर में धारा 370 को लागू किया केवल मुसलमानों के लिए,
• अल्पसंख्यंक बिल बनाया केवल मुसलमानों के लिए,
• मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया केवल मुसलमानों के लिए,
• अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया केवल मुसलमानों के लिए,
• वक़्फ़ बोर्ड बनाया, केवल मुसलमानों के लिए,
• अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बनाया केवल मुसलमानों के लिए,
• हिंदुस्तान का बंटवारा धार्मिक आधार पर किया केवल मुसलमानों के लिए,
• Places of Worship Act बनाया मुसलमानों के लिए,
• Anti Communal Violence Bill दो बार संसद में पेश किया लेकिन भला हो BJP का कि ये Bill संसद में पास नहीं होने दिया, इस बिल को भी कांग्रेस pass करवा रही थी केवल मुसलमानों के लिए.
और कहीं अगर यह बिल पास हो गया होता तो हिंदुओं को ख़त्म करने में मात्र 10 साल ही लगते. (अगर किसी को कोई शक शुबह हो तो Google पर जा कर सर्च करके पढ़ ले)।
• देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी थी कांग्रेसिओं की।
और हिंदूओं को सिर्फ आरक्षण का झुनझुना देना था ताकि हिंदू समाज सदा आपस में लड़ता रहे और कभी गजबा-ए-हिन्द द्वारा अपने इस्लामीकरण को समझ ही न पाये...
हिंदूओं को दोयम दर्जे का नागरिक (second rate citizen) बनाने के लिए - हिंदू कोड बिल लाई , वो भी केवल मुसलमानों के लिए,
कभी - कभी मन करता है कि पोस्ट ही ना करूं... फिर ख्याल आता है कि पढ़ेगा भारत, तभी तो ग़द्दारों की छातीे पर चढ़ेगा भारत।
✊🚩
आगे forward करें ताकि हिन्दू भाइयों का पता चल जाए कि कांग्रेस उनके लिए कितनी गहरी खाइयां खोद कर उन्हें दफ़्न करने का बन्दोबस्त कर रही थी।
कृपया आगे forward करें।
जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।
चारधाम की यात्रा🌹
पता नही किसने ये पोस्ट लिखा है आपके आंसू आ जाएंगे । पूरी पोस्ट की एक लाइन एक भाई ने अपनी बहनों से कहा चार धाम की यात्रा का समय आ गया है .., जरूर पढ़ें ...
"मेरी छोटी बुआ...!"
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा मुंबई वाली बुआ जी की राखी के कूरियर का इन्तेज़ार रहता था.
कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी.
तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.
इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने.
इंदौर और जोधपुर वाली दोनों बुआ जी ने भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे.
बस बाड़मेर वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी
पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट.*
मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर अपनी बहनों की भेजी राखियां और तोहफे देख लें...
पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और लैपटॉप की बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे.
"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...
मम्मी ने पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...
"जया का लिफाफा दिखाना जरा...
पापा जया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तेज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे....
जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था.
विवाह के तुरंत बाद देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था.
तबसे फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे .
बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी.
इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...
जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...
'गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर बाड़मेर उसे बगैर बताए जाएंगे...
"जया दीदी के घर..!!
मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी...
आप को पता है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...
हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी.
पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है...
रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली पैसेंजर से हम सब बाड़मेर पहुँच गए थे.
बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं....
बुआ उम्र में सबसे छोटी थी पर तंग हाली और रोज की चिंता फिक्र ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....
एकदम पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं...
बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का कोई ज़वाब नहीं था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था.
बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी कुछ क्षण देखे जा रहे थे...
पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी.
हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी.
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे.
अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था...
वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है...
बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था....
पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है...
अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था...
हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे.....
एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...
पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था.....
"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ?
सब ठीक है न...?
बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...
'आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..
तो बस आ गए हम सब...
पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था.....
"भाभी आओ न अंदर....
मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...
जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था
"जया तुम बस बैठो मेरे पास. चाय नास्ता गायत्री देख लेगी."
हमलोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे......
मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी...
उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....
बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.
राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....
शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था
नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.
न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....
धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....
पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....
बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी
मिठाई का डब्बा रख लिया था
जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा
सभी आश्चर्यचकित थे...
" दस मिनट रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....
तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....
जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.
नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...
बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..
पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.
जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....
कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...
सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...
सबने पापा को राखी बांधी....
ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...
रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....
फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....
अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.
वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.
बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...
जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी..
मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था
बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो पापा घबरा गए थे...
सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....
पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..
पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....
और आज तक किसी से कही भी नही थीं...
आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!
अपनों का ध्यान रखें।
जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌸सोच बदलेंगे तो जग बदलेगा।🌸
होनी बहुत बलवान है - एक पौराणिक कथा
होनी बहुत बलवान है
आज एक पौराणिक कथा
अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उन के लड़के जनमेजय राजा बने।
एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे। बातों ही बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से वेदव्यास जी से कहा.. कि,"जहां आप समर्थ थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य कुलगुरू कृपाचार्य जी, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे.....फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए और देखते-देखते अपार जन-धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता"।
अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द सुन कर भी, व्यास जी शांत रहे।
उन्होंने कहा," पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतनी सामर्थ्य थी कि वे युद्ध को रोक सकते थे।
जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला,"मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता है, मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए...मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता"।
व्यास जी ने कहा,"पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन...."।
कुछ वर्ष बाद तू काले घोड़े पर बैठकर शिकार करने जाएगा दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचेगा...वहां तुम्हें एक सुंदर स्त्री मिलेगी.. जिसे तू महलों में लाएगा, और उससे विवाह करेगा। मैं तुम को मना करूँगा कि ये सब मत करना लेकिन फिर भी तुम यह सब करोगे। इस के बाद उस लड़की के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा..। मैं तुम को आज ही चेता कर रहा हूं कि उस यज्ञ को तुम वृद्ध ब्राह्मणो से कराना.. लेकिन, वह यज्ञ तुम युवा ब्राह्मणो से कराओगे.... और..
