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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

तो वो है माँ का प्यार

एक जवान बेटा अपनी बुढी माँ के पास बेठा था...!!
उसकी माँ ने एक पेड के ऊपर बैठे पक्षीकी तरफ इशारा करके पुछा: बेटा..! वो क्या है..?
बेटा: माँ वो कौवा है..
...
एक बार फिर माँ पुछा: बेटा वो क्या है...??
बेटा: माँ वो कौवा है कौवा..!
एक बार फिर माँ ने पुछा: बेटा वो क्या है...???
बेटा गुस्सा होकर: माँ तु बुढी हो गई हो...!
अब तुम्हारे दिमाग को जंग लग गया है..!
तुम पागल हो गई हो..
मैनेँ कितनी बार बोला की वो कौवा है..!!
फिर भी तुम पुछती जा रही हो..??

माँ की आँखो से आँसु निकल आये..!!!
फिर माँ ने आँसु पोछकर भारी आवाज मेँ
बोली: बेटा..! जब तु छोटा था ना तो,
तुने मुझे 30 बार पुछा कि माँ वो क्या है...?
तो मैनेँ तीस बार तेरा सर चुमकर कहा बेटा वो कौवा है
कौवा है..कौवा है...!!!

मित्रों, दुनिया मेँ सबसे मीठा कोई है तो वो है माँ का प्यार और सबसे कडवा माँ के आँसु इस बात का हमेशा ध्यान रखना....!!!

नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

14 फ़रवरी 1931

14 फ़रवरी 1931 आज ही के दिन लाहौर में शहीदे आजम भगत सिहं,सुखदेव,राजगुरु को वहां अदालत में फाँसी सज़ा सुनाई गई ।और 37 दिन बाद 23 मार्च 1931 उनको फाँसी पर चढ़ा दिया गया ।
भारत माता के ये 3 पुत्र जो भरी जवानी भारत माता की रक्षा के लिये फाँसी चढ़ गए ।। उनकी शहादत को पुरे भारत की और से शत शत नमन ।।


मानसिक गुलाम और ईसाईयत की और खीचें जा रहे लोग । और लोगो को गुमराह करने  वाला मीडिया ,ये बोलीवुड,और सरकारे आपको कभी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आने देगीं । आपका केवल शरीर ही भारतीय रह जाए और आत्मा पुरी अग्रेजो जैसी
हो जाए इसलिए वो आपको को ऐसी बात क़भी नहीं बतायेगें ज़ो आपमें देशभगती पैदा कर दे ।। इसलिए आज सारा दिन वो वैलनटाईन डे के ही गुण गायेगें ।


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जागो भारतीय जागो !!

हिंदी अति सरल और मीठी भाषा हैं l कुछ लोगों की अंग्रेजी मानसिकता जो रहते हिंदुस्तान में हॆं,लेकिन स्वतंत्रता के इतने साल बाद भी मानसिक रुप से अभी भी अंग्रेजी के गुलाम हॆं ।वेशर्म इतने कि अपनी इस गुलाम मानस्किता पर अभी भी उन्हें नाज हॆ ।

सच तो यह है कि हिन्दी भारत की आत्मा, श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हुई है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ।

जापान, चीन, रूस जैसे विकसित देशों ने अपनी भाषा को महत्त्व दिया है और निरन्तर प्रगतिमान हैं। तभी तो देश के बाहर भी हिंदी ने अपना स्थान बना सकने में सफलता हासिल किया है l नेपाल , मोरिशोस, यहाँ तक चाइना और रसिया में भी हिंदी अच्छी तरह बोली और पढ़ी जाती है l यह अलग बात हैं कि अपने ही कुछ लोग है जो अपनी ही भाषा की इज्जत नहीं करते l

दुर्भाग्य है इस भारत का कि प्रो. एम.एम. जोशी के शोध ग्रन्थ के बाद भौतिक विज्ञान में एक भी दरजेदार शोधग्रंथ हिन्दी में नहीं प्रकाशित हुआ। जबकि हास्यास्पद बाद तो यह है कि अब संस्कृत के शोधग्रंथ भी देश के सैकड़ों विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में प्रस्तुत हो रहे है।

जागो भारतीय जागो !! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!


