एक ज़माना था जब Oyo rooms नहीं हुआ करते थे।
उन दिनों हमारे एक परिचित को इश्क हुआ। इश्क परवान चढ़ा तो प्रेमिका से हर रोज़ मिलने की इच्छा भी हिलोरें मारने लगी।
बन्धु कभी प्रेमिका से पार्क में मिलता। कभी किसी फ़ास्ट फूड रेस्तरां में मुलाकात होती।
परंतु पार्क हो या रेस्तरां.....एक चीज़ की कमी खलती थी।
निजता नहीं थी।
Privacy नहीं थी।
बन्धु ने दिमाग के घोड़े दौड़ाये।
बहुत सोच विचार के पश्चात उसका ध्यान हमारे एक सहपाठी पर गया जो अपने माँ बाप की इकलौती सन्तान था और जिसके माता पिता गवर्मेंट जॉब में थे।
यानि ठीक 8:30 बजे माता पिता घर से ऑफिस की ओर प्रस्थान कर जाते थे।
बन्धु ने सहपाठी से आग्रह किया के माता पिता के जाने के पश्चात वह कुछ क्षणों के लिये उसे और प्रेमिका को घर में मिलने की इजाज़त दे दे।
सहपाठी भोला भाला बालक था। वह बन्धु की चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया।
थोड़ी सी ना - नुकुर के पश्चात सहपाठी ने बन्धु का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
प्रेमी प्रेमिका सहपाठी के घर मिलने लगे।
एकांत यानि privacy के क्षण भी मिले।
इन्ही क्षणों में बैकग्राउंड में "रूप तेरा मस्ताना ....प्यार मेरा दीवाना" गीत बजता रहा और जो अपेक्षित था ...वह हो गया।
कांड हो गया।
अब हो गया सो हो गया।
आदरणीय मुलायम सिंह जी ने ही कहा है के लौंडों से जवानी में गलती हो जाती है।
बात बढ़ गयी। परिवारों तक पहुंच गई।
परिवारों के बीच पंचायत हुई जिसमें सर झुकाये प्रेमी प्रेमिका मौजूद थे।
सहपाठी महोदय को भी समन भेजे गये क्योंकि मौका ऐ वारदात पर प्रेमी प्रेमिका के अलावा हर वक्त मौजूद रहने वाले सहपाठी महोदय ही थे।
दोनों पक्षों में गर्मा गर्मी हुई। फिर प्रेमी के पक्ष से एक उम्र दराज़ आदमी ने सहपाठी महोदय से पूछा के जब सारा कांड हो रहा था तो वह कहां था।
सहपाठी ने बड़े ही भोले स्वभाव से कहा के ....."अंकिल मुझे क्या पता दोनों गड़बड़ कर रहे थे। मुझे तो लगा ....बातचीत कर रहे थे"
अंकिल उठे और उन्ने सहपाठी के कान पर पहले तो 2-3 कड़ाकेदार थप्पड़ रसीद किये।
फिर उन्ने उसे पेट में एक ज़बरदस्त घूंसा रसीद किया। पेट पर मुक्का पड़ते ही जैसे ही वह झुका उसकी पीठ पर एक ज़बरदस्त चमाट रसीद कर दी।
बमुश्किल उसे अंकिल के कहर से छुड़वाया। गुस्से से लबरेज़ अंकिल कहते रहे के साले हमें *** समझता है। बंद कमरे में सब गड़बड़ होती रही और तू अब हैरान होकर कह रहा है के तुझे लगा के प्रेमी प्रेमिका बातचीत कर रहे थे।
ऐसा बेहूदा हैरानी भरा चेहरा बना रहा है जैसे कुछ पता ही ना हो।
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कानपुर के "समाजवादी इत्र व्यापारी" के घर 100-200 करोड़ पकड़े जाने पर कुछ ऐसी प्रतिक्रिया आ रही हैं जैसे कुछ अजीबोगरीब हो गया हो।
इसमें हैरानी की क्या बात है?
हर नेता के पास एक "इत्र व्यापारी" है।
हैरान तो लोग ऐसे हो रहे हैं जैसे पॉलिटिक्स और ब्लैक मनी के प्रेम का ज्ञान ही ना हो।
बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?
नेता और भ्रष्टाचार ....प्रेमी और प्रेमिका हैं। दोनों कमरे में बंद हैं।
कांड हो जाता है और फलस्वरूप 100-200 करोड़ रुपये गर्भ में ठहर जाते हैं।
बताओ इसमें हैरानी की क्या बात है?
यह तो प्राकृतिक है....नैचुरल है।
जाते जाते एक और बात कह दूं......इसलिये कह दूं के सक्रिय राजनीति को मैंने बहुत करीब से देखा है।
सक्रिय राजनीति में बहुत कम लोग बचे हैं जो .....इत्र नहीं लगाते।
वर्ना आज के दौर में महकने का शौक किसे नहीं हैं.....😊....!
चाहें कोई कितना भी इत्र लगा ले....!!
2022 में आएंगे तो योगी ही.......😎😎
【रचित】