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मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के घटिया प्रॉडक्ट और लूट


 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के घटिया प्रॉडक्ट और लूट




पूरी पोस्ट नहीं पढ़ सकते तो यहाँ देखें:
http://www.youtube.com/watch?v=EnN7cRuTUps

अमेरिका की एक कंपनी का एक उत्पाद है - 'विक्स'। भारत में हमने एक टीम बना के एक छोटा सा सर्वेक्षण किया ये जानने के लिए कि किसी भी केमिस्ट के काउंटर पर बिना डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्सन के सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा कौन सी है ? तो पता चला कि वो दवा है विक्स। गले की खिचखिच, तो विक्स ले लो, सर्दी, खांसी, जुकाम, तो विक्स ले लो, ऐसा धड़ाधड़ विज्ञापन ये करते हैं कि लोगों का दिमाग घूम जाता है और अकेला एक ब्रांड इस देश में सबसे ज्यादा बिक जाता है। फिर मैंने और हमारी टीम ने ये जानने की कोशिश की कि ये पता लगाओ कि ये कंपनी जो कि विक्स बनाती है, जिसका नाम है 'प्रोक्टर एंड गैम्बल', ये अमेरिकन कंपनी है, ये कंपनी इस विक्स को अमेरिका में बेचती है क्या ? और यूरोप के देशों में बेचती है क्या ? क्योंकि प्रोक्टर एंड गैम्बल का व्यापार दुनिया भर के देशों में है, 56 देशों में ये व्यापार करती है, तो पता चला कि अमेरिका में ये नहीं बिकता, फ़्रांस में नहीं बिकता, जर्मनी में नहीं बिकता, स्विट्ज़रलैंड में नहीं बिकता, स्वीडेन में नहीं बिकता, नार्वे में नहीं बिकता, आयरलैंड में नहीं बिकता, इंग्लैंड में नहीं बिकता।

किसी देश में उनका जो ब्रांड नहीं बिक रहा है वो भारत में उनका सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है और कंपनी को सबसे ज्यादा फायदा देती है। ये कंपनियाँ टेलीविजन के माध्यम से, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, अख़बारों के माध्यम से फिजूल की दवाएं भारत के बाजार में बेच लेती हैं। आप जानेंगे तो आश्चर्य करेंगे कि दुनिया भर के देशों में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून है कि दवाओं का विज्ञापन आप टेलीविजन पर, पत्र-पत्रिकाओं में, अख़बारों में नहीं कर सकते, लेकिन भारत में धड़ल्ले से हर माध्यम में दवाओं का विज्ञापन आता है और भारत में भी ये कानून लागू है, उसके बावजूद आता है। जब इससे सम्बंधित विभागों के अधिकारियों से बात कीजिये तो वो कहते हैं कि "हम क्या कर सकते हैं, आप जानते हैं कि भारत में सब संभव है"। तो ऐसी बहुत सारी फालतू की दवाएँ हजारों की संख्या में भारत के बाजार में बेचीं जा रही हैं।

विक्स नाम की दवा अमेरिका में बनाना और बेचना दोनों जुर्म है, अगर किसी डॉक्टर ने किसी को विक्स की प्रेस्क्रिप्सन लिख दे तो उस डॉक्टर को 14 साल की जेल हो जाती है, उसकी डिग्री छीन ली जाती है क्योंकि विक्स जहर है और ये आपको दमा, अस्थमा, ब्रोंकिअल अस्थमा (Bronchial Asthma) कर सकता है। इसीलिए दुनिया भर में WHO और वैज्ञानिकों ने इसे जहर घोषित किया और ये जहर भारत में सबसे ज्यादा बिकता है विज्ञापनों की मदद से। विक्स बहुत ज्यादा महंगी मिलती है उदाहरण के तौर पर 25 ग्राम 40 रूपये की, 50 ग्राम 80 रूपये की और 100 ग्राम 160 रूपये की मतलब 1 किलो विक्स की कीमत 1600 रुपया है।

विक्स 'पेट्रोलियम जेली' से बनता है जिसकी कीमत 60 -70 रूपये किलो है और विक्स की बिक्री में प्रोक्टर एंड गैम्बल कंपनी को (बीस हजार) 20000% से ज्यादा का मुनाफा है। ये मुनाफा आप की जेब से लूटा जा रहा है और सरकार इस घोटाले में शामिल है। सरकार ने लाइसेन्स दे रखा है, आँखे बंद कर रखी है और कंपनी देश को लूट रही है।

विडियो देखिये : http://www.youtube.com/watch?v=EnN7cRuTUps

वन्दे मातरम् !
जय राजीव दीक्षित जी, जय हिन्द

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :

 

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :

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दूध के साथ दही लें या नहीं? दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।
दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं? दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।
सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।
दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।
नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।
खाने के साथ छाछ लें या नहीं? छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।
दही और फल एक साथ लें या नहीं? फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।
आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनर्जी शरीर को नहीं मिल पाती।
दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं? दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
मछली के साथ दूध पिएं या नहीं? दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।
फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद? फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।
खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।
मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।
खाने के साथ पानी पिएं या नहीं? पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।
लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं? लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।
परांठे के साथ दही खाएं या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।
फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं? घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।
दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं? दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।
तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं? एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।
खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं? मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।
खाने के बाद चाय पिएं या नहीं? खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।
छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं? कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।
भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं? मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।

काला नमक के स्वास्थ्यवर्धक लाभ

 काला नमक के स्वास्थ्यवर्धक लाभ :