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कैसे मनायें 'मातृ-पितृ पूजन दिवस'?

कैसे मनायें 'मातृ-पितृ पूजन दिवस'? * माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बैठायें । * बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें । * तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प अर्पण करें तथा फूलमाला पहनायें । * माता-पिता भी बच्चे-बच्चियों के माथे पर तिलक करें एवं सिर पर पुष्प रखें । फिर अपने गले की फूलमाला बच्चों को पहनायें । * बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरु में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ संकल्प करें । * बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता के एवं माता-पिता बच्चों के सिर पर अक्षत एवं पुष्पों की वर्षा करें । * तत्पश्चात् बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करें । * चित्र-अनुसार बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता को झुककर विधिवत् प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतान को प्रेम से सहलायें । संतान अपने माता-पिता के गले लगे । बेटे-बेटियाँ माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों में ईश्वरीय अंश देखें । * इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें : "मैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी । मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जानेवाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी ।" * इस समय माता-पिता अपने बच्चों पर स्नेहमय आशीष बरसायें एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें : "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो । तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरु की भक्ति से महक उठे । तुम्हारे कार्यों में कुशलता आये । तुम त्रिलोचन बनो - तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो । तुम पुरुषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे ।" * बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को 'मधुर प्रसाद' खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें । * बालक गणेशजी की पृथ्वी परिक्रमा, भक्त पुंडलिक की मातृ-पितृ भक्ति, श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति - इन कथाओं का पठन करें अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनाये और अन्य लोग श्रवण करें । * माता-पिता 'बाल संस्कार', 'दिव्य प्रेरणा-प्रकाश', 'तू गुलाब होकर महक', 'मधुर व्यवहार' - इन पुस्तकों को अपनी क्षमतानुरूप बाँटें-बँटवायें तथा प्रतिदिन थोडा-थोडा स्वयं पढने का व बच्चों से पढाने का संकल्प लें ।
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वेलेंनटाईंन डे ( १४ फ़रवरी )

वेलेंनटाईंन डे ( १४ फ़रवरी ) हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है , मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया की आखिर साल के ३६५ दिनों में सिर्फ एक दिन ही प्यार करने का क्या तुक है , और बाकी के ३६४ दिन किस लिए बनाये गए हैं , क्या रोने और कलपने के लिए.....????? प्रेम के कई रूप हैं, विभिन्न रिश्ते के साथ विभिन्न नाम। सत्य, निष्ठा, आस्था, भरोसा सब है, लेकिन लादा गया समझौता नहीं है प्रेम। प्यार एक रूहानी रिश्ता है, मगर आज के ज्यादातर लड़के-लड़कियों ने जिस्मानी रिश्ते को प्यार की संज्ञा देकर राख से पवित्र रिश्ते को अपवित्र कर दिया। प्यार में अहसास का होना लाजमी है, जब तक अहसास है तब तक प्यार है, नहीं तो प्यार केवल जिस्मानी रिश्ते तक सीमित होकर दम तोड़ देगा। भारत में वेलेंटाइन डे केवल प्रेमियों के साथ प्यार का इजहार शब्द से जुड़ा हुआ है। प्यार शब्द इस देश में केवल लगता है मोहब्बत से ही है जबकि प्यार की विभिन परिभाषाएँ हैं। इसे केवल प्रेमियों के साथ अधिक क्यों जोड़ रखा हैं....? बिना प्रेम के तो जीवन ही बेकार और नीरस हो जायेगा . इस लिए भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ जीवन का सार ही प्रेम हो , वंहा साल के ३६५ दिनों में से सिर्फ एक दिन १४ फ़रवरी को प्रेम दिवस का नाम देना सिवाय अन्धानुकरण के अलावा और कुछ नहीं है. इस लिए पूरे साल , हर पल प्रेम , स्नेह को एक दूसरे से साझा कीजिये , और भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने माता , पिता , भाई बहन और बजुर्गों को प्यार दीजिये और लीजिये . प्यार का मतलब सिर्फ प्रेमी – प्रेमिका के बीच का प्यार नहीं है , इसे सर्वंगीण और समग्र रूप से देखे जाने की ज़रूरत है ________ "प्रेमदिवस मनाओ, अपने माता-पिता का सम्मान करो और माता-पिता बच्चों को स्नेह करें" "करोगे न बेटे ऐसा..............?????" सुन री राधा प्यारी इस राह को तो बस तू, जान से प्यारी______________ मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है कागज की हवेली है , बारिश का ज़माना है क्या शर्त -ए -मोहब्बत है , क्या शर्त -ए -ज़माना है आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है कश्ती भी पुरानी है , तूफ़ान भी आना है समझे या न समझे वो अंदाज़ -ए -मोहब्बत का भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाना है भोली सी अदा , कोई फिर इश्क की जिद पर है फिर आग का दरिया है और डूब ही जाना है ये इश्क नहीं आसां , इतना तो समझ लीजिये एक आग का दरिया है , और डूब के जाना है __________________
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क्या भारत में सभी सरकारी स्कूल (विद्यालय) बन्द कर देना चाहिए ?