जनमेजय ने हंसते हुए व्यासजी की बात काटते हुए कहा कि,"मै आज के बाद काले घोड़े पर ही नही बैठूंगा..तो ये सब घटनाऐ घटित ही नही होगी।
व्यासजी ने कहा कि,"ये सब होगा..और अभी आगे की सुन...,"उस यज्ञ मे एक ऐसी घटना घटित होगी....कि तुम ,उस रानी के कहने पर उन युवा ब्राह्मणों को प्राण दंड दोगे, जिससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा...और..तुझे कुष्ठ रोग होगा.. और वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सको तो रोक लो"।
वेदव्यास जी की बात सुनकर जन्मेजय ने एहतियात वश शिकार पर जाना ही छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया तो उसे शिकार पर जाने की बलवती इच्छा हुई। उस ने सोचा कि काला घोड़ा नहीं लूंगा.. पर उस दिन उसे अस्तबल में काला घोड़ा ही मिला। तब उस ने सोचा कि..मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर गया और समुद्र तट पर पहुंचा वहां पर उसने एक सुंदर स्त्री को देखा, और उस पर मोहित हुआ। जन्मेजय ने सोचा कि इसे लेकर महल मे तो जाउंगा....लेकिन शादी नहीं करूंगा।
परंतु, उसे महलों में लाने के बाद, उसके प्यार में पड़कर उस से विवाह भी कर लिया। फिर रानी के कहने से जन्मेजय द्वारा यज्ञ भी किया गया। उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण ही, रक्खे गए।
किसी बात पर युवा ब्राह्मण...रानी पर हंसने लगे। रानी क्रोधित हो गई ,और रानी के कहने पर राजा जन्मेजय ने उन्हें प्राण दंड की सजा दे दी.., फलस्वरुप उसे कोढ हो गया।
अब जन्मेजय घबरा गया.और तुरंत व्यास जी के पास पहुंचा...और उनसे जीवन बचाने के लिए प्रार्थना करने लगा।
वेदव्यास जी ने कहा कि,"एक अंतिम अवसर तेरे प्राण बचाने का और देता हूं......., मैं तुझे महाभारत में हुई घटना का श्रवण कराऊंगा जिसे तुझे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सुनना है..., इससे तेरा कोढ् मिटता जाएगा।
परंतु यदि किसी भी प्रसंग पर तूने अविश्वास किया.., तो मैं महाभारत का प्रसंग रोक दूंगा..,और फिर मैं भी तेरा जीवन नहीं बचा पाऊंगा...,याद रखना अब तेरे पास यह अंतिम अवसर है।
अब तक जन्मेजय को व्यासजी की बातों पर पूरा विश्वास हो चुका था, इसलिए वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करने लगा।
व्यासजी ने कथा आरम्भ करी और जब भीम के बल के वे प्रसंग सुनाऐ ....,जिसमें भीम ने हाथियों को सूंडों से पकड़कर उन्हें अंतरिक्ष में उछाला...,वे हाथी आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं....,तब जन्मेजय अपने आप को रोक नहीं पाया,और बोल उठा कि ये कैसे संभव हो सकता है। मैं नहीं मानता।
व्यास जी ने महाभारत का प्रसंग रोक दिया....और कहा..कि,"पुत्र मैंने तुझे कितना समझाया...कि अविश्वास मत करना...परंतु तुम अपने स्वभाव को नियंत्रित नहीं कर पाए। क्योंकि यह होनी द्वारा निश्चित था"।
फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आवाहन किया..और वे हाथी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति में आकर नीचे गिरने लगे.....तब व्यास जी ने कहा, यह मेरी बात का प्रमाण है"।
जितनी मात्रा में जन्मेजय ने श्रद्धा विश्वास से कथा श्रवण की,
उतनी मात्रा में वह उस कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ परंतु एक बिंदु रह गया और वही उसकी मृत्यु का कारण बना।
सार :-
पहले बनती है तकदीरे फिर बनते हैं शरीर।
कर्म हमारे हाथ मे है...लेकिन उस का फल हमारे हाथों में नहीं है।
गीता के 11 वें अध्याय के 33 वे श्लोक मैं श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं,"उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो केवल निमित्त बना है।
होनी को टाला नहीं जा सकता लेकिन नेक कर्म व ईश्वर नाम जाप से होनी के प्रभाव को कम किया जा सकता है अर्थार्थ रोग आएंगे परंतु पीड़ा नहीं होगी।
अगर आपको श्रीमदभागवत गीता का यह प्रसंग अच्छा लगा हो तो आप दो और लोगों को जरूर शेयर करें आपको पुण्य मिलेगा लाभ के भागीदार बनेंगे , 💐जय श्री राम 💐रोशनलाल वैष्णव*🙏🏻🙏🏻
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