आयुर्वेद के अनुसार काला नमक अपने आहार में शामिल करने से शरीर के कई रोग दूर होते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हाई बीपी, डिप्रेशन और पेट की तमाम बीमारियों से मुक्ती दिलाता है क्योंकि इसमें 80 प्रकार के खनिज शामिल हैं।
अगर आप सुबह काला नमक और पानी मिला कर पीना शुरु कर दें तो आपको काफी स्वास्थ्य लाभ पहुंच सकता है। लोंगो को अभी पता नहीं है कि सादे नमक का बहुत ज्यादा प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकता है इसलिये अच्छा होगा कि आप उसे हटा कर काले नकम का सेवन कीजिये।
➡ कैसे बनाएं काला नमक वाला पानी :
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा छोटा चम्मच काला नमक मिलाइये। फिर इसे चम्मच से मिक्स कीजिये और 24 घंटे के लिये छोड़ दीजिये। उसके बाद जब सारा नमक पानी में घुल जाए तब इसे पी जाइये।
➡ काला नमक का पानी पिने के 13 अद्भुत फायदे :
पाचन दुरस्त करे : नमक वाला पानी मुंह में लार वाली ग्रंथी को सक्रिय करने में मदद करता है। पेट के अंदर प्राकृतिक नमक, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और प्रोटीन को पचाने वाले इंजाइम को उत्तेजित करने में मदद करता है। इससे खाया गया भोजन टूट कर आराम से पच जाता है।
मोटापा घटाए : यह पाचन को दुरस्त कर के शरीर की कोशिकाओं तक पोषण पहुंचाता है, जिससे मोटापा कंट्रोल करने में मदद मिलती है। समुंद्री नमक छोड़ कर आपको इस नमक को अपने आहार में शामिल करना चाहिये।
जोड़ों के दर्द में आराम दिलाए : मासपेशियों के दर्द और जोड़ों के दर्द से यह नमक आराम दिलाता है। आपको एक कपड़े में 1 कप काला नमक डाल कर उसे बांध कर पोटली बनानी है। इसके बाद उसे किसी पैन में गरम करें और उससे जोड़ों की सिकाई करें। इसे दुबारा गरम कर के फिर से दिन में दो बार सिकाई करें।
आंत की गैस से छुटकारा दिलाए : अगर गैस से छुटकारा पाना है तो एक कॉपर का बरतन गैस पर चढाएं, फिर उसमें काला नमक डाल कर हल्का चलाएं और जब उसका रंग बदल जाए तब गैस बंद कर दें। फिर इसका आधा चम्मच ले कर एक गिलास पानी में मिक्स कर के पियें।
सीने की जलन से मुक्ती : क्षारीय प्रकृति होने के नाते यह पेट में जा कर वहां बनने वाले एसिड को काटता है और सीने की जलन तथा एसिडिटी को ठीक करता है।
कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल करे : काला नमक खाने से रक्त पतला होता है जिससे वह पूरे शरीर में आराम से पहुंचता है। ऐसे में आपका हाई कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर ठीक होता है। हाइ बीपी है तो साधारण नमक की जगह पर खाएं काला नमक।
मसल स्पैजम और क्रैंप में आराम दिलाए : काला नमक में पोटैशिमय होता है जो कि हमारी मासपेशियों को ठीक से काम करने में मदद करता है। इसलिये काले नमक को रोजाना खाने में शामिल करें जिससे मसल स्पैजम और क्रैंप ना हो।
मधुमेह को कंट्रोल करे : रिसर्च मे पाया गया है कि काला नमक ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है।
शिशुओं के लिये भी अच्छा : काला नमक छोटे बच्चों के लिए सबसे अच्छा है। यह अपच और कफ की जमावट को सीने से हटाता है। अपने शिशु के भोजन में थोड़ा सा काला नमक रोजाना मिलाएं क्योंकि इससे उनका पेट भी ठीक रहेगा और कफ आदि से भी छुटकारा मिलेगा।
नींद लाने में लाभदायक : अपरिष्कृत नमक में मौजूदा खनिज हमारी तंत्रिका तंत्र को शांत करता है। नमक, कोर्टिसोल और एड्रनलाईन, जैसे दो खतरनाक सट्रेस हार्मोन को कम करता है। इसलिये इससे रात को अच्छी नींद लाने में मदद मिलती है।
रूसी से मुक्ती दिलाए : अगर आपको रूसी और बाल झड़ने की समस्या है तो काला नमक और टमाटर का जूस हफ्ते में एक दिन सिर में लगाएं। यह रूसी को दूर करेगा और बालों की ग्रोथ को भी बढ़ाएगा।
शरीर करे डिटॉक्स : नमक में काफी खनिज होने की वजह से यह एंटीबैक्टीरियल का काम भी करता है। इसकी वजह से शरीर में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया का नाश होता है।
त्वचा की समस्या : नमक में मौजूद क्रोमियम एक्ने से लड़ता है और सल्फर से त्वचा साफ और कोमल बनती है। इसके अलावा नमक वाला पानी पीने से एग्जिमा और रैश की समस्या दूर होती है। सौंदर्य के लिये बड़ा ही फायदेमंद है सेंधा नमक।

आयुर्वेद मे अमृत (सर्दी मे ईश्वर का वरदान) ज्योतिष्मति (मालकंगनी)

 

आयुर्वेद मे अमृत (सर्दी मे ईश्वर का वरदान)
ज्योतिष्मति (मालकंगनी)