क्या भारत में सभी सरकारी स्कूल (विद्यालय) बन्द कर देना चाहिए ?आज भारत में जितने भी बड़े नेता/अधिकारी/सभी सरकारी शिक्षक हैं उन सभी के बच्चे या तो विदेशों में पड़ रहे हैं या प्राइवेट स्कूलों में ।
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आजकल सभी सरकारी शिक्षक(96%) अपने बच्चों को तो निजी विद्यालय (प्राइवेट स्कूल) में पड़ना चाहते है लेकिन नोकरी सरकारी स्कूल (विद्यालय)में करना चाहते है क्यूँ ?

आज सरकारी स्कूलों की जो हालत बद से बदतर होती जा रही हैं। किसी प्रेरणा या जवाबदेही के अभाव में सरकारी स्कूलों में शिक्षण इतना दयनीय हो गया है कि शहरी झुग्गी बस्तियों के कई गरीब मां-बाप भी अपने बच्चो को मुफ्त में सरकारी स्कूलों में पढाने की जगह फीस देकर निजी स्कूलो में पढाना बेहतर समझ रहे है।

कर्तव्य-निर्वाह न करने वाले शिक्षकों पर कार्यवाही की जाए।¦

सरकारी स्कूलों (विद्यालय) में निशुल्क पुस्तकों से लेकर, ड्रेस, मध्याह्न भोजन, साइकिल सहित अन्य प्रकार की सुविधा प्रदान कर रही है। लेकिन बच्चे हैं कि लोभ-दबाव में यदि नाम लिखा भी लिया तो शीघ्र ही उनका आना बंद होने लगा। आखिर क्यों?

सब प्राइवेट स्कूलों में चले गए और जाए भी क्यों नहीं साब सरकारी स्कूल का तो भटटा बैठ गया है बच्चों की पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पा रही है।

क्या निजी स्कूल (विद्यालय)सरकारी स्कूलों से बेहतर हैं ? देश के विभिन्न भागों के शोधकर्ताओं ने यह साबित कर दिया है कि प्रति छात्र पर होने वाला खर्च सरकारी स्कूल की तुलना में कहीं कम है। एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि निजी और गैर -वित्तीय सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों का वेतन सरकारी स्कूलों की तुलना में 5-7 गुना कम है।निजी स्कूल बजट के हिसाब से भी सस्ते हैं।

सरकारी मतलब घोटाला, ग़ैर ज़िम्मेदारी, कोई जवाबदेही नहीं । कोई भी माँ- बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कुल (विद्यालय)में नहीं भेजता, सब प्राइवेट स्कूलों (विद्यालय) कि तरफ भाग रहें है ।

अब सरकारी स्कूल में किसी अफ़सर, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, डॉक्टर और ऐसे ही किसी ऐसे व्यक्ति के बच्चे नहीं पढ़ते जो उच्च या मध्यवर्ग में आते हैं। जो महंगे निजी स्कूल में नहीं जा सकते वो किसी सस्ते निजी स्कूल में जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल में नहीं जाते । भारत में सरकारी स्कूलों की हालत हद से ज्यादा दयनीय है।भारत में सभी सरकारी स्कूल (विद्यालय) बन्द कर देना चाहिए

! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!