पूरा समझने के लिए 2 बार पढे। लेख बहुत लम्बा है इसलिए इसे प्रिंट करवा कर रख ले,
यदि आज बाजार मे मिलने वाले जीतने भी टॉनिक है (च्यवन प्राश, होर्लिक्स, बोर्नविटा, बूस्ट, बॉडी बिल्डिंग के सप्लीमेंट्स आदि ) यदि उन सब को भी बराबर मे रख दिया जाए तो हजारो रुपए के ये टॉनिक मालकंगनी के सामने कुछ नहीं। सर्दी मे इसके समान टॉनिक दूसरा कोई नहीं है। गरीब के लिए सोना चांदी च्यवनप्राश से हजार गुना बेहतर है तो पढे लिखे मूर्ख के लिए होर्लिक्स से हजार गुणा गुणकारी। समस्या यह है कि आयुर्वेद के महर्षियों द्वारा बताए गए इस अमृत का कोई अधनंगी हीरोइन विज्ञापन नहीं करती। इसलिए पढे लिखे मूर्खो को गुण नहीं लगता। पढे लिखे धनपशु मानते है कि जब तक कोई औरत टेलीविज़न पर कपड़े उतार कर कुछ ना बेचे तब तक वह चीज बेकार है। ईश्वर ने सृष्टि मे निर्धनों के लिए भी अमृत का निर्माण कर रखा है। जैसे ईश्वर किसी के साथ भेदभाव नहीं करता उसी तरह ईश्वर का वरदान यह मालकंगनी भी अमीर गरीब सभी को लाभ पहुंचाती है।
इस लेख को लिखने मे मेरा वर्षो का अनुभव और परिश्रम लगा है। इसलिए फीस पर मेरा हक बनता है। मेरी फीस के लिए अवारा गाय को चारा खिलाए या निकट की गौशाला मे कुछ दान जरूर दे। यदि कोई गौशाला कुछ सामन बनाती है तो उसे जरुर ख़रीदे व् दूसरों को खरीदने को कहे. साथ मे महर्षि दयानन्द लिखित सत्यार्थ प्रकाश को पढे व अपने परिचितों को उपहार मे दे। यदि आप बिना फीस के प्रयोग करोगे तो समझिए आप चोरी कर रहे हैं।
यह एक पौधे के बीज हैं जो पूरे भारत मे सभी जड़ी बूटी वाले के यहाँ आसानी से मिल जाते हैं। इनमे एक गाढ़ा गहरे पीले रंग का तेल होता है। यह बहुत कड़वा होता है। यह सभी आयुर्वेदिक दवाई बेचने वालो की दुकान पर मिलता है। रोगन मालकांगनी/ मालकंगनी तेल/ ज्योतिष्मती तेल के नाम से मिलता है.
भिन्न भिन्न भाषाओं मे-
संस्कृत- ज्योतिष्मति – जो मति अर्थात बुद्धि को चमका दे
हिन्दी, उर्दू तथा अधिकांश
भारतीय भाषाओ मे मालकंगनी
लेटिन -- CELASTRUS PANICULATUS
बाजार मे यह बीज व तेल के रूप मे मिलती है। इन दोनों के गुण समान हैं। क्योंकि तेल बहुत कड़वा होता है इसलिए बीज का ही प्रयोग अधिक किया जाता है। इसके 1 बीज मे 6 छोटे बीज होते हैं। इसलिए जब मात्रा 1 बीज कही जाए तो उसका अर्थ है चने के आकार का बीज जिसमे 4-6 छोटे बीज होते हैं।
इसका प्रयोग किसे नहीं करना चाहिए –
1- जिसे भी स्थायी एनीमिया (Anemia) है वह इसका प्रयोग बिलकुल ना करे नहीं तो बहुत नुकसान होगा। जैसे थेलिसिमिया, परनीसियस एनीमिया, सिकल सेल एनीमिया, एडिसन डीजीज आदि।
2- व्याभिचारी बदचलन युवक युवती भी इससे दूर रहे। इसके सेवन करते समय संयम की जरूरत है। संयमी को ही इसका पूरा लाभ मिलता है।
3- जिसे शरीर के किसी भी हिस्से से खून बहता है या 1 साल के अंदर इस समस्या से पीड़ित रहा है वह इसका प्रयोग ना करे।
4- जिसे पेट मे अल्सर या अम्लपित्त है वह प्रयोग ना करे।
5- जिसे 1 साल के भीतर पीलिया (हेपटाइटिस) हुआ है वह इसका प्रयोग ना करे।
6- जिसे गहरे पीले रंग का मल आता है और बार बार शौच के लिए जाना पड़ता है वह भी इसका प्रयोग ना करे।
7- जिसे KIDNEY गुर्दे का कोई रोग है या शरीर पर सूजन है वह भी इसका प्रयोग ना करे।
8- जिसे इस्नोफिलिया है वह भी इसका प्रयोग ना करे।
9- जिसके मुंह मे बार बार छाले हो जाते है जो एक्जीमा, सोराइसिस या खुजली से ग्रस्त हैं वह भी इसका प्रयोग ना करे।
10- गर्भवती स्त्री पर इसका कोई अनुभव नहीं है इसलिए गर्भवती इसका प्रयोग ना करे।
उपयोग-
1 इसका सबसे बड़ा उपयोग – आयुर्वेद मे जो बुद्धि बढ़ाने वाली दवाइयाँ हैं उनमे यह मालकंगनी भी है। विद्यार्थियो के लिए सर्दी मे यह अमृत है। च्यवन प्राश, कोड लीवर आयल आदि इसके सामने कोई गुण नहीं रखते। प्राचीन वैद्यो ने इसके स्मृति /याददाश्त/ मेमोरी बढ़ाने वाले गुण की बहुत प्रशंसा की है। दिमाग का अधिक प्रयोग करने वाले व् अधिक बोलने वाले जैसे अध्यापक, वकील, चिकित्सक आदि को इसका प्रयोग जरुर करना चाहिए. इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए इसके साथ साथ शंखपुष्पी चूर्ण का प्रयोग किया जा सकता है
2 डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगो मे इसका बहुत अच्छा प्रभाव है। डिप्रेशन जैसे अनेक मानसिक रोगो मे मालकंगनी से तत्काल लाभ होता है। मनोरोग की एलोपैथी दवाइया प्रायः नींद को बढ़ाती है, परंतु यह नींद को सामन्य ही रखती है। सभी साइकोएक्टिव दवाइया (मानसिक रोगो की अङ्ग्रेज़ी दवाइया) सुस्ती लाती है, आँख, कान की शक्ति को कम करती है कमजोरी लाती है और खून की कमी कर देती है परंतु इसमे एसी कोई समस्या नहीं है। इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए इसके साथ साथ शंखपुष्पी चूर्ण का प्रयोग किया जा सकता है
3 - नजले जुकाम, बार बार होने वाले जुकाम, मौसम बदलते ही होने वाले जुखाम, सारी सर्दी बने रहने वाले जुकाम मे चमत्कार दिखाती है। जो भी नजले, जुखाम से परेशान है वह इसका प्रयोग जरूर करे। कुछ दिन प्रयोग करने से 1 साल तक समस्या से मुक्ति पा लेंगे। बहुत से व्यक्ति जिन्हे बड़े अस्पतालो के ENT के विशेषज्ञो ने कह दिया था कि सारी उम्र दवाई खानी होगी उन्हे इससे कुछ ही दिन मे मुसीबत से मुक्ति मिल गई । यह ना सोचे कि हमने तो बड़े अस्पतालो मे हजारो रुपए के टेस्ट करवा लिए हजारो की दवाई खा चुके हमे कुछ नहीं हुआ तो इससे क्या होगा। तो एक बार जरूर आजमाए। जो वैद्य केवल स्वर्ण भस्म, मकरध्वज, सहस्रपुटी अभ्रक भस्म और मृगाक रस जैसी कीमती दवाइयो को ही आयुर्वेद मानते है एक बार वह ही इसका चमत्कार देखे। जो इन महंगी दवाइयो से ठीक ना हुए हो वह भी इस मामूली सी दवाई से ठीक हो जाएगे। इसी तरह बार बार होने वाली खांसी व् मौसम बदलते ही छाती में भारीपन भी इससे ठीक हो जाता है.
4 -जो व्यक्ति सर्दी मे प्रतिदिन सुबह घर से निकलते है वह इसका प्रयोग जरूर करे। जिसे सर्दी अधिक सताती है वह भी इसका जादू जरूर देखे। यह शरीर मे सर्दी सहन करने की क्षमता को बहुत अधिक बढ़ा देती है।
5 – जो बहुत जल्दी थक जाते है जिसे लगता है आधा दिन काम करने के बाद ही सारा शरीर दर्द कर रहा है जो बार बार चाय पीकर थकावट को दूर करने की कोशिश करते हैं उनके लिए यह आयुर्वेद की संजीवनी बूटी है। 10 दिन प्रयोग करने के बाद शरीर मे थकावट महसूस नहीं होगी।
6 जिन्हे तनाव से या नजले से या किसी भी कारण से सिर मे दर्द रहता है वह भी इसके प्रयोग से लाभ उठाए।
7 सर्दी में जिनके पैर ठन्डे हो जाते हैं व रात को सोते समय बिस्तर में भी जल्दी से गर्म नहीं होते वह इसे जरुर ले.
8 सर्दी में जिनके हाथों या पैरों की अंगुलिया सुन्न हो जाती हैं वह भी जरुर प्रयोग करे.
9 सर्दी में जिनके हाथ पैर या कंधे के छोटे या बड़े जोड़ अकड जाते हैं और हाथ पैर मोड़ने में जिन्हें समस्या होती है वह जरुर प्रयोग करे.
10 मंदबुद्धि बच्चे जिनकी आयु 5 साल से अधिक है उन्हें सर्दी में मालकंगनी व गर्मी में शंखपुष्पी दूध से दे. इस तरह 2-3 साल देने से बहुत से बच्चे ठीक हो जाते हैं. लाभ सभी को होता है. 5 साल के कम उम्र वालो को केवल शंखपुष्पी दे. बच्चो को दवाई की मात्रा उम्र के अनुसार कम दे.
11 जो व्यक्ति बार बार बीमार होते हैं व कमजोर हैं तथा ज़रा सा चलते ही सांस फूल जाती है वह भी इसका प्रयोग जरुर करे.
मात्रा व प्रयोग करने का तरीका –
बीज या तेल में से किसी भी चीज को प्रयोग कर सकते है. लाभ बराबर हैं.
तेल- 2 बूंद से 8 बूंद तक दिन में 2 बार 1 कप गर्म दूध से. ध्यान रहे यह तेल बहुत अधिक कड़वा है इसलिए जो कड़वी दवाई ना ले सके वह इसे ना ले.
बीज- इसके बीज लाकर साफ़ कर ले. फिर 100 ग्राम बीज को 2 चम्मच देशी में भून कर पीस ले. इतना ना भुने कि जल जाए. पीस कर बंद डिब्बे में रख दे. बच्चों के लिए इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिला दे. आधा चम्मच दिन में 2 बार दूध से ले. जो घर से बाहर रहते हैं वह पानी से भी ले सकते हैं. यदि गर्मी लगे तो मात्रा कम कर दे. इसके साबुत बीज का प्रयोग किया जा सकता है. 1 से 4 बीज तक प्रतिदिन दूध या पानी से 2 समय ले.
जोड़ों के दर्द , कमर के दर्द, गर्दन जकड जाना, रीढ़ की हड्डी की में जकडन, कंधे का ना मुड़ना आदि दर्दो में इसके तेल को गर्म करके मालिश करे. मालिश के 2 घंटे बाद तक ठण्डा पानी ना पिए.

28 दिन - अत्यधिक सुख सुविधा की आदत व्यक्ति को असंतुष्ट और आलसी बना देती है।

*28 दिन*
एक  महिला हैं,  एक PG (पेइंग गेस्ट) चलाती हैं । उनका अपना पुश्तैनी घर है, उसमे बड़े बड़े 10-12 कमरे हैं। उन्हीं कमरों में हर एक मे 3 bed लगा रखे हैं। उनके PG में *भोजन* भी मिलता है। 

खाने खिलाने की शौकीन हैं। बड़े मन से बनाती खिलाती हैं।

उनके यहां इतना शानदार भोजन मिलता है कि अच्छे से अच्छा Chef नही बना सकता। आपकी माँ भी इतने प्यार से नही खिलाएगी जितना वो खिलाती हैं। उनके PG में ज़्यादातर नौकरी पेशा लोग और छात्र रहते हैं।

सुबह Breakfast और रात का भोजन तो सब लोग करते ही हैं, जिसे आवश्यकता हो उसे दोपहर का भोजन pack करके भी देती हैं।

पर उनके यहां एक बड़ा अजीबोगरीब नियम है, हर महीने में सिर्फ 28 दिन ही भोजन पकेगा।

शेष 2 या 3 दिन होटल में खाओ, ये भी नही कि PG की रसोई में बना लो।

 रसोई सिर्फ 28 दिन खुलेगी। शेष 2 या 3 दिन Kitchen Locked रहेगी। 

हर महीने के आखिरी तीन दिन Mess बंद। Hotel में खाओ, चाय भी बाहर जा के पी के आओ।

मैंने उनसे पूछा कि ये क्यों? ये क्या अजीबोगरीब नियम है। आपकी kitchen सिर्फ 28 दिन ही क्यों चलती है ?