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सोमवार, 23 जनवरी 2012

बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार.......


बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार.......

बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार प्रचलित है कि इसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब आप को और कोई भी उपाय नहीं समझ नहीं आ रहा हो और आप दुखों की पराकाष्ठा पार कर चुके हो...... क्योंकि इसमे श्री राम की सौगंध लगती है हनुमानजी को... .... क्या इसमे कुछ तथ्य है....????

एक वीतरागी सन्त महाराज ने बताया था कि बजरंग बाण के पाठ से कार्यसिद्धि तो हो जाती है परन्तु राम जी की दुहाई से हनुमान जी महाराज बहुत व्यथित होते हैँ, इसलिये इस पाठ को नहीँ करना चाहिये ।
सच्चा सेवक वही है जो अपने स्वामी को सँकोच में न डाले ।

सीता राम चरित अति पावन l मधुर सरस अरु अति मनभावन | |
जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ।।
नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सत कोटि अपारा ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।

बजरंग बाण :-
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग.....

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
बजरंग बाण ध्यान.....

श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

*****बोल बजरंग बली की जय*****


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चाणक्य के 15 सूक्ति वाक्य ----


चाणक्य के 15 सूक्ति वाक्य ----

1) "दूसरो की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग... करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी."

2)"किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए ---सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं."

3)"अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे डंस भले ही न दो पर डंस दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए. "

4)"हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है --यह कडुआ सच है."

5)"कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो ---मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा ?"

6)"भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला करदो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो ."

7)"दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है."

8)"काम का निष्पादन करो , परिणाम से मत डरो."

9)"सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है."

10)"ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ."

11) "व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं."

12) "ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे. सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं ."

13) "अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो. छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो .सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो.आपकी संतति ही आपकी सबसे
अच्छी मित्र है."

14) "अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक सामान उपयोगी है ."

15) "शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है. शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर हैं ."

1) "दूसरो की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग... करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी."

2)"किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए ---सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं."

3)"अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे डंस भले ही न दो पर डंस दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए. "

4)"हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है --यह कडुआ सच है."

5)"कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो ---मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा ?"

6)"भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला करदो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो ."

7)"दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है."

8)"काम का निष्पादन करो , परिणाम से मत डरो."

9)"सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है."

10)"ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ."

11) "व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं."

12) "ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे. सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं ."

13) "अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो. छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो .सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो.आपकी संतति ही आपकी सबसे
अच्छी मित्र है."

14) "अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक सामान उपयोगी है ."

15) "शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है. शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर हैं ."


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विशालकाय शिवलिंग


बन्दूक की गोली के समान इतने बड़े आकार में दिखने वाला ये चित्र एक सामान्य चित्र नहीं है| ये एक विशालकाय शिवलिंग है, ये चित्र १९०४ में बारामुला, जम्मू कश्मीर में किया गया था जो की ये दर्शाता है की यहाँ शिव उपसना का बड़ा केंद्र था| इतिहासकारों के अनुसार , चौथी शताव्दी के आसपास बारामुला से लेकर बजिरिस्तान(वर्तमान में पकिस्तान में) तक एक प्रसिद्ध शिव उपासक केंद्र रहा है| काफी संख्या में पुराने शिवलिंग अभी भी झेलम में पाए जाते है

ये चित्र (b/w) “A Vision of Splendour: Indian Heritage in the Photographs of Jean Philippe Vogel, 1901–1913 by Gerda Theuns-de Boer” से लिया गया है

वर्तमान में भी ये शिवलिंग उसी प्रकार वही स्थित है परन्तु ना तो वहा कोई श्रदालु है ना सरकारी या गैर सरकारी संस्था जो इसको सही रूप में स्थापित कर सके