बोली, हमारा Rule है। हम भोजन के पैसे ही 28 दिन के लेते हैं। इसलिये kitchen सिर्फ 28 दिन चलती है।

मैंने कहा ये क्या अजीबोगरीब नियम है? और ये नियम भी कोई भगवान का बनाया तो है नही आखिर आदमी का बनाया ही तो है बदल दीजिये इस नियम को।

उन्होंने कहा No, Rule is Rule ...

खैर साहब अब नियम है तो है। उनसे अक्सर मुलाक़ात होती थी।

एक दिन मैंने बस यूं ही फिर छेड़ दिया उनको, उस 28 दिन वाले अजीबोगरीब नियम पे।

उस दिन वो खुल गईं बोलीं, तुम नही समझोगे 
*गोपाल् जी,* शुरू में ये नियम नही था। मैं इसी तरह, इतने ही प्यार से बनाती खिलाती थी। पर इनकी शिकायतें खत्म ही न होती थीं कभी ये कमी, कभी वो कमी चिर असंतुष्ट always Criticizing... 

सो तंग आ के ये 28 दिन वाला नियम बना दिया। 28 दिन प्यार से खिलाओ और बाकी 2 - 3 दिन बोल दो कि जाओ, बाहर खाओ। 

 उस 3 दिन में नानी याद आ जाती है। 

आटे दाल का भाव पता चल जाता है। ये पता चल जाता है कि बाहर कितना महंगा और कितना घटिया खाना मिलता है। दो घूंट चाय भी 15 - 20 रु की मिलती है।

मेरी Value ही उनको इन 3 दिन में पता चलती है सो बाकी 28 दिन बहुत कायदे में रहते हैं।

 अत्यधिक सुख सुविधा की आदत व्यक्ति को असंतुष्ट और आलसी बना देती है।

 *ऐसे ही कुछ हाल देश में ही रहने वाले कुछ रहवासियों के भी हैं, जो देश की हर परिस्थिति में हमेशा कुछ न कुछ कमियाँ ही देखते हैं। ऐसे लोगों के अनुसार देश में कुछ भी सकारात्मक नहीं हुआ, न ही हो रहा हैं और न ही होगा,* 
 *ऐसे लोगो को कुछ दिन के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान या श्रीलंका गुजारने चाहिए, ताकि इनकी बुद्धि सही हो सके......🤓🤓*

सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

शंख के चमत्कारी गुण

शंख के चमत्कारी गुण..

शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है। आरती, धार्मिक उत्सव, हवन-क्रिया, राज्याभिषेक, गृह-प्रवेश, वास्तु-शांति आदि शुभ अवसरों पर शंखध्वनि से लाभ मिलता है। पितृ-तर्पण में शंख की अहम भूमिका होती है
शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंख-ध्वनि करने का प्रचलन है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं।
धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती है। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है। कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है। शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं।
शंख की आकृति के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।
घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है। रुद्र, गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है। इसका धूप, दीप, नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए। शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं। मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं। विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तु-दोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय आदि में लाभ होता है।
शंख की स्थापना से घर में लक्ष्मी का वास होता है। स्वयं माता लक्ष्मी कहती हैं कि शंख उनका सहोदर भ्राता है। शंख, जहाँ पर होगा, वहाँ वे भी होंगी। देव प्रतिमा के चरणों में शंख रखा जाता है। पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए। गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन, बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है। अन्नपूर्णा शंख की व्यापारी व सामान्य वर्ग द्वारा अन्नभंडार में स्थापना करने से अन्न, धन, लक्ष्मी, वैभव की उपलब्धि होती है। मणिपुष्पक एवं पांचजन्य शंख की स्थापना से भी वास्तु-दोषों का निराकरण होता है। शंख का तांत्रिक-साधना में भी उपयोग किया जाता है। इसके लिए लघु शंखमाला का प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार शंख-ध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है। इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है। इस संदर्भ में अनेक प्रयोग-परीक्षण भी हुए हैं। आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं। त्र+षि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है। बच्चा स्वस्थ रहता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं। हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है। दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `ँ़' की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है। यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है।
वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीजों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार, पाप, दुषित विचार और गरीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था।आधुनिक विज्ञान के अनुसार शंख बजाने से हमारे फेफड़ों का व्यायाम होता है, श्वास संबंधी रोगों से लडऩे की शक्ति मिलती है। पूजा के समय शंख में भरकर रखे गए जल को सभी पर छिड़का जाता है जिससे शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है। शंख में कैल्शियम, फास्फोरस और गंधक के गुण होते हैं जो उसमें रखे जल में आ जाते हैं।
भारतीय संस्कृति में शंख को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख भी था। इसकी ध्वनि विजय का मार्ग प्रशस्त करती है।
शंख का महत्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधक होती हैं। इसलिए सुबह और शाम शंखध्वनिकरने का विधान सार्थक है। जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र बसु के अनुसार, इसकी ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक व्याप्त बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है। इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधिमाना जाता है।
शंख बजाने से दमा, अस्थमा, क्षय जैसे जटिल रोगों का प्रभाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि शंख बजाने से सांस की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, शंख में जल भरकर रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर में छिडकने से वातावरण शुद्ध रहता है। तानसेनने अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी। अथर्ववेदके चतुर्थ अध्याय में शंखमणिसूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है।
भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुरको मार गिराया। उसका खोल (शंख) शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था। शंख से शिवलिंग,कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। शंख की ध्वनि से भक्तों को पूजा-अर्चना के समय की सूचना मिलती है। आरती के समापन के बाद इसकी ध्वनि से मन को शांति मिलती है। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। शंख की पूजा इस मंत्र के साथ की जाती है.

त्वं पुरा सागरोत्पन्न:विष्णुनाविघृत:करे देवैश्चपूजित: सर्वथैपाञ्चजन्यनमोऽस्तुते।

पूजा-पाठ में शंख बजाने का चलन युगों-युगों से है. देश के कई भागों में लोग शंख को पूजाघर में रखते हैं और इसे नियम‍ित रूप से बजाते हैं. ऐसे में यह उत्सुकता एकदम स्वाभाविक है कि शंख केवल पूजा-अर्चना में ही उपयोगी है या इसका सीधे तौर पर कुछ लाभ भी है.
दरअसल, सनातन धर्म की कई ऐसी बातें हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद हैं. शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं. कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े हैं. आगे चर्चा की गई है कि पूजा में शंख बजाने और इसके इस्तेमाल से क्या-क्या फायदे होते हैं.
1. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है.
2. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं.
3. पूजा-पाठ में शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है. जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं. अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है.
4. शंख के जल से श‍िव, लक्ष्मी आदि का अभि‍षेक करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है.
‍5. ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छ‍िड़कने से वातावरण शुद्ध होता है.
6. शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है. ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती हैं. इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती हैं.
7. वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है. कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले हैं.
8. आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं. हालांकि इसका उपयोग एक्सपर्ट वैद्य की सलाह से ही किया जाना चाहिए.
9. शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है. पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमि‍त तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है.
10. शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं. यह दांतों के लिए भी लाभदायक है. शंख में कैल्श‍ियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है.
11. वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है. शंख की आवाज से 'सोई हुई भूमि' जाग्रत होकर शुभ फल देती है.

मोर पंख मिटाएगा वास्तुदोष..

मोर पंख मिटाएगा वास्तुदोष..

मोर पंख को सम्मोहन का प्रतीक माना गया है। घर में मोर पंख रखना प्राचीनकाल से ही बहुत शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार भी मोर पंख घर से अनेक प्रकार के वास्तुदोष दूर करता है। मोर पंख सकारात्मक उर्जा को अपनी तरफ खीचता है। मोर पंख को वास्तु के अनुसार बहुत उपयोगी माना गया है।

- मोर का एक पंख लेकर उसे दक्षिणामुखी राधा कृष्ण की मूर्ति के मुकुट में लगाएं। मूर्ति में मोर पंख चालीस दिन के लिए स्थापित कर दें और राधा कृष्ण को रोज भोग लगाएं। इकतालिसवे दिन उस मोर पंख को घर लाकर अपनी तिजोरी में रखें।

- घर के दक्षिण-पूर्वी कोने में मोर का पंख लगाने से भी घर में बरकत बढ़ती है।

- यदि घर की उत्तर- पश्चिमी कोने में रखें तो जहरीले जानवरों का भय नहीं रहता है।

- अपनी जेब या डायरी में मोर पंख रखने पर राहु दोष कभी प्रभावित नहीं करता है।

- नवजात बालक के सिर की तरफ चांदी की एक डिब्बी में भरकर उसके सिरहाने रखने से नजर नहीं लगती है।इसे पुस्तको में रखना भी बहुत शुभ माना जाता है

राम रक्षा स्त्रोत एक अत्यंत चमत्कारी स्त्रोत है I

राम रक्षा स्त्रोत
एक अत्यंत चमत्कारी स्त्रोत है I इसका प्रयोग किसी भी व्याधी या आपदा के लिए किया जा सकता है I अनेक लोग इसका चमत्कार देख चुके हैं I प्रसन्नता की बात यह है कि इसका प्रयोग करने वाले को कभी निराशा नहीं होती I विशेषकर जिन लोगों कि जान खतरे में हो, किसी असाध्य बीमारी से ग्रस्त हों, कोई शत्रु परेशान कर रहा हो, चोट चपेट का डर हो या लड़ाई झगडे कि आशंका हो तो इससे सभी अंगों कि रक्षा होती है क्योंकि इस मन्त्र में आपके शरीर के हर अंग की रक्षा के लिए मन्त्र बोले जाते हैं I
नौकरी चली जाए या नौकरी जाने वाली हो आप इस मन्त्र से परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढाल सकते हैं I चारों ओर संकट हो, बाधाएं, मुश्किलें आ रही हों, कोई अनिष्ट की आशंका हो या किसी अपने की चिंता हो आप बस इस मन्त्र को अपना कर देखिये और आप पायेंगे कि आपका काम बन गया है I इस मन्त्र में भगवान् श्रीराम कि स्तुति की जाती है और उनसे अपने लिए सफलता की मांग की जाती है I


राम रक्षा स्त्रोत की विधि

राम रक्षा स्त्रोत को ग्यारह बार एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे दिन तक इसका प्रभाव रहता है I अगर आप रोज ४५ दिन तक राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल की अवधि बढ़ जाती है I मेरे निजी अनुभव के अनुसार इसका प्रभाव दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है I और भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत को नवरात्रों में प्रतिदिन ११ बार पढ़े I

माना जाता है कि जब आपको यह मन्त्र पूरी तरह से याद हो जाए तो सिद्ध हो जाता है I मेरे विचार से ऐसा नहीं है, परन्तु याद होने के बाद इस मन्त्र को आप प्रयोग अवश्य कर सकते हैं I

सरसों के दाने एक कटोरी में दाल लें I कटोरी के नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए I राम रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान आपको अपनी उँगलियों से सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहना है I ध्यान रहे कि आप किसी आसन पर बैठे हों और राम रक्षा यंत्र आपके सम्मुख हो या फिर श्री राम कि प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है I ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध हो जायेगी और आप उस सरसों के दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें I जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें I सफलता अवश्य प्राप्त होगी I यह मेरा स्वयं का अनुभव है जो कई बार आजमाया जा चूका है I

वाद विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ और वहां दाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके सम्मुख फेंक दें I सफलता आपके कदम चूमेगी I

खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में आप सिद्ध सरसों को साथ ले जाएँ और अपनी जेब में रखें I

अनिष्ट की आशंका हो तो भी सिद्ध सरसों को साथ में रखें I

यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा I

राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके रोगी को पिलाया जा सकता है परन्तु पानी को सिद्ध करने कि विधि अलग है I इसके लिए ताम्बे के बर्तन को केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस करें कि आपकी सारी शक्ति पानी में जा रही है I इस समय अपना ध्यान श्री राम की स्तुति में लगाये रखें I मन्त्र बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात रहे I