जय भोले नाथ ..जय शिव शम्भू


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रविवार, 22 जनवरी 2012

एक सैनिक की व्यथा ---

एक सैनिक की व्यथा ---
एक भारतीय सियाचिन सैनिक का अपनी दिवंगत माँ को लिखा खत-

प्रणाम माँ,
"माँ" बचपन में मैं जब भी रोते - रोते सो जाया करता था तो तू चुपके से मेरे सिरहाने खिलौने रख दिया करती थी और कहती थी की ऊपर से एक परी ने आकर रखा है और कह गई है की अगर मैं फिर कभी रोया तो खिलौने नहीं देगी! लेकिन इस मरते हुए देश का सैनिक बनके रो तो मैं आज भी रहा हूँ पर अब ना तू आती है और ना तेरी परी। परी क्या....... यहाँ ढाई हज़ार मीटर ऊपर तो परिंदा भी नहीं मिलता।
मात्र 14 हज़ार के लिए मुझे कड़े अनुशासन में रखा जाता है, लेकिन वो अनुशासन ना इन भ्रष्ट नेताओं के लिए है और ना इन मनमौजी देशवासियों के लिए।
रात भर जागते तो हम भी है लेकिन अपनी देश की सुरक्षा के लिए लेकिन वो जागते हैं तो
"लेट नाईट पार्टी" लिए।
इस -12 डिग्री में आग जला के अपने को गरम करते है लेकिन हमारे देश के नेता हमारे ही पोशाको, कवच, बन्दूको, गोलियों और जहाजों में घोटाले करके अपनी जेबे गरम करते है।
आतंकियों से मुठभेड़ में मरे हुए सैनिक की संख्या को न्यूज़ चैनल में नहीं दिखाया जाता लेकिन सचिन के शतक से पहले आउट हो जाने को देश में राष्टीय शोक की तरह दर्शाया जाता है।
हर चार-पांच सालो में हमे एक जगह से दूसरे जगह उठा के फेंक दिया जाता है लेकिन यह नेता लाख चोरी कर लें, बार बार उसी विधानसभा - संसद में पहुंचा दिए जाते है।
मैं किसी आतंकी को मार दूँ तो पूरी राजनीतिक पार्टियां वोट के लिए उसे बेकसूर बना के मुझे कसूरवार बनाने में लग जाती है लेकिन वो आये दिन अपने अपने भ्रष्टाचारो से देश को आये दिन मारते है, कितने ही लोग भूखे मरते है, कितने ही किसान आत्महत्या करते है, कितने ही बच्चे कुपोषण का शिकार होते है लेकिन उसके लिए इन नेताओं को जिम्मेवार नहीं ठहराया
जाता ?
आज अल्पसंख्यको के नाम पर आरक्षण बांटा जा रहा है लेकिन आज तक मरे हुए शहीद सैनिक की संख्या के आधार पर कभी किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिया गया ?

मैं दुखी हूँ इस मरे हुए संवेदनहीन देश का सैनिक बनके। यह हमे केवल याद करते है 26 जनवरी और 15 अगस्त को। बाकी दिन तो इनको शाहरुख़, सलमान, सचिन, युवराज की फ़िक्र रहती है।
हमारी स्थिति ठीक वैसे ही पागल किसान की तरह है जो अपने मरे हुए बैल पर भी कम्बल डाल के खुद ठंड में ठिठुरता रहता है।

मैंने गलती की इस देश का रक्षक बनके।
तू भगवान् के ज्यादा करीब है तो उनसे कह देना की अगले जनम मुझे अगर इस देश में पैदा करे तो सैनिक ना बनाए और अगर सैनिक बनाए तो इस देश में पैदा ना करे।
यहाँ केवल परिवारवाद चलता है, अभिनेता का बेटा ज़बरदस्ती अभिनेता बनता है और नेता का बेटा ज़बरदस्ती नेता।

प्रणाम-
लखन सिंह ( मरे हुए देश का जिन्दा सैनिक )
भारतीय सैनिक सियाचिन।


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