राम रक्षा स्त्रोत को किसी भी पुस्तक विक्रेता से प्राप्त किया जा सकता है I

स्वास्थ्य के लिये टोटके

स्वास्थ्य के लिये टोटके


1॰ सदा स्वस्थ बने रहने के लिये रात्रि को पानी किसी लोटे या गिलास में सुबह उठ कर पीने के लिये रख दें। उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन (गिलास आदि) को उल्टा रखने से यकृत सम्बन्धी परेशानियां नहीं होती तथा व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।
2॰ हृदय विकार, रक्तचाप के लिए एकमुखी या सोलहमुखी रूद्राक्ष श्रेष्ठ होता है। इनके न मिलने पर ग्यारहमुखी, सातमुखी अथवा पांचमुखी रूद्राक्ष का उपयोग कर सकते हैं। इच्छित रूद्राक्ष को लेकर श्रावण माह में किसी प्रदोष व्रत के दिन, अथवा सोमवार के दिन, गंगाजल से स्नान करा कर शिवजी पर चढाएं, फिर सम्भव हो तो रूद्राभिषेक करें या शिवजी पर “ॐ नम: शिवाय´´ बोलते हुए दूध से अभिषेक कराएं। इस प्रकार अभिमंत्रित रूद्राक्ष को काले डोरे में डाल कर गले में पहनें।
3॰ जिन लोगों को 1-2 बार दिल का दौरा पहले भी पड़ चुका हो वे उपरोक्त प्रयोग संख्या 2 करें तथा निम्न प्रयोग भी करें :-एक पाचंमुखी रूद्राक्ष, एक लाल रंग का हकीक, 7 साबुत (डंठल सहित) लाल मिर्च को, आधा गज लाल कपड़े में रख कर व्यक्ति के ऊपर से 21 बार उसार कर इसे किसी नदी या बहते पानी में प्रवाहित कर दें।
4॰ किसी भी सोमवार से यह प्रयोग करें। बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लें। रविवार शाम 5 फूल, आधा कप पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र में पानी पीएं, उसे उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे।
5॰ घर में नित्य घी का दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय लौ पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर हो या दीपक के मध्य में (फूलदार बाती) बाती लगाना शुभ फल देने वाला है।
6॰ रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से बीमारियां, दु:स्वपन नहीं आते, पितृ दोष का नाश होता है एवं घर में शांति बनी रहती है।
7॰ पूर्णिमा के दिन चांदनी में खीर बनाएं। ठंडी होने पर चन्द्रमा और अपने पितरों को भोग लगाएं। कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। वर्ष भर पूर्णिमा पर ऐसा करते रहने से गृह क्लेश, बीमारी तथा व्यापार हानि से मुक्ति मिलती है।
8॰ रोग मुक्ति के लिए प्रतिदिन अपने भोजन का चौथाई हिस्सा गाय को तथा चौथाई हिस्सा कुत्ते को खिलाएं।
9॰ घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं।
10॰ पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं। पीपल के पेड़ की लकड़ी सिरहाने रखें।
11॰ पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने से रोग पीड़ाएँ समाप्त होती है।
12॰ मंदिर में गुप्त दान करें।
13॰ रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू मंदिर में प्रसाद के रूप में बांटे।
14॰ सदैव पूर्व या दक्षिण दिषा की ओर सिर रख कर ही सोना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर कर के सोने वाले व्यक्ति में चुम्बकीय बल रेखाएं पैर से सिर की ओर जाती हैं, जो अधिक से अधिक रक्त खींच कर सिर की ओर लायेंगी, जिससे व्यक्ति विभिन्न रोंगो से मुक्त रहता है और अच्छी निद्रा प्राप्त करता है।

रंग चिकित्सा (ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा)

रंग चिकित्सा (ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा)


सूर्य की किरणों की कीटाणुनाशक क्षमता से हमारे ऋषि भलीभांति परिचित थे। वास्तु नियमों में पूर्व दिशा स्नानागार के लिए प्रशस्त मानी गई है। वैदिक काल में उषा काल में स्नान का प्रावधान था। व्यक्ति विटामिन डी से भरपूर लाल सूर्य की किरणों का सेवन करता था और स्वस्थ रहता था। योग में सूर्य नमस्कार और आसन का भी यही उद्देश्य है। त्राटक विधा में बाल सूर्य को एकटक देखे जाने का प्रावधान है। सूर्य की धातु सोना और ताँबा होती है। आयुर्वेदाचार्य ताँबे के पात्र में रात भर रखा हुआ पानी सुबह पीने की सलाह देते हैं, अत: सूर्य की सप्तरश्मियां पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली हैं। हमारे ऋषि-मुनि भी सूर्य की किरणों में निहित असीम रोगनाशक शक्तियों से अवगत थे। ऋग्वेद और अथर्ववेद में सूर्य भगवान से आरोग्य के आशीर्वाद की कामना के लिए अनेक श्लोक हैं। एक श्लोक का अर्थ है-- '' हे सूर्य नारायण! मेरे हृदय रोग का नाश करो। सर्व रोगों का विनाश कर शांति प्रदान करने वाले, हे सूर्यदेव! आपको शत्-शत् नमस्कार है। हे सूर्य भगवान् आप हमें आयु, आरोग्य और ऎश्वर्य दें।" प्राणियों का संपूर्ण शरीर रंगीन है। शरीर के समस्त अवयवों के रंग अलग-अलग हैं। शरीर की समस्त कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग रुग्ण (बीमार) होता है, तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। उन रंगों को रंग चिकित्सा संतुलित कर देती है, जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है। शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं, शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी। रंग चिकित्सा जितनी सरल है, उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएँ हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।
चिकित्सा

रंगों के तीन समूह बनाए गए हैं - 1. लाल, पीला और नारंगी 2. हरा 3. नीला, आसमानी और बैंगनी। प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।
जिस रंग की दवाएँ बनानी हों, उस रंग की काँच की बोतल लेकर शुद्ध पानी भरकर 8 घंटे धूप में रखने से दवा तैयार हो जाती है। बोतल थोड़ी खाली होनी चाहिए व ढक्कन बंद होना चाहिए। इस प्रकार बनी हुई दवा को चार या पाँच दिन सेवन कर सकते हैं। नारंगी रंग की दवा भोजन करने के बाद 15 से 30 मिनट के अंदर दी जानी चाहिए। हरे तथा नीले रंग की दवाएँ खाली पेट या भोजन से एक घंटा पहले दी जानी चाहिए।
मात्रा-प्रत्येक रंग की दवा की साधारण खुराक 12 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति के लिए 2 औंस यानी 5 तोला होती है। कम आयु वाले बच्चों को कम मात्रा देनी चाहिए। आमतौर पर रोगी को एक दिन में तीन खुराक देना लाभदायक है।
सफेद बोतल में पीने का पानी 4-6 घंटे धूप में रखने से वह पानी कीटाणुमुक्त हो जाता है तथा कैल्शियमयुक्त हो जाता है। अगर बच्चों के दाँत निकलते समय वही पानी पिलाया जाए, तो दाँत निकलने में आसानी होती है। इस तथ्य से सामान्यजन अनजान हो सकते हैं परन्तु वैदिक काल में वैद्यों को ज्योतिष का पर्याप्त ज्ञान होता था। जिस प्रकार आयुर्वेद में ज्योतिष का उल्लेख है, उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी कुछ श्लोकों में आयुर्वेद के नुस्खों का सुंदर प्रयोग किया गया है। आधुनिक व्यक्ति, वैदिक कालीन इस तथ्य को जानकर भी इससे अनजान बने हुए हैं। रात्रि में देर से सोना और सुबह देर से उठना, उन्होंने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया हुआ है। वे यह तो चाहते हैं कि स्वस्थ रहें परन्तु बाल सूर्य की किरणों के अभाव को ब्यूटी पार्लर में जाकर Sauna Bath से पूरा करते हैं। आधुनिकता का एक और उदाहरण ब़डे होटलों में रूपये देकर सूर्य स्नान का आनन्द लिया जाना भी है। हमें समझना होगा, अपने ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा को।
लाल रंग की दवा -- लाल रंग की बोतल में तैयार जल का प्रयोग शरीर पर ऊष्ण प्रभाव के लिए होता है। यह बलदायक होता है तथा विद्युत प्रभाव के कारण शरीर को शक्ति प्रदान करता है। ज्योतिष में लाल रंग मंगल का प्रतीक होता है। जन्म पत्रिका में यदि मंगल सुदृढ़ स्थिति में नहीं हो, तो इसका तात्पर्य है मंगल ग्रह की रश्मि की कमी। ऎसा व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होता है। लाल रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।

पीला रंग की दवा -- पीले रंग की बोतल में तैयार पानी विशेष रूप से यकृत और प्लीहा पर होता है। यह यकृत की शिथिलता को दूर करता है। ज्योतिष में पीला रंग बृहस्पति देव का माना जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में बृहस्पति का यकृत पर आधिपत्य माना गया है। यदि जन्म पत्रिका में दुर्बल बृहस्पति छठे भाव में (छठा भाव रोग का भाव है) स्थित हों, तो व्यक्ति यकृत की बीमारी से पीड़ित होता है। पीलिया की शिकायत भी जन्मपत्रिका में पीड़ित बृहस्पति के कारण होती है। पीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। पीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
नारंगी रंग की दवा- कफजनित खाँसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।
हरे रंग की दवा खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंशी, दाद, खुजली आदि में गुणकारी है। साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आँखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप, सिरदर्द आदि में लाभदायक है। जल चिकित्सा में हरे रंग को राजा माना गया है। यह रंग गर्मी और सर्दी को संतुलित करता है। इसका प्रयोग रोगाणुनाशक के रूप में और विजातीय पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने में होता है, जो एलर्जी का कारण बनते हैं। ज्योतिष में हरा रंग बुध ग्रह का रंग है। बुध शरीर की प्रतिरोधक क्षमता, एलर्जी आदि के कारक हैं। जन्म पत्रिका में बुध यदि कमजोर हो या पूर्ण अस्त हों तो व्यक्ति सर्दी, जुकाम आदि का शिकार जल्दी-जल्दी होता है तथा धूल, पराग आदि कणों से एलर्जी की शिकायत रहती है। एक हरे रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। हरे रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
नीले रंग की दवा -- शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुँचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दाँत दर्द, मुँह में छाले, पायरिया घाव आदि रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुँचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुँचाता है। नीले रंग से आवेशित जल का प्रयोग स्नायु तंत्र में दुर्बलता, डिप्रेशन, मिर्गी, कुष्ठ रोगादि के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में शनि को स्नायु तंत्र, मिर्गी आदि का कारक माना गया है। जन्मपत्रिका में शनि यदि पीड़ित अवस्था में हों तो व्यक्ति को स्नायु तंत्र से संबंधित रोगों का सामना करना प़डता है। यदि शनि बलवान हो एवं बुध से संयोग कर लें तो व्यक्ति स्नायु शल्य चिकित्सक (Neuro Surgeon) हो सकता है। एक नीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। नीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। Please read this Article and send to your friends. रंग चिकित्सा में विभिन्न रंगों वाली बोतलों में तैयार किए गए जल के प्रयोग से इलाज किया जाता है। एक विशिष्ट रंग की बोतल में पानी भरकर उसे धूप में रखा जाता है और फिर इस जल का सेवन किया जाता है। इस विधि में बीमारी और अंग विशेष की पुष्टि के लिए प्रयुक्त रंग की तुलना, ज्योतिष में ग्रहों और उन्हें प्रदत्त रंगों से की जाए, तो आश्चर्यजनक तारतम्य देखने को मिलता है। सूर्य की रश्मियों में 7 रंग पाए जाते हैं- 1. लाल, 2. पीला, 3. नारंगी, 4. हरा, 5. नीला, 6.आसमानी, 7. बैंगनी

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